कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश
कुंभ लग्न में चंद्रमा षष्टेश होने से परम पापी एवं अशुभ फल प्रदाता है।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश प्रथम स्थान में
चंद्रमा यहां प्रथम स्थान में कुंभ (सम) राशि में होगा। चंद्रमा यहां अपने स्थान (कर्क राशि) में ‘षडाष्टक योग’ करके बैठा है। ऐसा जातक नाजुक शरीर तथा स्वतंत्र विचारों वाला होता है। ऐसा जातक ऋण व रोग से त्रस्त रहेगा। जातक में व्यवहार कुशलता एवं उच्च सामाजिक स्तर का अभाव होता है। जिसके कारण उसके विरोधी उत्पन्न होते रहते हैं।
दृष्टि – लग्नस्थ चंद्रमा की दृष्टि सप्तम भाव (सिंह राशि) पर है। जातक के गृहस्थ जीवन में खटपट रहेगी। जातक को माता का सुख कमजोर मिलेगा। जातक परदेश जाकर बसेगा।
निशानी – जातक की पत्नी सुंदर होगी पर पति-पत्नी दोनों में वैचारिक मतभेद रहेंगे।
दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा शुभ फल नहीं देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति लग्न में होने से जातक का जीवनसाथी अत्यधिक सुन्दर, आकर्षिक व्यक्तित्व का धनी एवं वफादार होगा।
2. चंद्र + मंगल – चंद्रमा के साथ मंगल ‘लक्ष्मी योग’ बनायेगा। जातक धनी होगा। यहां प्रथम स्थान में दोनों ग्रह कुंभ राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह चतुर्थ स्थान (वृष राशि), सप्तम भाव (सिंह राशि) एवं अष्टम भाव (कन्या राशि) को देखेंगे। ऐसा जातक धनवान होगा। उसको भौतिक उपलब्धियों सुख-साधनों की प्राप्ति होगी। जातक लम्बी उम्र का स्वामी होगा परन्तु उसकी आर्थिक उन्नति विवाह के बाद ही होगी।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को प्रखर कल्पना शक्ति के साथ तेज बुद्धि देगा।
4. चंद्र + गुरु – कुंभ लग्न के प्रथम स्थान में यह युति कुंभ राशि में होगी। बृहस्पति-चंद्र की युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यहां बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह पंचम भाव, सप्तम भाव एवं भाग्य भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। यहां ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि हो रही है।
फलतः ऐसे जातक का पहला भाग्योदय विवाह के बाद होता है। दूसरा भाग्योदय संतति के बाद होगा। जातक सौभाग्यशाली होगा तथा उसकी गिनती समाज के अग्रगण्य प्रतिष्ठित लोगों में होगी।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को माता का सुख देगा। ऐसा जातक ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जीयेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि ‘शश योग’ बनायेगा। जातक राजातुल्य पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली होगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु जातक को पूर्वाग्रही बनायेगा एवं रोग एवं शत्रु से जातक परेशान रहेगा।
8. चंद्र + केतु – ऐसा जातक स्थाई रूप से रोगी रहेगा।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वितीय स्थान में
चंद्रमा यहां द्वितीय स्थान में मीन (मित्र) राशि में होगा। चंद्रमा यहां अपने घर से नवम स्थान पर होने से शुभ फलदाई है। जातक की वाणी विनम्र होगी। माता के साथ अच्छे संबंध होंगे। मामापक्ष या ननिहाल से जातक को आर्थिक सहायता मिलेगी। जातक साहित्य का शौकीन व अनेक भाषाओं का जानकार होगा।
दृष्टि – द्वितीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि अष्टम स्थान (कन्या राशि) पर होगी। ऐसे जातक को जलभय रहेगा। जल से दूर रहना ही हितकर है।
निशानी – ऐसा जातक युद्ध, कलह एवं विवाद से दूर रहना पसंद करेगा।
दशा – चंद्रमा की दशा सामान्य जायेगी। पाप ग्रहों के सान्निध्य व प्रभाव से चंद्रमा मारक बन सकता है।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति द्वितीय स्थान में होने से जातक को ससुराल से धन मिलेगा।
2. चंद्र + मंगल – चंद्रमा के साथ मंगल ‘लक्ष्मीयोग’ बनायेगा। जातक धनवान होगा। यहां द्वितीय स्थान में दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह की दृष्टि पंचम स्थान (मिथुन राशि), अष्टम स्थान (कन्या राशि) एवं भाग्य स्थान (तुला राशि) पर होगी फलतः जातक धनवान होगा। सौभाग्यशाली भी होगा एवं लम्बी उम्र का मालिक होगा। परन्तु जातक की आर्थिक उन्नति प्रथम संतति के बाद ही होगी।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध होने से जातक धनी तथा विद्यावान होगा एवं विनम्र वाणी का स्वामी होगा।
4. चंद्र + गुरु – यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ है। ये दोनों शुभ ग्रह षष्टम् स्थान, अष्टम स्थान एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक को ऋण रोग व शत्रु का भय नहीं रहेगा। जातक इस योग के कारण दुर्घटना व अपघात से बचा रहेगा शत्रुओं का नाश करेगा। जातक को राज्य सरकार में मान-सम्मान मिलेगा। कोर्ट-कचहरी में विजय श्री का वरण होगा |
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ उच्च का शुक्र व्यक्ति को धनी एवं परम सौभाग्यशाली बनायेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि होने से जातक अपने पुरुषार्थ पराक्रम से काफी धन कमायेगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु धन की बरकत नहीं होने देगा। जातक आर्थिक परेशानियों में रहेगा।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु आर्थिक विषमताओं का द्योतक है।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश तृतीय स्थान में
चंद्रमा यहां तृतीय स्थान में मेष (सम) राशि में होगा। चंद्रमा अपने घर से दशम स्थान पर होगा अतः ऊर्जावान होगा। यहां चंद्रमा को षष्टेश होने का दोष नहीं रहता। जातक क्रान्तिकारी विचारों वाला एवं पराक्रमी होता है।
चंद्रमा मातृ कारक चौथे भाव से बारहवें स्थान पर होने के कारण माता का सुख कमजोर होगा। माता की मृत्यु छोटी उम्र में ही संभव है।
दृष्टि – तृतीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि नवम भाव (तुला राशि) पर होगी। ऐसे जातक का भाग्योदय तीव्र गति से होता है। जातक विरोध एवं विरोधियों से नहीं घबराता।
निशानी – ऐसे जातक का पिता धनवान तथा यशस्वी होगा। जातक की बहनें अधिक होंगी।
दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति तृतीय स्थान में होने से जातक महान् पराक्रमी होगा। जातक को बड़े भाई का सुख प्राप्त नहीं होगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां दोनों ग्रह तृतीय स्थान में मेष राशि के होंगे। मेष राशि में मंगल स्वगृही होगा। फलत: ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह षष्टम भाव (कर्क राशि) भाग्य भाव (तुला राशि) एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक धनवान होगा तथा ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक परम सौभाग्यशाली होगा तथा कोर्ट-कहचरी में सदैव विजय प्राप्त करने वाला भाई-बहनों से युक्त होगा।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध होने से भाई-बहनों का पूर्ण सुख होगा। जातक के मित्र बहुत होंगे।
4. चंद्र + गुरु – बृहस्पति चंद्र की यह युति षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह सप्तम भाव, भाग्यभवन एवं लाभस्थान को देखेंगे। फलत: ऐसे जातक का भाग्योदय 24वें वर्ष में अथवा विवाह के तत्काल बाद होता है। व्यापार-व्यवसाय द्वारा धन की प्राप्ति होगी। ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है। उसकी गिनती समाज के गिने-चुने भाग्यशाली व्यक्तियों में होगी।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को उत्तम पराक्रम के साथ परम सौभाग्यशाली भी बनायेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि की युति जीर्ण रोग उत्पन्न करेगी। वायु विकार रहेगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु की युति से जातक को क्षय रोग होगा। फेफड़ों में बीमारी रहेगी।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु की युति छाती में दर्द देगी।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश चतुर्थ स्थान में
