कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश

कुंभ लग्न में सूर्य सप्तमेश होने से अशुभ फलदाता है। सूर्य लग्नेश शनि का शत्रु है, फलतः द्वितीय मारकेश का काम करेगा।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश प्रथम स्थान में

सूर्य यहां प्रथम स्थान में कुंभ (शत्रु) राशि में होगा। सूर्य पितृ कारक होकर पितृ स्थान से कोण में एवं अपने घर (सिंह राशि) से सातवें होने से सातवें व नवम भाव का फल ठीक देगा।

ऐसा जातक तुनकमिजाजी होगा। उसे पिता की सम्पत्ति मिलेगी। ऐसा जातक परदेश जायेगा तो उसे अच्छा मान-सम्मान मिलेगा व वह धन कमायेगा। भागीदारी के कार्यों में भी सफलता मिलेगी। पर संघर्ष के बिना कोई सफलता नहीं मिलेगी।

दृष्टि – लग्नस्थ सूर्य की दृष्टि सप्तम भाव अपने ही घर (सिंह राशि) पर होगी। फलतः जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा।

निशानी – जातक मध्यम कद, गोलाकार मुख एवं आकर्षक चेहरे वाला होगा। जातक की संतानें जातक से अलग व दूर रहेंगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति लग्न में होने से जातक का जीवनसाथी अत्यधिक सुन्दर, आकर्षक व्यक्तित्व का धनी एवं वफादार होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल होने से जातक पराक्रमी होगा। क्रोधी होगा एवं बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा।

3. सूर्य + बुध – प्रथम स्थान में कुंभ राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायेंगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव को देखेंगे जो कि सूर्य का स्वयं का घर है। ऐसा जातक बुद्धिशाली एवं धनवान होगा। विवाह के बाद जातक का भाग्योदय होगा। जातक अपने कुल कुटुम्ब का नाम रोशन करेगा। जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति होने से ससुराल से धन मिलेगा, जातक की पत्नी धार्मिक व पतिव्रता होगी।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र होने से राज सरकार से लाभ होगा। जातक बड़ा पद व प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह कुंभ राशि में होंगे। सूर्य शत्रुक्षेत्री तो शनि यहां स्वगृही होगा। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की यह युति लग्न में होने से जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाला होगा। जातक की पत्नी सुन्दर होगी परन्तु दुर्घटना से अंग भंग होने का खतरा बना रहेगा। जातक का सही उन्नति पिता की मृत्यु के बाद होगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु जातक को स्थापित होने में दिक्कतें डालेगा। जातक नास्तिक होगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु कीर्तिदायक है। जातक विदेशी लोगों से मित्रता बढ़ायेगा।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश द्वितीय स्थान में

सूर्य यहां द्वितीय स्थान में मीन (मित्र) राशि में होगा। सूर्य अपने घर से आठवें एवं पितृ कारक स्थान नवम भाव से छठे होने से जातक की पिता का सुख एवं पिता की सम्पत्ति नहीं मिलेगी। जातक का भाषा कठोर होगी। उसकी दाईं आंख कमजोर होगी। जातक को दंत रोग संभव है।

दृष्टि – द्वितीयस्थ सूर्य की दृष्टि अष्टम भाव (कन्या राशि) पर होगी। ऐसा जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में पूर्णतः सक्षम होता है।

निशानी – ऐसा व्यक्ति आलसी व कामी होता है। उसके हृदय में सदैव महिलाओं का ही ध्यान रहता है तथा वह प्रत्येक कार्य सुस्ती से प्रारम्भ करता है।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा कष्टदायक होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति द्वितीय स्थान में होने से जातक को ससुराल से धन मिलेगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल जातक को भूमि व भाइयों से धन दिलायेगा। जातक को ससुराल से भी धन मिलता रहेगा।

3. सूर्य + बुध – द्वितीय स्थान में मीन राशिगत यह युति वस्तुतः सूर्य की पंचमेश-अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायेगी । बुध यहां नीच राशि का होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम स्थान को देखेंगे।

