कुंडली के ग्यारहवें भाव का महत्व

एकादश भाव से ससुराल से धन प्राप्ति, बड़े भाई की स्थिति, चोट का योग, हवाई यात्रा, हिंसक प्रवृत्ति, माता व बहनों से सुख की कमी आदि का विचार किया जाता है।

1. आय स्थान – एकादश स्थान प्राप्ति का स्थान है प्राप्ति, आय, आमदनी (Gains) सब पर्यायवाची शब्द हैं। इस एकादश स्थान में यदि कोई ग्रह बैठा हो तो वह वस्तु की प्राप्ति करवा देता है जिस वस्तु का कि वह भावेश होने के कारण प्रतिनिधि है। विशेषतः जब लग्नेश आय स्थान में बैठता है तब प्राप्ति निश्चित होती है जैसे

  • सूर्य लग्नेश होकर एकादश स्थान में स्थित हो और बलवान् हो तो मनुष्य के जीवन का मुख्य उद्देश्य, जो उसने निर्धारित किया होता है, उसे प्राप्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से भी बड़ा बलवान होता है।
  • मंगल यदि लग्नेश होकर एकादश स्थान में स्थित हो तो मनुष्य में साहस, क्रोध, प्रताप, कार्यशीलता आदि गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
  • यदि लग्नेश बुध हो और एकादश में बलवान् होकर स्थित हो तो मनुष्य तीव्र बुद्धि, शास्त्रवेत्ता, परोपकारी, यज्ञकर्त्ता होता है।
  • इसी प्रकार गुरु लग्नेश होकर इस भाव में स्थित हो तो मुनष्य धार्मिक-नैतिक मन्त्रणा वाला, सुखी तथा राज्यमानी होता है।
  • शुक्र लग्नेश होकर एकादश में स्थित हो तो मनुष्य भोग प्रिय, गाने-बजाने आदि में कुशल होता है।
  • शनि हो तो परिश्रमी, गम्भीर, दर्शन शास्त्र वेत्ता, भूमियुक्त होता है।

2. बड़ा भाई – एकादश स्थान बड़े भाई का है और गुरु बड़े भाई का कारक है। जब एकादश स्थान में गुरु शत्रु राशि का होकर स्थित हो और उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का बड़ा भाई नहीं होता अथवा जब गुरु स्वयं एकादश स्थान का स्वामी होकर पापयुक्त अथवा पापदृष्ट हो तो बड़े भाई के जीवन के लिए हानिकारक है। जब कोई पाप ग्रह (मंगल शनि आदि) एकादश भाव का स्वामी होकर पंचम भाव में स्थित हो तो बड़े भाई से वंचित रखता है ।

3. अन्यत्व, रोग, चोट आदि – जैसे कोई ग्रह छठे स्थान में जा पड़े तो हम समझते हैं कि उस ग्रह के साथ छठे घर के दोषों का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और वह ग्रह हिंसात्मक, अन्यत्व परक, रोगात्मक हो जाता है।

इसी प्रकार ग्रह एकादश स्थान में स्थित होकर भी षष्ठ स्थान के दोषों को ग्रहण करता है: जैसे अष्टमाधिपति यदि एकादश स्थान में स्थित हो तो मृत्यु चोट से होगी, ऐसा समझ लेना चाहिए। हां, इतना अवश्य है कि मंगल तथा षष्ठेश का सम्बन्ध अष्टम भाव के साथ अवश्य होना चाहिए।

इसीलिए जब लाभाधिपति तथा षष्ठाधिपति, दोनों मिलकर अष्टम भाव में अष्टमाधिपति के साथ बैठे हों तो भी मृत्यु चोट प्रहार आदि से होती है, क्योंकि लाभाधिपति छठे से छठे घर का स्वामी होने के कारण छठे जैसा ही फल करता है ।

4. बहुत्व (Plenty) – जिस भाव का स्वामी एकादश स्थान में स्थित हो तो उस सम्बन्धी की आयु तथा संख्या में वृद्धि होती है, जैसे तृतीयाधिपति एकादश में हो तो छोटे भाइयों की आयु तथा संख्या में वृद्धि होती है ।

5. हवाई यात्रा – जब एकादशेश, सप्तमेश तथा तृतीयेश का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है तो वायुयान द्वारा यात्रा करने के अवसर प्राप्त होते हैं, क्योंकि ये तीनों वायुस्थान हैं।

6. बायां बाजू – एकादश भाव बायां बाजू है। लग्नेश से मिलकर लाभेश स्व (Self) का काम करता है। यदि लाभेश तथा लग्नेश शुभ ग्रह होकर, (जैसा कि धनु लग्न में होता है) भाव तथा उसके स्वामी (उदाहरणतया पंचम पंचमेश) को देखें तो पुत्र का विशेष हित अपने हाथों करवाते हैं।

