मकर लग्न का फलदेश
इस लग्न वाले प्रायः क्षुद्र विचारों वाले होते हैं। इनकी वाणी बहुत कर्कश (Harsh) होती है। ये विलम्ब से उन्नति पाते हैं।
सूर्य
1. इस लग्न में सूर्य अष्टमाधिपति बन जाता है। सूर्य को अष्टम का स्वामी होने का दोष नहीं लगता । अर्थात् सूर्य अपनी भुक्ति में धनादि तथा मानि शुभ का दाता होता है।
2. सूर्य तथा अष्टम भाव पर पाए गए प्रभाव से मृत्यु के कारणों का पता लगाना चाहिए ।
3. यदि लग्न में सूर्य, चन्द्र और बुध स्थित हों तथा मंगल और शुक्र द्वादश भाव में स्थित हों, तो स्वयं जातक और उसके भाई भाग्यशाली होते हैं ।
क्योंकि बुध की मूल त्रिकोण राशि कन्या भाग्य भवन (नवम) में पड़ती है, इसलिए बुध बहुत शुभ फलदायक होगा । नवम भाव की यह शुभता बुध लग्न, सूर्य लग्न और चन्द्र लग्न तीनों को प्रदान कर रहा है जिसके फलस्वरूप निज को भरपूर भाग्य की प्राप्ति हो रही है।
जहाँ तक मंगल की द्वादश स्थिति का प्रश्न है, हमको यह ध्यान रखना है कि मंगल तृतीय भाव से नवम भाव का स्वामी है और भ्रातृ कारक भी। यह तृतीय भाव से दशम में होने के कारण और मित्र राशि में स्थित होने के कारण भाइयों के भाग्य की भी वृद्धि करेगा।
मकर लग्न में सूर्य महादशा का फल
यदि सूर्य बलवान हो तो आरोग्य को बढ़ता है, पुराने खातों की रकमें वापिस दिलाता है। अनुसन्धान कार्यों में (अपनी दशा भुक्ति में) रुचि उत्पन्न करता है। पुत्र के सुख में भी वृद्धि करता है। पिता का व्यय शुभ कार्यों में होता है। बड़े भाई को मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है ।
यदि सूर्य और अष्टम स्थान निर्बल और पीड़ित हों तो इस अवधि में मनुष्य को विदेश जाना पड़ता है, विशेषतया ऐसी स्थिति में जब कि सूर्य और अन्य कोई पापी ग्रह चन्द्र लग्न से अष्टम भाव और उसके स्वामी को भी पोड़ित कर रहा हो। इस अवधि में ‘मनुष्य पर भारी रोग का आक्रमण भी संभव है। पिता का व्यय बहुत होता है। निज को बहुत मानसिक क्लेश रहता है। सुसराल वालों का धननाश होता है। बड़े भाई को मान हानि का डर रहता है।
चन्द्र
1. चन्द्र यदि बलवान होकर सम राशि में हो तथा शुक्र भी सम राशि में हो तो जातक की स्त्री सुन्दर होती है ।
2. चन्द्र यदि सूर्य से दूर शुभयुक्त शुभदृष्ट हो तो स्त्री की आयु को दीर्घ करता है।
3. चन्द्र यदि द्वादश भाव में हो तो जातक विलासी, भोगप्रिय, कामातुर होता है।
मकर लग्न में चन्द्र महादशा का फल
यदि चन्द्रमा बलवान हो तो अपनी दशा भुक्ति में विवाह का सुख देता है । काम-वासना की वृद्धि करता है । व्यापार को बढ़ाता है । राज्य की ओर से लाभ देता है । मान में तथा धन में वृद्धि करता है । भूमि, जायदाद, वाहन आदि का सुख भी देता है । विशेषतया जबकि चतुर्थेश और शुक्र आदि से सम्बन्धित हो।
यदि चन्द्रमा क्षीण हो और पाप प्रभाव में हो तो जातक को अपनी दशा भुक्ति में रोगी रखता है । व्यापार में हानि देता है । राज्य की ओर से परेशानी देता है । भूमि, जायदाद, वाहन आदि सुख से वंचित रखता है। धन में हानि देता है और स्त्री को रोगी करता है ।
मंगल
1. मंगल चतुर्थाधिपति तथा एकादशाधिपति बन जाता है। मंगल अपनी भुक्ति में अशुभ फल करता है, मन में क्रोध उत्पन्न करता है, कम धन देता है।
2. यदि बलवान् हो तो भूमि में विशेष लाभ देता है,
3. मंगल यदि बलवान हो तो माता को दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। यदि मंगल निर्बल हो तो माता अल्पायु होती है, माता की मरणविधि को उन ग्रहों से देखें जो ग्रह मंगल पर प्रभाव डाल रहे हों। क्योंकि मंगल माता का न केवल लग्नेश, बल्कि अष्टमेश भी बनता है।
