धनु लग्न में सूर्य का फलादेश

धनु लग्न में सूर्य भाग्येश है। लग्नेश गुरु का मित्र होने से यह पूर्ण राजयोग कारक एवं शुभ फलदायक है।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश प्रथम स्थान में

सूर्य यहां प्रथम स्थान में धनु राशि का होगा। ऐसा जातक आत्मविश्वासी परिश्रमी, पराक्रमी, उद्यमी उत्साही एवं प्रबल महत्त्वाकांक्षी होता है। जातक ऊंचे लम्बे कद, हृष्ट-पुष्ट शरीर शरीर को वात पित्तादि विकार पीड़ित करते रहेंगे।

दृष्टि – लग्नस्थ सूर्य की दृष्टि सप्तम भाव (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः जातक को भार्या, पुत्र, बन्धु-बान्धव के विषय में मन में विकलता रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – धनु लग्न में चंद्र-सूर्य की युति लग्न स्थान में भाग्येश व अष्टमेश की युति है। जहां सूर्य मित्र राशि एवं चंद्रमा सम राशि में होगा। ऐसा जातक अस्थिर मनोवृत्ति वाला और उद्विग्न (विकल) अंगों वाला होगा।

2. सूर्य + मंगल – जातक महान भाग्यशाली राजा के समान पराक्रमी व यशस्वी होगा।

3. सूर्य + बुध – प्रथम स्थान पर धनु राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश-दशमेश बुध के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः ऐसा जातक बुद्धिमान, धनवान बड़ा व्यापारी होगा।

बुध के कारण ‘कुलदीपक योग’ बना। बुध सप्तम भाव में स्थित अपनी राशि को देखेगा। ऐसे जातक का भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद होगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा एवं अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा।

4. सूर्य + गुरु – गुरु के कारण यहां ‘हंस योग’ बनता है। भाग्येश और लग्नेश की युति से व्यक्ति राजगुरु के पद को प्राप्त करता हुआ, धन, वैभव व समृद्धि को प्राप्त करता है।

5. सूर्य + शुक्र – जातक के भाग्योदय में रुकावट आयेगी। संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के प्रथम स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः धनेश, पराक्रमेश शनि एवं भाग्येश सूर्य की युति होगी। सूर्य यहां मित्र स्थान में एवं शनि सम राशि में है। जातक स्वयं के पराक्रम व पुरुषार्थ से धन अर्जित करेगा। परन्तु पिता की मृत्यु के बाद ही जातक की पुरुषार्थ रंग लायेगा ।

7. सूर्य + राहु – भाग्योदय में बाधा रुकावटें आयेंगी।

8. सूर्य + केतु – जातक यशस्वी होगा, तेजस्वी होगा।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश द्वितीय स्थान में

सूर्य यहां द्वितीय स्थान में मकर (शत्रु) राशि का होगा। जातक धनी होगा। उसे कुटुम्ब व भाग्य का सुख मिलता रहेगा। ऐसा जातक अपने बुद्धिबल से राज दरबार में उत्तम पद को प्राप्त करता है।

दृष्टि – द्वितीयस्थ सूर्य की दृष्टि अष्टम भाव (कर्क राशि) पर होगी। ऐसा जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में समर्थ होता है।

निशानी – जातक को मुख रोग संभव है जातक राजा (कोर्ट) से दण्डित हो ‘सकता है।

दशा – सूर्य की दशा मिश्रित फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – धनु लग्न में चंद्र सूर्य की युति दूसरे स्थान में भाग्येश-अष्टमेश की युति मकर राशि में है। जहां सूर्य शत्रु क्षेत्री होगा। चंद्रमा सम राशि में होगा। जातक धनवान होगा। तथा उसकी वाणी ओजस्वी होगी।

2. सूर्य + मंगल – जातक महाधनी होगा। जातक का भाग्योदय प्रथम पुत्र के जन्म के बाद होगा।