इसके विरुद्ध यदि एकादशेश तथा लग्नेश पापी ग्रह हों, जैसा कि मकर लग्न में होता है तो उनकी पंचम, पंचमेश पर दृष्टि से मनुष्य परिवार नियोजन के विचारों वाला होता है और अपने पुरुषार्थ से पुत्र प्राप्ति में बाधा डालता है। इसी प्रकार अन्य भावों पर भी एकादशेश लग्नेश की सम्मिलित दृष्टि का फल समझ लेना ।

7. ग्रह की मूल्य वृद्धिएकादशेश यदि शुभ ग्रह हो तो वह जिस भाव भावेश पर अपना प्रभाव डालेगा उसको मूल्यवान बना देगा और यदि वह शुभ ग्रह धनेश भी हो जावे, जैसे कि कुम्भ लग्न वालों के लिए गुरु और सिंह लग्न वालों के लिए बुध होता है, तब तो ऐसे गुरु की किसी भाव भावेश से युति अथवा उस पर दृष्टि उस भाव के मूल्य में अतीव वृद्धि कर देती है। जैसे कुम्भ लग्न हो और गुरु तथा शुक्र दशम स्थान में बैठे हों तो मनुष्य के पास बहुमूल्य कारें, बंगले जायदाद आदि सुख सामग्री होती है।

लाभ भाव के स्वामी तथा उस भाव के कारक गुरु की युति अथवा दृष्टि से वस्तुयें बहुमूल्य हो जाती हैं। चूंकि लग्नेश में भी मूल्य निहित रहता है, अतः यदि गुरु द्वितीय, पंचम अथवा एकादश भाव का स्वामी भी हो और सूर्य तथा चन्द्र अधिष्ठित राशियों का अधिपति भी हो फिर तो गुरु में अधिक उत्कृष्ट मूल्य आ जायेगा और ऐसा गुरु जिसे भी लग्न लग्नेश आदि को देखेगा उसे महान्, उत्तम, ऊंचा, धनी, प्रतिष्ठित तथा उत्कृष्ट मूल्यवान बना देगा ।

8. राज्य का अर्थ – एकादश भाव चूंकि दशम से द्वितीय है । अतः यह राज्य (Gov.) का वित्त विभाग है।

इसी प्रकार की कल्पना राज्य के सम्बन्ध में अन्य स्थानों से भी कर लेनी चाहिए। इस बात का प्रयोग राज्य कर्मचारियों के विभाग के निश्चय में होता है।

द्वादश स्थान दशम से तृतीय होने के कारण राज्य का बाहु बल (Armed Forces) है। लग्न दशम से चतुर्थ है । अतः यह राज्य गृह विभाग (Home affairs) है। द्वितीय भाव दशम से पंचम है । अतः यह भाव राज्य की विद्या (Education) का है। तृतीय भाव दशम से छठे स्थान में है । अतः यह भाव राज्य के शत्रुओं तथा श्रम विभाग (Labour Ordnance Factories) का है, इत्यादि बातें समझ लेनी चाहिएं।

9. लग्नाधिपति की दशा – जब लग्नाधिपति की महादशा हो और ऐसे ग्रह की भुक्ति हो जो लाभेश ही की भांति लग्नेश का शत्रु हो तो ऐसी दशा अन्तर्दशा में मनुष्य को बहुत शारीरिक कष्ट होता है।

देवकेरल में कर्क लग्न के सम्बन्ध में कहा भी है- “लाभाधिपति शुक्र की महादशा में तथा शनि की मुक्ति में महान् विपत्ति आती है” स्पष्ट है कि शुक्र और शनि दोनों कर्क लग्न के लिए पाराशरीय पद्धति अनुसार पापी माने गए हैं और दोनों लग्नेश चन्द्र के शत्रु हैं।

एकादश भाव में राशियां

1. मेष – एकादश भाव में मेष राशि हो तो मंगल एकादश तथा षष्ठ स्थान का स्वामी बन जाता है । एक तो करेला, दूसरा नीम चढ़ा। प्रथम तो हिंसा का कारक पुनः हिंसा स्थान षष्ठ तथा षष्ठ से षष्ठ का स्वामी । अतः मंगल में हिंसा कूट-कूट कर भरी होती है। यदि लग्न (मिथुन राशि) में मंगल आये और दृष्टि आदि द्वारा चन्द्र (मन) को भी प्रभावित कर रहा हो तो स्पष्ट है कि वह व्यक्ति को हिंसाप्रिय बनाता है।

