क्या मेरा सामान बिना बाधा के पहुंच जाएगा ?
1. चंद्र चर राशि में केंद्र में स्थित हो तो सामान सुरक्षित पहुंच जाता है।
2. निर्बल अशुभ ग्रह 3, 6, 9, 12 भावों में स्थित हों और शुभ ग्रह बली हों तो सामान सुरक्षित पहुंचता है।
3. अशुभ ग्रह केंद्र में स्थित हों और शुभ ग्रह निर्बल हों, बृहस्पति नीचस्थ, अस्त या शत्रुक्षेत्री हो तो सामान सुरक्षित नहीं पहुंचता और परेशानियां आती हैं।
4. मंगल अष्टम में हो और सूर्य की दृष्टि हो तो बाधाएँ आती हैं।
5. चंद्र का शनि से इत्थसाल हो तो बाधाएं आती हैं।
6. केंद्र में अशुभ ग्रह स्थित हों या केंद्र की राशियों के स्वामी अशुभ ग्रहों से युत / दृष्ट हों तो बाधाएं आती हैं।
व्यय / खर्च के प्रकार
1. द्वादश भाव में शुभ ग्रह स्थित हों तो धन शुभ कार्यों पर खर्च होता है।
2. द्वादश भाव में अशुभ ग्रह मौजूद हों तो खर्च अशुभ कार्यों पर होता है।
विभिन्न ग्रहों द्वारा खर्च के प्रकार का ज्ञान होता है।
- सूर्य – सरकार
- चंद्र – मनोरंजन, खेल
- मंगल – अनुचित कार्य
- बुध – व्यापार शेयरों की खरीद
- बृहस्पति – शुभ कार्य शिशु जन्म संतान का विवाह, दान
- शुक्र पति / पत्नी पर व्यय मौज मस्ती
- शनि / राहु अशुभ कार्य, बीमारी
3. द्वितीयेश मंगल का संबंध लग्नेश से हो तो व्यय अनुचित कार्यों पर होता है, परंतु अगर मंगल द्वितीय भाव में बली हो तो व्यय आभूषण, पुस्तक, संतान आदि पर होता है।
द्वितीयेश बली हो तो :
- सूर्य – ब्राह्मण पूजा, गुरु
- चंद्र – मनोरंजन / जुआ
- मंगल – आभूषण, पुस्तक, संतान या अनुचित कार्य
- बुध – व्यापार और खरीदारी
- बृहस्पति – शुभ कार्य
- शुक्र – मनोरंजन
- शनि – घर से दूर हो तो मनोरंजन आदि पर अन्यथा निर्धन लोगों पर
4. द्वितीयेश मंगल निर्बल हो तो स्त्रियों पर व्यय । यही फल अन्य ग्रहों का होगा ।
5. द्वितीयेश होकर
- बृहस्पति 6, 9, 11 भाव में स्थित हो तो सामाजिक कार्य, बड़ों को सम्मान, ब्राह्मण आदि पर व्यय होता है।
- शुक्र 6, 9, 11 में हो तो मनोरंजन पर व्यय होता है।
- बुध 6,9,11 में हो तो व्यापार पर खर्च होता है।
- चंद्र से इत्थसाल हो तो शुभ कार्यों पर या कम अशुभ कार्यों पर व्यय होता है।
वर्तमान और भविष्य में भाग्य कैसा रहेगा ?
भविष्य जानने के लिए कुंडली और नवमांश में लग्न और चंद्र के बल का आकलन करें। कुंडली और नवमांश में लग्न, लग्नेश और चंद्र बली हों तो भविष्य उज्ज्वल होता है, निर्बल होने पर उत्तम भविष्य का कथन नहीं करना चाहिए अशुभ ग्रहों की युति या दृष्टि उत्तम भविष्य का नाश कर देती है। लग्न और लग्नेश ही भाग्य कथनार्थ पर्याप्त नहीं हैं।
साथ में एकादश-एकादशेश, द्वितीय-द्वितीयेश नवम-नवमेश का भी विचार करें। लग्न लग्नेश से संबंध भी भविष्य का ज्ञान कराते हैं।
याद रखें कि वह ग्रह जिसके साथ लग्नेश इशराफ योग में हो, जातक के भूतकाल का ज्ञान कराता है। वह ग्रह जिसके साथ लग्नेश युति में है, जातक के वर्तमान का बोध कराता है। लग्नेश जिस ग्रह से इत्थसाल में हो, वह भविष्य की जानकारी देता है।
लग्नलेश लग्न में स्थित होकर शुभ ग्रहों से युत/ दृष्ट हो तो जातक का बुरा समय समाप्त समझें। आगे सब कुछ शुभ और सौभाग्यपूर्ण होगा। शुभ ग्रह प्रसन्नता और अशुभ ग्रह दुःखों के सूचक हैं। बृहस्पति और चंद्र का सप्तमेश से इशराफ हो तो वर्तमान और भविष्य उज्ज्वल रहेगा।
क्या पत्र या सामान गंतव्य स्थान पर पहुंचेगा ? उत्तर आएगा या नहीं ?
1. चंद्र, बुध और शुक्र 1, 2, 3, 10, 11 भावों में स्थित हों।
2. शुभ ग्रह 4 और 10 भावों में स्थित हों।
3. चंद्र 1, 2, 5 या 9 में स्थित हो।
4. चंद्रमा चतुर्थ भाव में स्थित हो ।
5. अशुभ ग्रह 2 या 3 भाव में स्थित हों तो जवाब कुछ देरी के बाद आता है ।
6. अशुभ ग्रह 5 और 6 भाव में स्थित हों तो जवाब कुछ देरी के बाद या तकाज़ा करने पर आता है।
7. अशुभ ग्रह 7 और 8 भाव में बैठे हों तो जवाब रास्ते में गुम हो गया है।
8. अशुभ ग्रह 5 या 6 भाव में जल राशि में स्थित हों तो उत्तर मिलने में देरी होती है।
9 अशुभ ग्रह 2 या 3 भाव में स्थित हों तो उत्तर मार्ग में होता है।
10. लग्नेश और चंद्र का सप्तमेश से इत्थसाल हो तो जवाब मार्ग में है ।
11. लग्नेश और चंद्र चर राशि में हों तो जवाब शीघ्र आएगा।
12. उत्तर नहीं आएगा अगर लग्नेश और चंद्र स्थिर राशि में हों।
13. चंद्र और बुध बली होकर इत्थसाल में हों तो जवाब सकारात्मक होगा, अन्यथा नहीं ।
मैं कितने वर्ष जिऊंगा ?
मारक ग्रहों को देखें। मारक ग्रह निम्न हैं:
1. द्वितीयेश और सप्तमेश ।

नमस्कार । मेरा नाम अजय शर्मा है। मैं इस ब्लाग का लेखक और ज्योतिष विशेषज्ञ हूँ । अगर आप अपनी जन्मपत्री मुझे दिखाना चाहते हैं या कोई परामर्श चाहते है तो मुझे मेरे मोबाईल नम्बर (+91) 7234 92 3855 पर सम्पर्क कर सकते हैं। धन्यवाद ।
2. द्वितीय और सप्तम भाव में स्थित ग्रह ।
3. द्वितीयेश और सप्तमेश से युत / दृष्ट ग्रह ।
4. जब सूर्य, शुक्र, द्वितीयेश या सप्तमेश केंद्र के विशेषकर सप्तम के स्वामी हों तो अवश्यमेव मारक होते हैं।
5. शनि की युति द्वितीयेश या सप्तमेश से हो तो वह अवश्य ही मारक होता है और प्रमुख भूमिका निभाता है।
6. बाधक ग्रहों का विचार करें। लग्न में चर राशि हो तो एकादशेश बाधक होता है। लग्न में स्थिर राशि हो तो नवमेश बाधक होता है। लग्न में द्विस्वभाव राशि हो तो सप्तमेश बाधक होता है।
- लग्न, लग्नेश, सूर्य, चंद्र पर 6, 8, 12 के स्वामियों की अशुभ दृष्टि (युति, 90°, सप्तम आदि) हो तो आयु अल्प होती है।
- लग्नेश वक्री हो या अष्टम में स्थित हो या अशुभ ग्रह लग्न या अष्टम में स्थित हों तो अल्पायु होती है।
- लग्नेश बाधक / मारक ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो या उसका 4,6,8,12 भावों के या उनके स्वामियों से संबंध हो तो आयु अल्प होती है।
- लग्नेश अगर षष्टेश के नक्षत्र में स्थित हो या छठे भाव या षष्टेश से संबंध हो तो जातक बीमारी से ग्रस्त रहता है।
- लग्नेश अष्टमेश के नक्षत्र में या अष्टम भाव में स्थित हो या अष्टमेश / अष्टम से संबंध हो तो जातक दुर्घटना का शिकार होता है।
- लग्नेश द्वादशेश के नक्षत्र में स्थित हो या उसका द्वादश भाव या द्वादशेश से संबंध हो तो जातक लंबे समय तक अस्पताल में रहता है।
मृत्यु का संकेत तभी होता है जब लग्नेश का संबंध बाधक या मारक ग्रह से होता है। मेरा अनुभव है कि कभी-कभी योगकारक ग्रह भी मृत्युदाता सिद्ध होता है।
उदाहरण के लिए कुंभ लग्न के लिए शुक्र योगकारक है। कुंभ स्थिर राशि है जिससे नवमेश बाधक ग्रह है अतः शुक्र बाधक है। अगर शुक्र केंद्र में, उदाहरण के लिए सप्तम भाव में स्थित है तो वह मारक स्थान होने के कारण, शुक्र अपनी दशा-अंतर्दशा में (अगर लग्नेश का संबंध शुक्र से हो तो) मृत्यु दे सकता है।
जातक कितने वर्ष जिएगा ?

