कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश प्रथम स्थान में

कन्या लग्न में सूर्य व्ययेश होने के कारण हानिकारक होगा। यद्यपि सूर्य लग्नेश बुध का मित्र है तथापि सूर्य अन्य पाप ग्रहों के साहचर्य से मारकेश का फल भी दे सकता है। यहां प्रथम स्थान में सूर्य कन्या राशि अपनी मित्र राशि में है। ऐसे जातक बुद्धिमान, उच्च कोटि के लेखक, आलोचक, पत्रकार, दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक होते हैं। ऐसे जातक दृढ़ इच्छा शक्ति वाले एवं अन्याय के प्रति न झुकने वाले हठी होते हैं। जातक राज्याधिकारी होता है, पर तनाव में रहता है।

दृष्टि – सूर्य की दृष्टि सप्तम भाव (मीन राशि) पर होगी। जातक की पत्नी धार्मिक किन्तु थोड़े उग्र स्वभाव की होगी।

निशानी – जातक फिजूल खर्ची होता है जातक धन एवं विद्या (ज्ञान) संग्रह के प्रति लापरवाह होता है।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में मिश्रित फल मिलेंगे।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्या लग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने से अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययेश के साथ निरर्थकयुति है। यहां प्रथम स्थान में दोनों ग्रह कन्या राशि में होंगे। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होगा। इन दोनों ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव (मीन राशि) पर होगी। फलतः ऐसा जातक पराक्रमी होगा। उसकी पत्नी सुन्दर होगी, स्वामीभक्त होगी।

2. सूर्य + मंगल – मंगल की युति से जातक परम पराक्रमी होगा।

3. सूर्य + बुध – भोजसंहिता के अनुसार कन्यालग्न में सूर्य व्ययश होगा। प्रथम स्थान में कन्या राशिगत यह युति वस्तुत व्ययेश सूर्य की लग्नेश दशमेश बुध के साथ युति कहलायेगी । बुध यहां उच्च का होकर कुलदीपक योग’ की सृष्टि करेगा। यहां पर यह युति उत्तम फल (राजयोग) को देने वाली होगी।

फलतः ऐसा जातक बुद्धिमान होगा एवं राजातुल्य ऐश्वय, पराक्रम एवं वैभव को भोगेगा। जातक धनवान, बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वमी होगा। जातक अपने कुल परिवार जाति का मुखिया एवं अग्रगण्य व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – जातक भाग्यशाली होगा। राजा का प्रमुख व्यक्ति एवम राजनेता होगा।

5. सूर्य + शुक्र – जातक धनी होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के प्रथम स्थान में सूर्य-शनि की युति वस्तुतः पंचमेश षष्टेश शनि की व्ययेश सूर्य के साथ निष्फल युति है। जातक अति महत्त्वकांक्षी चालाक एवं विचलित मन मस्तिष्क वाला होगा। जातक के शरीर में बीमारी रहेगी।

7. सूर्य + राहु – जातक अत्यधिक साहसी एवं पराक्रमी होगा।

8. सूर्य + केतु – जातक गर्म मिजाज वाला होगा।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश द्वितीय स्थान में

द्वितीय स्थान में सूर्य तुला राशि में नीच का होगा। जातक को विद्या. बुद्धि, धन और कुटुम्ब के सुख में कुछ न कुछ कमी अखरती रहेगी। जातक का धन चोर, अग्नि, टैक्स, जुआ, लॉटरी, सट्टा आदि कार्यों में नष्ट होता रहेगा।

दृष्टि – द्वितीयस्थ सूर्य की दृष्टि अष्टम भाव (मेष राशि ) पर होगी।

निशानी – सूर्य की यह स्थिति एक हजार राजयोग नष्ट करती है।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा अशुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – यहां द्वितीय स्थान में दोनों ग्रह तुला राशि में होंगे। सूर्य यहां नीच का होकर एक हजार राजयोग नष्ट करता है। यहां दोनों ग्रहों की दृष्टि अष्टम भाव (मेष राशि) पर होगी। ऐसा जातक लम्बी उम्र का स्वामी होता है।

