वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश
केतु वृश्चिकराशि में उच्च का माना गया है। केतु यहां हर्षित रहेगा। वृश्चिकलग्न में केतु जहां होगा वहां उत्साह की प्रवृत्ति रहेगी।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश प्रथम स्थान में
यहां प्रथम स्थान में केतु वृश्चिक राशि में उच्च का होगा। ऐसा जातक कृशकाय, दुबला, उदास, क्रोधी और लड़ाकू स्वभाव का होता है। जातक कठोर परिश्रम करके अपना भाग्य खुद बनायेगा।
दृष्टि – लग्नस्थ केतु दृष्टि सप्तम भाव (वृष राशि) पर होगी। ऐसा जातक कामी होगा और जीवन साथी के साथ अप्राकृतिक मैथुन करेगा।
निशानी – ऐसे जातक के हाथ में पसीन बहुत आयेगा । जातक के चेहरे पर चेचक इत्यादि के स्थाई चिह्न हो सकते हैं।
दशा – केतु की दशा अतर्दशा उत्तम फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक के व्यक्तित्व विकास में संघर्ष करायेगा।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ नीच चंद्रमा जातक को तनावग्रस्त रखेगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल ‘रुचक योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी व प्रभावशाली होगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक की बुद्धि को भ्रमित करेगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को आध्यात्मिक ऊर्जा देगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को सैक्स की ओर ज्यादा आकर्षित करेगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करेगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश द्वितीय स्थान में
यहां द्वितीय स्थान में धनु राशि के केतु उच्च का होगा। ऐसे जातक को मुख रोग और कुटुम्ब से विरोध रहता है। राजा से भय रहता है। यहां केतु धनसंग्रह में रुकावट डालता है। ऐसा जातक अपनी प्रतिष्ठा बचाएं रखने के लिए विशेष रुप से प्रयत्नशील रहेगा पर कौटम्बिक सुख में कुछ न कुछ कमी रहेगी।
दृष्टि – द्वितीयस्थ केतु की दृष्टि अष्टम भाव (मिथुन राशि) पर रहेगी। जातक दीर्घजीवी होगा।
निशानी – ऐसा जातक शत्रु जैसी वाणी बोलता है।
दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को धनी बनायेगा पर धन का 60% भाग व्यर्थ में खर्च हो जायेगा ।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक को मानसिक तनाव देगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक के धन को व्यर्थ में नष्ट-भ्रष्ट करेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध कुटुम्ब में अशांति देगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को धनी बनायेगा। परन्तु धन का 60% भाग व्यर्थ में खर्च हो जायेगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को विवाह से कष्ट पैदा करेगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि धन का बिगाड़ करेगा। कुटुम्ब के कलह करायेगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश तृतीय स्थान में
यहां तृतीय स्थान में केतु की स्थिति मकर राशि में मूलत्रिकोण में होगी। ऐसा जातक शत्रु का नाश करने वाला लोकप्रिय व बलवान होता है। साझेदारों से हमेशा लाभ कमाता है। प्रवास में भाग्यवृद्धि होती है। ऐसा जातक परिश्रमी साहसी व धैर्यवान होता है। भाई-बहनों के संबंधों में कुछ कटुता रहती है।
दृष्टि – तृतीयस्थ केतु की दृष्टि भाग्य भवन (कर्क राशि) पर होगी। जातक का भाग्योदय कठिनता से होगा। ऐसा व्यक्ति भीतर से कमजोर पर बाहर से बड़ी हिम्मत का प्रदर्शन करता है।
निशानी – छोटे भाई को कष्ट होता है व कान में रोग होते हैं।
दशा – केतु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को पराक्रमी बनायेंगा पर बदनामी पठी पीछे चलती रहेगी।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा परिजनों में मनमुटाव करायेगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल उच्च का जातक को पराक्रमी बनायेगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को व्यवहारिक बनायेगा ।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति मित्रों से आर्थिक मदद एवं सहायता दिलायेगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र पराक्रम में गड़बड़ी करायेगा। जातक यार-दोस्तों पर फलातू रुपया खर्च करेगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ स्वगृही शनि भाईयों से लाभ देगा पर तकरार भी करायेगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश चतुर्थ स्थान में
