कुंडली में वाहन एवम मकान योग
कुंडली में चतुर्थ भाव से वाहन-कार मोटरगाड़ी आदि तथा मकान, जमीन व भू-संपत्ति के बारे में विचार किया जाता है।
यदि चतुर्थ भाव शुभ राशि में शुभ ग्रह या अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो, किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट न हो, इसी प्रकार चतुर्थेश भी शुभ प्रभाव में शुभ ग्रह से युत दृष्ट हो, किसी पाप प्रभाव में न हो तो चतुर्थ भाव संबंधी शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है- यह प्रथम साधारण नियम है।
अब आगे विचार करने के लिए इसे हम दो भागों में विभक्त करते हैं: प्रथम भाग वाहन संबंधी, द्वितीय भाग भू संपत्ति संबंधी। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि उपरोक्त सभी सुख के साधन चतुर्थ भाव से संबंधित हैं, लेकिन दोनों भागों के कारक ग्रह अलग-अलग हैं।
वाहन
वाहन का कारक ग्रह शुक्र है। कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं शुक्र की स्थिति अच्छी होने पर वाहन संबंधी शुभ फल की प्राप्ति होती है। चतुर्थ भाव के कारक ग्रह चंद्र एवं बुध हैं। यदि इनकी स्थिति भी कुंडली में अच्छी हो तो सोने पर सुहागा-अर्थात उत्तम शुभ फल की प्राप्ति होती है।
वाहन प्राप्ति संबंधी कुछ सूत्र इस प्रकार हैं-
1. द्वितीयेश लग्न में हो दशमेश धनभाव में हो और चतुर्थ भाव में उच्च राशि का ग्रह हो तो उत्तम वाहन मिलता है।
2. लग्नेश, चतुर्थेश तथा नवमेश के परस्पर केंद्र में रहने से वाहन सुख ।
3. लग्नेश तथा चतुर्थेश एक साथ लग्न, चतुर्थ या नवम भाव में हों, तो इन्हीं ग्रहों की दशा या अंतर्दशा में वाहन की प्राप्ति ।
4. चतुर्थेश पंचम भाव में तथा पंचमेश चतुर्थ भाव में हो तो वाहन प्राप्ति ।
5. चतुर्थेश एकादश भाव में तथा लाभेश चतुर्थ भाव में हो या
- चतुर्थेश दशम भाव में तथा दशमेश चतुर्थ भाव में हो या
- चतुर्थेश नवम भाव में तथा नवमेश चतुर्थ भाव में हो या
- चतुर्थेश द्वितीय भाव में तथा द्वितीयेश चतुर्थ भाव में हो या
- चतुर्थेश दशम भाव में तथा दशमेश लग्न भाव में हो
- चतुर्थेश तथा शुक्र एक साथ लग्न या चतुर्थभाव में हों तो वाहन योग
7. शुक्र से सप्तम भाव में चंद्रमा होने से भी वाहन सुख संभव, गुरु से दृष्ट चतुर्थेश लाभ भाव में हो तो बहुवाहन योग और चंद्रमा से शुक्र तीसरे या ग्यारहवें में हो, तो वाहन योग होता है।
8. निम्न स्थितियों में भी वाहन सुख संभव होता है:
- चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हो तथा चंद्र से तृतीय शुक्र हो ।
- चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हो तथा शुक्र से तृतीय चंद्र हो ।
- चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह हो तथा चंद्र पर शुक्र की दृष्टि हो।
- चतुर्थ स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तथा चंद्र पर शुक्र की दृष्टि हो ।
9. चतुर्थेश किसी केंद्र में हो और केंद्र का स्वामी लग्न में हो तो वाहन योग ।
10. दशमेश लाभ भाव में तथा लाभेश दशम भाव में हो तो भी वाहन सुख प्राप्ति ।
11. चतुर्थेश लाभ भाव में तथा लाभेश दशम भाव में हो तो भी वाहन सुख ।
12. चतुर्थेश चतुर्थ भाव में शुभ हो एवं बुध भी साथ में बैठा हो तो उत्तम वाहन प्राप्ति ।
13. गुरु-शुक्र-चंद्र तथा चतुर्थेश साथ होकर केंद्र या त्रिकोण में हों तो उत्तम वाहन योग होता है, और जातक को कई वाहनों का सुख प्राप्त होता है ।