चंद्रमा यहां चौथे स्थान में उच्च का है। वृष राशि के तीन अंशों में चंद्रमा परमोच्च का कहलाता है। ऐसे जातक की कुण्डली में ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि होती है। जातक को मकान, वाहन का सुख श्रेष्ठ होता है पर मातृ कारक भाव में होने से माता का सुख कमजोर मिलेगा।
दृष्टि – चतुर्थ भावगत चंद्रमा की दृष्टि दशम भाव (वृश्चिक राशि) पर होने से जातक को चंद्रमा से संबंधित धंधों में लाभ होगा। यथा मेडिकल दवा. केमिकल जल से उत्पन्न वस्तु, रत्न ज्वेलरी, होटल के कार्य, खाद्य सामग्री के धंधों में लाभ होगा।
निशानी – ऐसा जातक अपने शत्रु को भी क्षमा कर, उससे प्रेम करता है। जातक क्षमाशील होता है।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति चतुर्थ भाव में होने से ‘यामिनीनाथ योग’ बनेगा। जातक को ससुराल से धन मिलेगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां चतुर्थ स्थान में दोनों ग्रह वृष राशि में होंगे। वृष राशि में चंद्रमा उच्च का होकर ‘यामिनीनाथ योग’ बनायेगा। मंगल यहां दिक्बली होने से ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव (सिंह राशि), दशम भाव (वृश्चिक राशि) एवं एकादश भाव (धनु राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे फलतः जातक महाधनी होगा। जातक व्यापार-व्यवसाय व उद्योग में प्रतिष्ठित होगा तथा राज्य (सरकार) या राजनीति में पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा। जातक का आर्थिक विकास विवाह के बाद होगा।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को माता, भवन एवं वाहन का पूर्ण सुख देगा। ऐसा जातक बहुत अच्छा ‘प्लानिंग मास्टर’ होगा ।
4. चंद्र + गुरु – यह युति वस्तुत षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां चंद्रमा उच्च का होगा तथा केन्द्र स्थान में इन तीनों ग्रहों की उपस्थिति के कारण ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘कुलदीपक योग’ की सृष्टि होगी। ये दोनों ग्रह यहां अष्टम स्थान, दशम भाव एवं व्यय भाव का पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।
फलत: जातक का दुर्घटना एवं आघात से बचाव होता रहेगा। जातक समाज के शुभकार्य, परोपकार एवं धार्मिक कार्यों में रुपया खर्च करता रहेगा। जातक का राज्यपक्ष (सरकार) कोर्ट-कचहरी में दबदबा बना रहेगा।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र ‘किम्बहुना नामक’ उत्तम कोटि का राजयोग बनायेगा। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली, सौभाग्यशाली होगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक को भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त करेगा। जातक परिश्रमी होगा। ऐसा जातक कहीं भी हो मरते वक्त स्वदेश जरुर लौटेगा |
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु जातक की माता को अकाल मृत्यु देगा।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु वाहन दुर्घटना दे सकता है।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश पंचम स्थान में
चंद्रमा अपने घर (कर्क राशि) से बारहवें स्थान पर होंगे। ऐसे जातक प्राय: चंचल व चपल होते हैं तथा अपनी बात को बदलने में देरी नहीं लगती। पुरुषार्थ की कमी रहती हैं। जातक की प्रारम्भिक शिक्षा में बाधा आयेगी। जातक मंत्र-तंत्र का जानकार होगा।
दृष्टि – पंचमस्थ चंद्रमा की दृष्टि एकादश स्थान (धनु राशि) पर होगी। ऐसे जातक को व्यापार से लाभ होगा। जातक का मित्र वर्तुल विस्तृत होगा। सड़क चलते लोग जातक के अनायास मित्र बन जाते हैं।
निशानी – ऐसे जातक के कन्या संतति अधिक होगी एवं पुत्र संतान का प्रायः जब तक कोई शुभ योग न हो अभाव बना रहेगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति पंचम भाव में होने से प्रथम संतति कन्या होगी अथवा प्रथम संतति का नाश होगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां पंचम स्थान में दोनों ग्रह मिथुन राशि में होंगे। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव (कन्या राशि) लाभ स्थान (धनु राशि) एवं व्यय भाव (मकर राशि) को देखेंगे। फलत: जातक धनी होगा। प्रजावान होगा। लम्बी उम्र का स्वामी होगा। अच्छे व्यापार व्यवसाय का स्वामी होगा। परन्तु जीवन में खर्च की बाहुल्यता रहेगी।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि दिलायेगा। जातक को कन्या संतति अधिक होगी।
