मकरलग्न में मंगल का फलदेश
मकरलग्न में मंगल का फलदेश प्रथम स्थान में
मकरलग्न में मंगल चतुर्थेश एवं लाभेश होने से अशुभ है, फलतः यहां मंगल मारकेश का काम करेगा। यहां लग्न स्थान में मंगल उच्च का होगा। मकर राशि के 28 अंशों में मंगल परमोच्च का होता है। यहां मंगल के कारण ‘रुचक योग’ बना। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यशाली होता है।
लग्नस्थ मंगल के कारण कुण्डली मांगलिक होगी फलत: विवाह में देरी होगी। जीवन साथी का चुनाव मुश्किल से होगा। जातक के पास बड़ी भू-सम्पत्ति होगी एवं उसे भाई- बहन का सुख प्राप्त होगा।
दृष्टि – मंगल की दृष्टि चतुर्थ स्थान (मेष राशि), सप्तम भाव (कर्क राशि) एवं अष्टम भाव (सिंह राशि ) पर होगी। ऐसा जातक प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होता है। जातक के वैवाहिक जीवन में कटुता आती है। ऐसा जातक अपने शत्रुओं का दमन करने में सक्षम होता है।
निशानी – जातक बहुत अच्छा वक्ता होगा तथा उसकी वाणी ओजस्वी होगी।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को तेजस्वी, क्रोधयुक्त एवं रक्तवर्णीय बनाता है।
2. मंगल + चंद्र – यहां प्रथम स्थान में दोनों ग्रह मकर राशि में होंगे। मकर राशि में
मंगल उच्च का होगा जिसके कारण ‘रुचक योग’ बनेगा। फलत: ‘महालक्ष्मी योग’ बना। यहां बैठकर दोनों ग्रह चतुर्थ भाव (मेष राशि), सप्तम भाव (कर्क राशि) एवं अष्टम भाव ( सिंह राशि ) को देखेंगे। फलतः जातक महाधनी होगा। जातक को शानदार भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी। जातक लम्बी उम्र का स्वामी होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध होने से जातक परम भाग्यशाली एवं बुद्धिशाली होगा । रचनात्मक बुद्धि का स्वामी होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति की युति होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा जिसके कारण जातक राजा के समान पराक्रमी, गम्भीर एवं धार्मिक होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को प्रबल राजयोग देगा। जातक राजसरकार में ऊंचा पद प्राप्त करेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनायेगा। जातक निश्चित रुप से राजा होगा। उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली व आकर्षक होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु होने से जातक बड़ा हठी व दम्भी होगा। जातक दुश्मनों को दहलाने वाला होगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक को घबरायेंगे। शत्रुहन्ता बनायेगा ।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश द्वितीय स्थान में
मकरलग्न में मंगल चतुर्थेश एवं लाभेश होने से अशुभ है, फलतः यहां मंगल मारकेश का काम करेगा। द्वितीय स्थान में मंगल कुंभ राशि में होगा । मंगल यहां मेष राशि से ग्यारहवें तथा वृश्चिक राशि से चौथे स्थान पर होगा। ऐसा जातक धनवान होता है तथा सब प्रकार के संसाधनों से युक्त होता है । ऐसा जातक धर्मात्मा एवं सुखी होता है।
दृष्टि – द्वितीयस्थ मंगल की दृष्टि पंचम भाव (वृष राशि), अष्टम भाव ( सिंह राशि) एवं नवम भाव (कन्या राशि) पर होगी। जातक के संतान सुख में बाधा आयेगी। जातक अनैतिक कार्यों से धन कमायेगा। जातक का भाग्योदय संघर्ष के साथ होगा।
निशानी – जातक को प्रथम संतति हाथ नहीं लगेगी। एकाध गर्भस्राव अवश्यम्भावी है। दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा अच्छी जायेगी। मंगल की दशा में धन, यश, पद व सम्मान मिलेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य धन प्राप्ति में 50% कटौती करेगा। जातक के पास चल सम्पत्ति के बनिस्पत स्थाई सम्पत्ति ज्यादा होगी।
2. मंगल + चंद्र – यहां द्वितीय स्थान में दोनों ग्रह कुंभ राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम स्थान (वृष राशि) भाग्य भाव (सिंह राशि) एवं दशम भाव (तुला राशि) को देखेंगे। फलतः जातक धनवान एवं सौभाग्यशाली होगा। जातक का राजनीति (सरकार) में दबदबा होगा। जातक का आर्थिक विकास प्रथम संतति के बाद होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध होने से जातक भाग्यशाली होगा। जो भी वचन बोलेगा, सोच-समझकर जिम्मेदारी के साथ बोलेगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति होने से मित्रों से फायदा देगा। जातक धार्मिक एवं सिद्धान्तवादी सोच वाला होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को राजयोग दिलायेगा। जातक धनी होगा व कुटम्बियों से प्रेम रखेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि होने से जातक महाधनी होगा। ऐसे जातक का बैंक बैलेन्स सुदृढ़ होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु होने से जातक के स्थाई सम्पत्ति में विवाद करायेगा ।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक के धन संग्रह में बाधक है।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश तृतीय स्थान में