2. सूर्य + मंगल – जातक की वाणी में गर्मी व कड़वाहट होगी।

3. सूर्य + बुध – सूर्य यहां नीच राशि का होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम स्थान को देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिमान होगा एवं धनवान भी होगा। जातक अपने स्वयं के पराक्रम एवं पुरुषार्थ से धन कमाता हुआ आगे बढ़ता है। जातक समाज का लब्ध एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा तथा रोग (बीमारी) मे लड़ने की क्षमता रखता हुआ दीर्घजीवी हांगा।

4. सूर्य + गुरु – जातक धनी तथा धार्मिक होगा।

5. सूर्य + शुक्र – नीचभंग राजयोग के कारण जातक महाधनी व ऐश्वर्यशाली होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के द्वितीय स्थान में शनि उच्च का एवं सूर्य नीच का होने से नीचभंग राजयोग बनेगा। ऐसा जातक धनी होगा पर पैसा पास में टिकेगा नहीं। पिता की मृत्यु के बाद जातक धनवान होगा। जातक की वाणी अप्रिय रहेगी।

7. सूर्य + राहु – धन के घड़े में बड़ा छेद होगा।

8. सूर्य + केतु – कुटुम्ब एवं धन संग्रह में कष्टानुभूति होगी ।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश तृतीय स्थान में

यहां तृतीय स्थान में सूर्य वृश्चिक राशि का होगा। सूर्य अपनी (सिंह) राशि से चौथे स्थान पर होगा। फलत: जातक बहुत ही शूरवीर, परिश्रमी, साहसी एवं पराक्रमी होगा। जातक भौतिक एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होगा। ऐसा जातक परद्वेषी होता है। स्वयं के भाई-बहनों के मध्य अहं का टकराव होग।

दृष्टि – भाग्य भवन (वृष राशि) पर होगी। फलतः व्यक्ति सौभाग्यशाली होगा। राजनीतिज्ञ होगा या उद्योगपति होगा।

निशानी – पाराशर ऋषि के अनुसार जातक के बड़े भाई की मृत्यु जातक के सामने होगी, अथवा बड़े भाई का सुख नहीं होगा ।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फल देगी पर पराक्रम में वृद्धि करायेगी ।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्यालग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने से अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययेश के साथ निरर्थक युति है। यहां तृतीय स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह भाग्य स्थान (वृष राशि) को देखेंगे। फलत: जातक भाग्यशाली एवं पराक्रमी होगा। उसे भाई-बहन दोनों का सुख प्राप्त होगा।

2. सूर्य + मंगल – सहोदर सुख में हानि होगी, छोटे भाई की मृत्यु संभव है।

3. सूर्य + बुध – तृतीय स्थान में वृश्चिक राशिगत यह युति वस्तुतः व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश बुध के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह भाग्य भवन को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक बुद्धिमान व पराक्रमी होगा। मित्रों एवं परिजनों से लाभ होगा। जातक अपने बुद्धिबल से 24 वर्ष की आयु तक अपना उन्नति कार्य निश्चित कर लेगा। जातक धनी व्यक्ति होगा तथा समाज में अपने कार्यों में अपनी पहचान अलग से बनायेगा।

4. सूर्य + गुरु – जातक के भाई पराक्रमी एवं धार्मिक होंगे।

5. सूर्य + शुक्र – जातक को भाई-बहनों का सुख प्राप्त होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के तृतीय स्थान में सूर्य शनि की युति अप्रिय होगी। जातक को छोटे-बड़े किसी भाई से नहीं बनेगी। भाईयों का सुख कमजोर होगी। जातक के मित्र परिजन भी विश्वास योग्य नहीं होंगे। दोनों ग्रहों की दृष्टि पंचम (मकर राशि) नवम् (वृष राशि) एवं व्यय भाव (सिंह राशि) पर होने से संतति योग उत्तम पर संतानों में झगड़ा रहेगा भाग्योदय में संघर्ष एवं खर्च की प्राबल्यता रहेगी।

7. सूर्य + राहु – भाईयों में विवाद रहेगा।

8. सूर्य + केतु – मित्रों में धोखा संभव है।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश चतुर्थ स्थान में

सूर्य अपनी (सिंह) राशि से पांचवे स्थान पर होने से शुभ फलदायक है। जातक को वाहन सुख मिलेगा। जातक उत्तम भवन का स्वामी होगा। जातक धनी-मानी व अभिमानी होगा। परन्तु जातक एवं उसके माता-पिता ज्यादा भाग्यशाली नहीं होते। राजकीय हस्तक्षेप से जातक की खुशियां बरबाद हो सकती हैं।