और यदि मंगल (1) भाव, (2) भावेश तथा (3) भावकारक तीनों पर अपना प्रभाव डाल रहा हो तो वह भाव रोगयुक्त विशेषतः चोटयुक्त डाक्टर द्वारा आपरेशन किया हुआ और उस भाव के जीवन की हानि का भी भय होगा।

यदि बुध एकादश में मंगल अष्टम में (मकर में) हो तो डाकू लुटेरा होता है।

2. वृष राशि – एकादश भाव में वृष राशि होने पर शुक्र चतुर्थ केन्द्र का स्वामी होने से अपनी नैसर्गिक शुभता खो देता है और एकादश होने से अशुभ हो जाता है, अपनी भुक्ति तथा शनि की दशा अथवा अपनी दशा और शनि की भुक्ति में रोग धन की कमी द्वारा कष्ट देता है। शुक्र यदि बलवान् हो तो वाहन होती है।

यदि शुक्र राहु के साथ द्वादश में हो तो घर (निवास स्थान) नष्ट हो जाता है, क्योंकि राहु का प्रभाव न केवल शुक्र पर, अपितु चतुर्थ भाव पर (पंचम दृष्टि द्वारा) भी होता है। ऐसा व्यक्ति घर का त्याग करता है अथवा जन्म स्थान से दूर रहता है। बहुत कामातुर होता है।

3. मिथनु राशि – एकादश भाव में मिथनु राशि होने पर बुध एकादश तथा द्वितीय भावों का स्वामी बन जाता है। दोनों भाव धनदायक हैं, अतः बुध यदि बलवान् हो तो बहुत धन देता है । बुध जिस भावेश के साथ बैठेगा उसे भी धनी बना देगा।

यदि सूर्य और बुध इकट्ठे हों और गुरु की उन पर दृष्टि हो तो मनुष्य साहसी, वीर, राज्य मानी प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है, ब्याज आदि से धन पाता है।

बुध यदि निर्बल हो तो बड़े भाई अथवा बहिन द्वारा उसके धन का नाश होता है ।

राहु केतु यदि एकादश अथवा द्वितीय में स्थित हों और बुध भाग्य अथवा पंचम भाव में शुभयुक्त शुभदृष्ट हो तो अपनी भुक्ति में अकस्मात् लाटरी आदि से धन की प्राप्ति करवाता है।

एकादश भाव तथा बुध दोनों पर यदि मंगल आदि क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तो माता की अचानक मृत्यु हो जाने का डर रहता है; क्योंकि एकादश- भाव माता के लिए आयु भाव है।

4. कर्क राशि – एकादश भाव में कर्क राशि हो तो चन्द्र का एकादशेश होना जतलाता है कि यदि चन्द्र बली हो तो मनुष्य को बहुत धन का लाभ होता है, व्यक्ति की बड़ी बहिनों की संख्या अधिक होती है, क्योंकि एकादश स्थान बड़े भाई-बहनों का है और केंद्र स्त्री ग्रह है । चन्द्र का एकादशेश होना यह भी बतलाता है कि मनुष्य महत्वाकांक्षी है । हां, चन्द्र बलवान् अवश्य होना चाहिए ।

निर्बल चन्द्र बड़ी बहिनों का नाश करता है। माता के सुख को भी कम करता है क्योंकि एकादश भाव माता के (चतुर्थ) भाव से अष्टम होता है।

5. सिंह राशि – एकादश भाव में सिंह राशि हो तो सूर्य का लाभाधिपति होना जतलाता है कि यदि सूर्य बलवान् हो तो राज दरबार से विशेष धन की प्राप्ति होगी। बड़ा भाई उन्नत जीवन को पायेगा, माता दीर्घजीवी होगी । यदि सूर्य निर्बल, पापयुक्त, पापदृष्ट और गुरु ऐसा ही हो तो बड़े भाइयों की संख्या बहुत कम होती है । पेट में रोग रहता है।

6. कन्या राशि – एकादश भाव में कन्या राशि हो तो बुध अष्टमेश तथा लग्नेश बनता है । थोड़ा धन देता है । यदि बलवान् हो तो बड़ी बहिनें बहुत होती हैं। यदि निर्बल हो तो धन का शीघ्र नाश होता है। मंगल के साथ मिलकर यह भी चोट पहुंचाने का कार्य करता है ।

7. तुला राशि – एकादश भाव में तुला राशि होने पर शुक्र एकादशेश तथा षष्ठेश बनता है। दोनों क्षति के स्थान हैं। अतः नैसर्गिक शुभ ग्रह होता हुआ भी अपने योग तथा दृष्टि द्वारा भावों की हानि करता है। जब यह मंगल के साथ मिलकर प्रभाव डाले तो और अधिक अनिष्टकारी तथा हिंसात्मक हो जाता है।