यहां पर मंगल तृतीय स्थान में मीन (मित्र) राशि में होगा। ऐसे व्यक्ति स्वाभिमानी होते हैं तथा । बाहुबल में विश्वास रखते हैं। जातक का शौर्य, पराक्रम एवं जनसम्पर्क सघन होगा। जातक के भाई होंगे पर भाइयों से उसकी बनेगी नहीं। यदि लग्नेश शनि या शुक्र की स्थिति ठीक हो तो जातक बड़ा व्यवसायी एवं उद्योगपति होता है।
दृष्टि – तृतीयस्थ मंगल की दृष्टि छठे स्थान (मिथुन राशि ) भाग्य स्थान (कन्या राशि) एवं दशम स्थान (तुला राशि) पर होगी। फलतः ऋण व शत्रुओं का नाश होगा भाग्योदय 28 वर्ष की आयु के बाद होगा। जातक की आजीविका के साधन सुदृढ़ होंगे। जातक को खूब धन, यश व प्रतिष्ठा मिलेगी।
निशानी – ऐसे जातक को शूल रोग होगा। जातक युद्ध प्रिय होगा तथा वह शत्रुओं को परास्त करके कीर्ति अर्जित करेगा।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा पराक्रम बढ़ायेगी एवं शुभ फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को प्रबल पराक्रमी बनायेगा पर जातक को बड़े भाई का सुख प्राप्त नहीं होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां तृतीय स्थान में दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि षष्टम् स्थान (मिथुन राशि ), भाग्य भवन (कन्या राशि ) एवं दशम भाव (तुला राशि) पर होगी। फलत: जातक धनवान होगा। जातक ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक सौभाग्यशाली होगा। जातक का राजनीति (सरकार) कोर्ट-कचहरी में वर्चस्व रहेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ नीच का बुध जातक को भाई-बहनों एवं इष्ट मित्रों का सुख देगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ स्वगृही गुरु जातक को मित्रों से, परिजनों से लाभ दिलायेगा । जातक पराक्रमी होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ उच्च का शुक्र जातक की कीर्ति को पराकाष्ठा पर ले जायेगा। जातक का राजनीति में सीधा हस्तक्षेप होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि होने से जातक प्रबल पुरुषार्थी होगा एवं परिश्रम से अपना भाग्य चमकायेगा ।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु भाइयों में विग्रह-विवाद पैदा करेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु परिजनों में विद्वेष पर अन्य समाज में कीर्ति देगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश चतुर्थ स्थान में
यहां चतुर्थ स्थान में मेष राशि का मंगल स्वगृही होगा। मंगल इस स्थिति में कुण्डली ‘मांगलिक’ होगी तथा ‘रुचक योग भी बनेगा। ऐसा जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा। जातक उच्च श्रेणी का उद्योगपति होगा। बड़ी भू-सम्पत्ति व जमीन का स्वामी होगा। उच्च वाहन होंगे पर पत्नी के पूर्ण सुख का अभाव रहेगा।
दृष्टि – चतुर्थ भावगत मंगल की दृष्टि सप्तम भाव (कर्क राशि), दशम भाव (तुला राशि) एवं एकादश भाव अपने स्वयं के घर वृश्चिक राशि पर होगी। विवाह में विलम्ब होगा व राज्य सरकार में वर्चस्व रहेगा एवं जातक व्यापार व्यवसाय से खूब धन अर्जित करेगा।
निशानी – ऐसा जातक मातृकुल व कृषि से धन पाता है, तीर्थयात्रा करता है तथा सुखी होता है।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक को भूमि लाभ होगा। कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी। व्यापार में लाभ होगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ उच्च का सूर्य ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनायेगा । ‘रविकृत राजयोग’ के कारण जातक को माता-पिता की सम्पत्ति, बढ़िया भवन एवं चार पहियों का बढ़िया वाहन मिलेगा। जातक निश्चय ही राजा या राजातुल्य पराक्रमी पुरुष होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां चतुर्थ स्थान में दोनों ग्रह मेष राशि में होंगे। मंगल यहां स्वगृही होने से ‘रुचक योग’ बनेगा एवं ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव (कर्क राशि), दशम भाव (तुला राशि) एवं एकादश भाव ( वृश्चिक राशि) को देखेंगे। फलत: जातक महाधनी होगा। व्यापार-व्यवसाय से लाभ होगा। विवाह के बाद जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न होगा एवं उसे जातक राजनीति में उच्च पद को प्राप्त करेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को उत्तम वाहन देगा। उसके पास एक से अधिक वाहन होंगे।