दृष्टि – चतुर्थ स्थानगत सूर्य की दृष्टि दशम भाव (मिथुन राशि) पर होगी । जातक का राजदरबार में दबदबा रहेगा।

निशानी – जातक को माता, घर, वाहन सुख में कुछ-न-कुछ बाधा बनी रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा अशुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्यालग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने से अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययेश के साथ निरर्थक युति है। यहां चतुर्थ स्थान में दोनों ग्रह धनु राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव (मिथुन राशि) को देखेंगे। फलतः जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक के पास वाहन भी होगा पर वाहन दुर्घटना से विकलांग होने का भय रहेगा।

2. सूर्य + मंगल – भौतिक सुखों में व्यवधान रहेगा।

3. सूर्य + बुध – चतुर्थ स्थान में धनु राशिगत यह युति वस्तुतः व्ययेश सूर्य की लग्नेश दशमेश बुध के साथ युति होगी । बुध केन्द्रवर्ती होने के कारण ‘कुलदीपक योग’ बनेगा। जातक बुद्धिमान होगा तथा ज्योतिष तंत्र व आध्यात्मिक विद्या का जानकार होगा। जातक उत्तम सम्पत्ति का स्वामी होगा। जातक के पास एकाधिक वाहन रहेंगे। जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक व्यापार व्यवसाय में कमायेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – यहां बृहस्पति स्वगृही होगा। फलत: जातक दीर्घायु होगा। जातक राजपक्ष व राजनीति में बहुमान्य होगा। जातक दानी होगा। परोपकार व सामाजिक कार्यों में जातक रुपया खर्च होगा।

5. सूर्य + शुक्र – व्यक्ति धनी एवं भाग्यशाली होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न में चतुर्थ स्थान में सूर्य-शनि की युति से जातक की माता बीमार रहेगी। वाहन की दुर्घटना होगी। यहां धनु राशिगत दोनों ग्रहों की दृष्टि छठे स्थान (कुम्भ राशि) दशम भाव (मिथुन राशि) एवं लग्न स्थान (कन्या राशि) पर रहेगी। फलतः जातक शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक खुद की मेहनत से आगे बढ़ेगा, परन्तु उसके जीवन का सही विकास पिता की मृत्यु के बाद होगा। जातक कृपण-कंजूस होगा !

7. सूर्य + राहु – जातक के माता-पिता बीमार रहेंगे। घरेलू सुख-सुविधाओं में बाधा बनी रहेगी।

8. सूर्य + केतु – जातक धन-सम्पत्ति, भौतिक सुखों से रहित होगा ।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में सूर्य मकर (शत्रु राशि) में है। द्वादशेश पंचम में होने से पंचम भाव के शुभ फलों की हानि होती है। ऐस जातक को विद्या एवं पुत्र संतति की प्राप्ति में विलम्ब होता है। ऐसा जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है। लग्नेश (बुध) यदि बलवान न हो तो आयु कम रहती है।

दृष्टि – पंचम भावगत सूर्य की दृष्टि लाभ स्थान (कर्क राशि) पर होगी। फलतः लाभ प्राप्ति में न्यूनता महसूस होती रहेंगी।

निशानी – जातक का भाग्योदय संतान (पुत्र) के जन्म के बाद ही होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा शुभ फल नहीं देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्यालग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने से अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययेश के साथ निरर्थक युति है। यहां पंचम स्थान में दोनों ग्रह मकर राशि में होंगे। यहां सूर्य शत्रुक्षेत्री होगा तथा दोनों ग्रह लाभ स्थान (कर्क राशि) को देखेंगे जो चंद्रमा का स्वयं का घर हैं। ऐसे जातक को व्यापार से लाभ होगा परन्तु एकाध संतति का क्षरण अकाल मृत्यु, गर्भपात संभव है।

2. सूर्य + मंगल – उच्च का मंगल व्यापार में लाभ दिलायेगा ।

3. सूर्य + बुध –  पंचम स्थान में मकर राशिगत यह युति वस्तुतः व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होकर एकादश स्थान में स्थित ‘कर्क राशि’ का उत्पीड़ित करेगा, जो बुध की शत्रु राशि है। फलतः ऐसा जातक बुद्धिमान एवं शिक्षित होगा। उसकी संतति भी शिक्षित होगी। जातक व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ेगा एवं समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – बृहस्पति यहां नीच का होगा। जातक विद्यावान होगा।

