वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश
वृष लग्न में चंद्रमा तृतीयेश होने से अशुभ फलकारी है।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश प्रथम स्थान में
तृतीयेश चंद्रमा वृष राशि में होकर लग्न में बैठने से उच्च का हो गया है। चंद्रमा केन्द्रस्थ होने से ‘यामिनीनाथ योग’ बना। ऐसा जातक सुन्दर देह, सुन्दर नेत्र, मधुरवाणी, गौरवर्ण, कोमल स्वभाव, बुद्धिमान, सदैव युवा प्रतीत होने वाला, राजा के समान ऐश्वर्यशाली होता है।
दृष्टि – बलवान चंद्रमा की दृष्टि सप्तम भाव (वृश्चिक राशि) पर है। ऐसे जातक का जीवन साथी सुन्दर, आकर्षक, मोहक, शान्त, सौम्य व उदार मनोवृत्ति वाला होता है।
निशानी – जातक की आंखें सुन्दर, बड़ी, आकर्षक एवं उत्तेजित करने वाली होती हैं।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + शुक्र – होने से ‘किम्बहुना योग’ बना क्योंकि शुक्र स्वग्रही होकर ‘मालव्य योग’ बनायेगा तथा चंद्रमा उच्च का रहेगा। इससे अधिक और क्या होगा? अर्थात् ऐसा जातक सुन्दर वाहन, नौकर-चाकर एवं सुन्दर भवन का स्वामी होगा। जातक महान् पराक्रमी होगा।
2. चन्द्र + बृहस्पति – यह युति यहां खिलेगी। गजकेसरी योग के कारण जातक को उत्तम सन्तति, सुन्दर, पतिव्रता स्त्री एवं भाग्योदय के उत्तम अवसर प्राप्त होते रहेंगे।
3. चन्द्र + शनि – चन्द्र, शनि की युति जातक को परम सौभाग्यशाली बनायेगी। जिसके कारण साधारण परिवार में जन्म लेकर भी जातक कीचड़ में कमल की तरह उच्च पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा।
4. चन्द्र + बुध – बलवान् तृतीयेश की धनेश के साथ युति जातक को स्वपराक्रम से अर्जित द्रव्य के कारण धनवान एवं लब्ध प्रतिष्ठित बनायेगी।
5. चन्द्र + मंगल – यह युति यहां महालक्ष्मी योग बनायेगी। मंगल मातृ सुख में वृद्धि करेगा अपने घर (वृश्चिक राशि) को पूर्ण दृष्टि में देखता हुआ सुन्दर पत्नी, पराक्रमी ससुराल देगा। ऐसा जातक अपने शत्रुओं को समूल नष्ट करने में सक्षम होता है।
6. चन्द्र + सूर्य – जातक चन्द्रकृत राजयोग के कारण समस्त सुखों को प्राप्त करेगा।
7. चन्द्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु भी यहां उच्च का होगा फलत: राजयोग देगा। ऐसा जातक हठी, अभिमानी एवं अहंकारी होगा तथा छल-बल से अपना कार्य सिद्ध करने में माहिर होगा।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वितीय स्थान में
चंद्रमा द्वितीय स्थान में अपने पुत्र बुध की मिथुन राशि का होने से शत्रुक्षेत्री है। क्योंकि बुध अपने पिता चन्द्र को अपना शत्रु मानता है। ऐसा जातक विद्या, बुद्धि, लेखन और भाषण कला में प्रवीण होता है पर कई बार अपनी बात को खुद ही काट देता है। ज्यादा धन एकत्रित नहीं कर पाता। धनवान होने की सही स्थिति का पता तो बुध की स्थिति से चलेगा।
दृष्टि – चंद्रमा द्वितीय स्थान में बैठकर अष्टम स्थान धनु राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते हैं। चंद्रमा अपने घर में बारहवें स्थान पर होने के कारण जातक का स्वभाव खर्चीला होगा। धन एकत्रित नहीं हो पाएगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा खर्च कराएगी एवं मिश्रित फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + बुध – जातक को पूर्व अर्जित धन-सम्पत्ति मिलती है। जातक पढ़ा-लिखा, शिक्षित, सभ्य एवं समाज का प्रतिष्ठित व धनी-मानी व्यक्ति होगा।
2. चन्द्र + बृहस्पति – यह युति यहां राजयोग कारक है। ‘गजकेसरी योग’ के कारण जातक धनवान, ऐश्वर्यवान होगा। ऋण, रोग और शत्रुओं का समूल नाश करने में सक्षम होगा।
3. चन्द्र + शुक्र – लग्नेश व पराक्रमेश की युति जातक को अपने द्वारा किए जा रहे प्रयासों में बराबर सफलता देगी। जातक धनवान होगा।
4. चन्द्र + मंगल – यह युति यहां ‘लक्ष्मी योग’ कारक है। जातक को पत्नी द्वारा, ससुराल द्वारा धन की प्राप्ति होती रहेगी। जातक पुत्रवान, भाग्यशाली होगा। 28 वर्ष की आयु में किस्मत का सितारा चमक उठेगा।
5. चन्द्र + सूर्य – सुखेश व तृतीयेश की युति उत्तम भवन एवं वाहन सुख में सहायक है।
6. चन्द्र + शनि – भाग्येश, दशमेश का धन स्थान में होना शुभ संकेत है। जातक अपने पराक्रम से, पुरुषार्थ से स्वयं का भाग्योदय करेगा। भाग्योदय 32 वर्ष की आयु के बाद होगा। जातक व्यापार, व्यवसाय में कमाएगा।
7. चन्द्र + राहु – यहां राहु स्वगृही होगा। फिर भी जातक चाहे जितना कमाए, धन की बरकत नहीं होगी। वाणी त्रुटिपूर्ण होने से शत्रु पैदा होते रहेंगे। सावधानी अनिवार्य है। वाणी पर नियंत्रण रखें।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश तृतीय स्थान में
तृतीयस्थ चंद्रमा कर्क राशि में होने से स्वगृही है। ऐसे जातक महत्वकांक्षी, पराक्रमी, धैर्यवान, उदार, हृदय, भाई-बहनों से सुखी एवं बहुमित्र वाले होते हैं। जातक जाति-समाज या सरकार द्वारा सम्मानित भी होता है।
दृष्टि – तृतीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि भाग्य भवन (मकर राशि) पर होने से जातक का भाग्योदय शीघ्र होगा तथा जीवन में उन्नति का मार्ग निष्कंटक होगा ।
निशानी – जातक बहुत बहनों वाला होता है ।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक की महत्वकांक्षाएं पूरी होंगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + मंगल – जातक थोड़ा उत्साही व उग्र स्वभाव का होगा। धनवान होगा। समाज के धनी वर्ग में अच्छी मित्रता होगी। विवाह के बाद जातक का पराक्रम बढ़ेगा। यह योग सुखदायक है।
2. चन्द्र + शनि – जातक स्वार्थी होगा पर भाग्यशाली होगा। मित्रों की मदद से आगे बढ़ेगा।
3. चन्द्र + राहु – जातक सनकी, स्वार्थी एवं झगड़ालू स्वभाव का होगा। भाइयों व परिजनों से नहीं बनेगी।
4. चन्द्र + सूर्य – इस युति से चंद्रमा बलहीन हो जाएगा। चंद्रमा अपना फल न देकर सूर्य का फल देगा।
5. चन्द्र + बुध – जातक को तीव्र बुद्धिशाली बनाएगा।
6. चन्द्र + शुक्र – आध्यात्मिक शक्ति से युक्त बनाएगा।
7. चन्द्र + केतु – यह युति शुभ है। जातक को धार्मिक एवं आध्यात्मिक शक्ति मिलेगी।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश चतुर्थ स्थान में
चंद्रमा यहां चतुर्थ स्थान में सिंह राशि (अग्नि तत्त्व) में होने से उद्विग्न है। चंद्रमा सूर्य का मित्र होने से जातक माता-पिता का भक्त होगा। जातक धनवान होगा। उसे उत्तम भवन, उत्तम वाहन, उत्तम पत्नी, भाई-बहनों का सुख मिलेगा। जातक विद्वान, साहित्यकार, लेखक, चिंतक, सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं दार्शनिक होकर समाज को नई दिशा देने में सक्षम होगा।
दृष्टि – चतुर्थ स्थान में बैठकर चंद्रमा दशम भाव (कुम्भ राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। फलत: जातक का पिता समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। जातक को शासकीय पदों पर सफलता मिलेगी एवं ऊंचे अफसरों से अच्छे सम्बन्ध होंगे।
निशानी – जातक को जलीय व्यवसाय लाभ होगा। दूध, दूध से निर्मित वस्तुएं, रत्न, दवाइयां, रेडिमेड गार्मेन्ट, फैशन के सामान वगैरह में फायदा रहेगा।
दशा – चंद्रमा की दशा शुभ फल देगी। चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में पदोन्नति, व्यापार व आय के स्रोत में बढ़ोत्तरी होगी। गृह निर्माण होगा, उत्तम वाहन खरीदा जा सकता है।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – यह युति जातक को तीन मंजिला भवन एवं एक से अधिक वाहनों का सुख, नौकर-चाकर का सुख दिलाएगी। ‘रविकृत राजयोग’ के कारण जातक उच्च पद को प्राप्त करेगा।
2. चन्द्र + बुध – यह युति जातक को शिक्षित, वाकपटु एवं अति धनवान बनाएगी।
3. चन्द्र + बृहस्पति – यह युति जातक को महाधनी बनायेगी। राजकेसरी योग के कारण जातक एक सफल व्यक्ति के रूप में उभरेगा।
4. चन्द्र + शुक्र – तृतीयेश व लग्नेश की युति केन्द्र स्थान में जातक मातृ सुख, वाहन सुख देगी एवं जातक का राज्य सरकार में दबदबा भी रहेगा।
5. चन्द्र + शनि – तृतीयेश व भाग्येश की युति केन्द्र में लाभदायक है। यहां शनि अपने घर (कुम्भ राशि) एवं लग्न स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा फलतः जातक द्वारा किया गया परिश्रम सार्थक रहेगा। जातक अपने समाज में सौभाग्यशाली व्यक्ति होगा। कोर्ट (कचहरी) में सदैव विजय मिलगी।
6. चन्द्र + मंगल – यहां मंगल अपने घर (वृश्चिक राशि), दशम स्थान एवं एकादश स्थान के पूर्ण दृष्टि से ‘लक्ष्मी योग’ के साथ देखेगा। फलत: जातक को माता की सम्पत्ति, कृषि की भूमि मिलेगी। राजपक्ष में जातक का दबदबा रहेगा।
7. चन्द्र + राहु – चन्द्र-राहु की युति माता के सुख में कमी, वाहन से दुर्घटना एवं नौकर से दगा दिलायेगी।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश पंचम स्थान में
पंचम भाव में चंद्रमा अपने पुत्र बुध की कन्या राशि में स्थित होगा। यह चंद्रमा की शत्रु राशि है क्योंकि बुध पुत्र होते हुए भी पिता का शत्रु है। परन्तु चंद्रमा बुध से शत्रुता नहीं रखता फलतः जातक अपनी सन्तति व भाई-बहनों से एकतरफा प्यार करेगा। जातक सुशील, सुन्दर, सभ्य, शिक्षित एवं नीति में निपुण होगा।
दृष्टि – पंचम भाव में कन्या राशिगत चंद्रमा की दृष्टि लाभ भाव (मीन राशि) पर होगी। फलतः यह दृष्टि व्यापार व्यवसाय में लाभकारक है। जातक प्रज्ञावन होगा। गूढ़ एवं रहस्यमय विद्याओं | का जानकार होगा।
निशानी – जातक को कन्या सन्तति अधिक होगी।
दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + बुध – यह युति जातक को महाधनी बनायेगी एवं जातक का भाग्योदय प्रथम कन्या सन्तति के बाद होगा। जातक राजा तुल्य होता है।
2. चन्द्र + सूर्य – यह युति जातक को संतान सुख में न्यूनता दिलायेगी।
3. चन्द्र + मंगल – इस युति कारण जातक क्रोधी व हठी स्वभाव का होगा। मन में अधीरता रहेगी फिर भी उच्च शैक्षणिक डिग्री प्राप्त करेगा ।
4. चन्द्र + बृहस्पति – चन्द्र, बृहस्पति की युति यहां सार्थक है क्योंकि बृहस्पति भाग्य स्थान अपने घर (मीन राशि) एवं लग्न स्थान (जहां चंद्रमा की उच्च राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेगा फलतः जातक धनवान होगा। उसकी सन्तति भी धनवान होगी। गजेकसरी योग के कारण जातक को व्यापार व्यवसाय में जबरदस्त लाभ होगा।
5. चन्द्र + शनि – तृतीयेश चन्द्र की भाग्येश के साथ त्रिकोण में युति केन्द्र-त्रिकोण संबंध करके जातक को उन्नति मार्ग की ओर बढ़ायेगी।
6. चन्द्र + सूर्य – सुखेश सूर्य का त्रिकोण में होना शुभ है। जातक को सूर्य की कृपा से प्रेम की प्राप्ति भी होगी।
7. चन्द्र + राहु – यह युति सन्तान प्राप्ति व विद्या प्राप्ति में बाधक है तथा चंद्रमा का अशुभत्व बढ़ाने वाली है।

वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश षष्टम् स्थान में
चंद्रमा यहां तुला राशि में है । छठे स्थान में होने से ‘पराक्रमभंग योग’ की सृष्टि करता है। जातक का पराक्रम रोग, ऋण और शत्रुओं द्वारा बाधित होता रहेगा। प्राय: पाचन क्रिया निर्बल, कफ और श्वास के रोगों की पीड़ा रहेगी।
दृष्टि – षष्टम् भावगत चंद्रमा की दृष्टि द्वादश स्थान (मेष राशि) पर होगी। फलत: जातक खर्चीले स्वभाव का होगा एवं अधिक यात्राओं में रुचि रखेगा।
निशानी – जातक कपटी होगा एवं षड्यंत्रकारी कार्यों में ज्यादा रुचि रखेगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक को महामृत्युंजय का जाप कराना चाहिए।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + शुक्र – यह युति ज्यादा कष्टदायक है क्योंकि यह “लग्नभंग योग”, “पराक्रमभंग योग” की सृष्टि करती है परन्तु शुक्र स्वगृही होने से हर्ष योग बना जिसके कारण जातक ऋण, रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा।
2. चन्द्र + सूर्य – यह युति भी कष्टदायक है क्योंकि ‘पराक्रमभंग योग’ के साथ-साथ ‘सुखहीन योग’ की सृष्टि होती है। तुला का सूर्य एक हजार राजयोग नष्ट करता है। फलतः जातक असावधान रहा तो जेल यात्रा हो सकती है ।
3. चन्द्र + बृहस्पति – बृहस्पति खड्डे में जाने से ‘लाभभंग योग’ बनेगा। साथ ही अष्टमेश का छठे स्थान में जाने से ‘सरल योग’ बना जिससे शुभ फलों की प्राप्ति में वृद्धि होगी। इस ‘गजकेसरी योग’ के कारण चंद्रमा का शुभत्व बढ़ेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित, धनी व्यक्ति होगा।
4. चन्द्र + शनि – शनि यहां चंद्रमा के साथ छठे स्थान पर जाने से ‘भाग्यभंग योग’ ‘राज्यभंग योग’ बना परन्तु शनि उच्च का है। अतः चंद्रमा का अशुभत्व नष्ट हो गया है। जातक पराक्रमी होगा।
