वृष लग्न में राहु का फलादेश

वृष लग्न में लग्नस्थ राहु उच्च का होता है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश प्रथम स्थान में

प्रायः लग्नस्थ राहु से मनुष्य अपनी उम्र से अधिक एवं कुरूप प्रतीत होता है किन्तु वृष लग्न में राहु वाला व्यक्ति युवा, सुंदर एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाला होता है। जातक के जन्म के समय पिता घर पर नहीं होगा। जातक का जन्म ननिहाल या अस्पताल में होगा। जातक के चेहरे पर काले रंग का तिल या कोई निशान होगा। जातक को राज दरबार में सम्मान मिलेगा। जातक कूटनीतिज्ञ होगा।

निशानी – चालीस वर्ष की आयु के बाद पत्नी के शरीर में दर्द की शिकायत रहती है।

दशा – यदि कालसर्प योग में जन्म न हो तो राहु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – सूर्य राहु की युति शुभद नहीं है। जातक को सुख प्राप्ति में कष्टानुभूति होगी।

2. राहु + चन्द्र – चंद्रमा यहां उच्च का होगा। ऐसा जातक ‘चन्द्रकृत राजयोग’ के कारण संसार के सभी सुखों को भोगेगा।

3. राहु + मंगल – मंगल के साथ राहु होने से जातक धोखेबाजी, स्मलिंग, उग्रवाद एवं बलात्कार की प्रेरणा से प्रेरित होगा।

4. राहु + बुध – लग्न में उच्च के राहु के साथ बुध यहां राजयोग प्रदाता है। जातक धनी होगा एवं राजनीति में प्रभावशाली व्यक्ति होगा।

5. राहु + बृहस्पति – गुरु, राहु की युति लग्न में ‘चाण्डाल योग’ की सृष्टि करती है । व्यक्ति दुस्साहसी होगा एवं धार्मिक छलावे में विश्वास रखने वाला होगा।

6. राहु + शुक्र – जातक अपने कुल का नाम रोशन करेगा। राजपुरुषों या राजनीतिज्ञों में जातक का अच्छा नाम होगा। गृहस्थ सुख में कुछ बाधा सम्भव है।

7. राहु + शनि – ऐसा जातक जिद्दी व हठी स्वभाव का होता है, पर भाग्यशाली होता है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश द्वितीय स्थान में

वृष लग्न में राहु लग्नेश का मित्र है। यहां में द्वितीयस्थ मिथुन राशि में राहु स्वगृही है। ऐसा जातक धनी होता है। वाणी ज्यादा कठोर या रूखी नहीं होती। 34 वर्ष की आयु के बाद ससुराल से लाभ होगा। मनुष्य की देह पुष्ट होती है। घर, धन, परिवार एवं वाहन से जातक परिपूर्ण होता है। ऐसा मनुष्य चतुर व चालाक होता है।

निशानी – ऐसे व्यक्ति के दो विवाह होते हैं।

दशा – यदि कुण्डली में कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा में व्यक्ति शत्रुओं को पराजित करता है। संघर्ष में विजय प्राप्त करता है।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु सूर्य के तेज को समाप्त कर देता है पर यहां मिथुन में राहु स्वगृही होने से इतना नुकसानदायक नहीं है। फिर भी धन के मामले को लेकर जातक को काफी संघर्ष करना पड़ता है।

2. राहु + चन्द्र – राहु चन्द्र के तेज को समाप्त कर देता है। जातक जितना चाहे कमाए धन की बरकत नहीं होगी।

3. राहु + मंगल – वाणी में स्खलन होगा। जातक झूठ ज्यादा बोलेगा। जातक नेत्र रोगी होगा खर्चीले स्वभाव का होगा। फिजूलखर्ची के कारण कई बार परेशानी में आएगा।

4. राहु + बुध – बुध स्वगृही होगा पर राहु यहां धन के घड़े में छेड़ करेगा। धन की अच्छी आवक होते हुए भी धन की बरकत नहीं होगी।

5. राहु + बृहस्पति – गुरु, राहु की युति से ‘चाण्डाल योग’ बनता है। धन प्राप्ति में बाधा के साथ गुप्तरोग की सम्भावना बनी रहेगी।

6. राहु + शुक्र – ऐसा जातक शराब, जुआ, भोग-विलास में डूबा रहेगा। जातक के वैवाहिक जीवन में टकराव रहेगा।

7. राहु + शनि – भाग्येश राज्येश शनि का मित्र के घर में जाना शुभ है। राहु जहां जातक को खर्चीला बनाएगा वहां शनि धन की आवक को बराबर बनाए रखेगा। जातक का कोई काम अटका हुआ नहीं रहेगा।

वृष लग्न में राहु का फलादेश तृतीय स्थान में

यहां तृतीय स्थान में कर्क राशिगत राहु अपने शत्रु चन्द्रमा की राशि में है। ऐसा जातक पराक्रमी एवं शौर्यवान होता है। इसकी कलम में तलवार से अधिक ताकत होती है । परन्तु फिर भी मित्र वफादार नहीं होते। जिनके लिए जान जोखिम में डाली जिनका काम किया वे ही धोखा देंगे। जीवन में संघर्ष से मुक्ति नहीं है।

निशानी – ऐसे जातक को नींद में भी सच्चे ख्वाब आयेंगे।

दशा – यदि जन्मकुंडली में कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा में पराक्रम बढ़ेगा।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु सूर्य का तेज समाप्त करता है उसके शुभ फलों को तोड़ता है । इस युति के कारण जातक के परिजन व मित्र ही जातक के शत्रु होंगे।

2. राहु + चन्द्र – चन्द्र राहु के कारण जातक सनकी, स्वार्थी, एवं झगड़ालू स्वभाव का होगा। भाईयों, परिजनों से नहीं निभेगी।

3. राहु + मंगल – कर्कस्थ राहु मंगल की युति के कारण जातक के परिजनों में द्वेष रहेगा। जातक को मित्रों से भी दगा मिलेगा।

4. राहु + बुध – शत्रुक्षेत्री बुध के साथ राहु की युति परिजनों एवं मित्रों में विवाद व कलह करायेगी।

5. राहु + बृहस्पति – यह युति ‘चाण्डाल योग’ की सृष्टि करती है। जातक को बड़े भाई का सुख नहीं मिलेगा।

6. राहु + शुक्र – भाईयों में शत्रुता व मानसिक तनाव रहेगा।

7. राहु + शनि – कर्कस्थ राहु के साथ शनि होने पर जातक परम पराक्रमी एवं भाग्यशाली होगा। जातक यारी दोस्ती में पैसा बहुत उड़ायेगा।

वृष लग्न में राहु का फलादेश चतुर्थ स्थान में

वृष लग्न में राहु लग्नेश शुक्र का मित्र है। यहां चतुर्थ स्थान में राहु सिंह राशि में होगा। सिंह राशि राहु के परम शत्रु सूर्य की राशि है। यह अग्नि तत्त्व प्रधान राशि है। फलतः जातक क्रोधी होगा। जातक के माता-पिता को क्लेश-कष्ट परेशानी कोई न कोई लगी रहेगी।

ऐसे जातक को जीवन में अनेक प्रकार की असफलताओं, बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।

निशानी – ऐसा जातक पिस्तौल बन्दूक या शस्त्र रखने का शौकीन होगा।

दशा – राहु की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फलकारी है। यदि कालसर्प योग न हो तो दशा ज्यादा प्रतिकूल नहीं रहेगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – यहां सूर्य राहु की प्रति माता-पिता के सुख में न्यनता लाती है। जातक उद्ण्ड होता है।

2. राहु + चन्द्र – चन्द्र राहु की युति माता के सुख में कमी, वाहन से दुर्घटना एवं नौकर से दगा दिलायेगी।

3. राहु + मंगल – राहु मंगल का शत्रु है। यह युति मातृ सुख में बाधक है। भवन एवं वाहन सुख में हानि पहुंचायेगा ।

4. राहु + बुध – जातक बन्धुओं का द्वेषी होगा। वाहन में अरिष्ट होगा।

5. राहु + बृहस्पति – राहु, राहु की युति ‘चाण्डाल योग’ बनायेगी। जातक को पिता के पूर्ण सुख की कमी रहेगी।

6. राहु + शुक्र – जातक के माता-पिता को कष्ट रहेगा। जातक के गृह निर्माण में बाधाएं आयेंगी।

7. राहु + शनि – सिंहस्थ राहु के साथ शनि होने पर माता की मृत्यु, वाहन से दुर्घटना, अग्निकाण्ड का भय बना रहेगा।

वृष लग्न में राहु का फलादेश पंचम स्थान में

वृष लग्न में राहु लग्नेश शुक्र का मित्र है। यहां पंचम भाव में कन्या राशि का है। कन्या राशि में राहु स्वगृही माना गया है। जो शुभफलों को देने वाला है। त्रिकोण भाव में छाया ग्रह जातक के हित में शुभ फल देते है।

भृग्रसूत्र के अनुसार राहु यदि पंचम स्थान में हो तो सर्प के श्राप से पुत्र सन्तति नहीं होती परन्तु नाग की प्रतिष्ठा करने पर पुत्र सम्भव है। मेरे मत में यह नियम कन्या राशिगत पंचमस्थ राहु पर लागू नहीं होता । ऐसा जातक को सन्तति होती है। जीवन में सफलता भी मिलती है। जातक, बुद्धि बल में उत्तम धन की प्राप्ति करता है । उसका गृहस्थ जीवन सुखी होता है।

दशा – यदि कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी। नवीन योजनाएं सफल होंगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – यहां राहु, सूर्य की युति पुत्र सन्तति में बाधक है। राहु मित्र के घर में हाने के कन्या सन्तति तो देगा ही।

2. राहु + चन्द्र – चन्द्र राहु की युति सन्तान प्राप्ति में बाधक है। विद्या प्राप्ति में बाधक है तथा चंद्रमा का अशुभत्व बढ़ायेगी।

3. राहु + मंगल – जहां राहु सन्तति सुख में बाधक तत्व का कार्य करेगा, वहां मंगल गर्भपात, गर्भस्राव करायेगा। विद्या में भी रुकावट देगा।

4. राहु + बुध – राहु पुत्र नाशक में सहायक है। माता के बीमारी सम्भव है।

5. राहु + बृहस्पति – राहु के साथ बृहस्पति गर्भपात करायेगा। यह दुष्परिणाम ‘चाण्डाल योग’ के कारण होगा।

6. राहु + शुक्र – गर्भपात या गर्भस्राव होता रहेगा पर अनुष्ठान (उपाय) के बाद पुत्र की प्राप्ति होगी।

7. राहु + शनि – जातक को पुत्र सन्तति में बाधा होती है। धन प्राप्ति में भी बाधा रहती है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश षष्टम स्थान में

वृष लग्न में राहु लग्नेश शुक्र का मित्र है। राहु यहां छठे स्थान में तुला राशि का है। तुला राशि राहु की प्रिय राशि है। ऐसा जातक रोग, ऋण और शत्रुओं का समूल नाश करने में सक्षम समर्थ होता है। जातक दृढ़ निश्चयी, लम्बी आयु वाला होता है। जातक चतुर होता है। उसकी सूझ-बूझ, प्रतिभा विलक्षण होती है।

दशा – राहु की दशा-अन्तर्दशा में जातक गुप्त रूप व योजनाबद्ध तरीक से आगे बढ़ता है।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – सूर्य यहां छठे होने से, भौतिक सुखों में बाधा आयेगी। जातक पराक्रमी होगा पर उसकी सोच नकारात्मक होगी।

2. राहु + चन्द्र – यह युति ज्यादा खराब नहीं है क्योंकि दुष्ट ग्रहों का छठे स्थान में होना शुभ है। छठे स्थान में राहु राजयोग कारक है।

3. राहु + मंगल – ऐसा जातक गुप्त एवं रहस्यमय शक्ति का स्वामी होगा।

4. राहु + बुध – जातक को वातरोग होगा एवं वाणी में दोष रहेगा।

5. राहु + बृहस्पति – राहु गुरु की युति ‘चाण्डाल योग’ की सृष्टि करेगी। जातक को गुप्त शत्रु या गुप्त रोग में पीड़ा होगी।

6. राहु + शुक्र – जातक की शिक्षा अधूरी रहती है। जातक लालची स्वभाव का होगा ।

7. राहु + शनि – यहां राहु के साथ शनि होने से जातक के भाग्य में निरन्तर अवरोध आते रहते हैं।

वृष लग्न में राहु का फलादेश

वृष लग्न में राहु का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां सप्तम भाव में राहु वृश्चिक राशि का होगा। वृश्चिक राशि में राहु नीच का होता है। ऐसे जातक की नौकरी अस्थिर रहती है। वैवाहिक सुख में कुछ न कुछ न्यूनता रहती है। जातक कठोर परिश्रमी एवं राज्याधिकारी होता है। जातक में आचरण-व्यवहार व योग्यता की विशेष प्रतिभा होती है। जातक गुप्त शक्तियों का स्वामी होता है।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – सप्तम भाव राहु, सूर्य की युति जीवनसाथी में वैमनस्य करायेगी, तथा कई बार तो जीवन में तलाक (बिछोह) की स्थिति भी आती है।

2. राहु + चन्द्र – चन्द्र के साथ राहु की युति वाला जातक चरित्रहीन होगा। उसका जीवनसाथी लम्पट होगा।

3. राहु + मंगल – व्यक्ति कामातुर रहता है। पत्नी से मनोमालिन्यता कराता है।

4. राहु + बुध – जातक पाशविक मैथुन करेगा एवं युद्ध में शत्रु से पराजित होगा।

5. राहु + बृहस्पति – यहां ‘चाण्डाल योग’ बना। गुरु राहु की युति पति-पत्नी में स्थाई मनमुटाव उत्पन्न करेगी।

6. राहु + शुक्र – व्यक्ति विशेष रुप से कामातुर रहता है। दाम्पत्य सुख में बाधा।

7. राहु + शनि – यहां राहु के साथ शनि होने से गृहस्थ सुख में भंयकर बाधा, तलाक, बिछोह या जीवन साथी की मृत्यु की स्थिति भी आ सकती है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टम भाव में राहु धनु राशि का होगा। धनु राशि राहु की शुभ राशि है जहां राहु नीच का कहलाता है। फलतः जातक की किस्मत झूले की तरह कभी ऊपर, कभी नीचे चलती रहेगी। जीवन में अस्थिरता रहेगी। नौकरी, व्यापार-व्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। जातक मानसिक तनाव में रहेगा। कोई न कोई बीमारी शरीर में लगी रहेगी। शिक्षा में बाधाएं आयेंगी।

निशानी – चौंतीस वर्ष की मृत्यु के बाद जातक का दूसरा विवाह होने की सम्भावना रहेगी। अथवा मूत्राशय में बीमारी होगी।

दशा – राहु की दशा-अन्तर्दशा अशुभ फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – अष्टम भाव में राहु के साथ सूर्य हो तो जातक के पिता की आयु कम होती है।

2. राहु + चन्द्र – ऐसे जातक के धन का अपव्यय पुलिस केस व अदालतों में होता है। । जातक के मानसिक व दैहिक रोग होते है।

3. राहु + मंगल – राहु अष्टम में शत्रुक्षेत्री होकर मंगल के साथ होने से गुप्त रोग, गुप्त पीड़ा एवं गुप्त कष्ट देगा।

4. राहु + बुध – राहु, बुध की युति दुर्घटनाकारक है। दाई टांग में कष्ट हो सकता है।

5. राहु + बृहस्पति – यहां बना ‘चण्डाल योग’ अनिष्टसूचक है। गुप्त शत्रु एवं गुप्त रोग जातक को परेशान करेंगे।

6. राहु + शुक्र – जातक शराबी, व्यभिचारी होगा।

7. राहु + शनि – यहां राहु के साथ शनि होने पर भाग्य में भयंकर बाधा कष्ट का संकेत स्पष्ट है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश नवम स्थान में

यहां नवम भाव में राहु मकर राशि का होगा। मकर राशि राहु की सम राशि है। इन भावों में राहु पराक्रमी, कठोर परिश्रमी एवं शौर्यवान जातक को जन्म देता है। जातक व्यवहार में थोड़ा बेईमान, जादू-टोनों में विश्वास रखने वाला होता है। जीवन में सांसारिक उन्नति, सामाजिक प्रतिष्ठा की प्राप्ति हेतु थोड़ा संघर्ष करना पड़ता है।

निशानी – पिता की अल्प आयु या पिता रोगों में ग्रसित रहता है। जातक के शत्रु जातक से परेशान रहते हैं।

दशा – यदि कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा में भाग्योदय होगा ।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – सूर्य शत्रुक्षेत्री होकर राहु के साथ होने से काफी दिक्कतें आयेंगी।

2. राहु + चन्द्र – यह युति जातक की उन्नति में सहायक है। जातक परदेश में कमायेगा ।

3. राहु + मंगल – राहु, मंगल की युति उद्विग्नता देगी। जातक अनिश्चित निर्णय वाला, क्षण प्रतिक्षण स्वभाव में गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला, अविश्वासी होगा।

4. राहु + बृहस्पति – यहां बृहस्पति नीच का होगा। ‘चाण्डालयोग’ जातक को उत्पीड़ित करेगा। भाग्योदय में घोर बाधाएं आयेगी।

5. राहु + शुक्र – जातक के पिता को कष्ट होगा।

6. राहु + शनि – राहु के साथ शनि होने से पिता का अरिष्ट होगा। राहु की युति से भाग्योदय में अकारण बाधाएं आती रहेंगी पर अन्तिम सफलता निश्चित है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश दशम स्थान में

यहां दशम भाव में स्थित राहु कुम्भ राशि का होगा। कुम्भ राशि राहु की स्वराशि कही गई है। ऐसे जातक को व्यापार-व्यवसाय में लाभ तो होता है परन्तु कई बार अपमान का घूंट भी पीना पड़ता है। जातक को सामाजिक, आर्थिक एवं व्यवसायिक उन्नति हेतु काफी संघर्ष करना पड़ता है।

निशानी – जातक धनवान व लम्बी आयु वाला होता है। परन्तु धन जन्मभूमि से दूरस्थ प्रदेशों में जाकर कमाता है।

दशा – यदि कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – सूर्य राहु के साथ शत्रुक्षेत्री होने से जातक को राजपक्ष (अदालत) से दण्ड मिलता है।

2. राहु + चन्द्र – जातक वेश्यावृत्ति या गलत कार्यों में धन कमायेगा। भाईयों से कम बनेगी।

3. राहु + मंगल – जातक राजनीति में माहिर अत्यधिक चालाक एवं नकारात्मक शक्ति से युक्त, ऐश्वर्यशाली व्यक्ति होगा।

4. राहु + बुध – जातक विविध प्रकार के व्यापार में धन कमायेगा।

5. राहु + बृहस्पति – राहु के साथ गुरु होने में ‘चाण्डाल योग’ बना। जातक को राजदण्ड (अदालत से सजा) मिलेगी।

6. राहु + शुक्र – राजनीति में सफलता मिलेगी। जातक पराक्रमी होगा।

7. राहु + शनि – यदि यहां राहु के साथ शनि हो तो जीवन में सफलताएं जल्दी प्राप्त होने लगती है।

वृष लग्न में राहु का फलादेश एकादश स्थान में

यहां एकादश भाव में राहु मीन राशि का है। मीन राशि राहु की प्रिय राशि नहीं है पर एकादश भाव में राहु राजयोग कारक होता है। ऐसा जातक सन्तान से सुखी होता है तथा अनेक स्थानों से लाभ व सम्मान प्राप्त करता है। जातक अच्छा वक्ता होता है। कर्म शास्त्रों का ज्ञाता होता है जातक व्यक्तित्व आकर्षक होता है।

निशानी – जिसका भी साथ देगा उसे पूरा निभायेगा बीच में धोखा नहीं देगा।

दशा – यदि कुण्डली में कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा-अन्तर्दशा शुभ फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – सूर्य राहु के साथ होने से जातक के व्यापार-व्यवसाय में कुछ न कुछ न्यूनता आती है।

2. राहु + चन्द्र – जातक को नेत्र विकार सम्भव है। व्यापार में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे।

3. राहु + मंगल – मंगल, राहु जातक की सृजनात्मक ऊर्जा को बढ़ायेगा। जातक येन केन प्रकारेण लाभ प्राप्ति में रूचि लेगा।

4. राहु + बुध – जातक को गुप्त व्यापार से लाभ होता रहेगा पर गुप्त शत्रुओं से सावधान रहना होगा।

5. राहु + बृहस्पति – राहु के साथ गुरु होने से ‘चाण्डाल योग’ बनेगा। जातक को निजी व्यापार-व्यवसाय अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

6. राहु + शुक्र – शुक्र राहु की युति लाभ प्राप्ति में बाधक है।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि होने पर राज्य द्वारा सम्मान में षड्यन्त्र होगा। सरकारी क्षेत्र में गुप्त व प्रकट शत्रु होंगे।

वृष लग्न में राहु का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में राहु मेष राशि का होगा। मेष राशि राहु की सम राशि है। ऐसा जातक निर्धन परिवार में जन्म लेकर भी ऊंची प्रतिष्ठा व पद को प्राप्त करता है। जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं पर शत्रु जातक के उन्नति के मार्ग को रोक नहीं पाते। प्रायः जातक चिन्तातुर रहता है और नींद कम आयेगी।

निशानी – जातक प्राय: विदेशी वासी होता है अथवा अपने पर (जन्म स्थल) से दूर अपने देश में ही अन्यत्र रहता है।

दशा – यदि कुण्डली में कालसर्प योग न हो तो राहु की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – ऐसा जातक का शैय्या सुख कमजोर होगा। जातक को नींद कम आयेगी।

2. राहु + चन्द्र – चंद्रमा व राहु की युति में जातक चालाक, धोखेबाज, एवं अविश्वसनीय स्वभाव का होगा।

3. राहु + मंगल – राहु, मंगल की युति जातक को दम्भी, घमण्डी बनायेगी जातक षड्यन्त्रकारी योजनाओं में रुचि लेगा।

4. राहु + बुध – व्यर्थ यात्राओं में रूपया खर्च होगा। जातक को सन्तति सम्बन्धी कार्यों में धन खर्च करना पड़ेगा। जीवन में धन का अपव्यय होता रहेगा।

5. राहु + बृहस्पति – यहां पर बृहस्पति होने में ‘चाण्डाल योग’ बनेगा। जातक व्यर्थ के कार्यों एवं फिजूल की यात्राओं में खूब पैसा खर्च करेगा। यात्रा में चोरी होगी।

6. राहु + शुक्र – जातक को वाहन दुर्घटना का भय रहेगा। मृत्यु कष्टपूर्ण होगी।

7. राहु + शनि – जातक की मृत्यु दर्दनाक होगी। दुर्घटना का भय रहेगा।

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