कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश

कन्यालग्न में शुक्र द्वितीयेश एवं भाग्येश है। शुक्र यहां त्रिकोण का स्वामी होने से मारकेश के दोष से मुक्त हो गया है। अतः योगकारक होकर शुभ फलप्रदाता है।

कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश प्रथम स्थान में

यहां प्रथम स्थान में शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में होगा। जहां यह 27 अंशों में परम नीच का होता है। शुक्र की इस स्थिति में ‘कुलदीपक योग’ बनता है। यदि अन्य ग्रह बाधक न हो तो जातक का विवाह शीघ्र होता है। ऐसे जातक संगीत कला, सौन्दर्य, नाटक, सेंट, इत्र-फुलेल लगाने के शौकीन होते हैं। विपरीत सेक्स वाले ऐसे जातक के प्रशंसक होते हैं। जातक को धन विद्या भवन, वाहन गृहस्थ सुख पूरा मिला।

दृष्टि – लग्नस्थ शुक्र की सप्तम भाव पर दृष्टि होने से जातक को पत्नी सुन्दर होगी। जातक स्त्री के वशीभूत रहेगा। जातक अति कामी होगा।

निशानी – ऐसा व्यक्ति जीवन में अनेक स्त्रियों का सुख भोगता है। जातक के जीवन का सही विकास विवाह के बाद होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक की उन्नति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – व्ययेश सूर्य लग्न में शत्रु ग्रह के साथ होने से जातक परस्पर विरोधाभासी निर्णय लेगा।

2. शुक्र + चंद्र – लाभेश एवं भाग्येश की लग्न स्थान में युति जातक कां भाग्यशाली बनायेगी।

3. शुक्र + बुध – बुध उच्च का एवं शुक्र नीच का होने से यहां ‘नीचभंग राजयोग’ बना। जातक महाधनी तथा राजनैतिक हस्ती होगी।

4. शुक्र + मंगल – आष्टमेश मंगल लग्न में होने से परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। जातक का स्वभाव लड़ाकू होगा।

5. शुक्र + गुरु – सप्तमेश गुरु लग्न में बैठकर पंचम, सप्तम एवं भाग्य स्थान को देखेगा। फलत: जातक भाग्यशाली होगा। जातक की पत्नी परम सुन्दर एवं संतति भी सुंदर होगी।

6. शुक्र + शनि – लग्न में शनि उच्चाभिलाषी होने से जातक महत्वाकांक्षी होगा। जातक विद्यावान होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु होने से जातक विलासी प्रवृत्ति का स्वामी होगा ।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु होने से जातक के मन में भटकाव ज्यादा होगा।

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश द्वितीय स्थान में

यहां द्वितीय स्थान में शुक्र स्वगृही होगा। धनेश का स्वगृही होना बहुत बड़ी बात है। ऐसा जातक धनवान होगा। जातक की खुद की गाड़ी होगी। जातक अच्छा भोजन करेगा। जातक अच्छी वाणी बोलेगा। जातक विनम्र होगा। जातक की आर्थिक सम्पन्नता प्रथम संतति के बाद विशेष रूप से मुखरित होगी। जातक को पूर्ण गृहस्थ सुख मिलेगा।

दृष्टि – शुक्र की दृष्टि अष्टम स्थान (मेष राशि) पर होगी फलत: जातक की उम्र लम्बी होगी।

निशानी – ऐसे जातक को देवी की उपासना ज्यादा फलवती होगी एवं स्त्री-मित्रों से लाभ होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करेगा। जातक को धन की विशेष प्राप्ति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – यहां सूर्य होने से नीचभंग राजयोग बनेगा। जातक राजा तुल्य प्रभावशाली एवं धनी व्यक्ति होगा पर खर्चीले स्वभाव का होगा। पैसा हाथ में टिकेगा नहीं।

2. शुक्र + चंद्र – धन स्थान में शुक्र के साथ चंद्रमा होने से जातक महाधनी होगा।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से जातक को परिश्रम का लाभ मिलेगा।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल होने से जातक के धन का नाश होता रहेगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ बृहस्पति होने से जातक धार्मिक तथा पराक्रमी होगा।

6. शुक्र + शनि – यहां शनि उच्च का होने से ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। जातक करोड़पति होगा। जातक अपने नाम से जाना-पहचाना जायेगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु होने से जातक के अर्जित धन का नाश होगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु होने से धन का अपव्यय होता रहेगा।