5. सूर्य + शुक्र – विद्या प्राप्ति में संघर्ष रहेगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के पंचम स्थान में शनि स्वगृही होगा एवं सूर्य शत्रुक्षेत्री होकर उद्विग्न होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव (मीन राशि) लाभ स्थान (कर्क राशि) एवं धन भाव (तुला राशि) पर हांगी फलत: जातक प्रजावान तथा धनवान होगा, पर शत्रुओं की कमी नहीं होगी। खुद की संतान ही जातक से वैर भाव रखेगी। प्रारंभिक विद्या में रुकावट आयेगी।

7. सूर्य + राहु – संतान (पुत्र) प्राप्ति में बाधा होगी।

8. सूर्य + केतु – गर्भपात या गर्भस्राव संभव है।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां षष्टम स्थान में सूर्य कुम्भ राशि (शत्रु राशि) में है। द्वादशेश छठे होने से ‘सरल नामक विपरीत राजयोग बना ऐसा जातक बहुत अच्छा राजनीतिज्ञ तथा सफल व प्रसिद्ध व्यक्ति होता है। ऐसे जातक की सामाजिक व आर्थिक उन्नति चरम सीमा पर होती है। ऐसा जातक बेफिक्र होता है। ऐसे जातक को रुपये-पैसे की चिंता नहीं होती, वह क्रोध में आकर किसी का भी नुकसान कर सकता है। जातक को अपने पराये का ध्यान नहीं रहता।

दृष्टि – षष्टमस्थ सूर्य की दृष्टि अपने ही घर (सिंह राशि) व्यय भाव पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होता है।

निशानी – ऐसे व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु किसी की भी हानि कर सकते हैं।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा मध्यम (मिश्रित) फल देती है।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – यहां छठे स्थान में दोनों ग्रह कुंभ राशि में होंगे। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होगा तथा दोनों ग्रह व्यय भाव (सिंह राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। चंद्रमा छठे जाने से लाभभंग योग बना परन्तु व्ययेश सूर्य के छठे जाने से सरल नामक विपरीत राजयोग बना फलतः आर्थिक तंगी रहेगी। खर्च की अधिकता जातक को परेशान करती रहेगी। आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन शुक्र की स्थिति से होगा।

2. सूर्य + मंगल – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी अभिमानी होगा।

3. सूर्य + बुध – छठे स्थान में कुंभ राशिगत यह युति वस्तुतः व्ययंश सूर्य की लग्नेश धनेश बुध के साथ युति कहलायेगी। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होकर व्यय स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। बुध छठे स्थान पर जाने से ‘लग्नभंग योग’, ‘राजभंग योग’ बना। यहां पर यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है। फिर भी जातक बुद्धिमान एवं धनवान होगा पर उसे परिश्रम का फल नहीं मिलेगा। सरकार में रुपया अटक जायेगा।

4. सूर्य + गुरु – विवाह विलम्ब से होगा। द्विभार्या योग बनता है।

5. सूर्य + शुक्र

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के छठे स्थान में शनि स्वगृही एवं सूर्य शत्रुक्षेत्री होगा पर दोनों ही ग्रह यहां विपरीत राजयोग करके बैठेंगे। शनि के कारण हर्ष योग एवं सूर्य के कारण सरल योग बनेगा। जातक ऋण, रोग व शत्रुओं का शमन करने में सक्षम होगा। जातक उत्तम धन-सम्पति एवं वाहन का स्वामी होगा।

7. सूर्य + राहु – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी व अभिमानी होगा।

8. सूर्य + केतु – विपरीत राजयोग के कारण जातक साहसी होगा।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां संप्तम स्थान में सूर्य मीन (मित्र) राशि में है। जातक उन्नतिशील होगा, पर हठी, द्वेषी एवं स्वतंत्र विचारों का पोषक होगा। ऐसे जातक का रंग गोरा व सिर पर बाल कम होंगे। जातक के मित्र कम होंगे एवं उनके साथ मित्रता निभाने में जातक को कठिनाई महसूस होगी। जातक सम्पन्न होगा। जातक का आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक स्तर मध्यम होगा।