यहां चतुर्थ स्थान में केतु कुंभ राशि में मित्रक्षेत्री होगी। केतु यहां राजयोग देगा। वाहन सुख देगा। स्वभाव अस्थिर होता है। जातक को माता के कारण कुछ परेशानी उठानी पड़ती है। मकान सुख में कुछ कमी और व्यक्ति अंदर से परेशान रहता है।
दृष्टि – चतुर्थभावस्थ केतु की दृष्टि दशम स्थान (सिंह राशि) पर होगी। जातक को राजा से भय रहेगा। कोर्ट-कचहरी में प्रतिकूल परिणाम मिलेगे।
दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य माता-पिता को बीमारी या कष्ट देगा। पिता की सम्पत्ति जातक को नहीं मिलेगी।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा माता को बीमारी या वाहन से कष्ट देगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को भौतिक सुख-सुविधा में कष्ट देगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध मामा को कष्ट देगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक को अपना भवन-मकान, भूमि व वाहन देगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र विवाह में विलम्ब करायेगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘शशयोग’ के कारण जातक को राजा तुल्य पराक्रमी बनायेगा ।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश पंचम स्थान में
यहां पंचम स्थान में केतु मीन राशि में स्वगृही होगा। ऐसा जातक आध्यात्म प्रेमी होता है। उसे तीर्थ यात्रा का शौक रहता है। जातक उपदेशक होता है। राजयोग के कारण मठाधीश, महंत या सामाजिक संस्था ट्रस्ट का अध्यक्ष होता है जातक के विद्याध्ययन में रुकावट आयेगी। संतान से कम बनेगी।
दृष्टि – पंचमस्थ केतु की दृष्टि एकादश स्थान (कन्या राशि) पर होगी। राज (सरकार) पक्ष से गुप्त चिंताएं बनी रहेगी।
निशानी – ऐसे जातक को परदेश में रहने की प्रवृत्ति होती है।
दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभफल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य विद्या प्राप्ति में बाधक है।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक को उच्च शिक्षा दिलायेगा। प्रथम संतति कन्या होगी।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को उत्तम विद्या, व्यवहारिक विद्या व टेक्नीकल विद्या का ज्ञात बनायेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ नीच का बुध जातक की बुद्धि को मलिन करेगा। जातक को दो कन्या होगी।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति स्वगृही जातक को आध्यात्मिक ज्ञान एवं पुत्र संतान की प्राप्ति करायेगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र उच्च का जातक का भाग्योदय विवाह के बाद करायेगा पर विवाह विलम्ब से होगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को विदेशी विद्या में रुचि देगा ।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश षष्टम स्थान में
यहां छठे स्थान में केतु मेषराशि में मित्रक्षेत्री होगा। ऐसा जातक शत्रु का नाश करने वाला सदैव विजयी होता है। चौपयों का लाभ अथवा अनेक वाहन होते हैं। ऐसा जातक ऊर्जावान् होता है। अन्य लोगों की तुच्छ समझकर वेपरवाह रहता है। जातक बड़ा परिश्रमी होता है तथा अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है।
दृष्टि – षष्टम भावगत केतु की दृष्टि द्वादश भाव तुला राशि पर होगी। ऐसा जातक धन का खर्च अच्छे कामों में करता है।
निशानी – शरीर निरोग रहता है। जातक का ननिहाल पक्ष कमजोर होता है।
दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभफल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य ‘राजभंग योग’ करायेगा। जातक को सरकारी नौकरी प्राप्त करने में दिक्कत आयेगी।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा ‘भाग्यभंग योग’ करायेगा। जातक को भाग्योदय हेतु परेशानी उठानी पड़ेगी।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल ‘लग्नभंग योग’ बनायेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी मानी एवं ऐश्वर्यशाली जीवन जीयेगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति जातक की कुण्डली में ‘धनहीन योग’ व ‘विद्याभंग योग’ बनायेगा। जातक को आर्थिक विषमताएं रहेगी।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘विलम्ब विवाह योग’ कराता है। जातक को दाम्पत्य सुख देरी से मिलेगी।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘पराक्रमभंग योग’ बनायेगा। ‘सुखहीन योग’ भी बनायेगा। जातक को बदनामी का सामना करना पड़ेगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश सप्तम स्थान में
यहां सप्तम स्थान में केतु वृषराशि में नीच का होगा। ऐसे जातक को राजा की अवकृपा एवं शत्रुओं से भय रहता है। कोर्ट-कचहरी से अपमान का भय रहता है। ऐसा जातक अतिकामुक एवं अनैतिक संबंधों में विश्वास रखता है। उसके जननेन्द्रिय में विकार रहता है।
दृष्टि – सप्तम भावगत केतु की दृष्टि लग्नस्थान (वृश्चिक राशि) पर होगी। ऐसा जातक अपने वाक्चातुर्य, गुप्त युक्ति, साहस व धैय के बल पर सभी प्रकार के काम करने में सफल होता है।
निशानी – ऐसा जातक नीचजाति की स्त्री से अवैध संबंध रखता है।
दशा – केतु की दशा अंतर्दशा अनिष्ट फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य विवाह विच्छेद का योग बनाता है।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ उच्च का चंद्रमा सुन्दर पत्नी देगा ।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल होने से जातक अत्यधिक कामी होगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को व्यापार प्रिय बनायेगा पर गृहस्थ सुख में कमी रहेगी।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति गृहस्थ सुख देगा पर कुछ-न-कुछ न्यूनता बनी रहेगी।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र होने से ‘मालव्य योग’ बनेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी होगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक का वैवाहिक जीवन कलुषित होगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश अष्टम स्थान में
यहां अष्टम स्थान में केतु मिथुन राशि में नीच का होगा। ऐसा जातक दीर्घजीवी होता है। परस्त्री में आसक्त रहता है। जातक दुराचारी व नेत्र रोगी होता है। ऐसे जातक की आयु के संबंध में अनेक बार मृत्यु तुल्य कष्टों का सामना करना पड़ता है।
दृष्टि – अष्टमस्थ केतु की दृष्टि द्वितीय स्थान (धनु राशि) पर होगी। ऐस जातक को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए आर्थिक कष्टों का मुकाबला करना पड़ता है।
निशानी – जातक की वाणी कड़वी होगी।
दशा – केतु की दशा अंतर्दशा मिश्रित फलदायक होगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य ‘राजभंग योग’ कराता है। जातक को सरकारी नौकरी को लेकर परेशानी आयेंगी।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। जातक के उन्नति में बाधक है।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल ‘लग्नभंग योग’ बनायेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी मानी एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीयेगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति ‘धनहीन योग’ बनायेगा। जातक को आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ेगा। विद्या में रुकावट आयेगी।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘विलम्ब विवाह योग’ करायेगा। जातक के दाम्पत्य जीवन के सुखों में न्यूनता रहेगी।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘सुखहीन योग’ बनायेगा। जातक के पीठ पीछे जातक की निन्दा होगी।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश नवम स्थान में
यहां नवम स्थान में केतु कर्क राशि में शत्रुक्षेत्री होगा। ऐसा जातक संघर्ष के द्वारा ऊंचे पद को प्राप्त करता है। जातक धर्मविरोधी होता है पर राजा का मंत्री, सलाहकार व राज में ऊंचा पद प्राप्त करता है। ऐसे जातक हर समय मानसिक चिंताओं से घिरा रहता है।
दृष्टि – नवमस्थ केतु की दृष्टि पराक्रम स्थान (मकर राशि) पर होगी। ऐसे जातक के भाईयों में परस्पर वैर रहता है।
निशानी – सगे भाई का सुख नहीं।
दशा – केतु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य राजयोग बनायेगा। जातक को सरकारी नौकरी मिलेगी या सरकार से सम्मान मिलेगा।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा जातक का भाग्योदय शीघ्र करायेगा पर संघर्ष रहेगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल नीच का जातक को भूमि लाभ दिलायेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध व्यापार से लाभ दिलायेगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति उच्च का जातक को उत्तम विद्या का सुख देगा। राजनीति में सम्मान व सफलता देगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक का भाग्योदय विवाह के बाद करायेगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को मित्रों से परिजनों से लाभ देगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश दशम स्थान में
