भाग्य रेखा
भाग्य रेखा अथवा शनि रेखा हथेली के केन्द्र में नीचे से ऊपर को जाने वाली होती है देखिए (रेखाकृति- 1)। इस रेखा पर विचार करते हुए हाथ की बनावट का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। उदाहरण के लिये अत्यन्त सफल व्यक्तियों के हाथों में भी जबकि हाथ अविकसित, वर्गाकार अथवा चमचाकार होते हैं, भाग्य रेखा बहुत धुंधली सी दिखाई पड़ती है। जबकि दार्शनिक, नुकीले और बहुत नुकीले हाथों में ऐसा नहीं होता। इसलिये यदि नुकीले हाथों पर स्पष्ट भाग्य रेखा दिखाई दे तो वर्गाकार हाथों की अपेक्षा उनका आधा भी महत्त्व नहीं होता।
मुझे यह लिखते हुए बहुत दुःख होता है कि इस महत्त्वपूर्ण तथ्य की ओर दूसरे लेखकों ने कोई ध्यान ही नहीं दिया। वास्तव में होता यह है कि प्रायः हस्तरेखाविद् इस लम्बी रेखा को सौभाग्य और सफलता की कुंजी मान बैठते हैं तथा वर्गाकार हाथ पर छोटी भाग्य रेखा को देखकर यह समझ बैठते हैं कि व्यक्ति को अपने जीवन में कोई सफलता प्राप्त नहीं होगी।
जबकि वास्तविकता यह है कि वर्गाकार हाथ पर छोटी भाग्य रेखा नुकीले या बहुत नुकीले हाथों पर अंकित लम्बी और सशक्त भाग्य रेखा की अपेक्षा चार गुना अधिक शक्तिशाली सिद्ध होती है। मैं इस बात पर विशेष बल देना चाहता हूं, क्योंकि हस्तरेखा विज्ञान के अनेक अध्येता इस विज्ञान से इसी प्रकार निराश हो उठते हैं। उन्होंने आरम्भ में ही इस विषय को ठीक से समझा नहीं होता।
एक विचित्र और रहस्यमय तथ्य यह भी है कि जिन दार्शनिक, नुकीले एवं बहुत नुकीले हाथों पर लम्बी और स्पष्ट भाग्य रेखा दिखाई देती है, वे प्रायः भाग्य में विश्वास रखते हैं, जबकि वर्गाकार एवं अविकसित हाथ वाले व्यक्ति कर्मफल में विश्वास रखते हैं। इसलिये हस्तरेखा विज्ञान के अध्येताओं को हाथों की परीक्षा करते समय इस महत्त्वपूर्ण बिन्दु को सदा ध्यान में रखना चाहिए।
भाग्य रेखा का सम्बन्ध व्यक्ति के सांसारिक जीवन से होता है। हमारी सफलताओं व असफलताओं का क्या परिणाम होगा तथा जो व्यक्ति हमारे जीवन को प्रभावित करेंगे या हमारे जीवन पथ में जो बाधाएं और कठिनाइयां उपस्थित होंगी, उन सबका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव होगा, इस सबकी सूचना हमें भाग्य रेखा से ही प्राप्त होती है।
भाग्य रेखा का आरम्भ जीवन रेखा, मणिबन्ध, चन्द्र पर्वत, मस्तिष्क रेखा या फिर हृदय रेखा से भी हो सकता है।
यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा से आरम्भ होती दिखाई दे तथा शक्तिशाली भी हो तो ऐसे व्यक्ति को सफलता एवं धन प्राप्ति उसकी व्यक्तिगत योग्यताओं के कारण होती है। परन्तु यदि भाग्य रेखा का प्रारम्भ कलाई के पास से अथवा जीवन रेखा के पास से होता हो तो इससे सिद्ध होता है कि व्यक्ति का आरम्भिक जीवन उसके माता-पिता या सगे-सम्बन्धियों की इच्छाओं पर आधारित होगा।
यदि भाग्य रेखा मणिबन्ध से आरम्भ होकर सीधी शनि पर्वत के क्षेत्र तक पहुंच जाए तो अत्यधिक सौभाग्य एवं सफलता की सूचक होती है।
यदि भाग्य रेखा का उदय चन्द्र पर्वत क्षेत्र से होता हो तो व्यक्ति का भाग्य और उसकी सफलता दूसरे लोगों की रुचि पर निर्भर करती है। ऐसा प्रायः उन व्यक्तियों के हाथों में होता है जिन्हें जनसाधारण से लोकप्रियता प्राप्त होती है, जैसे राजनीतिज्ञ या सामाजिक कार्यकर्ता आदि ।