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश तृतीय स्थान में

यहां तीसरे स्थान में शुक्र वृश्चिक राशि में होगा ।  ऐसा जातक पराई स्त्रियों पर डोरे डालता है तथा अनैतिक सम्पर्क साधने की चेष्टा करता है। भाई-बहनों में कम पटती है पर जातक यार-दोस्तों पर ज्यादा रुपया खर्च करता है। जातक फिजूलखर्च होता है।

दृष्टि – तृतीयस्थ शुक्र की दृष्टि अपने ही घर भाग्य भवन (वृष राशि) पर होगी। ऐसा व्यक्ति भाग्यशूर होता है तथा थोड़ी मेहनत में उत्तम फलों की प्राप्ति करता है।

निशानी – जातक की प्रगति विवाह के बाद होती है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का पराक्रम बढ़ता है एवं भाग्योदय होता है।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य होने से जातक का पराक्रम भंग होगा तथा छोटे भाई की मृत्यु होगी।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ चंद्र होने में जातक की बहनें जरूर होगी।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल स्वगृही होने से जातक को भाई बहनों का सुख तो प्राप्त होगा पर आपस में विचार नहीं मिलेंगे।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध जातक के मित्र वफादार होंगे। जातक को मेहनत का फल मिलेगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ बृहस्पति होने से जातक को भाई-बहनों का सुख प्राप्त होगा और जातक पर बड़े भाई की कृपा रहेगी।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि होने से जातक पढ़ा लिखा होगा। जातक की संतति भी पढ़ी-लिखी होगी।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु होने से जातक का पराक्रम भंग होगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु होने से भाई बहनों में मनमुटाव रहेगा।

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां शुक्र धनु राशि में होगा तथा केन्द्रस्थ होने ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा। जातक के पास उत्तम बंगला, गाड़ी वाहन, नौकर-चाकर का सुख होगा। ऐसा जातक यदि राजनीति में हो तो राजा का मंत्री होता है। जातक शिक्षित एवं सभ्य होगा। जातक को गृहस्थ, स्त्री व सतान का सुख पूर्ण होगा।

दृष्टि – चतुर्थस्थ शुक्र की दृष्टि दशम भाव (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः जातक का दबदबा राज्य (सरकार) कोर्ट-कचहरी में रहेगा।

निशानी – जातक अच्छे स्वभाव का स्वामी होगा। जातक का मां के साथ विशेष संबंध होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का भौतिक सुखों व उपलब्धियों की प्राप्ति होगी तथा उसका भाग्योदय होगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य होने से जातक की माता, बुआ बीमार रहेगी।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा होने से जातक को माता एवं बड़ी बहन का सुख मिलेगा।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ लग्नेश बुध होने से जातक महान उपलब्धियां अर्जित करेगा।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल होने से जातक की विद्या में रुकावट आयेगी।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ यदि बृहस्पति हो तो हंस योग के कारण जातक निश्चय ही राजा के समान प्रभावशाली होती है तथा राजपुरोहित, राजगुरु के पद को प्राप्त करेगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ पंचमेश शनि होने से जातक विद्या व्यसनी होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु होने से जातक की माता को कष्ट रहेगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु होने से जातक की मां बीमार रहेगी। जातक को हृदय रोग होने की संभावना रहेगी।

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में शुक्र मकर राशि का होगा। ऐसे जातक को अच्छी शिक्षा प्राप्त होती है। ऐसे जातक को स्त्री संतान का पूर्ण सुख मिलेगा। जातक की संतति सुंदर होगी। जातक स्वयं कवि, संगीत प्रेमी, कलाकार, होशियार एवं चालाक होगा। ऐसे जातक को राजा (राज्य सरकार) से सम्मान अवश्य मिलेगा।

दृष्टि – पंचमस्थ शुक्र की दृष्टि एकादश स्थान (कर्क राशि) पर होगी। जातक को व्यापार व्यवसाय एवं लघु उद्योग से यथेष्ट धन की प्राप्ति होगी।

