धनु लग्न में राहु का फलादेश
धनु लग्न वालों के लिए राहु शुभ नहीं है क्योंकि धनु राशि में यह नीच का होता है। यह लग्नेश गुरु का शत्रु भी है।
धनु लग्न में राहु का फलादेश प्रथम स्थान में
राहु यहां प्रथम स्थान में होने से धनु (नीच) राशि में है। ऐसा जातक अभिमानी, क्रोधी व रोगी होता है। जातक धुन का पक्का एवं दृढ़ निश्चयी होता है। ऐसा जातक कुछ हद तक डरपोक एवं जबाबदारी से मुक्ति चाहता है।
दृष्टि – सप्तम भाव पर राहु की दृष्टि होने से जातक के वैवाहिक जीवन में असंतोष रहेगा।
निशानी – जातक लम्बे कद का कृशकाय व दन्त रोग से पीड़ित व्यक्ति होता है। पचास वर्ष की आयु के पहले अधिकांश दांत नष्ट हो जाते हैं।
दशा – राहु का दशा-अंतर्दशा में अशुभ फलों की प्राप्ति होगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – यहां राहु के साथ सूर्य राजयोग देगा। राहु इतना अनिष्टप्रद नहीं रहेगा, जितना होना चाहिए।
2. राहु + चंद्र – यहां राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा जातक को नकारात्मक विचार देगा। जातक के चेहरे या शरीर पर चोट के निशान लगेंगे।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल कुण्डली में विस्फोटक ताकत लायेगा। ऐसा व्यक्ति शत्रुहंता एवं सर्वकार्य में समर्थ होता है।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक को स्त्री व संतान सुख देगा परन्तु दोनों में परस्पर ज्यादा प्रेम नहीं होगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में लग्नेश गुरु के साथ प्रथम स्थान में अग्निसंज्ञक राहु अपनी नीच राशि में है ‘चाण्डाल योग के कारण जातक की मनोवृत्ति कुटिल होगी। ऐसा जातक दूसरों को बुद्ध समझौते हुए अपने धन, पराक्रम एवं प्रभाव का दुरुपयोग करेगा। यहां ‘हंस योग’ के कारण जातक महाधनी होगा।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र जातक के दुर्घटना योग की पुष्टि करता है। जातक सौन्दर्य प्रेमी शौकीन होगा पर यात्रा में कष्ट पायेगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक को धनी बनायेगा पर जातक भूत-प्रेत विद्या, तंत्र-मंत्र-टोटके करने में रुचि रखेगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश द्वितीय स्थान में
राहु यहां द्वितीय स्थान में मकर (सम) राशि में होगा। ऐसे जातक को धन, यश, कुटुम्ब सुखों का अभाव रहता है। जातक की शिक्षा अपूर्ण रहती हैं। आजीविका के साधन के लिए जातक को जन्म स्थान से दूर जाना पड़ता है। व्यापार में लगातार घाटा होता है। जातक खान-पान का भ्रष्ट होगा।
दृष्टि – राहु की दृष्टि अष्टम भाव (कर्क राशि) पर होने से जातक के गुप्त शत्रु जातक को पीड़ा पहुंचायेंगे ।
निशानी – जातक मिथ्याभाषी होगा। जातक की भाषा कड़वी व रहस्यमय होगी। जातक अपनी वाणी से लोगों को संतोष देता है।
दशा – राहु की दशा धन प्राप्ति हेतु दिक्कतें पैदा करेगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – यहां राहु के साथ सूर्य भाग्योदय एवं धन प्राप्ति के प्रयासों में लगातार कष्ट देगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा धन हानि देगा। जातक द्वारा उधार दिया गया पूरा धन डूब जायेगा।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल जातक को महाधनी बनायेगा। पर धन के घड़े में छेद होने से जातक का धन खर्च होता चला जायेगा।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध ससुराल में विवाद या मनोमालिन्यता दर्शाता है।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में नीच के गुरु के साथ द्वितीय स्थान में राहु मकर (सम) राशि में है ‘चाण्डाल योग’ के कारण जातक का धन गलत कार्यों में खर्च होगा। धन संग्रह हेतु किये गये प्रयासों में सफलता नहीं मिलेगी।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र वाणी में हकलाहट देगा। जातक की वाणी एवं बातचीत का तरीका अश्लील होगा।
17. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक को धनवान बनायेगा पर जातक की वाणी अप्रिय होगी।
