धनु लग्न के धन योग

धनु लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए धन प्रदाता ग्रह मंगल है। धनेश मंगल की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध स्थापित करने वाले ग्रहों की स्थिति से, योगायोग, मंगल तथा धन भाव पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोतों तथा चल-अचल सम्पत्ति का पता चलता है।

इसके अतिरिक्त लग्नेश गुरु भाग्येश सूर्य एवं लाभेश शुक्र की अनुकूल परिस्थितियां धनुलग्न के जातकों के धन, ऐश्वर्य एवं वैभव को घटाने-बढ़ाने में सहायक होती हैं।

वैसे धनुलग्न के लिए शुक्र षष्टेश होने से अशुभ हैं। बुध व सूर्य शुभ होते हैं। शनि मारकेश होते हुए भी मारक, नहीं होता। इस लग्न के लिए शुक्र मारकेश का काम करेगा। शनि, चंद्र भी पापी है। सप्तमेश होने से बुध सहायक मारकेश है। पंचमेश होने से मंगल शुभ फलदायक बन गया है। लग्नेश गुरु चतुर्थ स्थान का स्वामी होने के कारण अति शुभ कारकत्व वाला ग्रह बन गया है।

राजयोग कारक – बुध, शुक्र एवं गुरु

सफल योग – 1. मंगल+गुरु 2. सूर्य+गुरु 3. सूर्य+बुध

निष्फल योग – 1. मंगल+बुध

अशुभ योग – 1. गुरु+शुक्र 2. गुरु+शनि 3. गुरु+बुध 4. गुरु+चंद्र

लक्ष्मी योग – गुरु केन्द्र-त्रिकोण में, शनि तृतीय में, बुध केन्द्र में।

विशेष योगायोग

1. सूर्य सिंह या मेष राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है।

2. शनि, मकर, कुंभ या तुला राशि में हो तो जातक धनपति होता है, लक्ष्मी उसका पीछा नहीं छोड़ती।

3. शनि सूर्य के घर में तथा सूर्य शनि के घर में परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठा हो अर्थात् शनि, सिंह राशि में तथा सूर्य मकर या कुंभ राशि में हो तो जातक महाभाग्यशाली होता है। लक्ष्मी ऐसे जातक की अनुचरी होती है।

4. शनि, मिथुन या कन्या राशि में तथा बुध मकर या कुंभ राशि में परस्पर परिवर्तन योग करके बैठा हो तो व्यक्ति भाग्यशाली होता है ऐसा व्यक्ति जीवन में बहुत धन कमाता है।

5. लग्न में गुरु हो, बुध एवं शनि अपनी-अपनी स्वराशि में हो तो ऐसा व्यक्ति धनवानों में अग्रगण्य होता है तथा पग-पग पर लक्ष्मी उसके साथ चलती है।

6. गुरु लग्न में बुध एवं मंगल से युत हो अथवा लग्नस्थ गुरु, बुध मंगल से दृष्ट हो तो जातक महाधनशाली होता है।

7. पंचम भाव में स्वगृही मंगल हो, तथा स्वगृही शुक्र लाभ स्थान हो तो जातक महालक्ष्मीशाली होता है।

8. बुध यदि केन्द्र-त्रिकोण में हो तथा शनि स्वगृही (मकर, कुंभ राशि में) हो, तो जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है। अर्थात् सामान्य परिवार में जन्म लेकर भी जातक धीरे-धीरे अपने पुरुषार्थ व पराक्रम से लक्षाधिपति, कोट्याधिपति हो जाता है।

9. गुरु, चंद्र, मंगल की युति हो तो ‘महालक्ष्मी योग बनता है। ऐसा जातक प्रबल पराक्रमी, अति धनवान, ऐश्वर्यवान एवं महाप्रतापी होता है। 10. गुरु, बुध एवं मंगल से युत हो तो ‘महालक्ष्मी योग बनता है। ऐसा जातक अपने बुद्धिबल से शत्रुओं को परास्त करता हुआ महाधनी एवं अतिप्रतापी होता है।

11. गुरु तुला राशि में हो तथा लाभेश शुक्र लग्न स्थान में हो तो जातक आयु के 33वें वर्ष में धनवान होता है तथा शत्रुओं का नाश करते हुये स्वअर्जित धन लक्ष्मी को भोगता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अचानक धन मिलता है।

12. लग्नेश गुरु, धनेश शनि, भाग्येश सूर्य तथा लाभेश शुक्र अपनी-अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हों तो जातक करोड़पति होता है।