निशानी – जातक प्रजावान होता है तथा उसकी प्रायः चार या छः कन्याएं होती हैं। जातक को सट्टे तथा शेयर बाजार से लाभ होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा एवं उसे उत्तम संतति की प्राप्ति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य होने से संतान प्राप्ति, वांछित विद्या प्राप्ति में दिक्कतें महसूस होंगी।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा कन्या संतति की बाहुल्यता करायेगा ।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ लग्नेश बुध बुद्धि तेज एवं संतति तेजस्वी करायेगा। कन्या संतति की ‘बाहुल्यता रहेगी।

4. शुक्र + मंगल

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ सप्तमेश बृहस्पति होने से जातक को पत्नी पक्ष सं लाभ मिलेगा तथा पुत्र संतति की प्राप्ति होगी।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ स्वगृही शनि कन्या संतति में बाहुल्यता एवं पुत्र योग भी देता है।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु की उपस्थिति पुत्र संतति में बाधक है।

8. केतु + शुक्र – शुक्र के साथ कंतु गर्भपात, गर्भस्राव कराता है।

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां छठे स्थान में शुक्र कुम्भ राशि में होगा। शुक्र की इम स्थिति से धनहीन योग एवं भाग्यभंग योग की सृष्टि होती है। ऐसे जातक को धनार्जन एवं भाग्योदय हेतु कठोर परिश्रम करना पड़ेगा। जातक स्त्रियों का अनुग्रह पाने के लिए लालायित रहेगा एवं किसी युवा स्त्री द्वारा भ्रष्ट होगा। जातक का चरित्र व स्वभाव विवादास्पद होगा।

दृष्टि – छठे भावगत शुक्र की दृष्टि व्यय भाव (सिंह राशि) पर होगी। फलत: जातक के पास धन का संग्रह नहीं हो पायेगा।

निशानी – कामुक स्वभाव के कारण जातक के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा जातक के लिए कष्टप्रद साबित होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ यदि सूर्य हो तो ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक करोड़पति होगा। इसे विमल नामक राजयोग कहते हैं।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा नियमित लाभ के अनुपात को तोड़ देगा।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध ‘लग्नभंग योग’ करायेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

4.शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ यदि मंगल हो तो ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक करोड़पति होगा। इसे ‘सरल नामक’ राजयोग कहते हैं।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ सप्तमेश बृहस्पति विलम्ब विवाह योग या द्विभार्या योग कराता है।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ यहां पर शनि हो तो ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक करोड़पति होगा। इसे ‘हर्ष योग’ भी कहते हैं।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु की उपस्थिति राजयोग कारक है। जातक के रोग का नाश होगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु जातक के शरीर पर रोग का प्रकोप करायेगा।

कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश सप्तम स्थान में

शुक्र यहां अपनी उच्च राशि मीन में होगा। जहां यह 27 अंशों में परमोच्च का कहलाता है। शुक्र की इस स्थिति के कारण ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘मालव्य योग’ की सृष्टि होगी। जातक राजा के समान पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जीयेगा। जातक की पत्नी रति के समान सुन्दर होगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक को विपरीत सेक्स वालों से लाभ होगा।

दृष्टि – सप्तमस्थ शुक्र की दृष्टि लग्न स्थान (कन्या राशि ) पर होगी। ऐसा जातक अल्प प्रयत्न से अधिक कमाता है तथा बहुत भाग्यशाली होता है।

निशानी – ऐसा जातक विदेश में जन्म स्थान से दूरस्थ प्रदेशों में जाकर धन कमाता है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक की उन्नति होगी एवं सर्वागीण विकास होगा। उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य विवाह सुख में कलह करायेगा। जानक की पत्नी लड़ाकू होगी।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा होने से जातक की पत्नी परम सुन्दरी व विनम्र होगी।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक की पत्नी कमाऊ होगी। जातक को ससुराल से धन की प्राप्ति होगी।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल की उपस्थिति विवाह सुख में बाधक है।

5. शुक्र + गुरु – बलवान धनंश की सप्तमेश से युति ‘कलहमूल धनयोग’ बनाती है जातक को ससुराल पक्ष से धन की प्राप्ति होगी।

6. शुक्र + शनि – षष्टेश शनि सप्तम स्थान में शुक्र के साथ होने से, जीवन साथी से वैचारिक मतभेद करायेगा ।

