मकर लग्न की कुंडली का फलादेश

राशि चक्र की यह दशम राशि है | कालपुरुष शरीर में इसका वास स्थान दोनों घुटने हैं। इसका स्वरूप मृग के सदृश मुख वाला है तथा इसका निवास नदियों में है ।

यह सम राशि, स्त्री तत्त्व प्रधान, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, सौम्य स्वभाव तथा चर संज्ञक है, जो कि पृष्ठोदयी होने के साथ- साथ रात्रिबली है । यह जलचर राशि है तथा इसका पूर्वा चतुष्पद एवं दशम बली है ।

शूद्र वर्ण, धातु संज्ञक, अपराह्न बधिर इस राशि का पीतश्वेत युक्त वर्ण है, जिसका स्वामी शनि है। मंगल इसमें उच्च तथा गुरु नीच राशिस्थ बनता है ।

मकर लग्न की कुंड्ली के फलित बिन्दु

सूर्य – कारक, अष्टमेश पर मेरी राय में तटस्थ, न शुभ, न अशुभ |

चन्द्र – कारक, सप्तमेश ।

मंगल – अकारक, चतुर्थेश – लाभेश ।

बुध – अकारक, षष्ठेश- भाग्येश ।

गुरु – पूर्ण अकारक, पराक्रमेश – व्ययेश ।

शुक्र – पूर्ण कारक, पंचमेश राज्येश ।

शनि – कारक, लग्नेश- धनेश ।

(1) यद्यपि बुध अकारक है। दूसरे ग्रहों की महादशा में इसकी अन्तर्दशा जाने पर वह शुभ फल प्रदान नहीं करता परन्तु फिर भी मकर लग्न के जातकों को बुध अपनी महादशा में पूर्ण लाभ, धन एवं सुख प्रदान करता है, ऐसा अनुभवगत रहा है ।

(2) लग्न में गुरु हो, सप्तम भाव में शुक्र हो तथा बुध अष्टम भाव में हो तो जातक दीर्घायु लेकिन दर-दर भटकने वाला तथा निर्धन होता है ।

(3) शुक्र केवल पंचम भाव में रहकर ही अनुकूल फल दे सकता है । दशम भावस्य शुक्र धनहानि करता है।

(4) शनि दशम में हो तो पत्नी दीर्घायु होती है पर वह स्वयं मृदुता का लबादा ओढे कठोर एवं कर्कश स्वभाव का होता है।

(5) गुरु जितना ही कमजोर पापाक्रांतः अस्त या कम अंशों में होगा, उतना ही श्रेष्ठ, सफल एवं धनदायक होगा।

(6) नवम भावस्य गुरु व्यक्ति को सात्विक बना देता है । व्यक्ति तीर्थ यात्राएं करता है तथा साधु-संयासियों में उसका चित्त लगता है ।

(7) मंगल लग्न में हो तो भूमि सम्बन्धी कार्यों से उसे विशेष लाभ रहती है, माँ दीर्घायु होती है तथा उसका स्वभाव क्रोधी होता है।

(8) पंचम भाव में चन्द्र हो, नवम भाव में गुरु तथा लग्न में बुध-शुक्र हो तो व्यक्ति उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी होता है। तथा यह योग प्रबल राजयोगों में से एक है।

(9) बुध-शुक्र तीसरे भाव में हों तो व्यक्ति साहसी होता है।

(10) यदि शुक्र-बुध तीसरे भाव में हों तथा चौथे भाव में राहु हो तो व्यक्ति राजनीति में दक्ष एवं चतुर होता है ।

(11) शुक्र अकेला नवम भाव में हो तो व्यक्ति का धन उस के कुपुत्र उड़ा देते हैं ।

(12) लग्न में गुरु हो तथा एकादश भाव में मंगल तथा शुक्र हों तो व्यक्ति बृहस्पति की दशा में भाइयों के द्वारा धन प्राप्त करता है या भाई का धन भोगता है ।

(13) बुध-गुरु साथ हों तथा उन पर राहु-शनि की दृष्टि हो तो उनके बड़े भाई की आयु कम होती है तथा वह स्वयं नौकरों से पीड़ित रहता है ।

(14) मकर लग्न में चन्द्र, सूर्य से जितना अधिक दूर होगा, उसका दाम्पत्य जीवन उतना ही अधिक मधुर एवं श्रेष्ठ रहेगा ।

(15) द्वादश भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति भोगी, व्यसनी, एवं परस्त्रीरमण से सुख प्राप्त करता है।

(16) लग्न में सूर्य-चन्द्र तथा बुध हों एवं बारहवें भाव में मंकल-शुक्र हों तो उसका भाग्योदय भाईयों के द्वारा ही तथा भाईयों को उससे पूर्ण सुख एवं सहायता मिले ।

(17) बुध-शनि भाग्य स्थान में हों तो जातक निम्न श्रेणी में अथवा निर्धन के घर में जन्म लेकर भी भाग्यवान, यशस्वी एवं घनी बनता है ।

(18) सूर्य अपनी स्वयं की दशा में मान-प्रतिष्ठा एवं धनादि देता है । दूसरे ग्रह की दशा में स्वयं की भुक्ति आने पर तटस्थ सा ही रहता है।

(19) बुधनवम भाव में या लग्न में हो तो व्यक्ति का भाग्योदय स्वयं की जाति से इतर-जातियों के सम्बन्ध से होता है तथा वह व्यक्ति स्वदेश की अपेक्षा विदेश में शीघ्रोन्नति करता है ।

(20) राहु-गुरु दोनों बारहवें भाव में बैठें तो यह विशेष शुभ योग समझा जाना चाहिए तथा राहु की दशा उनके जीवन की श्रष्ठतम भाग्योदय दशा होती है ।

(21) शुक्र लग्न में शुभफलदायक माना गया है तथा शुक्र की दशा में वह यशस्वी, धनी एवं पूज्य व्यक्ति बन जाता है ।

(22) लग्न मंगल एवं सप्तम भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति अतुल धनाधीश होता है ।

(23) चन्द्र-शुक्र सप्तम भाव में तथा मंगल-शनि लग्न में हों तो व्यक्ति का अपनी पत्नी से हमेशा विरोध बना रहता है।

मकर लग्न कुंड्ली दशाफल

सूर्य महादशा

सूर्य अन्तर – परेशानी, कष्ट ।

चन्द्र – व्ययाधिक्य ।

मंगल – सुखद, लाभदायक, धनलाभ ।

राहु – सामान्य ।

गुरु – बाधाएं, कष्टदायक ।

शनि – मांगलिक शुभ कार्य,, प्रसिद्धि

बुध – उन्नति, धनलाभ ।

केतु – अनुकूल ।

शुक्र – पूर्ण लाभ, भाग्योदय ।

चन्द्र महादशा

चन्द्र अन्तर – अनुकूल ।

मंगल – शुभ, सुखदायक ।

राहु – दुख, पतन |

गुरु – हानिकरक, शारीरिक क्षति ।

शनि – शुभ फलदायक ।

बुध – भाग्यवर्धक |

केतु – शुभ ।

शुक्र – लाभदायक, व्यापारवृद्धि ।

सूर्य – धनदायक |

मंगल महादशा

मंगल अन्तर – अनुकूल, शुभ ।

राहु – शुभ |

गुरु – सामान्य ।

शनि – लाभदायक ।

बुध – श्रेष्ठ, भाग्यवर्धक ।

केतु – हानि ।

शुक्र – लाभ, भाग्योदय ।

सूर्य – राज्योन्नति !

चन्द्र – अनुकूल ।

राहू महादशा

राहु – लाभदायक ।

गुरु – हानि ।

शनि – शुभफल |

बुध – शुभ ।

केतु – मानसिक चिन्ताएं ।

शुक्र – शुभ, भाग्योन्नति ।

सूर्य – उन्नति ।

चन्द्र – मनस्ताप ।

मंगल – शुभ

गुरु महादशा

गुरु अन्तर – पूवार्द्ध शुभ ।

शनि – लादायक |

बुध – सामान्यतः अनुकूल ।

केतु – सुखवर्धक ।

शुक्र – भाग्योदयकारक ।

सूर्य – शुभ ।

चन्द्र – लाभवर्धक, व्यापार वृद्धि ।

मंगल – भूमिलाभ |

राहु – हानि, दु:ख, यातना ।

शनि महादशा

शनि अन्तर – लाभदायक, आरोग्य ।

बुध – व्यापारवृद्धि ।

केतु – शुभ ।

शुक्र – श्रेष्ठतम ।

सूर्य – अनुकूल, पूर्वार्द्ध सामान्य ।

चन्द्र – सामान्य ।

मंगल – लाभदायक ।

राहु – अनुकूल ।

गुरु – श्रेष्ठ, व्ययप्रधान ।

बुध महादशा

बुध अन्तर – पूर्वार्द्ध हानिप्रद उत्तरार्द्ध शुभ ।

केतु – अनुकूल ।

शुक्र – सुखदायक, श्रेष्ठ ।

सूर्य – उन्नति, राज्यवृद्धि ।

चन्द्र – श्रेष्ठ ।

मंगल – लाभ |

राहु – दु:ख, यातना ।

गुरु – हानिकारक ।

शनि – दुःखप्रद ।

केतु महादशा

केतु अन्तर – उन्नति, प्रोमोशन ।

शुक्र – लाभदायक ।

सूर्य – उन्नति, लाभ |

चन्द्र – श्रेष्ठ ।

मंगल – भूमिसुख ।

राहु – चिन्ता, दुःख ।

गुरु – सुखवर्धक ।

शनि – अनुकूल |

बुध – शुभ ।

शुक्र महादशा

शुक्र अन्तर – श्रेष्ठतम ।

सूर्य – भाग्योदय, राज्योन्नति ।

चन्द्र – शारीरिक दुख ।

मंगल – शुभ, व्यापारवृद्धिः ।

राहु –  शुभ |

गुरु – लाभदायक |

शनि – मारक, बीमारी ।

बुध – लाभदायक |

केतु – सुख-सौभाग्यपूर्ण ।

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