यंत्र द्वारा ग्रह शांति

पिछले अध्यायों में हमने मंत्रों, तंत्रों तथा भक्ति से उत्पन्न होने वाली विभिन्न तरंगों के बारे में बात की। इनके पश्चात हम यंत्रों की शक्ति पर आते हैं जिसने ज्योतिषियों द्वारा भाग्य की अशुभ धाराओं के रुख बदलने के लिए बचाव उपायों के प्रभाव में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है।

यंत्र “दिव्य अस्त्र” या रक्षक है जिनका प्रयोग कभी-कभी किया जाना चाहिए। यंत्र पवित्र तथा अद्भुत रेखायी चित्र हैं । (दो या तीन ज्यामितीय उपकरण अक्सर रेखा गणितीय या मानवतारोध रूप में) जिन्हें मंत्रों द्वारा या रेखा गणित के चित्रों द्वारा बनाया जाता है तथा रहस्यात्मकता तथा ब्रह्माण्डकीय चित्रों से संपन्न किया जाता है। इनका निष्पादन रेत पर या रंगीन पाउडर युक्त पृथ्वी पर या अन्य टिकाऊ वस्तुओं पर किया जाता है। यंत्रों का प्रयोग पत्थरों पर किया जा सकता है, तांबे तथा चांदी जैसी धातुओं पर इसे उत्कीर्ण किया जा सकता है या खालों, कपड़ों पर पेंट किया जा सकता है। मूर्तियों की तरह इनको भी प्राणप्रतिष्ठा तथा अनुष्ठान द्वारा समर्पित किया जाता है। इसका अनोखा उदाहरण है “शिवलिंग” ।

जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं यंत्र विभिन्न प्रकार के होते हैं। गुजरात के बहुचारी माता के मंदिर में गायत्री यंत्र की पूजा की जाती है। तथा अम्बे माता के मंदिर में वीसा यंत्र की । जगन्नाथ पुरी में प्रार्थना तथा चिन्तन के रूप में भैरव यंत्र का प्रयोग होता है जबकि नाथवाडा मंदिर में सुदर्शन यंत्र का ।

यंत्र केवल हिन्दुवाद, जैनवाद तथा बुद्धवाद तक ही सीमित नहीं हैं। मुसलमान यंत्र का प्रयोग ताबीज के रूप में करते हैं। तथा ईसाईयों का क्रास भी एक प्रकार का यंत्र ही है।

हमारे पुराने धर्मग्रन्थों में यंत्रों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है जैसा कि नारदपुराण, गायत्री तंत्र तथा देवी भगवती इत्यादि । उसमें लिखा है :-

बिना यन्त्रेण पूजायां देवता न प्रसीदति

यानी जब तक यंत्रों की आराधना नहीं होती ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती। जैसे हम रहने के लिए मकान बनाते हैं उसी तरह हम यंत्रों का निर्माण करते हैं जिनमें देवता निवास करते हैं।

विशेष रूप से यह ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो कह सकते हैं कि यंत्र ग्रहों की तरंगों को नियंत्रित/नियमित करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि जो कुछ भी इस भौतिक संसार में घटित होता है वह हमारे ऊपर ग्रहों का प्रभाव है। यानि विभिन्न स्थितियों में ग्रह हम पर अपनी किरणें तथा प्रकाश का प्रवाह विभिन्न तरह से प्रतिबिम्बित करते हैं। कभी-कभी यह प्रवाह तथा किरणें संबंधित व्यक्ति के अनुकूल होती हैं और कभी प्रतिकूल और तब हम इस यंत्र (यंत्रों) का प्रयोग करते हैं तथा इन किरणों तथा प्रकाश की धाराओं को नियमित करने की कोशिश करते हैं ताकि वे हम पर अनुकूल होकर चमकें ।

इसके लिए हम कुछ धातुओं तथा मिश्रित संख्याओं की सहायता लेते हैं। हमारे मनीषियों ने हर ग्रह के लिए किसी विशिष्ट धातु की पहचान की। जैसे सूर्य तथा मंगल के लिए तांबा, चन्द्रमा तथा शुक्र के लिए प्लेटिनम तथा सोना और कांसा क्रमशः वृहस्पति और बुद्ध के लिए । राहु, केतु तथा शनि का धातु लोहा है ।

धातुओं के अतिरिक्त, मनीषियों ने खोजा कि किसी विशेष मिश्रित संख्याओं की तरंग विशेष ग्रहों के अनुकूल होती है। यहां यह स्पष्ट करना उपयुक्त होगा कि मंत्रों के विषय में भी तरंगों के बारे में बताया है। वहां तरंग मंत्रोचारण के कारण हुए परन्तु यहां संख्याओं के उच्चारण की आवश्यकता नहीं है। इसे विशेष मात्र रूप में धातु पर उत्कीर्ण करना होता है। इसे समझने में कठिनाई हो सकती है कि बिना आवाज किए तरंग कैसे उत्पन्न हो सकते हैं ?