3. सूर्य + बुध – द्वितीय स्थान में मकर राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश दशमेश बुध के साथ युति होगी। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव को देखेंगे।

फलतः ऐसा जातक बुद्धिमान, धनवान एवं व्यापारी होगा। जातक दीर्घायु को प्राप्त करेगा। ऐसा जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। जातक की आमदनी के जरिए दो तीन प्रकार के रहेंगे।

4. सूर्य + गुरु – यहां गुरु नीच का होगा पर सूर्य के साथ होने से व्यक्ति पुरोहिताई एवं तंत्र-मंत्र से धन कमायेगा।

5. सूर्य + शुक्र – धन प्राप्ति के संसाधनों में लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी।

6. सूर्य + शनि – धनुलग्न में सूर्य शनि की युति वस्तुतः भाग्येश धनेश, पराक्रमेश शनि के साथ युति होगी। शनि यहां स्वगृही है व सूर्य शत्रु क्षेत्री है। फलतः जातक धनवान एवं भाग्यशाली होगा। पिता की मृत्यु के बाद ही जातक धनवान होगा।

7. सूर्य + राहु – धन के घड़े में भारी छेद, धन आयेगा व खर्च होता चला जायेगा।

8. सूर्य + केतु – संघर्ष की स्थिति रहेगी।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश तृतीय स्थान में

सूर्य यहां तृतीय स्थान में कुंभ (शत्रु) राशि में होगा। ऐसा जातक परम पराक्रमी, प्रतापी व तेजस्वी होता है। ऐसे जातक कष्ट दुःख व संघर्ष से नहीं घबराते। सहोदर भ्राता के व्यवहार से जातक व्याकुल रहता हैं।

दृष्टि – लग्नस्थ सूर्य की दृष्टि भाग्यस्थान अपने ही घर (सिंह) राशि पर होगी। ऐसे जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। परन्तु उसमें विवाद रहेगा।

दशा – सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा एवं पराक्रम बढ़ेगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – भाग्येश-अष्टमेश की युति कुंभ राशि में होने से जातक महान पराक्रमी होगा तथा समाज के द्वारा अथवा राजा (शासन) के द्वारा सम्मानित होगा।

2. सूर्य + मंगल – जातक महान पराक्रमी होगा। उसके अनेक भाई व शुभचिंतक मित्र होंगे। परन्तु जातक के छोटे भाई की अकाल मृत्यु होगी।

3. सूर्य + बुध – तृतीय स्थान में कुंभ राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश-दशमेश बुध साथ युति होगी। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह भाग्य स्थान को देखेंगे जो कि सूर्य का स्वयं का घर है। फलतः ऐसे जातक का भाग्योदय शीघ्र होगा 26 वर्ष की आयु में जातक की किस्मत जरूर चमकेगी। जातक बुद्धिमान तथा समाज का लब्ध प्रतिष्ठत व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – यहां गुरु होने से व्यक्ति कर्मकाण्ड व पण्डिताई में निपुण होता है। जातक राजा का मंत्री होता है।

5. सूर्य + शुक्र – भाइयों- कुटम्बीजनों के मध्य मनमुटाव रहेगा।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के तृतीय स्थान में सूर्य-शनि युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की तृतीयेश धनेश शनि के साथ युति होगी। शनि यहां अपनी मूल त्रिकोण राशि में होगा। फलत: जातक पराक्रमी होगा। उसे बड़े भाई का सुख प्राप्त नहीं होगा। बड़े भाई की मृत्यु के बाद जातक की किस्मत चमकेगी।

7. सूर्य + राहु – भाइयों में वैमनस्य रहेगा।

8. सूर्य + केतु – जातक यशस्वी होगा। मित्रों का साथ रहेगा।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश चतुर्थ स्थान में

सूर्य यहां चतुर्थ स्थान में मीन (मित्र) राशि का होगा। जातक को जमीन-जायदाद, माता घर, आध्यात्म व भाग्योदय का सुख मिलेगा। जातक अपनी खुद का भव्य भवन अपनी स्वयं की कमाई से बनायेगा ।

