लाभ या हानि के बारे में जानने के लिए 1, 2, 5, 7, 11 भावों का विचार किया जाता है। इन भावों में बली शुभ ग्रह स्थित हों तो जातक को लाभ होगा। अशुभ ग्रह स्थित होने पर हानि होगी। पंचम भाव एकादश भाव से सातवां होता है अर्थात विरोधी को लाभ

लाभ हानि के कुछ योग

1. लग्न में शीर्षोदय राशि में शुभ ग्रह हों तो लाभ होगा।

2. लग्न में शुभ ग्रह की राशि हो या शुभ ग्रह स्थित हो या उसकी दृष्टि हो तो लाभ होगा।

3. लग्न में अशुभ ग्रह की राशि हो अशुभ ग्रह स्थित हो या उसकी दृष्टि हो तो हानि होगी।

4. लग्न में नर राशि (3, 6, 7, 10) हो, उसमें शुभ ग्रह स्थित हों या उनकी दृष्टि हो तो लाभ होगा।

5. लग्न में शुभ ग्रह की पृष्ठोदय राशि हो, शुभ-अशुभ दोनों ग्रह स्थित हों, धन कुछ देरी के बाद प्राप्त होगा। शुभ ग्रह के बल द्वारा प्रश्न का फैसला होगा ।

मान या धन का लाभ

लग्नेश और लग्न, एकादशेश और एकादश और बृहस्पति के बल का प्रश्नकुंडली में विवेचन करें। लग्नेश, एकादशेश या बृहस्पति नीचस्थ अस्त, शत्रुक्षेत्री, त्रिक भाव में पापकर्तरी में अशुभ ग्रहों से युत/दृष्ट हों तो लाभ कम होगा।

मान / धन का लाभ होगा

1. लग्नेश और एकादशेश में शुभ इत्थसाल हो ।

2. लग्नेश और एकादशेश में केंद्र / त्रिकोण / एकादश में इत्थसाल हो और कंबूल योग हो ।

3. लग्नेश और एकादशेश बली हों।

4. बली बृहस्पति केंद्र में स्थित हो और

  • उच्च का हो तो पूर्ण लाभ,
  • स्वराशि में हो तो 25 प्रतिशत लाभ,
  • अन्य राशि में होकर शुभ भाव में हो तो मामूली लाभ होगा।

5. उपरोक्त अनुसार ही एकादशेश का फल होगा।

6. दशमेश का सूर्य और बुध से इत्थसाल हो तो सरकार से लिखित समझौता होगा।

नौकरी द्वारा लाभ

1. लग्न को प्रश्नकर्ता और सप्तम भाव को विरोधी मानें। शीर्षोदय राशि का लग्न शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो।

2. 2, 7, 8 भावों में शुभ ग्रह हों और 3, 6, 11 में अशुभ ग्रह हों।

3. लग्न और सप्तम भाव में बली चंद्र और शुभ ग्रह बैठे हों या उनकी दृष्टि हो और अशुभ ग्रहों का प्रभाव नहीं हो तो कर्मचारी को मालिक का प्रेम और सद्भाव प्राप्त होता है।

4. लग्न और सप्तम भाव में अशुभ ग्रह हों या उनकी दृष्टि हो तो कर्मचारी और मालिक के संबंध अच्छे नहीं रहेंगे।

5. इसी प्रकार से 2, 7, 8 भावों में अशुभ ग्रह होने पर संबंध अच्छे नहीं रहेंगे ।

नौकरी, व्यापार या मुकदमें में लाभ के लिए लग्न लग्नेश, दशम भाव- दशमेश, एकादश- एकादशेश, चंद्र और बृहस्पति का विचार करना चाहिए।

लाभकारी व्यक्ति के बारे में या उसकी दिशा जानने के लिए केंद्र में स्थिर बली ग्रह का विचार करें। अगर केंद्र में ग्रह न हो तो लाभ के लिए लग्न की दिशा से फलकथन करें।

क्या तबादला होगा ?

