आयु निर्णय का सबसे अधिक महत्त्व है अर्थात् सर्वप्रथम आयु विचारणीय है। विद्या, विवाह, संतान, सुख, राजयोग और दूसरे सभी शुभाशुभ योगों पर विचार आयु के उपरांत ही करना चाहिए।
लगभग सभी प्राचीन ग्रंथों में आयु के संबंध में गंभीरता से लिखा है। सभी आचार्यों ने बालारिष्ट योगों का उल्लेख किया है। आयु तीन प्रकार की कही गई है।
आठ वर्ष से पहले मृत्यु होने पर बालारिष्ट का दोष माना जाता है। भिन्न-भिन्न आयु खंडों के लिए भिन्न-भिन्न बालारिष्ट योगों को उत्तरदायी माना गया है। वर्तमान में बालारिष्ट को पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया जाता है, लेकिन अल्पायु और मध्यमायु विचारणीय है। वैसे भी बालारिष्ट को समझना आरंभिक दौर में उपयोगी नहीं है ।
अल्प, मध्य और दीर्घायु
आयु साधन एक कठिन कार्य है। इस संबंध में सटीक निर्णय तभी लिया जा सकता है, जबकि दीर्घ अनुभव हो। आयु साधन के साधारण सिद्धांतों या मान्यताओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जातक दीर्घायु है, मध्यमायु है या फिर अल्पायु है। 32 वर्ष तक अल्प, 64 वर्ष तक मध्यम और 64 वर्ष के उपरान्त दीर्घ आयु मानी गयी है ।
आयु का भाव अष्टम
अष्टम भाव आयु का भाव है और अष्टमेश आयु का प्रतिनिधित्व करता है।
- लग्नेश बली हो, तो जातक दीर्घायु होता है।
- प्रायः देखा जाता है कि केंद्र और त्रिकोण पाप रहित हो और लग्नेश बली हो, तो जातक दीर्घायु होता है।
- अष्टम भाव में शुभ ग्रह हों, तो वे आयु वृद्धि करते हैं।
- यदि अष्टमेश चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव में हो, तो दीर्घायु होती है।
- लग्नेश का अष्टम में स्थित होना रोगकारक होता है, लेकिन दीर्घायु बनाता है।
- पाप ग्रह केंद्र में हों, तो जातक अल्पायु होता है।
प्राचीन ग्रंथों में अल्पायु, मध्यमायु और दीर्घायु के सैकड़ों योग उपलब्ध हैं, लेकिन मैंने यहां कुछेक अनुभव सिद्ध योग ही दिए हैं। इन योगों की विशेषता है कि इनको याद रखना सहज है, क्योंकि ये लग्न और अष्टम पर आधारित हैं और काफी सटीक भी हैं।
दीर्घ आयु योग
जब आयुद्योतक अंग बलवान् हो तो मनुष्य की दीर्घ आयु कहनी चाहिये। शास्त्रों के अनुसार आयु के द्योतक निम्नलिखित अंग है :-
- लग्न तथा लग्नेश।
- अष्टम भाव तथा अष्टमेश।
- तृतीय भाव (अष्टम से अष्टम होने के कारण) तथा तृतीयेश।
- शनि – (आयुष्य कारक है)।
उपर्युक्त अंग जितने निर्बल होते जावेगे व्यक्ति की आयु उतनी ही अल्प होती चली जावेगी। मोटे रूप से जब दो अंग बलवान् हों तो ‘अल्पायु’, जब तीन बलवान् हो तो ‘मध्यमायु’ और चारों के चोरी अंग बलवान् हो तो ‘दीर्घायु’ कहनी चाहिये।
परन्तु आयु विचार मे चन्द्र तथा बुध का विशेष विचार कर लेना चाहिये। निर्बल चंद्र आयु की हानि करता है। इसी प्रकार यदि बुध लग्नाधिपति अथवा अष्टमाधिपति अथवा तृतीयाधिपति होकर अतीव निर्बल हो तो भी मनुष्य बहुत अल्प आयु पाता है।
अंतिम निर्णय – आयु का अन्तिम निर्णय प्राप्त खण्ड (अल्प, मध्यम अथवा दीर्घ) मे मारकेश की दशा अन्तर्दशा द्वारा करना चाहिए।
निर्बल चंद्रमा
यहां उल्लेखनीय है कि चंद्रमा को भी एक लग्न की संज्ञा प्राप्त है, अतः आयु के संदर्भ में चंद्रमा का भी विचार करना चाहिए। अनुभव से ही यह स्पष्ट होता है कि यदि चंद्रमा बलहीन हो, तो जातक रोगों का शिकार शीघ्रता से होता है। यदि चन्द्र अतीव निर्बल हो तो मनुष्य की बाल्यावस्था ही में मृत्यु हो जाती है।
- जब चंद्रमा सूर्य से 70 अंश या इससे कम होता है, तो निर्बल कहा जाएगा।
- भावों के अनुसार चंद्रमा को तब निर्बल मानना चाहिए, जबकि वह चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में हो।
- चंद्रमा की राशि में जब राहु, केतु, मंगल या शनि हों या इन ग्रहों से चंद्रमा की युति हो, तो भी चंद्रमा निर्बल होता है ।
आयु निर्णय में सावधानी
फलित ज्योतिष में व्यक्ति कभी भी उस स्थिति में नहीं पहुंचता है, जब वह किसी व्यक्ति की सटीक आयु को बता सके। किसी जन्म कुंडली को देखने के बाद यदि आपको अल्पायु के संकेत मिलें, तो जहां तक संभव हो, इन्हें घोषित नहीं करना चाहिए। वैसे मेरा मत है कि मनुष्य इतना परिपक्व कभी नहीं हो सकता कि वह भगवान के कार्यों में दखलअंदाजी कर सके। शेष पाठकों के विवेक पर निर्भर करता है ।
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