धन हानि योग

धन हानि योग धन हानि के अनेक कारण हो सकते हैं । जैसे चोरी से, सन्यास से, अपने ही द्वारा अपव्यय से, राज्यत्याग द्वारा, पुत्र द्वारा व्यय किये जाने पर इत्यादि इत्यादि । ‘ सन्यास” के लिये, सच्चे सन्यास के लिये, जहाँ घर-गृहस्थी का सुख और भोग्य पदार्थों का त्याग Read more…

व्यव्साय चुनने की पध्दति

व्यव्साय चुनने की पध्दति पहली बात यह देखिए कि कुण्डली में धनयोग है या नहीं ? यदि है तो उत्तम है, मध्यम है या निकृष्ट ? इस सम्बन्ध में निम्नलिखित कुछ नियम ध्यान में रखने योग्य हैं। द्वितीय स्थान और लाभविधि स्थान में से यदि धन स्थान अर्थात् द्वितीय स्थान Read more…

शुक्र और धन

शुक्र और धन शुक्र ग्रह की द्वादश स्थिति भी धन दिलाने में कुछ कम महत्व नहीं रखती । इस महत्व को दृष्टि में रखते हुए इस भोगात्मक (Pleasure Loving) ग्रह के लिये एक स्वतंत्र अध्याय की व्यवस्था की गई है । शुक्र यदि द्वादश स्थान में स्थित हो तो यह Read more…

सुदर्शन तथा धनबाहुल्य

ग्रहों के फल का एक लग्न मात्र से फल न कहकर तीनों लग्नों लग्न, सूर्यलग्न, चन्द्रलग्न से विचार कर कहने का नाम ‘सुदर्शन’ पद्धति है । स्पष्ट ही है कि जब कोई ग्रह न केवल लग्न से ही शुभ अथवा योगकारक बनता हो बल्कि सूर्यलग्न तथा चन्द्रलग्न से भी शुभ Read more…

कारकाख्ययोग से धनप्रप्ति

कारकाख्ययोग से धनप्रप्ति जब कोई ‘स्वक्षेत्री ‘ अथवा ‘उच्च’ ग्रह परस्पर केन्द्र में स्थित होते हैं तो ‘कारकाख्य’ योग को बनाते हैं । और यह ‘कारकाख्य’ और भी बलवान होता है जब कि उक्त ‘उच्च’ आदि ग्रहों की स्थिति लग्न से भी केन्द्र में हो । इस ‘कारकाख्य, योग की Read more…

स्वामिदृष्ट भाव से धनप्रप्ति

स्वामिदृष्ट भाव से धनप्रप्ति आचार्य वराहमिहिर के सुपुत्र पृथुयशस् का कहना है कि :- “यो यो भावः स्वामियुक्तो दृष्टों वा तस्य तस्यास्ति वृद्धिः” अर्थ – जो जो भाव अपने स्वामी द्वारा युक्त तथा दृष्ट होता है। उस उस भाव की वृद्धि समझनी चाहिये।” यह एक मौलिक तथा बहुत मूल्यवान सिद्धान्त Read more…

अधियोग से धनप्रप्ति

अधियोग से धनप्रप्ति अधियोग चन्द्रादि लग्नों से षष्ठ, सप्तम तथा अष्टम स्थानों में शुभ ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न होते हैं। अधियोग क्यों शुभ फल देते हैं ? इसका कारण है कि शुभ ग्रहों की उक्त षष्ठ, सप्तम तथा अष्टम स्थिति से तीनों शुभ ग्रहों का प्रभाव लग्नों को मिलता Read more…

नीचता भंग राजयोग

नीचता भंग राजयोग नीचता भग राजयोग ग्रहों की नीचता के भंग से उत्पन्न होता है । और वह नीचता नीच राशि के स्वामी आदि के चन्द्र तथा लग्न से केन्द्र में स्थित होने से भंग होती है। इस नीचता भंग राजयोग की परिभाषाशास्त्रों में इस प्रकार आई है :- “नीच Read more…

विपरीत राजयोग से असाधारण धन

विपरीत राजयोग से असाधारण धन 1. जब शुभ घरों के स्वामी बली होते हैं तो धन मिलता है । इस सिद्धान्त का विवेचन आप पढ़ चुके हैं। परन्तु ऐसा भी देखा गया है कि प्रचुर धन की प्राप्ति अनिष्ट भावों के स्वामियों की निर्बलता से भी होती है। बल्कि धन Read more…

धन प्राप्ति में लग्न का महत्त्व

धन प्राप्ति में लग्न का महत्त्व धन प्राप्ति के सन्दर्भ में ‘लग्न’ का कितना महत्त्व है । इस तथ्य का अनुमान हमको ‘सारावली’ – कार के निम्नलिखत श्लोक द्वारा हो सकता है :- “लग्ने तयो विगत शोक विवद्धितानां, कुर्वन्ति जन्म शुभदाः पृथिवीपतीनाम् । पापास्तु रोग भय शोक परिप्लुतानाम् बह्व्याशिनां सकल Read more…