फलत: जातक बुद्धिशाली व धनवान होगा। उसकी आमदनी के जरिए दो-तीन प्रकार के रहेंगे। विवाह के बाद जातक धनवान होगा। जातक की आयु लम्बी होगी। जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – स्वगृही बृहस्पति के साथ सूर्य ‘कलत्रमूल धन योग’ बनायेगा। जातक को ससुराल की सम्पत्ति विरासत में मिलेगी।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ उच्च का शुक्र जातक को माता व पत्नी का पूर्ण सुख देगा। माता व पत्नी दोनों धनवान होंगी।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे सूर्य यहां मित्र क्षेत्री तो शनि शत्रु क्षेत्री होगा। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य को यह युति धन भाव में होने से जातक को पत्नी द्वारा धन मिलेगा। धन संग्रह में कठिनाइयां आयेंगी। पिता की मृत्यु के बाद जातक धनी होगा।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु धन प्राप्ति में बाधक है।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु धन संग्रह में बाधक है।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश तृतीय स्थान में

सूर्य यहां तृतीय स्थान में उच्च का होगा। मेष राशि के दस अंशों तक सूर्य परमोच्च का कहलाता है। जातक स्वयं धनी व पराक्रमी होगा। जातक का जीवनसाथी भी धनी व पराक्रमी होगा। फलत: पति-पत्नी दोनों में अहम् का टकराव होता रहेगा। गृहस्थ जीवन में नोक-झोंक बनी रहेगी। जातक अपने प्रयत्न से खूब यश-कीर्ति अर्जित करेगा।

दृष्टि – सूर्य अपने स्थान से नवमं होकर नवम भाव (तुला राशि) को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। ऐसे जातक को पिता का सुख एवं पिता की सम्पत्ति मिलेगी।

निशानी – जातक का ससुराल धनवान होगा। ऐसे जातक को पड़ौसी व मित्र अच्छे मिलेंगे।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा में पराक्रम बढ़ेगा। जनसम्पर्क से लाभ होगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति तृतीय स्थान में होने से जातक महान् पराक्रमी होगा। पर बड़े भाई का सुख नहीं होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनायेगा। जातक को परिजनों व मित्रों से लाभ होगा। जातक महान पराक्रमी होगा।

3. सूर्य + बुध – तृतीय स्थान में मेष राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। सूर्य यहां उच्च का होगा। जहां बैठ कर दोनों ग्रह भाग्य भवन को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः जातक महान् पराक्रमी होगा। जातक भाई-बहनों, मित्र-परिजनों का सहयोग जीवन में मिलता रहेगा। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक धनवान होगा तथा समाज में अग्रगण्य लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति ससुराल से धन लाभ करायेगा।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र भाई-बहनों का सुख एवं पराक्रम में वृद्धि करेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह ‘मेष राशि’ में होंगे। सूर्य यहां उच्च का, शनि नीच का होकर ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा। जातक पराक्रमी होगा। उसे छोटे-बड़े दोनों भाइयों का सुख नहीं रहेगा। जाति के अलावा अन्य लोगों में बड़ी कीर्ति होगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु भाइयों में मनमुटाव एवं छोटे भाई के नष्ट करेगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु समाज में बेहद कीर्ति देगा |

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश चतुर्थ स्थान में

सूर्य यहां चतुर्थ स्थान में वृष (शत्रु) राशि में होगा। सूर्य पितृ स्थान नवम भाव से आठवें स्थान पर होने से पिता के साथ मतभेद मनमुटाव करायेगा। ऐसे जातक को जीवनसाथी अच्छा मिलेगा। जातक को मकान का सुख भी उत्तम मिलेगा।

दृष्टि – सूर्य अपने स्थान से दसवें बैठकर दशम भाव (वृश्चिक राशि) पर दृष्टि करेगा, फलतः सरकारी नौकरी या सरकारी द्वारा आर्थिक लाभ मिलेगा।

निशानी – ऐसे जातक के दांतों में कोई-न-कोई रोग अवश्य होगा।

दशा – सूर्य की दशा-महादशा अच्छी जायेगी पर सूर्य की दशा में हृदय रोग की संभावना प्रबल रहेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति चतुर्थ भाव में होने से ‘यामिनीनाथ योग’ बनेगा। जातक को ससुराल से धन मिलेगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल जातक को माता की सम्पत्ति दिलायेगा। जातक के पास एक से अधिक वाहन होंगे।