4. चंद्र + गुरु – यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह दशम भाव, व्यय भाव एवं धन स्थान को देखेंगे। फलतः जातक परिश्रमी होगा तथा उसे धन की यथेष्ट प्राप्ति होती रहेगी परन्तु धन का खर्च शुभ कार्यों में परोपकार के कार्यों में होता रहेगा। जातक का राज्यपक्ष सरकार से सम्मान मिलता रहेगा। कोर्ट-कहचरी में विजय मिलेगी।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को विद्या, संगीत, अभिनय व लेखन कार्य में सफलता दिलायेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक को उत्तम संतति का सुख देगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु की युति संतान प्राप्ति में बाधक है।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु गर्भपात करायेगा।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश षष्टम स्थान में
चंद्रमा यहां छठे स्थान में स्वगृही होगा। षष्टेश के षष्टम में स्वगृही होने से ‘हर्षनामक विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनवान व भौतिक सुख-सुविधाएं से युक्त होगा। जातक की माता छोटी उम्र में गुजर जायेगी। जातक को माता का सुख नहीं मिल पायेगा। चंद्रमा यहां
जलतत्त्व में होने से जातक नशेबाज (शराबी) होगा।
दृष्टि – षष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि व्यय भाव (मकर राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। गुप्त शत्रु जातक को परेशान करेंगे। जातक को मामा व मौसी का सुख प्राप्त होता है।
निशानी – ऐसा मनुष्य अपनी जाति, स्वजन, इष्टमित्र, संबंधियों के साथ शत्रु (दुश्मन) जैसा व्यवहार करता है।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा अनिष्ट फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति छठे स्थान में होने से चंद्रमा स्वगृही होकर ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी, मानी, अभिमानी होगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां षष्टम स्थान में दोनों ग्रह कर्क राशि में होंगे। कर्क राशि में चंद्रमा स्वगृही एवं मंगल नीच का होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। षष्टेश के छठे स्थान में स्वगृही होने से ‘हर्षनामक विपरीत राजयोग’ भी बनेगा। फलत: जातक धनवान होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि भाग्य स्थान (तुला राशि) व्यय भाव (मकर राशि) एवं लग्न भाव (कुंभ राशि) पर होगी। फलत: जातक भाग्यशाली तथा लगातार उन्नति मार्ग की ओर आगे बढ़ने वाला होगा। परन्तु अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का जातक होगा।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘संतानहीन योग’ एवं सरल नामक विपरीत राजयोग बनायेगा। ऐसा जातक धनी होगा। पर प्रारंभिक विद्या प्राप्ति में बाधा आयेगी।
4. चंद्र + गुरु – कुंभ लग्न के छठे स्थान में यह युति कर्क राशि में हो रही है। यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां चंद्रमा स्वगृही एवं बृहस्पति उच्च का होगा। दुःस्थान में दुःस्थान के स्वामी का जाना शुभ माना गया है। यहां बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह दशम भाव व्यय भाव एवं धनभाव को देखेंगे। फलत: जातक धन तो कमायेगा पर धन शुभ कार्यों में खर्च होता रहेगा। बचत कम होगी। राज्यपक्ष सरकार से सरकारी अधिकारियों से लाभ होगा। इस योग के कारण जीवन में संघर्ष के बाद सफलता अवश्य मिलेगी।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। ऐसे जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु काफी परेशानी उठानी पड़ेगी।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक की आयु को घटायेगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु होने से जातक के प्रकट शत्रु बहुत होंगे।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु गुप्त शत्रुओं की संख्या में वृद्धि करेगा।