स्थानांतरण के लिए दशम भाव, दशमेश की राशि, दशम भाव में स्थित ग्रह और दशमेश ने युति बनाने वाले ग्रह का विचार करें। अगर राशि हस्व (मेष, वृष, कुंभ, मीन) है तो तबादला शीघ्र होगा। राशि मध्यम (मिथुन, कर्क, धनु, मकर) होने पर तबादला कुछ समय बाद होता है। राशि दीर्घ (सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक) हो तो तबादला नहीं होगा। कुछ ज्योतिर्विद मीन को मध्यम राशि मानते हैं।

1. दशमेश निर्बल (नीचस्थ अस्त शत्रुक्षेत्री आदि) हो और निर्बल चंद्र से इत्थसाल हो तो तबादला होगा ।

2. बृहस्पति नीचस्थ अस्त आदि हो और केंद्र में स्थित नहीं हो तो तबादला होता है।

3. बृहस्पति और चंद्र में इत्थसाल या संबंध नहीं हो और दशम भाव, दशमेश निर्बल या दूषित हों तो तबादला होता है।

4. लग्नेश की नीच राशि का स्वामी चंद्र या लग्नेश से इत्थसाल में हो तो तबादला हो जाता है।

5. दशमेश चतुर्थ भाव में होकर लग्नेश से युत हो और चंद्र से इत्थसाल में हो तो तबादला होता है।

6. दशमेश की नीच राशि का स्वामी दशमेश के साथ इत्थसाल में हो तो तबादला होता है।

सेवक या वाहन या अन्य वस्तु की प्राप्ति

लग्न-लग्नेश खरीदार, मालिक हैं जबकि सप्तम-सप्तमेश विक्रेता / सेवक / कर्मचारी हैं।

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लग्न-लग्नेश और सप्तम-सप्तमेश में शुभ संबंध हों तो परिणाम उत्तम और लाभकारी होंगे।

लग्न-लग्नेश, सप्तम-सप्तमेश बली हों तो जातक को वाहन या नौकर / कर्मचारी अवश्य प्राप्त होता है।

छठा भाव और षष्ठेश भी कर्मचारी के द्योतक हैं। संबंध की जांच आरूढ़ लग्न और सप्तम पाद लग्न द्वारा करना भी लाभकारी होता है, उनकी 6/8 में स्थिति सर्वाधिक हानिकारक है।

1. षष्ठेश का लग्नेश और चंद्र से शुभ संबंध या इत्थसाल हो, षष्ठेश लग्न में स्थित हो तो सेवक उपलब्ध होता है।

2. षष्ठेश और लग्नेश लग्न में स्थित हों और शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो सेवक / कर्मचारी अवश्य प्राप्त होता है।

3. लग्नेश या चंद्र छठे भाव में स्थित हो और षष्ठेश से इत्थसाल हो तो कर्मचारी उपलब्ध होता है।

4. चंद्र का सूर्य या वक्री या अशुभ ग्रह से इत्थसाल हो और शुभ ग्रह स्थिर राशियों में स्थित हों तो सेवक नहीं मिलता है।

बिक्री-खरीद, शेयर बाज़ार में लाभ-हानि

लग्न और लग्नेश खरीदार हैं, एकादश और एकादशेश विक्रेता हैं, द्वितीय द्वितीयेश भी विक्रेता हैं, षष्ट और षष्टेश अन्य पक्ष को हानि हैं।

लग्न और लग्नेश बली हों तो प्रश्नकर्ता को खरीदारी करने पर लाभ होगा।

एकादश-एकादशेश, लग्न और लग्नेश की अपेक्षा अधिक बली हों या द्वितीय और द्वितीयेश लग्न लग्नेश की अपेक्षा अधिक बली हों तो बिक्री करने से लाभ होता है।

बिक्री के मामले में जब विक्रेता प्रश्न पूछे तो लग्न लग्नेश विक्रेता होते हैं। लेकिन शेयर बाजार में यह जानने के लिए कि शेयरों को खरीदने से लाभ होगा कि बिक्री से, तब लग्न लग्नेश खरीदार और एकादश-एकादशेश या द्वितीय द्वितीयेश विक्रेता होते हैं।

शेयर बाजार में कोई भी व्यक्ति शेयरों की खरीद / बिक्री स्वयं नहीं कर सकता। यह काम दलाल के माध्यम से होता है। सप्तमेश दलाल होता है। अतः

