हत्या | आत्महत्या करने वालों का हाथ

अब मैं कुछ ऐसे हाथों की चर्चा करूंगा जो रेखाओं, चिह्नों अथवा अपनी प्रवृत्ति के कारण अलग व्यक्तिगत चरित्र को प्रदर्शित करते हैं। शायद ही कभी ऐसा हो कि कोई एक चिह्न या विशेषता हाथ पर किसी व्यक्ति की प्रकृति को नष्ट या धुंधला कर दे। एक खतरनाक चिह्न व्यक्ति की प्रवृत्ति का पता देता है। जिस प्रकार घड़ी के बनाने में अनेक प्रकार के पुर्जों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार किसी व्यक्ति को अपराधी अथवा सन्त बनाने के लिए भी अनेक विशिष्टताओं की आवश्यकता होती है।

  • जिन हाथों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति होती है वे प्रायः लम्बे होते हैं।
  • उन पर मस्तिष्क रेखा ढलवां होती है तथा चन्द्र पर्वत क्षेत्र विशेषतः अपने मूल स्थान पर उन्नत एवं विकसित होता है।
  • वहां मस्तिष्क रेखा भी जीवन रेखा के साथ जुड़ी हुई होती है, जिसके कारण व्यक्ति की संवेदनशीलता में और अधिक वृद्धि हो जाती है।

ऐसे व्यक्ति में अत्यधिक संवेदनशीलता और कल्पनाशीलता के कारण किसी कष्ट, दुःख या कलंक का प्रभाव उस पर हजारों गुना अधिक पड़ेगा। तब शायद वह आत्महत्या करके अपने को शहीद बनाना चाहे।

उन्नत शनि पर्वत क्षेत्र भी इसी प्रकार की सूचना देता है। तब भी व्यक्ति संवेदनशील होता है और मानसिक स्थिति से तंग आकर यह निश्चय कर सकता है। कि जीवन जीने योग्य नहीं है। ऐसे में मामूली सी उकसाहट अथवा निराशा के कारण वह आत्महत्या कर सकता है।

किसी नुकीले या अधिक नुकीले हाथ में ढलवां मस्तिष्क रेखा का भी यही परिणाम होता है। लेकिन ऐसा व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुरूप क्षणिक आवेश में आकर आत्महत्या करता है तथा कोई गहरा आघात अथवा मुसीबत ऐसे व्यक्ति को उत्तेजित करने के लिये काफी होती है। ऐसा व्यक्ति आत्महत्या करने से पहले कुछ सोचता- विचारता नहीं है।

इसके विपरीत मस्तिष्क रेखा के अस्वाभाविक रूप से झुके हुए न होने पर भी व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। ऐसे व्यक्ति के हाथ में मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के साथ गहरी जुड़ी होनी चाहिये। बृहस्पति पर्वत क्षेत्र धंसा हुआ तथा शनि पर्वत क्षेत्र पूर्ण उन्नत होना चाहिये। ऐसा व्यक्ति जीवन संघर्ष में निराश एवं निरुत्साहित हो जाता है और उसकी सहनशक्ति जवाब दे जाती है और तब वह आत्महत्या कर बैठता है। लेकिन ऐसा वह सहसा नहीं करता। परिस्थितियों पर पूर्ण रूप से विचार करने के बाद भी जब उसे आशा की कोई भी किरण नहीं दिखाई देती तो वह अपने जीवन नाटक का पटाक्षेप करता है।

हत्या करने वालों का हाथ

हत्या को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है तथा हाथ को देखकर अपराध करने की असाधारण प्रवृत्ति का भी पता लगाया जा सकता है। हाथ की बनावट को देखकर यह भी पता लगाया जा सकता है कि अपराध का क्या रूप होगा। कुछ लोगों में हत्या करने की सहज प्रवृत्ति होती है और इस पर सन्देह नहीं किया जा सकता, पर कुछ व्यक्ति जन्मजात अपराधी भी होते हैं, जैसे जन्मजात सन्त। अपराधी प्रवृत्तियों का विकसित होना उस वातावरण और परिस्थिति पर निर्भर करता है जिनमें व्यक्ति रहता है।

आपने प्रायः देखा होगा कि कुछ बच्चों में हर वस्तु को नष्ट कर देने की प्रवृत्ति होती है। इसका अर्थ यह नहीं कि उनमें बुद्धि की कमी होती है, बल्कि यह कि नष्ट करने की प्रवृत्ति उनमें जन्मजात होती है। ऐसी प्रवृत्तियों को सुधारा जा सकता है, लेकिन कुछ लोगों में इस प्रकार की प्रवृत्ति इतनी अधिक होती है कि यदि वे दूषित वातावरण अथवा परिस्थितियों में रहने लगें तो दुर्बल मानसिक शक्ति के कारण अथवा आवेश में आकर या प्रलोभन के शिकार होकर अपराधी बन जाते हैं। अपराधी प्रवृत्ति एक व्यक्तिगत विशेषता है। जहां तक हाथ का सम्बन्ध है, हत्या के अनुसार उसे तीन स्पष्ट श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. वह हत्या जो आवेश में आने पर, क्रोधित होने पर या प्रतिशोध की भावना से की जा सकती है।
  2. धन सम्पत्ति अथवा अन्य किसी प्रकार के लाभ के लिये की गई हत्या। ऐसी हत्या व्यक्ति द्वारा अपनी लालची प्रकृति की सन्तुष्टि के लिए की जा सकती है।
  3. जब हत्या करने वाला अपने शिकार के साथ भी मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाये रखता है। ऐसी हत्या करने वालों को दूसरों की यातनाएं देखकर प्रसन्नता होती है तथा लाभ की अपेक्षा हत्यारे की पैशाचिक प्रवृत्तियों का पोषण होता है।