दृष्टि – चतुर्थ भावगत सूर्य की दृष्टि दशम स्थान (कन्या राशि) पर होने से जातक को पिता, राज्य शासन से धन, यश व पद की प्राप्ति होगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा में जातक की नौकरी लगेगी व उसका भाग्योदय होगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – भाग्येश सूर्य व अष्टमेश चंद्र की युति यहां केन्द्र में हैं। ऐसे जातक के चेहरे पर सदा हंसी व प्रसन्नता रहती है। जातक के पास उत्तम वाहन होगा।

2. सूर्य + मंगल – जातक के पास भौतिक सुविधाएं पूर्ण रूप से बनी रहेंगी।

3. सूर्य + बुध – चतुर्थ स्थान में मीन राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश दशमेश बुध के साथ युति होगी । बुध यहां नीच राशि का होगा। दोनों ग्रह यहां बैठकर दशम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे जो कि बुध की उच्च राशि होगी।

फलत: ऐसा जातक बुद्धिमान होगा। ‘कुलदीपक योग’ के कारण जातक अपने कुटुम्ब-परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा। जातक की किस्मत का सितारा 26 वर्ष की आयु में चमकेगा। जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – यहां गुरु के कारण ‘हंस योग’ बनेगा। ऐसा जातक राजगुरु के पद को प्राप्त करता हुआ, धन-वैभव को प्राप्त करता है।

5. सूर्य + शुक्र – भौतिक संसाधनों की प्राप्ति हेतु जातक को काफी संघर्ष करना पड़ेगा।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के चतुर्थ स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की तृतीयेश धनेश शनि के साथ युति होगी। शनि यहां मीन (शत्रु राशि) में एवं सूर्य मित्र राशि में होगा। जातक के माता-पिता बीमार रहेंगे। जातक धनवान होगा एवं सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जीयेगा ।

7. सूर्य + राहु – जातक को माता-पिता का सुख कम मिलेगा।

8. सूर्य + केतु – जातक की भौतिक सुखों संसाधनों की प्राप्ति अचानक होगी।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश पंचम स्थान में

सूर्य यहां पंचम भाव में मेष (उच्च) राशि में होगा। मेष राशि के 10 अंशों तक सूर्य परमोच्च का होगा। यहां सूर्य शुभ व उन्नतिकारक है। जातक राजा व राजा के समान उच्च वैभव से युक्त, उच्च शिक्षा से युक्त होगा।

दृष्टि – पंचमस्थ सूर्य की दृष्टि एकादश स्थान (तुला राशि) पर होगी। जातक को व्यापार व्यवसाय में उत्तम लाभ होगा।

निशानी – जातक प्रथम पुत्र के विषय में संतप्त रहेगा।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। उसे उत्तम संतति व सर्वत्र सफलता मिलेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – अष्टमेश चंद्र व भाग्येश सूर्य पंचम भाव में होने पर सूर्य उच्च का होगा। ऐसा जातक परम महत्त्वाकांक्षी होगा। जातक उच्च शिक्षित व राज्याधिकारी होगा। जातक की संतति भी शिक्षित व तेजस्वी होगी।

2. सूर्य + मंगल – ‘ किम्बहुना योग’ के कारण जातक का पराक्रम राजा से बढ़कर होगा। उसकी संतति भी तेजस्वी होगी। जातक शिक्षित होगा। जातक को आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति होती रहेगी।

3. सूर्य + बुध – पंचम स्थान में ‘मेष राशिगत’ यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश-दशमेश बुध के साथ युति होगी। सूर्य यहां उच्च का होगा। यहां पर यह युति खिलेगी। दोनों ग्रह लाभ स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

ऐसा जातक बुद्धिमान, शिक्षित, प्रजावान होगा। ईश्वर कृपा से एक तेजस्वी पुत्र अवश्य होगा। कन्या संतति भी होगी। जातक भाग्यशाली होगा। सरकारी क्षेत्र का राजनीति में जातक का दबदबा रहेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा ।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ लग्नेश गुरु जातक को प्राचीन शास्त्रों का जानकार बनाता है एवं राजगुरु की पदवी दिलाता है।

