वृष लग्न का फलादेश
वृष लग्न के जातक साहसी, धैर्यवान और व्यावहारिक होते हैं, जो भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद लेते हैं। इनके व्यक्तित्व में आकर्षण और वाक्पटुता होती है और ये कला, संगीत और साहित्य में रुचि रखते हैं। ये शारीरिक रूप से मजबूत और बलिष्ठ होते हैं।
सूर्य
1. सूर्य चतुर्थेश है अतः अपनी नैसर्गिक अशुभता को खोकर शुभ हो जाता है, यदि केन्द्रादि शुभ भावों में बुध आदि के साथ स्थित हो ।
2. यदि सूर्य बलवान् हो तो मनुष्य का निवास स्थान खुला, प्रकाशयुक्त होता है, उत्तम प्रकार का सुख प्राप्त होता है।
3. सूर्य यदि निर्बल होकर शनि, राहु आदि के प्रभाव में हो तो मनुष्य निवास स्थान से सदा दूर रहने वाला और यदि राज कर्मचारी हो तो बहुत तबदीलियां (Transfers) पाने वाला होता है।
वृष लग्न में सूर्य महादशा का फल
यदि सूर्य बलवान हो तो मनुष्य में धैर्य की मात्रा अधिक होती है । वह खुले रोशनी और हवादार मकान में निवास करता है। उसको माता का अच्छा सुख मिलता है।
यदि शुक्र का योग सूर्य से हो तो अच्छे वाहन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति के पास प्रायः एक से अधिक मकान होते हैं। ऐसे व्यक्ति को पैतृक सम्पत्ति भी प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति को उसके सम्बन्धी सहायक होते हैं। ऐसा व्यक्ति किसी महान् नेता का सम्पर्क प्राप्त करता है। उसके पास घरेलू सुख की सामग्री पर्याप्त मात्रा में रहती है।
यदि सूर्य निर्बल हो तो जातक को उसकी दशा भुक्ति में बहुत दुःख उठाना पड़ता है, उसकी माता तथा उसके पिता दोनों को कष्ट रहता है। ऐसी स्थिति में उसको सम्बन्धियों से भी अच्छा व्यवहार प्राप्त नहीं होता।
यदि सूर्य पर राहु तथा शनि का प्रभाव हो तो ऐसा व्यक्ति इस समय में अपनी मातृभूमि अथवा निवास-स्थान छोड़कर अन्यत्र जा बसता है और उसको अपना मकान बनाने में बहुत कष्ट और विलम्ब होता है। उसको अपनी पैतृक सम्पत्ति का भाग प्राप्त नहीं होता। इस अवधि में जनसाधारण जातक का विरोध करता है और उसे वाहन की हानि होती है अथवा जायदाद हाथ से निकल जाती है ।
चन्द्र
1. चन्द्र तृतीयेश है ।
2. कर्क राशि का स्वामी चन्द्र मन से सम्बन्ध रखता है और तृतीय स्थान मनोविनोद (Hobby) का भी है। अतः चन्द्र जिस भाव में स्थित होगा वह भाव इस व्यक्ति को विशेष प्रिय होगा, जैसे चतुर्थ भाव में सिंह राशि का चन्द्र हो और बलवान् हो तो मनुष्य जनता के कार्यों (Politics) में विशेष रुचि लेने वाला यदि पंचम भाव कन्या राशि में हो तो मनोविनोद के स्थानों जैसे सिनेमा क्लब आदि में विशेष रुचि वाला होता है।
3. यदि चन्द्र निर्बल, पापयुक्त, पापदृष्ट हो तो छोटे भाई की छाती दुर्बल होती है तथा उसको टी० बी०, न्यूमोनिया आदि छाती के रोगों के होने की संभावना अधिक रहती है। यदि तृतीय भाव पर भी अशुभ दृष्टि विशेषतया मंगल की हो तो छोटा भाई कुबड़ा हो जाता है।
4. यदि चन्द्रमा चतुर्थ भाव में सिंह राशि में गुरु और बुध द्वारा दृष्ट हो, तो बहुत धन आदि देता है । गुरु लाभेश होने के कारण और धनकारक होने के कारण धन के विषय में बहुत शुभ फलदायक है। इसी प्रकार बुध द्वितीय और पंचम दो शुभ धनदायक भावों का स्वामी होकर और गुरु से मिलकर चन्द्रमा पर आर्थिक दृष्टिकोण से शुभ प्रभाव डालेगा।