3. सूर्य + बुध – चतुर्थ स्थान में वृष राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायेगी । बुध चतुर्थ होने से ‘कुलदीपक योग’ बनेगा। यहां से दोनों ग्रह दशम भाव को देखेंगे। फलतः जातक पढ़ा-लिखा एवं पराक्रमी होगा तथा उसकी बुद्धि तेज रहेगी। जातक के पास एक से अधिक वाहन होंगे। भवन का सुख भी उत्तम होगा। जातक अपने कुल का नाम उत्तम कार्यों के कारण रोशन करंगा एवं समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति जातक को धनी बनायेगा। जातक के पास एक से अधिक मकान होगा।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ स्वगृही शुक्र ‘मालव्य योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली व पराक्रमी होगा। माता-पिता का सुख पूर्ण रहेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह वृष राशि’ में हैं। सूर्य शत्रु क्षेत्री तो शनि मित्र क्षेत्री होगा। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की युति चतुर्थ भाव में होने से जातक को माता-पिता की सम्पत्ति नहीं मिलेगी। माता की मृत्यु छोटी आयु में होगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु जातक की माता व सासु को बीमार करेगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु जातक की माता व पत्नी को बीमारी देगा।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश पंचम स्थान में

सूर्य यहां पंचम स्थान में मिथुन (सम) राशि में होगा। पितृ कारक नवम भाव से नवम स्थान पर होने से पिता के साथ अच्छे संबंध होंगे। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। ऐसे जातक को जीवनसाथी बहुत अच्छा मिलेगा। जिसके साथ खूब निभेगी। जातक के मित्र भी अच्छे होंगे।

दृष्टि – सूर्य अपने स्थान से ग्यारहवें होकर ग्यारहवें स्थान (धनु राशि) पर दृष्टि करेगा। जातक को व्यापार से लाभ होगा। यदि कुण्डली में बृहस्पति की स्थिति अच्छी है तो जातक शेयर बाजार, लॉटरी, सट्टा से रुपया कमायेगा।

निशानी – जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति पंचम भाव में होने से प्रथम संतति कन्या होगी अथवा प्रथम संतति का नाश होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल संतान सुख में वृद्धि करेगा। जातक के चार पुत्र होंगे।

3. सूर्य + बुध – पंचम स्थान में मिथुन राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। पंचम स्थान में बुध स्वगृही होकर लाभ भवन को देखेगा। फलतः जातक बुद्धिमान एवं शिक्षित होगा। जातक प्रजावान होगा। कन्या संतति की बाहुल्यता रहेगी। जातक को संतति भी शिक्षित रहेगी। जातक समाज का गणमान्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति जातक को विद्या से लाभ देगा। जातक के पांच पुत्र दो कन्या होगी।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र जातक को उद्योगपति बनायेगा । जातक को संतान तेजस्वी होगी।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह मिथुन राशि में हैं। सूर्य सम राशि में तो शनि मित्र राशि में होगा। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की युति पंचम भाव में होने से जातक की प्रथम संतति की अकाल मृत्यु संभव है। एकाध गर्भपात संभव है।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु पुत्र संतान में बाधक ग्रह का काम करेगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु गर्भपात करायेगा। प्रथम संतति शल्य चिकित्सा से होगी।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश षष्टम स्थान में

सूर्य यहां छठे स्थान में कर्क (शत्रु) राशि में होगा। सूर्य यहां अपने घर से बारहवें है अतः वैवाहिक सुख में बाधक है। सूर्य यहां ‘विलम्ब विवाह योग’ बना रहा है। प्रथमतः जातक का विवाह देरी से होगा अथवा विवाह होने पर भी वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण होगा।

पितृ कारक सूर्य नवम भाव से दसवें स्थान पर स्थित होने से पिता का सुख एवं सम्पत्ति जातक को मिलेगी पर जातक उसका उपयोग नहीं कर पायेगा।

