कुंभ लग्न में केतु का फलादेश

लग्नेश शनि की राशि कुंभ में केतु हर्षित-प्रमुदित रहता है। अतः कुंभ लग्न में केतु जहां स्थित होगा वहां शुभफल देगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश प्रथम स्थान में

केतु यहां प्रथम स्थान में कुंभ राशि का होकर मित्रक्षेत्री होगा। ऐसा व्यक्ति बड़ा हिम्मती, गुप्त शक्ति सम्पन्न, धैर्यवान तथा परिश्रमी होता है। ऐसा जातक अपने आपको स्थापित करने के लिए अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए कठोर प्रयत्न करता है और उसमें सफल होता है। ऐसा जातक समाज में उचित मान-सम्मान व प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है।

दृष्टि – लग्नस्थ केतु की दृष्टि सप्तम भाव (सिंह राशि) पर होगी। फलत: गृहस्थ जीवन में थोड़ा कलह (विवाद) रहेगा।

निशानी – ऐसे जातक के शरीर व चेहरे पर किसी चोट या घाव का चिह्न होगा। जिससे शारीरिक सौन्दर्य में कमी आयेगी।

दशा – केतु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी। जातक की उन्नति होगी। परिश्रम के माध्यम से जातक आगे बढ़ेगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक का मनोबल क्षीण करेगा। जातक किसी निर्णय तक नहीं पहुंचा पायेगा।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक का आत्मबल कमजोर करेगा। जातक को पैतृक दोष रहेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को भाइयों एवं भूमि में विवाद से उलझायेगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक की बुद्धि भ्रमित करेगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को नास्तिक बनायेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को धूर्त व लम्पट बनायेगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को हठी व जिद्दी बनायेगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश द्वितीय स्थान में

केतु यहां द्वितीय स्थान में मीन राशि होकर स्वगृही होगा। ऐसे जातक को धन की कमी का सामना करना पड़ेगा। कुटुम्ब में भी क्लेश व उपद्रव रहता है पर जातक अपने कठोर परिश्रम व न्याय के मार्ग पर चलकर धन प्राप्ति के प्रयत्नों में सफलता प्राप्त करता है। जातक अपनी किस्मत खुद चमकता है।

दृष्टि – द्वितीय भावगत केतु की दृष्टि अष्टम स्थान (कन्या राशि) पर होगी। ऐसा जातक अपने शत्रुओं को समाप्त करने में सफल होता है।

दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा थोड़ी आर्थिक कठिनाइयों के साथ जातक को आगे बढ़ायेगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा निर्णय शक्ति मनोबल कमजोर करेगा। धन का अकारण खर्च व्यर्थ के काम में होगा।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य आत्मबल कमजोर करेगा। जातक की वाणी अप्रिय होगी।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को लड़ाकू स्वभाव देगा। जिससे शत्रु पैदा होंगे।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक के विद्याध्ययन में बाधक होगा। वाणी में लड़खड़ाहट होगी।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को धनी बनायेगा। पर खर्च अधिक होता रहेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र होने से जातक महाधनी होगा पर रुपयों के खर्च पर नियंत्रण नहीं होगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि व्यर्थ के खर्च देगा तथा परिश्रम का लाभ नहीं होने देगा। ऐसा व्यक्ति परम स्वार्थी होता है।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश तृतीय स्थान में

केतु यहां तृतीय स्थान में मेष राशिगत होकर मित्रक्षेत्री होगा। जातक के पराक्रम की अत्यधिक वृद्धि होगी। जातक बड़ा पुरुषार्थी, हिम्मतवाला, धैर्यवान् तथा साहसी होगा। पर भाई-बहनों में थोड़ी मनोमालिन्यता रहेगी। ऐसा जातक अनेक युक्तियों से समाज में अपना विशिष्ट स्थान बनाकर, पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान प्राप्त कर यशस्वी होता है।

दृष्टि – तृतीयस्थ केतु की दृष्टि नवमभाव (तुला राशि) पर होगी। जातक भाग्यशाली होगा। गुप्त शक्तियों से सम्पन्न होगा।

निशानी – केतु यहां शुभ फल देगा।

दशा – केतु की दशा अंतर्दशा में जातक का पराक्रम बढ़ेगा। जातक को यश-सम्मान, धन की प्राप्ति होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक को पराक्रमी बनायेगा, यशस्वी बनायेगा।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य उच्च का जातक को परम पराक्रमी बनायेगा पर बड़े भाई का सुख नहीं होगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल स्वगृही होने से जातक के तीन भाई होंगे। जातक कीर्तिवान् होगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को मित्रों से लाभ एवं जनसम्पर्क से यश दिलायेगा |

