जिस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली, राशि कुंडली आदि बनाई जाती हैं उसी प्रकार अंक ज्योतिष के सिद्धांतो के अनुसार अंक कुंडली बनाई जाती है।

ज्योतिष की कुंडली, जन्म, समय, तारीख, मास सन् के अनुसार बनाई जाती है। उसमें 12 खाने बारह राशियों के होते हैं और प्रत्येक खाने में राशि की संख्या दी जाती है। उसमें ग्रहों को उनकी राशि के अनुसार स्थापित किया जाता है।

अंक कुंडली भी जन्म समय, तारीख, मास सन् के अनुसार बनाई जाती है। लेकिन इसमें 12 के स्थान पर केवल 9 खाने होते हैं और इनमें राशियों की संख्या के स्थान पर ग्रहों के अंक लिखे जाते हैं।

अंक ज्योतिष के 9 अंको को तीन भागों में विभाजित किया गया है। जिन्हें हम शरीर सम्बन्धी, मन सम्बन्धी तथा आत्मा सम्बन्धी कहते हैं। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक ।

इन नौ अंको के 1, 3, 9 के अंक आत्मा से सम्बन्ध रखते हैं। 1 का स्वामी सूर्य, 3 का बृहस्पति और 9 का स्वामी मंगल है। सूर्य से व्यक्ति या समष्टि की आत्म शक्ति का ज्ञान होता है, मंगल से स्वतंत्र भावना का तथा गुरू से सृष्टि, फेलाव, आत्मा के प्रसार व विस्तार तथा शनि ग्रह है। चन्द्रमा के दो अंक होते है 2 व 7 सूर्य के भी दो अंक हैं 1 व 4 शनि का अंक 8 है।

भौतिक जगत में शरीर को जीवनी शक्ति सूर्य से प्राप्त होती है । मन की विचार शक्ति चन्द्रमा से प्राप्त होती है और शरीर को क्षय करने वाली शक्तियाँ शनि से प्राप्त होती हैं।

इन नौ अंको को नीचे दी गई सारिणी के अनुसार क्रम से स्थापित किया जाता है और इनके क्रम व स्थान निश्चित हैं। इन अंको में सबसे नीचे का धरातल भौतिक, बीच का मानसिक एवं तीसरा सबसे ऊपर का आत्मिक है।

अंक कुंडली जिस तरह से बनाई जाती है और फल कथन किया जाता है, वह महात्मा गांधी की कुंडली का उदाहरण देकर समझाया जा रहा है। इनकी जन्म तारीख 2. 10. 1869 है। अंक कुंडली में सन् के वर्षो को नहीं लेते। अतः इनकी तारीख रहेगी 2.10.69 जिसे कुंडली में निम्नानुसार स्थापित किया जाएगा।

अंक कुंडली में प्रत्येक अंक अपने सामने वाले अंक से या ऊपर नीचे वाले अंक से योग करता है। इसके अनुसार यहाँ 1 अर्थात सूर्य का 9 से या मंगल से योग हो रहा है तथा 6 का 2 से योग जो शुक्र का चन्द्र से योग कहलाएगा। अतः इनके अन्दर सूर्य मंगल शुक्र एवं चन्द्र के गुण अवगुण अधिक मात्रा में रहेंगे।

कभी कभी एक अंक दो बार आ जाता है उस समय जो अंक दो बार आता है उसके आगे 2 का अंक बना देते हैं। जैसे निम्न अंक कुंडली सरदार वल्लभ भाई पटेल की है। इनका जन्म दिनांक 31.10.1875 है अंक कुंडली हेतु 31.10.75 रहेगा।

उपरोक्त कुंडली में 1 अंक दो बार आने से दो बार दर्शाया गया है। इसमें गुरू एवं सूर्य का योग, सूर्य एवं नेपच्यून का योग तथा नेपच्यन एवं बुध का योग दिखाई दे रहा है।

अंक कुंडली का फल कथन करने के पूर्व ग्रहों के प्रभाव, गुण अवगुणों का वर्णन दे रहे हैं। जो फलादेश में काम आएगा।