यहां दशम स्थान में केतु सिंह राशि में मूलत्रिकोणी होगा। ऐसे जातक को माता-पिता का सुख नहीं। वाहन दुर्घटना का भय रहता है। जातक शत्रुओं का नाश करने में कुशल होता है। युद्ध में शत्रु भी इसकी कीर्ति गाते हैं। जातक अपने धैर्य, साहस व गुप्त युक्तियों से जीवन में सफलता प्राप्त कर लेता है।
दृष्टि – दशमस्थ केतु की दृष्टि चतुर्थभाव (कुंभ राशि) पर होगी। जातक को माता का सुख नहीं मिलेगा तथा पिता से विचार नहीं मिलेगे।
निशानी – जातक का प्रभाव राज दरबार में रहेगा।
दशा – केतु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य ‘रविकृत राजयोग’ बनायेगा। जातक को राजा (सराकर) से उच्च पद प्रतिष्ठा मिलेगी।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा राजा से सम्मान दिलायेगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को बड़ी भूमि का स्वामी या गांव का मुखिया बनायेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को व्यापार में सफलता देगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति आध्यात्मिक ज्ञान तथा अध्ययन-अध्यापन में सफलता देगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को व्यापार में बाधा देगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को ‘करोड़पति’ बनायेगा ।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश एकादश स्थान में
यहां एकादश भाव के केतु कन्या राशि में नीच का होगा। जातक विनोदी स्वभाव का होगा एवं मीठा (मधुर) वाणी बोलेगा। जातक शास्त्रों का रसिक, परोपकारी, दयालु होता है। राजा द्वारा सम्मानित होता है। ऐसे जातक को आकस्मिक धन-लाभ होता है। ऐसा जातक संकटों का समाना बड़े धैर्य चालाकी एवं बुद्धि चातुर्थ से करता है।
दृष्टि – एकादश भावगत केतु की दृष्टि पंचम भाव (मीन राशि) पर होगी। ऐसे जातक को प्रारंभिक विद्या में रुकावट आती है तथा फिर आगे बढ़ता है। ऐसा व्यक्ति स्वार्थी व चालबाज होता है।
निशानी – जातक को व्यापार में यश मिलता है।
दशा – केतु की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य व्यापार में लाभ देगा।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा व्यापार में उतार-चढ़ाव लाता रहेगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल उद्योग में लाभ दिलायेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ उच्च का बुध व्यापार में लाभ देगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति आध्यात्मिक सुख देगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र नीच का बड़े भाई का सुख को नष्ट करेगा।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि व्यापार में रुकावट डालेगा। जातक विदेश में कमायेगा।
वृश्चिक लग्न में केतु का फलादेश द्वादश भाव में
यहां द्वादश स्थान में केतु तुला राशि में मित्रक्षेत्री होगा। ऐसा जातक लड़ाई में डरपोक एवं कंजूस स्वभाव का होता है। जातक कवि शास्त्रज्ञ एवं जीतेन्द्रिय होता है। ऐसा जातक अधिक खर्च करता है पर बड़ी चतुराई, परिश्रम एवं गुप्त युक्तियों से अपने खर्चे को चलता रहता है। अपने सहास व धेर्य को नहीं खोता।
दृष्टि – द्वादश भावगत केतु की दृष्टि छठे स्थान (मेष राशि) पर रहेगी। जातक ऋण व रोग को समाप्त करने में सफल होता है।
निशानी – ऐसा जातक शक्ति का उपासक देवी का भक्त एवं साधक होता है।
दशा – केतु की दशा अंतर्दशा शुभफल देगी।
केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य होने से जातक के राजा से दण्ड मिलने का भय रहेगा। सरकारी अधिकारी विरोध में रहेंगे।
2. केतु + चंद्र – केतु के साथ चंद्रमा ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। जातक को भाग्योदय हेतु भारी संघर्ष करना पड़ेगा।
3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल ‘लग्नभंग योग’ बनायेगा । जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।
4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी-मानी एवं ऐश्वर्यशाली जीवन जीयेगा।
5. केतु + गुरु – केतु के साथ बृहस्पति ‘धनहीन योग’ व ‘विद्याहीन योग’ बनाता है। जातक को आर्थिक विषमाताओं का सामना करना पड़ेगा।
6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘विलम्ब विवाह योग’ बनायेगा। जातक को पूर्ण गृहस्थ सुख में परेशानियां आयेंगी।
7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘सुखहीन योग’ बनायेगा। जातक के मित्र, परिजन ही जातक का निन्दा करेंगे।
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