कुम्भ लग्न की कुंड्ली का फल

राशि चक्र की यह ग्यारहवीं राशि है । कालपुरुष शरीर में इसका निवासस्थान दोनों पिण्डलियाँ हैं, इसका स्वरूप कंधे पर कलश लिए पुरुष के समान है ।

इसका निवास जल स्थान है । ग्रह ह्रस्व, पुरुषाकार, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, क्रूर स्वभाव तथा स्थिर मति की है, यह शीर्षोदयी होने के साथ-साथ दिनबली मानी गई है ।

इस राशि का पूर्वार्द्ध नर है तथा यह राशि लग्न में बली है, इसे हम मूल संज्ञक कह सकते हैं। यह वैश्य वर्ण है तथा नेवले के समान इसका रंग है ।

इसका स्वामी शनि है तथा यह शनि की मूल त्रिकोण राशि भी है। इस राशि में न तो कोई ग्रह उच्च का बनता है और न नीच का ही ।

कुम्भ लग्न की कुंड्ली के फलित बिन्दु

सूर्य – कारक, सप्तमेश ।

चन्द्र – षष्ठेश, कारक, मेरी राय में तटस्थ ।

मंगल – अकारक, पराक्रमेश-राज्येश ।

बुध – अकारक, पंचमेष-अष्टमेश ।

गुरु – धनेश-लाभेश, अकारक, मारक ।

शुक्र – पूर्ण कारक ग्रह, सुखेश-भाग्येश ।

शनि – कारक, लग्नेश-व्ययेश ।

(1) श्रेष्ठ एवं बली गुरु व्यक्ति को प्रबल धनाढ्य बनाने में समर्थ रहता है ।

(2) गुरु की दृष्टि जिस भाव पर भी होती है, उसी भाव को मूल्यवान बना देती है । यथा गुरु की दृष्टि तीसरे भाव पर हो तो उसके भाई धनाढ्य होते हैं । छठे भाव पर हो तो शत्रु उसके द्वारा लाभ उठाते हैं । गुरु लग्न में हो तो ससुराल से पूर्ण लाभ होता है ।

(3) दूसरे भाव में गुरु तथा ग्यारहवें भाव में शुक्र हों तो व्यक्ति कंगाल के घर में जन्म लेकर भी लखपति बनता है । देव केरलकार ने भी इस मत की पुष्टि की है-

लाभे शुक्रे धने जीवे अवयोग शतैरपि ।

धनिकः कीर्तिमाश्चैव राजद्वारै प्रसिद्धिमान् ॥

अर्थात् उपर्युक्त योग हो तो चाहे सैकड़ों बुरे योग हों फिर भी व्यक्ति लखपति तो बनता ही है।

(4) यद्यपि इस लग्न में शुक्र नवमेश तथा मंगल दशमेश है, अतः मंगल शुक्र के साथ बैठने से केन्द्र त्रिकोण लेकर प्रबल राजयोग होना चाहिए और शुभ फल भी देना चाहिए, परन्तु मेरे अनुभव ठीक इसके विपरीत हुए हैं। मंगल-शुक्र सम्बन्ध (इस लग्न में) राज-योग नहीं करता और न शुभ फल प्रदान करते हैं ।

(5) गुरु नवम भाव में तथा शुक्र दशम भाव में हो तथा ऐसे शुक्र पर शनि की दृष्टि हो तो व्यक्ति साधारण कुल में जन्म लेकर भी लखपति होता है ।

इसका कारण लाभेश लाभ स्थान से लाभ स्थान में, योगकारक शुक्र भाग्य स्थान से धन स्थान में, जिसकी पूर्ण दृष्टि सुख भाव तथा वाहन पर रहती है एवं जिस पर लग्नेश शनि की दृष्टि पूर्ण योग कारक बना देती है ।

(6) मंगल तीसरे भाव में हो तो उसके कई छोटे भाई होते हैं पर यदि मंगल ग्यारहवें भाव में या दूसरे भाव में हो तो भाइयों का अभाव रहता है ।

(7) निर्बल मंगल छोटे भाई को अल्पायु बनाता है तथा बली मंगल छोटे भाई को दीर्घजीवी बनाने में समर्थ होता है ।

(8) बारहवें भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति भाग्यहीन होता है । साधारणतः बारहवें भाव में शुक्र की उपस्थिति श्रेष्ठ मानी गई है; पर कुम्भ लग्न में यदि द्वादशस्थ शुक्र हो तो वह योगकारक नहीं माना जाता 1

(9) यदि लग्न में सूर्य और शुक्र हों व दशम भाव में राहु हो तो राहु तथा गुरु की दशा अत्युत्तम होती है, विशेषतः गुरु की दशा प्रबल भाग्योदयकारक देखी गयी है ।

(10) शुक्र बली होने पर उसकी दशा में श्रेष्ठ वाहन लाभ होता है, यदि शुक्र अस्त या पापाक्रान्त हो तो कम लाभ देता है; पर योगकारक अवश्य होता है ।

(11) बुध की दशा सामान्यतः शुभ होती है, विशेषतः इसका पूर्वार्द्ध अधिक शुभ रहता है ।