13. दशम भाव में राहु, शुक्र, शनि और मंगल की युति हो तो जातक अरबपति होता है।

14. धनेश शनि छठे, आठवे, बारहवें स्थान में हो तो ‘धनहीन योग’

की सृष्टि होती है। धन की कमी सदैव बनी रहती है। इस दुर्भाग्य से बचने के लिए जातक को अभिमंत्रित शनि यंत्र धारण करना चाहिये। पाठक चाहे तो यह यंत्र हमारे कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।

15. धनेश शनि आठवें स्थान में हो तथा सूर्य लग्न को देखता हो तो जातक को पृथ्वी में गढ़े हुए धन की प्राप्ति होती है अथवा लॉटरी से धन मिलता है पर धन पास में टिकता नहीं।

16. मंगल मेष राशि में पंचमस्थ हो तो ‘रुचक योग बनता है। ऐसा जातक राजा के समान ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, सम्पत्ति व धन का स्वामी होता है।

17. सुखेश गुरु, लाभेश शुक्र नवम भाव में मंगल से दृष्ट हो तो जातक को अचानक धन की प्राप्ति होगी।

18. चंद्र, गुरु की युति मकर, मीन, मेष या सिंह राशि में हो तो ‘गजकेसरी योग के कारण जातक को अचानक उत्तम धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर मार्केट या अन्य व्यापारिक स्रोत के कारण अकल्पनीय धन की प्राप्ति होती है।

19. धनेश शनि अष्टम में एवं अष्टमेश चंद्र धन स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुडरेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है।

20. तृतीयेश शनि लाभ स्थान में एवं लाभेश शुक्र तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति का भाई, भागीदार एवं मित्रों द्वारा धन की प्राप्ति होती है।

21. बलवान शनि के साथ चतुर्थेश गुरु हो तो व्यक्ति को माता एवं ननिहाल पक्ष के द्वारा धन की प्राप्ति होती है।

22. लग्नेश व धनेश लग्न में हो तो जातक स्वयं श्रम करके अर्थोपार्जन करता है।

23. केन्द्र में चार पाप ग्रह सूर्य, मंगल, शनि, राहु हों; धन भवन में पाप ग्रह हो; सूर्य, शुक्र, शनि साथ हो अथवा धन भवन में शनि, सूर्य यॉ शनि, मंगल साथ हों तो जातक दरिद्र ही होता है।

24. चंद्रमा 9वें भाव में हो तथा 10वें व 9वें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र ही होता है।

25. सूर्य एकादश स्थान में हो तथा द्वादश व दशम भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र ही होता है।

26. बुध सूर्य 5 वें भवन में पड़ा हो तो जातक धनवान होता है।

27. लग्नेश पंचम भाव में हो या 11 वें हो तो जातक देह से पुष्ट व दीर्घायु होता हैं। शुक्र 11 वें भाव में हो और द्वादश या सप्तम भाव में गुरु हो, राहु छठे हो तो जातक अतुल संपत्ति प्राप्त करता है।

28. सूर्य से द्वितीय स्थान में गुरु हो, लग्न अपने नवांश में हो और 1, 4, 9, 10 स्थानों में बुध, शुक्र, चंद्रादि हों तो जातक के घर सदैव लक्ष्मी निवास करती है।

29. चंद्रमा 8वें भाव में हो, कर्क राशि में सूर्य, शुक्र, शनि स्थित हों तो जातक विख्यात, शिल्पादि कलाओं का जानकार पतला पर दृढ़ शरीर से युक्त अनेक संतानों से युक्त व निरंतर संपत्तिवान रहता है।

30 नवमेश सूर्य तथा शुक्र एकादशेश साथ-साथ बैठे हों तो पैतृक धन की प्राप्ति होती है।

31. धनुलग्न की कुण्डली में सूर्य, चंद्र कहीं साथ-साथ बैठे हों तो दरिद्र योग होता है।

32. दशमेश नवमेश के नवमांश में हो तथा दशमेश व नवमेश द्वितीय स्थान में हों तो जातक विष्णु भक्त एवं लक्ष्मीवान होता है।

33. पंचमेश भाग्य भवन में हो तथा एकादशेश चंद्र युक्त लग्न से द्वितीय हो तो भाग्य योग व प्रबल धन योग बनता है।

34. राहु, बुध कन्या राशि में स्थित हो तथा शनि चतुर्थ भावस्थ होकर बुध को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक बड़ा व्यापारी एवं धनी होता है।

35. गुरु बारहवें हों, लग्न शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो अकस्मात् धन की हानि होती है।

36. बलवान शनि की पंचमेश मंगल से युति हो, द्वितीय भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति होती है। यॉ पुत्र जन्म के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है।

