कुंडली का बाधक ग्रह

फलादेश करते समय कुण्डली के बाधक ग्रहों पर भी ध्यान देना जरूरी है। ज्योतिष में बाधक ग्रहों की बड़ी भारी भूमिका होती है। प्रायः जन्मकुण्डली में उच्च के ग्रह दिखाई देते हैं। लेकिन राजयोग कारक ग्रह की दशा में राजयोग फलीभूत नहीं हो रहा है। धनेश की दशा चल रही है पर धन नहीं मिल रहा है। इन सबका कारण हैं बाधक ग्रह।

प्रत्येक जन्मपत्रिका का एक बाधक ग्रह शास्त्रकारों ने निश्चित किया है। जिसके बारे में बहुत कम साहित्य उपलब्ध होता है। फलस्वरूप ज्योतिष क्षेत्र मे कार्यरत विद्वान भी इस तथ्य का ज्यादा ध्यान नहीं रख पाते हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण एवम सर्वाधिक काम का व्यावसायिक विषय है। परंतु अधिकतर लोग इसके बारे में अनभिज्ञ हैं।

1. यदि जन्म लग्न चर राशि (मेष, कर्क, तुला और मकर) हो तो ग्यारहवें भाव में स्थित ग्रह जातक ही जन्म कुण्डली का बाधक ग्रह कहलाएगा। यदि ग्यारहवें स्थान में कोई ग्रह नहीं हो तो ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्रह बाधक ग्रह होगा।

2. यदि जन्म लग्न स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) हो तो नवम स्थान में बैठा ग्रह बाधक ग्रह का कार्य करेगा। यदि नवम स्थान में कोई ग्रह नहीं है तो भाग्येश स्वयं (नवमेश) ही उस जातक के लिए बाधक ग्रह होगा।

3. जन्म लग्न द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) का हो तो सातवें स्थान में स्थित ग्रह बाधक ग्रह कहलाएगा। यदि सातवें स्थान में कोई ग्रह नहीं है तो ऐसे जातक के लिए सप्तमेश ही बाधक ग्रह का काम करेगा।

4. यदि कोई ग्रह खर या मान्दि का स्वामी हो तो वह बाधक होगा।

बाधक ग्रह की दशा, अंतर्दशा और प्रत्यन्तर दशा जातक के कार्य में रुकावटें देने वाली होती हैं। जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलता। बाधक ग्रह की दशा विशेष कष्टदायक होती है।

अनुभूत दृष्टान्त 1. – कर्क लग्न के जातक की एक कुण्डली हमारे पास आई। जातक की कुण्डली में हंसयोग, शशयोग एवं मालव्य योग तीनों पंचमहापुरुष योग एक साथ थे।

जातक को बीस वर्ष की शुक्र की दशा 12.6.1991 को लगी। शुक्र स्वगृही साथ में शनि उच्च का “किम्बहुना ” नामक उत्तम योग की सृष्टि कर रहे थे। जातक का प्रश्न था कि यह सब होते हुए भी व धन एवं व्यापार में भाग्योदय हेतु अत्यधिक संघर्ष कर रहा था। जातक स्वयं ज्योतिष का ज्ञाता है तथा अनेक ज्योतिषाचार्यों के यहां चक्कर लगाने पर भी समस्या का सही निदान नहीं हो पा रहा है।

कुंडली का बाधक ग्रह

वस्तुतः इस जन्मपत्रिका में एकादश स्थान में कोई ग्रह नहीं है अतः लाभेश शुक्र ही कर्क (चर) लग्न का बाधक ग्रह सिद्ध हुआ है। बाधक ग्रह की दशा भाग्योदय नहीं कराती। इसके विपरीत भाग्योदय में कष्ट-बाधा एवं अवरोध पहुंचाती है।

यही सत्य है जो कि इस कुण्डली में अक्षरशः फलीभूत हो रहा है फिर इस कुंडली में पूर्ण कालसर्पयोग भी है क्योंकि सभी ग्रह छठे भाव में स्थित राहु एवं द्वादश भाव स्थित केतु के बीच में कैद हैं। ऐसे में उच्च राजयोग प्रदाता सभी ग्रह बेकार हो जाते हैं। यह जन्मकुंडली इसका अन्यतम उदाहरण है।

अनुभूत दृष्टान्त 2. इसी प्रकार एक जातक और हमारे पास और आया था। उसकी कुंडली में उच्च का बुध केन्द्र में “भद्रयोग” करके बैठा है। पूरी कुंडली में केवल एक बुध ही उच्च का था।

अतः सभी ज्योतिषीयों ने लिख कर दिया कि जब बुध की दशा लगेगी जातक करोड़पति होगा। व्यापार चमकेगा। इस जातक को 3.1.2001 को शनि की महादशा में बुध का अन्तर लगा।

जातक की उम्मीद थी कि बुध के अंतर में अच्छा धन आएगा। पर उल्टा हुआ। जैसे ही बुध का अन्तर लगा जातक की बिक्री दिन-प्रतिदिन घटने लगी। व्यापार में स्थाई गिरावट से जातक परेशान हो गया। शनि तो बुध का मित्र था। धनेश था परंतु उसने लाभ नहीं दिया। वस्तुतः इस कुंडली में सप्तमेश बुध बाधक ग्रह है तथा मंगल जो योगकारक है, वह भी बाधक है।

अतः अनुभूत प्रयोगों से यह स्पष्ट है कि भले ही ग्रह उच्च का हो, स्वगृही हो, उच्चराजयोग बनाता है। लग्नेश हो, लग्नेश का मित्र हो दशानाथ का मित्र हो परंतु यदि वह बाधक ग्रह की श्रेणी में आता है तो जातक का भाग्योदय रुक जाता है। यह निश्चित है। ऐसे में बाधक ग्रहों के निदान का उपाय ही जातक को सही लाभ दे सकता है।

Categories: Uncategorized

0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *