मीन लग्न की कुंड्ली का फल

यह राशि चक्र की बारहवीं राशि है। जिसका स्वामी गुरु है। कालपुरुष शरीर में इसका निवास दोनों पैर या पजे है । इसका स्वरूप दो मछलियों में एक के मुख पर दूसरे की पूँछ लगकर गोल बनी है। इसका निवास स्थान नदी, समुद्र एवं जल स्थान है।

यह सम, स्त्री तत्व, उत्तर दिशा की स्वामिनी, सोम्य स्वभाव तथा द्विस्वभाव वृत्ति की है। यह उभयोदय होने के साथ-साथ संध्याबली मानी गई है। इसे जलचर संज्ञा दी गई है।

यह ब्राह्मण वर्ण की चतुर्थ भाव में बली एवं उजले वर्ग की है। शुक्र की यह उच्च राशि तथा बुध की नीच राशि है ।

मीन लग्न की कुंड्ली के फलित बिन्दु

सूर्य – कारक, षष्ठेश । मेरी राय में तटस्थ ग्रह, जो न शुभ है और न अशुभ ।

चन्द्र – कारक ग्रह, पंचमेश

मंगल – अकारक, धनेश-भाग्येश ।

बुध – चतुर्थेश-सप्तमेश, केन्द्राधिपत्य दोषयुक्त, तटस्थ ।

गुरु – कारक ग्रह, लग्नेश-राज्येश, लग्नेश होने से केन्द्राधिपत्य दोष नहीं ।

शुक्र – पराक्रमेश अष्टमेश, अकारक ।

शनि – लाभेश व्ययेश, अकारक ।

(1) शुक्र इस लग्न में यदि द्वादशस्य हो तो शुभ फलदायक नहीं माना जाना चाहिए, एक प्रकार से वह ऋणी करता है ।

(2) बारहवें भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति लखपति के घर जन्म लेकर भी सामान्य जीवन व्यतीत करने को बाध्य होता है ।

(3) द्वादशस्थ शनि विशेष योग कारक होता है तथा अपनी दशा में विशेष प्रतिष्ठा, सम्मान एवं धन प्रदान करता है ।

(4) यदि मंगल एकादश भाव में हो तो व्यक्ति निश्चय ही करोड़पती होता है, चाहे उसका कोई भी सहायक न हो। ऐसा मंगल आकस्मिक धन दिलाने में भी विशेष सहायक होता है ।

(5) पंचम भाव में मंगल हो तो उसका धन स्त्री एवं स्त्री के भाई के द्वारा नष्ट हो जाता है ।

(6) लग्न में शुक्र हो तो व्यक्ति निश्चय ही दीर्घायु होता है ।

(7) लग्नस्थ शुक्र व्यक्ति को विलासी एवं ऐय्याश तथा कामान्ध भी बना देता है । स्त्री की कुण्डली में ऐसा योग हो तो वह व्यभिचारिणी होती है ।

(8) अष्टमस्थ बुध होने पर जातक के पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही हो जाती है ।

(9) यदि लग्न में अकेला बुध हो तो व्यक्ति को उसके पिता का सुख नहीं मिलता तथा वह पिता से दूर ही रहता है ।

(10) बुद्ध सप्तम भाव में हो तो स्त्री-सुख बाल्यावस्था से ही प्राप्त हो जाता है ।

(11) दूसरे भाव में बुध हो तो वह व्यक्ति स्त्री से ही दुःख पाता है तथा उससे दबा हुआ रहता है।

(12) पंचमेश भाव में गुरुहो तो व्यक्ति को पुत्र का सुख नहीं मिलता । यदि होता भी है तो शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो जाती है । हाँ, कन्या सुख उसे अवश्य मिलता है ।

(13) यदि दूसरे भाव में चन्द्र तथा पाँचवें भाव में मंगल हो तो मंगल की दशा में श्रेष्ठ धनलाभ होता है ।

(14) शुक्र-सूर्य-मंगल तीनों ही लग्न में हों तथा गुरु अष्ट- मस्थ हो तो व्यक्ति गुरु की दशा में मंगल की मुक्ति में जेल जाता है ।

(15) गुरु छठे भाव में हो, शुक्र आठवें में शनि नवम में तथा चन्द्र-मंगल ग्यारहवें भाव में हों तो सर्वोत्कृष्ट धनदायक होता हैं ।

(16) चन्द्र-मंगल-बुध एकादश भाव में हों तो उसे जीवनभर वाहन सुख मिलता रहता है।

(17) नवम भाव में चन्द्र हो तो उसके पुत्र को जीवन भर सीने का दर्द, न्यूमोनिया, खाँसी आदि रोग बने रहते हैं ।

(18) चन्द्र-शनि लग्न में हों, मंगल ग्यारहवें भाव में हो, शुक्र छठे भाव में हो तो शुक्र की दशा में प्रबल भाग्योदय होता है एवं श्रेष्ठ धनलाभ होता है ।

(19) चन्द्र-मंगल-बुध-गुरु आदि ये चारों ही ग्रह चतुर्थ भाव में हों तो इन चारों की दशा उत्तरोत्तर उन्नति, धन एवं प्रतिष्ठा देने वाली होती है ।