37. बलवान शनि की षष्टेश शुक्र से युति हो तथा धन भाव मंगल से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को शत्रुओं के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक कोर्ट-कचहरी में शत्रुओं को हराता है तथा शत्रुओं के कारण ही उसे धन व यश की प्राप्ति होती है।

38. बलवान शनि की सप्तमेश बुध से युति हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है तथा उसे पत्नी ससुराल पक्ष से धन की प्राप्ति होती है।

39. शनि की नवमेश सूर्य से युति हो तो ऐसे जातक को राजा से, राज्य सरकार, सरकारी अधिकारियों, सरकारी अनुबंधों एवं ठेकों से काफी धन मिलता है।

40. बलवान शनि की दशमेश बुध से युति हो तो जातक को पैतृक सम्पत्ति, पिता द्वारा रक्षित धन की प्राप्ति होती है अथवा पिता का व्यवसाय जातक के भाग्योदय में सहायक होता है।

41. दशम स्थान का स्वामी बुध छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। जन्म स्थान में जातक नहीं कमा पाता तथा उसे सदैव धन की कमी बनी रहती है।

42. लग्नेश गुरु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो एवं सूर्य आठवें भाव (कर्क राशि) में हो तो व्यक्ति कर्जदार होता है तथा धन के मामले में कमजोर होता है।

43. धन स्थान में पाप ग्रह हो तथा लाभेश शुक्र छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक दरिद्र होता है।

44. केन्द्र स्थानों को छोड़कर चंद्रमा गुरु से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो शकट योग बनता है। जिसके कारण व्यक्ति को सदैव धन का अभाव बना रहता है।

45. धनेश शनि अस्त हो, नीच राशि (मेष) में हो तथा धन स्थान एवं अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह हो तो व्यक्ति सदैव ऋणग्रस्त रहता है, कर्ज उसके सिर से उतरता नहीं।

46. लाभेश शनि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तथा लाभेश अस्तगत व पाप पीड़ित हो तो जातक महादरिद्र होता है।

47. अष्टमेश चंद्रमा निर्बल होकर कहीं बैठा हो तथा अष्टम स्थान में कोई ग्रह वक्री होकर बैठा हो तो अकस्मात् धन हानि का योग बनता है। अर्थात् ऐसे व्यक्ति को धन के मामले में परिस्थितिवश अचानक भारी नुकसान हो सकता है। फलतः सावधान रहें।

48. अष्टमेश चंद्रमा शत्रुक्षेत्री, नीच राशिगत हो तथा शनि निर्बल हो तो अचानक धन की हानि होती है।

धनु लग्न के धन योग

धनु लग्न के राजयोग

1. यदि धनु लग्न अपने पूर्णांश पर हो जिसमें स्वगृही गुरु अपने उच्चांश पर विराजमान हो, उच्च या मीन का शुक्र चतुर्थ स्थान में हो और उच्च या कन्या का बुध दशम स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

2. उच्च का मंगल धन स्थान में हो, कुंभ का शनि पराक्रम स्थान में हो, मीन का गुरु चतुर्थ में हो, उच्च का सूर्य पंचम स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

3. स्वगृही गुरु लग्न में हो, उच्च का मंगल स्वगृही शनि के साथ धन भाव में हो, स्वगृही सूर्य भाग्य स्थान में हो और कन्या का बुध दशम में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

4. उच्च का शुक्र, स्वगृही गुरु के साथ चतुर्थ स्थान में हो; उच्च का सूर्य स्वगृही मंगल के साथ पंचम स्थान में हो; सप्तम में स्वगृही बुध हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

5. स्वगृही सूर्य भाग्य स्थान में हो उच्च का बुध कर्म स्थान में हो और उच्च का शनि स्वगृही शुक्र के साथ लाभ स्थान में हो और लग्न में स्वगृही गुरु हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

6. उच्च का मंगल धन स्थान में, उच्च का शुक्र चतुर्थ स्थान में, उच्च का सूर्य पंचम स्थान में, उच्च का बुध राज्य स्थान में और उच्च का शनि एकादश स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है। इसमें से कोई भी चार ग्रह अपने उच्च के उच्चांश पर होने से राजयोग करते हैं, तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

7. स्वगृही शनि पराक्रम स्थान में, स्वगृही गुरु चतुर्थ स्थान में, स्वगृही मंगल पंचम स्थान में, स्वगृही बुध सप्तम स्थान में, स्वगृही सूर्य नवम स्थान में, स्वगृही बुध दशम स्थान और स्वगृही शुक्र एकादश में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है। इसमें से कोई चार या पांच या छह ग्रह स्वगृही पूर्णाश में होने से पूर्ण राजयोग करते

है।

8. 8वें भाव में कर्क राशि में चंद्रमा, सूर्य, शुक्र, शनि स्थित हो तो जातक विख्यात, शिल्पादि कलाओं का जानकार पतला पर दृढ़ शरीर से संतानों से युक्त व निरन्तर संपत्तिवान रहता है*

9. चंद्रमा सूर्य को देखता हो तथा चंद्रमा बुध द्वारा देखा जाता हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

10. 10वें स्थान में शनि हो तो जातक धनवान, विद्वान, शूरवीर, उच्च पदासीन नेता व प्रधान पद प्राप्त करता है।

11. दशमेश त्रिकोण में हो अर्थात्. बुध की स्थिति 5, 9वें भाव में हो अथवा वह उच्च का हो, सूर्य 10 वें भाव में हो तो उत्तम राजयोग होता हैं।

15. पूर्ण चंद्रमा हो उस पर समस्त ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक उच्च शासनाधिकारी होता है।

16. पूर्ण चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष पर हो तथा उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है।

17. गुरु कर्क राशि में तथा चंद्रमा वृष राशि में हो अर्थात् गुरु, चंद्र दोनों उच्च के हों तो जातक नेता होता है।

18. लग्न में शनि हो, गुरु 7वें भाव में हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो व्यक्ति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है।

19. दशम भाव में बुध हो तथा सुख स्थान में राहु-शनि अथवा राहु-मंगल हों तो जातक राज्य सेवा में उच्च पद पाकर पतनोन्मुख होता है।

20. राहु व केतु केन्द्र में हो और त्रिकोणपति से संबंध करे या राहु, केतु त्रिकोण में हो और केन्द्रेश से संबंध करें तो उत्तमोत्तम राजयोग होता है।

21. जन्म काल में तुला, धनु, मीन व लग्न में शनि बैठा हो तो जातक राजकुल में जन्म होता है और वह राजा होता है।

22. मीन का शुक्र यदि केन्द्र (1/4/7/10) में बैठा हो तो विद्या, कला, बहुगुणों से शोभित कामधेनु के बराबर भोग से पूर्ण, सुंदरी स्त्रियों के साथ विलास करने वाला देश, नगर देखने में व्यस्त राजा होता है।

23. दसवें स्थान में बुध सूर्य हो और मंगल राहु छठे स्थान में हो तो इस राजयोग में उत्पन्न जातक मनुष्यों में श्रेष्ठ होता है।

24. अपने घर का होकर सूर्य नवम स्थान में हो तो उसका भाई नहीं जीता है। यदि कोई भाई जी भी गया तो राजा होता है।

25. दशम स्थान में गुरु, बुध, शुक्र, चंद्रमा हो तो जातक का सब कार्य सिद्ध होता है और वह राजमान्य होता है।

26. अपने उच्च के समीप रहकर सूर्य यदि त्रिकोण में हो तो नीच कुलोत्पन्न भी राजा होता है।

27. उच्चाभिलाषी मीन राशि का होता हुआ सूर्य यदि जन्म लग्न से त्रिकोण में हो तथा चंद्रमा लग्न में और गुरु केन्द्रगत हो तो वह बहु रत्न पूर्ण पृथ्वी का पालन करता है।

28. चतुर्थ स्थान में शुक्र और दशम में मंगल, सूर्य, शनैश्चर के साथ हो तो वह निश्चित ही राजा होता है।

धनु लग्न के आयुष्य योग

धनुलग्न वालों के लिये शनि मारकेश है पर शुक्र षष्टेश होने पर भी मुख्य मारकेश का काम करेगा। आयुष्य प्रदाता ग्रह गुरु है।

1. अष्टमेश चंद्रमा यदि शुभ द्रेष्कोण में हो तो दिन रात में हर प्रकार के खतरे से रक्षा करता हुआ जातक को दीर्घायु देता है।

2. मेष का नवमांश हो, शुक्र लग्न में हो, गुरु सातवें हो, चंद्रमा कन्या में हो तो ऐसा जातक ब्रह्मा के समान यशस्वी एवं चिरंजीवी होता है।

4. लग्न में गुरु हो, चौथे शुक्र हो, चंद्रमा शनि से युत होकर कहीं भी बैठा हो, परन्तु दशम स्थान में कोई पाप ग्रह हो तो जातक 120 वर्ष की ‘परमायु’ को भोगता है।

5. उच्च का शनि एकादश भाव में हो तो जातक को दीर्घायु देता है ।

6. अष्टमेश चंद्रमा लग्न में हो तथा गुरु एवं शुक्र से दृष्ट हो तो जातक सौ वर्ष की स्वस्थ दीर्घायु को प्राप्त करता है।