4. मंगल यदि शनि के साथ मिलकर किसी भाव तथा उसके कारक अथवा किसी भावेश तथा उसके कारक पर युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव डाले तो व्यक्ति जान बूझकर उस व्यक्ति आदि के विरुद्ध आचरण करता है; क्योंकि शनि निज (Self) रूप है और मंगल बाहु स्थान का स्वामी होने से निज (Self) का प्रतिनिधि बनता है।
जैसे मंगल तथा शनि दोनों चन्द्र तथा शुक्र पर दृष्टि डालें तो व्यक्ति अपनी पत्नी का विरोधी होगा और उसको मार डालने तक उतारू हो जाएगा, इत्यादि ।
5. यदि लग्न में मंगल हो और कर्क में चन्द्रमा, तो राजयोग का फल मिलता है। क्योंकि लग्न भाव में एक उच्च ग्रह की स्थिति और फिर उस पर प्रबल चन्द्र की दृष्टि लग्न को बहुत बलवान् बनावेगी । इसी प्रकार प्रबल चन्द्र पर राज योगकारक मंगल (कर्क के लिए) की प्रबल दृष्टि चन्द्र लग्न की उत्कृष्टता की द्योतक है । लग्नों की उत्कृष्टता बहुत धनदायक होती है ।
मकर लग्न में मंगल महादशा का फल
यदि मंगल बलवान हो और लग्न से किसी प्रकार का सम्बन्ध स्थापित करता हो तो इसकी दशा अथवा भक्ति मनुष्य को भूमि अथवा मकान की प्राप्ति होती है। उसके मकान के किरायों से आय में वृद्धि हो जाती है । उसको पैतृक सम्पत्ति इसी अवधि में प्राप्त होती है। उसको इस अवधि में पिता की ओर से सहायता मिलती है । उसको भाग्यवश कोई ऐसी वस्तु मिलती है जो इसको जनता प्रदान करती है। इस अवधि में सुख में वृद्धि होती है ।
यदि मंगल निर्बल और पीड़ित हो तो मनुष्य को जनता के किसी व्यक्ति के धोखे के कारण इसकी दशा भुक्ति में आर्थिक हानि होती है। उसकी भूमि का नाश होता है। स्वयम् जान-बूझकर भूमि की हानि कर बैठेगा। इस अवधि में व्यक्ति के सुख का नाश होता है, बेचैनी रहती हैं। इसकी इस समय की बेचैनी का कारण इसका बड़ा भाई होगा ।
यदि राहु, शनि तथा सूर्य में से किन्हीं दो द्वारा मंगल और चतुर्थ भाव पीड़ित हों तो इस अवधि में उसे घर छोड़ना पड़ जाता है और उसे कहीं दूसरी जगह जाकर निवास करना पड़ता है। पिता को अशान्ति रहती है । मातृ पक्ष को भी ऐसा रहता है ।
बुध
1. यहॉ बुध नवमेश तथा षष्ठेश बनता है। इसमें शुभता ही शेष रहती है, यद्यपि षष्ठ भाव अच्छा नहीं। भाग्य का सम्बन्ध गैर हिन्दू जातियों तथा देशों से हो जाता है, आय की तथा व्यवसाय की उन्नति का सम्बन्ध मामा से हो जाता है।
2. बलवान् बुध आकस्मिक रूप से भाग्य में वृद्धि कर देता है, विशेषतया जब नवम भाव में राहु अथवा केतु हो ।
3. बुध यदि लग्न में हो तो जातक विशेष धार्मिक होता है, पर पापदृष्ट अथवा पापयुक्त नहीं होना चाहिए।
4. यदि बुध निर्बल हो तो शत्रुओं द्वारा भाग्य की हानि होती है नौकरी से भी परेशानी होती है।
5. यदि बुध तथा गुरु दोनों पर मंगल आदि का पाप प्रभाव हो तो बड़े भाई की आयु को कम करता है, क्योंकि षष्ठ भाव एकादश का आयु स्थान है तथा गुरु बड़े भाई का कारक है ।
6. शनि और बुध नवम भाव में स्थित होकर जातक को भाग्यशाली बनाते हैं और राहु और गुरु द्वादश भाव हों, तो राहु योगप्रद होता है ।
क्योंकि शनि दो शुभ स्थानों अर्थात् लग्न और द्वितीय का स्वामी होता है। इसकी भाग्य स्थान में स्थिति शुभ और मित्र भाग्येश के साथ इसको और भी शुभ बनावेगी ।
राहु एक छाया ग्रह है, उस पर धनकारक गुरु की युति का प्रभाव है और शनि और बुध की ३/४ दृष्टि का, अतः यह भी अपनी दशा में धनादिदायक सिद्ध होगा ।
मकर लग्न में बुध महादशा का फल

