ग्रह की विशेषताएं
सूर्य – सूर्य पिता, साहस, कार्य शक्ति, ऊर्जा, व्यक्तित्व, अधिकार, सात्विक प्रकृति का कारक है। सूर्य से प्रभावित जातक का चेहरा विशाल और गोल, आंखों का रंग शहद जैसा होता है जातक महत्वाकांक्षी, साहसी, उदार होता है।
चंद्र – चंद्र माता, मस्तिष्क और तरल पदार्थों का कारक है, सौम्यता, सात्विक प्रकृति, प्रेम, कल्पना और विचारों का संकेतक है।
परिवर्तनशीलता, अधिक यात्रा, पारिवारिक जीवन, व्यक्तिगत और गुप्त संबंध, महिलाओं के वक्ष, मासिक धर्म, सौन्दर्य, आंखें, जलीय स्थान जैसे झील, नदियां, समुद्र, नौकायन आदि का परिचायक है।
मनोरंजन, संगीत, कला आदि चंद्र को प्रिय हैं। चंद्र का रत्न मोती, धातु चांदी, रंग श्वेत हैं। कफ और वात का कारक है।
मंगल – छोटे भाई और बहन, ऊर्जा, साहस, वीर, महत्वाकांक्षी, आवेगशील, उत्साह, सहनशीलता, उदार, जोखिमपूर्ण कार्य, स्वतंत्र कार्य, जायदाद, अग्नि या भट्टीयुक्त कारखाने, दुर्घटना, शल्य चिकित्सा, आग, झगड़े और चोरी का संकेतक है।
बुध – बुद्धिमत्ता, मानसिक योग्यता, सामंजस्य, उत्तम स्मरण शक्ति, मस्तिष्क सक्रिय होता है पर एकाग्रता कुछ कम । जातक के मस्तिष्क में बहुत से विषयों की तरफ ध्यान रहता है। दूसरों द्वारा शीघ्र प्रभावित हो जाता है। खगोल शास्त्र ज्योतिष और विज्ञान में अधिक रूचि रहती है। कला और उत्पादन में प्रवीण, आज्ञाकारी, शिष्ट और उत्साही होता है।
बुध की स्थिति सकारात्मक हो और बृहस्पति के साथ युति हो तो जातक उच्चाधिकारी और उच्चकोटि का विचारक होता है। बिना शिक्षक के ज्ञान प्राप्ति में सक्षम, पर्यटक, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, वकील, परिधान निर्माता, मुद्रक, प्रकाशक, वक्ता, राजदूत, लिपिक, संदेशवाहक, विद्यालय के पुस्तकालय, सदन। बुध के निर्बल या दूषित होने पर जातक भुलक्कड़, कटुवचन वाला, अप्रिय होता है और दूसरों का मजाक उड़ाता है।
बृहस्पति – आशापूर्ण, प्रसन्नचित्त व्यक्तित्व । जातक अधिक मित्रों वाला और लोकप्रिय होता है। समाज में प्रतिष्ठा और जीवन में सफलता मिलती है। धार्मिक कार्यों में रूचि । बृहस्पति विवेक का सूचक है जबकि बुध बुद्धि का बोध कराता है। अगर इन दोनों की युति हो या ये केंद्र में स्थित हों तो जातक सुशिक्षित, बुद्धिमान, तीव्र दृष्टि वाला, कुशल वक्ता, उच्च चरित्रवान, आध्यात्मिक, दयालु, क्षमाशील तथा मानव मात्र से प्रेम करने वाला होता है। धार्मिक और ईश्वर श्रद्धावान होता है। परंपराओं का निर्वाह करते हैं।
वृहस्पति न्यायाधीश, वकील, प्राध्यापक, धर्मगुरु, मंत्री, प्रशासक, बैंक अधिकारी, कर विभाग आदि का संकेतक है। महलों में काम करने वाले उद्यान, अदालत आदि का भी प्रतिनिधि है। शहद, तेल, रेशम, वस्त्र, घोड़े और पालतू पक्षियों का संकेतक है।