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति होने से मित्रों व परिजनों से सहयोग मिलता रहेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र होने से जातक को स्त्री मित्रों से लाभ रहेगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि नीच का होने से मित्रों में मनमुटाव एवं दोस्ती स्थाई नहीं होगी।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश चतुर्थ स्थान में

केतु यहां चतुर्थ स्थान में वृष राशि का होकर नीच का होगा। ऐसे जातक को माता के पक्ष में हानि उठानी पड़ती है। मातृ (जन्म) भूमि से वियोग भी होता है भूमि, मकान, वाहन आदि के सुख में कमी महसूस होती है, परन्तु जातक अपनी गुप्त शक्तियों व युक्तियों से मकान, वाहन, भूमि का सुख प्राप्त करने में सफल होता है।

दृष्टि – चतुर्थभावगत केतु की दृष्टि दशम भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: रोजी-रोजगार संबंधी कार्यों में प्रारंभिक परेशानियां आयेगी।

दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा में भौतिक उपलब्धियों व सुखों की प्राप्ति होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ उच्च का चंद्रमा जातक को भौतिक सुख-सुविधाएं देगा पर माता को टी.बी. होगी।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य पत्नी से मनोमालिन्यता देगा। पिता से विचार नहीं मिलेगे।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल वाहन दुर्घटना दे सकता है।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध रुकावट के साथ विद्या डिग्री मिलेगी।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति धन हानि या धन खर्च भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए करायेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘मालव्य योग’ बनायेगा। जातक धनी होगा तथा ऐशो-आराम, मौज-शौक हेतु रुपया खर्च करेगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि परिश्रम में रुकावट डालेगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश पंचम स्थान में

केतु यहां पंचम स्थान में मिथुन राशिगत होकर नीच का होगा। ऐसे जातक को विद्याध्ययन के क्षेत्र में प्रारंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। जातक को संतानसुख की प्राप्ति हेतु आयुर्वेद व ईश्वर की कृपा का सहारा लेना पड़ेगा। जातक अपनी विशेष बुद्धि, पुरुषार्थ व धैर्य से पंचम भाव के शुभ फलों का प्राप्त करेगा।

दृष्टि – पंचमस्थ केतु की दृष्टि एकादश भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः बड़े भाई का सुख कमजोर होगा।

निशानी – जातक की प्रथम संतति शल्यचिकित्सा से होगी। एकाध गर्भपात संभव है।

दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी। नई जानकारियां मिलेगी। जातक नये अनुसंधान का लाभ उठायेगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा विद्या एवं संतान सुख में बाधक है।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य पत्नी एवं संतान सुख में न्यूनता लायेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल गर्भपात करायेगा। बड़े भाई का सुख नहीं होगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को प्रजावान बनायेगा परन्तु पुत्र संतति को लेकर चिंता रहेगी।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को विद्या सुख देगा पर संघर्ष के साथ पुत्र रत्न भी देगा पर उपाय के बाद।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को रसिक मिजाज का बनायेगा। जातक का वीर्य दूषित होगा। पुत्र को लेकर चिंता रहेगी।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को परिश्रम का लाभ नहीं होने दूंगा। जातक विदेशी भाषा पढ़ेगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश षष्टम स्थान में

केतु यहां छठे स्थान में कर्क राशिगत होकर शत्रुक्षेत्री होगा। ऐसे जातक को शत्रुपक्ष में अशान्ति रहेगी परन्तु वह उन पर अपना प्रभाव स्थापित करने में एवं विजय प्राप्त करने में विशेष सफलता प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति मनोबल एवं युक्ति बल से शत्रुओं को मात देता है। गुप्त रोग की संभावना रहेगी पर शल्य चिकित्सा द्वारा लाभ होगा।

दृष्टि – षष्टम भावगत केतु की दृष्टि व्ययभाव (मकर राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा एवं व्यर्थ यात्राएं बहुत करेगा।

निशानी – केतु यहां शुभ फल देगा।

दशा – केतु की दशा अंतर्दशा में शत्रुओं का नाश होगा। रोग का भी नाश होगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा ‘विपरीत राजयोग’ के कारण जातक को धनी तो बनायेगा पर जलभय का खतरा, मानसिक परेशानी सदैव बनी रहेगी।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य पितृदोष देगा। पत्नी से विचार कम मिलेगे।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल ‘पराक्रम भंग’ करेगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध संतान में बाधा। विद्या में रुकावट का संकेत दे रहा है।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति उच्च का जातक को धीमी गति से धन प्राप्ति करायेगा। जातक के निन्दक बहुत होंगे।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र गुप्तेन्द्रि में रोग देगा। वीर्य दूषित होगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ के कारण परिश्रम के लाभ देने में बाधक ग्रह का काम करेगा। यद्यपि ‘विपरीत राजयोग’ के कारण जातक धनी होगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश सप्तम स्थान में