विशेष – चंद्रमा छठे और शनि आठवें हों तो जातक की उम्र कम होगी।

कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश सप्तम स्थान में
चंद्रमा यहां सातवें स्थान में सिंह (मित्र) राशि में है। यहां चंद्रमा अपने घर (कर्क राशि) से दूसरे स्थान पर है। जातक को माता का सुख मिलेगा। जातक को जीवनसाथी सुन्दर मिलेगा। वैवाहिक सुख उत्तम होगा। जातक परदेश जाकर अच्छा धन कमायेगा। भागीदारी के धंधे में लाभ होगा।
दृष्टि – सप्तमस्थ चंद्रमा की दृष्टि लग्न स्थान (कुंभ राशि) पर होगी। जातक की उन्नति विवाह के बाद होगी।
निशानी – ऐसा जातक प्रेम विवाह करेगा। ऐसा जातक धनवान एवं कीर्तिवान् होता है।
दशा – चंद्रमा केन्द्रस्थ होने से उसकी दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति सातवें होने से सूर्य स्वगृही होगा। जातक की पत्नी धनी होगी। जातक को ससुराल से लाभ होता रहेगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां सप्तम स्थान में दोनों ग्रह सिंह राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव (वृश्चिक राशि), लग्न स्थान (कुंभ राशि) एवं धन स्थान (मीन राशि) को देखेंगे। फलतः जातक धनी होगा जातक उद्यम करके धन कमायेगा तथा निरन्तर उन्नति मार्ग की ओर बढ़ता रहेगा। जातक की आर्थिक स्थिति में सुधार विवाह के बाद होगा। जातक का राजनीति में भी वर्चस्व रहेगा।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को सुन्दर एवं पढ़ी-लिखी पत्नी देगा।
4. चंद्र + गुरु – सिंह राशि में यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं धन स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः जातक को धन लाभ होगा तथा उसके व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होगा। उसे व्यापार-व्यवसाय में बराबर लाभ होता रहेगा। जातक जीवन में सफल व्यक्ति होगा।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र होने से जातक का जीवनसाथी सौभाग्यशाली एवं सुंदर शरीर वाला होगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि ‘लग्नाधिपति योग’ बनायेगा। जातक को परिश्रमपूर्वक किये गये प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु दाम्पत्य सुख में कटुता लायेगा। बिछोह की स्थिति भी आ सकती है।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु दाम्पत्य सुख में विषमता उत्पन्न करंगा।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश अष्टम स्थान में
चंद्रमा यहां अष्टम स्थान में कन्या (शत्रु राशि) में है। चंद्रमा की इस स्थिति से ‘हर्षनामक विपरीत राजयोग’ बना। जातक धनवान एवं भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त सम्पन्न व्यक्ति होगा। ऐसा जातक परदेश जाकर अच्छा कमाता है। जातक को माता का सुख नहीं के बराबर होगा। ऐसा जातक सदैव बीमार रहता है।
दृष्टि – अष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि धन भाव (मीन राशि) पर होगी। जातक की भाषा मीठी व विनम्र होगी।
निशानी – जातक को पेट, प्रोस्टेट, मूत्राशय की बीमारी होगी।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा अशुभफल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति आठवें होने पर अंग-भंग का योग बनता है। अचानक दुर्घटना संभव है।
2. चंद्र + मंगल – यहां अष्टम स्थान में दोनों ग्रह कन्या राशि में होंगे। कन्या राशि में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा पर षष्टेश होकर चंद्रमा के अष्टम स्थान में जाने से ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बनेगा। मंगल के कारण ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘राज्यभंग योग’ भी बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि लाभ स्थान (धनु राशि) धन स्थान (मीन राशि) एवं पराक्रम स्थान (मेष राशि) पर होगी। निसन्देह मंगल की यह स्थिति ज्यादा सुखद नहीं है। जातक धनवान तो होगा पर भाई कुटम्बियों से त्रस्त रहेगा। कोर्ट-कचहरी में शत्रु परेशान करते रहेंगे।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘संतानहीन योग’ एवं ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ उत्पन्न करता है। जातक को संतान संबंधी चिंता व परेशानी रहेगी।