सूर्य

सूर्य आत्मस्वरूप है यह ग्रहों का राजा है तथा इसकी किरणों से ही अन्य ग्रह प्रकाशित होते हैं। सूर्य बलवान हो तो राजा के समान पद्वी महत्वाकांक्षा, अधिकार की भावना, स्वाभिमान, हुकूमत करना, अपनी शक्ति सामर्थ्य से प्रगति करना, अपने पर भरोसा रखना इस प्रकार का स्वभाव बनाता है।

शूरवीर, चतुर, बलवान, बुद्धिमान, राजसी ठाटबाट पसन्द करने वाला, स्पष्टवक्ता, गम्भीर यशस्वी परोपकारी उदार हृदय विरोधी को परास्त करने वाला, सत्य आचरण करने वाला जातक होता है ।

सूर्य का अंक आने पर उपरोक्त सामान्य फल और सूर्य का अंक एक से अधिक बार आने पर उपरोक्त फल अधिक मात्रा में होते हैं। यदि सूर्य का अंक न हो तो सूर्य के गुण नहीं होते । सूर्य का अंक 1 है। इसका पूरक अंक 8 शनि का अंक है। शनि सूर्य के गुणों व उत्तम प्रभावों को नष्ट करने वाला है।

यदि सूर्य का अंक 1 न हो और 8 का अंक कुंडली में हो तो सूर्य के उपरोक्त गुण नहीं होते। आत्मशक्ति, स्वाभिमान, वीरता उदारता आदि के विपरीत आत्मबल हीनता स्वार्थपरता भीरुता आ जाती है।

  • सूर्य चन्द्र का योग 1+2 या 4+2 उत्तम राजयोग कारक है। राजसी ठाट बाट, अधिकार पदवी देता है।
  • सूर्य गुरू योग 1+3 या 4 +3 विद्वता तथा श्रेष्ठता, प्रतिष्ठा, मान सम्मान, यश की वृद्धि करता है।
  • सूर्य व बुध का योग 1+5 या 4+5 विद्या बुद्धि बढ़ाने वाला,
  • सूर्य शुक्र का योग 1+6 या 4+6 कला, साहित्य यांत्रिक कलाओं का ज्ञान देता है।
  • सूर्य मंगल योग 1+9 या 4+9 उष्ण प्रकृति तेजस्वी साहसी अग्नि क्रिया सम्बन्धी कार्य, साहसिक कार्यों में सफलता देता है।

चन्द्रमा

चन्द्रमा मन का स्वामी है। कुंडली में चन्द्रमा के अंक आते हैं तो राज्य के उच्च अधिकारियों की कृपा प्राप्त होती है। सम्पत्ति, धन धान्य से जातक सुखी रहता है। दयालु हृदय, सत्यवक्ता, धर्म में विश्वास रखने वाला व्यापार में रूचि, व्यवहार कुशल बुद्धिमान होता है। सफेद रंग के पदार्थ वस्त्र भूषण, भोज्य पदार्थो से प्रेम करने वाला, चंचल प्रकृति आराम तलब, सौन्दर्य प्रेमी, विषयी कल्पना शक्ति अच्छी होती है।

चन्द्रमा बलवान न हो तो उच्छृंखल स्वभाव, विषयी स्त्रियों के पीछे भागने वाला, अनियमित आहार विहार वाला, अविश्वासी धन का गोल माल करने वाला, अस्थिर चित्त का होता है। कभी कभी दम्भी, पाखंडी बढ़ चढ़ कर बातें करने वाला, बुराई करना, चुगली करना, बदले की भावना रखना यह भी होता है।

  • चन्द्र मंगल योग साहसिक कार्यो में लक्ष्मी देता है । परन्तु रोग भी देता है ।
  • चन्द्र बुध का योग बुद्धिमता व उत्तम वक्ता, लेखन शक्ति देता है।
  • चन्द्र गुरू का योग महत्वपूर्ण पदवी, उच्च अधिकार संस्था का स्थापक, स्वामी बनाता है। शिक्षक गुरू, आध यात्मवादी, कीर्तिवान, सम्पत्तिशाली ज्ञानवान बनाता है ।
  • चन्द्र शुक्र योग कामशक्ति को बढ़ाता है। सुन्दर रूप विलास प्रिय शान शौकत का प्रेमी, सौन्दर्य प्रेमी तथा ललित कलाओं का ज्ञाता बनाता है।
  • चन्द्र शनि का योग खराब होता है। दुख दरिद्रता मूर्खता व्यसन रोग का देने वाला है।

