वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा भाग्येश है। यह लग्नेश मंगल का मित्र होने से परम योगकारक ग्रह होकर शुभ फलों में वृद्धि करेगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश प्रथम स्थान में

यहां प्रथम स्थान में चंद्रमा नीच का है। वृश्चिक राशि के तीन अंशों तक चंद्रमा परम नीच का होगा। ऐसे जातक में कवित्व शक्ति परिपूर्ण होती है। जातक में कल्पना शक्ति तीव्र होती है। जातक धनवान किन्तु थोड़ा ईष्यालु स्वभाव का होता है। जातक भाग्यशाली होगा। ऐसे जातक को कला, लेखन, अभिनय एवं सामाजिक कार्यों में सम्मान मिलता है।

दृष्टि – लग्नस्थ चंद्रमा की दृष्टि सप्तम भाव (वृष राशि) पर होगी। ऐसे जातक की पत्नी सुन्दर होगी। जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय होगा।

निशानी – 24 वर्ष की आयु के बाद जातक के पास दिनों-दिन धन बढ़ता है और वह मनुष्य सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति लग्न स्थान में होने से जातक परम भाग्यशाली होगा। जातक स्वयं सुन्दर होगा तथा उसकी पत्नी भी अत्यधिक सुन्दर होगी। वृश्चिक लग्नः सम्पूर्ण परिचय

2. चंद्र + मंगल – यहां प्रथम स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में होंगे। जहां मंगल स्वगृही होगा तथा चंद्रमा नीच राशि का होने से ‘नीचभंग’ राजयोग बनेगा। मंगल के कारण ‘रुचक योग’ भी बनेगा। फलतः यहां ‘महालक्ष्मी योग’ भलीभांति मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की की दृष्टि चतुर्थ स्थान (मकर राशि) सप्तम स्थान (मेष राशि) एवं अष्टम स्थान (वृष राशि) पर होगी। ये सभी राशियां इन ग्रहों की स्व एवं उच्च राशियां हैं।

फलतः ऐसा जातक महाधनी होगा विवाह के बाद धनी होगा। ऐसा जातक अपने शत्रुओं का मान-मर्दन करने में पूर्ण सक्षम होगा। जातक के पास उत्तम वाहन, भवन एवं सुख-सुविधाएं होंगी।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध होने से ऐसा जातक प्रत्येक बात पर दो बार सोचेगा। जातक विद्यवान बुद्धिमान होगा परन्तु मानसिक अंतर्द्वन्द बना रहेगा।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिकलग्न के प्रथम भाव में यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश-पंचमेश बृहस्पति के साथ युति है जो पूर्णतः शुभ फलदायक है। चंद्रमा यहां नीच का होगा। पर दोनों ग्रहों की दृष्टि पंचम भाव, सप्तम भाव एवं नवम भाव पर होगी। फलतः जातक विद्यावान होगी। जातक की पत्नी सुन्दर होगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक की गिनती सफल एवं भाग्यशाली व्यक्तियों में होगी।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र जातक को आकर्षक शरीर व चेहरा देगा। जातक की पत्नी भी सुन्दर होगी।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं एवं सम्पन्नता देगा।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा । जातक उद्विग्न रहेगा तथा मानसिक तनाव में रहेगा।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु व्यक्ति को महत्वाकांक्षी बनायेगा। ऐसा जातक संघर्ष के साथ आगे बढ़ेगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वितीय स्थान में

यहां द्वितीय स्थान में चंद्रमा धनु (सम) राशि में है। ऐसे जातक को धन व कुटुम्ब का श्रेष्ठ सुख प्राप्त होता है। जातक विनम्र एवं मिष्टभाषी होता है। चंद्रमा यहां अपनी राशि (कर्क) से छठे स्थान में होने से ज्यादा शुभ नहीं है। जातक को भाग्योदय हेतु थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा।

दृष्टि – द्वितीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि अष्टम भाव (मिथुन राशि) पर होगी। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु होते हैं पर जातक दीर्घजीवी होता है।

निशानी –  ऐसा जातक धनवान, गुणवान, अपने विषय का विद्वान, मनुष्यों को प्रिय, बड़ा ऑफिसर एवं मनुष्यों पर शासन करने वाला होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी। जातक का भाग्योदय होगा। जातक को चंद्रमा की दशा में धन की प्राप्ति होगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति धन स्थान में होने से जातक धनवान होगा। जातक की वाणी अत्यधिक प्रभावशाली एवं विनम्र होगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां द्वितीय स्थान में दोनों धनु राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव (मीन राशि), अष्टम भाव (मिथुन राशि) एवं भाग्य भवन (कर्क राशि) को देखेंगे। फलत: जातक धनी एवं सौभाग्यशाली होगा। अपने जातक शत्रुओं का मान मर्दन करने में सक्षम होगा। जातक की आर्थिक उन्नति प्रथम संतति के प्रजनन के बाद होगी।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध जातक को व्यापार-व्यवसाय से खूब लाभ दिलायेगा । जातक की वाणी विनम्र एवं उसका स्वभाव सौम्य होगा।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिकलग्न में धनु राशि के अंतर्गत द्वितीय भाव में हो रही यह युति, वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश पंचमेश बृहस्पति के साथ युति है। बृहस्पति यहां स्वगृही होगा तथा इसकी दृष्टि छठे स्थान आठवें स्थान एवं राज्य (दसवें स्थान पर होगी।

फलतः आप ऋण-रोग एवं शत्रु से बचे रहेंगे। आपका भाग्योदय शीघ्र होगा। आपको उच्च शैक्षणिक डिग्री भी प्राप्त होगी तथा आपकी आयु भी लंबी होगी। यह योग आपके लिए अत्यंत शुभ फलदायक है।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र व्यक्ति को सुसंस्कृत एवं सभ्य वाणी देगा। जातक धनी होगा तथा उसे अचानक पैसा मिलेगा।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि होने से जातक भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त, धनी मानी एवं पराक्रमी होगा।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक को आर्थिक विषमताएं बनी रहेंगी।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु की युति धनहानि में सहायक होती है।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश तृतीय स्थान में

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा भाग्येश हैं। यह लग्नेश मंगल का मित्र होने से परम योगकारक ग्रह होकर शुभ फलों में वृद्धि करेगा। यहां तृतीय स्थान में चंद्रमा मकर (सम) राशि में है।

ऐसे जातक को माता-पिता का सुख भाई-बहन का सुख, जमीन-जायदाद का सुख, पद-प्रतिष्ठा, सामाजिक व राजनैतिक सम्मान मिलेगा। चंद्रमा अपनी राशि (कर्क) से सातवें स्थान पर होने से पत्नी का सुख, गृहस्थ का सुख उत्तम रहेगा।

दृष्टि – तृतीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि भाग्य भवन अपने ही घर (कर्क राशि) पर होगी। ऐसे जातक का भाग्योदय शीघ्र होता है। जातक के मित्र उसके जीवन में मददगार साबित होगे।

निशानी – ऐसा जातक धनवान, गुणवान अपने विषय का विद्वान, मनुष्यों को प्रिय, बड़ा ऑफिसर एवं मनुष्यों पर शासन करने वाला होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में पराक्रम बढ़ेगा।

चंद्रमा की अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति पराक्रम स्थान में होने से जातक बहुत पराक्रमी होगा। जातक का भाई-बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। जातक को मित्रों से लाभ होगा तथा पिता की सम्पत्ति मिलेगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां तृतीय स्थान में दोनों ग्रह मकर राशि में होंगे। मकर राशि में मंगल उच्च का होगा। फलत: यहां ‘महालक्ष्मी योग’ मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि षष्टमभाव (मेष राशि), भाग्यभवन (कर्क राशि) एवं दशम भाव (सिंह राशि) पर होगी फलत: जातक धनी होगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक भाग्यशाली एवं महान् पराक्रमी होगा। जातक का सशक्त प्रभाव देश की राजनीति में भी होगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध जातक को अधिक बहनें देगा। जातक पराक्रमी होगा।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिकलग्न के तृतीय भाव में मकर राशि में बृहस्पति-चंद्र की युति हो रही है। यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश-पंचमेश बृहस्पति के साथ युति है। तृतीय स्थान में बृहस्पति नीच का होगा। इसकी दृष्टि छठे स्थान, आठवें स्थान एवं दशम भाव पर होगी। फलतः जातक को ऋण रोग व शत्रु का भय नहीं रहेगा।

आपकी आयु दीर्घ होगी तथा आप अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम रहेंगे। राज्य (सरकार), कोर्ट-कचहरी में भी जातक को विजय मिलेगी। जातक की गिनती योग्य एवं सफल व्यक्तियों में होगी।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र होने से जातक का ससुराल पराक्रमी होगा।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि स्वगृही होने से जातक को भाई-बहनों का पूर्ण सुख मिलेगा।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बना रहा है। अत: जातक भाईयों की ओर से चिंतित रहेगा।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु जातक को पराक्रमी बनायेगा । जातक कीर्तिवन्त होगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थ स्थान में चंद्रमा कुंभ (सम) राशि में होगा। ऐसे जातक को माता-पिता का सुख, वाहन का सुख, जमीन, जायदाद व पैतृक सम्पत्ति का सुख मिलता है। जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। जातक धैर्यशाली, संयमी एवं अतिथिप्रिय होता है।

दृष्टि – चतुर्थ भावगत चंद्रमा की दृष्टि दशम भाव (सिंह राशि) पर होगी। ऐसे जातक को रोजी-रोजगार की प्राप्ति शीघ्र होता है। जातक का भाग्य उन्नत होता है।

निशानी – भाग्येश चतुर्थ स्थान में होने से जातक राज्यमंत्री सेनापति अथवा शासन का प्रमुख व्यक्ति होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। एवं उसका भाग्योदय होगा। चंद्रमा की दशा शुभ फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति चतुर्थ भाव में होने से जातक को अच्छी नौकरी व पिता का सहयोग मिलेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां चतुर्थ स्थान में दोनों कुंभ राशि में होंगे। मंगल यहां ‘दिक्बली’ होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव को देखेंगे। फलत: जातक धनी होगा। जातक व्यापार व्यवसाय में अच्छा धन कमायेगा। ऐसा जातक विवाह के बाद आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक ऊंचाइयों को स्पर्श करेगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध जातक को विद्यावान् बनायेगा। जातक को माता-पिता का सुख प्राप्त होगा।

4. चंद्र + बृहस्पति – वृश्चिकलग्न में चतुर्थ भावगत यह युति कुंभ राशि में हो रही है। यह वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश पंचमेश बृहस्पति के साथ युति है। चतुर्थ भाव में ये दोनों ग्रह केन्द्रवर्ती होकर अष्टम स्थान, दशम भाव एवं व्यय भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक दीर्घायु होगा । उसका दुर्घटनाओं से बचाव होता रहेगा। राज्यपक्ष (कोर्ट-कचहरी) में विजय मिलेगी। जातक के हाथ से शुभ कार्य में धन खर्च होगा। जिससे जातक को यश मिलेगा।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र होने से जातक के पास एक से अधिक वाहन होंगे।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि ‘शश योग’ बनायेगा। जातक महाधनी होगा। उसके पास उत्तम वाहन एवं भवन होगा। जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक मानसिक परेशानी में रहेगा। जातक को माता का सुख कमजोर होगा।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु जातक की माता को लम्बी बीमारी देगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में चंद्रमा मीन (सम) राशि में है। चंद्रमा अपने घर से

दसवें एवं मातृकारक मातृ भाव से दूसरे स्थान पर होगा। जातक को माता का सुख मिलेगा। जातक अत्यधिक भावुक, कल्पनाशील होता है। जातक विद्यावान् होगा। उसे शैक्षणिक उपाधि मिलेगी। जातक को संतति लाभ भी होगा। परन्तु प्रथम संतति कन्या होने की संभावना अधिक रहेगी।

दृष्टि – पंचमस्थ चंद्रमा की दृष्टि लाभ स्थान (कन्या राशि) पर होगी। ऐसे जातक को व्यापार में लाभ होगा।

निशानी – भाग्येश पांचवें स्थान में होने से मनुष्य बड़ा ही भाग्यशाली, जनप्रिय, बृहस्पतिभक्त, धैर्यवान् एवं अनेक सद्गुणों से युक्त होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में व्यापार-व्यवसाय बढ़ेगा। दूरस्थ प्रदेशों की यात्रा होगी। परिवार सहित तीर्थ यात्रा भी संभव है।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति पंचम भाव में होने से जातक को उत्तम संतति एवं विद्या का सुख मिलेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां पंचम स्थान में दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि अष्टम भाव (मिथुन राशि) लाभ स्थान (कन्या राशि) एवं व्यय भाव (तुला राशि) पर होगी। इस ‘लक्ष्मी योग’ के कारण जातक धनवान होगा।

जातक लम्बी उम्र वाला होगा तथा व्यापार व्यवसाय व नौकरी से यथेष्ट धन अर्जित करेगा। साथ ही जातक व्ययशील प्रवृति खर्चीले स्वभाव का परोपकारी व दानी होगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध नीच का होने से जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि मिलेगी। विद्या से किस्मत बदलेगी।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिकलग्न के पंचम भाव में यह युति मीनराशि में हो रही है। यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश पंचमेश बृहस्पति के साथ युति है। यह शुभ फलकारी है। क्योंकि बृहस्पति यहां स्वगृही होकर भाग्य स्थान, लाभ स्थान एवं लग्न स्थान को देख रहा है।

फलतः आपका भाग्योदय शीघ्र होगा। व्यापार में आपको लाभ होगा तथा विद्या एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण रहेंगे। आपके व्यक्तित्व का चहुमुखी विकास इस चंद्र-गुरु के कारण होगा।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र उच्च का होने से जातक प्रजावान होगा तथा ऊंची विद्या पढ़ेगा जिससे जातक की किस्मत चमकेगी।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि होने से जातक पुत्रवान् होगा। विद्या व संतान से जातक की कीर्ति बढ़ेगी।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक को संतान संबंधी चिंता बनी रहेगी।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु होने से जातक की संतति शल्य चिकित्सा द्वारा होगी।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां षष्टम स्थान में चंद्रमा मेष (सम) राशि में है। चंद्रमा अपने घर से दसवें एवं मातृकारक मातृभाव से तीसरे स्थान पर है। चंद्रमा के कारण यहां ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। जातक को भाग्योदय हेतु कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। एक अन्य मत के अनुसार यहां चंद्रमा को षष्टम भाव में जाने का दोष नहीं लगता। मंगल की राशि में चंद्रमा होने से जातक ऊर्जावान् होगा।

दृष्टि – षष्टम स्थानगत चंद्रमा की दृष्टि व्यय भाव (तुला राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। जातक यात्रा करता रहेगा पर ऋणी नहीं होगा।

निशानी – भाग्येश छठे स्थान पर होने से जातक को बड़े भाई व मामा का सुख नहीं मिलता।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की युति छठे भाव में होने से ‘भाग्यभंग योग’ व ‘राजभंग योग’ बनेगा। जातक को अच्छी नौकरी प्राप्त करने व भाग्योदय हेतु बहुत परिश्रम करना पड़ेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां षष्टम स्थान में दोनों ग्रह मेष राशि में होंगे। मंगल यहां स्वगृही होगा। चंद्रमा खड्डे में जाने से ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। मंगल खड्डे में गिरने से ‘लग्नभंग योग’ भी बनता है परन्तु षष्टेश का षष्टम भाव में स्वगृही होने से ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि होती है जो मंगल की ऊर्जा को सकारात्मक बल देती है।

फलतः ऐसा जातक धनी होगा। दोनों ग्रहों की दृष्टि भाग्य भवन (कर्क राशि) व्यय भाव (तुला राशि) एवं लग्न भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी जिससे जातक भाग्यशाली एवं खर्चीले स्वभाव का होगा और जो कार्य हाथ में लेगा उसमें उसे बराबर सफलता मिलेगी।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध छठे स्थान ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। जातक को भाग्योदय हेतु काफी दिक्कतें उठानी पड़ेंगी।

4. चंद्र + गुरु –  वृश्चिकलग्न में छठे स्थान में यह युति मेष राशि में हो रही है। यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश पंचमेश बृहस्पति के साथ युति है। बृहस्पति-चंद्र षष्टमस्थ होने से ‘धनहीन योग’, ‘संतानहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि हुई है।

षष्टमस्थ बृहस्पति और चंद्रमा भाग्य भवन, लाभ स्थान एवं लग्न स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे फलत: शत्रु नाश होंगे, व्यापार व्यवसाय में लाभ-हानि का उपक्रम चलता रहेगा। इस शुभ योग के कारण जातक को कोई गंभीर नुकसान नहीं पहुंचेगा।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र ‘विलम्ब विवाह योग’ कराता है। जातक को दाम्पत्य सुख देरी से मिलेगा।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘सुखहीन योग’ बनायेगा। जातक को मित्रों से दगा मिलेगा।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक के भाग्य में जबरदस्त बाधा आयेगी।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु गुप्त शत्रु बढ़ायेगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश सप्तम स्थान में

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा भाग्येश है। यह लग्नेश मंगल का मित्र होने से परम योगकारक ग्रह होकर शुभ फलों में वृद्धि करेगा। यहां सप्तम स्थान में चंद्रमा उच्च का है। वृष राशि के तीन अंशों तक चंद्रमा परमोच्च का होगा। चंद्रमा यहां अपने घर से ग्यारहवें एवं मातृकारक मातृभाव से चौथे

स्थान पर है। जातक को माता का सुख मिलेगा। जातक की पत्नी अत्यधिक सुन्दर होगी। जातक को विद्या, बुद्धि, धन, पद, प्रतिष्ठा व सौभाग्य की प्राप्ति होगी।

दृष्टि – सप्तमस्थ चंद्रमा की दृष्टि लग्न भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। जातक को परिश्रम का लाभ मिलेगा। जातक सुन्दर, विनम्र, सौम्य एवं दूसरों का आदर करने वाला होता है।

निशानी – भाग्येश सातवें भाव में होने से जातक बड़ा ही गुणवान, यशस्वी व कीर्तिवान् होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में भाग्योदय होगा। जातक को पत्नी का सुख तथा ऐश्वर्य संसाधनों की प्राप्ति होगी। जातक उन्नति मार्ग की ओर आगे बढ़ेगा।

चंद्रमा की अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की युति सप्तम भाव में होने से जातक की पत्नी अत्यन्त रुपवती होगी। उसे परिश्रम का लाभ मिलेगा। ‘यामिनीनाथ योग के कारण जातक भाग्यशाली होगा। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां सप्तम स्थान में दोनों ग्रह वृष राशि में होंगे। चंद्रमा वृष राशि में उच्च का होगा। फलत: यहां ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा एवं ‘यामिनीनाथ योग’ भी बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव (सिंह राशि) लग्न भाव (वृश्चिक राशि) एवं धन भाव (धनु राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक महाधनी होगा। राज्य (सरकार) राजनीति में उसका दबदबा होगा। जातक जो भी कार्य हाथ में लेगा, उसमें उसे बराबर सफलता मिलेगा जातक समाज का धनी-मानी व प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध होने से जातक का जीवनसाथी सुन्दर होगा। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा।

4. चंद्र + गुरु – यहां चंद्रमा उच्च का होगा। ‘गजकेसरी योग’ की केन्द्रगत यह स्थिति शक्तिशाली है जो क्रमशः ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि कर रहा हैं। इन दोनों शुभ ग्रहों की दृष्टि लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं पराक्रम स्थान पर होगी।

फलतः जातक के व्यक्तित्व का विकास द्रुतगति से होगा, जातक के मित्र सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित होंगे। जातक को व्यापार व्यवसाय में आशातीत लाभ होते रहेंगे।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र होने से ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनेगा। जातक की पत्नी अति सुन्दर होगी। जातक की किस्मत विवाह के बाद चमकेगी।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि जातक के भौतिक ऐश्वर्य व सुख सम्पत्ति में वृद्धि करेगा।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक के वैवाहिक सुख में व्यवधान पड़ेगा एवं समरसता बिगड़ेगी।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु पेट का ऑपरेशन करायेगा। जातक को गुर्दे की तकलीफ भी हो सकती पर ठीक हो जायेगी।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टम स्थान में चंद्रमा मिथुन (शत्रु) राशि में है। चंद्रमा के कारण यहां ‘राजभंग योग’ बना। चंद्रमा अपनी स्वराशि से | बारहवें तथा मातृकारक मातृभाव से पांचवें स्थान पर है। ऐसे जातक का दैहिक व मानसिक सुख कमजोर होता है। यहां पर चंद्रमा ‘बालारिष्ट योग’ उत्पन्न करता है। पाप ग्रहों की युति से यह योग बलवान हो जाता हैं। जातक को पिता का सुख कमजोर होता है।

दृष्टि – अष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि धन भाव (धनु राशि) पर होगी। जातक का धन व्यर्थ में खर्च होता चला जायेगा।

निशानी – ऐसे जातक को बड़े भाई का सुख प्राप्त नहीं होता।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा अशुभ फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति आठवें भाव में होने से ‘भाग्यभंग योग’ व ‘राजभंग योग’ बनेगा। जातक को उत्तम व्यवसाय नौकरी प्राप्त करने हेतु भाग्योदय हेतु अत्यधिक परिश्रम करना पड़ेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां अष्टम स्थान में दोनों मिथुन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि लाभ स्थान (कन्या राशि), धन स्थान (धनु राशि) एवं पराक्रम स्थान (मकर राशि) पर होगी। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होकर अष्टम में होने से ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। मंगल के अष्टम में जाने से ‘लग्नभंग योग’ बनता है परन्तु षष्टेश के अष्टम भाव में जाने से ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ की सृष्टि होने से मगल को सकारात्मक ऊर्जा का बल मिला है। फलतः ऐसा जातक धनवान होगा। जातक व्यापार व्यवसाय में धन अर्जित करेगा। जातक महान पराक्रमी होगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध ‘लाभभंग योग’ बनायेगा । जातक को व्यापार व्यवसाय में नुकसान होगा।

4. चंद्र + गुरु – यहां बैठने से ‘धनहीन योग’, ‘संतानहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि होती है। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय स्थान, धन स्थान एवं सुख स्थान को देखते हैं। फलत: जातक को धन की हानि सुख साधन की कमी अखरेगी। इसके साथ ही बढ़े हुए खर्च के कारण जातक को चिंता बनी रहेगी।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र ‘विलम्ब विवाह योग’ बनाता है। जातक को गृहस्थ सुख देरी से मिलेगा।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि ‘पराक्रमभंग योग’ बनायेगा। जातक के परिजन व मित्र पीठ पीछे जातक की निन्दा करेगे।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘बालारिष्ट योग’ बना रहा है। जन्म से आठवां वर्ष 20 व 32 वां वर्ष जातक के लिए घातक है आयु का खतरा है।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु होने से जन्म का आठवां वर्ष घातक होगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश नवम स्थान में

वृश्चिकलग्न में चंद्रमा भाग्येश हैं। यह लग्नेश मंगल का मित्र होने से परम योगकारक ग्रह होकर शुभ फलों में वृद्धि करेगा। यहां चंद्रमा स्वगृही है। मातृकारक चंद्रमा मातृ भाव से छठे स्थान पर है। ऐसा जातक धनी मानी भाग्यशाली एवं समाज का गणमान्य एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है। ऐसे जातक दानशील, क्षमाशील, समाज व जाति के सदैव हितैषी होते हैं। जातक अनेक मित्रों वाला लोकप्रिय व्यक्ति होता है।

दृष्टि– नवम भावगत चंद्रमा की दृष्टि पराक्रम स्थान (मकर राशि) पर होगी। ऐस जातक के अनेक भाई-बहन होते हैं। सभी सुखी होते हैं।

निशानी – भाग्येश यदि भाग्य स्थान में ही हो तो जातक धन-धान्य, अन्न-धन, सम्पत्ति, जमीन-जायदाद से युक्त आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक का जबरदस्त भाग्योदय होगा। चंद्रमा की दशा शुभ फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति भाग्य स्थान में होने से जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक परम भाग्यशाली होगा। उसको नौकरी-व्यवसाय की उत्तम प्राप्ति होगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां नवम स्थान में दोनों ग्रह कर्क राशि में होंगे। यहां चंद्रमा स्वगृही एवं मंगल नीच राशि का होने के से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। फलत: ‘महालक्ष्मी योग’ मुखरित होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव (तुला राशि) पराक्रम भाव (मकर राशि) एवं चतुर्थ भाव (कुंभ राशि) को देखेंगे।

फलत: जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा। जातक खुले दिल से धन खर्च करने वाला परोपकारी व दानी होगा। जातक के कुटुम्बी एवं मित्रजन प्रत्येक कार्य में जातक का साथ देंगे, सहयोग करेंगे।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध जातक को व्यापार में लाभ दिलायेगा। जातक बुद्धिमान होगा।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिक लग्न के नवम भाव में बृहस्पति चंद्र की युति कर्क राशि के अंतर्गत होगी। यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्र की धनेश-पंचमेश बृहस्पति के साथ युति होगी। ‘गजकेसरी योग’ की यह सर्वोत्तम स्थिति है क्योंकि यहां चंद्रमा स्वगृही एवं बृहस्पति उच्च का होकर, लग्न स्थान, पराक्रम स्थान एवं पंचम स्थान को देखेंगे।

फलतः आपको धन की कोई कमी नहीं रहेगी। आपका पराक्रम तेज होगा। मित्र वर्ग सम्पन्न एवं सहयोगात्मक भावना वाला होगा। आपको शिक्षा संबंधी उच्च डिग्री मिलेगी तथा आपकी संतति भी सुयोग्य एवं संस्कारी होगी।

4. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र होने से जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा ।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि होने से जातक को भाईयों-परिजनों व मित्रों का सहयोग मिलेगा।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ से भाग्योदय में बाधा उत्पन्न करता है।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु की युति जातक को महत्वाकांक्षी बनायेगी।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश दशम स्थान में

यहां दशम भाव में चंद्रमा सिंह (मित्र) राशि में है। चंद्रमा अपनी राशि से दूसरे तथा मातृकारक तरीके मातृ भाव से सातवें स्थान पर है। जातक को माता का सुख मिलेगा।

ऐसा जातक उच्च कोटि के पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा। जातक धनी होगा उसे उत्तम वाहन सुख मिलेगा। जातक को पैतृक मकान भी मिलेगा।

दृष्टि – चंद्रमा की दृष्टि चतुर्थ भाव (कुंभ राशि) पर होगी। जातक की शिक्षा उत्तम होगी। उसे उत्तम मकान का सुख मिलेगा।

निशानी – लोमेश संहिता’ के अनुसार भाग्येश यदि दसवें स्थान पर हो तो जातक राजमंत्री, सेनापति अथवा शासन का प्रमुख व्यक्ति होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में रोजी-रोजगार के उत्तम अवसर प्राप्त होंगे। जातक का भाग्योदय होगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति दशम भाव में होने से जातक को ‘रविकृत राजयोग’ का लाभ मिलेगा। जातक को सरकारी घर, प्रतिष्ठा, उत्तम भवन, उत्तम वाहन का सुख मिलेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां दशम स्थान में दोनों ग्रह सिंह राशि में होंगे। मंगल यहां ‘दिक्बली’ होगा एवं ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि लग्न स्थान (वृश्चिक राशि) चतुर्थ स्थान (कुंभ राशि) एवं पंचम स्थान (मीन राशि) पर होगी। ऐसा जातक धनी होगा तथा भौतिक सुख उपलब्धियों से परिपूर्ण जीवन जीयेगा।

ऐसा जातक जो कार्य हाथ में लेगा, उसमें उसे बराबर सफलता मिलेगी। जातक विद्यावान् होगा ऐसे जातक का आर्थिक व सामाजिक विकास प्रथम पुत्र के जन्म के पश्चात् होता है।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा। जातक धनी मानी होगा समाज में उसकी भारी इज्जत व प्रतिष्ठा होगी।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिक लग्न के दशम भाव में बृहस्पति-चंद्र की युति सिंह राशि में होगी । यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश पंचमेश के साथ युति होगी। यहां दोनों ग्रह केन्द्रवर्ती होकर क्रमश: ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि कर रहे हैं। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन स्थान, सुख स्थान एवं षष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक को यथेष्ट धन की प्राप्ति अल्प प्रयासों से होती रहेगी। सुख में वृद्धि होगी। जातक को वाहन की प्राप्ति होगी एवं उसके शत्रुओं का नाश होगा। यह योग आपके लिए अत्यन्त शुभ है।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र जातक को धनवान बनायेगा । जातक की उन्नति विवाह के बाद होगी।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि जातक को घर का बढ़िया मकान देगा। जातक के पास एक से अधिक मकान होगे।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक की माता बीमार होगी। जातक को मानसिक तनाव रहेगा।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु जातक को महत्वाकांक्षी बनायेगा ।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश एकादश स्थान में

यहां एकादश स्थान में चंद्रमा कन्या (शत्रु राशि) में है। चंद्रमा यहां अपनी राशि से तीसरे एवं मातृकारक मातृभाव से आठवें स्थान पर है फलतः माता का सुख कमजोर रहेगा। ऐसा जातक आत्मज्ञानी होता है। उसका सर्वांगीण विकास होता है। उसे व्यापार-व्यवसाय से लाभ होता है। जातक को विदेशी व्यापार एवं जलीय वस्तुओं से लाभ होता है।

दृष्टि – एकादश भावगत चंद्रमा की दृष्टि पंचम स्थान (मीन राशि) पर होगी। जातक को विद्या – बुद्धि बल, पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी।

निशानी –  लोमेश संहिता के अनुसार भाग्येश यदि एकादश में हो तो मनुष्य बड़ा ही भाग्यशाली, जनप्रिय, बृहस्पतिभक्त, धैर्यवान् एवं अनके सद्गुणों से युक्त होता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।

चंद्रमा की अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र व दशमेश सूर्य की यह युति एकादश भाव में होने से जातक को उत्तम विद्या, उत्तम संतति की प्राप्ति होगी। जातक व्यापार व्यवसाय में अच्छा धन कमायेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां एकादश स्थान में दोनों ग्रह कन्या राशि में होंगे। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन भाव (धनु राशि), पंचम भाव (मीन राशि) एवं षष्टम भाव (मेष राशि) को देखेंगे।

फलतः ‘लक्ष्मी योग’ के कारण जातक धनवान होगा। जातक ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक की आर्थिक व सामाजिक उन्नति प्रथम संतति के जन्म के पश्चात होगी।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ उच्च का बुध जातक को उद्योगपति बनायेगा। जातक धनी होगा।

4. चंद्र + गुरु – वृश्चिक लग्न के एकादश भाव में बृहस्पति-चंद्र की युति कन्या राशि में होगी। यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश-पंचमेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम स्थान, पंचम स्थान एवं सप्तम स्थान को देखेंगे फलत: जातंक का पराक्रम बढ़ेगा। विवाह के बाद जातक का भाग्योदय होगा। इसके बाद प्रथम संतति के बाद जातक का दूसरा भाग्योदय होगा। जातक समाज का धनी व प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र विवाह के बाद जातक को उन्नति करायेगा। जातक की व्यापार में उन्नति होगी।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि जातक का पराक्रम बढ़ायेगा। एवं उसे भौतिक सुख-सुविधाएं मिलती रहेंगी।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक को मानसिक तनाव रहेगा। जातक की माता बीमार रहेगी

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु जातक को महत्त्वाकांक्षी बनायेगा।

वृश्चिक लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में चंद्रमा तुला (सम) राशि में है। चंद्रमा के कारण यहां ‘राजभंग योग’ बना। चंद्रमा अपने घर से चौथे तथा मातृकारक मातृभाव से नवम स्थान पर होने से शुभ है। जातक को माता का सुख मिलेगा। ऐसे जातक के भाग्योदय में कुछ विलम्ब तो होगा परन्तु भाग्य खराब नहीं होगा। जातक की बाईं आंख कमजोर होगी।

दृष्टि – द्वादश स्थानगत चंद्रमा की दृष्टि छठे भाव (मेष राशि) पर होगी। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होंगे।

निशानी – लोमेश संहिता के अनुसार भाग्येश यदि बारहवें स्थान पर हो तो जातक को बड़े भाई व मामा का सुख नहीं मिलेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा अशुभ फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध

1. चंद्र + सूर्य – भाग्येश चंद्र और दशमेश सूर्य की यह युति बारहवें स्थान में होने के कारण ‘भाग्यभंग योग’ एवं ‘राज्यभंग योग’ बनेगा। ऐसे जातक को राजकीय नौकरी नहीं मिलेगी। जातक को उत्तम नौकरी, व्यापार की प्राप्ति हेतु दिक्कतें आयेंगी। जातक को नेत्र पीड़ा होगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां द्वादश स्थान में दोनों ग्रह तुला राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम स्थान (मकर राशि), षष्टम स्थान (मेष राशि) एवं सप्तम स्थान (वृष राशि) का देखेंगे। चंद्रमा द्वादश में होने से ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। मंगल द्वादश में होने से ‘लग्नभंग योग’ बनता है परन्तु षष्टेश के द्वादश स्थान में जाने से ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ की सृष्टि होती है।

जिससे मंगल में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है। ऐसा जातक धनी होता है। ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होता है। ऐसे जातक का आर्थिक विकास विवाह के बाद होता है। जातक यात्राओं में एवं व्यक्तिगत मौज-शौक में अधिक धन व्यय करेगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्र के साथ बुध ‘लाभभंग योग’ बनायेगा। जातक को व्यापार में हानि होगी।

4. चंद्र + बृहस्पति – वृश्चिक लग्न के द्वादशस्थान में बृहस्पति-चंद्र की युति तुला राशि में होगी। यह युति वस्तुतः भाग्येश चंद्रमा की धनेश-पंचमेश के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह सुख स्थान, षष्टम भाव एवं अष्टम भाव को देखेंगे। द्वादशस्थ इन दोनों ग्रह के कारण क्रमशः ‘धनहीन योग’, ‘संतानहीन योग’ एवं ‘ भाग्यहीन योग’ की सृष्टि होगी।

फलतः ‘यहां ‘गजकेसरी योग’ की ज्यादा सार्थकता नहीं है। ऐसे जातक को धनहानि का सामना करना पड़ेगा। संतान प्राप्ति में विलम्ब होगा तथा भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। पर इस ‘गजकेसरी योग’ के कारण जातक सभी संकटों व संघर्षों से पार पा लेगा।

5. चंद्र + शुक्र – चंद्र के साथ शुक्र स्वगृही ‘विलम्ब विवाह योग’ बनायेगा। जातक के दाम्पत्य सुख में कमी रहेगी।

6. चंद्र + शनि – चंद्र के साथ शनि ‘पराक्रमभंग योग’ बनायेगा। जातक के परिजन व मित्रों में निन्दा उसकी होगी।

7. चंद्र + राहु – चंद्र के साथ राहु ‘ग्रहण योग’ बनायेगा। जातक यात्रा अधिक करेगा। जातक के विवाह में विलम्ब होगा एवं उसे नींद कम आयेगी।

8. चंद्र + केतु – चंद्र के साथ केतु जातक को आध्यात्मिक मार्ग की ओर मोड़ेगा। जातक परापेकार में रुपया खर्च करेगा।

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