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु मित्रों से लाभ देने के साथ-साथ जातक को धार्मिक बुद्धि भी देगा। जातक जिम्मेदार व्यक्ति होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को अनेक वाहन देगा एवं माता की सम्पत्ति दिलायेगा। भूमि से लाभ दिलायेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं धनी होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु होने से माता की अकाल मृत्यु देगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक की माता को लम्बी बीमारी देगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश पंचम स्थान में
पंचम स्थान में मंगल वृष राशि में होता है। ऐसा जातक विद्यावान् होगा । अर्थकरी विद्या का ज्ञाता एवं व्यवहारिक ज्ञान से भरपूर होगा। ऐसा जातक सर्वजनप्रिय, गुणी, मानी एवं अपने खुद के पुरुषार्थ से धन कमाकर महाधनी होगा ।
दृष्टि – पंचम भावगत मंगल की दृष्टि अष्टम स्थान (सिंह राशि), लाभ स्थान, अपने ही घर वृश्चिक राशि एवं व्यय भाव (धनु राशि) पर होगी। फलत: जातक शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा तथा व्यापार-व्यवसाय के द्वारा खूब धन कमायेगा। ऐसा जातक उदार मनोवृत्ति के कारण खर्च भी खूब करेगा। तीर्थ यात्रा, परोपकार पर रुपया खर्च करेगा।
निशानी – जातक पुत्रवान होगा। पुत्र सुखी होगा।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य एकाध पुत्र की मृत्यु का कारण बनेगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां पंचम स्थान में दोनों ग्रह वृष राशि में होंगे। वृष राशि में चंद्रमा उच्च का होगा फलतः यहां ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि अष्टम भाव (सिंह राशि) लाभ स्थान (वृश्चिक राशि) एवं व्यय भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः ऐसा जातक महाधनी होगा। जातक व्यापार-व्यवसाय से धन कमायेगा। जातक लम्बी उम्र का स्वामी होगा। जातक थोड़ा खर्चीले स्वभाव का होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को कम्प्यूटर की तरह तेज बुद्धि देगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु पुत्र संतान एवं आध्यात्मिक ज्ञान देगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ स्वगृही शुक्र जातक को राजयोग देगा। जातक राजनीति में प्रभावशाली व्यक्ति होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि परिश्रम का लाभ देगा। जातक धनी होगा एवं उसकी संतति भी धनवान होगी।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु संतान सुख में बाधक है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु विद्या में रुकावट देगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश षष्टम स्थान में
छठे स्थान में मंगल मिथुन राशि में होगा । मंगल की इस स्थिति में ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनेगा। ऐसा जातक रोगी होता है। क्रूर, विनाशक बुद्धि से प्रेरित रहता है एवं शत्रुओं से पीड़ित रहता है। जीवन में संघर्ष की स्थिति बनी रहती है।
दृष्टि – षष्टमस्थ मंगल की दृष्टि भाग्य स्थान (कन्या राशि) व्यय स्थान (धनु राशि) एवं लग्न स्थान (मकर राशि) पर होगी। जातक को भाग्योदय हेतु संघर्ष करना पड़ेगा। धन व्यर्थ में खर्च होगा। जातक को पुरुषार्थ परिश्रम का फल बराबर नहीं मिलेगा।
निशानी – जातक माता के सुख से हीन होता है। जातक को ब्लड प्रेशर रहता है।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा अनिष्ट फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य सरल नामक ‘विपरीत राजयोग’ देगा। जातक धनी होगा। पर भूमि को लेकर मुकदमेबाजी होगी।
2. मंगल + चंद्र – यहां षष्टम् स्थान में दोनों ग्रह मिथुन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि भाग्य स्थान (कन्या राशि) व्यय भाव (धनु राशि) एवं लग्न स्थान (मकर राशि) पर होगी। चंद्रमा के कारण ‘विवाहभंग योग’ एवं मंगल के छठे जाने से ‘सुखहीन योग’ व ‘लाभभंग योग’ बनेगा। ऐसा जातक धनवान तो होगा परन्तु सुख-ऐश्वर्य में कमी एवं लाभ में कमी महसूस करेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध होने से हर्ष नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनी होगा पर उसकी किस्मत संघर्ष के बाद चमकेगी।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु ‘पराक्रम भंग योग’ के साथ विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा। पर उसे अपयश मिलता रहेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘संतानहीन योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनायेगा। जातक की प्रारंभिक विद्या में रुकावट आयेगी ।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘धनहीन योग’ बनायेगा। जातक को आर्थिक विषमता से जूझना पड़ेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु अंग पीड़ा देगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु पैरों में कष्ट होगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश सप्तम स्थान में
