कुंड्ली में शिक्षा के योग

कुंडली में पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है। पंचम भाव एवं पंचमेश तथा शिक्षा कारक बुध की स्थिति जितनी अच्छी होगी, जातक की शिक्षा उसी के अनुसार अच्छी होगी ।

1. पंचम भाव

  • पंचमेश पंचम में हो यॉ देख रहा हो
  • पंचम में गुरु यॉ शुक्र हो
  • पंचम में उच्च का ग्रह हो
  • पंचम भाव शुभ कर्तरी में हो (most effective)

2. पंचमेश

  • पंचमेश शुभ भावों में हो
  • पंचमेश त्रिकोणेश यॉ शुभ ग्रह से युत हो
  • पंचमेश शुभ ग्रह से दृष्ट हो
  • पंचमेश शुभ कर्तरी में हो
  • पंचमेश के साथ बुध हो

3. बुद्धि का कारक बुद्ध अच्छी स्थिति में हो।

4. मंगल की पंचम भाव अथवा पंचमेश पर दृष्टि पढ़ने की शक्ति को बढ़ाती है, कम नहीं करती, क्योंकि मंगल एक ऊहापोह (Logic) प्रिय ग्रह है ।

5. शनि काला होने से अंधेरा पसन्द करता है। अतः यह ग्रह शिक्षा (Education) नहीं चाहता। जब इसकी दृष्टि पंचम भाव, पंचमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश अथवा बुध पर हो तो अल्पशिक्षा तथा विघ्नयुक्त शिक्षा कहनी चाहिए।

शिक्षा के कारक ग्रह

बुध (Mercury): बुद्धि, तर्क, संचार, गणित और विश्लेषण का मुख्य कारक है। यह सीखने की क्षमता (बुद्धिमत्ता) प्रदान करता है।

बृहस्पति (Jupiter): उच्च शिक्षा, ज्ञान, दर्शन, आध्यात्मिकता और विस्तार का कारक है। यह ज्ञान प्रदान करता है।

चंद्रमा (Moon): मन, भावना और एकाग्रता को नियंत्रित करता है। पढ़ाई में मन लगाने और मानसिक स्थिरता के लिए चंद्रमा महत्वपूर्ण है। यदि अशुभ हो तो मन भटकता है।

सूर्य (Sun): आत्मविश्वास, पहचान और ऊर्जा का प्रतीक है, जो शिक्षा में सफलता के लिए आवश्यक है।

मंगल (Mars): ऊर्जा, साहस और व्यावहारिक कौशल देता है। इंजीनियरिंग और रिसर्च जैसे क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है।

शनि (Saturn): अनुशासन, दृढ़ता और तकनीकी शिक्षा (इंजीनियरिंग, कानून) के लिए जिम्मेदार है।

शुक्र (Venus): कला, कल्पना, रचनात्मकता का कारक है।

राहु-केतु (Rahu-Ketu): राहु नई और तकनीकी शिक्षाओं में, जबकि केतु गूढ़ और आध्यात्मिक ज्ञान में रुचि जगाते हैं। राहु कभी-कभी भ्रमित करता है (पंचम भाव में), लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं (षष्ठम भाव में) में सफलता दिला सकता है।

कुंड्ली में डॉक्टरी शिक्षा के योग

डॉक्टर बनने के लिए जन्म कुंडली में सूर्य, मंगल, बृहस्पति, चंद्रमा, शनि और केतु जैसे ग्रहों की मजबूत स्थिति और 6वें (रोग), 10वें (व्यवसाय) और 11वें (लाभ) भावों का संबंध महत्वपूर्ण होता है, जो चिकित्सा ज्ञान, सेवाभाव, साहस और सफलता के लिए जरूरी है, जिसमें सूर्य दवा और मंगल सर्जरी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि चंद्रमा मन की मजबूती और बृहस्पति उच्च शिक्षा व विशेषज्ञता देते हैं।