7. चंद्रमा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु एवं कुंभ राशि में हो तथा अन्य सभी ग्रह भी इन्हीं राशियों में हों तो जातक नब्बे वर्ष की उत्तम आयु को भोगता है।

8. चंद्रमा छठे वृष का हो, अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह न हो तथा सभी शुभ ग्रह केन्द्रवर्ती हों तो जातक 86 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त

करता है।

9. गुरु लग्न को देखता हो तथा सभी शुभ ग्रह केन्द्र में हों तो जातक 85 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है।

10. शनि पांचवें एवं मेष के मंगल साथ हो एवं सूर्य सातवें हो तो जातक 70 वर्ष की निरोग आयु को भोगता है।

11. लग्न में सूर्य, मंगल, शनि हो; चंद्रमा द्वादश हो; गुरु बलहीन हो तो जातक 70 वर्ष तक जीता है।

12. सूर्य, चंद्रमा दसवें शनि लग्न में तथा स्वगृही गुरु चौथे स्थान में हो तो एक प्रकार का राजयोग बनता है परन्तु ऐसा व्यक्ति मात्र 68 वर्ष की आयु को ही भोग पाता है।

13. गुरु, बुध, सूर्य लग्नस्थ हो, शनि मीन का केन्द्र में तथा वृश्चिक

राशि का चंद्रमा द्वादश स्थान में हो तो एक प्रकार का राजयोग बनता है पर ऐसे जातक की आयु मात्र 66 वर्ष की होती है।

14. शनि लग्न में, मीन का चंद्र चौथे, मंगल सातवें एवं दसवें स्थान में सूर्य किसी अन्य शुभ ग्रह के साथ हो तो जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ 60 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

15. अष्टमेश चंद्रमा सातवें हो तथा लग्नेश पाप ग्रहों के साथ छठे या आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

16. शनि किसी भी अन्य ग्रह के साथ लग्नस्थ हो, चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ आठवें या द्वादश भाव में हो तो व्यक्ति सैद्धान्तिक चरित्रवान एवं विद्वान होते हुए 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

17. गुरु लग्नस्थ हो तथा मंगल और राहु आठवें हो तो जातक 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

18. लग्नेश गुरु पाप ग्रहों के साथ आठवें हो तथा अष्टमेश चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ छठे, अन्य किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जी पाता है।

19. लग्न में शनि, मंगल हो; चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ आठवें; गुरु छठे हो तो ऐसा जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।

20. द्वितीय और द्वादश भाव में पाप ग्रह हो, लग्नेश गुरु निर्बल हो तथा लग्न, द्वितीय या द्वादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।

21. गुरु वृश्चिक राशि में एवं मंगल धनु राशि में परस्पर घर परिवर्तन करके बैठे तो बालारिष्ट योग बनता है। ऐसे बालक की मृत्यु 12 वर्ष के की आयु भीतर हो जाती है।

22. मंगल, सूर्य, शनि अष्टम स्थान में शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो बालारिष्ट योग बनता है। उपाय न करने पर ऐसे बालक की मृत्यु एक वर्ष की आयु में हो जाती है।

23. सप्तम भाव में शनि, राहु, मंगल, चंद्रमा की युति शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक जन्म लेते ही शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है।

24. दूसरे भाव में मकर का शनि हो तथा चतुर्थ, दशम भाव में भी क्रूर ग्रह हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है।

25. लग्न के द्वितीय, तृतीय या द्वादश भाव में सूर्य, मंगल, राहु, गुरु की युति हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है। उसे कोई न कोई शारीरिक बीमारी लगी रहती है।

26. अष्टम भाव में मंगल के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा जातक मातृघातक होता है।

27. पंचमस्थ शनि के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा जातक मातृघातक होता है।

28. लग्नेश गुरु एवं लग्न दोनों पाप ग्रहों के साथ हो, सप्तम में शनि

हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।

29. षष्टेश शुक्र सप्तम या दशम स्थान में हो, लग्न पर मंगल की दृष्टि हो तो व्यक्ति शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता है।

30. निर्बल चंद्रमा अष्टम स्थान में शनि के साथ हो तो जातक प्रेत बाधा एवं शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता हुआ अकाल मृत्यु को प्राप्त करता हैं।

धनुलग्न में रोग योग

1. षष्टेश शुक्र लग्न में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति जलस्राव से अंधा हो जाता है।

2. चौथे भाव में पाप ग्रह हो तथा चतुर्थेश गुरु पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