दृष्टि – सप्तमस्थ सूर्य की दृष्टि लग्न स्थान (कन्या राशि) पर होगी। जातक द्वारा किये गये परिश्रम प्रायः सार्थक होंगे। जातक को मेहनत का फल मिलेगा।

निशानी – ऐसे जातक को परदेश में प्रसिद्धि मिलती है। जातक विदेशी वस्तुओं को पसंद करेगा। जातक की शादी विलम्ब से होगी।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक उन्नति मार्ग पर आगे बढ़ेगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्यालग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययेश के साथ निरर्थक युति है। यहां सातवें स्थान में दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह लग्न स्थान (कन्या राशि) को देखेंगे। फलतः जातक उन्नति मार्ग की ओर बढ़ेगा। जातक की पत्नी सुंदर होगी पर झगड़ालू स्वभाव की होगी।

2. सूर्य + मंगल – जातक का दाम्पत्य जीवन कष्टदायक होगा।

3. सूर्य + बुध – सप्तम स्थान में मीन राशिगत यह युति वस्तुतः व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। यहां बुध नीच का होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह लग्न स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। बुध के कारण ‘कुलदीपक योग’ बनेगा एवं ‘लग्नाधिपति योग’ भी बनेगा। फलत: जातक बुद्धिमान एवं धनवान होगा। जातक जिस कार्य में हाथ डालेगा उसमें बराबर सफलता मिलेगी। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित एवं धनी व्यक्ति होगा ।

4. सूर्य + गुरु – हंस योग के कारण जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा ।

5. सूर्य + शुक्र – मालव्य योग’ के कारण जातक राजातुल्य वैभवशाली होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के सप्तम स्थान में शनि शत्रुक्षेत्री एवं सूर्य मित्रक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह भाग्य स्थान (वृष राशि) लग्न स्थान (कन्या राशि) एवं चतुर्थ भाव (धनु राशि) को देखेंगे। फलत: जातक का विवाह विलम्ब से होगा। जातक को गृहस्थ सुख में बाधा, भौतिक सुख संसाधनों की प्राप्ति में भारी संघर्ष, भाग्योदय में संघर्ष किसी भी कार्य में प्रथम प्रयास से सफलता नहीं मिलेगी।

7. सूर्य + राहु – जातक के दाम्पत्य जीवन में बिछोह की स्थिति बन सकती है।

8. सूर्य + केतु – जातक के गृहस्थ सुख में कड़वाहट रहेगी।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टम स्थान में सूर्य मेष राशि में उच्च का है। व्ययेश सूर्य आठवें होने से ‘सरल नामक विपरीत राजयोग बनता है। ऐसे जातक की आयु लम्बी होती है। जातक का शरीर स्वस्थ रहता है। जातक क्रांधी व महत्वाकाक्षी होते भी आकर्षक व कुशल वक्ता होता है। जातक अपने परिश्रम के बल पर धन, पद प्रतिष्ठा को प्राप्त करते हैं, पर गलत सोहबत इन्हें बर्बाद कर देगी. इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

दृष्टि – अष्टम स्थानगत सूर्य की दृष्टि धन भाव (तुला राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होता है। जातक को धन एकत्रित करने में कठिनाई महसूस होगी।

निशानी – ऐसा जातक मुसीबत में घिरे लोगों को बचाने में पूर्ण रुचि लेता है। तथा ‘शरणागत वत्सल’ होता है। जातक अपनी शरण में आये व्यक्ति के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर करने में नहीं हिचकिचायेगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक आगे बढ़ेगा। जातक को राजपक्ष में शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्यालग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने से अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययेश के साथ निरर्थक युति है। यहां अष्टम स्थान में दोनों ग्रह मेष राशि में होंगे। सूर्य यहां उच्च का होगा। व्ययेश सूर्य के आठवें जाने से सरल नाम विपरीत राजयांग बनता है। जबकि चंद्रमा लाभभंग योग की सृष्टि करता है। ऐसा जातक लम्बी उम्र का स्वामी होता है पर व्यापार में नुकसान उठाता है। दोनों ग्रहों की दृष्टि धन स्थान तुला राशि पर होने से जातक धनी व समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + मंगल – इस युति से ‘किम्बहुना योग’ बनता है। जातक को अचानक धन मिलता है। जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होता है।