यहां सप्तम स्थान में मंगल नीच का होगा । कर्क राशि के 28 अंशों में मंगल परम नीच का होगा। मंगल की इस स्थिति से कुण्डली ‘मांगलिक’ हो गई है। फलतः विवाह में विलम्ब होगा या गृहस्थ सुख में बाधा रहेगी। विवाह होने के बाद जातक पत्नी से दबा रहेगा। जातक सभा में गूंगे के समान तथा कामी होगा।
दृष्टि – सप्तमस्थ मंगल की दृष्टि दशम भाव (तुला राशि), लग्न स्थान (मकर राशि) एवं धन स्थान (कुंभ राशि) पर होगी। जातक का राज सरकार में प्रभाव रहेगा। जातक को पुरुषार्थ का लाभ मिलेगा। जातक धनी होगा। भूमि में धन, गुप्त समझौतों से लाभ मिलेगा।
निशानी – जातक की अपने जीवनसाथी के साथ सदैव कलह रहेगा। अहम् की टकराहट होती रहेगी।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य वैवाहिक सुख में बाधक है।
2. मंगल + चंद्र – यहां सप्तम स्थान में दोनों ग्रह कर्क राशि में होंगे। मंगल यहां नीच का एवं चंद्रमा स्वगृही होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव (तुला राशि), लग्न भाव (मकर राशि) एवं धन भाव (कुंभ राशि) को देखेंगे। फलतः यहां ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। जातक महाधनी होगा। वह जो भी कार्य हाथ में लेगा उसमें उसे बराबर सफलता मिलेगी। जातक का राज्य (सरकार) पक्ष में दबदबा होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक के भाग्योदय में वृद्धि करायेगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा । जातक राजा के समान पराक्रमी होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र विद्या में बढ़ोतरी करायेगा। राजयोग में लाभ करायेगा। विवाह के बाद जातक की उन्नति होगी।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘लग्नाधिपति योग’ बनायेगा। जातक को परिश्रम का पूरा-पूरा लाभ मिलेगा। जातक सफल व्यक्ति होगा ।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु पति-पत्नी में विवाद व कलह करायेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु विवाह सुख में न्यूनता उत्पन्न करेगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश अष्टम स्थान में
यहां अष्टम स्थान में मंगल सिंह (मित्र) राशि में होगा। मंगल की इस स्थिति में होने से कुण्डली ‘मांगलिक’ कहलायेगी। मंगल की इस स्थिति से ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनता है। ऐसे जातक का जीवन संघर्षशील रहेगा। जातक जिस काम में हाथ डालेगा, नुकसान होगा। ऐसे जातक को माता-पिता का अल्प सुख मिलता है। जातक मकान के सुख से हीन होता है तथा परिश्रम के फल न मिलने से जातक नपुसंक के समान हो जाता है।
दृष्टि – अष्टमस्थ मंगल की दृष्टि लाभ स्थान (वृश्चिक राशि ) धन भाव (कुंभ राशि) एवं पराक्रम भाव (मीन राशि) पर होगी। फलतः लाभ में रुकावट, धन की हानि एवं पराक्रम भंग होने का भय बना रहेगा।
निशानी – ऐसा जातक विधुर होगा। उसकी पत्नी का मरण उसके सामने होगा।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा अशुभ फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य स्वगृही होकर सरल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा पर वह भूमि विवाद में उलझ सकता है।
2. मंगल + चंद्र – यहां अष्टम स्थान में दोनों ग्रह सिंह राशि में होंगे। चंद्रमा के कारण यहां ‘विवाहभंग योग’ बनेगा। मंगल अष्टम में होने से ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभ स्थान (वृश्चिक राशि), धन भाव (कुंभ राशि) एवं पराक्रम भाव (मीन राशि) को देखेंगे।