मंगल

मंगल बल, पौरूष, साहस का प्रतीक है। मंगल बलवान हो तो शक्ति, सामर्थ्य, भूमि, सम्पत्ति, कृषि कार्य से लाभ, धैर्य आदि गुण देता है। सेना पुलिस आदि में उच्च पद, पराक्रम वृद्धि, लाल रंग की वस्तुओं से लाभ देने वाला है। साहसिक कामों में सफलता देता है । अग्नि भट्टी आदि के काम से भी लाभ कराता है। तमोगुण, क्रोध उतावलापन, तेजी देता है।

तरूण, तेजस्वी, उदार हृदय, वीर, बलवान, विजय प्राप्त करने वाला खुला साफ व्यवहार करने वाला, निष्कपट मित्रता रखने वाला, सुधारवादी युद्ध विशारद, आत्मनिष्ठ अपने में ही खुश रहने वाला होता है। रसायन शास्त्री, डाक्टर, सर्जन, सेनापति आदि बनाता है।

मंगल निर्बल हो तो क्रोधी, आलसी दूसरों को धोखा देने वाला, मूर्ख, हठी, दुःसाहसी, क्रूर स्वभाव झगड़ालू प्रकृति, हठी, सनकी दूसरों को लड़ाकर अपना स्वार्थ साधन करने वाला, उडाऊ-खाऊ बेफिक्र, धर्म पर अश्रद्धा रखने वाला बनाता है। आचार भ्रष्ट क्रूरकर्मी करता है।

निर्बल मंगल शनि का योग भयंकर दुर्घटना कारक है। चोट, घाव, रोग देता है। धन संग्रह में बाधा, दरिद्रता, धनहीनता, यहाँ तक कि दिवाला निकल सकता है। अकाल मृत्यु, भयंकर व्याधियाँ देता है। धन व कुटुम्ब का नाश कर्ता, कर्जा बढ़ाने वाला, भाईयो से विरोध करने वाला, स्त्री संतान माता पिता, मित्रों से विरोध करने वाला, मानहानि, दण्ड, बन्धन, राज कोप की आशंका रहती है। कपटी धूर्त जादूगर बनाता है।

मंगल बुध का योग साहसिक व्यापार कर्म से लाभ देता है। बुद्धि व साहस के योग से धनवान, साहसी, स्पष्ट वक्ता, वैद्य डाक्टर इन्जीनियर या शिल्पज्ञ बनाता है।

मंगल गुरू का योग उत्तम गणितज्ञ, शिल्पज्ञ, विद्वान, गान वाद्य प्रिय, ज्योतिष खगोल शास्त्री बनाता है ।

मंगल शुक्र का योग व्यापार कुशल, धातु संशोधक योगाभ्यासी, कर्तव्य परायण, विमान चालक, दुःसाहस के कार्य करने वाला बनाता है।

मंगल सूर्य, मंगल चन्द्र के योगों का फल सूर्य चन्द्रमा के फलों में लिखा जा चुका है।

बुध

यह वाणी का स्वामी है। ग्रहों के राजकीय परिवार में जहां सूर्य व चन्द्रमा को राजा व रानी की पदवी प्राप्त है। मंगल सेनापति है वहीं बुध युवराज या राजकुमार है। चिकित्सा शास्त्र, गणित विद्या, लेखन कला, शिल्पकला, वकालत वाणिज्य व्यवसाय का कारक है। यह शुभ ग्रह है । परन्तु क्रूर ग्रहों के साथ रहने से क्रूर भी हो जाता है। प्रसन्न चित्त, मजाकिया प्रकृति, उत्तमवक्ता बातूनी दिल्लगीबाज, वाकपटु नई नई स्कीमें बनाने वाला, अपने भेदों को गुप्त रखने वाला, बुद्धिमान विद्वान होता है। हस्त कला कौशल वैद्य शास्त्र का ज्ञाता होता है।