4. चंद्र + गुरु – कुंभ लग्न के आठवें स्थान में यह युति कन्या राशि के अंतर्गत हो रही है। कुंभ लग्न में बृहस्पति, चंद्र की यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। बृहस्पति- चंद्रमा के अष्टम स्थान में जाने से ‘धनभंग योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बना। चंद्रमा शत्रु क्षेत्री है परन्तु षष्टेश चंद्र का आठवें जाना शुभ संकेत है। ये दोनों ग्रह व्यय भाव धन भाव एवं सुख स्थान पर है।
फलत: ऐसे जातक को धन प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा। जातक दीर्घायु होगा। उसमें रोग से संघर्ष करने की पूर्ण शक्ति होती है। जातक को भौतिक सुख संसाधनों की प्राप्ति सहज में होगी। जातक को उत्तम वाहन सुख मिलेगा।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करेगा। जातक को भौतिक सुख की प्राप्ति कठिनता से होगी।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘विमल नामक विपरीत राजयोग’ बनायेगा । जातक निश्चय ही धनी एवं साधन सम्पन्न होगा।
7. चंद्र + राहू – चंद्रमा के साथ राहु गुप्त एवं प्रकट शत्रुओं की वृद्धि करेगा।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु जातक को गुप्त रोग या गुप्त बीमारी देगा।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश नवम स्थान में
चंद्रमा यहां नवम स्थान में तुला (सम) राशि में है। यहां चंद्रमा अपनी राशि से चौथे स्थान पर है। फलतः माता के साथ संबंध ठीक होंगे। ऐसे जातक को कभी व्यापार में हानि नहीं होती। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे।
दृष्टि – नवमस्थ चंद्रमा की दृष्टि पराक्रम स्थान (मेष राशि) पर होगी। ऐसा जातक पराक्रमी होगा तथा उसे धन, यश, पद-प्रतिष्ठा, माता-पिता का पूरा-पूरा सुख मिलेगा।
निशानी – जातक को मामा के यहां से लाभ, अपने से नीचे काम करने वाले से लाभ प्राप्त होगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति नवमें स्थान पर होने से सूर्य नीच का होगा पर जातक भाग्यशाली एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां नवम स्थान में दोनों ग्रह तुलाराशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव (खर्च स्थान) पराक्रम स्थान (मेष राशि) एवं चतुर्थ स्थान (वृष राशि) को देखेंगे। फलतः जातक धनवान होगा। पराक्रमी होगा। खर्चीले स्वभाव का होगा। जीवन में सभी प्रकार के भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति सहज में ही हो जायेगी।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक का भाग्योदय अर्जित विद्या द्वारा होगा। जातक बुद्धिबल से आगे बढ़ेगा।
4. चंद्र + गुरु – कुंभ लग्न के नवमें स्थान में बृहस्पति-चंद्र की युति तुला राशि में होंगी। कुंभ लग्न में बृहस्पति-चंद्र की युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह लग्नस्थान, पराक्रमस्थान एवं पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः जातक खुद पढ़ा-लिखा होगा। उसको पिता की सम्पत्ति मिलेगी तथा उसकी संतानें भी पढ़ी लिखी होगी। जातक का सर्वागीण विकास चहुं ओर से होगा। जातक महान् पराक्रमी एवं यशस्वी होगा।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ स्वगृही शुक्र जातक को माता-पिता का सुख व सम्पत्ति दिलायेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि उच्च का होगा। जातक परम सौभाग्यशाली होगा। उसके पास उत्तम वाहन होंगे।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु जातक के भाग्योदय में बाधक है।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु जातक को महत्वाकांक्षी बनायेगा। जातक की महत्वाकांक्षाएं सार्थक होगी।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश दशम स्थान में