धनु लग्न में राहु का फलादेश तृतीय स्थान में
राहु यहां तीसरे स्थान में कुंभ मूल त्रिकोण राशि में होगा। तीसरे स्थान में राहु भाई-बहनों के सुख में बाधक है क्योंकि ऐसा जातक स्वार्थी एवं कुछ विद्रोही स्वभाव का होता है। यहॉ राहु राजयोग कारक है। ऐसे जातक को अच्छा नाम, पद व प्रतिष्ठा मिलेगी। जातक धनी होगा। जातक की पत्नी सुन्दर होगी। जातक अल्प संतति वाला होगा। जातक बहादुर व साहसी होगा।
निशानी – जातक को शत्रु पर निश्चित रूप से विजय मिलेगी।
दशा – राहु का दशा अंतर्दशा में जातक की कीर्ति बढ़ेगी एवं उसे समाज व राजनीति में पद-प्रतिष्ठा मिलेगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य भाइयों में बिखराव पैदा करेगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा जातक को बदनामी देगा। जातक को अपनी बहन या बेटी के कारण नीचा देखना पड़ेगा।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल जातक को महान पराक्रमी बनायेगा। जातक के मित्र बहुत होंगे। कुटम्बी जन जातक की मदद करेंगे परन्तु परस्पर विचार नहीं मिलेंगे।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध होने से जातक के मित्र बुद्धिमान होंगे। जातक को भाई-बहनों का सुख प्राप्त होगा। परन्तु जातक की अपनी पत्नी से विवाद रहेगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में कुंभ के गुरु के साथ तृतीय स्थान में राहु अपनी मूलत्रिकोण राशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण जातक का पराक्रम भंग होगा। जातक की अपने भाइयों परिजनों के साथ कम बनेगी बराबरी की भावना से संबंध बिगड़ जायेंगे।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र शरीर का दांया अंग-भंग करायेगा। स्त्री-मित्रों के कारण बदनामी होगी।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि होने से जातक धनी, पराक्रमी एवं साहसी होगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश चतुर्थ स्थान में
राहु यहां चौथे स्थान में मीन (नीच) राशि में होगा। जातक की पाचक शक्ति कमजोर होगी तथा बात-बात पर अपनी माता को धिक्कारेगा। ऐसे जातक के जीवन के सामान्य सुख नष्ट होते हैं तथा भौतिकवादी जीवन से मोह नष्ट हो जाता है। जातक अपने आत्मीय स्वजनों से घृणा करता है तथा मध्य आयु के बाद साधु-संन्यासी हो जाता है। जातक की संगत प्रायः हल्के या ओछे लोगों से होती है।
दृष्टि – ऐसा जातक आजीविका की प्राप्ति हेतु दर-दर भटकता है।
निशानी – जातक की दो पत्नी होगी या वह दो माताओं द्वारा पालित होगा। ऐसा जातक एकान्तप्रिय होता है तथा अपनी दुनिया में खोया रहता है।
दशा – राहु का दशा अंतर्दशा खराब जायेगी ।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य होने से जातक को पिता की सम्पत्ति नहीं मिलेगी। भौतिक सुखों में भी न्यूनता रहेगी।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा अल्पायु में माता की मृत्यु देता है।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ पंचमेश मंगल विद्या देगा पर संतान संबंधी चिंता भी अवश्य देगा।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक को पत्नी के साथ समरसता में बाधा डालेगा। वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनुलग्न में स्वगृही गुरु के साथ चतुर्थ स्थान में राहु अपनी नीच राशि में है। ‘चाण्डाल योग के कारण जातक की माता गुजर जायेगी। ‘हंस योग’ के कारण जातक महाधनी होगा, परन्तु माता का सुख कमजोर रहेगा।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र वाहन दुर्घटना में शरीर के दाये अंगों में चोट पहुंचायेगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि यहां जातक को उत्तम भवन का निर्माता बनायेगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश पंचम स्थान में