इस प्रयोजन के लिए हम उन वैज्ञानिक अध्ययनों का उदाहरण देते हैं जो पश्चिम में पिरामिड्स से संबंधित हैं। उन्होंने अब इसे पहचाना है परन्तु हमें वास्तु शास्त्र की भूमिका के बारे में पता था तथा यदि निर्जीव वस्तुओं (जैसे पत्थर) को ज्योमितिकीय आकार में व्यवस्थित कर दिया जाए तो कैसे वे निर्जीव तथा सजीव वस्तुओं पर अतिप्राचीन समय से प्रभाव डालती आ रही हैं।

यंत्र द्वारा ग्रह शांति

भारत में मिलते-जुलते और भी समान मंदिरों के नमूने निश्चित रूप से ज्योमितीय आकारों के हम पर होने वाले प्रभावों की ओर इंगित करते हैं हालांकि उनकी अभिव्यक्ति में जो सामग्री लगी है वे निर्जीव है। अतः इसी तरह मिश्रित संख्याओं का भी प्रभाव पड़ता है चाहे उनका उच्चारण नहीं किया जाता अतः ग्रहों पर किरणों या प्रकाश प्रवाह का उनके द्वारा नियमन संभव है।

रत्नों तथा पत्थरों के स्थान पर यंत्रों की आवश्यकता के बारे में भी यहां कुछ विवरण देना जरूरी है। विषय बहुत विशाल है तथा जगह कम अतः इस बारे में हम संक्षिप्त टिप्पणी ही देते हैं।

रत्नों का काम ग्रहों की किरणों में वृद्धि करना है। कठिनाई यह है कि सूर्य और चन्द्रमा को छोड़कर बाकी पांच ग्रहों के दो-दो भाव हैं। उनमें से एक शुभ हो सकता है और दूसरा अशुभ। हर एक शुभ भाव में ग्रह की शक्ति में वृद्धि का स्वागत करेगा और कोई नहीं चाहेगा कि अशुभ भाव में इसका प्रभाव हो । आवश्यकता के अनुसार शक्ति में घट-बढ़ करना हमारी शक्ति में नहीं है। ग्रह जिस भाव में होता है उसके परिणाम भी सामने आते हैं। सामंजस्य करने की हमारी समस्या मिश्रित हो जाती है।

परन्तु यन्त्रों में हमने देखा है कि ग्रह किसी छोर पर नहीं जाते। उदाहरण के लिए नीच ग्रह कष्ट देने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं तथा यदि इनकी शक्ति बढ़ जाए तो वह आग में तेल का काम करेंगे। ऐसे मामलों में यंत्र केवल ब्रेकों का ही नहीं गति बढ़ाने का काम करते हैं (जिन ग्रहों की स्थिति शुभ भाव में है) (जिन ग्रहों की स्थिति अशुभ भाव में है) किन्तु इनके कार्य दोहरे होते हैं। यदि ग्रह कमजोर है तो उसकी शक्ति बढ़ा दी जाती है और यदि स्थिति दूसरी हो तो यंत्र उस ग्रह को शांत कर नियमित कर देते हैं।

कम ज्ञानी व्यक्तियों के हाथों में भी यंत्र सुरक्षित हैं। फिर भी परामर्श दिया जाता है कि विशेषज्ञों से परामर्श किया जाए नहीं तो ग्रह की शक्ति का नियमन जीवन के दूसरे क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

ऐसे यन्त्रों को धातु की चादर पर उत्कीर्ण करा लेना चाहिए। उन्हें फिर गाय के दूध या नारियल पानी से स्नान कराने के बाद प्रयोगकर्ता द्वारा नित्य उनकी पूजा की जानी चाहिए। इसे या तो गले में डाल लेना चाहिए।

ग्रहों के यंत्र इस प्रकार हैं :-


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