(12) यदि सूर्य और मंगल अष्टम भाव में हों तो ये दोनों ही दशाएँ घोर दुःख देने वाली हैं तथा ऐसा योग होने पर लखपति व्यक्ति भी दरिद्र जीवन व्यतीत करते देखा गया है ।

(13) बुध-गुरु पंचमस्थ हों तथा शनि ग्यारहवें भाव में हो तो सन्तान सुख नहीं रहता ।

(14) गुरु लग्न में तथा शनि दूसरे भाव में हो तो गुरु की दशा अत्यन्त साधारण रहती है एवं शनि की दशा अपेक्षाकृत शुभ रहती है।

(15) शनि-शुक्र ग्यारहवें भाव में हों तो शुक्र की दशा अत्यन्त मंगलमय तथा धनदायक रहती है ।

(16) यदि तीसरे भाव में सूर्य-बुध-गुरु हों तो सूर्य की दशा प्रबल भाग्यवर्धक देखी गई है।

(17) निर्मल चन्द्रमा आयु को कम करता है ।

(18) चतुर्थ भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति सद्विचारवान एवं शत्रुओं से भी प्रेम करने वाला होता है ।

(19) सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी स्त्री साहसी, लड़ाकू एवं दृढ विचारों वाली होती है ।

(20) यदि सूर्य नवम भाव में हो तो पत्नी अल्पायु होती है ।

(21) तीसरे भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति निश्चय ही उच्च विचारवान एवं उच्च पद प्राप्त अधिकारी होता है ।

(22) बुध अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को दीर्घायु बनाने में सहयोग प्रदान करता है ।

(23) दूसरे भाव में बुध हो तो व्यक्ति जन्म स्थान से दूर रहता है तथा सन्तान की ओर से विशेष दुःख पाता है ।

(24) दशम भाव में शनि हो तो ऐसा अकेला शनि ही व्यक्ति को लखपती-करोड़पती बनाने की सामर्थ्य रखता है ।

कुम्भ लग्न कुंड्ली दशाफल

सूर्य महादशा

सूर्य अन्तर – श्रेष्ठ, शुभ फलदायक ।

चन्द्र – सुखदायक |

मंगल – उन्नति, प्रोमोशन |

राहु – सामान्य ।

गुरु – अनुकूल ।

शनि – शुभ ।

बुध – लाभदायक, मांगलिक कार्य ।

केतु – शुभ ।

शुक्र – शुभ धनलाभ ।

चन्द्र महादशा

चन्द्र अन्तर – सुखदायक ।

मंगल – सफल पर बाधाओं के साथ ।

राहु – हानिदायक |

गुरु – सामान्य ।

शनि – शुभ ।

बुध – व्यय प्रधान, सामान्य ।

केतु – शुभ |

शुक्र – श्रेष्ठ ।

सूर्य – लाभदायक ।

मंगल महादशा

मंगल अन्तर – राज्योन्नति, शुभ ।

राहु – शुभ ।

गुरु – लाभदायक |

शनि – शुभ फलदायक ।

बुध – सामान्य ।

केतु – सुखवर्धक ।

शुक्र – शुभ, सर्वतोमुखी उन्नति ।

सूर्य – सफलतादायक 1

चन्द्र – शुभ ।

राहु महादशा

राहु अन्तर – दुःख ।

गुरु – हानिदायक, उत्तरार्द्ध शुभ ।

शनि – शुभ |

बुध – श्रेष्ठ ।

केतु – व्यय, हानि ।

शुक्र – सफलतादायक ।

सूर्य – अनुकूल ।

चन्द्र – हानि ।

मंगल – सामान्य ।

गुरु महादशा

गुरु अन्तर – सफल ।

शनि – लाभदायक ।

बुध – शुभ, मांगलिक कार्य ।

केतु – अनुकूल ।

शुक्र – उन्नति, लाभ ।

सूर्य – शुभ ।

चन्द्र – सफलतादायक ।

मंगल – सामान्य ।

राहु – हानिकारक ।

शनि महादशा

शनि अन्तर – व्यय प्रधान ।

बुध – सफल ।

केतु – अनुकूल ।

शुक्र – शुभ |

सूर्य – अनुकूल ।

चन्द्र – मतस्ताप, हृदय रोग ।

मंगल – सफल ।

राहु – हानि ।

गुरु – शुभ, धनवर्धक ।

बुध महादशा

बुध अन्तर – पूर्वार्द्ध शुभ ।

केतु – शुभ |

शुक्र – सफलतासूचक ।

सूर्य – शुभ ।

चन्द्र – सामान्य |

मंगल – भूमिलाभ |

राहु – हानि ।

गुरु – लाभदायक ।

शनि – सामान्य |

केतु महादशा

केतु अन्तर – उन्नति, लाभ |

शुक्र – सुखदायक।

सूर्य – शुभ ।

चन्द्र – हानि ।

मंगल – रोगकारक ।

राहु – चिन्ता, बाधा ।

गुरु – धनलाभ !

शनि – अनुकूल |

बुध – शुभ ।

शुक्र महादशा

शुक्र अन्तर – शुभ

सूर्य – उन्नति, राज्यलाभ |

चन्द्र – सफल ।

मंगल – विशेष लाभ ।

राहु – सुखदायक ।

गुरु – सफल ।

शनि – लाभदायक |

बुध – अनुकूल ।

केतु – शुभ |


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