दृष्टि – षष्टमस्थ सूर्य की दृष्टि व्यय भाव (मकर राशि) पर होगी। ऐसा जातक मुसाफिरी खूब करेगा व परेदश में कमायेगा।

निशानी – दाईं आंख कमजोर होगी। ऐसे जातक की स्त्री सदैव बीमार रहेंगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा अशुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति छठे स्थान में होने से चंद्रमा स्वगृही होकर ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा । जातक धनी-मानी, अभिमानी होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल ‘पराक्रम भंगयोग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनायेगा। जातक का विवाह विलम्ब से होगा।

3. सूर्य + बुध – छठे स्थान में कर्क राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायेगी। छठे स्थान में बुध की शत्रु राशि है। जहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव को देखेंगे। अष्टमेश बुध के छठे जाने से ‘हर्षयोग’ बना।

फलत: जातक अपने शत्रु-समूह को नष्ट करने में सक्षम होगा। जातक बुद्धिमान होगा। सप्तमेश सूर्य के छठे जाने से ‘विलम्ब विवाह योग’ बनता है। जातक समाज का अग्रगण्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति ‘धनहीन योग’ एवं ‘लग्नभंग योग’ बनायेगा। जातक को धन प्राप्ति हेतु भारी संघर्ष करना पड़ेगा।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ बनायेगा। जातक को भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह कर्क राशि में हैं। सूर्य यहां मित्र क्षेत्री तो शनि शत्रु क्षेत्री है। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की इस युति में ‘लग्नभंग योग’, ‘विवाहभंग योग’ भी बनेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिल पायेगा। विवाह विलम्ब से होगा अथवा जातक का दाम्पत्य जीवन कलहपूर्ण रहेगा। विवाह विच्छेद की संभावना है।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु गुप्तेन्द्रिय में बीमारी देगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु मूत्र संबंधी रोग या गुर्दे में रोग देगा।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश सप्तम स्थान में

सूर्य यहां सप्तम स्थान में सिंह राशि का होकर स्वगृही है। ऐसे जातक का विवाह शीघ्र होता है। उसके संतान भी शीघ्र होती हैं। जातक का ससुराल व पत्नी तेजस्वी होंगे, फलतः अहंकार का टकराव होता रहेगा। पितृ कारक सूर्य नवम भाव से ग्यारहवें स्थान पर होने के कारण पिता से बनेगी। जातक को पिता की सम्पत्ति एवं राज (सरकार) की मदद भी मिलेगी।

दृष्टि – सप्तमस्थ सूर्य की दृष्टि लग्न स्थान पर होने से जातक उग्र (तेज) स्वभाव का होगा पर कार्य में सफलता मिलेगी।

निशानी – जातक वाचाल होगा एवं हृदयरोगी होगा।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति सातवें स्थान में होने से सूर्य स्वगृही होगा। जातक की पत्नी धनी होगी। जातक को ससुराल से लाभ होता रहेगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल विवाह में विलम्ब करायेगा। पति-पत्नी के मध्य अहम् का टकराव होता रहेगा।

3. सूर्य + बुध – सप्तम स्थान में सिंह राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्टमेश बुध के साथ युति कहलायंगी। सूर्य यहां स्वगृही होगा। बलवान सप्तमेश की पंचमेश से युति होने के कारण जातक की संतति उत्तम होगी। पत्नी धनवान होगी। जातक का भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा। जातक बुद्धिमान होगा तथा बुद्धिबल से अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा। जातक समाज का अग्रगण्य एवं लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति ‘कलत्रमूल धनयोग’ बनायेगा। जातक को ससुराल की सम्पत्ति मिलेगी।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र जातक को सुन्दर पत्नी देगा। विवाह के बाद जातक की नौकरी लगेगी या भाग्योदय होगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह सिंह राशि में हैं। सूर्य यहां स्वगृही तो शनि शत्रु क्षेत्री होगा। लग्नेश शनि व सप्तमेश सूर्य की इस युति से पति-पत्नी के बीच अहम् का टकराव होगा। जातक की पत्नी कमाऊ एवं प्रभावशाली महिला होगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु विवाह विच्छेद या जीवन में विछोह करा सकता है।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु गृहस्थ सुख में समस्या उत्पन्न करेगा।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश अष्टम स्थान में