5. सूर्य + शुक्र – जातक को विद्या अध्ययन में रुकावटें आयेंगी।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के पंचम स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की तृतीयेश, धनेश शनि के साथ युति होगी। शनि यहां नीच के सूर्य के साथ होने से ‘नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। ऐसा जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा। जातक की भाइयों से कम बनेगी। पिता की मृत्यु के बाद जातक की उन्नति होगी।

7. सूर्य + राहु – जातक को अपुत्र का योग बनता है पर पूजा-पाठ करने पर संतान होगी।

8. सूर्य + केतु – संतति में बाधा संभव है।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश षष्टम स्थान में

सूर्य यहां छठे स्थान में वृष (शत्रु) राशि में होगा। सूर्य की यह स्थिति ‘भाग्यभंग योग’ बनाती है। ऐसे जातक को भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। जातक के अपनी जाति में ही उसके शत्रु बहुत होंगे।

दृष्टि – छठे स्थान में स्थित सूर्य की दृष्टि द्वादश भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा तथा यात्राएं बहुत करेंगा।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – अष्टमेश चंद्रमा उच्च का सूर्य के साथ होने से ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ बना जातक धनी-मानी अभिमानी होगा। परन्तु दुर्घटना का भय या शत्रु द्वारा नुकसान पहुंचने का योग है।

2. सूर्य + मंगल – मंगल के कारण ‘संततिहीन योग’ अथवा ‘विद्याबाधा योग’ बनेगा। प्रारम्भिक विद्या में बाधाएं आयेंगी।

3. सूर्य + बुध – छठे स्थान में वृष राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश-दशमेश बुध के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव को देखेंगे। सूर्य के छठे जाने से ‘भाग्यभंग योग’ तथा बुध के छठे जाने से ‘विवाहभंग योग’ तथा ‘राजभंग योग’ भी बनेगा। फलतः यहां पर यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है।

जातक बुद्धिमान होगा। भाग्योदय हेतु जातक को काफी संघर्ष करना पड़ेगा। फिर भी जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – गुरु के छठे जाने से ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘सुखहीन योग’ भी बनेगा। ऐसा जातक प्राचीन मंत्र-तंत्र विद्या का जानकार होता है पर अपनी प्रतिष्ठा बराबर नहीं जमा पाता।

5. सूर्य + शुक्र – शुक्र के कारण ‘हर्ष नामक’ विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा, पर शत्रुओं का प्रकोप रहेगा।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के छठे स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की मारकेश तृतीयेश शनि के साथ युति होगी। इस युति के कारण ‘भाग्यभंग योग’, ‘धनहीन योग’ एवं ‘पराक्रमभंग योग’ बनेगा।

जातक को धन कमाने हेतु प्रतिष्ठा प्राप्त करने हेतु एवं भाग्योदय हेतु बहुत परेशानी उठानी पड़ेगी। पिता के जीवित रहते जातक का भाग्योदय नहीं होगा।

7. सूर्य + राहु – राहु यहां नेत्र रोग एवं भाग्योदय में कष्ट देगा।

8. सूर्य + केतु – केतु नेत्रों का ऑपरेशन करायेगा।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश सप्तम स्थान में

सूर्य यहां सप्तम स्थान में मिथुन (सम) राशि में होगा। सप्तमस्थ सूर्य को प्राय: पत्नी के लिए अच्छा नहीं माना गया परन्तु यहां सूर्य अपनी राशि से एकादश स्थान में होने से स्त्री-नौकरी व्यवसाय का सुख देता है। जातक राजनीति, शासन प्रबंधन के क्षेत्र में आगे बढ़ता है।

दृष्टि – सूर्य की दृष्टि लग्न स्थान (धनु राशि) पर होने से जातक को परिश्रमपूर्वक किये गये प्रत्येक कार्य में सफलता निश्चित रूप से मिलेगी।