यदि भाग्य रेखा सीधी जा रही हो तथा चन्द्र पर्वत क्षेत्र से आकर कोई रेखा उसमें मिल जाए तो यह इस बात की द्योतक है कि व्यक्ति को सफल बनाने में किसी अन्य व्यक्ति अथवा स्त्री का योगदान होगा। यदि किसी स्त्री के हाथ पर चन्द्र पर्वत क्षेत्र से प्रारम्भ होकर ऐसी कोई रेखा उसकी भाग्य रेखा के साथ जुड़ जाए तो इसका अर्थ होगा कि उस स्त्री का विवाह किसी धनी परिवार में होगा (देखिए रेखाकृति 2 h-h) और इस प्रकार उसको उन्नति के लिए सहायता प्राप्त होगी।
यदि भाग्य रेखा के अपने स्थान यानि शनि पर्वत की ओर जाते हुए उसकी कोई शाखा किसी अन्य पर्वत की ओर चली जाए तो यह इस बात की सूचक है कि उस पर्वत के गुण व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करेंगे यानि व्यक्ति उस पर्वत के गुणों के अनुसार प्रगति करेगा।
यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत के अतिरिक्त किसी अन्य पर्वत की ओर चली जाए तो यह उस पर्वत की विशेषताओं के अनुसार व्यक्ति की सफलता की द्योतक होती है।
यदि भाग्य रेखा ऊपर की ओर जाती हुई गुरु पर्वत के केन्द्र पर पहुंच जाए तो व्यक्ति को अपने जीवन में विशिष्टता, असामान्य सम्मान एवं अधिकार प्राप्त होते हैं। इसका सम्बन्ध व्यक्ति के चरित्र से भी होता है। ऐसे व्यक्ति प्रायः अपने साथियों की अपेक्षा ऊंचा उठने के लिये ही जन्म लेते हैं, क्योंकि उनके भीतर व्यापक शक्ति, आकांक्षा और पर्याप्त संकल्प होता है।
यदि भाग्य रेखा से निकल कर कोई शाखा बृहस्पति पर्वत क्षेत्र पर पहुंच जाए तो यह व्यक्ति के जीवन की उस विशेष अवस्था में असाधारण सफलता की सूचक होती है जिस अवस्था में वह भाग्य रेखा से फटती है।
यदि भाग्य रेखा अपने गन्तव्य स्थान शनि रेखा पर पहुंच कर उसे छूती हुई बृहस्पति पर्वत क्षेत्र की ओर जाती दिखाई दे तो यह एक अत्युत्तम योग होता है। ऐसे योग के फलस्वरूप व्यक्ति को अत्यधिक सफलता प्राप्त होती है और उसकी प्रत्येक आकांक्षा पूर्ण हो जाती है।
यदि भाग्य रेखा हथेली को पार करती हुई शनि क्षेत्र पर जा पहुंचे तो इसे शुभ लक्षण नहीं माना जाता, क्योंकि इसके कारण व्यक्ति हर बात में सीमा का उल्लंघन कर जाता है। उदाहरण के लिये यदि ऐसा व्यक्ति कोई नेता है तो हो सकता है कि उसके अनुयायी उसकी इच्छाओं और शक्ति की अवहेलना करते हुए उसी पर आक्रमण कर दें।
यदि भाग्य रेखा अचानक ही हृदय रेखा के पास जाकर रुक जाए तो व्यक्ति की सफलता में उसके प्रेम-सम्बन्धों के कारण रुकावट की सूचक होती है। लेकिन यदि भाग्य रेखा हृदय रेखा से जुड़कर बृहस्पति क्षेत्र पर पहुंच जाए तो व्यक्ति की सफलता उसके प्रेम-सम्बन्धों के कारण ही मानी जाएगी (देखिए रेखाकृति 3 h-h)।
यदि भाग्य रेखा को मस्तिष्क रेखा आगे जाने से रोक रही हो तो यह इस बात की सूचक है कि व्यक्ति अपनी मूर्खता अथवा किन्हीं गलतियों के कारण अपनी सफलता में बाधक बना हुआ है।
यदि भाग्य रेखा काफी समय तक भी मंगल पर्वत क्षेत्र से ऊपर उठती दिखाई न दे तो यह व्यक्ति के लिए अनेक कठिनाइयों, संघर्षों एवं मुसीबतों की द्योतक है। लेकिन यदि यह हाथ पर सीधी बढ़ती दिखाई दे तो व्यक्ति इन सभी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करता हुआ जीवन के पूवार्द्ध में ही सफलता प्राप्त करता जायेगा तथा उसका शेष जीवन बाधाहीन व्यतीत होगा। ऐसी सफलताएं व्यक्ति के कठिन परिश्रम, धीरज और लगन का परिणाम होती हैं।