3. सूर्य + बुध – अष्टम् भाव में मेष राशिगत यह युति वस्तुतः व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। सूर्य यहां उच्च का होगा। दोनों ग्रह धन भाव को देखेंगे। फलतः यहां यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है। बुध के कारण लग्नभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनेगा। फलतः जातक को भाग्योदय हेतु संघर्ष करना पड़ेगा। मेहनत का फल नहीं मिलेगा फिर भी जातक बुद्धिमान होगा। व्ययेश सूर्य बारहवें जाने से विमल योग बना ऐसा जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – जातक का विवाह विलम्ब से होगा।

5. सूर्य + शुक्र – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के अष्टम स्थान में शनि शत्रुक्षेत्री नीच का तो सूर्य उच्च का होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। यहां शनि के कारण ‘हर्ष योग’ एवं सूर्य के कारण सरल नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि हुई। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव (मिथुन राशि ) धन भाव (तुला राशि) एवं पंचम भाव (मकर राशि) को देखेंगे। फलत: जातक पुत्रवान एवं महाधनी होगा। जातक पराक्रमी होगा एवं अपने शत्रुओं को समूल नष्ट करने वाला होगा।

7. सूर्य + राहु – जातक दीर्घायु होगा। वह धनी होगा।

8. सूर्य + केतु – जातक धनी होगा एवं शत्रुओं का नाश करने में समर्थ होता है।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश नवम् स्थान में

यहां नवम स्थान में सूर्य वृष (शत्रु) राशि में है। ऐसे जातक सौभाग्यशाली एवं प्रतिष्ठावान होते हैं तथा अपने खानदान की प्रतिष्ठा के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार रहते हैं। परन्तु अन्तःकरण से स्वार्थी होते हैं। जातक का भाग्योदय 25 वर्ष की आयु के बाद ही होता है। ऐसा जातक यदि कुछ भी गलत अनैतिक अचारण करेगा तो यह सूर्य उसे दण्डित करने में जरा भी रहम नहीं करेगा।

दृष्टि – नवम स्थानगत सूर्य की दृष्टि पराक्रम भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलतः जातक पराक्रमी होगा।

निशानी – ऐसे जातक का भाग्योदय प्रायः विलम्ब से होता है। ऐसा जातक प्रायः अपने पिता के विचारों का सम्मान नहीं करता।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – कन्यालग्न में चंद्रमा लाभेश होने से पापी है। सूर्य व्ययेश होने में अशुभ फलदाता है। इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययंश के साथ निरर्थक युति है। यहां नवम स्थान में दोनों ग्रह वृष राशि में होंगे। यहां बैठे दोनों ग्रह पराक्रम भाव (वृश्चिक राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक भाग्यशाली एवं प्रबल पराक्रमी होगा। यहां चंद्रमा उच्च का होने से ‘चन्द्रकृत राजयोग’ बनेगा। ऐसे जातक को मित्रों एवं व्यापारी वर्गीय लोगों से लाभ होगा।

2. सूर्य + मंगल – अष्टमेश भाग्य स्थान में होने से जातक के भाग्योदय में प्रारंभिक संघर्ष रहेगा।

3. सूर्य + बुध – दोनों ग्रह यहां बैठकर पराक्रम स्थान को देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिमान, भाग्यशाली पराक्रमी होगा। जातक का भाग्योदय 24 वर्ष की आयु में हो जायेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। जातक को पैतृक सम्पत्ति भी मिलेगी। जातक को मित्रों, परिजनों का सहयोग मिलता रहेगा।

4. सूर्य + गुरु – जातक धार्मिक होगा।

5. सूर्य + शुक्र – जातक महाभाग्यशाली होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के नवम स्थान में शनि मित्र राशि में हो तो सूर्य शत्रु राशि में होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभ स्थान (कर्क राशि) पराक्रम स्थान (वृश्चिक राशि) एवं छठे स्थान (कुम्भ राशि) को देखेंगे। ऐसे जातक का भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा। जातक पराक्रमी होगा एवं शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

7. सूर्य + राहु – जातक का भाग्योदय रुकावट के साथ होगा।

8. सूर्य + केतु – जातक का जीवन संघर्षपूर्ण होगा।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश दशम स्थान में में