परन्तु मुख्य प्रश्न यह है कि क्या तृतीयेश एक पापी भाव का स्वामी होकर शुभ प्रभाव में आकर और अधिक अशुभ फल न करेगा । जब अष्टम जैसे अशुभ भाव के आधिपत्य का दोष चन्द्र को नहीं लगता, तो तृतीयेश होने का दोष उसे क्यों लगेगा ।

वृष लग्न में चन्द्र महादशा का फल
यदि चन्द्रमा बलवान हो तो उसकी दशा भुक्ति में धन की थोड़ी प्राप्ति होती है, परन्तु छोटे भाइयों के धन और मान में वृद्धि होती है। छोटी बहिनों की विशेष वृद्धि होती है । इस अवधि में अच्छे मित्रों की प्राप्ति होती है और मनुष्य अपने बाहुबल का खूब परिचय देता है। उसको विजय प्राप्त होती है और नौकरों-चाकरों का सुख मिलता है । लेखन शक्ति में वृद्धि होती है ।
यदि चन्द्रमा निर्बल हो तो व्यक्ति को धन की अच्छी आय रहती है । परन्तु उसे मित्रों तथा बहिन भाइयों से अच्छा व्यवहार नहीं मिलता । भृत्यगण बात मानने से इनकार कर देते हैं। पराजय का मुँह देखना पड़ता है । चन्द्रमा जिस भाव में जाकर स्थित हो उसको मनुष्य जान बूझकर हानि पहुंचाने का यत्न करता है।
मंगल
1. मंगल द्वादशाधिपति तथा सप्तमाधिपति हैं । द्वादशाधिपति होने से सम (Neutral) सप्तमाधिपति होने से पापी नहीं । अतः कुछ शुभ गिना जायेगा ।
2. वृश्चिक राशि में सप्तम स्थान में स्थित मंगल शुभ फल करता है।
3. जहां तक धन का सम्बन्ध है मंगल अपनी दशा, अन्तर्दशा में शुभ ही फल करने वाला होगा (यद्यपि योग कारक नहीं), क्योंकि द्वादशेश सर्वदा अपनी इतर राशि का फल करता है। यहां मंगल सप्तमेश के रूप में फल करेगा । एक नैसर्गिक पापी का केन्द्र का स्वामी होना पाराशरीय नियमानुसार उसे पापहीन बना देता है। अतः शुभ फलकारी है।
4. मंगल द्वादश तथा सप्तम भाव का स्वामी होता है। दोनों स्थान कामातुरता तथा भोग के हैं। अतः मंगल यदि शुक्र के साथ पंचम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति बहुत कामी विषयासक्त होता है। मंगल की शुक्र के साथ सप्तम अथवा द्वादश भाव में स्थिति भी वही फल करती है।
5. मंगल यदि बलवान हो तो पति अथवा पत्नी की दीर्घ आयु होती है । पाप प्रभाव में आया हुआ मंगल स्त्री पर व्यय करवाता है ।
6. स्त्री की कुण्डली हो और शनि तथा मंगल दोनों अपनी दृष्टि द्वारा शुक्र तथा लग्न दोनों को पीड़ित कर रहे हों तो स्त्री का पति पत्नी के प्रति दुर्व्यवहार तथा क्रूरता करने वाला होता है, क्योंकि शनि तथा मंगल पति के लग्नेश तथा तृतीयेश होने के कारण पति के क्रियात्मक निजत्व (Deliberate self) का प्रतिनिधित्व करते हैं और उस निज (Self) का क्रियात्मक प्रभाव स्त्री पर (लग्न लग्नेश के प्रभावित होने से) पड़ता है।
वृष लग्न में मंगल महादशा का फल
यदि मंगल बलवान हो तो धन में वृद्धि होगी । व्यापार से धन मंगल की दशा भुक्ति में ही आवेगा । स्त्री पक्ष से भी इस समय धन की प्राप्ति होगी ।
मंगल निर्बल है और पीड़ित है तो व्यापार में हानि, स्त्री पक्ष से हानि इस दशा भुक्ति में रहेगी ।
बुध
1. बुध द्वितीयाधिपति तथा पंचमाधिपति है । द्वितीयाधिपति होने से पंचम भाव का फल करेगा अर्थात् अतीव शुभ गिना जायेगा । थोड़ा भी बली बुध शुभ फल देगा |
2. यदि बुध बलवान् हो तो व्यक्ति महान् वक्ता (Orator) होता है, क्योंकि वाणीकारक बुध स्वयं दो वाणी भावों द्वितीय तथा पंचम का स्वामी बन जाता है।