5. चन्द्र + बुध – बुध का चंद्रमा के साथ होने पर ‘धनहीन योग’ एवं ‘संतानहीन योग’ की सृष्टि होगी। फिर बुध, चन्द्र परस्पर शत्रु होने से यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है।
6. चन्द्र + मंगल – मंगल छठे जाने से ‘विवाहभंग योग’ बनता है। परन्तु व्ययेश का छठे होने से ‘विमल योग’ के कारण मंगल का अशुभत्व नष्ट हो गया है। चन्द्र-मंगल ‘लक्ष्मी योग के कारण जातक धनवान होगा।
7. चन्द्र + राहु – यह युति ज्यादा खराब नहीं है क्योंकि राहु छठे स्थान में राजयोग कारक होता है। दुष्ट ग्रहों का दुःस्थान में होना शुभ माना गया है।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश सप्तम् स्थान में
चंद्रमा यहां वृश्चिक राशि में अपनी नीच राशि में है, जहां 3 अंशों में होने पर यह परम नीच हो जाएगा। फलतः ऐसा जातक ईर्ष्यालु, कामातुर, अधर्मी, हठी स्वभाव का होता है। जातक का मानसिक स्तर ज्यादा उदारवादी (उच्च) नहीं होता है।
दृष्टि – सप्तम स्थान में वृश्चिक राशिगत यह चंद्रमा अपने घर से पंचम स्थान पर बैठकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखेगा जहां चन्द्र की उच्च राशि अधिष्ठित है। फलत: जातक की उन्नति स्वप्रयत्नों से स्वविचारों से होगी। जातक स्वयं सुंदर होगा एवं पत्नी भी सुंदर होगी।
निशानी – जातक की कल्पना शक्ति प्रखर होगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + मंगल – इस युति से ‘नीचभंगराज योग’ की सृष्टि होकर चंद्रमा का नीचत्व भंग होकर शुभ फलों की प्राप्ति में वृद्धि होगी। जातक महाधनी होगा, पर अनैतिक तरीकों से धन प्राप्ति करने में सफल रहेगा। ‘रुचक योग’ के कारण जातक महान पराक्रमी होगा।
2. चन्द्र + बुध – इस युति में जातक के मानसिक स्तर में सुधार होगा। बुद्धि बल व नैतिकता में वृद्धि होगी। जातक महाधनी होगा।
3. चन्द्र + शनि – यह युति स्वभाव में चंचलता समाप्त करके, जातक को गंभीर स्वभाव का बनाएगी। जातक का नाम भाग्यशाली व्यक्तियों में होगा।
4. चन्द्र + शुक्र – यह युति जातक को मिलनसार बनाएगी। जातक सुंदर शरीर का स्वामी होगा पर कामी होगा। पर स्त्रियों से संसर्ग अवश्य करेगा। जीवन में उन्नति भी करेगा।
5. चन्द्र + बृहस्पति – यह युति जातक को ब्रह्मज्ञान से आलोकित करेगी । जातक की रुचि ज्योतिष, अध्यात्म में होगी। गजकेसरी योग के कारण जातक का गृहस्थ जीवन सुंदर होगा। 50 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति मोह-माया छोड़कर त्यागी हो जाएगा।
6. चन्द्र + राहु – चन्द्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक चरित्रहीन होगा। उसका जीवन साथी भी लम्पट होगा।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश अष्टम स्थान में
यहां तृतीयेश चंद्रमा धनु राशि का होकर अष्टम भाव में स्थित होने से निर्बल हो गया है। तृतीयेश के अष्टम में जाने से ‘पराक्रमभंग योग’ भी बना। ऐसे जातक कर्त्तव्यनिष्ठ, कठोर परिश्रमी व धार्मिक स्वभाव के होते हैं। धन व यश की प्राप्ति हेतु उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