1 लग्नेश और सप्तमेश का शुभ भाव में शुभ दृष्टि सहित इत्थसाल होना चाहिए ।

2. लग्नेश और सप्तमेश लग्न या सप्तम में स्थित हों।

3. लग्नेश और सप्तमेश पर शुभ दृष्टि हो।

4. लग्नेश सप्तम में और सप्तमेश लग्न में स्थित हों।

5. लग्नेश की सप्तम पर और सप्तमेश की लग्न पर दृष्टि हो ।

लग्नेश और सप्तमेश में शुभ संबंध हो तो जातक को दलाल के माध्यम से काम करना चाहिए। उस समय एकादश-एकादशेश बिक्री के और लग्न लग्नेश खरीद के संकेतक हैं।

साझेदारी में खरीद/बिक्री के लिए चतुर्थ-चतुर्थेश का परीक्षण करें। लग्न लग्नेश और चतुर्थ-चतुर्थेश के मध्य संबंध हो तो साझेदारी में काम करना लाभप्रद है।

लग्नेश और चतुर्थेश में शुभ संबंध हो तो शेयर बेचना लाभप्रद होता है। चतुर्थेश और सप्तमेश में शुभ संबंध होने पर शेयर खरीदना उचित है।

लग्नेश सप्तम में हो तो खरीदार सामान मांगता है। सप्तमेश लग्न में हो तो विक्रेता सामान के लिए निवेदन करता है। लाभ के लिए लग्न लग्नेश, एकादश-एकादशेश और चंद्र पर ध्यान दें।

व्यापार में लाभ के लिए लग्न-लग्नेश, दशम-दशमेश, एकादश-एकादशेश और चंद्र का विवेचन करें। द्वितीय द्वितीयेश का विवेचन भी एकादश- एकादशेश के साथ जरूरी है।

लग्न और लग्नेश बली हों तो खरीदारी से प्रश्नकर्ता को अवश्य लाभ होगा।

एकादश और एकादशेश या द्वादश और द्वादशेश बली हों तो सामान बेचने से अवश्य लाभ होगा। जमीन जायदाद खरीदने के लिए कारक मंगल दूषित नहीं होना चाहिए ।

  • वाहन के लिए शुक्र दूषित नहीं होना चाहिए।
  • व्यापार के लिए बुध दूषित नहीं होना चाहिए।
  • कारखाने के लिए शनि दूषित नहीं होना चाहिए
  • तरल पदार्थ और रसायन के लिए चंद्र दूषित न हो।
  • शेयरों की खरीद-बेच और सट्टेबाजी के लिए बृहस्पति दूषित नहीं होना चाहिए।

संक्षेप में लाभ-हानि के लिए 2, 6, 11 भाव और उनके स्वामियों का विवेचन करें। इन भावों से लग्न और लग्नेश का संबंध हो तो लाभ होता है। प्रश्न उठता है, ‘छठा भाव और षष्टेश क्यो?” छठा भाव और षष्टेश जातक से व्यापार करने वाले दल की हानि के द्योतक हैं। उनकी हानि जातक का लाभ है।

लग्न और लग्नेश का 5, 8, 12 भाव या उनके स्वामियों से संबंध हो तो जातक को लाभ नहीं होगा क्योंकि सप्तम भाव दूसरा दल हैं जिससे व्यापार हो रहा है। पंचम भाव (सप्तम से एकादश) दूसरे दल का लाभ है। अष्टम भाव सप्तम से द्वादश है, द्वादश भाव लग्न की हानि है ।

बाजार तेजी में जाएगा या मंदी में ?

1. यदि शुभ ग्रह स्वराशि या मित्र क्षेत्र में स्थित हो तो उस भाव द्वारा निर्देशित वस्तुओं के भाव उतने दिनों के लिए गिर जाएंगे जितने दिन वह शुभ ग्रह उस भाव में स्थित रहेगा। जब कोई अशुभ ग्रह उच्च का, स्वक्षेत्री या मित्र राशि में हो तो उस भाव द्वारा इंगित वस्तुओं के भाव उतने दिनों के लिए चढ़ जाते हैं, जितने दिन वह ग्रह उस भाव में रहेगा ।

2. चंद्र शुभ ग्रहों के साथ या स्वराशि, मित्रराशि में हो या पूर्णिमा / अमावस्या का चंद्र हो तो बाजार मंदी की ओर जाएगा। चंद्र दूषित हो तो बाजार तेजी की ओर बढ़ता है।

3. सूर्य की स्वराशि से अन्य राशि में संक्रांति के समय लग्न और लग्नेश बली हों और शुभ ग्रह केंद्र / त्रिकोण में स्थित हों तो बाज़ार में मंदी आती है।

4. प्रश्न कुंडली के लग्न / लग्नेश बली हों और शुभ ग्रह केंद्र / त्रिकोण में स्थित हों तो बाजार मंदी की ओर जाता है। लग्न/ लग्नेश निर्बल और अशुभ ग्रह केंद्र / त्रिकोण में बैठे हों तो बाजार में तेजी आती है।

क्या व्यापार में साझेदार रख लूं ?

व्यापार में भागीदार रखना उचित रहेगा यदि,

  • लग्न और सप्तम भाव में शुभ संबंध हों।
  • अष्टमेश (साझेदार की आय/धन) का एकादशेश (जातक की आय) और षष्टेश (साझेदार का व्यय) से शुभ संबंध हो ।

साझेदार की आय (अष्टम भाव) का संबंध द्वादश भाव (जातक की हानि) और पंचम भाव (साझेदार को लाभ) से हो तो कभी भी साझेदार न रखें।

निम्न कुंडली में राहु लग्न में स्थिर होकर बृहस्पति से दृष्ट है। लग्नेश चंद्र मंगल से युत होकर सूर्य और शनि (सप्तमेश एवं अष्टमेश) से दृष्ट है। एकादशेश शुक्र स्वराशि में एकादश में स्थित है। साझेदार की हानि बृहस्पति, जातक की हानि बुध के साथ इत्थसाल में है।

01.05.1999 को 10:55, दिल्ली

साझेदार की आय पंचमेश मंगल लग्नेश चंद्र के साथ चतुर्थ में स्थित है। अतः साझेदार को जातक से लाभ है। जातक का नगद धन साझेदार के धन से युति में है। शनि दशम में इशराफ योग में है। लग्नेश चंद्र और सप्तमेश शनि समसप्तक में हैं, लेकिन इशराफ भी है। अतः दोनों में साझेदारी हुई, मगर कुछ महीनों बाद टूट गयी।

क्या बैंक से ओवरड्राफ्ट सुविधा उपलब्ध हो सकेगी ?

छठे भाव से कर्ज, उधार ओवरड्राफ्ट आदि का ज्ञान होता है। षष्टेश और छठे भाव में स्थित ग्रहों की विवेचना करें। बैंक से ओवरड्राफ्ट सुविधा मिलने से आर्थिक स्थिति सुधर जाती है, अतः द्वितीय भाव और द्वितीयेश पर ध्यान दें। दशम भाव व्यवसाय, धंधे का द्योतक है। 6, 2 10 के स्वामियों में संबंध हो तो जातक को बैंक से ओवरड्राफ्ट सुविधा उपलब्ध हो जाती है।

कर्ज़ लेने के प्रश्न के लिए षष्टेश और द्वितीयेश का अध्ययन करें। षष्टेश यदि वक्री हो, या उस राशि में स्थित हो जिसका स्वामी प्रश्नकुंडली में या नवमांश में वक्री / अस्त / नीचस्थ हो तो कर्ज़ प्राप्त नहीं हो पाता है।

षष्टेश सूर्य हो तो सरकार से कर्ज प्राप्त होता है, षष्टेश चंद्र हो तो कर्ज शीघ्र मिलेगा, मंगल हो तो तनाव बढ़ेगा, बुध हो तो लिखा पढ़ी होगी, सिफारिश से लाभ होगा और कर्ज किश्तों में प्राप्त होगा । षष्टेश बृहस्पति होने पर कर्ज ससम्मान, न्याय सम्मत माध्यम से प्राप्त होगा, शुक्र होने पर कर्ज़ मैत्रीपूर्ण ढंग से मिलेगा। शनि की दृष्टि छठे भाव पर होने पर कुल राशि का कुछ अंश ही प्राप्त हो पाता है।