ऐसा जातक धनवान तो होगा पर उसको सुख एवं लाभ में कमी महसूस होती रहेगी। मंगल बुध मंगल के साथ बुध हर्ष नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। ऐसा जातक धनी होगा। जातक के विवाह में विलम्ब संभव है।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध हर्ष नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा एवं उसके विवाह में देरी सम्भव है ।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति ‘पराक्रम भंग योग’ एवं विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा एवं उसे अपयश मिलेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘राजभंग योग’ व ‘संतानहीन योग’ बनायेगा । जातक को संतान संबंधी परेशानी रहेगी। पत्नी से मनमुटाव रहेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘ धनहीन योग’ बनायेगा । जातक को परिश्रम का यथेष्ट लाभ नहीं मिलेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु गुप्त बीमारी देगा व अचानक दुर्घटना करायेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु मानसिक तनाव देगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश नवम स्थान में
नवम स्थान में मंगल कन्या राशि में होगा ऐसा जातक भाग्यशाली होता है। ऐसा जातक बहुत चतुर चालाक एवं सिद्धान्तवादी होगा। जातक राजा के द्वारा सम्मानित होगा एवं धनवान होगा।
दृष्टि– नवमस्थ मंगल की दृष्टि व्यय भाव (धनु राशि), पराक्रम स्थान (मीन राशि) एवं चतुर्थ स्थान (मेष राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का एवं पराक्रमी होगा। मित्र बहुत होगें। वाहन का सुख जातक को प्राप्त होगा। बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा।
निशानी – जातक बाल्यवस्था में बीमार होगा तथा पिता की सम्पत्ति को तुच्छ समझेगा। सहोदरभ्राता एवं पिता से जातक के विचार नहीं मिलेंगे।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को अतुल तेज व पराक्रम देगा।
2 मंगल + चंद्र – यहां नवम स्थान में दोनों कन्या राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव (धनु राशि) पराक्रम भाव (मीन राशि) एवं चतुर्थ स्थान (मेष राशि) को देखेंगे। ऐसा जातक धनवान होगा। उसे जीवन में सभी भौतिक सुख-सुविधाओं एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी। जातक महान पराक्रमी होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को सौभाग्यशाली बनायेगा। जातक बुद्धिबल से आगे बढ़ता हुआ शत्रुओं को परास्त करेगा ।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जातक को मित्रों, परिजनों से लाभ एवम वांछित सहयोग दिलायेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र भले ही नीच का हो जातक को राजयोग देगा तथा प्रभावशाली बनायेगा ।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि जातक को माता की सम्पत्ति एवं भूमि लाभ देगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु होने से जातक पिता की सम्पत्ति ठुकरा देगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक को पुरुषार्थ से लाभ एवं तेजस्विता देगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश दशम स्थान में
यहां दशम स्थान में मंगल तुला राशि में होगा। मंगल यहां स्वगृहाभिलाषी एवं ‘दिग्बली’ है। मंगल की यह स्थिति सर्वाधिक शक्तिशाली होकर ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि कर रही है। जातक अपने परिवार कुटुम्ब का नाम दीपक के समान रोशन करता हुआ अनेक शुभ को प्राप्त करेगा। जातक राजा द्वारा पूजित होगा तथा उसे सरकारी सम्मान मिलेगा ।
दृष्टि – दशमस्थ मंगल की दृष्टि लग्न स्थान (मकर राशि), चतुर्थ भाव (मेष राशि) एवं पंचम भाव (वृष राशि) पर होगी। जातक को परिश्रम का पूरा लाभ मिलेगा। जातक के पास उच्च वाहन एवं प्रचुर भूमि होगी। जातक को पुत्र सुख जरूर प्राप्त होगा।
निशानी – जातक अर्थकारी विद्या का जानकार एवं अनुभवी विद्वान होगा।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक की उन्नति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य नीच का होगा। जातक को राज दरबार में सम्मान मिलेगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां दशम स्थान में दोनों ग्रह तुला राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह लग्न स्थान (मकर राशि) चतुर्थ भाव (मेष राशि) एवं पंचम भाव (वृष राशि) को देखेंगे।
फलतः जातक धनवान होगा। जातक को जीवन के प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी तथा ऐशो-आराम एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। मंगल यहां दिक्बली होकर ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा । जातक की आर्थिक उन्नति प्रथम संतति के बाद होगी।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध होने से जातक को व्यापार में लाभ, भूमि-भवन में लाभ होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति जातक को मित्रों से लाभ देगा। जातक धार्मिक एव पराक्रमी होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘मालव्य योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘शश योग’ बनायेगा। ऐसा जातक स्वयं राजा व राजपुरुष से कम नहीं होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु राजकाज में बाधक है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु का होना सरकारी कार्य में विघ्न डालेगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश एकादश स्थान में