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यदि बुध तो वह अपनी दशा भुक्ति में भाग्य की वृद्धि करता है। राज्य की ओर से सहायता रहती है । पिता के धन और मान में वृद्धि होती है। धार्मिक कृत्यों में मन लगता है । मामा से धन की प्राप्ति होती है।
यदि बुध निर्बल और पीड़ित हो तो वह अपनी दशा भुक्ति में शत्रुओं द्वारा बहुत चिरस्थायी हानि दिलवाता है। इस अवधि में पिता के मान की हानि होती है । मामा से भी आर्थिक हानि ही की संभावना रहती है। दूर की यात्रा से भी बहुत कष्ट होता है ।
गुरु
1. यहां गुरु तृतीयाधिपति तथा द्वादशाधिपति बनता है । दोनों भाव अशुभ हैं। अतः गुरु निर्बल, पापयुक्त, पापदृष्ट हो तो बहुत धन देता है।
2. गुरु पर पापदृष्टि हो तो धन का नाश छोटे भाइयों द्वारा होता है ।
3. यदि गुरु बलवान् हो तो छोटे भाई देता है।
4. गुरु यादि बलवान् हो तो छोटे भाइयों से लाभ पाता है, मित्र से भी लाभ उठाता है। शुभ मित्रों वाला होता है ।
5. यदि गुरु नवम में स्थित हो तो जातक सन्तों के साथ सत्संग करने वाला होता है।
6. यदि बुध अष्टम भाव में हो और लग्न में स्थित गुरु पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक दीर्घायु और निर्धनता दोनों को प्राप्त होगा ।
क्योंकि लग्न और अष्टम भाव दोनों आयु के भाव हैं। दो शुभ ग्रहों गुरु और शुक्र का लग्न पर प्रभाव डालना आयु की वृद्धि का योग बनायेगा। इसी प्रकार एक शुभ ग्रह की अष्टम (आयु) स्थान में स्थिति भी आयु को बढ़ावेगी, परन्तु जहाँ तक धन प्राप्ति का प्रश्न है, बुध की मूल त्रिकोण राशि नवम भाव में है, अतः यह भाग्येश होकर नाश स्थान में जाकर भाग्य का नाश करेगा।
उधर गुरु दो अशुभ भावों अर्थात् द्वादश और तृतीय का स्वामी होकर द्वादश से द्वितीय और तृतीय से एकादश में स्थित होगा और इस प्रकार बुरे भावों को बल देगा, विशेषतया इसलिए भी कि यह योगकारक शुभ ग्रह शुक्र द्वारा भी दृष्ट होगा। इस प्रकार शुभ बुध के निर्बल होने के कारण और अशुभ गुरु के बलवान् होने के कारण निर्धनता का योग बनेगा ।

7. यदि लग्न में गुरु और एकादश में मंगल और शुक्र स्थित हों, तो गुरु की दशा में भाई द्वारा धन की प्राप्ति होती है।
प्राय: लग्न और दशम भाव को धन प्राप्ति में आय के स्रोत का द्योतक माना गया है । गुरु बड़े भाई का कारक हैं। यह भ्राता स्थान (तृतीय) का स्वामी होकर और धन का कारक होकर जब लग्न में स्थित होगा तब भाइयों से धन प्राप्ति का सूचक होगा ।
इसी प्रकार दशमेश शुक्र का बड़े भाई के स्थान (एकादश) में एकादशेश और वह भी भ्रातृ कारक मंगल से युक्त होना भी भाई द्वारा धन प्राप्ति की सूचक होगी।
जातक सुन्दर वाहनों को प्राप्त करता है । इस वाहन प्राप्ति का कारण स्पष्टतया वाहन स्थानाधिपति मंगल और वाहन कारक शुक्र का प्राप्ति स्थान (एकादश) में बैठना है। गुरु भी विपरीत राजयोग की सृष्टि करता हुआ धनदायक है, परन्तु मुख्य योग तो मंगल और शुक्र की लाभ-स्थान में युति है।
मकर लग्न में गुरु महादशा का फल
यदि गुरु बलवान हो तो इसकी दशा भुक्ति में मनुष्य को विशेष धन की प्राप्ति नहीं होती। इस अवधि में जातक की बहिन-भाइयों पर शुभ व्यय रहता है। राज्य की ओर से भी कुछ परेशानी रहती है ।
यदि गुरु निर्बल तथा पीड़ित हो तो व्यय अधिक होता है। भाइयों से कष्ट की प्राप्ति होती है, परन्तु आय अच्छी रहती है ।
शुक्र