दृष्टि – धनु राशिगत अष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि धन स्थान (मिथुन राशि) पर रहेगी। फलतः धन व प्रतिष्ठा की प्राप्ति हेतु जीवन में संघर्ष बना रहेगा। परिजनों द्वारा जातक को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाएगा।
निशानी – 9 वर्ष एवं 19 वर्ष की आयु तक जल भय रहेगा।
उपाय – चांदी का चंद्रमा, मोती डालकर बालक के गले में पहनाएं।
दशा – चंद्रमा की दशा अशुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + गुरु – यह युति शुभ फलदायक है। गुरु स्वगृही होकर चंद्रमा को बलवान करेगा। ‘गजकेसरी योग’ के कारण बिगड़े कार्य सुधरेंगे।
2. चन्द्र + बुध – संतान प्राप्ति में बाधा। शल्य चिकित्सा से सन्तति प्रप्ति होगी। पर चंद्रमा निस्तेज न होगा।
3. चन्द्र + शनि – भाग्योदय में बाधा पर चंद्रमा निस्तेज न होगा। शनि की दृष्टि कुंभ राशि पर होने से जातक को राजा (सरकार) से मदद मिलती रहेगी। पिता भी मददगार होगा।
4. चन्द्र + सूर्य – सुख के लिए संघर्ष, पांव में तकलीफ, माता को कष्ट होता है।
5. चन्द्र + मंगल – जीवन साथी से टकराव, अदालतों के चक्कर में धन हानि होगी।
6. चन्द्र + राहु या केतु – पुलिस केस व अदालतों में धन का अपव्यय, मानसिक व दैहिक रोग होते हैं।
7. चन्द्र + शुक्र – ‘लग्नभंग योग’ के कारण परिश्रम पूर्वक किये गये प्रयासों में भी वांछित सफलता नहीं मिलती।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश नवम स्थान में
यहां नवम भाव में स्थित चंद्रमा मकर राशि का होकर अपने घर (कर्क राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। फलतः जातक पराक्रमी होगा। उसे भाई-बहनों, इष्ट मित्रों का सुख मिलेगा। ऐसे व्यक्ति सुन्दर स्त्री, श्रेष्ठ सन्तान से युक्त, धर्म बुद्धि वाले माता-पिता के सुख से युक्त होते हैं।
निशानी – जातक कलह या युद्ध प्रिय नहीं होता। जातक का भाग्योदय प्रायः मध्यम आयु में होता है। चंद्रमा यदि पूर्ण बली हो तो जातक विदेश यात्रा से धन कमायेगा |
दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा भाग्योदय करायेगी पराक्रम बढ़ायेगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + शनि – यह युति ‘पद्यसिहांसन योग’ बनायेगी। जातक करोड़पति होगा ।
2. चन्द्र + मंगल – जातक ‘महालक्ष्मी योग’ के कारण महाधनी होगा। भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद होगा। जातक का ससुराल धनी होगा।
3. चन्द्र + बुध – जातक धनवान, पुत्रवान होगा। प्रथम संतान के बाद जातक का भाग्योदय होगा।
4. चन्द्र + सूर्य – यह युति जातक को विवेकहीन बनायेगी। जातक की शिक्षा अधूरी रह जायेगी। जातक को नेत्र दोष होगा। व्यापार में हानि सम्भव है।
5. चन्द्र + शुक्र – जातक अपने परिश्रम से यथेष्ट धन कमायेगा।
6. चन्द्र + बृहस्पति – जातक धार्मिक, परोपकारी एवं समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा । ‘गजकेसरी योग’ के कारण कोई भी काम रुका हुआ नहीं रहेगा।
7. चन्द्र + राहु या केतु – जातक की उन्नति में सहायक होंगे। जातक जन्म स्थान (घर) में दूर परदेश में कमायेगा।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश दशम स्थान में
तृतीय भाव का स्वामी होकर चंद्रमा दशम भाव (कुम्भ राशि) में होने में जातक को नृपतुल्य प्रसिद्धि व सम्मान दिलाता है। यद्यपि यह चंद्रमा अपनी राशि से अष्टम स्थान पर होने से दिग्बल शून्य है तथापि चंद्रमा यदि बलवान हो तो जातक माता-पिता का सुख, रोजी-रोजगार उत्तम नौकरी एवं व्यापार में लाभ होता है।
दृष्टि – कुम्भस्थ चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ (सिंह राशि) पर होने से घर, वाहन, जमीन-जायदाद, कीर्ति, शौर्य एवं राज से मान्यता प्राप्त होती है।
निशानी – जातक भंवर में फंसी नाव को पार लगाने वाला, विपत्ति में फंसे व्यक्ति की मदद करने वाला, परोपकारी होगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अन्तर्दशा अच्छी जायेगी। नवीन योजनाओं में सफलता मिलेगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + शनि – जातक महाधनी व उद्योगपति होगा। उसे पैतृक सम्पत्ति मिलेगी।
2. चन्द्र + बृहस्पति – जातक सौभाग्यशाली, परोपकारी, एवं धर्मध्वज धारक व्यक्ति होगा। ‘गजकेसरी योग’ के कारण कोई काम रुकेगा नहीं। जातक धन कमायेगा एवं शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
3. चन्द्र + बुध – जातक समाज का धनवान एवं प्रतिष्ठि व्यक्ति होगा। जातक समाज का मुख्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। उसकी सन्तान भी सुशिक्षित होगी।
4. चन्द्र + शुक्र – जातक धनवान होगा पर गलत तरीकों में धन कमाने में उसकी रुचि होगी।
5. चन्द्र + मंगल – जातक धनवान होगा। पत्नी के माध्यम से रुपया कमायेगा। ससुराल से भी धन प्राप्ति संभव है।
6. चन्द्र + सूर्य – जातक उत्तम भवन एवं वाहन का स्वामी होगा। क्योंकि सूर्य की दृष्टि अपने घर (सिंह राशि) पर होगी।
7. चन्द्र + राहू या केतु – जातक वेश्यावृति अथवा गलत कार्यों से धन कमायेगा। भाईयों से कम बनेगी।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश एकादश स्थान में
एकादश स्थान में स्थित मीन राशिगत चंद्रमा अपनी कर्क राशि में नवम स्थान पर होने से शुभ फलदाई हो गया है। जातक बुद्धिमान, गुणवान, धनवान, माता-पिता, स्त्री, सन्तान सुख से युक्त तथा शास्त्र का ज्ञाता एवं विद्वान प्राणी होता है।
दृष्टि – मीनस्थ चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि पंचम भाव (कन्या राशि) पर होगी। जातक ‘बहुविद्यावान’ होगा। अनेक प्रकार की विधाओं का जानकार होगा। जातक उच्च कोटि का लेखक, चिन्तक, समाज सुधारक व दार्शनिक होगा।
निशानी – ऐसा जातक प्रेमभाव के कारण अनेक मित्रों से युक्त होता है। जातक तंत्रविद्या व ज्योतिष का जानकार होगा। जातक जलयान में यात्रा अवश्य करेगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अन्तर्दशा में जातक उत्तरोतर उन्नति को प्राप्त होगा।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + बृहस्पति – जातक पुत्रवान् जरुर होगा। यहां पर ‘गजकेसरी योग’ ज्यादा खिलेगा। जातक अति धनवान होगा। उसकी सन्तति सुयोग्य होगी। जातक का जीवन साथी जातक के प्रत्येक कार्य में उसका सहयोग करेगा। गृहस्थ सुख अच्छा होगा। जातक को अपने परिवार में उचित सम्मान मिलता रहेगा।
2. चन्द्र + शुक्र – ऐसा जातक उच्च राज्यधिकारी एवं श्रेष्ठ वाहन से युक्त होगा। क्योंकि शुक्र यहां उच्च का होगा।
3. चन्द्र + बुध – जातक धनी होगा। अपने पराक्रम, परिश्रम में बहुत धन कमायेगा। जीवन में सफल व्यक्ति होगा। प्रथम सन्तति के बाद किस्मत चमकेगी।
4. चन्द्र + मंगल – जातक महाधनी होगा। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा।
5. चन्द्र + सूर्य – जातक को नेत्र विकार सम्भव है।
6. चन्द्र + शनि – जातक परम सौभाग्यशाली व्यक्ति होगा। उत्तम व्यापारी होगा।
7. चन्द्र + राहु – जातक को नेत्र विकार सम्भव है। व्यापार में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे।
वृष लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वादश स्थान में
यहां तृतीयेश चंद्रमा द्वादश भावगत ‘मेष राशि’ में होने में ‘पराक्रमभंग योग’ बना ऐसा जातक साधारणत: आलसी, द्वेषी व नेत्ररोगी होता है। खासकर बाई आंख कमजोर होगी।
जातक क्रोधी होगा क्योंकि चंद्रमा अग्निसंज्ञक राशि में हैं। जातक अभक्ष्यभोजी, व्यसनी, फालतू कार्य में रुपया खर्च करने वाला क्रोध में अपना कार्य बिगाड़ने वाला होता है।
दृष्टि – मेष राशिगत द्वादशस्थ चन्द्र की दृष्टि षष्टम् भाव (तुला राशि) पर होगी। जातक को जीवन में गुप्तरोग, गुप्तशत्रु एवं ऋण का भय बना रहेगा।
निशानी – जातक की किस्मत परेदश में चमकेगी।
दशा – चंद्रमा की दशा, अन्तर्दशा थोड़ा प्रतिकूल फल देगी।
उपाय – शिवजी की उपासना से, महामृत्युंजय प्रयोग से जातक को शुभफलों की प्राप्ति होगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + मंगल – इस युति में मंगल स्वगृही होने से ‘महालक्ष्मी योग’ बना। जातक समाज का धनी व्यक्ति होगा। जातक को भाग्योदय विवाह के बाद होगा। व्ययेश व्यय स्थान में होने में ‘विमल योग’ के कारण जातक पराक्रमी होगा।
2. चन्द्र + बृहस्पति की युति चंद्रमा के अशुभ प्रभाव को नष्ट कर देगी। जातक विद्वान् दयावान एवं परोपकारी होगा। गजकेसरी योग के कारण जातक ऋण, रोग व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में समर्थ होगा। अष्टमेश बारहवें होने से ‘सरल योग’ के कारण जातक प्रतापी होगा।
3. चन्द्र + शुक्र की युति में वेश्यावृति या गतल कार्य से धन कमाने में रुचि होगी। परन्तु षष्टेश बारहवें होने से हर्ष योग बनेगा। शुक्र का अशुभत्व नष्ट हो जायेगा।
4. चन्द्र + बुध की युति से बृद्धि में धन हानि होगी क्योंकि बुद्ध द्वादश भाव में होने में ‘धनहीन योग’ एवं ‘सन्तानहीन योग’ की सृष्टि होगी।
5. चन्द्र + शनि – भाग्येश दशमेश बारहवें होने से ‘भाग्यभंग योग’ बना जातक के भाग्योदय में व्यापार में काफी रुकावटें आयेंगी।
6. चन्द्र + सूर्य की युति के कारण जातक को जीवन में प्रगति एवं सुख प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा।
7. चन्द्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु या केतु होने से जातक चालाक, धोखेबाज एवं अविश्वसनीय स्वभाव का होगा।
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