7. शुक्र + राहु – सप्तम स्थान में राहु गृहस्थ सुख में बाधक है।

8. शुक्र + केतु – सप्तम स्थान में केतु वैचारिक मतभेद करायेगा।

कन्यालग्न में शुक्र का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टमस्थ शुक्र मेष राशि में होगा। शुक्र की इस स्थिति के कारण धनहीन योग एवं भाग्यभंग योग की सृष्टि होगी। ऐसे जातक

को धनार्जन एवं भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। फिर भी जातक को उच्च श्रेणी की विद्या, वाहन, धन व ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी। जातक की माता की आयु कम होगी। अति सेक्स, गुप्त बीमारी का कारण होगा।

दृष्टि – अष्टम भावगत शुक्र की दृष्टि धन स्थान (तुला राशि) पर होगी। फलत: जातक को जीवन में धन की कमी नहीं रहेगी।

निशानी – जातक यदि अपनी पत्नी को तंग करेगा तो उसके जीवन में परेशानियां बढ़ेंगी। शुक्र का शुभत्व बढ़ाने के लिए दूध का दान करना चाहिए।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य अष्टम स्थान में होने से सरल नामक विपरीत राजयोग बनेगा। जातक धनी एवं वाहन सुख से युक्त होगा।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा अष्टम स्थान में होने से शल्य-चिकित्सा करायेगा। जातक को हार्निया इत्यादि गुप्त रोग हो सकते हैं।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ लग्नेश बुध यहां ‘लग्नभंग योग’ करायेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल, अष्टम स्थान में स्वगृही होने से विमल नामक विपरीत राजयोग करायेगा। जातक महान पराक्रमी एवं धनी होगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ सप्तमेश बृहस्पति होने से विलम्ब विवाह योग बनेगा। इसमें द्विभार्या योग भी संभव है।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ षष्ठेश शनि होने से हर्ष नामक विपरीत राजयोग बनेगा। जातक धनी पराक्रमी एवं वाहन सुख से युक्त होगा

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु का होना गुप्त बीमारी का संकेतक है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु गुप्त रोगों की शल्य चिकित्सों कराता है।

कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश नवम स्थान में

नवमस्थ शुक्र यहां स्वगृही होगा। यह शुक्र पंचम भाव से पंचम है, पिता की दीर्घायु होगी। जातक जन्म से ही भाग्यशाली होगा। जातक को स्त्री, धन, पुत्र-संतति, विद्या-बुद्धि व सौभाग्य का पूर्ण सुख प्राप्त होगा। जातक को भाई-बहनों का पूर्ण सुख होगा।

दृष्टि – नवमस्थ शुक्र की दृष्टि पराक्रम भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: जातक प्रबल पराक्रमी होगा। जातक का जनसम्पर्क बहुत तेज होगा।

निशानी – ऐसा जातक यदि स्त्रियों का अपमान करेगा तो उसका भाग्य विपरीत होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का चहुंमुखी भाग्योदय होगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य हो तो जातक बातचीत में कुलीन होगा पर शरीर में कष्ट रहेगा।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा उच्च का होने से ‘किम्बहुना योग’ बनायेगा। इसके अधिक और क्या? जातक महाधनी एवं सौभाग्यशाली होगा।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ दशमेश बुध होने से व्यक्ति महान भाग्यशाली होगा। जातक की नौकरी अच्छी होगी।

4. मंगल + शुक्र – शुक्र के साथ मंगल होने से जातक के भाग्य में रुकावट होगी किन्तु जातक का पराक्रम तेज होगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ बृहस्पति की उपस्थिति विवाह के तत्काल बाद भाग्योदय कराता है।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि होने से जातक का भाग्योदय विद्या द्वारा होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ उच्च का राहु व्यक्ति को पराक्रमी बनायेगा ।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु होने से जातक के भाग्योदय में बाधा आयेगी ।

कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश दशम स्थान में

दशम भावगत शुक्र यहां मिथुन राशि में होगा। केन्द्रवर्ती शुक्र के कारण ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि होगी। जातक को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक सफलताओं की प्राप्ति होगी। जातक को जमीन-जायदाद आर्थिक सम्पदाओं की प्राप्ति होगी। जातक का राजनीति में प्रभाव होगा। यदि बुध की स्थिति अच्छी हो तो राजनैतिक पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति भी होगी।

दृष्टि – दशमस्थ शुक्र की दृष्टि चतुर्थ भाव (धनु राशि) पर होगी। जातक को सुन्दर भवन, सुन्दर वाहन का सुख मिलेगा।