केतु यहां सप्तम स्थान में सिंह राशि का होकर मूल त्रिकोणी कहलायेगा। ऐसे जातक को स्त्री-पक्ष व गृहस्थ सुख की प्राप्ति हेतु थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। उसे घर की जिम्मेदारी वहन करने में भी कठिनाइयों का मुकाबला करना पड़ेगा। साथ ही जननेंद्रियों में विकार भी संभव है। परन्तु कोई बड़ी मुसीबत नहीं होगी। जातक सफल गृहस्थी होगा।

दृष्टि – सप्तम भावगत केतु की दृष्टि लग्न स्थान (कुंभ राशि) पर होगी। जातक को व्यापार-व्यवसाय को जमाने में बार-बार परिवर्तन करते हुए अन्त में सफलता प्राप्त करेगा।

निशानी – जातक का अन्य स्त्रियों से सम्पर्क रहेगा।

दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा वैवाहिक सुख में मनोमालिन्यता उत्पन्न करेगा।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक की पत्नी को धनवान अथवा आत्मनिर्भर बनायेगा। जिससे अहंकार का परस्पर टकराव होता रहेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल होने से जातक क्रूर स्वभाव का एवं अत्यधिक कामी होगा। जिससे पति-पत्नी के मध्य घर्षण होता रहेगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध होने से पति-पत्नी के मध्य हल्का-सा बौद्धिक तनाव रहेगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति ससुराल से लाभ का संकेत देता है। पत्नी धार्मिक होगी।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र होने से जातक उच्छृंखल मनोवृत्ति वाला होगा। फिर भी गृहस्थी निभ जायेगी।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि होने के कारण जातक को परिश्रम का फल तो मिलेगा परन्तु पति-पत्नी में शत्रुतापूर्ण मानसिकता रहेगी।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश अष्टम स्थान में

केतु यहां अष्टम स्थान में कन्या राशिगत होकर नीच का होगा। ऐसे जातक की आयु में वृद्धि होती है पर जीवन में अनंके बार मृत्यु तुल्य कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति गुप्त युक्तियों के सहारे विषम परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर लेता है।

दृष्टि – अष्टम भावगत केतु की दृष्टि धनभाव (मीन राशि) पर होगी। ऐसे जातक को धन संग्रह करने में भारी संघर्ष करना पड़ता है। धन की बरकत नहीं होती।

दशा – केतु की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक को मानसिक विषमता एवं मातृदोष देगा। जातक की निर्णय शक्ति कमजोर होगी।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को पितृदोष से ग्रसित करेगा। आत्मबल कमजोर होगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को गुस्सैल बनायेगा। जातक को भाइयों से कम बनेगी।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को प्रजावान तो बनायेगा, पर पुत्र संतति की चिंता रहेगी।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति ‘धनहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बना रहा है। जातक आर्थिक रुप से परेशान रहेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को सैक्स संबंधी रोग देगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि परिश्रम का लाभ नहीं होने देगा। जातक को जन्म स्थान में भी लाभ नहीं होगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश नवम स्थान में

केतु यहां नवम स्थान में केतु तुला राशि में होकर मित्रक्षेत्री होगा। ऐसे जातक के भाग्योदय में सामान्य बाधाएं आती है। परन्तु जातक गुप्त युक्तियों के बल पर उनको काबू कर सफलता प्राप्त करता है। जातक अपने कठिन परिश्रम बुद्धि चातुर्य एवं धैर्य के द्वारा अपना भाग्योदय खुद करता है।

दृष्टि – नवमभावगत केतु की दृष्टि पराक्रम स्थान (मेष राशि) पर होगी। फलतः सगे भाइयों से मनमुटाव रहेगा।

दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी। जातक उन्नति मार्ग की ओर आगे बढ़ता हुआ सफलता प्राप्त करेगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक के भाग्योदय में बाधक है। मनोबल क्षीण होगा।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ नीच का सूर्य सरकारी नौकरी के योग तोड़ेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल सरकारी ठेके के लाभ को तोड़ेगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक के निर्णय गलत करायेगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को धन लाभ देगा परन्तु धीमी गति से।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र स्वगृही जातक का भाग्योदय स्त्री की सहायता से करायेगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ उच्च का शनि जातक का भाग्योदय आकस्मिक घटना से करायेगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश दशम स्थान में

केतु यहाँ दशम स्थान में वृश्चिक राशिगत होकर उच्च का होगा। ऐसे जातक को पितापक्ष से कष्ट की प्राप्ति होगी। जातक को राज्य क्षेत्र में परेशानियों तथा व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। परन्तु धैर्य, साहस व बुद्धिबल से जातक सब पर काबू कर विजय प्राप्त करता है। व्यापार में उन्नति प्राप्त करने में सफल होता है।

