धनु लग्न की कुण्डली का फलादेश

राशि चक्र की यह नवम राशि है जिसे संस्कृत में धन्वी, धनु, चाप और शरासन के नाम से भी पुकारते हैं। काल पुरुष शरीर में जांघों पर इस राशि का प्रभाव रहता है। इसका स्वरूप धनुष हाथ में लिए हुए कमर के ऊपर मनुष्य व नीचे घोड़े के समान है। इसका स्थान घोड़ा, रथ और हाथी के निवास स्थान में है।

यह राशि सम, पुरुषाकार, पूर्व दिशा की स्वामिनी, क्रूर स्वभाव और द्विस्वभाव, पृष्ठोदय, रात्रि बली है, जो कि भूतवासिनी है। यह चतुष्पद, पराद्ध प्रधान दशम भाव में बली है, जो कि जीवसंज्ञक कही जाती है।

इसका स्वामी गुरु है । बृहस्पति की यह मूल त्रिकोण राशि है, इस राशि में न तो कोई ग्रह उच्च का बनता है और न ही नीच का ।

धनु लग्न की कुण्डली का फलादेश

धनु लग्न की कुण्डली के फलित बिंदु

  • सूर्य – पूर्ण कारक, भाग्येश
  • चन्द्र – अकारक, मारक, अष्टमेश पर मेरी राय में सम्पति में यह तटस्थ रहता है, शुभ प्रभाव नहीं देता तो अशुभ भी नहीं देता ।
  • मंगल – अकारक, पंचमेश व्ययेश ।
  • बुध – सप्तमेश राज्येश, केन्द्राभिपत्य दोष होने से सामान्यतः अकारक ।
  • गुरु – कारक ग्रह केन्द्राक्षिपत्य दोषयुक्त पर मेरी राय में तो लग्नेश होने से इसका केन्द्राधिपत्य दोष समाप्त हो जाता है।
  • शुक्र – पूर्ण अकारक, षष्ठेश लाभेश ।
  • शनि – अकारक, धनेश- पराक्रमेश ।

(1) शनि बलवान हो या एकादश भाव में हो तो पत्नी दीर्घायु होती है तथा पूर्णतः Self made man होता है एवं स्वउपार्जित धन से ऊँचा उठता है।

(2) पंचम भाव में शनि हो तो स्त्री की आयु कम होती है, तथा वह निरन्तर रोगिणी बनीं रहती है।

(3) पंचम भाव में गुरु प्रबल भाग्यवर्धक होता है तथा ऐसा व्यक्ति ज्ञानी, दानी, धनी एवं परोपकारी होता है तथा समाज में उसकी उच्चस्तरीय प्रतिष्ठा होती है।

(4) सप्तम भाव में मंगल हो तो व्यक्ति शौकीन, परस्त्रीगामी एवं कामान्ध होता है।

(5) अष्टम भाव में मंगल योगकारक होता है।

(6) नवम भाव में मंगल हो तो उसका धन पुत्रों द्वारा नष्ट हो जाता है। नवम भाव में राहु-मंगल की युति पुत्र को घोर दुःख प्रदान करती है ।

(7) सप्तम भाव में मंगल-शुक्र हो तो जातक की स्त्री की मृत्यु जलने से या घावों के सड़ने से होती है।

(8) मंगल, शुक्र अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति की निश्चय ही चोट लगकर अकाल मृत्यु हो ।

(9) शुक्र शनि पंचम भाव में हों तो निरन्तर उदर रोग बना रहे ।

(10) दशम भाव में शुक्र विशेष धनदायक है ।

(11) शुक्र जितना ही कमजोर या अस्त होगा, व्यक्ति उतना ही शुभ, धनवर्धक एवं धनदायक योग निर्माण करने में सहायक होगा ।

(12) गुरु सप्तम भाव में हो तथा लग्न में शनि-राहु हों तो स्त्री का अधिकांश जीवन वैधव्यमय ही व्यतीत होता है।

(13) सप्तम भाव में बुध हो तथा उस पर कोई पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति का विवाह शीघ्र ही होता है।

(14) सूर्य दशम भाव में गुरु के साथ हो तो व्यक्ति प्रशासनाधिकारी बनता है।

(15) दशम भाव में बुध हो तथा चतुर्थ भाव में राहु या शनि अथवा राहु-मंगल हों तो जातक राज्य सेवा में बहुत ऊंचा उठकर भी पतनोन्मुख होता है।

(16) अष्टम भाव या वृष राशि का बुध हो तो जातक को जीवन भर त्वचा रोग बना रहता है।

(17) मंगल-शुक्र की युति या पूर्ण दृष्टि सम्बन्ध जीवन में निरन्तर उपद्रव कराते रहते हैं।

