बृहत् त्रिकोण और चतुष्कोण

बृहत त्रिकोण का निर्माण जीवनरेखा, मस्तिष्क रेखा एवं स्वास्थ्य रेखा से मिल कर होता है (देखिए रेखाकृति 1 )। जैसा कि प्रायः होता है, यदि हाथ में स्वास्थ्य रेखा न हो तो इस प्रकार के त्रिकोण को पूरा करने के लिए एक काल्पनिक रेखा बनानी होती है या फिर सूर्य रेखा ही इस काम को पूरा कर देती है (देखिए रेखाकृति 1 a-a)।

यदि ऐसा हो तो यह चिह्न व्यक्ति की शक्ति और सफलता का सूचक होता है। ऐसा व्यक्ति उतना उदार नहीं होता जितना कि वह तब होता है जब इस प्रकार के त्रिकोण का आधार स्वास्थ्य रेखा बनाती है। इस त्रिकोण का आधार व स्थिति इन्हीं रेखाओं पर आधारित करनी चाहिये। इसके ऊपर, मध्य एवं नीचे तीन कोण होते हैं।

यदि ऐसा त्रिकोण मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा और स्वास्थ्य रेखा द्वारा निर्मित हो तो इसे इतना खुला होना चाहिये कि समूचा मंगल पर्वत क्षेत्र उसके भीतर समा जाए। ऐसा होने पर व्यक्ति उदार हृदय एवं उन्मुक्त दृष्टि वाला होता है तथा दूसरों की भलाई के लिये अपने को भी बलिदान करने को तैयार रहता है।

बृहत् त्रिकोण और चतुष्कोण
रेखाकृति 1

लेकिन यदि इसके विपरीत ऐसे त्रिकोण का निर्माण किन्हीं छोटी, लहरदार एवं अनिश्चित रेखाओं द्वारा हुआ हो तो व्यक्ति भीरु, संकोची एवं नीच वृत्ति का होता है। ऐसा व्यक्ति अपने सिद्धान्तों की परवाह न करते हुए सदा बहुमत का साथ देता है।

यदि ऐसे त्रिकोण के निर्माण में सूर्य रेखा सहायक होती हो तो व्यक्ति के विचार संकीर्ण होते हैं, परन्तु वह दृढ़ निश्चयी एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इस प्रकार का चिह्न अपने गुणों के कारण व्यक्ति में सांसारिक सफलताओं का द्योतक होता है।

ऊपरी कोण : बृहत् त्रिकोण का ऊपरी कोण मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा से मिलकर बनता है। यदि यह कोण बिल्कुल स्पष्ट, नुकीला और सम हो तो व्यक्ति के विचारों में सुरुचि एवं शुद्धता का द्योतक होता है। यदि यह कोण नुकीला न हो तो ऐसा व्यक्ति मुंहफट एवं जल्दबाज होता है। वह अपने काम से काम रखने वाला होता है। तथा कला एवं कलात्मक वस्तुओं या ऐसे व्यक्तियों के प्रति उसके मन में कोई प्रशंसा का भाव नहीं होता है।

यदि यह कोण अत्यधिक चौड़ा और कुण्ठित हो तो व्यक्ति की जल्दबाजी का द्योतक होता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों को लगातार कुपित करता रहता है। इस प्रकार के कोण से व्यक्ति की अधीरता एवं क्षमता का भी पता चलता है।

मध्य कोण : यह कोण मस्तिष्क रेखा और स्वास्थ्य रेखा के मेल से बनता है। (देखिए रेखाकृति 1 c) ।

  • यदि यह कोण स्पष्ट एवं सुविकसित हो तो व्यक्ति की त्वरित बुद्धि, स्वास्थ्य एवं जिन्दादिली का सूचक होता है।
  • यदि यह कोण बहुत संकीर्ण हो तो व्यक्ति शीघ्र घबरा जाने वाला एवं अस्वस्थ होता है।
  • यदि यह कोण अत्यधिक कुण्ठित हो तो व्यक्ति मन्दबुद्धि एवं कामचलाऊ तरीके से काम करने वाला होता है।

निम्न कोण : यदि यह कोण बहुत संकीर्ण हो तथा स्वास्थ्य रेखा द्वारा निर्मित होता हो तो व्यक्ति में उत्साह एवं जिन्दादिली की कमी का द्योतक होता है, लेकिन यदि यह कोण कुण्ठित हो तो व्यक्ति उदारचेता एवं उदारहृदयी होता है।