  • सूर्य के साथ योग होने से अच्छी विद्या बुद्धि व वणिक बुद्धि का प्रभाव देता है। अन्य ग्रहों में जिस ग्रह के साथ रहता है, उसी के गुणों के समान फल देता है।
  • मंगल के साथ व्यर्थ की बातें करना झूठ बोलने की प्रवृत्ति होती है।
  • बृहस्पति के साथ हो तो विद्वान, काव्य रचना ग्रन्थ रचना, आध्यात्म ज्ञान देता है।
  • शुक्र के साथ ललित कला, यन्त्र रचना, इन्जीनियरी कला कौशल शिल्पकला का ज्ञान देता है।
  • शनि के साथ हो तो कम बोलने वाला गम्भीर स्वभाव का होता है।

बृहस्पति

बृहस्पति देवताओं एवं ग्रहों के आर्चाय तथा गुरू हैं। इसीलिए इनका दूसरा नाम गुरू है । ये बुद्धिमान मन्त्री, सलाहकार पुरोहित हैं। यह जातक को दानी, उदार सच्चरित्र, ज्ञानी वेदान्ती शान्त स्वभाव, विद्वान सत्य आचरण करने वाला, परोपकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, राज्य में उच्च पद प्रतिष्ठा प्राप्त अधिकारी, कोमल हृदय, मृदुवाणी वाला बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति सत्य व न्याय का प्रेमी, सहनशील, लोगों का सहायक, ईश्वर भक्त, अच्छी सलाह देने वाला तथा दीनों का हितकारी होता है। ज्ञान, सुख सम्पत्ति, चतुराई, परमार्थ, तीर्थ, योगमार्ग, दीर्घायु देता है।

  • सूर्य के साथ हो तो महत्वाकांक्षा तथा अधिकार भावना की वृद्धि करता है। राजमान्य ज्ञानवान बनाता है।
  • चन्द्रमा के साथ बहुत शुभ होता है। विद्या, कीर्ति, यश, पराक्रम योगविद्या, धार्मिकता, धन वैभव अधिकार देता है।
  • मंगल के साथ हो तो गणितज्ञ, शिल्पज्ञ, विद्वान तथा गान वाद्य प्रिय बनाता है।
  • बुध गुरू योग उत्तम वक्ता, पंडित सभा चतुर, प्रख्यात कवि और संशोधक होता है। शुक्र गुरू योग सुखी, बलवान, चतुर, नीतिवान और भोगी बनाता है।
  • शनि गुरू योग लोकमान्य कार्यदक्ष, धनी, यशस्वी तथा कीर्तिवान बनाता है।

शुक्र

यह काम चेष्टा, प्रजनन शक्ति, सौन्दर्य, ललित कलाओं का स्वामी है। सुन्दर शरीर, विशाल नेत्र काले घुंघराले बाल, संगीत, काव्य गायन, वादन प्रिय, सफाई पसन्द, सुरूचि वाला, विनयी, मिलनसार, उदार हृदय, यशस्वी बनाता है। कला कौशल, नाटक अभिनय, यन्त्र विद्या, चित्रकला में रूचि देता है।

  • सूर्य के साथ हो तो चित्रकार, कलाकार, नेत्र रोगी, विलासी, कामुक, अविचारी होता है।
  • चन्द्रमा के साथ बलवान होकर व्यापारी, धनवान, सुखी व भोगी बनाता है।
  • मंगल के साथ हो तो व्यापार कुशल, धातुओं का कार्य करने वाला, योगी, कार्य परायण, तेज वाहन चलाने वाला, गतिशील, अनेक स्त्रियों का उपभोग करने वाला होता है।
  • बुध के साथ विद्या, बुद्धिमत्ता साहस आदि देता है। मुंशी, लेखक, विलासी, सुखी राजमान्य राज अधिकारी, शासक बनाता है।
  • गुरू के साथ भी सुखी बलवान, चतुर, नीतिवान तथा विद्वान बनाता है।
  • शुक्र शनि का योग नीच मनोवृत्ति का सूचक है । पाखण्डी, दम्भी, स्वार्थी बनाता है।

शनि

श्याम वर्ण, तमोगुणी प्रकृति, पश्चिम दिशा का स्वामी आलसी वक्र दृष्टि वाला, ऊँचा कद बड़े दांत, रूखे केश उभरी नसों वाला, दुबला पतला, मूर्ख लालची क्रोधी धूर्त, दुष्ट बुद्धि, मन्द बुद्धि, दुर्बल मन वाला, विश्वास घाती, मलिन बुद्धि, भाई बन्धुओं से कलह करने वाला बनाता है।