दशम स्थान में सूर्य मिथुन (मित्र) राशि में है। यहां सूर्य दिक्बल को प्राप्त है। जिसके कारण उसके द्वादशेश होने का पापत्व नष्ट हो गया है। ऐसा जातक समाज का प्रभावशाली धनी व मानी व्यक्ति होगा। उसके जीवन में सभी कार्यों में उसे लगातार सफलता मिलती रहेगी। जातक तीव्र बुद्धि वाला इष्टबली होगा। उसे पुत्र, सवारी और प्रसिद्धि सभी बराबर मात्रा में मिलेंगे।

दृष्टि – दशम भावगत सूर्य की दृष्टि सुख स्थान धनु राशि पर होगी फलत: जातक को माता-पिता का सुख एवं सम्पत्ति मिलेगी।

निशानी – ऐसे व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में शीघ्र आगे बढ़ते हैं।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा एवं सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – यहां दशम स्थान में दोनों ग्रह मिथुन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि चतुर्थ भाव (धनु राशि) पर होगी। ऐसे जातक को माता-पिता की आंशिक सम्पत्ति मिलती है। जातक का सरकार में, राजनीति में दबदबा रहता है।

2. सूर्य + मंगल – राज्यपक्ष में विरोध रहेगा।

3. सूर्य + बुध – दशम स्थान में मिथुन राशिगत यह युति व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश के साथ युति होगी । बुध यहां स्वगृही होगा। फलतः ‘भद्र योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि हो रही है। यहां बैठकर दोनों ग्रह सुख स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। यहां यह युति ज्यादा खिलेंगी। जातक बुद्धिमान एवं राजा के समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यशाली होगा। राज्य में इसका वर्चस्व होगा। जातक की खुद की गाड़ी व बंगला होगा। जातक कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करूंगा।

4. सूर्य + गुरु – जातक धार्मिक स्वभाव का होगा।

5. सूर्य + शुक्र – जातक भाग्यशाली होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के दशम स्थान में शनि व सूर्य दोनों ही केन्द्रवर्ती होकर मित्रक्षेत्री होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव (सिंह राशि), चतुर्थ भाव (धनु राशि) एवं सप्तम भाव (मीन राशि) को देखेंगे। फलतः राज्य पक्ष (सरकार) से विवाद रहेगा। शत्रुनाश एवं कोर्ट-कचहरी को लेकर धन खर्च होगा। जातक की माता एवं पत्नी बीमार रहेंगी। जातक की पिता के साथ विचारधारा नहीं मिलेगी।

7. सूर्य + राहु – जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा।

8. सूर्य + केतु – जातक को सरकारी काम काज में विफलता मिलेगी।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश एकादश स्थान में

एकादश स्थान में सूर्य कर्क (मित्र) राशि में है। अपनी राशि (सिंह) से द्वादश स्थान में होने से इसका पापत्व नष्ट हो गया है। ऐसा जातक काफी धनी होगा एवं उसकी आयु लम्बी होगी। जातक को पत्नी, पुत्र और नौकरों का पूर्ण सुख मिलेगा। उसे राज्य एवं सरकारी क्षेत्र में पूरा सहयोग मिलेगा। ऐसे जातक को अल्प प्रयत्न से ही पूर्ण सफलता मिलती है।

दृष्टि – एकादश स्थानगत सूर्य की दृष्टि पंचम भाव (मकर राशि) पर होगी। फलत: जातक की संतति सुयोग्य होगी।

निशानी – जातक को पुत्र सुख जरुर मिलेगा ।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक सर्वांगीण उन्नति, यश व धन की प्राप्ति करेगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – इन दोनों की युति वस्तुतः लाभेश चंद्र की व्ययंश के साथ निरर्थक युति है। यहां एकादश स्थान में दोनों ग्रह कर्क राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव मकर राशि को देखेंगे। चंद्रमा यहां स्वगृही होगा। ऐसा जातक पढ़ा-लिखा होता है। उसे पुत्र-पुत्री दोनों की प्राप्ति होती है। जातक का सही भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा।