सूर्य यहां आठवें स्थान में कन्या (सम) राशि में होगा। सूर्य अपनी राशि से दूसरे एवं नवम भाव से बारहवें स्थान पर होगा। ऐसा जातक अनीति मार्ग (गलत कार्यों) से द्रव्योपार्जन करेगा। जातक के पिता की मृत्यु छोटी आयु में हो सकती है। जातक की पिता की सम्पत्ति, पिता का सुख नहीं मिल पायेगा । राजपक्ष से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पायेगा।

दृष्टि – अष्टमस्थ सूर्य की दृष्टि द्वितीय भाव (मीन राशि) पर होगी। ऐसा जातक खर्चीले स्वभाव का होगा।

निशानी – जातक की स्त्री सदैव बीमार रहेगी। जातक की बाईं आंख कमजोर रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा अशुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति आठवें होने पर अंग-भंग का योग बनता है। अचानक दुर्घटना संभव है।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल विलम्ब विवाह करायेगा। ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘राज्यभंग योग’ के कारण जातक परेशान रहेगा।

3. सूर्य + बुध – कुंभ लग्न में सूर्य सप्तमेश होगा। अष्टम भाव में कन्या राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्ट्मेश बुध के साथ युति होगी । बुध यहां उच्च का होगा। जहां बैठकर दोनों ग्रह धनभाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक बुद्धिमान एवं धनवान होगा।

अष्टम स्थान स्वामी बुध के अष्टम में स्वगृही होने से ‘सरल योग’ बनेगा। ऐसा जातक दीर्घजीवी होगा। रोग व शत्रु का नाश करने में सक्षम होगा। सप्तमेश सूर्य के छठे जाने से ‘विलम्ब विवाह योग’ बनेगा। जातक के शीघ्र विवाह व भाग्योदय में कुछ रुकावटें आ सकती हैं। पर फिर भी जातक समाज का लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति ‘धनहीन योग’ व ‘लाभभंग योग’ करायेगा। जातक आर्थिक विषमताओं में घिरा रहेगा।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यहीन योग’ बनायेगा। जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह ‘कन्या राशि’ में है। सूर्य यहां शत्रु क्षेत्री तो शनि मित्र क्षेत्री है। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की इस युति में ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘विवाहभंग योग’ बनेगा। जातक को मेहनत का फल नहीं मिलेगा। विवाह विलम्ब से होगा अथवा दाम्पत्य जीवन कलहपूर्ण रहेगा। पति-पत्नी में दूरियां रहेंगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु जातक को विधुर बनायेगा। जातक की पत्नी की मृत्यु जातक के आखों के सामने होगी।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु जातक के गृहस्थ सुख में बाधक है।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश नवम स्थान में

सूर्य यहां नवम स्थान में नीच का होगा। तुला राशि के दस अंशों में सूर्य परम नीच का होगा। ऐसे जातक का जीवन साथी उससे कम निम्न स्तर का होगा। पिता के लिए यह सूर्य शुभ नहीं है। पिता की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी। जातक पिता से अलग रहेगा।

दृष्टि – नवमस्थ सूर्य की दृष्टि पराक्रम स्थान (मेष राशि) पर होगी। जातक पराक्रमी होगा। जातके के मित्र सब प्रकार से सक्षम व समर्थ होंगे।

निशानी – जातक का सही भाग्योदय विवाह के बाद होगा। पर जातक की पत्नी थोड़ी-थोड़ी बीमार रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति नवम स्थान पर होने से सूर्य नीच का होगा पर जातक भाग्यशाली एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल जातक को परम पराक्रमी बनायेगा। जातक धनवान होगा।