निशानी – जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक की पत्नी अभिमानी (घमण्डी) होगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा एवं इच्छित उन्नति मिलेगी। सूर्य की दशा में बुध व शनि के अर्तदशा में जातक की तबियत खराब होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – अष्टमेश चंद्रमा व भाग्येश सूर्य यहां केंद्र में है। जातक की पत्नी से कम निभेगी। वाहन दुर्घटना से अंग-भंग होने का भय रहेगा।

2. सूर्य + मंगल – जातक का गृहस्थ सुख उत्तम परन्तु उसकी पत्नी उग्र स्वभाव की (झगड़ालू) होगी।

3. सूर्य + बुध – सातवें स्थान पर मिथुन राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश दशमेश बुध के साथ युति होगी । बुध यहां स्वगृही होगा फलतः ‘भद्र योग’ एवं ‘कुल दीपक योग’ की सृष्टि होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक परम बुद्धिमान, धनवान होगा। विवाह के तत्काल बाद भाग्योदय होगा। जातक का ससुराल पक्ष धनवान होगा। जातक की पत्नी तेज स्वभाव की होगी। जातक राजा के समान महान पराक्रमी एवं वैभवशाली होगा।

4. सूर्य + गुरु – यहां गुरु होने से ‘केसरी योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ बनता है। ऐसा जातक राजगुरु के पद को प्राप्त करता है तथा राजनेताओं को मार्गदर्शन देता है।

5. सूर्य + शुक्र – जातक के पेट में तकलीफ, आंतों में सूजन एवं कब्ज की बीमारी, गर्मी की शिकायत रहेगी।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के सातवें स्थान में मिथुन राशिगत सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की मारकेश-तृतीयेश शनि के साथ युति होगी। सूर्य एवं शनि दोनों की दृष्टि लग्न स्थान पर होने से जातक उन्नति पथ की ओर आगे बढ़ेगा। जातक पराक्रमी होगा। जातक का ससुराल धनाढ्य होगा, फिर भी पत्नी से विचार कम मिलेंगे।

7. सूर्य + राहु – पत्नि से वैमनस्य विस्फोटक होगा, तलाक संभव है।

8. सूर्य + केतु – उदर या गुदा के लिए शल्य चिकित्सा संभव है।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश अष्टम स्थान में

सूर्य यहां अष्टम स्थान में कर्क (मित्र) राशि में होगा। सूर्य की इस स्थिति में ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। सूर्य अपनी राशि से बारहवें होने के कारण जातक को भाग्योदय हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। यदि यहां गुरु बलवान न हो तो जातक का पिता छोटी उम्र में ही गुजर जायेगा। कुटुम्बी मददगार नहीं होगे।

दृष्टि – अष्टमस्थ सूर्य की दृष्टि धन स्थान (मकर राशि) पर होने से जातक को पिता की सम्पत्ति नहीं मिलेगी। जातक अपने बाहुबल से धन कमायेगा।

निशानी – जातक का दाईं आंख नकली होगी एवं वाणी कड़वी होगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा कष्टदायक रहेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – अष्टमेश चंद्रमा अष्टम भाव में स्वगृही होने से ‘सरल नामक ‘ विपरीत राजयोग बना। जातक धनी-मानी, अभिमानी होगा पर शत्रु द्वारा चोट या वाहन दुर्घटना से भय होने का योग बनता है।

2. सूर्य + मंगल – मंगल नीच का होकर सूर्य के साथ होने से वैवाहिक समस्या या राजकीय अधिकारियों द्वारा परेशानियां आयेंगी।

3. सूर्य + बुध – धनु लग्न में सूर्य भाग्येश होगा। अष्टम स्थान में कर्क राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश-दशमेश बुध के साथ युति होगी। बुध शत्रुक्षेत्री है। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। सूर्य आठवें जाने से ‘भाग्यभंग योग’ तथा बुध आठवें जाने से ‘विवाहभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बना।