चंद्रमा यहां दशम स्थान में नीच का होगा। वृश्चिक के तीन अंशों पर चंद्रमा परम नीच का होता है। चंद्रमा यहां ‘दिग्बल’ से शून्य होता है। फलत: सांसारिक सुख एवं संतान सुख में न्यूनता देता है। जातक को विद्या का सुख उत्तम रहता है। जातक को विषभोजन का भय रहता है।
दृष्टि – दशमस्थ चंद्रमा की दृष्टि चतुर्थभाव (वृष राशि) पर होगी। फलत: जातक को निजी भवन एवं वाहन का सुख मिलेगा। जातक चंद्रमा संबंधी कार्यों से धन लाभ प्राप्त करेगा।
निशानी – ऐसे जातक को परदेश में अच्छा लाभ मिलेगा। जातक प्रखर वक्ता होगा।
दशा – यहां चंद्रमा केन्द्रवर्ती होने से इसकी दशा-अन्तर्दशा शुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति दशमें स्थान में होगी। जहां चंद्रमा नीच का होगा। फिर भी ऐसा जातक पराक्रमी व प्रभावशाली होगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां दशम स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में होंगे। मंगल यहां स्वगृही एवं चंद्रमा नीच का होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। मंगल दिक्बली ‘होकर ‘कुलदीपक योग’ भी बनायेगा। ‘पद्मसिंहासन योग’ होने से यहां महालक्ष्मी योग की सृष्टि हुई। फलतः ऐसा जातक महाधनी होगा। दोनों ग्रह की दृष्टि लग्न स्थान (कुंभ राशि) चतुर्थ भाव (वृष राशि) एवं पंचम भाव (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः जातक निरन्तर उन्नति मार्ग की ओर आगे बढ़ता हुआ उत्तम वाहन व भौतिक सुखों को प्राप्त करेगा। जातक की संतान भी प्रतिष्ठित होगी।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को उत्तम वाहन, भवन एवं नौकर का सुख मिलेगा।
4. चंद्र + गुरु – कुंभ लग्न के दसवें स्थान में बृहस्पति-चंद्र की युति वृश्चिक राशि में हो रही है। कुंभलग्न में बृहस्पति-चंद्र की यह युति, वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। यहां चंद्रमा नीच राशि में होगा। ये दोनों ग्रह केन्द्र होकर ‘कुलदीपक योग’, ‘यामिनीनाथ योग’ बनाते हुए धनस्थान, सुखस्थान एवं षष्टम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।
फलतः जातक को राज्यपक्ष से लाभ होगा। धनप्राप्ति होती रहेगी। जातक सांसारिक सभी सुख संसाधन सहज में प्राप्त होंगे। जातक के पास एक से अधिक वाहन होंगे। जातक शत्रु का सम्पूर्ण नाश करने में सक्षम होगा। जातक की गिनती समाज के अग्रगण्य व्यक्ति में होगी।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को एक से अधिक वाहन एवं मकान दिलायेगा ।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक को करोड़पति बनायेगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु राजसुख में बाधक है। जातक को सरकारी कर्मचारी परेशान करेंगे।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु जातक को उच्च महत्वाकांक्षी बनायेगा। जातक कीर्तिवान् होगा।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश एकादश स्थान में
चंद्रमा यहां एकादश स्थान में धनु (सम) राशि में होगा। चंद्रमा अपने घर से छठे स्थान पर होकर ‘षडाष्टक योग’ बनायेगा। जातक विद्यावान होगा तथा मंत्र यंत्र-तंत्र विद्या का जानकार होगा।
दृष्टि – एकादश भावगत चंद्रमा की दृष्टि पंचम भाव (मिथुन राशि) पर होगी। ऐसे जातक को कन्या संतति की बाहुल्यता रहेगी।
निशानी – ऐसे जातक के पास बहुत धन होगा। जातक कीर्तिवान् होगा, गुणवान व साहसी होगा ।
दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति एकादश स्थान में होने से जातक का व्यवसाय में लाभ होगा।
2. चंद्र + मंगल – यहां एकादश स्थान में दोनों ग्रह धनुराशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टियां धन स्थान (मीन राशि) पंचम स्थान (मिथुन राशि) एवं षष्टम् स्थान (कर्क राशि) पर होगी। फलत: जातक धनवान होगा। ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक की आर्थिक सम्पन्नता पुत्र जन्म के बाद बढ़ेगी। ऐसे जातक की संतति भी धनवान होगी ।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को बड़े भाई का सुख देगा। जातक उत्तम संतति का पिता होगा।