2, 7 के स्वामी मारक ग्रह हैं, जबकि नवमेश बाधक है। द्वितीयेश बृहस्पति वक्री है और केंद्र में चतुर्थ स्थान में केतु के साथ स्थित होकर लग्नेश मंगल और बाधक चंद्र को देख रहा है। लग्नेश मंगल का वक्री बृहस्पति से इत्थसाल है। चंद्र का लग्नेश से इत्थसाल है।
कारक बृहस्पति से एक मास का संकेत मिलता है। अतः मृत्यु लगभग 1 मास में संभव है। कारक और लग्नेश में अंशों का अंतर लगभग 15° है। अतः मृत्यु का संकेत 15 दिन में है। बृहस्पति द्विस्वभाव नवमांश में स्थित है, अतः अवधि को 3 गुना करें। मृत्यु 20 दिसंबर 1998 को हुई।
क्या मकान बनेगा ?
चतुर्थ भाव स्वयं की जमीन जायदाद, भवन आदि का संकेतक है। एकादश भाव आकांक्षाओं की पूर्ति, लाभ दर्शाता है जबकि द्वादश भाव निवेश और व्यय का परिचायक है। अतः गृह के निर्माण के लिए 4,11,12 भावों का विचार करें।
लग्न और लग्नेश का संबंध उपरोक्त भावों और उनके स्वामियों से हो तो जातक मकान बनाएगा। जातक अगर निर्मित भवन खरीदना चाहता है तो 6 और 9 भावों का भी अध्ययन करें। छठा भाव विक्रेता के सप्तम भाव की हानि है। नवम भाव दशम भाव (सप्तम की जायदाद) की हानि है। भूखंड के क्रय के लिए निर्मित भवन वाले नियमों का प्रयोग किया जाता है।
भवन के क्रय के लिए देखें कि क्या चतुर्थेश, चतुर्थ भाव में स्थित ग्रह, चतुर्थेश का नक्षत्रेश, चतुर्थेश की राशि के स्वामी और नवमांश में चतुर्थेश की राशि के स्वामी का संबंध लग्नेश, द्वादशेश, एकादशेश और उनके भावों से है।
क्या जायदाद बिकेगी ?
जायदाद का संकेत लग्न से चतुर्थ भाव से होता है। तृतीय भाव चतुर्थ भाव से द्वादश है। खरीदार का भाव सप्तम है। लग्न से दशम भाव सप्तम से चतुर्थ है अर्थात सप्तम की जायदाद पंचम भाव सप्तम का एकादश है। अतः जायदाद की बिक्री का संकेत लग्न से 3, 5, 10 भावों से प्राप्त होता है। अतः सप्तम द्वारा जायदाद खरीदने में सफलता का संकेत दशम, दशमेश, दशम में स्थित ग्रह, दशमेश का नक्षत्र और दशमेश की नवमांश में राशि के स्वामी, दशमेश से युति करने वाले या उस पर दृष्टिपात करने वाले ग्रहों से प्राप्त होता है।
संक्षेप में, दशम भाव से संबंधित ग्रहों से जायदाद बिकने का पता चलता है। दशमेश का संबंध वक्री या अस्त ग्रहों से हो तो जायदाद की खरीद नहीं हो पाती है। दशमेश का संबंध 10, 3, 5 भावों से हो तो क्रेता जायदाद खरीदने में सफल होता है और जातक जायदाद बेचने में सफल होता है।
जब भी शनि और चंद्र एक राशि में होते है तो इसका अर्थ है अगले प्रयास में काम बन जाएगा। कारक मंगल का भी विचार करें।

लग्न द्विस्वभाव राशि का होकर स्थिर राशि के अनुसार कार्यरत है। शीर्षोदय राशि है। दशमेश स्वराशि में राहु के नक्षत्र में और शनि के नवमांश में है। चंद्रमा अष्टम भाव में शनि और बृहस्पति से युत और 3, 8 के स्वामी मंगल से दृष्ट है। आगामी प्रयासों में जायदाद बिक जाएगी ।
क्या मैं प्रतियोगिता परीक्षा में बैठ सकूंगा ?