यहां पर यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है। जातक बुद्धिमान तथा भाग्यशाली होगा परन्तु इसे भाग्योदय हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – यहां सूर्य के साथ गुरु उच्च का होगा तथा ‘लग्नभंग योग’ एवं  ‘सुखभंग योग’ की सृष्टि करेगा। जातक राजगुरु का पद प्राप्त करेगा पर संघर्ष बहुत रहेगा।

5. सूर्य + शुक्र – शुक्र, सूर्य के साथ होने से ‘हर्ष नामक’ विपरीत राजयोग बनेगा। जातक के साथ दुर्घटना हो सकती है। टांग में चोट लग सकती है।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के आठवें स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की मारकेश शनि के साथ युति होगी। इस युति के कारण ‘भाग्यभंग योग’, ‘धनहीन योग’ एवं ‘पराक्रमभंग योग’ की क्रमशः सृष्टि होगी। ऐसे जातक को धन कमाने हेतु, प्रतिष्ठा की प्राप्ति हेतु एवं भाग्योदय हेतु बड़ी दिक्कतें उठानी पड़ेंगी। जातक के शत्रु बहुत होंगे। पिता-पुत्र की नहीं बनेगी।

7. सूर्य + राहु – यहां पर राहु शत्रुओं द्वारा हानि पहुंचायेगा ।

8. सूर्य + केतु – यहां केतु अनहोनी दुर्घटना करा सकता है, पर बचाव होगा।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश नवम स्थान में

सूर्य यहां नवम स्थान में सिंह राशि का होकर स्वगृही होगा। सिंह राशि के 20 अंशों तक सूर्य मूलत्रिकोण का कहलायेगा। ऐसे जातक का भाग्य बहुत बलवान होगा। जातक का पिता प्रतिष्ठित, धनवान एवं दीर्घायु वाला होगा। जातक अपने भाग्यबल से खूब धन कमायेगा ।

दृष्टि – नवमस्थ सूर्य की दृष्टि तृतीय स्थान (कुंभ राशि) पर होगी। ऐसे जातक की छोटे भाइयों के साथ पटेगी। जातक कुटम्बीजनों का सहायक एवं अच्छा मित्र साबित होगा।

निशानी – जातक यात्रा का शौकीन होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। किस्मत खुलेगी एवं धन की प्राप्ति होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – यहां भाग्येश सूर्य स्वगृही होकर अष्टमेश चंद्रमा के साथ भाग्य में वृद्धि करायेगा। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक धर्मात्मा व परोपकारी होगा।

2. सूर्य + मंगल – मंगल की युति से राजयोग बनेगा। जातक के पास बड़ी जमीन-जायदाद होगी।

3. सूर्य + बुध – नवम स्थान में सिंह राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश-दशमेश बुध के साथ युति होगी। सूर्य यहां स्वगृही होगा। फलतः व्यक्ति बुद्धिशाली होगा। बलवान भाग्येश की दशमेश के साथ युति होने के कारण जातक के भाग्य का सितारा 26 वर्ष की आयु में चमकेगा। यहां पर यह युति खिलेगी। जातक पराक्रमी होगा तथा उसे मित्र, परिजनों की मदद मिलती रहेगी। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु होने से जातक राजगुरु की उच्च पदवी या राजा के तुल्य उच्च पद को प्राप्त करेगा। जातक धार्मिक होगा।

5. सूर्य + शुक्र – परस्पर शत्रु ग्रहों की युति से भाग्योदय हेतु संघर्ष रहेगा।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न में नवम स्थान में स्वगृही सूर्य के साथ की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की मारकेश-तृतीयेश शनि के साथ होगी। ऐसे जातक का पिता सम्पन्न होगा, परन्तु जातक की पिता के साथ कम पटेगी। भाइयों से भी कम निभेगी। जातक का सही भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा।

7. सूर्य + राहु – ऐसे जातक अति उत्साही होते हैं। जिसके कारण कई बार काम बिगड़ जाता है।