1. शुक्र योगकारक होने के कारण अतीव शुभ, धन, पदवी आदि का देने वाला होता है । बलवान् शुक्र अपनी भुक्ति में राजयोग का फल करता है। अर्थात् धन, यश, पदवी, उन्नति आदि शुभ वस्तुओं की प्राप्ति करवाता है। मनुष्य को राज दरबार से सुख प्राप्त होता है, अपने कर्मों से जनता में प्रिय हो जाता है ।
2. यदि शुक्र निर्बल, पापयुक्त, पापदृष्ट हो तो शुक्र अपनी भुक्ति में थोड़ा लाभ कराता है। पुत्र द्वारा कर्मों का नाश होता है, अपने विचारों के कारण राज्य से विरोध हो जाता है।
3. यदि शुक्र पंचम भाव में हो, तो शुक्र अपनी दशा में बहुत धनादि देता है, परन्तु यदि वही शुक्र दशम भाव में स्थित हो, तो बहुत घनादि नहीं देता ।
शुक्र मकर लग्न वालों के लिये राजयोग कारक ग्रह है। यह केन्द्र की अपेक्षा त्रिकोण में स्थित क्यों अधिक शुभ फल देता है ? यह प्रश्न है क्योंकि पंचम और दशम दोनों में यह स्वक्षेत्री होता है।
शुक्र के लिए पंचम में स्थिति उसे बहुत ‘दिक् बल’ देती है, क्योंकि वह चतुर्थ भाव के समीप है, परन्तु उसकी दशम भाव स्थिति उसके ‘दिक् बल’ के अभाव की सूचक है, इसलिये फलों में तारतम्य है और पंचमस्थ शुक्र दशमस्थ शुक्र की अपेक्षा अधिक बलवान् है।
4. यदि शुक्र और बुध लग्न में स्थित हों और पंचम भाव में स्थित चन्द्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक राजराजेश्वर बनता है। बृहजातक में इसको ‘महाराजा’ योग कहा है।
इसमें सन्देह नहीं कि यह एक उत्तम योग है। शुक्र जो मकर लग्न वालों का राजयोग कारक ग्रह है, मित्र राशि में केन्द्र में अपने मित्र और भाग्येश के साथ और अपनी राशि तुला और वृषभ से शुभ स्थान शुभ स्थान में होगा, होगा, अतः इसको चार चाँद और भी लग जायेंगे।
उधर चन्द्र पंचम भाव में उच्च होगा, सूर्य से प्रायः दूर होगा। अपने शुभ मित्र गुरु से दृष्ट होगा। इस प्रकार लग्न और चन्द्र लग्न और राजयोग कारक ग्रहों और भाग्येश की प्रबलता के कारण धन, भाग्य, शासन, सत्ता सभी की प्राप्ति होगी।

मकर लग्न में शुक्र महादशा का फल
यदि शुक्र बलवान हो तो अपनी दशा भुक्ति में विशेष धन देता है । इस अवधि में मनुष्य सन्तान के कारण मान पाता है । इसकी मन्त्रणा शक्ति सार्थक होती है और वह उसके द्वारा भी यश को प्राप्त होता है । इस अवधि में जातक धर्म तथा परोपकार के कार्यों में विशेष रुचि का परिचय देता है ।
यदि शुक्र निर्बल और पीड़ित हो तो मनुष्य को धन की हानि उठानी पड़ती है और उसकी सन्तान की किसी क्रिया के फलस्वरूप उसके मान की हानि होती है । उसका मन विलास तथा लम्पटता की ओर अधिक प्रवृत्त रहता है।
शनि
1. शनि द्वितीय भाव का स्वामी होने से स्थानान्तर अर्थात् लग्न का फल करता है। लग्न तो योगकारक होता ही है । अतः शनि अतीव शुभ फल करता है ।
2. यदि शनि बलवान् हो तो जातक
- अपने पुरुषार्थ से धन कमाने वाला होता है।
- बड़ा धनी-मानी होता है।
- लम्बी आयु पाने वाला होता है।
- उसकी स्त्री दीर्घजीवी होती है।
- निम्न वर्ग के लोगों से प्रीति करने वाला होता है।
- इनको प्रायः भूमि से लाभ रहता है।
मकर लग्न में शनि महादशा का फल
यदि शनि बलवान हो तो शनि अपनी दशा भुक्ति में विशेष धन देता है और मान भी बढ़ाता है। अपने ही पुरुषार्थ और परिश्रम से अधिकतर इस समय में धन की प्राप्ति होती है । निम्न वर्ग के लोगों से इस अवधि में सहायता मिलती है ।
यदि शनि निर्बल तथा पीड़ित हो तो धन तथा मान की बहुत हानि होती है । घुटनों में कष्ट रहता है । स्त्री को भी वायु रोग की शिकायत की संभावना रहती है । जातक स्वयं भी रोगी रहता है।
फलित रत्नाकर
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