एकादश स्थान में मंगल वृश्चिक राशि का स्वगृही होगा। ऐसा जातक अनेक प्रकार के धंधे करेगा। सभी धंधों में उसे थोड़ा-थोड़ा लाभ मिलता रहेगा। जातक के पास बड़ा मकान होगा। जातक बड़ा व्यवसायी व उद्योगपति होगा ।
दृष्टि – एकादश भावगत मंगल की दृष्टि धन स्थान (कुंभ राशि), पंचम भाव (वृष राशि) एवं छठे स्थान (मिथुन राशि ) पर होगी। फलत: जातक धनी होगा। जातक उत्तम संतति का स्वामी होगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। रोग व ऋण पास नहीं आयेंगे।
निशानी – जातक के प्रथम पुत्र होगा। कन्या भी होगी। दोनों का सुख रहेगा।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य लाभ में रुकावट डालेगा। जातक की भागीदारों से नहीं निभेगी।
2. मंगल + चंद्र – यहां एकादश स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में होंगे। चंद्रमा यहां नीच का तो मंगल स्वगृही होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बना फलतः ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि हुई। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन भाव (कुंभ राशि). पंचम भाव (वृष राशि) एवं षष्टम भाव ( मिथुन राशि ) को देखेंगे। फलत: जातक महाधनी होगा। जातक ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा । जातक का आर्थिक विकास प्रथम संतति के जन्म के बाद होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध भाग्योदय कारक है। जातक उद्योगपति होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति मित्रों से लाभ दिलायेगा ।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र विद्या योग तथा राजकीय लाभ देगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि जातक को उद्योग से धन देगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु व्यापार में नुकसान देगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु व्यापार में तनाव देगा।
मकरलग्न में मंगल का फलदेश द्वादश स्थान में
द्वादश स्थान में मंगल धनु राशि में होगा। मंगल की इस स्थिति से कुण्डली ‘मांगलिक’ बनेगी। मंगल की इस स्थिति से ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग ‘योग’ बना। जातक को जीवन में संघर्ष ज्यादा करना पड़ेगा। जातक गृह सुख से हीन, दुर्व्यसनी व आलसी होता है। ऐसे जातक को विदेश यात्रा, प्रवास का योग अधिक होगा।
दृष्टि – द्वादश भावगत मंगल की दृष्टि पराक्रम स्थान (मीन राशि), छठे भाव (मिथुन राशि) एवं सप्तम भाव (कर्क राशि) पर होगी। जातक पराक्रमी होगा। जातक के शत्रु बहुत होंगे। जातक के विवाह सुख में बाधा आयेगी ।
निशानी – जातक की मित्रता म्लेच्छों (निम्न वर्ग के लोगों) से ज्यादा होगी।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा अशुभ फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य होने से जातक के गृहस्थ जीवन के उत्तम फल, सभी सुख नष्ट हो जायेंगे।
2. मंगल + चंद्र – यहां द्वादश भाव में दोनों ग्रह धनु राशि में होंगे। जहां बैठकर दोनों
ग्रह तृतीय भाव (मीन राशि), षष्टम् भाव ( मिथुन राशि ) एवं सप्तम भाव ( कर्क राशि) को देखेंगे। चंद्रमा के कारण ‘विवाहभंग योग’ मंगल के कारण ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ भी बनेगा। ऐसा जातक धनवान तो होगा परन्तु सुख एवं लाभ में कमी महसूस करता रहेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध ‘भाग्यहीन योग’ एवं ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा पर परेशान रहेगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ बृहस्पति स्वगृही होकर विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा । जातक धनी मानी एवं ऐश्वर्यशाली जीवन जीयेगा ।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘राजभंग योग’ एवं ‘संतानहीन योग’ बनायेगा। जातक को आर्थिक परेशानी एवं संतान संबंधी चिंता रहेगी।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘ धनहीन योग’ बनाता है। जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु अचानक दुर्घटना करा सकता है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु शारीरिक कष्ट एवं मानसिक कष्ट का सूचक है।
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