1. पहली श्रेणी साधारण होती है। व्यक्ति केवल परिस्थितिवश हत्यारा बन जाता है । ऐसे व्यक्ति अत्यन्त सज्जन एवं भलेमानस होते हैं, लेकिन किसी विशेष परिस्थिति में क्रोध से पागल होकर हत्या कर बैठते हैं। होश में आने पर जब उन्हें अपने इस हिंसक कृत्य का आभास होता है तो वे पश्चात्ताप के कारण टूट कर बिखर जाते हैं। इस प्रकार की हत्या करने वाले व्यक्तियों के हाथ में अनियन्त्रित क्रोध एवं पाशविक उत्तेजना के अतिरिक्त दुसरा कोई अशुभ लक्षण नहीं होता ।

  • इस प्रकार के व्यक्तियों के हाथ प्रायः अविकसित अथवा लगभग वैसे होते हैं।
  • ऐसे हाथों में मस्तिष्क रेखा छोटी मोटी और लाल होती है तथा नाखून छोटे और लाल और हाथ भारी व सख्त होते हैं। ऐसे हाथों का अंगूठा अति विशिष्ट यानि काफी नीचा, छोटा, अपने दूसरे पर्व पर मोटा तथा पहले पर्व पर गदामुखी होता है ऐसा अंगूठा अत्यन्त छोटा, चौड़ा, वर्गाकार व चपटा होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों के हाथों में शुक्र पर्वत क्षेत्र भी असाधारण रूप से उन्नत और विस्तृत होता है। उसमें कामवासना की अधिकता होती है, जिसके कारण वे इस प्रकार के कृत्य कर बैठते हैं। यदि शुक्र पर्वत क्षेत्र असाधारण रूप से उन्नत न हो तो वे अपने क्रोध पर नियन्त्रण पाने में असमर्थ होते हैं।

2. दूसरी श्रेणी में कुछ भी असाधारण नहीं रहता। ऐसे व्यक्तियों के हाथों की मस्तिष्क रेखा में ही विशेषता दिखाई पड़ती है

  • ऐसे हाथों पर मस्तिष्क रेखा गहरी, बुध पर्वत क्षेत्र की ओर ऊपर को उठती हुई अथवा बुध पर्वत क्षेत्र पर पहुंचने से पहले दायें हाथ में अपने स्थान से हटी हुई होगी। जैसे-जैसे व्यक्ति की प्रवृत्तियों में वृद्धि होती जाती है, वे हृदय रेखा पर अधिकार जमा लेती हैं।
  • ऐसे हाथ प्रायः सख्त, लेकिन अंगठा असाधारण रूप से मोटा नहीं, परन्तु लम्बा, सख्त और अन्दर को सिकुड़ा हुआ होता है। अंगूठे की ऐसी बनावट व्यक्ति में लालची प्रवृत्ति की द्योतक होती है और ऐसे व्यक्ति अपने लाभ के लिए अपने अन्तर्ज्ञान को भी कुचल डालते हैं।

3. तीसरी श्रेणी सर्वाधिक दिलचस्प, परन्तु सबसे अधिक भयावह भी हो सकती है। ऐसे हाथ में कोई भी असाधारण चिह्न दिखाई नहीं देता, लेकिन सभी विशेषताओं का पूर्ण निरीक्षण करने के बाद व्यक्ति की प्रकृति, उसके स्वभाव और छल-कपट को देखा जा सकता है।

  • ऐसे व्यक्ति का हाथ पतला, लम्बा व सख्त होता है। उंगलियां थोड़ी-थोड़ी भीतर को मुड़ी हुई तथा अंगूठा लम्बा और उसके दोनों पर्व पूर्ण विकसित होते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति में दृढ़ इच्छाशक्ति तथा योजना बनाने व उसको कार्यान्वित करने की क्षमता होती है।
  • ऐसे व्यक्ति के हाथ में मस्तिष्क रेखा अपने स्थान पर भी हो सकती है तथा उससे कुछ हटकर हाथ को पार करती हुई अपने सामान्य स्थान से कुछ ऊपर को भी स्थित होती है। यह व्यक्ति की कपटपूर्ण भावनाओं को प्रदर्शित करती है। ऐसी मस्तिष्क रेखा लम्बी और महान् होगी
  • तथा हाथ में शुक्र पर्वत क्षेत्र या तो धंसा हुआ होगा या बहुत उन्नत होगा। यदि शुक्र पर्वत क्षेत्र धंसा हुआ हो तो व्यक्ति केवल अपराध करने के लिये अपराध करता है, लेकिन यदि शुक्र पर्वत क्षेत्र अत्यधिक उन्नत हो तो हत्या या अपराध किसी पाशविक वासना की पूर्ति के लिए किया जाता है।

अपराध जगत् के दक्ष व्यक्तियों के हाथ ऐसे ही होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए हत्या करना एक कला होती है, जिसे पूरा करने के लिये वे एक-एक विवरण का सूक्ष्म अध्ययन करते हैं। ऐसे व्यक्ति कभी भी हिंसापूर्ण ढंग से हत्या नहीं करते, क्योंकि इसे वे अश्लील समझते हैं। ऐसे व्यक्ति विष का सहारा लेते हैं और उसका प्रयोग भी इतनी कुशलता के साथ करते हैं कि हत्या नहीं, बल्कि स्वाभाविक करणों से हुई मृत्यु जान पड़ती है।


0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *