मकरलग्न में गुरु का फलदेश

मकरलग्न में गुरु का फलदेश प्रथम स्थान में

मकरलग्न में बृहस्पति तृतीयेश एवं व्ययेश है। अतः बृहस्पति यहां अशुभ फलदायक एवं परम पापी है। गुरु यहां लग्न में नीच राशि का होगा। बृहस्पति की यह स्थिति ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘केसरी योग’ बनाती है।

ऐसे जातक कृशकाय होते हैं । जातक की पत्नी सुन्दर व धर्मभीरू होगी। जातक पढ़ा-लिखा व शिक्षित होगा।

दृष्टि – लग्नस्थ बृहस्पति की दृष्टि पंचम स्थान (वृष राशि), सप्तम स्थान (कर्क राशि) एवं भाग्य स्थान (कन्या राशि) पर होगी। जातक पुत्रवान होगा। जातक का गृहस्थ सुख उत्तम होगा। जातक भाग्यशाली होगा परन्तु संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी।

निशानी – तृतीयेश यदि लग्न में हो तो जातक अपने पराक्रम में खूब धन कमाता है। ऐसा जातक सदैव रोगी, साहसी परन्तु दूसरों की सेवा करने वाला होता है।

दशा – बृहस्पति की दशा-अंतर्दशा में शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – प्रथम भाव में गुरु-चंद्र की युति ‘मकर राशि में होगी। यह युति वस्तुत सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति होगी। बृहस्पति यहां नीच राशि में होगा। लग्नस्थ दोनों ग्रह क्रमश: ‘कुलदीपक योग’, ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि करते हुए पंचम भाव, सप्तम भाव एवं भाग्य भवन को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः जातक के विवाह के तत्काल बाद भाग्योदय होगा। दूसरा भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा। जातक की गिनती समाज के अग्रगण्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों में होगी।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य जातक को आध्यात्मिक शक्ति से ओत-प्रोत करेगा।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल ‘रुचक योग’ एवं ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा के समान धनी व यशस्वी होगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध की युति जातक को भाग्यशाली बनायेगी ।

6. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र उत्तम राजयोग एवं उत्तम विद्या व सुंदर संतति देगा।

7. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ यहां शनि होने पर ‘नीचभंग राजयोग’ एवं ‘शश योग’ बनाता है। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी एवं धनी होता है।

8. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह मकर राशि में है। बृहस्पति यहां नीच राशि में होकर भी ‘कुलदीपक योग’, ‘केसरी योग’ बना रहा है, तो राहु के सम राशि में होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। ऐसा जातक स्थाई धंधे, रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकता रहेगा। चित्त अशान्त रहेगा।

9. गुरु + केतु – बृहस्पति के साथ केतु जातक के चेहरे पर अप्रिय निशान बनायेगा ।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश द्वितीय स्थान में

बृहस्पति यहां द्वितीय स्थान में कुंभ (सम) राशि में है। ऐसे जातक को धनसंग्रह तथा कुटुम्ब सुख में दिक्कतें आती हैं तथा संतान सुख में भी दिक्कतें आती है। जातक दूसरों का धन हड़पने में रुचि रखता है। खासकर स्त्री-धन पर जातक की नीयत खराब रहती है।

दृष्टि– द्वितीयस्थ बृहस्पति की दृष्टि छठे स्थान (मिथुन राशि) अष्टम स्थान (सिंह राशि) एवं दशम स्थान (तुला राशि) पर होगी। जातक के गुप्त शत्रु बहुत होंगे। जातक रोगी तथा स्थूलकाय होगा। जातक अपने रोजगार से संतुष्ट नहीं होगा।

निशानी – ऐसे जातक को गुदाभंजन का शौक होता है। वे समलैंगिक होते हैं।

दशा – बृहस्पति की दशा अंतर्दशा संघर्षकारी साबित होगी। जातक का पराक्रम बढ़ेगा पर व्यर्थ का खर्च भी बहुत होगा।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के द्वितीय भाव में गुरु-चंद्र की युति ‘कुंभ राशि में होगी। यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां बैठकर दोनों ग्रह षष्टम, अष्टम स्थान एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक को ऋण-रोग व शत्रु का भय नहीं रहेगा। जातक रोग व शत्रु का नाश करने में पूर्णतः सक्षम होगा। उसे राज्यपक्ष (सरकार) कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी। यह योग जातक के लिए 60% शुभ फलदायक है।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य धन हानि में वृद्धि करेगा। ऐसा जातक अपनी आमदनी से संतुष्ट नहीं होगा।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल जातक को धनी बनायेगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध जातक को भाग्यशाली बनायेगा ।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र होने से जातक निश्चित रूप से धनी होगा। जातक की वाणी विनम्र होगी।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि जातक को महाधनी बनायेगा। ऐसा जातक बड़ी उम्र के लोगों के मार्गदर्शन में आगे बढ़ेगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह कुंभ राशि में हैं। बृहस्पति यहां सम राशि में है, तो राहु अपनी मूलत्रिकोण राशि में होने से ‘चाण्डाल योग’ बना जातक को धनाभाव बना रहेगा। आर्थिक विषमताएं जातक को परेशान करती रहेंगी। जातक की वाणी कठोर (कर्कश) होगी।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु आर्थिक संघर्ष की द्योतक है।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश तृतीय स्थान में

बृहस्पति यहां तृतीय स्थान में स्वगृही होगा। ऐसे जातक को पिता का सुख व सम्पत्ति मिलेगी। जातक को पत्नी, संतान, भाई-बहनों का सुख मिलेगा। । जातक धार्मिक होगा एवं आध्यात्म विद्या में पूर्ण रुचि रखेगा।

दृष्टि – तृतीयस्थ बृहस्पति की दृष्टि सप्तम भाव (कर्क राशि) भाग्य भवन (कन्या राशि) एवं लाभ भवन (वृश्चिक राशि) पर होगी। जातक की पत्नी पतिव्रता होगी। जातक भाग्यशाली होगा। जातक को व्यापार-व्यवसाय में लाभ होगा।

निशानी– तृतीयेश यदि तृतीय स्थान में हो तो ऐसा मनुष्य बड़ा पराक्रमी, पुत्र सुख से युक्त, धनवान्, हृष्ट-पुष्ट बलवान् एवं अद्भुत सुख व ऐश्वर्य भोगने वाला होता है।

दशा – बृहस्पति की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।

गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के तृतीय भाव में गुरु-चंद्र की युति ‘मीन राशि’ के अंतर्गत होगी। यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव, नवम भाव एवं एकादश भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। यहां बृहस्पति स्वगृही होगा।

फलत: जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय होगा तथा जातक को व्यापार व्यवसाय में लाभ होगा। जातक के मित्र, परिजन जातक के सहायक होंगे। जातक महान पराक्रमी होगा।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य जातक को विशेष पराक्रमी बनायेगा । परन्तु भाइयों में नहीं बनेगी।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल जातक को भाइयों से लाभ देगा। जातक महान् पराक्रमी होगा। जातक के चार या उससे अधिक भाई हो सकते हैं।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध की युति होने से जातक स्वयं भाग्यशाली होगा। जातक के मित्र भी भाग्यशाली होंगे।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनायेगा। जातक महान प्रतापी होगा। उसके बहुत से रिश्तेदार, मित्र व शुभचिंतक होंगे।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि मित्रों से धन लाभ करायेगा। जातक को जनसंपर्क से लाभ होगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह मीन राशि में हैं। बृहस्पति यहां स्वगृही होगा तथा राहु के अपनी नीच राशि में होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। परिजनों में वैमनस्य रहेगा। मित्र दगा देंगे फिर भी राहु के कारण जातक प्रबल पराक्रमी होगा।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु जातक को यशस्वी, लेखक व साहित्यकार बनायेगा ।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश चतुर्थ स्थान में

बृहस्पति यहां चतुर्थ स्थान में मेष (मित्र) राशि का होकर, ‘कुलदीपक योग’, ‘केसरी योग’ बनायेगा । जातक अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा। जातक सबका चहेता व प्यारा होगा। ऐसा जातक सदैव सुखमय जीवन व्यतीत करेगा परन्तु यश, धन, पद-प्रतिष्ठा का उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना मिलना चाहिए।

दृष्टि – चतुर्थ भावगत बृहस्पति की दृष्टि अष्टम भाव (सिंह राशि), दशम भाव (तुला राशि) एवं द्वादश भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः जातक ऋण रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त करने में सक्षम होगा।

निशानी – ऐसे जातक की पत्नी क्रूर व क्रोधी स्वभाव की होगी।

दशा – बृहस्पति की दशा अंतर्दशा सामान्य फल देगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के चतुर्थ भाव में गुरु-चंद्र की युति ‘मेष राशि’ में होगी। यहां यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यह युति केन्द्रवर्ती होने के कारण ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि होगी।

यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव, दशम भाव एवं व्यय भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक का धन शुभ कार्य एवं परोपकार कार्य में खर्च होगा। जातक का दुर्घटनाओं व संकट से बचाव होता रहेगा। जातक को कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य हो तो शक्तिशाली राजयोग  होगा क्योंकि मकर लग्न में अकेला गुरु निर्बल होता है।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल ‘रुचक योग’ बनायेगा। ऐसा जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध जातक को पराक्रमी, बुद्धिजीवी एवं महातेजस्वी बनायेगा।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र जातक का राजयोग बलवान बनाता है। जातक का राजा द्वारा सम्मान होगा।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि जातक को मित्र से लाभ देगा पर जातक की माता बीमार रहेगी।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह मेष राशि में है। बृहस्पति यहां मित्र राशि में, तो राहु सम राशि में होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। ‘केसरी योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ भी बृहस्पति बना रहा है। जातक बुद्धिमान व समझदार होगा पर उसकी माता बीमार रहेगी। वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु जातक की माता को लम्बी बीमारी देगा।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश पंचम स्थान में

बृहस्पति यहां पंचम भाव में वृष (शत्रु) राशि में होगा। ऐसे जातक को पिता एवं ज्येष्ठ सहोदर का पूरा सुख मिलेगा। जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि मिलेगी। जातक को पुत्र संतान का सुख प्राप्त होगा। जातक को उच्च पद प्रतिष्ठा मिलेगी।

दृष्टि – पंचमस्थ बृहस्पति की दृष्टि भाग्य भवन (कन्या राशि), लाभ भवन (वृश्चिक राशि) एवं लग्न भाव (मकर राशि) पर होगी। जातक भाग्यशाली होगा तथा उसे व्यापार से लाभ होगा। जातक स्व विवेक एवं बुद्धिबल से आगे बढ़ेगा |

निशानी – यदि तृतीयेश पंचम स्थान में हो तो जातक की पत्नी क्रूर व क्रोधी स्वभाव की होगी।

दशा – बृहस्पति की दशा-अंतर्दशां शुभ फल देगी। नई जानकारियां मिलेंगी। नवीन ज्ञान की प्राप्ति होगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के पंचम भाव में गुरु-चंद्र की युति ‘वृष राशि’ में होगी। वृष राशि में यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यहां चंद्रमा उच्च का होगा। यहां से दोनों शुभ ग्रह भाग्य भवन, लाभ स्थान एवं लग्न स्थान को देखेंगे।

फलतः जातक का भाग्योदय प्रथम संतान के बाद होगा। जातक को व्यापार-यवसाय से लाभ होगा। जातक व्यापार से कमायेगा। ऐसे जातक का सर्वांगीण विकास होगा। उनकी गणना समाज के अग्रगण्य प्रतिष्ठित लोगों में होगी।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य जातक को प्रथम संतति हाथ नहीं लगने देगा। जातक की एकाध संतान की अपरिपक्व अवस्था में मृत्यु संभव है।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल जातक का भाग्योदय प्रथम संतान के बाद होगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध जातक को आध्यात्मिक एवं भाग्यशाली बनायेगा |

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र स्वगृही होने से जातक का राजयोग शक्तिशाली होगा एवं उसकी विद्या उत्कृष्ट होगी।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि होने से जातक परिश्रमी, पुरुषार्थी एवं यशस्वी होगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह तृष राशि में हैं। बृहस्पति यहां शत्रु राशि में तो राहु उच्च राशि में होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। जातक को विद्या प्राप्ति में बाधा आयेगी एवं पुत्र संतति को लेकर चिंता बनी रहेगी।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु जातक को विद्या प्राप्ति में प्रारंभिक रुकावट देगा।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश षष्टम स्थान में

गुरु यहां छठे भाव में मिथुन (शत्रु) राशि में होकर विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा । ऐसा जातक धनी-मानी होगा। जीवन के समस्त ऐश्वर्य, भौतिक सुखों की प्राप्ति जातक को सहज में हो जायेगी। यहां ‘पराक्रमभंग योग’ होने के कारण जातक अपने इष्ट मित्रों व संबंधियों द्वारा प्रताड़ित होगा। जातक को ऋण, रोग व शत्रु परेशान करते रहेंगे।

दृष्टि – षष्टमस्थ बृहस्पति की दृष्टि दशम स्थान (तुला राशि), द्वादश स्थान (धनु राशि) एवं धन भाव (कुंभ राशि) पर होगी। जातक की राजनीति में रुचि रहेगी। यात्रा में नुकसान की संभावना रहेगी। धन प्राप्ति के प्रयासों में कठिनाई महसूस करेंगे।

निशानी – जातक के भाई ही जातक का शत्रु होता है। जातक को मामा का सुख नहीं होता ।

दशा– बृहस्पति की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के छठे भाव में गुरु-चंद्र की युति ‘मिथुन राशि में होगी। यह युति वस्तुत: चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति है। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री है। यहां पर खड्ढे में गिरे बृहस्पति के कारण ‘पराक्रमभंग योग’ तथा चंद्रमा के कारण ‘विवाहभंग योग’ भी बना। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव, व्यय भाव एवं धन भाव को देखेंगे। फलतः जातक को यथेष्ट धन की प्राप्ति होती रहेगी।

जातक को मित्रों से धोखा मिलेगा। जातक का अपने जीवन साथी से मनमुटाव होगा। जातक खर्चीली प्रवृत्ति का होगा पर ‘गजकेसरी योग’ के कारण जातक सभी संकटों से पार निकल जायेगा तथा एक सफल व्यक्ति कहलायेगा ।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य सरल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा । जातक धनी होगा तथा उसे भौतिक सुख-सुविधाएं पूर्ण रूप से प्राप्त होगी।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल ‘सुखहीन योग’ व ‘लाभभंग योग’ बना रहा है। जातक को भाग्योदय हेतु अति कठोर परिश्रम करना पड़ेगा ।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक महाधनी एवं ऐश्वर्यशाली होगा।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र ‘संतानहीन योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनायेगा । जातक को सरकार से परेशानी होगी।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘धनहीन योग’ बनायेगा। जातक को आर्थिक मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह मिथुन राशि में हैं। बृहस्पति यहां शत्रु राशि में है, तथा विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बना रहा है। राहु मूलत्रिकोण राशि में स्वगृही होकर ‘चाण्डाल योग बना रहा है। जातक धनवान एवं अभिमानी होगा । जातक के गुप्त शत्रु बहुत होंगे। जीवन में परेशानियां बहुत आयेगी।

8. बृहस्पति + केतु – जातक को गुप्त रोग या बायें पैर में कष्ट संभव है।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश

मकरलग्न में गुरु का फलदेश सप्तम स्थान में

बृहस्पति यहां उच्च का होगा। कर्क राशि के 5 अंशों में बृहस्पति परमोच्च का होता है। बृहस्पति के कारण यहां ‘कुलदीपक योग’, ‘केसरी योग’ एवं ‘हंस योग’ बना। यहां बृहस्पति भले ही सप्तम में उच्च का हो पर जातक का सप्तम भाव पीड़ित रहता है।

ऐसे जातक का गृहस्थ जीवन अशान्त रहता है। जातक के गुप्त शत्रु भी जातक को परेशान करते रहेंगे। यहां अकेला बृहस्पति कमजोर है। किसी भी अन्य ग्रह के साथ होने से बृहस्पति बलवान हो जायेगा। जातक परिवार का नाम रोशन करेगा।

दृष्टि – सप्तमस्थ बृहस्पति लाभ स्थान (मीन राशि), लग्न स्थान (मकर राशि) एवं तृतीय स्थान (वृश्चिक राशि) को देखेगा। जातक को व्यापार में लाभ होगा। जातक को प्रयास में सफलता मिलेगी एवं जातक पराक्रमी होगा।

निशानी तृतीयेश यदि सातवें हो तो ऐसे जातक की मृत्यु राजदंड पाकर होती है।

दशा – बहस्पति की दशा-अंतर्दशा मिले-जुले परिणाम देगी। जातक का पराक्रम बढ़ेगा।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र मकरलग्न के सप्तम भाव में गुरु चंद्र की युति कर्क राशि में हो रही है। कर्क राशि में यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति है। चंद्रमा यहा स्वगृही होगा तथा गुरु उच्च का होगा। ‘गजकेसरी योग’ की यह स्थिति सर्वोत्तम स्थिति है इस स्थिति के कारण ‘हंसयोग’, ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘ यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं पराक्रम स्थान को देखेंगे।

फलतः जातक एक तेजस्वी व्यक्तित्व का धनी होगा। जातक की पत्नी सुन्दर एवं धनवान घराने से होगी। जातक व्यापार से धन कमायेगा तथा महान पराक्रमी, यशस्वी होगा तथा राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य जातक का जीवनसाथी के साथ बिछोह (तलाक) करायेगा।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल नीच का होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा । जातक राजा के समान पराक्रमी होगा। जातक का ससुराल पक्ष धनी होगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध जातक को सुन्दर पत्नी देगा। पर पत्नी से वैचारिक मतभेद रहेंगे।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र होने के कारण जातक का जीवनसाथी सुडौल व सुन्दर होगा।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि होने के कारण जातक का जीवनसाथी जातक से बड़ी उम्र का दिखेगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह कर्क राशि में हैं। बृहस्पति यहां उच्च का होकर ‘हंसयोग’ बना रहा है, तो राहु शत्रु राशि में होकर ‘चाण्डाल योग बना रहा है। है। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं धनी होगा। परन्तु जातक के सुख में न्यूनता रहेगी। द्विभार्यायोग बनता है।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु गृहस्थ सुख में बाधक है।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश अष्टम स्थान में

गुरु यहां आठवें स्थान में सिंह (मित्र) राशि में होगा। गुरु के कारण ‘पराक्रमभंग योग’ एवं विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। ऐसा जातक धनी, मानी, अभिमानी व शत्रुहन्ता होते हैं। ऐसे जातक पूर्णज्ञानी होता है पर ऐन वक्त पर जब खास जरूरत हो, जातक बृहस्पति द्वारा प्रदत्त विद्या भूल जायेगा।

दृष्टि– अष्टमस्थ बृहस्पति की दृष्टि व्यय भाव (धनु राशि), धन भाव (कुंभ राशि) एवं चतुर्थ भाव (मेष राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा तथा उसे धन प्राप्ति हेतु किये गये प्रयत्नों में असफलता मिलेगी। जातक को माता व संतान का सुख कमजोर होगा।

निशानी – यदि तृतीयेश आठवें स्थान हो तो ऐसे जातक की मृत्यु राजदण्ड पाकर होती है।

दशा – बृहस्पति की दशा अंतर्दशा अशुभ फल देगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के अष्टम भाव में गुरु चंद्र की युति सिंह राशि में होगी। सिंह राशि में यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ युति है। बृहस्पति के कारण ‘पराक्रमभंग योग’ तथा चंद्रमा के कारण ‘विवाहभंग ‘योग’ बनता है। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह व्यय भाव धन भाव एवं सुख स्थान को देखेंगे।

फलतः जातक का अपनी पत्नी से मनमुटाव रहेगा। जातक के मित्र उसे धोखा देंगे। धन का अपव्यय होगा। विपरीत परिस्थितियों में भी इस योग के कारण जातक को अंतिम सफलता मिलेगी।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य सरल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक महाधनी होगा तथा उसे आधुनिक सभी सुख-सुविधाएं सहज ही प्राप्त होंगी।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल ‘सुखहीन योग’ व ‘लाभभंग योग’ बनायेगा। जातक को भाग्य की उन्नति हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा एवं उसे सभी भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त होंगी।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र ‘संतानहीन योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनायेगा। ऐसे में जातक को संतान संबंधी चिंता बनी रहेगी।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘धनहीन योग’ बनाता है। ऐसे जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलता। जातक आर्थिक परेशानी में रहेगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह सिंह राशि में हैं। बृहस्पति मित्र राशि में विमल नाम ‘विपरीत राजयोग’ बना रहा है, तो राहु शत्रु राशि में बैठकर ‘चाण्डाल योग’ बना रहा है। जातक धनवान एवं अभिमानी होगा, पर अचानक दुर्घटना का भय बना रहेगा। जातक समाज का अग्रगण्य व्यक्ति होगा।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु जातक के पैरों में चोट पहुंचायेगा।

विशेष – यदि सूर्य यहां तृतीय स्थान या द्वादश भाव में हो तो जातक की आयु क्षीण होगी।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश नवम स्थान में

बृहस्पति यहां नवम स्थान में कन्या (शत्रु) राशि में होगा। ऐसे जातक को रिश्तेदार परिजनों व सहोदर एवं माता-पिता का सुख मिलेगा। पर सभी से वैचारिक मतभेद रहेंगे। जातक को मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, समाज में उच्च पद मिलेगा। जातक धार्मिक एवं आध्यात्मिक बुद्धि से सम्पन्न व्यक्ति होगा।

दृष्टि – नवम भावगत बृहस्पति की दृष्टि लग्न स्थान (मकर राशि), पराक्रम स्थान (मीन राशि) एवं पंचम स्थान (वृष राशि) पर होगी। जातक के परिश्रम सार्थक होंगे। जातक पराक्रमी होगा एवं जातक को पुत्र रत्न (उत्तम संतति) की प्राप्ति होगी।

निशानी – यदि तृतीयेश भाग्य स्थान में हो तो जातक का भाग्योदय स्त्री से होता है।

दशा – बृहस्पति की दशा-अंतर्दशा जातक का पराक्रम बढ़ायेगी तथा भाग्योदय के नये अवसर प्रदान करेगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के नवम भाव में गुरु-चंद्र की युति कन्या राशि में हुई है। कन्या राशि में यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश तृतीयेश बृहस्पति के साथ यति है। चंद्रमा यहां शत्रु क्षेत्री है। इन दोनों शुभ ग्रहों की दृष्टि लग्न स्थान, पराक्रम स्थान एवं पंचम भाव पर है।

फलतः जातक के व्यक्तित्व विकास में यह युति सहायक होगी। जातक शिक्षित होगा तथा उसकी संतान भी शिक्षित होगी। जातक का स्वयं का भाग्योदय प्रथम संतति के तत्काल बाद होगा । जातक महान पराक्रमी व यशस्वी होगा।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य जातक को तेजस्वी बनायेगा ।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल जातक को बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी बनायेगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध उच्च का होगा। जातक वैभवशाली, गौरवशाली जीवन जीयेगा ।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र नीच का होकर भी उत्तम विद्या, श्रेष्ठ पराक्रम एवं राजसी जीवन देगा।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि, जातक को परिश्रम का लाभ देगा। जातक धनी होगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह कन्या राशि में है। बृहस्पति शत्रु राशि में है, तो राहु यहां स्वगृही होकर ‘चाण्डाल योग’ बना रहा है। जातक को भाग्योदय हेतु काफी परेशानियों दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। जातक का जनसम्पर्क विस्तृत होगा।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु जातक के भाग्य में तेजी लायेगा। जातक

कीर्तिवान् होगा।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश दशम स्थान में

बृहस्पति यहां तुला (शत्रु) राशि में होगा। ऐसे जातक को पिता, सहोदर भ्राता, पत्नी व संतान का पूर्ण सुख मिलेगा। जातक पराक्रमी एवं पुरुषार्थी होगा। पर धन धीमी गति से आयेगा। जातक को रोजी-रोजगार, व्यापार-व्यवसाय में उन्नति मिलेगी। जातक का राजनीति में भी प्रभाव रहेगा।