8. सूर्य + केतु – जातक यशस्वी जीवन जीयेगा। उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

धनुलग्न में सूर्य का फलादेश दशम स्थान में

सूर्य यहां दशम स्थान में कन्या (सम) राशि में होगा। सूर्य यहां ‘दिग्बली’ होगा। ऐसा जातक सरकारी, अर्ध सरकारी नौकरी में उच्च पद प्राप्त करेगा। यदि जातक खुद का व्यापार करेगा तो भी उन्नति पथ की ओर आगे बढ़ेगा। जातक को मकान, वाहन, भवन का पूर्ण सुख मिलेगा।

दृष्टि – दशमस्थ सूर्य की दृष्टि चतुर्थ भाव (मीन राशि) पर होगी। फलतः जातक की माता थोड़ी बीमार रहेगी।

निशानी – जातक को पिता व राजनैतिक सहयोग मिलता रहेगा।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा में जातक की उन्नति व भाग्योदय होगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – अष्टमेश चंद्र एवं भाग्येश सूर्य के केन्द्र में होने से जातक के पास एक से अधिक वाहन होंगे। जातक को वाहन दुर्घटना से अंग-भंग होने का भय बना रहेगा।

2. सूर्य + मंगल – मंगल के यहां ‘दिग्बली’ होकर सूर्य के साथ होने से जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वमी होगा। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करके विदेश जायेगा।

3. सूर्य + बुध – दशम स्थान में कन्या राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश दशमेश बुध के साथ युति होगी। बुध यहां उच्च का होगा। जिसके कारण क्रमशः ‘भद्र योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ बनेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली होगा। उसके एक से अधिक वाहन होंगे। जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा। राज्य (सरकार) में उसका दबदबा रहेगा।

4. सूर्य + गुरु – यहां सूर्य के साथ गुरु ‘केसरी योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि करेगा। जातक राजगुरु के उच्च पद को प्राप्त करेगा। जातक को तंत्र-मंत्र की पूरी जानकारी होगी।

5. सूर्य + शुक्र – जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा। जातक के पास एकाधिक वाहन होंगे।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के दशम स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की मारकेश तृतीयेश शनि के साथ युति होगी। जातक के पास एक से अधिक मकान होंगे। सरकारी नौकरी या काम काज में विवाद रहेगा। जातक की उन्नति धीमी गति से होगी। जातक को ज्यादा फायदा व्यापार में रहेगा।

7. सूर्य + राहु – राहु दशम स्थान में राज्य सुख में बाधक है।

8. सूर्य + केतु – केतु दशम स्थान में सूर्य के साथ होने से जातक सरकारी केस में उलझेगा ।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश एकादश स्थान में

सूर्य यहां एकादश स्थान में तुला राशि में नीच का होगा। तुला राशि के दस अंशों तक सूर्य परम नीच का होता है। ऐसे जातक को पिता की सम्पत्ति मिलती है। जातक पिता से भी खूब आगे बढ़ता है। जातक खूब अच्छी विद्या प्राप्त करेगा। जातक व्यापार से भी खूब धन कमायेगा। जातक को भाग्योदय में सफलता थोड़े संघर्ष व परिश्रम के बाद मिलती है।

दृष्टि – एकादश भावगत सूर्य की दृष्टि पंचम स्थान (मेष राशि) पर होगी। जातक के पुत्र संतति एकाध होगी पर उससे चिंता रहेगी।

निशानी – जातक का बड़े भाई के साथ प्रेम रहेगा। मित्र अच्छे होंगे। नीच का सूर्य होने से राजयोग नष्ट होंगे।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा उत्तम फल देगी। भाग्योदय करायेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – यहां भाग्येश सूर्य नीच का होकर अष्टमेश से युति करेगा। फलतः जातक का राजयोग नष्ट होगा। जातक को कोर्ट कचहरी से परेशानी होगी।