राहु यहां पांचवें स्थान में मेष (शत्रु राशि) में होगा। ऐसे जातक का दिमाग गर्म रहेगा। मानसिक चिंता अधिक रहेगी। प्रायः सर्पदोष के कारण संतान प्राप्ति में बाधा पहुंचती है तथा विद्या में रुकावट होती है। ऐसा जातक अति उत्साही होगा। कार्य प्रारम्भ तो कर देगा पर उसे बीच में छोड़ देगा।
दृष्टि – राहु का प्रभाव एकादश स्थान (तुला राशि) पर होने से व्यापार में घाटा एवं बार-बार बदलाव आता रहेगा।
निशानी – ऐसा जातक क्रोधी व क्रूर होगा।
दशा – राहु का दशा अंतर्दशा अशुभ फल देगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य यहां उच्च का होकर जातक को उच्च शिक्षा देगा, विदेशी भाषा पढ़ायेगा तथा विदेश ले जायेगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ चंद्रमा हो तो पुत्र संतान का नाश अवश्य होगा। जातक का पाचन तंत्र कमजोर होगा।
4. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल यहां स्वगृही होगा एवं जातक को उत्तम संतति देगा। जातक स्वयं शिक्षित होगा और उसकी संतति भी उच्च शिक्षा को प्राप्त करेगी।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक को बुद्धिमान बनायेगा एवं वैज्ञानिकं अनुसंधानों की ओर ले जायेगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में गुरु के साथ पंचम स्थान में राहु मेष (सम) राशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण विद्या में रुकावट, संतान में रुकावट संभव है। जातक परेशान व अशांत रहेगा।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र होने से संतति का नुकसान तथा शल्यचिकित्सा का योग करायेगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक का विद्यार्जन के द्वारा यशस्वी एवं पराक्रमी बनायेगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश षष्टम स्थान में
राहु यहां छठे स्थान में वृष उच्च का होगा। ऐसे जातक शत्रुहन्ता व पराक्रमी होते हैं। राहु यहां राजयोग प्रदाता है। जातक को धन-प्रतिष्ठा, स्त्री-संतान, नौकरी-व्यापार, कारोबार का पूर्ण सुख मिलेगा। जातक को गुप्त आवक होगी। जातक आशावादी होगा।
दृष्टि – राहु की दृष्टि द्वादश भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। जातक यात्रा करेगा तथा यात्राओं से धन कमायेगा। जातक विदेश जायेगा।
निशानी – ऐसे जातक मुसीबतों से घबराते नहीं अपितु सबक सीख कर आगे बढ़ते हैं। जातक को कमर दर्द, कोढ़ या लकवे की शिकायत संभव है। ऐसे में ‘महामृत्युंजय’ का अनुष्ठान करें। उसका लॉकेट पहनें।
दशा – राहु का दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य ‘भाग्यभंग योग’ कराता है। जातक को अनेक परेशानी व दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ की सृष्टि करने से ऐसा जातक धनी मानी अभिमानी होगा। पर शत्रु बहुत होंगे।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल विद्या में बाधा डालेगा। जातक की पढ़ाई अधूरी छूट जायेगी। विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी मानी, अभिमानी होगा। उसके पास उत्तम वाहन होगा।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध पत्नी का वियोग देगा। पर बुद्धिमानी से काम लेने पर समस्या सुलझ जायेगी।
5. राहु + गुरु – यहां धनुलग्न में गुरु के साथ छठे स्थान में राहु वृष (उच्च) राशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण जातक की परिश्रम का लाभ नहीं होगा। कार्य में सफलता नहीं मिलेगी एवं वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्रं स्वगृही होकर ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बनायेगा। ऐसा जातक धनी-मानी व अभिमानी होगा तथा सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से सम्पन्न होगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि ‘धनहीन योग’ एवं ‘पराक्रम भंगयोग’ की सृष्टि करते हैं। फलत: जातक आर्थिक विषमताओं में उलझा रहेगा। जातक का सामाजिक यश भी कम मिलेगा।

धनु लग्न में राहु का फलादेश सप्तम स्थान में