दृष्टि – दशम भावगत बृहस्पति की दृष्टि धन स्थान (कुंभ राशि), चतुर्थ स्थान (मेष राशि) एवं षष्टम स्थान (मिथुन राशि) पर होगी। जातक धनी होगा तथा उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। जातक का निजी भवन होगा। शत्रु परास्त होगे।

निशानी– यदि तृतीयेश दशम स्थान में हो तो जातक की पत्नी क्रूर व क्रोधी स्वभाव की होगी।

दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न के दशम भाव में गुरु-चंद्र की युति तुला राशि में है । तुला राशि में यह युति वस्तुतः सप्तमेश चंद्रमा की व्ययेश-तृतीयेश बृहस्पति के साथ  है। केन्द्रवर्ती गुरु-चंद्र के कारण ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि हुई। ये दोनों ग्रह यहां धन स्थान, सुख स्थान एवं षष्टम स्थान को देखेंगे।

फलतः ऐसे जातक को यथेष्ट धन की प्राप्ति होती रहेगी। उसको उत्तम वाहन भी मिलेगा। भौतिक सुख-संसाधनों की कमी नहीं रहेगी। जातक अपने शत्रुओं व रोगों का शमन करने में पूर्णतः सक्षम होगा।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ नीच का सूर्य जातक को राजकीय सम्प्रभुता देगा।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ ‘दिक्बली’ मंगल जातक को राजकीय शक्ति देगा। जातक बड़ी सम्पत्ति का स्वामी होगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध, जातक को आध्यात्मिक शक्ति से युक्त करेगा।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र होने से ‘मालव्य योग’ बनेगा। जातक राजा के तुल्य पराक्रमी एवं वैभवशाली होगा।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि शश योग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा तुल्य पराक्रमी एवं ऐश्वर्य सम्पन्न होगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह तुला राशि में है । बृहस्पति यहां शत्रु राशि में है, तो राहु मित्र राशि में बैठकर ‘चाण्डाल योग’ बना रहा है। गुरु ‘कुलदीपक योग’, ‘केसरी योग’ बना रहा है। जातक पराक्रमी एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा तथा अपने कुल का नाम रोशन करेगा। जातक का राजनीति में भी हस्तक्षेप रहेगा।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु की युति राजसुख में बाधक है।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश एकादश स्थान में

गुरु यहां एकादश स्थान में वृश्चिक (मित्र) राशि में होगा। ऐसे जातक को विद्या-बुद्धि, स्त्री – संतान, जमीन-जायदाद के उत्तम सुख मिलेंगे। जातक को बड़े भाई का सुख, सामाजिक, पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान भी बराबर मिलता रहेगा।

दृष्टि – एकादश भावगत बृहस्पति की दृष्टि पराक्रम स्थान (मीन राशि), पंचम स्थान (वृष राशि) एवं सप्तम स्थान (कर्क राशि) पर होगी। जातक पराक्रमी होगा। संतान एवं विद्या सुख उत्तम पत्नी का सुख भी उत्तम श्रेणी का होगा।

निशानी – तृतीयेश यदि एकादश स्थान में हो तो जातक अपने उद्यम, पराक्रम से कमाकर धनवान होता है। जातक साहसी होता है, तथा दूसरों की सेवा करने में रुचि रखता है।

दशा – बृहस्पति की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी। जातक को धन लाभ होगा एवं उसका व्यापार बढ़ेगा।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – मकरलग्न में गुरु-चंद्र की युति एकादश स्थान में वृश्चिक राशि के अंतर्गत होगी । चंद्रमा यहां वृश्चिक राशि में नीच का होगा। इन दोनों ग्रहों की दृष्टि पराक्रम भाव, पंचम भाव एवं सप्तम भाव पर होगी।