निशानी – जातक के अनेक वाहन व मकान होंगे जिससे आय की संभावना भी रहेंगी।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक उन्नति प्राप्त करेगा ।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य होने से जातक को सरकार (कोर्ट-कचहरी) द्वारा नुकसान होगा।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा शुत्रक्षेत्री होगा। जातक को सरकारी नौकरी में लाभ है।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से ‘भद्र योग’ के कारण जातक राजा तुल्य पराक्रमी होगा।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल राज्य की नौकरी में कष्ट दायक होगा ।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ सप्तमेश गुरु विवाह के बाद नौकरी लगवाता है।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ पंचमेश शनि हो तो जातक को विदेश यात्रा से लाभ कराता है।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ स्वगृही राहु जातक को हठी राजा बनाता है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु, दशम भाव के शुभ फल को तोड़ता है।

कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश एकादश स्थान में

एकादश भावगत शुक्र यहां कर्क राशि में होगा। जातक लोकप्रिय होगा एव घुमक्कड़ स्वभाव का होगा। जातक को अनेक मित्र होंगे। जातक धनी एवं प्रजावान होगा। जातक की अच्छी शिक्षा-दीक्षा होगी। जातक के पास ऐशो-आराम के अनेक साधन होंगे।

दृष्टि – एकादश स्थान में स्थित शुक्र की दृष्टि पंचम भाव (मकर राशि) पर होगी। जातक विद्यावान होगा तथा उसे परिश्रम का लाभ मिलेगा।

निशानी – स्त्रियां जातक की कमजोरी होंगी। कन्या संतति की बाहुल्यता रहेगी।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक को व्यापार व्यवसाय में लाभ होगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य लाभ में कमी कराता है। जातक के उद्योग में विवाद रहेगा।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश स्वगृही चंद्रमा बड़ी बहन, मौसी या बुआ से लाभ दिलवाता है।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ लग्नेश बुध होने से जातक व्यापार से धन कमायेगा।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल नीच के होने से लाभ के प्रतिशत को तोड़ता है।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ बृहस्पति उच्च का होकर विवाह के तत्काल बाद जातक का भाग्योदय करायेगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ षष्टेश शनि लाभ के प्रतिशत में गिरावट करायेगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहू का होना भाग्य में मंदी, लाभ में रुकावट का संकेत देता है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु उद्योग को बीमार करेगा ।

कन्या लग्न में शुक्र का फलादेश द्वादश स्थान में

द्वादश भावगत शुक्र यहां सिंह (शत्रु) राशि में होगा शुक्र की इस स्थिति के कारण ‘धनहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि होगी। फलतः ऐसे जातक को धनार्जन एवं भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। जातक को ऋण रोग व शत्रुओं से परेशानी होती रहेगी। फिर भी जातक धनवान तेजस्वी एवं यशोवान होगा।

दृष्टि – द्वादशस्थ शुक्र की दृष्टि छठे स्थान (कुम्भ राशि) पर होगी। अंततः जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

निशानी – व्यक्ति को ट्रेवलिंग या विदेशी व्यापार से लाभ होगा। जातक संबंधियों से दूर रहेगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक सुखी एवं सम्पन्न होगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ व्ययेश सूर्य स्वगृही होने हर्ष नामक विपरीत राजयोग बनेगा जातक महान पराक्रमी व धनी होगा।

2. शुक्र + चंद्र – शुक्र के साथ लाभेश चंद्रमा जातक की बाईं आंख को कष्ट पहुंचायेगा। नेत्र-पीड़ा के कारण आपरेशन होगा।

3. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ लग्नेश बुध बारहवें होने से ‘लग्नभंग योग’ बनेगा। जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलेगा।

4. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ अष्टमेश मंगल होने से विपरीत राजयोग बनेगा। कुण्डली मांगलिक होगी। जातक के विवाह में विलम्ब होगा । द्विभार्या योग बनता है।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ सप्तमेश बृहस्पति विवाह में विलम्ब एवं द्विभार्या योग बनाता है।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ षष्टेश शनि विपरीत राजयोग से धन दिलवाता है पर जातक को संतान संबंधी चिंता बनी रहेगी।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु व्यर्थ की यात्रा में धन खर्च कराता है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु यात्रा में चिंता एवं विलासिता की आपूर्ति में धन खर्च कराता है।

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