3. सूर्य + बुध – कुंभ लग्न में सूर्य सप्तमेश होगा। नवम स्थान में तुला राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्ट्मेश बुध के साथ युति होगी। दोनों ग्रह यहां बैठकर पराक्रम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे फलत: जातक बुद्धिमान तथा भाग्यशाली होगा। जातक का भाग्योदय 26 वर्ष की आयु में होगा। जातक पराक्रमी होगा उसे परिजनों मित्रों का सहयोग बराबर मिलता रहेगा। जातक धनी होगा एवं समाज के अग्रगण्य व्यक्तियों में गिना जायेगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति ससुराल से धन दिलायेगा ।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र स्वगृही होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं धनी होगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह ‘तुला राशि में है। सूर्य यहां नीच का तो शनि उच्च का होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बना। लग्नेश व सप्तमेश की नवम भाव में यह युति जातक को राजातुल्य ऐश्वर्यशाली व पराक्रमी बनायेगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा पर पिता की मृत्यु के बाद जातक की किस्मत विशेष रुप से चमकेगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु जातक को सरकारी नौकरी से वंचित करायेगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु जातक को व्यापार में ले जायेगा।

विशेष – यहां शुक्र यदि केन्द्रस्थ हो तो जातक प्रेमविवाह करेगा ।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश दशम स्थान में

सूर्य यहां दशम स्थान में वृश्चिक (मित्र) राशि का होगा। सूर्य अपने स्थान से चौथे व पितृ भाव से दूसरे स्थान पर स्थित होकर जातक को सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएं एवं संपन्नता देगा। जातक को जीवनसाथी अच्छा मिलेगा। जातक को भागीदारी से लाभ होगा। जातक को अच्छी नौकरी, सरकार में ऊंचा पद मिलेगा।

दृष्टि – दशमस्थ सूर्य की दृष्टि चतुर्थ भाव (वृष राशि) पर होगी। जातक को अच्छा मकान मिलेगा। अच्छे सहयोगी (नौकर) मिलेंगे।

निशानी – ऐसे जातक को दंत रोग अवश्य होगा।

दशा – सूर्य की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी। सूर्य जातक को रोजी रोजगार के नये अवसर प्रदान करेगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – यहां षष्टेश व सप्तमेश की युति दशम स्थान में होगी। चंद्रमा नीच का होगा। फिर भी ऐसा जातक पराक्रमी व प्रभावशाली होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल यहां ‘रुचक योग बनायेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यवान होगा।

3. सूर्य + बुध – दशम स्थान में वृश्चिक राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्ट्मेश बुध के साथ युति होगी। जहां बैठकर दोनों ग्रह सुख भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। ‘कुलदीपक योग के कारण जातक अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा। जातक धनी, बुद्धिमान होगा एवं समाज के अग्रण्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति ससुराल से धन दिलायेगा। जातक स्वयं भी धनवान होगा।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र जातक को परम भाग्यशाली बनायेगा। व्यक्ति सरकार से मान-सम्मान अर्जित करेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह ‘वृश्चिक राशि’ में हैं। सूर्य यहां मित्र क्षेत्री तो शनि शत्रु क्षेत्री है। लग्नेश शनि और सप्तमेश सूर्य की यह युति दशम भाव में होने से जातक को करोड़पति बनायेगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा परन्तु सही अर्थों में भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु राज सरकार से दण्ड दिला सकता है। 8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु सरकारी कार्य में बाधा डालेगा।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश एकादश स्थान में

सूर्य यहां एकादश स्थान में धनु (मित्र) राशि में है। सूर्य यहां अपने स्थान से पांचवे एवं पितृ भाव से तीसरे स्थान पर है। जातक बुद्धिजीवी होगा तथा उसका वैवाहिक जीवन सुखी होगा। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी एवं भागीदारी के धंधे में लाभ होगा।

दृष्टि – एकादश भावगत सूर्य की दृष्टि पंचम भाव (मिथुन राशि) पर होगी। जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि (Higher Educational Degree) मिलेगी।

निशानी – जातक को एक पुत्र जरुर होगा। ऐसे जातक का पुत्र जीवित नहीं रहेगा। पुत्र यदि कन्या संतति के बाद में हो तो ही जीवित रहेगा।

दशा – जातक को सूर्य की दशा अंतर्दशा में शुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति एकादश स्थान में होने से जातक का व्यवसाय में लाभ होगा।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल जातक को उद्योगपति एवं बड़ी भूमि का स्वामी बनायेगा |