04 सितंबर 1993 को 10:30, दिल्ली

उपरोक्त कुंडली देखें। ओवरड्राफ्ट सुविधा का अर्थ है बैंक से व्यापार के लिए कर्ज लेना, अतः 6, 2,10 भाव और उनके स्वामियों का अध्ययन करें। षष्टेश बृहस्पति द्वादश भाव में 2, 7 के स्वामी मंगल के साथ स्थित है तथा मंगल से इत्थसाल भी है।

दशमेश चंद्र छठे भाव में स्थित है। दशम में अष्टमेश शुक्र स्थित है। द्वितीय भाव में स्थित राहु पर वक्री शनि की दृष्टि है। जातक को ओवरड्राफ्ट सुविधा मिली मगर भारी हानि उठानी पड़ी।

क्या कर्ज चुका पाऊंगा ?

धन के निवेश या व्यय अथवा कर्ज़ चुकाने के लिए द्वादशेश द्वादश में स्थित ग्रह द्वादशेश जिस राशि में हो उसके स्वामी, द्वादशेश की नवमांश में राशि के अधिपति और द्वादशेश के नक्षत्रेश का विवेचन करें।

21 जनवरी 1999 को 10:58, दिल्ली

लग्नेश बृहस्पति स्वराशि में है, नवमांश में उच्च का है और स्वयं के नक्षत्र में स्थित है, अतः बहुत बली है । द्वादशेश शनि द्वितीय भाव में मंगल की राशि, शुक्र के नवमांश और केतु के नक्षत्र में स्थित है। ये दोनों ग्रह लाभ भाव एकादश में स्थित हैं, अतः जातक कर्ज़ का भुगतान करने में सफल रहेगा। शनि की भूमिका के कारण कर्ज़ का भुगतान किश्तों में होगा ।

शनि पर राशीश मंगल की दृष्टि है, अतः नीच भंग है। मेष में उच्च होने वाला सूर्य और मेष का स्वामी मंगल एक दूसरे से केंद्र में हैं, अतः नीचभंग योग है।

क्या कर्ज पर दिया धन वसूल हो सकेगा ?

चाहे कर्ज लेना हो या दूसरों को दिये धन को वापस लेना हो, दोनों का विचार छठे भाव से किया जाता है।

धन की वसूली का अर्थ बैंक में जमा की बढ़ोत्तरी, नकद धन और इच्छाओं की पूर्ति है। अतः 2 और 11 भावों की भूमिका प्रमुख है।

शनि प्रमुख हो तो वसूली में देर होती है और बाधाएं आती हैं, बुध हो तो धन लिखा पढ़ी नोटिस आदि के बाद किश्तों में वसूल होता है। बृहस्पति शुभ हो तो धन आसानी से अदालत द्वारा या वैध प्रक्रिया से प्राप्त हो जाता है। बृहस्पति पर शनि की दृष्टि हो तो रकम आंशिक रूप से ही किश्तों में प्राप्त होती है ।

मंगल प्रमुख हो तो डराने धमकाने से रूपया वसूल होता है। चंद्र होने पर पैसा शीघ्रता से प्राप्त होता है. शुक्र होने पर समझौता होता है। सूर्य होने पर पुलिस की सहायता से या कानूनी कार्यवाही से धन प्राप्त होता है।

20 अक्तूबर 1993 को 17:30, दिल्ली

जातक ने अपने मित्र को धन दिया था, जिसे वह वापस पाना चाहता है। लग्न पर वक्री शनि की दृष्टि है। लग्न में द्विस्वभाव, चर, पृष्ठोदय राशि है। लग्नेश बृहस्पति गहन अस्त है और एकादश में स्थित वक्री शनि से दृष्ट है। द्वितीयेश मंगल अष्टम में स्थित होकर लग्नेश से इशराफ योग में है और एकादशेश वक्री शनि को देख रहा है। चंद्र से देखने पर 2 और 11 भाव दूषित हैं। लग्न और चंद्र से षष्टेश दूषित है। अतः उधार लेने वाले को अपार धन की हानि हुई और जातक अपना धन प्राप्त करने में सफल नहीं हुआ ।

क्या साझेदारी चलेगी या टूट जाएगी ?

