कुंड्ली में विद्या एवम नौकरी योग
कुंडली में पंचम भाव से विद्या का विचार किया जाता है। पंचम भाव एवं पंचमेश की स्थिति जितनी अच्छी होगी, जातक की विद्या उसी के अनुसार अच्छी होगी ।
पंचम भाव शुभ ग्रहों के मध्य हो, पंचम भाव में किसी शुभ ग्रह की स्थिति या दृष्टि पंचम भाव पर हो, पंचमेश शुभ भाव में बैठा हो। पंचम भाव का कारक ग्रह भी पंचम भाव या किसी भी केंद्र या त्रिकोण में इनमें से जितने अधिक योग किसी कुंडली में होंगे, जातक की विद्या उतनी ही ऊंचे दर्जे की होगी। इसके विपरीत यदि पंचम भाव में पाप ग्रह की स्थिति हो, पंचम भाव पाप ग्रहों से घिरा हो, पंचमेश पाप प्रभाव में या 6-8-12 भाव में हो, तो विद्या में बाधा ।
एक अनूठी बात
ज्योतिष के साधारण नियमानुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में बैठ जाए, तो उस भाव की (जिसका वह स्वामी है) हानि होती है। इसी नियमानुसार पंचम भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में बैठ जाए तो विद्या की हानि होगी।
किंतु मेरे अनुभव में आया है कि पंचमेश व्यय भाव में बैठा हो, विशेषकर जब गुरु पंचमेश होकर व्यय भाव में हो, तो वहां यह साधारण नियम लागू नहीं होता और पंचमेश गुरु व्यय भाव में बैठकर भी उसी प्रकार विद्या की उन्नति करता है, जैसे वह पंचम भाव में उच्च राशि का होकर बैठा हो ।
इसका कारण यह प्रतीत होता है कि संसार के सभी धन-सभी पदार्थ व्यय करने से कम होते हैं और अंततः समाप्त हो जाते हैं, किंतु विद्या एक ऐसा धन है, जिसे आप ज्यों-ज्यों खर्च करते जाएंगे त्यों-त्यों बढ़ता ही जाएगा और जितना अधिक खर्च करेंगे, उतना ही अधिक बढ़ेगा ।
विशेष बात यह है कि पंचमेश चाहे कोई भी ग्रह हो, उसके अतिरिक्त गुरु का बल अवश्य देख लेना चाहिए, क्योंकि गुरु इस भाव का कारक होने से प्रत्येक कुंडली में विद्या संबंधी प्रभाव रखता है।
यदि गुरु उच्च राशि का होकर वक्री हो गया हो, तो उसका उच्चत्व समाप्त हो जाता है और वह बिल्कुल साधारण स्थिति में हो जाता है। इसके विपरीत यदि गुरु नीच राशि का होकर वक्री हो, तो वह उच्च राशि में होने जैसा प्रभाव करेगा।
नौकरी
मंगल शासन करने वाला ग्रह है। दशम भाव राजसत्ता से संबंधित है। अतः मंगल, दशम भाव एवं दशमेश इनकी स्थिति अच्छी होने से अच्छी सर्विस एवं उच्चाधिकार की प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त सूर्य, बुध, गुरु एवं शनि ये चारों ग्रह इस भाव के कारक हैं, अतः इन चारों की स्थिति भी देखनी होगी।
निष्कर्ष यह है कि कुंडली में दशम भाव, दशमेश, मंगल, सूर्य, बुध, गुरु एवं शनि इन सबकी स्थिति जितनी अच्छी होगी, उतनी ही अच्छी स्थिति उच्च पदाधिकार प्राप्त होने की होगी।
नौकरी के लिये प्राथमिक योग्यता
जैसे किसी भी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए कुछ प्राथमिक योग्यता का होना आवश्यक है, उसी प्रकार उच्च शासकीय सर्विस एवं अधिकार प्राप्ति के लिए कुंडली में यदि कोई योग भी हो तो समझना चाहिए कि व्यक्ति में प्राथमिक योग्यता है-सफलता की संभावना है।
उच्चाधिकारी योग
1. दशम भाव में मंगल उच्च राशि का हो।
2. मंगल बलवान होकर किसी भी केंद्र या त्रिकोण में हो ।
3. मंगल स्वराशि, मूल त्रिकोण या मित्र राशि का होकर दशम भाव में हो ।
4. कुंडली में अष्टम भाव को छोड़कर अन्य किसी भी भाव में उच्च राशि का मंगल हो ।
5. दशम भाव में सूर्य या गुरु उच्च राशि, स्वराशि या मित्र क्षेत्रीय हो ।
6. केंद्र में कोई भी ग्रह उच्च राशि का हो तथा उस पर या दशम भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो।
7. लग्नेश की लग्न पर दृष्टि हो तथा मंगल का दशमेश से संबंध ।
8. लग्नेश एवं दशमेश का योग हो ।
9. द्वितीयेश दशम भाव में स्वराशि, उच्च राशि, मूल त्रिकोण या मित्र राशि का हो।
10. द्वितीयेश एवं दशमेश का योग हो।
11. दशमेश केंद्र या त्रिकोण में हो।
12. किसी केंद्रेश का त्रिकोणेश से योग हो ।
13. वृष लग्न कुंडली में दशम भाव में शनि तथा चतुर्थ भाव में गुरु हो ।
14. मकर लग्न कुंडली में दशम भाव में शुक्र, शनि की उस पर दृष्टि हो ।
15. वृष लग्न कुंडली में दशम भाव में शनि तथा चतुर्थ भाव में शुक्र हो ।
16. वृश्चिक लग्न कुंडली में मंगल लग्न में हो ।
17. तुला लग्न कुंडली में दशम भाव में चंद्र तथा चतुर्थ भाव में शुक्र हो ।
इनमें से जितने अधिक योग किसी कुंडली में मिलें और ग्रह स्थिति जितनी अच्छी होगी उतनी ही अच्छी स्थिति उच्चाधिकार प्राप्त होने की होगी।
नौकरी मिलने का समय
1. जब गोचर भ्रमण में गुरु जन्मकुंडली के दशमभाव स्थित राशि पर से जा रहा हो।
.