8. वृश्चिक राशि – एकादश भाव में वृश्चिक राशि हो तो मंगल चतुर्थेश होने से नैसर्गिक पापी नहीं रहता, परन्तु चूंकि एकादश स्थान का स्वामी भी होता है, अतः पुनः अशुभ बन जाता है। मंगल अपनी भुक्ति में अशुभ फल करता है, कम धन देता है। यदि बहुत बलवान् हो तो भूमि का सुख देता है। शनि के साथ मिलकर यदि किसी भाव तथा उसके कारक अथवा किसी भावेश तथा उसके कारक पर युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव डाले तो व्यक्ति जान बूझकर उस व्यक्ति आदि के विरुद्ध आचरण करता है; क्योंकि शनि निज (Self) रूप है और मंगल बाहु स्थान का स्वामी होने से निज (Self) का प्रतिनिधि बनता है।

जैसे मंगल तथा शनि दोनों चन्द्र तथा शुक्र पर दृष्टि डालें तो व्यक्ति अपनी पत्नी का विरोधी होगा और उसको मार डालने तक उतारू हो जाएगा, इत्यादि ।

9. धनु राशि – एकादश भाव में धनु राशि हो तो गुरु एक तो धन कारक होने के कारण मूल्य (Value) का प्रतिनिधि है । पुनः लाभ (Gains and Aquisition) का स्वामी होने से मूल्यवान् है । पुनश्च धन (Wealth) का स्वामी होने से और भी अधिक मूल्य (Value) को दर्शाता है। स्पष्ट है कि ऐसा गुरु जिस प्रतिनिधित्व को लिए हुए भावेश आदि पर अपनी दृष्टि द्वारा प्रभाव डालेगा उस भावेश को मूल्यवा धनवान् ऊंचे स्तर का बना देगा।

जैसे गुरु मंगल तथा सूर्य को देखे तो राज्य दे दे क्योंकि सूर्य राज्य कारक है और मंगल दशमेश (राज्येश) है । इसी प्रकार यदि गुरु चतुर्थ भाव तथा उसके स्वामी शुक्र को देखे वाहन युक्त, बहुत भूमि का मालिक अवश्य बना देता है। अतः कुम्भ लग्न वाले इस विषय में अन्य लग्न वालों की अपेक्षा भाग्यशाली होते हैं।

10. मकर राशि – एकादश भाव में मकर राशि होने पर शनि एकादशेश तथा द्वादशेश बनता है बड़ा भाई वाणी का प्रायः कर्कश होता है, शनि यदि बलवान् हो तो व्यक्ति की बड़ी बहिनें बहुत होती हैं, भूमि से लाभ होता है। यदि शनि निर्बल हो तो बड़े भाई अथवा बहिन द्वारा धन का नाश होता है।

11. कुम्भ राशि – एकादश भाव में कुम्भ राशि हो तो शनि दशम तथा एकादश भाव का स्वामी होता है। अशुभ फल करता है। थोड़ा धन देता है। यदि शनि बलवान् हो तो भाई के लिए कार्य करता है, भूमि पाता है ।

12. मीन राशि – एकादश भाव में मीन राशि हो तो गुरु एकादश तथा अष्टम भाव का स्वामी बनता है । यदि एकादश भाव तथा गुरु पर मंगल शनि आदि की दृष्टि हो तो बड़ा भाई नहीं होता । गुरु यदि बलवान् हो तो अन्वेषण द्वारा आविष्कार करता है, बड़े भाइयों के सुख से युक्त होता है, शुभ कार्यों में प्रवृत्त होता है ।

फलित सूत्र

  1.  ज्योतिष के कुछ विशेष नियम
  2.  ग्रह परिचय
  3.  कुंडली के पहले भाव का महत्व
  4.  कुंडली के दूसरे भाव का महत्व
  5.  कुंडली के तीसरे भाव का महत्व
  6.  कुंडली के चौथे भाव का महत्व
  7.  कुंडली के पॉचवें भाव का महत्व
  8.  कुंडली के छठे भाव का महत्व
  9.  कुंडली के सातवें भाव का महत्व
  10.  कुंडली के आठवें भाव का महत्व
  11.  कुंडली के नौवें भाव का महत्व
  12.   कुंडली के दसवें भाव का महत्व
  13.  कुंडली के ग्यारहवें भाव का महत्व
  14.  कुंडली के बरहवें भाव का महत्व
  15.  दशाफल कहने के नियम

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