3. सूर्य + बुध – कुंभ लग्न में सूर्य सप्तमेश होगा। एकादश स्थान में धनु राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्ट्मेश बुध के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक तीव्र बुद्धिशाली तथा व्यापार वर्गीय होगा। जातक शिक्षित होगा एवं उसकी संतति भी शिक्षित होगी। जातक को जीवन में सभी प्रकार के ऐश्वर्य-संसाधनों की प्राप्ति होगी। जातक समाज का अग्रगण्य लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ बृहस्पति यहां ‘कलत्रमूल धनयोग’ बनायेगा। जातक को ससुराल की सम्पत्ति विरासत में मिलेगी।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र जातक को व्यापार में जबरदस्त लाभ देगा। जातक उच्च शैक्षणिक उपाधि प्राप्त करेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह ‘धनु राशि’ में है। सूर्य यहां मित्र क्षेत्री तो शनि शत्रु क्षेत्री है। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की यह युति एकादश स्थान में होने से जातक को उद्योगपति बनायेगी। जातक के व्यापार व्यवसाय में उन्नति विवाह के बाद होगी पर जातक सही अर्थों में धनपति पिता की मृत्यु के बाद होगा।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु उद्योग या चलते व्यापार में रुकावट डालेगा। एक बार व्यापार बन्द करायेगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु की युति विद्या एवं व्यापार में बाधक है।

कुंभ लग्न में सूर्य का फलादेश द्वादश स्थान में

सूर्य यहां द्वादश स्थान में मकर (शत्रु) राशि में होगा। सूर्य के कारण यहां ‘विलम्ब विवाह योग’ बनेगा। प्रथमत: ऐसे जातक का विवाह देरी से होगा। सूर्य अपने स्थान से छठे होने के कारण विवाह होने पर भी गृहस्थ सुख में विवाद (कलह) रहेगा। जातक को पिता का सुख नहीं मिलेगा। पिता छोटी उम्र में ही गुजर जायेगा।

दृष्टि – द्वादशस्थ सूर्य की दृष्टि छठे भाव (कर्क राशि) पर होगी। ऐसा जातक अच्छी कमाई न कर सकेगा फलतः सदैव ऋणग्रस्त रहेगा।

निशानी – ऐसे जातक की स्त्री सदैव बीमार रहेगी। उसकी बाईं आंख कमजोर रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा-अंतर्दशा प्रतिकूल फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + चंद्र – षष्टेश व सप्तमेश की युति द्वादश स्थान में नेत्र पीड़ा एवं व्यर्थ की यात्राएं देगी।

2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ उच्च का मंगल ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनायेगा । जातक को विवाह सुख में भयंकर दिक्कतें आयेंगी।

3. सूर्य + बुध – द्वादश भाव में मकर राशिगत यह युति वस्तुतः सप्तमेश सूर्य की पंचमेश-अष्ट्मेश बुध के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह छठे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होगा। फलत: जातक तीव्र बुद्धिशाली एवं यात्रा प्रिय होगा। जातक को जीवन में सभी सुख-सुविधाएं मिलेंगी।

अष्टमेश बुध बारहवें होने से ‘सरल योग’ बना। ऐसे जातक में रोग से लड़ने की शक्ति होती है तथा वह दीर्घजीवी होता है। सूर्य बारहवें होने से जातक का विवाह विलम्ब से होगा। फिर भी जातक समाज का अग्रगण्य एवं लब्धप्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ नीच का बृहस्पति ‘धनहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनायेगा। जातक आर्थिक विषमताएं भोगेगा।

5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र ‘सुखहीन योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करेगा। जातक भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु परेशान रहेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां दोनों ग्रह ‘मकर राशि’ में हैं। सूर्य यहां शत्रु क्षेत्री तो शनि स्वगृही होगा। लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य की इस युति से ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘विवाहभंग योग’ बनेगा। जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा। जातक का विवाह विलम्ब से होगा अथवा दाम्पत्य जीवन में बिछोह व तनाव की स्थिति रहेगी।

7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु यात्रा में चोरी, पत्नी की मृत्यु या पत्नी से तलाक करायेगा।

8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु विवाह में विवाद या विच्छेद करायेगा।

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