2. जब शनि गोचर भ्रमण में जन्मकुंडली में स्थित अपने मित्र ग्रहों (शुक्र-बुध-राहु) से नव-पंचम योग करता हो और यह नव-पंचम योग 1-2- 6-9-10-11 इन स्थानों में होता हो ।
3. जब गोचर में गुरु का भ्रमण जन्मस्थ सूर्य-चंद्र-गुरु इन पर से होता है।
4. दशमेश की महादशा में उसके सहधर्मी ग्रह की अंतर्दशा चल रही हो या सहधर्मी ग्रह की महादशा में दशमेश की अंतर्दशा चल रही हो ।
नौकरी छूटना
1. यदि जन्मकुंडली में राहु-शनि-सूर्य इनमें से दो या तीनों का प्रभाव दशम भाव तथा दशमेश पर पड़ रहा हो, तो जातक को नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। यह फल तब घटित होगा जब किसी संबंधित ग्रह की महादशा या अंतर्दशा चल रही होगी।
2. जब गुरु का गोचर वश भ्रमण जन्मकुंडली के दशम भाव से राहु-शनि पर से हो रहा हो, तो वह समय नौकरी के लिए अनिष्टकारक होता है।
पदोन्नति का विचार
जन्म कुंडली में दशम भाव से पदोन्नति का विचार किया जाता है। निम्न योगों में से कोई योग होने पर पदोन्नति का लाभ मिलता है।
1. दशम भाव में सूर्य या मंगल उच्च/स्वराशि/मित्र राशि में हों और लग्नेश शुभ स्थान में हो।
2. दशम में गुरु/शुक्र/बुध उच्च राशि/स्वराशि/मित्र राशि में हों और उस पर पाप प्रभाव न हो ।
3. नवमेश नवम भाव में हो और लग्नेश की लग्न पर दृष्टि हो।
4. दशमेश का लग्नेश या त्रिकोणेश से संबंध हो ।
5. दशमेश लग्न में हो ।
6. नवमेश-दशमेश लाभेश का योग हो ।
7. द्वितीयेश दशम भाव में उच्च/स्व/मित्र राशि का हो ।
8. लग्नेश दशम भाव में हो और उस पर पाप प्रभाव न हो।
9. दशम भाव पर गुरु की दृष्टि हो।
पदोन्नति में रुकावट अर्थात् बाधा योग
1. दशम में शनि स्थित हो (यदि उच्च/स्व राशि का न हो) ।
2. शनि लग्न या चतुर्थ में हो (यदि उच्च/स्वराशि का न हो) ।
3. शनि अष्टम में हो।
4. राहु-केतु द्वितीय-अष्टम भाव या चतुर्थ-दशम में हों।
5. छठे/आठवें/बारहवें भाव का स्वामी दशम में हो।
6. दशमेश एवं लग्नेश शनि/राहु/केतु से युत या दृष्ट हों।
पदोन्नति एवं स्थानांतरण का समय
1. जब शनि गोचर वश जन्म कुंडली में स्थित अपने मित्र ग्रहों-शुक्र, बुध, राहु से 1-2-6-9-10-11 इन भावों में नव पंचम योग करता है, तब अनुकूल स्थानांतरण तथा पदोन्नति प्राप्त होती है। Grade मिलती है। आकस्मिक लाभ होता है।
2. जब गुरु का गोचर भ्रमण जन्म कुंडली के दशम भाव स्थित राशि पर से हो रहा हो, तो वह समय भी पदोन्नति के लिए अनुकूल होता है। इस समय में स्थानांतरण भी अनुकूल होते हैं।
3. कुंडली में दशम भाव एवं दशमेश की स्थिति अच्छी हो तो दशमेश की महादशा या अंतर्दशा में उसके सहधर्मी ग्रह की दशा/अंतर्दशा में भी पदोन्नति के लिए अच्छा अवसर होता है। इस समय में स्थानांतरण भी अनुकूल होता है।
0 Comments