3. चतुर्थेश गुरु यदि अष्टमेश चंद्र के साथ अष्टम स्थान में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

4. चतुर्थेश गुरु मकर राशि में, निर्बल या अस्तगत हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

5. शनि चतुर्थ भाव में मीन का, षष्टेश चंद्रमा एवं सूर्य पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

6. चतुर्थ एवं पंचम भाव में पाप ग्रह हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

7. मीन का शनि चतुर्थ स्थान में एवं कुंभ का सूर्य तृतीय स्थान में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

8. चतुर्थ भाव में राहु अन्य पाप ग्रहों से दृष्ट हो, लग्नेश, गुरु निर्बल, हो तो जातक को असह्य हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है।

9. वृश्चिक का सूर्य दो पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को तीव्र हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है।

10. लग्न में पाप ग्रह हो, लग्नेश गुरु बलहीन हो तो व्यक्ति रोगी रहता है।

11. धनुलग्न में क्षीण चंद्रमा बैठा हो, लग्न पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसा जातक रोगग्रस्त रहता है।

12. अष्टमेश चंद्रमा लग्न में हो, लग्नेश गुरु अष्टम में हो, लग्न पाप दृष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति दवाई लेने पर ठीक नहीं होता। व्यक्ति सदैव रोगी रहता है।

13. गुरु लग्न को देखता हो तथा सभी शुभ ग्रह केंद्र में हों तो जातक 85 वर्ष की स्वस्थ आयु को भोगता है।

धनु लग्न के विवाह योग

1. चंद्रमा से 1/8/7/4/12 इन स्थानों में राहु तथा मंगल व शनि हो तो उस पुरुष की स्त्री का नाश होता है।

2. सप्तम भाव में मिथुन का मंगल हो तो व्यक्ति शौकीन, परस्त्रीगामी व कामान्ध होता है।

3. सप्तम स्थान में मंगल, शुक्र हों तो उस जातक की स्त्री की मृत्यु जलने से या घावों के सड़ने से होती है।

4. लग्न में चंद्रमा शुक्र, शनि या मंगल से युक्त हो तथा पंचम भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वह स्त्री वंध्या होती।

5. लग्नस्थ शनि चंद्रमा के साथ हो तथा सप्तम भाव में सूर्य हो तो जातक के विवाह में भयंकर बाधा आती है। विलम्ब विवाह तो निश्चित है। अविवाह की स्थिति भी बन सकती है।

6. शनि द्वादशस्थ हो, द्वितीय भाव में सूर्य हो और लग्नेश गुरु निर्बल हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

7. शनि छठे हो, सूर्य अष्टम स्थान में हो एवं सप्तमेश बुध बलहीन हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

8. सूर्य, शनि एवं शुक्र साथ में कहीं भी बैठे हों, सप्तमेश बुध कमजोर हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

9. शुक्र कर्क या सिंह राशि का हो तथा सूर्य या चंद्रमा शुक्र से द्वितीय या द्वादश में हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

10. लग्न में राहु या केतु हो, शुक्र, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु (वंध्या) राशिगत हो तो जातक को विवाह विलम्ब से होता है तथा जातक को अपने जीवनसाथी से तृप्ति नहीं मिलती।

11. राहु या केतु सप्तम भाव या नवम भाव में क्रूर ग्रहों से युक्त होकर बैठे हों तो निश्चित ही जातक का विवाह विलम्ब से होता है। ऐसा जातक प्राय: अन्तर्जातीय विवाह करता है।

12. द्वितीयेश शनि वक्री हो अथवा द्वितीय स्थान में कोई भी ग्रह वक्री होकर बैठा हो तो जातक के विवाह में अत्यधिक अवरोध उत्पन्न होता है।

13. सप्तमेश बुध अस्त हो, सप्तम भाव में कोई वक्री ग्रह हो, अथवा

किसी वक्री ग्रह की सप्तम भाव पर दृष्टि हो तो जातक के विवाह में अवरोध आता है और विवाह समय पर सम्पन्न नहीं होता ।

14. द्वितीयेश शनि और मंगल से परस्पर दृष्ट हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है तथा ससुराल से खटपट रहती है।

15. राहु बारहवें स्थान में हो तो ऐसी स्त्री को वैधव्य दुःख भोगना पड़ता है।

16. सप्तमेश बुध आठवें स्थान में पाप ग्रहों से युत हो या पाप मध्य हो तो ऐसा जातक अपने जीवनसाथी की हत्या करता है।

17. सूर्य आठवें शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसी स्त्री निंत नूतन वस्त्र अलंकार पहन कर परपुरुषों का संग करती है और कुल की मर्यादा को नष्ट कर देती है।