(20) दशम भाव में गुरु हो तो गुरु की दशा से श्रेष्ठ भाग्योदय समझना चाहिए ।

(21) सूर्य दूसरे भाव में हो तो जातक के मामा यशस्वी, धनी एवं कुलश्रेष्ठ होते हैं ।

(22) लग्न में सूर्य-शनि हों तथा सप्तम भाव में बुध हो तो जातक का गृहस्थ जीवन कलहपूर्ण बना रहता है।

(23) चन्द्र तीसरे भाव में, सूर्य छठे भाव में, बुध सप्तमस्थ, शुक्र अष्टमस्थ, गुरु दशमभाव में, मंगल एकादश भाव में तथा शनि बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति का प्रबल भाग्योदय समझना चाहिए, ऐसा भावार्थं रत्नाकरकार का मत है ।

मेरी दृष्टि से अभी ऐसी एक की भी जन्मकुण्डली नहीं गुजरी, अतः इस पर टिप्पणी देना व्यर्थ है, फिर भी ऐसा योग श्रेष्ठतम होगा हीं, इसमें दो मत नहीं हो सकते ।

(24) अष्टमस्थ शुक्र दीर्घायु प्रदान करता है !

(25) मंगल जितना ही बली होगा, शुभ ग्रहों से दृष्ट होगा, व्यक्ति उतना ही अधिक धनी, यशस्वी एवं परोपकारी होगा ।

(26) दशम भाव में गुरु हो तो उसकी अन्त्येष्टि धूमधाम से होती है तथा मृत्यु के पश्चात् भी कई वर्षों तक लोग उसके कार्यो को स्मरण करते हैं ।

(27) शनि ग्यारहवें भाव में हो तो उसका बड़ा भाई कठोर एवं कर्कश वाणी का होता है ।

(28) शनि दूसरे भाव में हो तो उसके धन का अपव्यय बहनें तथा छोटे भाई करते हैं ।

(29) कुम्भ राशि में शनि हो, लग्न में गुरु हो तथा नवम भाव में मंगल हो तो जातक यशस्वी, धनी एवं कीर्तिवान् होता है !

मीन लग्न कुंड्ली दशाफल

सूर्य महादशा

सूर्य अन्तर – कष्ट, परेशानी ।

चन्द्र – लाभदायक |

मंगल – शुभ |

राहु – हानि, व्ययपूर्ण ।

गुरु – अनुकूल, उन्नति ।

शनि – शुभ ।

बुध – लाभदायक |

केतु – अनुकूल |

शुक्र – सामान्य |

चन्द्र महादशा

चन्द्र अन्तर – सुख-सुविधावर्धक ।

मंगल – शुभ, धनलाभ |

राहु – हानि, मनस्ताप |

गुरु – श्रेष्ठ ।

शनि – लाभदायक ।

बुध – अनुकूल ।

केतु – शुभ, सुखदायक

शुक्र – हानि, मरण ।

सूर्य – लाभदायक ।

मंगल महादशा

मंगल अन्तर – लाभदायक

केतु – व्ययाधिक्य ।

शुक्र – हानि, पतन ।

सूर्य – नुकसानदायक ।

चन्द्र – अनुकूल ।

मंगल – भाग्योदय ।

गुरु महादशा

गुरु अन्तर – शुभ |

शनि – अनुकूल ।

बुध – लाभदायक ।

केतु – शुभ |

शुक्र – सामान्य, कारक ।

सूर्य- हानिकारक, रोगवृद्धि ।

चन्द्र – शुभ ।

मंगल – अनुकूल ।

राहु – सामान्य ।

शनि महादशा

शनि अन्तर – अनुकूल ।

बुध – लाभदायक ।

केतु – शुभ |

शुक्र – व्यय, परेशानी ।

सूर्य – हानि ।

चन्द्र – अनुकूल |

मंगल – सामान्य ।

राहु – लाभदायक ।

गुरु – अनुकूल, धनवृद्धि ।

बुध महादशा

बुध अन्तर – सफलतासूचक ।

केतु – शुभ |

शुक्र – सामान्य ।

सूर्य – सामान्य ।

चन्द्र – लाभदायक |

मंगल – प्रबल भाग्योदय ।

राहु – हानिकारक ।

गुरु — सामान्य ।

शनि – धनवृद्धि ।

केतु महादशा

केतु अन्तर – अनुकूल ।

शुक्र – सामान्य ।

सूर्य – नुकसानदायक ।

चन्द्र – उचित, सफलतापूर्ण ।

मंगल – श्रेष्ठतम ।

राहू – मनस्ताप |

गुरु – शुभ ।

शनि – लाभदायक |

बुध – अनुकूल ।

शुक्र महादशा

शुक्र अन्तर – नुकसानदायक

सूर्य – रोगमुक्ति ।

चन्द्र – लाभदायक |

मंगल – धनलाभ ।

राहु – शुभ ।

गुरु – श्रेष्ठ ।

शनि – हानि, बाधापूर्ण ।

बुध – शुभ, व्ययाधिक्य ।

केतु – पूर्ण लाभ, भाग्योदय ।


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