14. चतुर्थेश तथा नवमेश लाभ भाव में हो या इन दोनों की दृष्टि चतुर्थ भाव पर हो तो जातक को कई वाहनों का सुख प्राप्त होता है।
15. नवमेश-दशमेश-लाभेश तीनों चतुर्थ भाव में हों तो वाहन योग ।
16. लग्नेश चतुर्थ-नवम या एकादश भाव में हो तो बहुवाहन योग ।
17. चतुर्थेश किसी केंद्र में बैठा हो और उस केंद्र का स्वामी लाभ भाव में हो तो भी वाहन सुख प्राप्ति ।
18. चतुर्थेश, शनि, गुरु व शुक्र के साथ नवम भाव में हो तथा नवमेश किसी केंद्र या त्रिकोण में हो तो बहुवाहन योग होता है।
19. यदि चतुर्थेश 6-8-12 भाव में बैठा हो या अस्त या शत्रु गृही या नीच राशिगत हो तो जातक के वाहन में स्थिरता नहीं होती, वाहन बिगड़ता रहता है।
20. व्ययेश अपनी उच्च राशि में धनेश से युत होकर नवम भाव को देखता हो तो वाहन योग होता है।
मकान, जमीन, भू-संपत्ति
मकान-भूमि इत्यादि का कारक ग्रह मंगल है। अतः कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा मंगल की स्थिति अच्छी हो तो मकान इत्यादि की प्राप्ति होती है।
पाठकों की सुविधा के लिए नीचे कुछ सूत्र दिये जा रहे हैं:-
1. कुंडली में चतुर्थेश एवं मंगल उच्च, स्वगृही, मूल त्रिकोणस्थ शुभ स्थानस्थ या शुभ युत हो तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
2. चतुर्थेश दशम भाव में तथा दशमेश चतुर्थ भाव में हो तथा मंगल बलवान हो या मंगल की दृष्टि उनपर हो तो भू-संपत्ति योग होता है।
3. बलवान सूर्य चतुर्थ भाव में उच्च राशि का होकर बैठा है तो प्राय: 22 वर्ष की आयु में मकान की प्राप्ति होती है। एक अन्य मत यह है कि सूर्य मेष राशि में हो तो 45 से 48 की आयु में अपना बनाया घर होता है
4. चतुर्थेश सप्तम भाव में हो और शुक्र चौथे भाव में हो तथा इन दोनों में परस्पर मैत्री हो तो स्त्री द्वारा भू-संपत्ति प्राप्त होती है।
5. चतुर्थेश, दशमेश, चंद्रमा बली व परस्पर मित्र हो तो जातक बहुक्षेत्रशाली ।
6. चतुर्थेश या मंगल नीचस्थ, पाप युक्त, होने पर भूमि का नाश करता है ।
7. चतुर्थेश नीच शत्रु ग्रही हो, तो धन भाव में रहने पर क्षेत्रनाश करता है।
8. चतुर्थेश चतुर्थ भाव में ही हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि या स्थिति हो तो जातक को मकान-जमीन का सुख विशेष रूप से होता है।
9. चतुर्थेश एवं नवमेश लाभ भाव में हों और शुभ दृष्ट हों, पाप दृष्ट न हों, तो मकान आदि का लाभ होता है।
10. चतुर्थेश किसी केंद्र में गुरु के साथ हो, तो जमीन मकान प्राप्त कराता है।
11. लग्नेश तथा चतुर्थेश एक साथ हों, केंद्र या त्रिकोणगत होकर शुभ ग्रह से दृष्ट हों या नवमेश केंद्रगत हो, चतुर्थेश उच्च हो या बुध तृतीयगत हो तथा चतुर्थेश दुःस्थानगत न हो या चतुर्थेश एवं दशमेश एक साथ हों और शनि केंद्र में हो, तो जातक सुसज्जित गृह का स्वामी होता है।
12. चतुर्थ भाव तथा चतुर्थेश दोनों चर राशि में हों तो जातक के कई स्थानों में मकान हो सकते हैं।
13. चतुर्थेश द्वितीय या एकादश भाव में हो, तो जातक को भूमि प्राप्त हो ।
14. लग्नेश द्वितीयस्थ तथा द्वितीयेश एकादशस्थ तथा लाभेश लग्नस्थ हो, तो जातक को पृथ्वी में गड़ी हुई संपत्ति प्राप्त होती है।
15. चतुर्थेश एकादश भाव में तथा एकादशेश चौथे में हो या चतुर्थेश तथा नवमेश एकादश भाव में हों, द्वितीयेश दशम भाव में हो, तो जातक आकस्मिक संपत्ति प्राप्त करता है ।
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