साझेदारी का विचार सप्तम भाव से किया जाता है। साझेदारी तब तक चलती है जब तक दोनों साझेदारों को एक दूसरे से लाभ होता है। सप्तमेश का संबंध एकादश (लग्न को लाभ) और पंचम (सप्तम को लाभ) से हो तो साझेदारी बनी रहेगी।

सप्तमेश का संबंध छठे भाव (साझेदार को हानि) और द्वादश (लग्न को हानि) से हो तो साझेदारी टूट जाएगी।

सप्तमेश सूर्य लग्न में स्थित होकर लग्नेश शनि से इत्थसाल में है।

नवमांश में सूर्य एकादश में स्थित है। लग्न वर्गोत्तम है। पंचमेश बुध एकादशेश बृहस्पति के साथ नवमांश में स्थित है। अतः सप्तमेश का संबंध 5,11 भावों से है। सप्तमेश राहु के नक्षत्र में स्थित है। राहु शनि के नक्षत्र में स्थित है। अतः लग्नेश और सप्तमेश का संबंध 5, 11 भावों से है। साझेदारी टूटेगी नहीं । यद्यपि कुछ गलतफहमी राहु के कारण उत्पन्न होगी, मगर समाप्त हो जाएगी।

नवमांश

सप्तमेश सूर्य दुःस्थान 12 में अष्टमेश बुध के साथ है। यद्यपि सप्तमेश और लग्नेश शनि में इत्थसाल है, फिर भी साझेदारी टूट जाएगी। सप्तमेश सूर्य और अष्टमेश बुध पर मंगल की दृष्टि है। 2, 11 का स्वामी बृहस्पति अष्टम में केतु के साथ स्थित है और पंचमेश बुध द्वादश में है। नवांश में स्थिति सुधर नहीं रही है।

नौकरी कब मिलेगी ?

व्यवसाय के लिए दशम भाव जमा धन के लिए द्वितीय, मालिक को हानि के लिए षष्ट भाव को देखना चाहिए।

उपरोक्त कुंडली को देखें दशम और दशमेश पर व्यवसाय या नौकरी के लिए ध्यान दें दशम में बृहस्पति स्थित है। दशमेश बुध अष्टम में अस्त होकर द्वितीयेश शनि के नक्षत्र और मंगल के नवमांश में है। शनि मंगल की राशि में शनि के नक्षत्र में और सूर्य के नवमांश में स्थित है।

षष्टेश शुक्र स्वराशि में, मंगल के नक्षत्र में और बुध के नवमांश में मौजूद है। लग्नेश बृहस्पति दशम भाव में स्थित होकर बुध की राशि में सूर्य के नक्षत्र में और शत्रु के नवमांश में है। लग्नेश दशम में है और दशमेश अष्टम में अस्त होकर द्वादशेश मंगल से संबंधित है, अतः नौकरी नहीं मिलेगी। अस्त या वक्री ग्रह शुभ परिणाम नहीं देता है।

पदोन्नति कब होगी ?

प्रोन्नति के लिए 10, 26 और 11 भावों का विचार करें। जब प्रोन्नति होती है तो किसी को हानि होती है, अतः छठे भाव को भी देखा जाता है। उपरोक्त कुंडली में दशमेश और लग्नेश बुध अस्त है और 12 वें भाव में केतु के नवमांश में बैठा है, अतः प्रोन्नति नहीं होगी।

क्या व्यापार फले फूलेगा ?

एकादश भाव संपन्नता का प्रतीक है और दशम व्यापार कार्य क्षेत्र, नाम, प्रसिद्धि आदि का द्योतक है। षष्ट भाव धन की प्राप्ति और द्वादश निवेश और खरीदारी दर्शाते हैं।

धनाढ्य होने के लिए दशमेश का एकादश भाव से संबंध होना चाहिए। छठा भाव बली हो जिससे धन प्राप्ति अधिक हो और द्वादश भाव पर शुभ प्रभाव हो ताकि लाभप्रद निवेश हो सके।

दशमेश सूर्य एकादश में बुध की राशि में सूर्य के नक्षत्र में और शनि के नवमांश में स्थित है। एकादशेश बुध द्वादश भाव में शुक्र की राशि में, मंगल के नक्षत्र में, शुक्र के नवमांश में स्थित है। छठे भाव में वक्री शनि स्थित है।

षष्टेश मंगल शुक्र के नवमांश में होकर दशम भाव में चंद्र और बृहस्पति के साथ स्थित है। द्वादशेश शुक्र एकादश में अर्थात भाव से द्वादश में है जिसका अर्थ है कम खरीदारी जातक धनाढ्य बन गया।

क्या मेरी आर्थिक स्थिति सुधरेगी ?