दूसरों के दोष देखने वाला, कुतर्क करना, पर-धन पर-स्त्री हरण करना, चुभने वाली बात करना, आन्दोलन करना आदि स्वभाव होता है। बात को मन में रखना, भेदों को छुपाना दीर्घायु कारक है। गम्भीर उदासीन होने से संसार त्यागी, बैरागी नैराश्य में आत्महत्या करने की संसार छोड़ने की प्रवृत्ति भी इस ग्रह से पैदा होती है।

  • चन्द्र शनि का योग शक्तिहीन धनहीन, मूर्ख, कपटी, धोखेबाज घातक होता है।
  • शनि मंगल योग धूर्त जादूगर, ढ़ोंगी अविश्वासी बनाता है।
  • शनि बुध योग कुछ उत्तम है। धनार्जन कराता है, कंजूस बनाता है। कवि, वक्ता, सभापंडित, व्याख्याता, कलाकार, गम्भीर विषयों का ज्ञाता बनाता है।
  • गुरू शनि का योग लोकमान्य प्रसिद्धि कार्य दक्षता धन मान प्रतिष्ठा देता है।
  • शनि शुक्र का योग पराई स्त्री धन पर लोलुप दृष्टि, नीच विचारों को बढ़ाता है।

जीवन की घटनाओं के बारे में अंक ज्योतिष से किस प्रकार जाना जाता है, यह आगे बताया गया है। साथ ही अंक कुंडली के योग दिए गए हैं, जिनका फल उपरोक्त ग्रह फलों से मिलान करें।

महात्मा गांधी

अंक ज्योतिष की प्रमाणिकता हेतु कुछ महा पुरुषों के जीवन की घटनाओं का विवेचन दिया जा रहा है। इससे आप सभी ज्योतिष के विद्यार्थियों को इसकी सार्थकता नजर आ जाएगी।

जन्म तारीख 2-10-1869 मूलांक 2 संयुक्तांक 9 नामांक 3

अंक कुंडली के योगः चन्द्र शुक्र योग, सूर्य मंगल योग

अंक कुंडली में सूर्य मंगल का योग साहसिक कार्यों में सफलता देता है। भारत की स्वतंत्रता के लिए किया गया कार्य बहुत ही साहसिक था । चन्द्र शुक्र के योग ने सुन्दर रूप एवं ललित कलाओं का ज्ञान दिया ।

मूलांक 2 वाले जातक शील स्वभाव, कोमल, दयालु, परोपकारी, कल्पनाशील, सृजन शक्ति के धनी, प्रबल मानसिक शक्ति, आत्मबल, अनुशासन प्रिय देशसेवा, समाजसेवा, के कार्यों में रूचि रखने वाले होते हैं।

संयुक्तांक 9 का अधिष्ठाता मंगल है। सुयोग्य सेना नायक, लोक नायक, राष्ट्र नायक युद्ध में विजय दिलाने वाला साहसी कभी कभी दुःसाहसी भी बनाता है।

मूलांक के मित्र अंक- 7, 9,

संयुक्तांक 9 के मित्र अंक – 3, 6 हैं।

मूलांक भाग्यांक के शत्रु अंक- 1, 5, 7, 8 हैं।

चूंकि 7 मित्र अंक भी है इससे सम है।

इस आधार पर गांधी जी के जीवन की घटनाओं का विचार करते हैं।

1887 – 6 मित्रांक मैट्रिक पास किया ।

4.9.1888 – 2 संयुक्तांक का मित्र अंक, विदेश में पढने को बम्बई से प्रस्थान किया।

1893- 3 मित्रांक, अफ्रीका में सार्वजनिक कार्य का शुभारंम्भ किया ।

1896 – 6 मित्रांक, स्वदेश वापिस, बम्बई में प्रथम भाषण दिया ।

1901 – 2 मूलांक अफ्रीका से स्वदेश वापसी ।

1902 – 3 मित्रांक, तीसरे दर्जे में बनारस की यात्रा में जनता के सम्पर्क से नये अनुभव ।

11.9.1906 – मूलांक 2 संयुक्तांक 9 के प्रभाव से अफ्रीका के जोहान्सवर्ग में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग, सत्याग्रह की शक्ति का अनुभव ब्रम्हचर्य की शक्ति का ज्ञान मिला ।

