कुंड्ली में स्वास्थ्य एवम रोग योग
कुंडली में लग्नेश की स्थिति जितनी अच्छी होगी व्यक्ति का स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि लग्न भाव ही स्वास्थ्य से संबंधित है और लग्नेश इसका स्वामी है। सूर्य इस भाव का कारक है।
अतः लग्न, लग्नेश तथा सूर्य इन तीनों की स्थिति जितनी अच्छी होगी, जातक का स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा – यह निश्चित है ।
कुंडली में षष्ठ भाव से रोग का विचार किया जाता है। मंगल एवं शनि दोनों ही इस षष्ठ भाव के कारक ग्रह हैं। अतः रोग विचार के लिए षष्ठ भाव, षष्ठेश, मंगल एवं शनि की स्थिति का अवलोकन करना चाहिए। षष्ठ भाव एवं षष्ठेश पर मंगल या शनि की दृष्टि होने से रोग की संभावना होती है और षष्ठेश का जिस भाव के स्वामी के साथ संबंध हो उन भावों से संबंधित रोग सभव होते हैं।
यद्यपि ग्रह स्थिति हर कुंडली में पृथक पृथक होती है, तथापि अधिकतम कुंडलियों में मिली-जुली ग्रह स्थिति देखने में आती है अर्थात् कुछ ग्रह शुभ- अच्छा फल देने वाले तथा कुछ अशुभ-बुरा प्रभाव देने वाले होते हैं। हां, किसी- किसी कुंडली में अधिक ग्रह शुभ फल देने वाले या किसी कुंडली में अधिक ग्रह अशुभ फल देने वाले हो सकते हैं, किंतु इनमें कोई भी ग्रह शुभ न हो या कोई भी ग्रह अशुभ न हो, ऐसा संभव नहीं होता। अतः स्वास्थ्य एवं रोग के बारे में विचार करने हेतु कुंडली के सभी ग्रहों का तुलनात्मक विचार करके ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए।
पाठकों की सुविधा के लिए नीचे कुछ प्रमुख रोगों के योग दे रहा हूं, इन योगों का प्रभाव भी कुंडली में ग्रह स्थिति के अनुसार न्यूनाधिक हो सकता है।
हृदय रोग
सूर्य हृदय का कारक है। चतुर्थ भाव से इसका विचार किया जाता है। षष्ठ स्थान रोग स्थान है। अतः सूर्य तथा चतुर्थ भाव पाप ग्रहों से युत, दृष्ट पीड़ित हों तो हृदय रोग हो सकता है। पंचम भाव से भी हृदय का विचार किया जाता है ।
हृदय रोग के निम्न योग हैं:-
1. षष्ठेश सूर्य पाप से युक्त चतुर्थ में बैठा हो ।
2. चतुर्थ व पंचम भाव में पाप ग्रह हों या इन पर पाप प्रभाव हो ।
3. पंचमेश तथा द्वादशेश एक साथ छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों।
4. चतुर्थ भाव में सूर्य, शनि, गुरु तीनों स्थित हों ।
5. सप्तम या चतुर्थ भाव में मंगल, गुरु एवं शनि एक साथ हों ।
6. पंचमेश तथा सप्तमेश दोनों षष्ठ भाव में हों तथा पंचम या सप्तम में पाप ग्रह स्थित हो ।
7. तृतीय, चतुर्थ व पंचम इन तीनों भावों में पाप ग्रह हों ।
8. मंगल, गुरु एवं शनि तीनों चतुर्थ में हों, तो हृदय रोग होता है ।
नेत्र रोग
द्वितीय भाव से दाहिनी आंख तथा द्वादश भाव से बायीं आंख का विचार किया जाता है। दायीं आंख का कारक सूर्य तथा बायीं आंख का कारक चंद्रमा है। जब यह भाव तथा इनके कारक पाप ग्रहों से पीड़ित हों तो आंखों की ज्योति मंद हो जाती है। ऐनक लगानी पड़ती है।
यदि ग्रह स्थिति अधिक खराब हो, तो बात केवल ऐनक तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि नेत्र रोग का कष्ट भोगना पड़ता है। पाठकों की सुविधा के लिए कुछ योग नीचे दिये जा रहे हैं :-
1. यदि सूर्य द्वादश अथवा द्वितीय स्थान मे स्थित हो और पाप दृष्ट हो तो दृष्टि शक्ति मे बहुत निर्बलता लाता है अथवा चक्षुहीन तक कर देता है।
सूर्य प्रकाश है और आख का कारक है। द्वितीय तथा द्वादश स्थान, दोनों आंखों के स्थान है। सूर्य का इन मे से किसी स्थान में स्थित होने का तात्पर्य यह होगा कि जहां सूर्य आँख रूप से स्वय इस भाव मे पीड़ित है वहाँ द्वादश भाव भी पीड़ित हो रहा है और फिर दोनों पर पाप ग्रह की दृष्टि है। इस प्रकार दृष्टि के दोनों प्रतिनिधियों को निर्बल करेगी ही।
2. व्यय भाव में क्षीण चंद्र हो तो बायां नेत्र और सूर्य हो तो दायां नेत्र कमजोर होता है।