फलत: जातक का भाग्योदय विवाह के बाद तत्काल बाद होगा। जातक दूसरा भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा। जातक सुशिक्षित एवं संस्कारी होगा। जातक महान् पराक्रमी एवं यशस्वी होगा।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य जातक को पुत्र संतति का सुख देगा।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल जातक को भौतिक सुख-सुविधाएं एवं संतति सुख देगा।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध जातक को भाग्यशाली बनाता है।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र राजयोग देता है। जातक उच्च विद्या एवं उत्तम संतति प्राप्त करेगा।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि जातक को प्रबल पुरुषार्थी बनायेगा । जातक उद्योगपति होगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह नृश्निक राशि में हैं। बृहस्पति यहां मित्र राशि में है, तो राहु नीच राशि में बैठकर ‘चाण्डाल योग’ बना रहा है। जातक समाज का अग्रगण्य प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। व्यापार में हानि होगी तथा संतान को लेकर चिंता बनी रहेगी।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु की युति लाभ में बाधक है।

मकरलग्न में गुरु का फलदेश द्वादश स्थान में

बृहस्पति यहां द्वादश स्थान में धनु राशि में स्वगृही होगा। फलत: विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ मुखरित होगा। ऐसा जातक धनी मानी व अभिमानी होगा। ऐसे जातक विनम्र होते हैं तथा अपने शत्रुओं या विरोधियों का मुंहतोड़ जबाव नहीं दे पाते। जातक क्षमाशील व भावुक होते हैं।

दृष्टि – द्वादश भावगत बृहस्पति की दृष्टि चतुर्थ स्थान (तुला राशि), छठे स्थान (सिंह राशि) एवं नवम स्थान (वृष राशि) पर होगी। ऐसे जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति आसानी से नहीं होगी। जातक के गुप्त शत्रु उसे परेशान करेंगे। जातक को भाग्योदय हेतु जी-तोड़ परिश्रम करना पड़ेगा।

निशानी – तृतीयेश यदि बारहवें स्थान में हो तो जातक का भाग्योदय स्त्री द्वारा होता है एवं जातक का पिता चोर होता है।

दशा – बृहस्पति की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

बृहस्पति का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. बृहस्पति + चंद्र – बृहस्पति यहां स्वगृही होगा। ‘कीर्तिभंग योग’ एवं ‘विवाहभंग योग’ यहां इतना प्रभावशाली नहीं रहेगा। इन दोनों शुभग्रहों की दृष्टि सुख स्थान, षष्टम स्थान एवं अष्टम स्थान पर होगी। फलतः जातक का दुर्घटना व अपघातों से बचाव होता रहेगा। जातक को शत्रु भी ज्यादा परेशान नहीं कर पायेंगे। जातक ऋण-रोग व शत्रुओं के कुप्रभाव से बचा रहेगा। जातक पराक्रमी सुखी एवं सम्पन्न व्यक्ति होगा।

2. बृहस्पति + सूर्य – बृहस्पति के साथ सूर्य ‘विपरीत राजयोग’ बनाता है। जातक धनी तथा परोपकारी होगा। जातक को नेत्र पीड़ा रहेगी।

3. बृहस्पति + मंगल – बृहस्पति के साथ मंगल विलम्ब विवाह करायेगा ।

4. बृहस्पति + बुध – बृहस्पति के साथ बुध ‘भाग्यभंग योग’ बनाता है। जातक को भाग्योदय हेतु परेशानी उठानी पड़ेगी ।

5. बृहस्पति + शुक्र – बृहस्पति के साथ शुक्र ‘संततिहीन योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनाता है। जातक को संतान की चिंता एवं राजदंड का भय रहेगा।

6. बृहस्पति + शनि – बृहस्पति के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘धनहीन योग’ बनायोगा । जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।

7. बृहस्पति + राहु – यहां दोनों ग्रह धनु राशि में हैं। बृहस्पति यहां स्वगृही है, तो राहु नीच राशि में बैठकर ‘चाण्डाल योग’ बना रहा है। बृहस्पति के कारण विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बन रहा है। जातक एक धनी एवं अभिमानी व्यक्ति होगा। जातक की फिजूलखर्ची की आदत तथा व्यर्थ की यात्राओं से घर वाले परेशान रहेंगे।

8. बृहस्पति + केतु – बृहस्पति के साथ केतु व्यर्थ की यात्राएं करायेगा । जातक समाजसेवी होगा।

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