(18) धनु लग्न में शनि पंचम भाव में अत्यन्त शुभ फल देने वाला है, वह अपनी दशा में जातक को धनाढ्य, यशस्वी एवं सुखी बनाने से समर्थ होता है।

(19) तुला का शनि पूर्ण शुभ फलदायक है और शनि की दशा आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त शुभ होती है।

(20) शनि तीसरे भाव में तथा सूर्य-शुक्र नवम भाव में हों तो शनि की दशा प्रबल भाग्यवर्धक एवं भाग्योदयकारक होती है।

धनु लग्न की कुण्डली में दशा फलादेश

सूर्य महादशा

सूर्य अन्तर – शुभ, राजयोगकारक, भाग्योदय ।

चन्द्र – हानि, व्ययाधिक्य ।

मंगल – सन्तानलाभ, उत्तम लाभ, शुभ।

राहु – सामान्य ।

गुरु – शुभ राजयोगकारक, वाहनसुख ।

शनि – धनलाभ |

बुध – सामान्य ।

केतु – पूर्ण शुभ फलदायक ।

शुक्र – शुभ, अनुकूल ।

चन्द्र महादशा

चन्द्र अन्तर – हानिकारक ।

मंगल – शुभ, उन्नतिकारक ।

राहु – हानि, मनस्ताप ।

गुरु – शुभ, सौख्यवर्धक ।

शनि – उत्तरार्द्ध पूर्ण सुखदायक |

बुध – लाभप्रद ।

केतु – सामान्य ।

शुक्र – लाभदायक, दुखः वर्धक ।

सूर्य – धनदायक ।

मंगल महादशा

मंगल अन्तर – लाभदायक ।

राहू – शुभ ।

गुरु – लाभवर्धक, अनुकूल ।

शनि – अनुकूल ।

बुध – सामान्य ।

केतु – शुभ, अनुकूल, सुखदायक ।

शुक्र – हानि, रोग ।

सूर्य – पूर्ण अनुकूल ।

चन्द्र – अनुकूल ।

राहू महादशा

राहु अन्तर – हानिकारक

गुरु – शुभ ।

शनि – सामान्यतः अनूकूल ।

बुध – शुभ फलदायक ।

केतु – हानि, चिन्ता ।

शुक्र – पूर्ण लाभवर्धक ।

सूर्य – उन्नति ।

चन्द्र – मनस्ताप, बाधा, कठिनाइयाँ ।

मंगल – अनुकूल ।

गुरु महादशा

गुरु अन्तर – पूर्ण लाभदायक, शुभ ।

शनि – धनदायक, व्यापार में उन्नति ।

बुध – अनुकूल।

केतु – शुभ।

शुक्र – मारक, दुखदायक ।

सूर्य – राज्योन्नति ।

चन्द्र – सामान्य, हानिकारक ।

मंगल – भाग्योन्नति ।

राहू – सुख, शुभ, अनुकूल ।

शनि महादशा

शनि अन्तर – धनदायक, सुखवर्धक ।

बुध – उत्तम ।

केतु – अनुकूल ।

शुक्र – पूर्वार्द्ध अशुभ ।

सूर्य – अनुकूल शुभ पर मारक भी ।

चन्द्र – दाम्पत्य सफलता ।

मंगल – लाभदायक ।

राहु – सामान्यतः अनुकूल ।

गुरु – शुभ फलदायक ।

बुध महादशा

बुध अन्तर – विवाह, ससुराल सुख ।

केतु – पूर्ण उन्नतिकारक ।

शुक्र – फायदेमन्द, लाभदायक ।

सूर्यं – पूर्ण अनुकूल ।

चन्द्र – धनवर्धक ।

मंगल – घोर दुःख ।

राहू – हानि, चिन्ता ।

गुरु – पूर्ण भाग्योदय ।

शनि – अनुकूल ।

केतु महादशा

केतु अन्तर – अनुकूल ।

शुक्र – सुखदायक, उन्नति ।

सूर्य – लाभदायक, राज्योन्नति ।

चन्द्र – सामान्य ।

मंगल – सामान्यतः शुभ ।

राहु – हानि, बाधा, दुःख ।

गुरु – लाभदायक ।

शनि – अनुकूल, उत्तम ।

बुद्ध – सुख-सौभाग्यवर्धक ।

शुक्र महादशा

शुक्र – अन्तर- दुखदायक ।

सूर्य – लाभ, वाहनसुख ।

चन्द्र – सामान्य ।

मंगल – हानि, कष्ट, पतन ।

राहू – बाधाएँ ।

गुरु – दुख, मरण ।

शनि – भाग्यवर्धक ।

बुध – धनदायक ।

केतु – दुख, सौभाग्यवर्धक ।


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