  • सूर्य: दवा, डॉक्टर और आत्मा का कारक ग्रह है; मजबूत स्थिति आवश्यक है।
  • मंगल: सर्जरी, ऑपरेशन और साहस से जुड़ा है; 6वें या 10वें भाव में बलवान होना चाहिए।
  • बृहस्पति: ज्ञान, उच्च शिक्षा और विशेषज्ञता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • चंद्रमा: मन की मजबूती और सेवाभाव देता है; पेडियाट्रिक्स (बच्चों के डॉक्टर) के लिए विशेष है।
  • 6वां भाव: रोग, स्वास्थ्य और सेवा का भाव है; इस भाव का स्वामी मजबूत होना चाहिए।

मंगल ग्रह रक्त के साथ साहस, हिम्मत का, हौसले का कारक ग्रह है। जब जन्म कुण्डली में मंगल शुभ एवं बलवान स्थिति में हो, तब जातक को मरीज का खून देखकर घबराहट नहीं होती और उसमें बर्दाश्त करने की प्रबल शक्ति होती है, इसलिए एक सर्जन बनने के लिए मंगल की स्थिति भी अच्छी होनी चाहिए या मंगल अच्छे ग्रहों के प्रभाव में होना चाहिए। प्रसिद्ध मेडिकल सर्जनों की जन्म कुण्डली में मंगल अति बलवान देखा गया है

एम0बी0बी0एस0 कर डॉक्टर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त विभिन्न क्षेत्रों में स्पेशलाइजेशन हासिल करने के लिए गुरु ग्रह का बलवान होना भी अति आवश्यक है। बलवान गुरु मेडिकल के क्षेत्र में अन्य ग्रह स्थिति सहायक होने पर ज्ञान के साथ डॉक्टर के हाथ में यश प्रदान करता है

कुंड्ली में इंजीनिरिंग शिक्षा के योग  

वैदिक ज्योतिष में मंगल और शनि को इंजीनियरिंग और तकनीकी क्षेत्र से जोड़कर देखा जाता है। यह तो सभी जानते हैं कि शनि को लौह से जुड़े पदार्थों, मशीनों, औजारों, उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि का प्रतिनिधि ग्रह माना जाता है। वहीं मंगल विद्युत का कारक है। ऐसे में देखा जाए तो ये दोनों ग्रह इंजीनियरिंग और तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यदि कुंडली में शनि और मंगल मजबूत ना हों तो इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बाधा का काम करते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति कितनी भी मेहनत कर ले, उसे सफलता नहीं मिलती।

प्रतियोगिता परीक्षाएं

पंचम भाव चूंकि बुद्धि से सम्बन्ध रखता है । अतः प्रतियोगिता की परीक्षाएं (Competitive Exams.)  आदि का विचार इस स्थान से करना चाहिए। भाव, भावाधिपति तथा भावकारक (यहां बुध) का सामान्य नियम यहां भी लागू होता है ।

विज्ञान योग

परिभाषा – जब अष्टमेश तथा तृतीयेश एकत्रित हो और बलवान् हो तो विज्ञान योग बनता है।

फल – इस योग मे जन्म लेने वाला मनुष्य विज्ञान (Science) जानने वाला, अनुसन्धान मे रुचि रखने वाला आविष्कारक (Inventor ) तथा खोजी (Discoverer ) होता है।

अष्टम “गभीर खोज” का स्थान है और भावात् भावम के सिद्धान्तानुसार तृतीय भी भारी खोज आदि का स्थान हुआ। दोनों भावो के स्वामियो का परस्पर योग खोज अनुसन्धान आविष्कार का द्योतक है। विशेषतया जबकि दोनो पर शुभ प्रभाव भी हो।

कुंड्ली में शिक्षा के योग

उदाहरण – यह कुण्डली जगत् विख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टाइन की  है जिस ने “सापेक्षवाद” (Theory of relativity) को ससार के सामने रखा। यहां शनि अष्टमेश है और सूर्य तृतीयेश दोनो प्रमुख दशम केन्द्र मे बलवान् होकर बल्कि दो नैसर्गिक शुभ ग्रहों बुध तथा शुक्र के साथ होकर स्थित है।


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