समय विभाजन की विधि
मैं घटनाओं के घटित होने के समय और के बारे में ज्ञात करने के लिये एक पद्धति का प्रयोग करता हूं। इस पद्धति को मैंने सदा ही ठीक पाया है और इसीलिये मैं इस पर ध्यान देने की सिफारिश करता हूं। यह सात की पद्धति है और मैं इसको प्रकृतिप्रदत्त पद्धति के रूप में मान्यता देता हूँ।
पहली बात तो यह है कि विज्ञान एवं चिकित्साशास्त्र की दृष्टि से सात को एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बिन्दु माना गया है। ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक सात वर्ष के बाद सारी व्यवस्था पूर्णतः बदल जाती है। गर्भावस्था से पूर्व की सात स्थितियां होती हैं तथा मस्तिष्क भी अपने अद्वितीय स्वरूप को पाने से पहले सात रूप धारण करता है।
फिर हम देखते हैं कि हर युग में सात के अंक ने विश्व इतिहास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उदाहरण के लिये मनुष्य जाति की सात श्रेणियां, संसार के सात आश्चर्य, सात ग्रहों के देवताओं की सात वेदियां, सप्ताह के सात दिन, सात रंग, सात खनिज, सात ज्ञानेन्द्रियों की परिकल्पना आदि। शरीर के सात विभागों में बने हुए तीन भाग तथा विश्व के सात भाग। फिर बाइबिल में भी सात सबसे महत्त्वपूर्ण संख्या है। इस विषय पर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बिन्दु यही है। कि पूरी व्यवस्था सात वर्षों में बदल जाती है। मेरे अनुभव के अनुसार यह एक ऐसा सत्य है जिस पर अविश्वास का कोई कारण नहीं।
उदाहरण के लिये यदि कोई बालक सात वर्ष की आयु में कोमल और नाजुक है तो वह इक्कीस वर्ष की आयु में भी वैसा ही रहेगा। इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि बीच के वर्षों में वह कितना नाजुक या कोमल रहा। स्वास्थ्य के सम्बन्ध में भविष्वाणी करने के लिये यह एक रोचक तथ्य है, जिसे मैंने सटीक एवं विश्वास योग्य पाया है।
हाथ की प्रत्येक रेखा को सात-सात के भागों में विभाजित करके उसके फल का समयांकन काफी शुद्धतापूर्वक किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में जीवन रेखा और भाग्य रेखा को ही विश्वस्त एवं महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
रेखाकृति 1 में देखिये, जहां मैंने भाग्य रेखा को 21, 35 और 49 की आयु पर तीन बड़े भागों में विभाजित कर दिया है। यदि ध्यान दिया जाए तो अन्य विभागों को भी सरलता से आगे विभाजित किया जा सकता है।
लेकिन छोटी से छोटी गणना करने से पूर्व हाथ की बनावट का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। नुकीले, वर्गाकार एवं चमचाकार हाथों में अन्तर होता है। इसलिये हथेली की लम्बाई के अनुसार ही योजनाओं को विभक्त करना सर्वाधिक सरल और सही योजना है, जिसकी सहायता से कोई भी हस्तरेखाविद् सही समयांकन कर सकता है।
जीवन रेखा और भाग्य रेखा द्वारा घटनाओं के समय को जानने के लिये इन दोनों की एक साथ परीक्षा की जानी चाहिए। हस्तरेखा विज्ञान के अध्येताओं को अभ्यास से अवश्य ही दक्षता प्राप्त होगी, लेकिन यदि उन्हें आरम्भ में ही रेखाओं के विभाजन, उपविभाजन अथवा घटना के शुद्ध समय जानने में कोई कठिनाई आती है तो उन्हें निरुत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। निरन्तर अभ्यास से आप अवश्य ही दक्षता प्राप्त कर सकते हैं।
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