राहु यहां सातवें स्थान में मिथुन (उच्च) राशि का होगा। ऐसे जातक का विवाह प्राय: विलम्ब से होता है। जातक को स्त्री व संतान सुख मिलता है पर पत्नी उड़ाऊ, खर्चीली स्वभाव की होगी। उसका चरित्र शंकास्पद होगा। जातक को प्रेम के मामले में निराशा-हताशा हाथ लगेगी। ऐसे जातक के पास गुप्त शक्ति होगी तथा परिश्रमपूर्वक किये गये प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी।
दृष्टि – सप्तमस्थ राहु का प्रभाव लग्न स्थान (धनु राशि) पर होने के कारण जातक भड़कीले स्वभाव का होगा।
निशानी – स्त्री को सर्पदंश या वैधव्य का भय रहेगा। ऐसे में पितृदोष सर्पदोष की शांति करानी होगी।
दशा – राहु का दशा अंतर्दशा मिश्रित फलकारी होगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्धं
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य विवाह विच्छेदक है। जीवनसाथी के साथ तलाक की नौबत आ सकती है।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा जातक को गुप्त रोग एवं उसके जीवनसाथी के गुप्त भाग में ऑपरेशन होने का संकेत देता है।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल ‘द्विभार्या योग’ बनाता है।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध ‘भद्र योग’ की सृष्टि करता है। जातक राजतुल्य ऐश्वर्यशाली, वैभवपूर्ण जीवन जीयेगा ।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में गुरु के साथ सातवें स्थान में राहु मिथुन (मूलत्रिकोण) राशि में है। ‘चाण्डाल योग के कारण गृहस्थ सुख में बाधा होगी। पत्नी से विचारधारा कम मिलेगी। पत्नी के रहते दूसरी औरत से संबंध होंगे।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र शल्य चिकित्सा योग बताता है। जातक को पेट या गुर्दे की बीमारी होगी।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि वैवाहिक सुख में बाधक है। जातक का जीवन साथी धनवान होगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश अष्टम स्थान में
राहु यहां आठवें स्थान में कर्क (शत्रु) राशि का होगा। ऐसे जातक को घर-परिवार धन-सम्पत्ति एवं स्वास्थ्य के प्रति चिन्ता बनी रहेगी। अचानक रोग, दुर्घटना व शत्रु का भय रहेगा। ऐसा जातक सदैव मानसिक तनाव एवं चिंता में रहेगा। जातक की मनोवृत्ति आपघाती होगी। जातक खुद को खत्म करने में स्वयं को तबाह व बरबाद करने में रुचि रखेगा। ऐसा जातक किसी का मित्र नहीं होता।
दृष्टि – अष्टमस्थ राहु की दृष्टि धन भाव (मकर राशि) पर होगी फलतः ऐसा जातक धन का खर्च बिना सोचे समझे करेगा।
निशानी – राहु की यह स्थिति स्त्रियों को वैधव्य प्रदान करती है। जातक को चोरी करने की स्वभावतः आदत होती है। दूसरों का नुकसान पहुंचाना उसकी आदत में शुमार होता है।
दशा – राहु का दशा अंतर्दशा अनिष्ट फल देगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – यहां राहु के साथ सूर्य ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करते हैं। जातक को भाग्योदय हेतु अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ चंद्रमा ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी मानी एवं अभिमानी होगा।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल विद्या में बाधा डालेगा। द्विभार्या योग के अवसर भी बनेंगे।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध विवाह विच्छेदक योग बनाता है।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में गुरु के साथ आठवें स्थान में राहु कर्क (शत्रु) राशि में है। ‘चाण्डाल योग के कारण परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। कार्य में सफलता नहीं मिलेगी। दुर्घटना से अंग-भंग होने का खतरा है।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बनाता है। जातक धनी-मानी व अभिमानी होगा। उसके पास उत्तम वाहन होगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि ‘धनहीन योग’ एवं ‘पराक्रमभंग योग’ बनाता है। जातक की प्रतिष्ठा भंग होगी और आर्थिक विषमताएं बढ़ी चढ़ी होंगी।
धनु लग्न में राहु का फलादेश नवम स्थान में