3. यदि बुध तथा शुक्र एकत्र हों और उन पर मंगल आदि पापी ग्रहों की दृष्टि आदि का प्रभाव हो तो मनुष्य की पहली स्त्री दीर्घजीवी नहीं होती कारण कि स्त्रीभाव का अष्टमेश तथा स्त्रीकारक दोनों पाप प्रभाव से पीड़ित हो जाते हैं।
4. यदि द्वितीय भाव तथा इसका स्वामी राहु अथवा मंगल के प्रभाव में हो तो ऐसा व्यक्ति कुमार अवस्था में अर्थात् अपने अध्ययेन काल में अपने कुटुम्ब से पृथक् हो जाता है। अर्थात् कहीं किसी होस्टल आदि में माता-पिता से पृथक् होकर रहता है अथवा अन्यत्र किसी सम्बन्धी के पास रहकर पढ़ता है, परन्तु रहता माता पिता से पृथक् होकर ही है।

नमस्कार । मेरा नाम अजय शर्मा है। मैं इस ब्लाग का लेखक और ज्योतिष विशेषज्ञ हूँ । अगर आप अपनी जन्मपत्री मुझे दिखाना चाहते हैं या कोई परामर्श चाहते है तो मुझे मेरे मोबाईल नम्बर (+91) 7234 92 3855 पर सम्पर्क कर सकते हैं । परामर्श शुल्क 251 रु है। पेमेंट आप नीचे दिये QR CODE को स्कैन कर के कर सकते हैं। कुंडली दिखाने के लिये पेमेंट के स्क्रीन शॉट के साथ जन्म समय और स्थान का विवरण 7234 92 3855 पर वाट्सप करें । धन्यवाद ।

5. यदि बुध निर्बल, पापयुक्त, पापदृष्ट हो तो धन का नाश होता है, विद्या अल्प होती है, शीघ्र ही गर्भपात होते हैं, वाणी में दोष होता है, पुत्र द्वारा धन का नाश होता है।
6. गुरु और बुध परस्पर एक दूसरे को देखते हों अथवा एक राशि में स्थित हों, तो धनदायक योग बनाते हैं ।
वृष लग्न में बुध महादशा का फल
यदि बुध बलवान हो तो अपनी दशा भुक्ति में जातक को भाषण शक्ति तथा व्यापार से अच्छा धन दिलवाता है। इस समय उसे पुत्र से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। इस अवधि में उसे लिखने आदि से विशेष धन की प्राप्ति रहती है। और उसे विद्या की प्राप्ति होती है । भाग्य में वृद्धि और पुत्रों को मानादि की प्राप्ति होती है।
यदि बुध निर्बल और पीड़ित हो तो उसकी दशा भुक्ति में जातक को धन की हानि उठानी पड़ती है । पुत्र द्वारा भी उसके धन का नाश होता है। विद्या में उसे असफलता प्राप्त होती है । उसको इस अवधि में जिह्वा का कोई बिगाड़ रहता है और वह अपशब्द आदि का प्रयोग करता है। इस समय उसे लेखन कला तथा व्यापार में हानि रहती है।
गुरु
1. गुरु अष्टम तथा एकादश भावों का स्वामी है। दोनों भाव अच्छे नहीं । अतः बृहस्पति अशुभ गिना है, परन्तु इसकी दृष्टि शुभ करेगी । गुरु की भुक्ति ज्यादा धन देने वाली नहीं होती ।
2. यदि गुरु बलवान् हो तो आयु दीर्घ होती है।
3. गुरु यदि बलवान् हो तो अन्वेषण द्वारा आविष्कार करता है, बड़े भाइयों के सुख से युक्त होता है, शुभ कार्यों में प्रवृत्त होता है ।
4. यदि गुरु बलवान् हो परन्तु अष्टम भाव पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो विदेश द्वारा लाभ होता है।
5. यदि एकादश भाव तथा गुरु पर मंगल शनि आदि की दृष्टि हो तो बड़ा भाई नहीं होता ।
वृष लग्न में गुरु महादशा का फल
यदि गुरु बलवान हो तो धन की विशेष आय नहीं होती । यद्यपि कमी भी नहीं रहती । बड़े भाई से कुछ लाभ रहता है। स्वास्थ्य ठीक रहता है ।
यदि गुरु निर्बल और पीड़ित हो तो गुरु की दशा भुक्ति में मनुष्य पर खूब धन आता है, परन्तु बड़े भाई से विरोध रहता है। कर (Tax) के कारण बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। इस समय विदेश यात्रा की भी संभावना रहती है।
शुक्र