यदि भाग्य रेखा का आरम्भ मस्तिष्क रेखा से स्पष्ट रूप में हो तो व्यक्ति को अपने जीवन में देर से सफलता प्राप्त होती है और वह भी उसकी अपनी प्रतिभा, लगन और कठिन संघर्षों के परिणामस्वरूप ।
यदि भाग्य रेखा के आरम्भ में ही उसकी एक शाखा चन्द्र पर्वत क्षेत्र और दूसरी शुक्र पर्वत क्षेत्र की ओर चली गई हो तो व्यक्ति का भाग्य एक ओर कल्पना पर तथा दूसरी ओर प्रेम और वासना पर आधारित होता है (देखिए रेखाकृति 4 m-m) ।
यदि भाग्य रेखा टूटी हुई तथा अनियमित हो तो व्यक्ति का भविष्य अनिश्चित होता है एवं उसका जीवन उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण रहता है।
यदि भाग्य रेखा किसी स्थान पर टूटी हुई दिखाई दे तो आयु की उस अवस्था में व्यक्ति के दुर्भाग्य व आर्थिक हानि की निश्चित सूचना देती है। लेकिन यदि टूटी हुई रेखा का दूसरा भाग पहले भाग के पीछे से ही आरम्भ हो जाता हो तो ऐसा व्यक्ति के जीवन में पूर्ण परिवर्तन का द्योतक है। यदि भाग्य रेखा का यह दूसरा भाग स्वस्थ और स्पष्ट हो तो इस बात का संकेत देता है कि वह परिवर्तन व्यक्ति की अपनी इच्छा के कारण हुआ है तथा वह इस नये क्षेत्र में अधिक सफलता प्राप्त करेगा (देखिए रेखाकृति 4 a-a) |
यदि भाग्य रेखा दोहरी हो तो यह एक शुभ लक्षण होता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति दो विभिन्न व्यवसाय अपनाएगा। इस प्रकार की रेखा का महत्त्व तब और भी अधिक बढ़ जाता है तब दोनों रेखाएं दो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की ओर जा पहुंचें।
यदि भाग्य रेखा पर कोई वर्ग हो तो व्यक्ति के व्यापार-व्यवसाय अथवा धन की हानि से सुरक्षा का सूचक होता है। यदि मंगल पर्वत क्षेत्र पर भाग्य रेखा को स्पर्श करता हुआ कोई वर्ग का चिह्न (देखिए रेखाकृति 4 b) जीवन रेखा की ओर हो तो यह व्यक्ति के घरेलू जीवन में दुर्घटना के खतरे का सूचक है। लेकिन यदि यह वर्ग चिह्न चन्द्र पर्वत क्षेत्र के ऊपर भाग्य रेखा की ओर हो तो यात्रा में दुर्घटना की सम्भावना का सूचक होता है।
भाग्य रेखा पर गुणन चिह्न संकट का सूचक होता है और इसके सम्बन्ध में भी वर्ग सम्बन्धी जानकारी ही लागू होती है। लेकिन भाग्य रेखा पर द्वीप का चिह्न दुर्भाग्य, हानि एवं संकट का सूचक होता है। कभी-कभी इस प्रकार का द्वीप चिह्न चन्द्र पर्वत क्षेत्र से आने वाले किसी रेखा से जुड़ा होता है तथा हानि और दुर्भाग्य का सूचक होता है। यह हानि या दुर्भाग्य चाहे विवाह से सम्बन्धित हो या किसी अन्य कारण से, लेकिन उस तिथि से व्यक्ति को प्रभावित करता है।
जिन व्यक्तियों के हाथ पर भाग्य रेखा का कोई चिह्न न हो, वे प्रायः बहुत सफल होते हैं, परन्तु उनका जीवन प्रायः निरर्थक-सा होता है। वे खाते-पीते और सो जाते हैं, लेकिन मेरे विचार से उन्हें सुखी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे प्रसन्नता को गहराई के साथ अनुभव नहीं करते।
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