2. सूर्य + मंगल – यहां मंगल साथ होने पर जातक अनैतिक कार्यों से धन कमायेगा।

3. सूर्य + बुध – एकादश स्थान में तुला राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश दशमेश बुध के साथ युति होगी। सूर्य यहां नीच राशिगत होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव को देखेंगे।

फलत: जातक बुद्धिमान एवं शिक्षित होगा। जातक की संतान भी शिक्षित होगी। जातक व्यापार के द्वारा धन कमायेगा। जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु होने से जातक ‘राजगुरु के पद को प्राप्त करेगा तथा तंत्र-मंत्र व गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता होगा।

5. सूर्य + शुक्र – शुक्र की युति के कारण ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के एकादश स्थान में सूर्य-शनि की युति ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगी। जातक राजा के समान पराक्रमी वैभवशाली होगा। स्त्री-संतान सुख उत्तम होगा, पर पिता से विचार नहीं मिलेंगे। पिता जब तक जीवित रहेगा, जातक स्वतंत्र धनार्जन नहीं कर पायेगा।

7. सूर्य + राहु – जातक की चलती फैक्टरी बंद होगी। सरकारी कष्ट आयेगा।

8. सूर्य + केतु – जातक की सरकारी नौकरी नहीं लग पायेगी ।

धनु लग्न में सूर्य का फलादेश द्वादश स्थान में

सूर्य यहां व्यय भाव में वृश्चिक (मित्र) राशि का होगा। सूर्य की यह स्थिति ‘भाग्यभंग योग’ बताती है। जातक को भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। जातक फालतू कार्यों में धन व शक्ति का अपव्यय करेगा। रोग वं शत्रु जातक को पीड़ा पहुंचाते रहेंगे। जातक का भाग्य ज्यादा निर्बल नहीं होगा।

दृष्टि – द्वादश भावगत सूर्य की दृष्टि छठे स्थान (वृष राशि) पर होगी। जिससे शत्रु पराजित होंगे। रोगों का शमन होगा।

निशानी – जातक के पिता की मृत्यु छोटी उम्र में हो जायेगी।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा थोड़ी कष्टदादायक होगी ।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्रमा – अष्टमेश चंद्रमा, भाग्येश सूर्य के साथ व्यय भाव में जाने से ‘सरल नामक’ विपरीत राजयोग बना। जातक धनी-मानी अभिमानी होगा। यात्रा में दुर्घटना या विष भोजन का भय बना रहेगा।

2. सूर्य + मंगल – मंगल के कारण यहां ‘विमल नामक विपरीत राजयोग’ बनेगा।

3. सूर्य + बुध – द्वादश स्थान में वृश्चिक राशिगत यह युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की सप्तमेश दशमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह छठे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक बुद्धिशाली एवं भाग्यशाली होगा।

सूर्य बारहवें होने से ‘भाग्यभंग योग’ तथा बुध बारहवें होने से ‘विवाहभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ की सृष्टि होगी। फलतः ऐसे जातक को भाग्योदय हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – गुरु के कारण ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘सुखभंग योग’ ‘बनेगा। ऐसा जातक तंत्र-मंत्र का जानकार होता हुआ भी अपने आप को स्थापित नहीं कर पायेगा।

5. सूर्य + शुक्र – शुक्र के कारण यहां ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनवान होगा। वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।

6. सूर्य + शनि – धनु लग्न के बारहवें स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः भाग्येश सूर्य की मारकेश तृतीयेश शनि के साथ युति होगी। इस युति के कारण ‘भाग्यभंग योग’, ‘धनहीन योग’ एवं ‘पराक्रमभंग योग’ बनेगा। ऐसे जातक को धन कमाने, प्रतिष्ठा की प्राप्ति हेतु एवं भाग्योदय हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। जातक को यात्रा में नुकसान होगा। दुर्घटना भी हो सकती है।

7. सूर्य + राहु – जातक को यात्रा में नुकसान होगा। नेत्र पीड़ा संभव है।

8. सूर्य + केतु – जातक को पूर्वाभास होगा। जातक के सपने सच होंगे।

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