6.11.1913 – मित्रांक 6 ट्रान्सवाल में 2037 ( 3 ) व्यक्तियों सहित सीमा प्रवेश अहिंसक सत्याग्रह भारत में इस शस्त्र के प्रयोग का मार्गदर्शन बना ।

1914 – 6 मित्रांक अफ्रीकी आंदोलन की समाप्ति, विजय तथा स्वदेश वापिसी ।

9.1.1915 – संयुक्तांक 9 बम्बई आगमन

6.4.1919 – मूलांक 6 भारत में आपके आव्हान पर अभूतपूर्व हड़ताल ? 1920 – मित्रांक 3 कांग्रेस में अहिंसक लड़ाई का प्रस्ताव |

12.3.1930 – मित्रांक 3 नमक सत्याग्रह का आरम्भ किया ।

17.2.1931 – संयुक्तांक 6 केवल धोती, गमछे में वायसराय से भेंट की ।

18.2.1947 – मूलांक 9 भारत स्वतन्त्र करने का प्रस्ताव हाउस ऑफ कॉमन्स में रखा गया।

15.8.47 – मूलांक 6 भारत स्वतंत्र हुआ। गांधी जी का प्रयास सफल हुआ।

सम अंक 7 कभी शत्रु कभी मित्र

1897 – योग 7 डरविन पहूँचे

25.5.1915 – योग 7 सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की

शत्रु अंक 5 8

1.2.1922 – योग 8 आंदोलन तीव्र करने की घोषणा, सहस्त्रों की जेल यात्रा, दिल्ली में हिंसक घटनाये, आंदोलन वापिस लिया ।

17.2.1922 – मूलांक 8 चर्चिल ने गांधीजी को अधनंगा फकीर जैसे अपमान जनक शब्द कहे ।

8.8.1942 – मूलांक 8 संयुक्तांक 5 भारत छोड़ो आंदोलन का आरम्भ, स्वयं की, नेताओं की तथा लाखों लोगों की जेल यात्रा

16.8.1946 – संयुक्तांक 8 हिन्दू मुस्लिम दंगे, कत्ले आम, डाइरेक्ट एक्शन ।

30.1.1948 – संयुक्तांक 8 देहावसान (शत्रु अंक)

NATHURAM (5 1 4 5 6 2 1 4) GODSE (3 7 4 3 5) = 50 = 5+0 = 5

नाथूराम गोडसे जिसने गांधीजी की हत्या की, उसका नांमांक 5 है, जो गांधी की का शत्रु अंक है।

सरदार बल्लभभाई पटेल अंक कुंडली

जन्म दिनांक 31.10.1875

मूलांक 4

संयुक्तांक 8

मित्र अंक 1, 2, 7

शत्रु अंक 3, 5, 6

अंक कुंडली के योग – बृहस्पति सूर्य योग, सूर्य बलवान, सूर्य चंन्द्र योग, चन्द्र बुध योग ।

मूलांक 4 का अधिष्ठाता हर्षल या राहु ग्रह है। सहसा प्रगति विस्फोट आश्चर्यजनक कार्य असंम्भावित घटनायें संघर्ष करना, विजय पाना समाज सुधारक, पुरानी प्रथा के उन्मूलक, नवीन के संस्थापक, किसी भी क्षेत्र से पुरानी पद्धति को हटाकर नयी स्थापित करना, मूलांक 4 का फल है। यह लोग मिलनसार होते हैं, धन संग्रह की अपेक्षा वाजिब खर्च करना पसंद करते हैं।

संयुक्तांक 8 का फल धीरे धीरे चरमोत्कर्ष तक पहुँचना इसका स्वभाव है। इसका स्वामी शनि मंद गति ग्रह है, मंद गति से उन्नति करता है। बाहरी दिखावा, प्रेम प्रदर्शन, पाखण्ड नहीं होता । शुष्क व कठोर समझा जाता है। यह लोग उदार, दयालु, अनुशासन में कठोर होते हैं। उच्च पद पर शासन व्यवस्था करने में सफल होते हैं। पारिवारिक जीवन में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