राहु यहां नवमे स्थान में सिंह (शत्रु राशि) में होगा। ऐसा जातक आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति में विश्वास रखेगा। ऐसा जातक ऊपर से आस्तिक परन्तु अंदर से नास्तिक होगा। अच्छे ग्रहों के सान्निध्य या उनकी दृष्टि से जातक को ऊंचे पद व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। जातक का वैवाहिक जीवन में असंतोष, संतान प्रसंग में असंतोष रहेगा।
दृष्टि – नवम भावगत राहु की दृष्टि पराक्रम स्थान (कुंभ राशि) पर होगी। यदि जातक असावधान रहा तो शत्रुओं से परास्त होगा। जातक के धन का नाश फालतू के कार्यों में होगा।
निशानी – ऐसा जातक पुरातन विचार एवं रूढ़िवादी परम्पराओं को बिलकुल नहीं मानेगा। जातक पराक्रमी, परिश्रमी एवं युद्धप्रिय होगा।
दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में तीर्थ स्नान होगा। परेदश जाने का अवसर मिलेंगे। जातक के पिता की मृत्यु होगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य यहां स्वगृही होकर राजयोग बनायेगा। जातक जीवन में विशेष उन्नति, तरक्की प्राप्त करेगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा भाग्य में अनिश्चित उतार-चढ़ाव लायेगा।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल जातक को भूमि लाभ देगा। जातक की संतति उत्तम होगी। विद्या सुख मध्यम होगा।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध के कारण विवाह के बाद जातक का भाग्योदय होगा। जातक का जीवनसाथी कमाऊ होगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में गुरु के साथ नवम स्थान में राहु सिंह (शत्रु) राशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण भाग्योदय में बाधा होगी। सरकारी नौकरी से पदच्युत होने का भय एवं झूठा आरोप लगेगा।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र भाग्य में अनिश्चित उतार-चढ़ाव, संघर्ष का द्योतक है।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक के पराक्रम को बढ़ायेगा। जातक धनी तथा साधन सम्पन्न होगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश दशम स्थान में
राहु यहां दसवें स्थान में कन्या राशि में स्वगृही होगा। ऐसा जातक बुद्धिमान, चतुर, दूरदर्शी, साहसी व कर्त्तव्यनिष्ठ होगा। बुद्धिबल के कारण जातक को राजनीति, समाज व सरकार में उच्च पद की प्राप्ति होगी। ऐसा जातक दूसरों का धन फौरन पचा जायेगा, डकार भी नहीं लेगा। जातक अस्थिर मनोवृत्ति वाला होगा। जातक प्राय: इधर-उधर भटकता रहेगा।
दृष्टि – दशमस्थ राहु की दृष्टि चतुर्थ भाव (मीन राशि) पर होगी। ऐसा जातक भौतिक सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु भटकता रहेगा। जातक का चरित्र संदेहास्पद होगा।
निशानी – जातक कवि हृदय व भावुक होगा परन्तु पिता से उसके विचार नहीं मिलेंगे।
दशा – राहु का दशा-अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के संग सूर्य होने से जातक के पिता की मृत्यु शीघ्र होगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के संग चंद्रमा होने से जातक की माता की मृत्यु शीघ्र होगी।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल ‘दिग्बली’ होगा। फलत: जातक के पास बहुत सी सम्पत्ति होगी। जातक विद्यावान होगा पर विद्या काम न आ पायेगी।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध यहां ‘भद्र योग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली होगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में गुरु के साथ दसवें स्थान में राहु कन्या राशि में स्वगृही है। ‘चाण्डाल योग के कारण राजकाज में बाध होगी। शत्रुओं को हराने में कोर्ट कचहरी में जातक का धन बरबाद होगा। रोजी-रोजगार में दिक्कतें आयेगी।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र यहां नीच राशि में होगा। ऐसे जातक राजकाज, कोर्ट-कचहरी में मुकदमा हारेंगे।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक को धनवान बनायेगा पर जातक तरह-तरह के धंधे बदलता रहेगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश एकादश स्थान में