इस प्रकार के प्रश्नों के लिए निम्न का विचार करें
- परीक्षा में उपस्थित होने का साहस, अर्थात संघर्षशक्ति
- क्या जातक परीक्षा में उपस्थित हो सकेगा ?
- क्या सफलता मिलेगी ?
1. परीक्षा में बैठने के साहस के लिए तृतीय भाव का विचार किया जाता है। तृतीय भाव पर चंद्र का प्रभाव हो तो जातक साहसिक निर्णय लेने में असमर्थ रहता है। शनि का प्रभाव हो तो जातक अति सावधान होने से आत्मविश्वास रहित होता है। बुध होने पर जातक दुविधा में रहता है। सूर्य, मंगल, बृहस्पति या शुक्र का प्रभाव होने पर जातक में प्रतियोगिता के लिए भरपूर साहस होता है।
2. जातक परीक्षा में बैठ सकेगा या नहीं, इसका विचार लग्न से करें। कभी-कभी व्यक्ति में परीक्षा के लिए साहस होता है, पर वह बीमारी आदि के कारण परीक्षा केंद्र में पहुंच नहीं पाता है। इसका विचार 6, 8, 12 भावों से होता है। यदि लग्न और लग्नेश दूषित हों तो जातक प्रतियोगिता परीक्षा में उपस्थित होने में सफल नहीं होता है।
3. क्या प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता मिलेगी ? इसके लिए 4, 9, 11 भावों और उनके स्वामियों का विचार करें। चौथा भाव तृतीय भाव से द्वितीय है, नवम भाव तृतीय से सप्तम है और एकादश भाव तृतीय से नवम और लग्न से लाभ है। तृतीयेश का संबंध 4, 9, 11 भावों से हो तो प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता प्राप्त होती है।

लग्न में शीर्षोदय, द्विस्वभाव राशि परिवर्तन की सूचक है। नीचस्थ शनि (सूर्य के उच्चस्थ और चंद्र से केंद्र में होने के कारण नीच भंग) की लग्न पर दृष्टि है। शनि अस्त भी है, अतः नकारात्मक प्रभाव है लग्नेश दशम भाव में दशमेश के साथ स्थित होकर इत्थसाल में है ।
चंद्र पंचम भाव में त्रिकोण में एकादशेश मंगल (वक्री) के साथ स्थित है। इससे नकारात्मक प्रभाव है। उस पर नीच भंग वाले अस्त शनि और उच्चस्थ सूर्य की दृष्टि है। यह भी नकारात्मक है। तृतीय भाव में कोई ग्रह नहीं है, न ही किसी की दृष्टि है। तृतीयेश सूर्य नवमांश में स्वराशि में है। सूर्य एकादश भाव में उच्च का है और शुक्र, बृहस्पति और बुध के मध्य स्थित है। इसकी 8, 9 के स्वामी शनि सेति है। छठे भाव पर शुक्र और बृहस्पति की दृष्टि है। षष्टेश मंगल चंद्र से युति में होकर त्रिकोण पंचम भाव में स्थित है और शनि और सूर्य से दृष्ट है। मंगल की नवमांश में लग्न पर दृष्टि है। दशम भाव में भाव स्वामी बृहस्पति बुध के साथ स्थित है। एकादश भाव पर भावेश की दृष्टि है। उसमें नवमेश शनि और तृतीयेश सूर्य (उच्च) स्थित हैं।
नवमेश का एकादश में नीचभंग राजयोग है। लग्नेश बुध की दशमेश बृहस्पति से दशम भाव में युति और इत्थसाल है। 3, 6 भाव और उनके स्वामी सकारात्मक हैं, अतः जातक प्रतियोगिता परीक्षा में उपस्थित होगा ।
जातक दिल्ली विश्वविद्यालय की बी. सी. ए. प्रवेश परीक्षा में 30 मई 1999 को बैठा। क्योंकि लग्नेश का द्वादशेश शुक्र से द्वादश भाव में इत्थसाल है, लग्न, चंद्र और सूर्य का संबंध अस्त शनि से है, अतः जातक परीक्षा में सफल नहीं हो सका।
क्या महाविद्यालय में प्रवेश मिलेगा ?