18. मंगल आठवें हो तो ऐसी स्त्री मृगनयनी एवं कुटिल स्वभाव की

होती है। प्राय: प्रेम विवाह करती हुई, स्वच्छन्द यौनाचार में विश्वास रखती है।

19. सप्तम भाव में चंद्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो, सप्तमेश बुध पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो ऐसा जातक अंतर्जातीय विवाह करता है।

20. सप्तमेश बुध के साथ शुक्र छठे स्थान में हो तो ऐसा व्यक्ति सहवास के अयोग्य होता है अर्थात् व्यक्ति नपुंसक होता है।

21. शुक्र सप्तम भाव में हो तथा आठवें स्थान में मंगल या शनि हो तो ऐसी स्त्री कुल को कलंक लगाने वाली, कई घरों में निवास करती हुई अंत में वंध्या का जीवन व्यतीत करती है।

22. चंद्रमा यदि 1/3/5/7/9/11 राशि में हो तो ऐसी स्त्री पुरुष के समान कठोर स्वभाव वाली एवं साहसिक प्रकृति की महिला होती है।

23. सूर्य, मंगल, गुरु, चंद्र, बुध व शुक्र बलवान हो तो ऐसी स्त्री गलत सोहबत या परिस्थिति वश परपुरुष की अंकशायिनी बन सकती है।

24. चंद्रमा अष्टम स्थान में कर्क राशि का स्वगृही हो तो ऐसी कन्या बांझ होती है।

25. चंद्रमा अष्टम स्थान में कर्क राशि के बुध के साथ हो तो ऐसी स्त्री काकवंध्या होती है अर्थात् एक बार प्रसूता होती है।

26. लग्नस्थ गुरु के साथ चंद्रमा हो तो “द्विभार्या योग” बनता है। ऐसा जातक दो नारियों के साथ रमण करता है।

27. बुध सप्तम भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक एक साथ में दो स्त्रियों से प्रेम रखता है। अर्थात् विवाहित पत्नी के अतिरिक्त उसकी उपपत्नी भी होती हैं।

28. सप्तमेश बुध द्वितीय या द्वादश भाव में हो तो पूर्ण ‘व्याभिचारी योग’ बनता है। ऐसा पुरुष जीवन में अनेक स्त्रियों के साथ सम्भोग करता है।

धनु लग्न के संतान योग

1. पंचमेश मंगल कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो जातक की पहल संतति कन्या होती है।

2. पंचमेश मंगल आठवें हो तो जातक को अल्प संतति की प्राप्ति होती है।

3. पंचमेश मंगल अस्त हो, पाप पीड़ित या पाप ग्रस्त होकर छठे आठवें या बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति के पुत्र नहीं होता ।

4. पंचमेश मंगल लग्न (धनु राशि) में हो तथा गुरु से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति के प्रथम पुत्र ही होता है।

5. मेष राशि का मंगल पंचमस्थ हो तो जातक के तीन पुत्र होते हैं।

6. पंचमेश मंगल लग्न में हो तो एवं लग्नेश गुरु पंचम में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो जातक दूसरों की संतान गोद लेकर उसे अपने पुत्र की तरह पालता है।

7. पंचम भाव में मेष राशि होने से, अन्य कोई दुर्योग न हो तो जातक के विवाहोपरान्त शीघ्र संतति होती है।

8. पंचम भाव में राहु हो तथा राहु, मंगल के द्वारा दृष्ट हो तो ऐसे जातक को पुत्र संतान का सुख नहीं मिलता। इसके पुत्र तो होता है पर कुल कालान्तर के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

9. मंगल पंचम, षष्ठ या द्वादश भाव में हो तथा पंचम भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो ‘अनपत्य योग’ बनता है। ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती पर उपाय करने से दोष शांत हो जाता है।

10. गुरु कमजोर हो साथ में पंचमेश मंगल और सप्तमेश बुध भी बलहीन हो तो ‘अनपत्य योग’ बनता है। ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती पर उपाय करने से दोष शांत हो जाता है। धनुलग्नः सम्पूर्ण परिचय / 98

11. राहु, सूर्य एवं मंगल पंचम भाव में हो तो ऐसे जातक को शल्यचिकित्सा द्वारा कष्ट से पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। आज की भाषा में ऐसे बालक को ‘सिजेरियन चाइल्ड’ कहते हैं।

12. पंचमेश मंगल कमजोर हो तथा राहु ग्यारहवें हो तो जातक के वृद्धावस्था में संतान होती है।