राहु यहां एकादश स्थान में तुला (मित्र) राशि का होगा। राहु यहां राजयोग कारक है। ऐसा जातक लक्ष्मीवान एवं दीर्घायु वाला होता है। जातक के पुत्र थोड़े होते हैं। पर कान में रोग होता है।
दृष्टि – एकादश भावगत राहु की दृष्टि पंचम भाव (मेष राशि) पर होने से जातक प्रजावान होगा। जातक की संतति उत्तम होगी। परन्तु एकाध गर्भपात होगा या बालक होकर खो जायेगा।
निशानी – ऐसा जातक प्राचीन शास्त्र एवं विज्ञान का जानकार होता है। जातक को स्त्री संतान का सुख मिलता है पर विद्याध्ययन में रुकावट आती है।
दशा – राहु की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ नीच का सूर्य ‘राजयोग भंग’ करता है। जातक परेशानियों से घिरा रहेगा।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ अष्टमेश चंद्रमा व्यापार व्यवसाय में नुकसान देगा।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल विद्या में विजय एवं सार्वजनिक जीत देगा।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध व्यापार में वृद्धि करायेगा। जातक उद्योगपति होगा।
5. राहु + गुरु – यहां धनुलग्न में गुरु के साथ एकादश स्थान में राहु तुला (मित्र) राशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण लाभ में बाधा व्यापार व्यवसाय में नुकसान होगा। धनागमन में रुकावट महसूस होगी।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र स्वगृही होने से व्यापार के लिए ठीक है। जातक को व्यापार व्यवसाय में लाभ होगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि यहां उच्च का होगा। जातक उद्योगपति होगा।
धनु लग्न में राहु का फलादेश द्वादश स्थान में
राहु यहां द्वादश स्थान में मीन राशि में नीच का होगा। ऐसा जातक प्रच्छन्न पापी होता है। प्रायः अशुभ की आशंका बनी रहती है। जातक को खराब सपने आते हैं तथा नींद कम आती है। जातक की सोच नकारात्मक होती है। जातक की मनोवृत्ति आत्मघाती होती है। जातक खुद को नुकसान पहुंचाने एवं बरबाद करने में अपनी महानता समझता है।
दृष्टि – द्वादश भावगत राहु की दृष्टि छठे (वृष राशि) पर होने से जातक के गुप्त शत्रु बहुत होंगे। जातक को गुप्त रोग भी होंगे। प्रायः ऐसा जातक अपनी पत्नी वं बच्चों से दूर रहता है।
निशानी – ऐसा जातक जलरोग से पीड़ित रहता है। जातक बहुत अधिक व्यय (खर्च) करता है तथा असंतुष्ट रहता है।
दशा – राहु की दशा अंतर्दशा नेष्ट जायेगी। जातक व्यर्थ की यात्राएं करेगा तथा उसके धन का अपव्यय होगा।
राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करेगा। ऐसा जातक परेशान रहेगा तथा सरकारी नौकरी के लिए दर-दर भटकेगा ।
2. राहु + चंद्र – राहु के साथ चंद्रमा यहां नीच का होगा एवं ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ की सृष्टि करेगा। ऐसा जातक धनी-मानी अभिमानी होगा।
3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल स्वगृही होकर ‘विमल नामक विपरीत राजयोग’ की सृष्टि करेगा। जातक धनी मानी अभिमानी एवं सुख साधन सम्पन्न होगा।
4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध ‘विवाहभंग योग’ बनाता है। ऐसे जातक के दो विवाह होते हैं।
5. राहु + गुरु – यहां धनु लग्न में गुरु के साथ द्वादश स्थान में राहु वृश्चिक (नीच) राशि में है । ‘चाण्डाल योग के कारण परिश्रम को लाभ प्राप्त नहीं होता। कार्य में बाधा, यात्रा में चोरी होगी तथा दुर्घटना में अंग भंग होने का खतरा है।
6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र होने से हर्ष नामक विपरीत राजयोग बनता है। जातक धनी मानी अभिमानी होगा। सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन होगा।
7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि होने से ‘धनहीन योग’ एवं ‘पराक्रम भंगयोग’ बनता है। जातक को आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ेगा। जातक की मान-प्रतिष्ठा भंग होगी।
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