अष्टकूट मिलान यॉ कुण्डली मिलान
अष्टकूट मिलान हिन्दू ज्योतिष में विवाह के लिए वर-वधू की कुंडलियों का मिलान करने की एक प्रणाली है, जिसमें 8 विभिन्न पहलुओं (कूट) जैसे वर्ण, वश्य, तारा, योनि, गण, भकूट और नाड़ी की जाँच की जाती है, और कुल अंकों (अधिकतम 36) के आधार पर अनुकूलता का आकलन किया जाता है, जो आध्यात्मिक, भावनात्मक और शारीरिक सामंजस्य का संकेत देता है। ये आठ कूट निम्नलिखित हैं, जिनमें से प्रत्येक का एक निश्चित अंक होता है:
1. वर्ण (1 अंक): वर्ण मुख्य रूप से वर और कन्या के बीच आध्यात्मिक अनुकूलता को मापता है। चार वर्ण हैं: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। वर का वर्ण कन्या से उच्च होना चाहिए।
2. वश्य (2 अंक): वश्य रिश्ते में एक साथी के दूसरे पर नियंत्रण और प्रभुत्व का मूल्यांकन करता है। इसका निर्धारण की राशियों पाँच श्रेणियों में बाँटकर किया जाता है: चतुष्पाद (चौपाया), आवेश (जंगली जानवर), वन्चर (कीड़े), जल्चर (जलीय) और कीट (सरीसृप)। यदि वर और कन्या एक ही समूह में आते हैं, तो उन्हें 2 अंक मिलते हैं।
3. तारा (3 अंक): तारा वर और कन्या के जन्म नक्षत्रों के आधार पर रिश्ते के स्वास्थ्य, खुशहाली और दीर्घायु का मूल्यांकन करती है। कुल 9 तारा होती हैं। तारा की गणना करने के लिए:
- वर और कन्या की जन्म कुंडली से उनके जन्म नक्षत्र का पता लगाएं।
- वर और कन्या के जन्म नक्षत्रों के बीच स्थित नक्षत्रों की संख्या गिनें।
- नक्षत्रों की संख्या के आधार पर, निम्नलिखित प्रकार से अंक आवंटित करें:
- 3, 4, 5, 7 और 9 नक्षत्रों के अंतर के लिए 3 अंक।
- 2, 6, 8 और 12 नक्षत्रों के अंतर के लिए 2 अंक।
- 1, 10, 11, 13, 14, 15, 16 और 18 नक्षत्रों के अंतर के लिए 1 अंक।
4. योनि (4 अंक): योनि वर और कन्या के बीच यौन अनुकूलता और घनिष्ठ बंधन का प्रतिनिधित्व करती है। इसका निर्धारण दोनों की जन्म कुंडली में चंद्रमा के नक्षत्र की जांच करके किया जाता है। प्रत्येक नक्षत्र एक पशु प्रतीक से जुड़ा होता है, और इन पशु प्रतीकों की अनुकूलता के आधार पर एक विशिष्ट अंक प्राप्त होता है। कुल 14 योनियां होती हैं। वर की योनि की तुलना कन्या की योनि से करके योनि अंक निर्धारित किए जाते हैं।
5. ग्रह मैत्री (5 अंक): ग्रह मैत्री दंपत्ति की बौद्धिक अनुकूलता और मित्रता का परीक्षण करती है। यह एक-दूसरे की जन्म कुंडली में चंद्रमा की राशि पर आधारित होती है।
- सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु परस्पर मित्र हैं
- शुक्र, शनि, बुध परस्पर मित्र हैं
वर और कन्या की चंद्र राशि के स्वामी परस्पर मित्र होने चाहिये।
6. गण (6 अंक): गण चंद्रमा के नक्षत्र के आधार पर वर और कन्या के स्वभाव और प्रकृति को मापता है। प्रत्येक नक्षत्र तीन गणों में से एक से संबंधित होता है: देव (दिव्य), मनुष्य (मानव), या राक्षस (राक्षसी)। देव और मानव गण का विवाह परस्पर हो सकता है लेकिन राक्षस गण का विवाह केवल राक्षस गण से ही होना चाहिए। अंक की गणना करने के लिए:
- दोनों की जन्म कुंडली से उनके चंद्रमा के नक्षत्र का पता लगाएं।
- प्रत्येक नक्षत्र किस गण से संबंधित है, यह निर्धारित करें।