1. शुक्र लग्न तथा षष्ठ स्थान का स्वामी है । लग्न का स्वामी होने से शुभ है, परन्तु षष्ठ स्थान का स्वामी होने से पापी । अतः फल तो शुभ ही करेगा, क्योंकि लग्न षष्ठ से बली है परन्तु अधिक शुभ नहीं माना जायेगा । कुछ लोग इसे अशुभ समझते हैं ।
2. इस लग्न वाले बहुधा शरीर से सुन्दर होते हैं, क्योंकि शुक्र एक सुन्दर ग्रह है । वे विलास प्रिय होते हैं और गैर हिन्दू जातियों से सम्पर्क रखते हैं, क्योंकि शुक्र की दूसरी राशि अन्यताद्योतक छठे भाव में पड़ती है। ऐसे मनुष्य विलासप्रिय होते हुए भी जब कार्य करने पर उतारू होते हैं तो बैल की तरह खूब परिश्रम से काम करते हैं ।
3. ऐसे मनुष्यों को चोट लगने का अवसर भी रहता है, क्योंकि षष्ठ भाव चोट का है, विशेषतया जबकि गुरु तथा मंगल का प्रभाव भी शुक्र पर हो ।
4. यदि शुक्र शुभ दृष्ट हो तो जातक शत्रु से भी सद्व्यवहार करने वाला होता है।
5. यदि लग्न में बुध और शुक्र हों और गुरु की सप्तम दृष्टि उन पर हो, तो बुध अपनी दशा में बहुत ऊँची कोटि का योगफल करता है ।
6. यदि मंगल और शुक्र लग्न में हों और गुरु मकर में, तो गुरु और मंगल की दशा में भाग्य फले-फूलेगा ।
वृष लग्न में शुक्र महादशा का फल
यदि शुक्र बलवान हो तो धन की प्राप्ति होती है। मित्रों तथा शत्रुओं दोनों से धन मिलता है। अपने परिश्रम के कारण मान और धन में वृद्धि होती है। मामा से सहायता मिलती है ।
यदि शुक्र दुर्बल तथा पीड़ित हो तो इसकी दशा भुक्ति में एक ओर पदोन्नति आदि का सुख मिलता है तो दूसरी ओर रोग भी काफी भुगतना पड़ता है । शत्रुओं के गुप्त व्यवहार के कारण पदोन्नति में बाधा आ जाती है ।
शनि
1. शनि नवम त्रिकोण तथा दशम केन्द्र का एक साथ स्वामी होने के कारण अतीव शुभ तथा ‘योगकारक’ धनदायक माना गया है।
2. यदि शनि साधारण बलवान् हो तो साधारण पिता के घर जन्म पाता है। अर्थात् पिता धनी नहीं होता। यदि शनि गुरु आदि शुभ ग्रहों के प्रभाव में न हो तो पिता कर्कश वाणी बोलने वाला होता है।
3. इस व्यक्ति का भाग्य धीरे-धीरे उदय होता है परन्तु शनि केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होता है । अतः शनि अपनी भुक्ति में धन, पदवी आदि शुभ वस्तुओं की प्राप्ति करवाता है ।
4. शनि केन्द्र (दशम) तथा त्रिकोण (नवम) का स्वामी होता हुआ भी योग (बहुत शुभ) फल नहीं दे सकता, यदि इसके साथ सूर्य तथा बुध की युति न हो। शनि के बहुत शुभ फल न देने का कारण संभवतया यह है कि उसकी मूल त्रिकोण राशि दशम भाव में पड़ती है। यह केन्द्रेश होकर अशुभ नहीं रहता अर्थात् थोड़ा शुभ होता है । शनि चूँकि ग्रहों में निम्नतम श्रेणी का है, इसलिए इसका नवमेश होना इसको अधिक शुभ नहीं बना सकता, इसलिए इसकी शुभता को बढ़ाने के लिए इसके साथ दूसरे योगकारक ग्रहों का संसर्ग आवश्यक है ।
सूर्य केन्द्रेश और बुध कोणेश मिलकर राजयोग की सृष्टि करते हैं, इसलिए उनका शनि से योग शनि में अधिक शुभता लाता है। स्वतंत्र रूप से शनि अपनी दशा भुक्ति में शुभ फल तो करेगा, परन्तु उत्तम फल न कर सकेगा ।
5. सूर्य और शनि यदि लाभ स्थान में स्थित हों, तो जातक धनी और दीर्घायु होता है।
वृष लग्न में शनि महादशा का फल
यदि शनि बलवान हो तो उसकी दशा भुक्ति में जातक को अच्छी मात्रा में धन की प्राप्ति होती है। इस अवधि में पिता से भी लाभ रहता है और राज्य की ओर से भी ।
फलित रत्नाकर
0 Comments