नमस्कार । मेरा नाम अजय शर्मा है। मैं इस ब्लाग का लेखक और ज्योतिष विशेषज्ञ हूँ । अगर आप अपनी जन्मपत्री मुझे दिखाना चाहते हैं या कोई परामर्श चाहते है तो मुझे मेरे मोबाईल नम्बर (+91) 7234 92 3855 पर सम्पर्क कर सकते हैं। धन्यवाद ।
बृहस्पति के दूषित होने पर यह आतंकवादियों, फिजूलखर्च, गैरजिम्मेदारी, मतभेद, जुआ, ठाटबाट, गलत आकलन, दुर्भाग्य, निर्धनता, मुकदमे और अलोकप्रियता का कारक बन जाता है।
शुक्र – शुक्र अनुकूल होने पर व्यक्तित्व और मस्तिष्क उत्तम होते हैं। शुक्र राजसिक ग्रह है। वह सभी सांसारिक कार्यों का नियंत्रक है। वह पत्नी, प्रणय, काम-वासना, मनोरंजन का प्रतिनिधि है। कलाकृतियां, सुगंधित पदार्थ, घोड़े, गाड़ी, वाहन, चरित्र का संकेतक है। वस्त्र, फर्नीचर और साजसज्जा में सुरूचि, आराम की वस्तुओं का कर्ता है। नृत्य, संगीत, रेशमी वस्त्र, आभूषण, कशीदाकारी, चुंबन, शय्या सुख और प्रीतिभोज आदि का प्रतिनिधि है।
शुक्र के पीड़ित होने पर जातक अतिकामी चरित्रहीन होता है। निम्नकोटि की स्त्रियां और पेय, अभद्र साथी, जुआ और निम्न कार्य उसके जीवन के अंग होते हैं।
शनि – शनि से प्रभावित होने पर जातक लंबे कद का पतला, आलसी, सांवले रंग का सारे शरीर पर रूखे बाल, कुरूप दांत वाला होता है। शनि के कारण जातक कम उम्र में बूढा दिखाई देता है, बाल सफेद हो जाते हैं। जातक कल्पनाशील, सावधान, शांत, एकांतप्रिय, धैर्यवान, परिश्रमी, अध्ययनकर्ता, वफादार होता है। दूषित होने पर जातक ईर्ष्यालु, असत्यवादी, आलसी, झूठा, बेईमान, असंतुष्ट होता है।
शनि जंगलों में काम करने वाले, निर्जन स्थान, पुराने गिर्जे, मंदिर, जीर्ण-शीर्ण भवन, नालियां, मल-जल आदि का प्रतिनिधि है। दीर्घ जीवन, वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, देशभक्त, दार्शनिक, धार्मिक नेता, समाज सुधारक, लेखक आदि का कारक है।
राहु : लगभग सभी ज्योतिर्विदों ने राहु व केतु का वर्णन साथ-साथ किया है। केवल नारायण भट्ट और कालिदास ने उन्हें पृथक रखा है क्योंकि उनकी कार्यविधि स्वतंत्र होती है। उनके परिणाम स्थान, राशि के स्वामियों, युति करने वाले या दृष्टा ग्रहों के अनुसार होते हैं।
केतु : राहु के गुणों के समान ही केतु की कार्य प्रणाली होती है। दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। वे एक धुरी का निर्माण करते हैं जिसके चारों ओर संपूर्ण जीवन घूमता है। उनके बीच में 180° की दूरी
होती है। अधिकांशतः ये वक्री होते हैं, कभी भी अस्त नहीं होते।
केतु की पाप ग्रह से युति होने पर पाप ग्रह अधिक अशुभ हो जाता है शुभ ग्रह से युति होने पर बाधाएं उत्पन्न हो जाती है और शुभ फलों का नाश हो जाता है।
प्रश्न ज्योतिष
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