दृष्टि – दशमभावगत केतु की दृष्टि चतुर्थ भाव (वृष राशि) पर होगी। फलतः जातक को माता का सुख नगण्य होगा।

निशानी – केतु यहां शुभ फल देगा।

दशा – केतु की दशा अंतर्दशा में जातक को व्यवसायिक सफलता मिलेगी। जातक धन कमायेगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा नीच का जातक को कमजोर मनोबल एवं विकृत सोच देगा। सरकारी नौकरी में बाधा देगा।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य आत्मबल कमजोर करेगा। सरकारी नौकरी के योग को भंग करेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल ‘रुचक योग’ बनायेगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा। पर सरकारी ठेकेदारी से कमायेगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध सरकारी नौकरी के योग को भंग करेगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति राजयोग देता पर नौकरी कमजोर होगी।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक के वाहन से दुर्घटना देगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को धनपति बनायेगा पर धन खर्च होता चला जायेगा।

कुंभ लग्न में केतु का फलादेश एकादश स्थान में

केतु यहां एकादश स्थान में धनु राशिगत होकर उच्च का होगा। ऐसे जातक की आमदनी में अत्यधिक वृद्धि होगी। जातक को आकस्मिक धन लाभ भी होगा। जातक कठोर परिश्रम एवं निरन्तर उन्नति हेतु प्रयत्नशील रहने के कारण सुखी जीवन जीयेगा।

दृष्टि – एकादश भावगत केतु की दृष्टि पंचम स्थान (मिथुन राशि) पर होगी। जातक को संतान संबंधी रुकावट होगी। विद्या में भी रुकावट संभव है पर उपाय करने पर दोनों अवरोधों से मुक्ति मिलेगी।

दशा – केतु की दशा अंतर्दशा शुभफलदायक है। व्यापार में लाभ एवं वृद्धि करायेगी। जातक को परिश्रम सार्थक होगे।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा व्यापार में रुकावट का संकेत देता है। जातक की निर्णय शक्ति कमजोर होगी।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक का आत्मबल कमजोर करेगा। जातक को व्यापार में राजकीय दिक्कतें आयेगी।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को उद्योगपति बनायेगा पर एक बार चलता उद्योग बन्द होगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को पुत्रवान बनायेगा। परन्तु पुत्र संतान की चिंता रहेगी।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को बड़े भाई का सुख एवं व्यापार में लाभ देगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र व्यापार द्वारा भाग्योदय करायेगा। थोड़े संघर्ष के बाद व्यापार में सफलता मिलेगी।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को कठोर परिश्रमी बनायेगा। परिश्रम के बाद व्यापार में सफलता है।

कुंभ लग्न में केतु का फलदेश द्वादश भाव में

केतु यहां द्वादश स्थान में मकर राशिगत होकर मूलत्रिकोणी होगा, स्वगृही होगा। ऐसे जातक को अधिक खर्च के कारण मानसिक परेशानी रहेगी। परन्तु अपनी गुप्त युक्तियों एवं परिश्रम के बल पर खर्च चलाने की शक्ति प्राप्त करता है। जातक आध्यात्मिक एवं मोक्षमार्ग का जिज्ञासु होता है। जातक जीवन में निराश नहीं होगा।

दृष्टि – द्वादश भावगत केतु की दृष्टि छठे स्थान (कर्क राशि) पर होगी। जातक के गुप्त शत्रु होंगे पर स्वतः ही नष्ट हो जायेगें।

निशानी – ऐसा जातक आध्यात्मिक मार्ग का पथिक होगा। जातक को प्रातःकाल के समय जो स्वप्न आयेगे। सच हो जायेगें।

दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभफल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक को ‘विपरीत राजयोग’ के कारण धनी बनायेगा पर मनोबल कमजोर रहेगा। जातक को बुरे सपने आयेगे ।

2. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक का आत्मबल कमजोर करके उसे नेत्र विकार देगा। जातक को पितृदोष रहेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को गुस्सैल बनायेगा। अक्सर उतावलापन के कारण जातक के काम बिगड़ जायेगें।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को संतान एवं विद्या में रुकावट के बाद सफलता देगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ नीच का बृहस्पति ‘धनहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनायेगा । जातक आर्थिक विषमताओं से त्रस्त रहेगा। नास्तिक होगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। जातक को स्त्री के कारण बदनामी मिलेगी। जातक को भाग्योदय हेतु संघर्ष करना पड़ेगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ स्वगृही शनि ‘लग्नभंग योग’ बनायेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। अधिक खर्च के कारण जातक कर्जदार भी होगा।

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