4. चंद्र + गुरु – कुंभ लग्न के के चंद्र-बृहस्पति की युति एकादश स्थान में धनु राशि के अंतर्गत होगी। यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति होगी। बृहस्पति यहां स्वगृही होगा तथा उसकी दृष्टि पराक्रम स्थान, पंचम भाव एवं सप्तम भाव पर होगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा तथा प्रथम संतति के बाद जातक का दूसरा भाग्योदय होगा। जातक को व्यापार व्यवसाय से लाभ होगा। जातक के परिजन व मित्र जातक के सहायक रहेंगे। जातक महान पराक्रमी व यशस्वी होगा।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को बड़ा उद्योगपति बनायेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक को व्यापार एवं परिश्रम का लाभ दिलायेगा ।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु व्यापार में नुकसान एवं बड़े भाई की हानि करायेगा।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु व्यापार में उतार-चढ़ाव लाता रहेगा।
कुंभ लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वादश स्थान में
चंद्रमा यहां द्वादश स्थान में मकर (सम) राशि में है। चंद्रमा की इस स्थिति से ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बना रहा है। ऐसा जातक धनवान, भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त, सम्पन्न व्यक्ति होता है।
ऐसा जातक सदैव बीमार रहता है तथा मनीषियों से द्वेष रखता है। जातक को माता का सुख नहीं मिलेगा। जातक को देश-परदेश की यात्रा से लाभ होगा।
दृष्टि – द्वादश भावगत चंद्रमा की दृष्टि अपने ही घर छठे स्थान (कर्क राशि) पर होगी। फलतः जातक गुप्त शत्रुओं से परेशान रहेगा।
निशानी – जातक को डाईबीटिज की बीमारी, गुप्त रोग होंगे।
दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा अनिष्ट फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्र + सूर्य – षष्टेश व सप्तमेश की युति द्वादश स्थान में नेत्रपीड़ा एवं व्यर्थ की यात्राएं देगी।
2. चंद्र + मंगल – यहां द्वादश स्थान में दोनों ग्रह मकर राशि में होंगे। मकर में मंगल उच्च का होगा। यहां चंद्रमा षष्टेश होकर द्वादश में होने से ‘हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बनायेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह षष्टम् स्थान (कर्क राशि) एवं सप्तम स्थान (सिंह राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः ऐसा जातक धनी होगा। ऋण-रोग एवं शत्रुओं का सम्पूर्ण नाश करने में सक्षम होगा पर जातक का आर्थिक विकास विवाह के बाद होगा।
3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘संतानहीन योग’ एवं ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ करायेगा। ऐसा जातक धनी होगा। ऐश्वर्य सम्पन्न होगा। पर उसे संतान की चिंता रहेगी।
4. चंद्र + गुरु – बृहस्पति-चंद्र की यह युति वस्तुतः षष्टेश चंद्रमा की धनेश-लाभेश बृहस्पति के साथ युति है। बृहस्पति यहां द्वादश भाव में नीच का होगा। जहां से बृहस्पति सुखस्थान, षष्टम भाव एवं अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा।
फलत: धन में कमी, लाभ में कमी महसूस करेंगे। फिर भी जातक को ऋण रोग व शत्रु को भय नहीं रहेगा। जातक दीर्घायु होगा। उसे प्राकृतिक आकस्मिक आपदाओं से बचाव होगा। जातक को वाहन सुख मिलेगा एवं भौतिक संसाधनों की प्राप्ति सहज में होती रहेगी। जातक को कोई भी वस्तु जीवन में आसानी से नहीं मिलेगी पर संघर्ष के बाद सफलता निश्चित है ।
5. चंद्र + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। ऐसा जातक जीवन में काफी कष्ट उठायेगा।
6. चंद्र + शनि – चंद्रमा के साथ शनि ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘विमल नामक विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी मानी होगा पर परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।
7. चंद्र + राहु – चंद्रमा के साथ राहु भारी आर्थिक परेशानियां एवं दिक्कतें पैदा करेगा।
8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु होने से जातक धार्मिक एवं परोपकारी जीवन जीयेगा।
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