13. पंचम स्थान में राहु, केतु या शनि इत्यादि पाप ग्रह हो तो गर्भपात अवश्य होता है।

14. लग्नेश गुरु द्वितीय स्थान में हो तथा पंचमेश मंगल पापग्रस्त या पाप पीड़ित हो तो ऐसे व्यक्ति की पुत्र संतान उत्पन्न होकर नष्ट हो जाती है।

15. पंचमेश मंगल बारहवें शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति के पुत्र की वृद्धावस्था में अकाल मृत्यु हो जाती है। जिससे जातक संसार से विरक्त होकर वैराग्य की ओर उन्मुख होता है।

16. पंचमेश वृष, कर्क, कन्या या तुला राशि में हो तो जातक को प्रथम संतति के रूप में कन्या रत्न की प्राप्ति होती है।

17. पंचमेश गुरु की सप्तमेश बुध के साथ युति हो तो जातक को प्रथम संतान के रूप में कन्या रत्न की प्राप्ति होती है।

18. सप्तम में राहु से युक्त सूर्य अथवा अष्टम भाव में राहु से युक्त गुरु और शुक्र हो, पंचम भाव पापयुक्त हो तो वह स्त्री निश्चय ही मृत्वत्सा होती है।

19. समराशि (2, 4, 6, 8, 10, 12) में गया हुआ बुध कन्या संतति की बाहुल्यता देता है। यदि चंद्रमा और शुक्र का भी पंचम भाव पर प्रभाव हो तो यह योग अधिक पुष्ट हो जाता है।

20. पंचमेश व लग्नेश गुरु निर्बल हो, पंचम भाव में राहु हो तो जातक के यहां सर्पदोष के कारण पुत्र संतान नहीं होती ।

21. पंचम भाव में राहु हो और एकादश स्थान में स्थित केतु के मध्य सारे ग्रह हों तो पद्यनामक ‘कालसर्प योग के कारण जातक के यहां पुत्र संतान नहीं होती। ऐसे जातक को वंश वृद्धि की चिंता एवं मानसिक तनाव रहता है।

22. सूर्य अष्टम हो, पंचम भाव में शनि हो, पंचमेश राहु से युत हो तो जातक को पितृदोष रहता है तथा पितृशाप के कारण पुत्र संतान नहीं होती।

23. लग्न में मंगल, अष्टम में शनि, पंचम में सूर्य और बारहवें स्थान में राहु या केतु हो तो ‘वंशविच्छेद योग’ बनता है। ऐसे जातक का स्वयं का वंश समाप्त हो जाता है आगे पीढ़ियां नहीं चलती।

24. चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा चंद्रमा जहां बैठा हो उससे आठवें स्थान में पाप ग्रह हो तो ‘वंशविच्छेद योग’ बनता है। ऐसे जातक के स्वयं का वंश समाप्त हो जाता, उसके आगे पीढ़ियां नहीं चलतीं।

25. तीन केन्द्रों में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति को ‘इलाख्य नामक’ सर्पयोग बनता है। इस दोष के कारण जातक को पुत्र संतान का सुख नहीं मिलता। दोष निवृत्ति पर शांति हो जाती।

26. धनुलग्न में पंचमेश पंचम, षष्ठ या द्वादश भाव में हो तथा पंचम भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ‘अनपत्य योग’ बनता है ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह संतान उत्पन्न नहीं होती पर उपाय से दोष शांत हो जाता है।

27. पंचम भाव में मंगल बुध की युति हो तो जातक के जुड़वा संतान होती है। पुत्र या पुत्री की कोई शर्त नहीं*

28. जिस स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य लग्न में और शनि सातवें हो, अथवा सूर्य, शनि की युति सातवें हो तथा दशम भाव पर गुरु की दृष्टि हो तो ‘अनगर्भा योग’ बनता है ऐसी स्त्री गर्भधारण के योग्य नहीं होती।

29. जिस स्त्री की जन्म कुण्डली में शनि-मंगल छठे या चौथे स्थान में हो तो ‘अनगर्भायोग’ बनता है। ऐसी स्त्री गर्भधारण करने के योग्य नहीं होती।

30. शुभ ग्रहों के साथ सूर्य चंद्रमा पंचम स्थान में हो तो ‘कुलवर्द्धन योग’ बनता है। ऐसी स्त्री दीर्घजीवी, धनी एवं ऐश्वर्यशाली संतानों को उत्पन्न करती है।

31. पंचमेश मिथुन या कन्या राशि में हो, बुध से युत हो, पंचमेश और पंचम भाव पर पुरुष ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक को “केवल कन्या योग” होता है। पुत्र संतान नहीं होती।


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