3. षष्ठ भाव में पाप ग्रह हो तो बायीं आंख तथा अष्टम भाव में पाप ग्रह हो तो दाहिनी आंख कमजोर होती है।
4. शनि तथा मंगल दूसरे या बारहवें भाव में हों।
5. सूर्य एवं चंद्र दोनों बारहवें भाव में हों।
6. लग्नेश तथा द्वितीयेश दूसरे या बारहवें भाव में शनि से युत हों, तो भी नेत्र रोग की संभावना होती है।
उदाहरण (क) इस व्यक्ति के दॉई आँख की ज्योति छोटी आयु मे ही जाती रही। यहाँ सूर्य द्वादश में स्थित है, प्रबल उच्च शनि से पूर्ण तथा दृष्ट है और केतु के प्रभाव मे भी है। द्वादशाधिपति पर दो पापी ग्रहो शनि तथा मंगल की दृष्टि है।

यहां सूर्य पर शुभ मध्यत्व की आशंका हो सकती है परन्तु शुक्र तथा बुध दोनों पापी ग्रहो का पार्ट खेल रहे है क्योंकि बुध केतु अधिष्ठित राशि का स्वामी होने के कारण पापी है तथा शुक्र तुला का स्वामी है जो कि मगल तथा शनि से अधिष्ठित है। अतः उलटा बुध तथा शुक्र द्वारा सूर्य पर पाप मध्यत्व है।
उदाहरण – (ख) इस व्यक्ति की दोनो आँखे बाल्यावस्था मे ही जाती रही। यहाँ सूर्य शत्रु राशि, शत्रु युक्त द्वितीय स्थान में स्थित है। और उस पर परम क्रूर तथा महान् बली मगल की क्रूर दृष्टि है। इस दृष्टि के कारण सूर्य तथा द्वितीय भाव दोनो को हानि पहुँच रही है जिसका फल चक्षुहीनता मे निकला।

मधुमेह (Diabetes)
निम्नलिखित योग मधुमेह सूचक हैं:
1. गुरु नीच राशि का 6-8-12 भाव में हो ।
2. शुक्र छठे भाव में तथा गुरु बारहवें भाव में हो ।
3. गुरु सूर्य के साथ अस्त हो तथा उस पर राहु की दृष्टि हो।
4. गुरु एवं शनि की युति 6-8-12 भाव में हो ।
5. गुरु, शनि तथा राहु से युत या दृष्ट हो।
6. षष्ठेश व्यय भाव में तथा व्ययेश छठे भाव में हो।
मानसिक रोग
1. लग्न में चंद्रमा यदि बुध, शनि, राहु व केतु से युत या दृष्ट हो, तो जातक मानसिक रोगी होता है। ऐसे व्यक्ति को पागलपन का दौरा भी पड़ सकता है। यदि जन्म अमावस के आसपास का हो, तो फल और भी बुरा हो सकता है।
2. चंद्रमा और बुध के दोनों ओर के घरों में शनि, राहु व केतु हों तो व्यक्ति सनकी एवं मानसिक रोगी होता है।
3. चंद्र का मन से तथा बुध का बुद्धि से संबंध है। जब दोनों अशुभ प्रभाव में होंगे, तो मानसिक रोग होना स्वाभाविक ही है एवं लग्न तथा लग्नेश पर भी पाप प्रभाव होना आवश्यक है क्योंकि लग्न से ही दिमाग के बारे में विचार किया जाता है।
4. बुध पाप ग्रहों से पीड़ित होकर अष्टम में हो, षष्ठ भाव पर भी पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो पागलपन के दौरे पड़ सकते हैं।
हकलाना
जब द्वितीय स्थान तथा वाणी का कारक बुध पाप ग्रहों से युत हो, पाप दृष्ट हो, तो व्यक्ति बोलने में लड़खड़ाता है। उसकी वाणी में कोई त्रुटि होती है
1. द्वितीयेश – षष्ठेश की युति पर शनि की दृष्टि हो तो व्यक्ति गूंगा होगा ।
2. बुध तथा षष्ठेश लग्न में हो तो, जातक गूंगा हो ।
3. बुध, मकर या कुंभ में हो तथा शनि से दृष्ट हो तो जातक हकलाकर बोलेगा।
फेफड़ों के रोग
कुंडली में चतुर्थ भाव तथा कर्क राशि पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तथा सूर्य चं चंद्र 4-8-12 भाव में हों, तो फेफड़ों की बीमारी का भय रहता है। अन्य इस प्रकार हैं:-
1. कर्क, वृश्चिक, मीन राशि में सूर्य, चंद्र का योग हो तथा चतुर्थेश नीच राशिगत या अस्त हो ।
2. चंद्र तथा शुक्र षष्ठेश से युत होकर चतुर्थ में हों ।
3. चंद्र जल राशि में हो तथा शुक्र अस्त हो ।
4. चंद्र जिस राशि में हो उसका स्वामी तथा सूर्य जिस राशि में हो उसका स्वामी, दोनों का योग जल राशि में हो।
5. लग्न में जल तत्त्व राशि हो तथा सूर्य व चंद्र जल तत्त्व राशि में बैठकर उसे देखें।
6. कर्क लग्न में मंगल हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो ।
7. चतुर्थ भाव में कर्क राशि में मंगल के साथ शनि / राहु हो ।
8. लग्न जल राशि हो तथा लग्नेश की शनि के साथ युति 6-8-12 भाव में हो ।
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