शिक्षा का संकेत चतुर्थ भाव से होता है। चूंकि जातक अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति चाहता है अर्थात विद्यालय में प्रवेश चाहता है, अतः एकादश भाव का विचार करें। चतुर्थ, चतुर्थेश, एकादश, एकादशेश में संबंध हो तो विद्यालय में प्रवेश मिल जाता है। कारक बुध और बृहस्पति हैं।

लग्न द्विस्वभाव राशि में है और दशमेश बुध से दृष्ट है। लग्नेश बृहस्पति पंचम भाव में स्थित होकर एकादश भाव पर दृष्टि डाल रहा है और पंचमेश मंगल से दृष्ट है। बृहस्पति की 2,3 के स्वामी शनि और अष्टमेश चंद्र से युति है। एकादश भाव में द्वादशेश मंगल स्थित है जिस पर शनि की दृष्टि है। एकादशेश शुक्र अष्टम भाव में स्थित है।
चतुर्थेश बृहस्पति की एकादशेश शुक्र पर 90° की दृष्टि है और इशराफ योग है। प्रवेश नहीं मिला। जातक विद्यालय में नहीं जा सका।
आज का दिन कैसे गुज़रेगा ?
1. लग्नेश लग्न में, स्वराशि में, उच्चस्थ, मित्रक्षेत्री, शुभकर्तरी, शुभ भावों में स्थित हो और चंद्र भी बली हो (शुक्ल पक्ष का शुभ प्रभावों में हो) तो दिन अच्छा रहेगा और जातक को सुख प्रदान करेगा।
2. लग्न में अशुभ ग्रह बली हों या अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो दिन अच्छा नहीं जाएगा, चिंता-तनाव हावी रहेंगे।
3. चंद्र लग्नेश या अशुभ ग्रह अष्टम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रह की दृष्टि हो तो दिन अच्छा नहीं रहेगा।

लग्न पर शुक्र की दृष्टि है, लग्नेश उपचय भाव 6 में बुध और केतु के साथ स्थित है और राहु से दृष्ट है, चंद्रमा नवम भाव में मित्र राशि में शनि के साथ स्थित है। परंतु दोनों के अंशों में बहुत अंतर है अतः युति प्रभावहीन है। इसी प्रकार सूर्य, बुध और केतु के अंशों में बहुत अंतर है। अष्टम भाव अपने स्वामी की उपस्थिति से बली है। लग्न शुक्र के नवमांश में है और शुक्र से दृष्ट है, अतः बली है। जातक ने दिन व्यस्तता से बिताया और समय पर भोजन भी नहीं कर सका।
क्योंकि चंद्र अशुभ शनि से दूर हो रहा है और अपने उच्च के स्थान की ओर बढ़ रहा है, इससे संकेत मिलता है कि आज का दिन बहुत व्यस्त और संघर्षपूर्ण रहेगा मगर भविष्य उज्ज्वल और सुखी है।
प्रश्न ज्योतिष
- प्रश्न ज्योतिष क्या है ?
- राशियों का वर्गीकरण
- ग्रह की विशेषताएं
- ताजिक दृष्टियां और योग
- भावों के कारकत्व
- प्रश्न की प्रकृति
- लग्न और भावों के बल
- घटनाओं का समय निर्धारण
- प्रश्न कुंडली से रोगी और रोग का ज्ञान
- प्रश्न कुंडली से यात्रा और यात्री का विचार
- प्रश्न कुंडली से चोरी और गायब सामान की वापसी
- प्रश्न कुंडली से विवाह का विचार
- प्रश्न कुंडली से संतान का विचार
- प्रश्न कुंडली से न्यायाधीन विवाद का विचार
- प्रश्न कुंडली से लाभ-हानि का विचार
- प्रश्न कुंडली से राजनीति का विचार
- प्रश्न कुंडली से जेल यात्रा का विचार
- विविध प्रश्न
0 Comments