सरदार बल्लभभाई पटेल ने जिस सूझबूझ से देसी रियासतों के विलीनीकरण का जो कार्य किया वह आश्चर्य जनक और असंभव सा प्रतीत होता था। इतने दृढ़ हृदय वाले थे कि पत्नी के देहान्त का समाचार सुनकर भी मुकदमे की पैरवी समाप्त करके ही न्यायालय छोड़ा । अन्यथा उस हत्या के केस में विजय मिलना असंभव था। अपनी पत्नी का अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके, कर्तव्य पर स्नेह का बलिदान कर दिया। उनको इसी कारण लौहपुरूष व सरदार की उपाधियां मिली हुई थीं ।

जीवन की मुख्य घटनाओं पर अंको का प्रभाव

1897 – योग 7 मित्रांक हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की। योग 7 मित्रांक 1897 – मुख्तारी आरंभ की।

1900 – योग 1 मूलांक पुत्री मणिवेन का जन्म । 28.11.1905 योग 1

28.11.1905 – योग मित्रांक पुत्र डाहियाभाई का जन्म ।

11.1.1909 – मूलांक 2 संयुक्तांक 4 योग 6 शत्रु अंक पत्नी का स्वर्गवास ।

1910 – योग 2 मित्रांक बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड गये ।

13.3.1913 – मूलांक 4 बैरिस्टरी पास कर बम्बई पहुंचे।

1916 – योग 8 संयुक्तांक गांधी जी से प्रथम सम्पर्क हुआ ।

11.7.1920 – मूलांक 2 मित्र अंक गुजरात विद्यापीठ की स्थापना का संकल्प लिया ।

1921 – योग 4 मूलांक है गुजरात प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के प्रथम अध्यक्ष चुने गये ।

1924 – योग 7 मित्रांक अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गये ।

1927 – योग 1 मित्रांक अहमदाबाद नगर पालिका के दूसरी बार अध्यक्ष चुने गये

29.9.1928 – मूलांक 2 मित्र अंक बारडोली में करबन्दी सत्याग्रह आरंभ किया ।

नबम्बर 1928 – योग 2 मित्रांक नवम्बर मास 11 का योग भी 2 मित्र अंक बार डोली सत्याग्रह में पूर्ण सफलता प्राप्त की। इसी वर्ष कलकत्ता कांग्रेस में आपका अभूतपूर्व सम्मान किया गया।

26.5.1930 – मूलांक 8 कांग्रेस के स्थानापन्न अध्यक्ष बने ।

25.1.1931 – योग 4 जेल से मुक्ति हुई ।

22.3.1935 – मूलांक 4 बोरसद में प्लेग निवारण कार्य आरंम्भ किया ।

15.6.1945 – 4 जेल से रिहाई वायसराय की शिमला कांफ्रेन्स में भाग लिया ।

2.9.1946 – योग 2 व 4 भारत की अंतरिम सरकार में गृह सदस्य बने ।

9.9.1946 – योग 2 भारतीय संविधान परिषद में प्रथम बार भाग लिया ।

4.4.1947 – मूलांक 4 बल्लभ विद्यानगर में विट्ठलभाई महाविद्यालय का उद्घाटन किया ।

15.8.1947 – योग 8 भारत के उप प्रधान मंत्री बने ।

25.8.1947 – मूलांक 7 रियासतों का विभाग आपको सौंपा गया

13.12.1947 – 13 का योग 4 वी.पी. मेनन के साथ कटक गये और वहां की रियासतों का विलीनीकरण सम्पन्न किया। 562 योग 4 आपने कुल 562 रियासतों का भारत में विलीनीकरण किया।

शत्रु अंक 3, 5 6

1896 – योग 3 झवेरवा से विवाह हुआ, शत्रु अंक से पत्नी सुख अधिक नहीं मिला ।

7.3.1930 – योग 5 नमक सत्याग्रह में गिरफ्तारी तथा पौने चार मास की जेल ।

14.1.1934 – योग 5 (14 का योग भी 5) जेल में बीमार पड़े इलाज के लिये जेल से मुक्त।

9.8.1942 – योग 6 अन्य नेताओं सहित गिरफ्तारी और अहमद नगर जेल में नजर बंदी लम्बी जेल यात्रा ।

12.12.1950 – योग 3 जलवायु परिवर्तन हेतु बम्बई जाना |

15.12.1950 – योग 6 मूलांक संयुक्तांक 6 संसार से महाप्रयाण स्वर्गवास ।


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