इसका अर्थ है कि अगर बिक्री बढ़े तो आर्थिक हालत सुधरेगी। चतुर्थ भाव आधिपत्य और उत्पादन दर्शाता है जबकि तृतीय भाव तैयार माल की बिक्री का द्योतक है। द्वितीय भाव जमा धन में बढ़ोत्तरी का संकेतक है। अतः 2, 3, 11, 12 भाव कारक हैं।

तृतीयेश का संबंध 2 और 11 भाव से हो तो लाभ होगा। तृतीयेश का संबंध 11 और 12 दोनों भावों से हो तो बिक्री से न लाभ होगा, न हानि। तृतीयेश बुध द्विस्वभाव राशि में स्थित हो तो भारी बिक्री से खूब लाभ होता है। कारक ग्रह बृहस्पति और बुध हैं।

तृतीय भाव में योगकारक मंगल स्थित होकर 6, 7 के स्वामी शनि से दृष्ट है। तृतीयेश शुक्र छठे भाव में बुध सूर्य और केतु के साथ स्थित है। लग्नेश सूर्य अपने ही नक्षत्र में शनि के नवमांश में स्थित है। द्वादशेश चंद्र अष्टम भाव में धन के कारक बृहस्पति के साथ बृहस्पति की राशि और शनि के नवमांश में स्थित है। परिणाम न लाभ, न उन्नति ।

क्या पुस्तक को लिखने में सफलता मिलेगी ?

पुस्तक लेखन का संकेत तृतीय भाव से प्राप्त होता है। लेखन के कारक बृहस्पति और बुध हैं। एकादश भाव से पुस्तक लेखन के योग्य उच्च ज्ञान का पता चलता है। अतः एकादश भाव का संबंध 3 और 9 भावों और बुध / बृहस्पति से हो तो पुस्तक पूर्ण होकर लोकप्रिय होगी।

एकादश भाव में द्वितीयेश शुक्र स्थित है। एकादशेश शनि लग्न में चंद्र के साथ स्थित है और 1, 8 के स्वामी मंगल से दृष्ट है। नवमांश शुक्र का और नक्षत्र केतु का है। तृतीयेश बुध पंचमेश सूर्य के साथ दशम में अस्त है और एकादशेश शनि से दृष्ट है। नक्षत्र सूर्य का और नवमांश शनि का है नवमेश बृहस्पति द्वादश में स्वराशि, स्वनक्षत्र और चंद्र के नवमांश में उच्च का है अतः एकादश भाव का संबंध 3, 9 भाव और बुध, बृहस्पति से है, अतः पुस्तक लेखन में सफलता मिली।

एकादशेश, लग्नेश और चंद्र के मध्य निर्मित कंबूल योग कार्य में सफलता का द्योतक है। शनि और मंगल की भूमिका देरी और विवाद के बावजूद सफलता दर्शाती है।

अवकाश, तीर्थयात्रा और पर्यटन आदि का ज्ञान 3, 9, 12 भावों से होता है

प्रश्न ज्योतिष

  1. प्रश्न ज्योतिष क्या है ?
  2. राशियों का वर्गीकरण
  3. ग्रह की विशेषताएं
  4. ताजिक दृष्टियां और योग
  5. भावों के कारकत्व
  6. प्रश्न की प्रकृति
  7. लग्न और भावों के बल
  8. घटनाओं का समय निर्धारण
  9. प्रश्न कुंडली से रोगी और रोग का ज्ञान
  10. प्रश्न कुंडली से यात्रा और यात्री का विचार
  11. प्रश्न कुंडली से चोरी और गायब सामान की वापसी
  12. प्रश्न कुंडली से विवाह का विचार
  13. प्रश्न कुंडली से संतान का विचार
  14. प्रश्न कुंडली से न्यायाधीन विवाद का विचार
  15. प्रश्न कुंडली से लाभ-हानि का विचार
  16. प्रश्न कुंडली से राजनीति का विचार
  17. प्रश्न कुंडली से जेल यात्रा का विचार
  18. विविध प्रश्न

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