- यदि दोनों का गण एक ही हो, तो उन्हें 6 अंक मिलते हैं।
7. भकूट (7 अंक): भकूट वर और कन्या की चंद्र राशियों के बीच समग्र अनुकूलता का आकलन करता है। यह दोनों व्यक्तियों की चंद्र राशियों के बीच की दूरी पर आधारित होता है। भकूट गणना करने के लिए:
- वर और कन्या की जन्म कुंडली से उनकी चंद्र राशि ज्ञात कीजिए।
- वर की राशि से कन्या की राशि तक गिने और फिर कन्या की राशि से वर की राशि तक गिने यह सम्बंध 9/5, 6/8, 2/12 नहीं होनी चाहिए।
- इस संख्या के आधार पर 0 से 7 अंक तक अंक आवंटित किए जाते हैं।

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माना वर की राशि है कुम्भ (11) और कन्या की राशि है मिथुन (3) जब हम वर की राशि (11) से कन्या की राशि (3) तक गिनेगे तो हमें संख्या मिलेगी 5 और जब हम कन्या की राशि (3) से वर की राशि (11) तक गिनेगे तो हमें संख्या मिलेगी 9 इस प्रकार यह सम्बंध 5/9 का हुआ जो शुभ नही है।
भकूट दोष का परिहार: यदि वर और कन्या की चंद्र राशि का स्वामी एक ही हो तो भकूट दोष का परिहार हो जाता है।
8. नाड़ी (8 अंक): नाड़ी वर और कन्या के बीच स्वास्थ्य और आनुवंशिक अनुकूलता का मूल्यांकन करती है, और संतान में उत्पन्न होने वाली संभावित स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करती है। तीन नाड़ियाँ होती हैं: आदि, मध्य और अंत। वर और कन्या की नाडी अलग-अलग होनी चाहिए। यदि दोनों की नाडी अलग-अलग हो तो उन्हें 8 अंक मिलते हैं।
नाडी दोष का परिहार: यदि तारा कूट मिलान में पूरे अंक अर्थात 3 अंक मिले हैं तो नाडी दोष का परिहार हो जाता है।
कुण्डली मिलान की अष्टकूट पद्धति में, गुणों की अधिकतम संख्या 36 है।
- वर और कन्या के बीच गुण अगर 32 से 36 के मध्य में हो तो उनका मिलाप अति उत्तम होता है।
- गुण अगर 21 से 30 के मध्य में हो तो वर और कन्या का मिलाप बहुत अच्छा होता है।
- गुण अगर 17 से 20 के मध्य में हो तो वर और कन्या का मिलाप साधारण होता है और
- गुण अगर 0 से 16 के मध्य में हो तो इसे अशुभ माना जाता है।

अष्टकूट मिलान यॉ कुण्डली मिलान करते समय ध्यान देने योग्य बातें
1. कुण्डली मिलान के दौरान उपरोक्त विवरण तब ही मान्य है जब भकूट दोष नहीं होता है। अगर भकूट दोष होता है तब वर-कन्या का मिलाप कभी उत्तम नहीं होता है।
2. यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि कुण्डली मिलान के दौरान नाड़ी कूट को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। अगर नाड़ी कूट अनुकूल नहीं है तब 28 गुणों का मिलान भी अशुभ माना जाता है।
3. परंपरागत अष्टकूट मिलन में नाड़ी दोष, भकूट दोष और गण दोष जैसे तीन महादोषों के निवारण पर विचार नहीं किया जाता था। हालांकि, समकालीन अष्टकूट मिलन सिद्धांतों के अनुसार, यदि भावी दूल्हा और दुल्हन के राशि स्वामी परस्पर मित्र हों या एक ही ग्रह हों, तो उपर्युक्त तीन महादोषों सहित सभी अष्टकूट दोष निरस्त हो जाते हैं।
4. मंगल दोष को अष्टकूट कुण्डली मिलान के दौरान सम्मिलित नहीं किया जाता है। वर और कन्या के कुण्डली मिलान में अगर किसी एक की ही कुण्डली में मंगल दोष उपस्थित है तो अष्ट कूट मिलान नहीं किया जाना चाहिये।
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