2. सूर्य + मंगल – मंगल यहां नीच का होगा। बड़े भाई के सुख में हानि होगी।

3. सूर्य + बुध –  एकादश स्थान में कर्क राशिगत यह युति व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव को देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिमान व शिक्षित होगा। उसकी संतान भी शिक्षित होगी। बुध यहां शत्रुक्षेत्री होगा। जातक व्यापारी होगा। उसकी रुचि व्यापार में होगी तथा व्यापार से धन की प्राप्ति होगी। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – गुरु यहां उच्च का होगा। बड़े भाई का पूर्ण सुख होगा।

5. सूर्य + शुक्र – बड़ी बहन का सुख होगा।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के एकादश में शनि व सूर्य दानां शत्रुक्षेत्री होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह लग्न स्थान (कन्या राशि), पंचम भाव (मकर राशि) एवं अष्टम भाव (मेष राशि) को देखेंगे। फलतः लाभ में कमी होगी, जातक का मन-मस्तिष्क अस्थिर रहेगा। जातक की संतान पढ़ी-लिखी होगी। जातक दीर्घायु को प्राप्त होगा।

7. सूर्य + राहु – लाभ में हानि। उद्योग में घाटा होगा।

8. सूर्य + केतु – लाभ में कमी महसूस होगी।

कन्या लग्न में सूर्य का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में सूर्य सिंह राशि में स्वगृही है। व्ययेश व्यय भाव में स्वगृही होने से सरल नामक विपरीत राजयोग बनता है। ऐसा जातक ऋण, रोग व शत्रु का सम्पूर्ण नाश करने में समर्थ होता है। ऐसा जातक अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का होता है। जातक परोपकार, धर्म व अध्यात्म के कामों में रुपया खर्च करता है।

दृष्टि – व्यय भावगत सूर्य की दृष्टि छठे स्थान (कुम्भ राशि) पर होगी। जातक शत्रुहन्ता होता है। जातक अपने द्वेषी को कभी क्षमा नहीं करता है।

निशानी – जातक के बायें नेत्र में विकार हो सकता है। जातक क्रोधी होता है।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक अधिक यात्राएं करेगा तथा धन, पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – यहां द्वादश स्थान में दोनों ग्रह सिंह राशि में होंगे। व्ययंश व्यय भाव में स्वगृही होने से सरल नामक विपरीत राजयांग बना। चंद्रमा बारहवें होने से ‘लाभभग योग’ बना। फलत: जातक को व्यापार में लाभ की कमी महसूस होगी। जातक को नेत्र पीड़ा (बाई आंख) में रहेंगी। जातक का कोई काम रुका नहीं रहेगा। दोनों ग्रह की दृष्टि छठे स्थान कुंभ राशि पर होने से जातक ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

2. सूर्य + मंगल – जातक मांगलिक होगा। विवाह सुख में विलम्ब होगा ।

3. सूर्य + बुध – द्वादश स्थान में सिंह राशिगत यह युति व्ययेश सूर्य की लग्नेश-दशमेश के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह छठे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। सूर्य स्वगृही होगा फलत: जातक बुद्धिशाली होगा। बलवान खर्चेश की लग्नेश के साथ की युति जातक को खर्चीले स्वभाव का बनायेगी। जातक राज्य क्षेत्र में उच्च पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा। जातक धार्मिक यात्राएं तीथांटन, देशाटन करेगा। व्ययेश सूर्य के बारहवें जाने से ‘विमल योग’ बना ऐसा जातक समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – विलम्ब विवाह या विवाह सुख में बाधा होगी।

5. सूर्य + शुक्र – भाग्य सुख में बाधा होगी।

6. सूर्य + शनि – कन्यालग्न के द्वादश स्थान में शनि शत्रुक्षेत्री और सूर्य स्वगृही होगा। जातक को नेत्र पीड़ा होगी। इन दोनों ग्रहों की इस स्थिति से हर्ष योग व सरल नामक विपरीत राजयांग बनेगा। दोनों ग्रहों की दृष्टि धन भाव (तुला राशि) षष्टम भाव (कुम्भ राशि) एवं भाग्य भाव (वृष राशि) पर होगी। फलत: जातक महाधनी एवं भाग्यशाली होगा तथा ऋण, रोग व शत्रु का नाश करने में सक्षम होगा।

7. सूर्य + राहु – यात्रा अधिक होगी।

8. सूर्य + केतु – तीर्थयात्रा होगी।

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