यदि यह कोण सूर्य रेखा से बना हो और अत्यधिक संकीर्ण हो तो व्यक्ति को व्यक्तित्व प्रदान करता है, लेकिन उसका दृष्टिकोण बहुत संकुचित होता है, जबकि कुण्ठित या फैला हुआ कोण व्यक्ति को उदारहृदय बनाता है।

चतुष्कोण

मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा के मध्य का क्षेत्र चतुष्कोणी या आयताकार क्षेत्र होता है (देखिए रेखाकृति 1) । इसे आकार में सम, दोनों सिरों पर खुला हुआ या चौड़ा तथा केन्द्र में चौड़ा होना चाहिये। इसके भीतरी भाग को चिकना होना चाहिए पर अनेक रेखाओं से युक्त नहीं होना चाहिये। चाहे वे रेखाएं मस्तिष्क रेखा से निकल रही हों अथवा हृदय रेखा से इस प्रकार का चतुष्कोण व्यक्ति के मानसिक सन्तुलन, बौद्धिक क्षमता तथा प्रेम एवं मैत्री में निष्ठा का सूचक होता है।

यह स्थान व्यक्ति के अपने साथियों के प्रति रवैये को प्रदर्शित करता है। यदि यह स्थान अत्यधिक संकीर्ण हो तो व्यक्ति की संकीर्ण प्रवृत्ति एवं उसके धर्मान्धपन का द्योतक होता है, जबकि त्रिकोण व्यक्ति के कार्य और व्यवसाय में सुरक्षा का द्योतक होता है। धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के हाथ में यह एक अद्भुत चिह्न होता है। धर्मान्ध व्यक्तियों के हाथ में यह स्थान बहुत संकीर्ण होता है।

दूसरी ओर यह स्थान बहुत अधिक चौड़ा भी नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर व्यक्ति के धर्म और नैतिकता सम्बन्धी विचार इतने अधिक उदार और स्पष्ट हो जाते हैं कि स्वयं उसे ही हानि पहुंचा सकते हैं।

यदि यह स्थान बीच से इतना संकरा हो जाए कि कमर के आकार का दिखाई दे तो यह व्यक्ति के पूर्वाग्रही एवं अन्यायी होने का सूचक होता है। इसलिये दोनों सिरे समान और सन्तुलित होने आवश्यक हैं।

यदि यह क्षेत्र शनि पर्वत की तुलना में सूर्य पर्वत के नीचे अधिक चौड़ा हो तो व्यक्ति अपने नाम, ख्याति एवं प्रतिष्ठा की कोई परवाह नहीं करता। लेकिन यदि वह स्थान शनि या बृहस्पति पर्वत क्षेत्र के नीचे अधिक चौड़ा हो तथा दूसरे सिरे पर संकचित हो तो यह इस बात का द्योतक है कि व्यक्ति अपने खुले विचारों का होने पर भी पूर्वाग्रही है।

यदि यह चतुष्कोण अत्यधिक चौड़ा हो तो इससे व्यक्ति के मस्तिष्क में व्यवस्था के प्रति लापरवाही का पता चलता है। ऐसे व्यक्ति लापरवाह, रूढ़िमुक्त अथवा बुद्धिहीन होते हैं।

यदि यह चतुष्कोण समतल तथा छोटी-छोटी रेखाओं से मुक्त हो तो व्यक्ति शान्त और सन्तुलित स्वभाव का होगा।

यदि यह चतुष्कोण छोटी-छोटी रेखाओं और गुणन चिह्नों से भरा हो तो व्यक्ति उद्विग्न एवं चिड़चिड़ा होता है।

चतुष्कोण के किसी भी भाग में नक्षत्र का होना प्रायः शुभ माना जाता है। यदि वह किसी अनुकूल पर्वत के नीचे हो तब तो यह स्थिति और भी अच्छी होती है ।

  • बृहस्पति पर्वत क्षेत्र के नीचे चतुष्कोण में नक्षत्र की स्थिति व्यक्ति में आत्माभिमान एवं अधिकार की सूचक होती है,
  • जबकि शनि पर्वत क्षेत्र के नीचे संसारिक कार्यों में सफलता की द्योतक होती है।
  • सूर्य पर्वत क्षेत्र के नीचे चतुष्कोण में नक्षत्र की स्थिति व्यक्ति को कला के क्षेत्र में ख्याति प्रदान करती है।
  • बुध और सूर्य पर्वत क्षेत्र के मध्य के नीचे विज्ञान और शोध कार्यों द्वारा सफलता की द्योतक है।

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