मीन लग्न के धन योग

मीनलग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिये धनप्रदाता ग्रह मंगल है। धनेश मंगल की शुभाशुभ स्थित, धनस्थान से संबंध स्थापित करने वाले ग्रहों की स्थिति, योगायोग, गुरु तथा धनभाव पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोतों तथा चल-अचल सम्पत्ति का पता चलता है।

इसके अतिरिक्त पंचमेश चंद्रमा, लग्नेश गुरु तथा लाभेश शनि को अनुकूल-प्रतिकूल व परिस्थितियां भी मीनलग्न में जातकों के धन, ऐश्वर्य एवं वैभव को घटाने-बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

वैसे मीनलग्न के लिये शनि, शुक्र, सूर्य व बुध अशुभ होते हैं। मंगल और चंद्रमा शुभ फलदायक होते हैं। मंगल मारकेश होते हुए भी मारक का काम नहीं करेगा। शनि व्ययेश होने से सहायक मारकेश का काम करेगा। सूर्य, शुक्र व शनि परमपापी ग्रह हैं। अकेला गुरु राजयोगकारक है। बुध सप्तमेश होने में मारक ग्रह है।

सफल व शुभ योग – 1. मंगल+गुरु 2. गुरु+चंद्रमा

राज योगकारक – चंद्र, गुरु

निष्फल योग – मंगल + बुध

अशुभ योग – 1. गुरु+शुक्र  2. गुरु+सूर्य  3. गुरु+बुध

लक्ष्मी योग – मंगल नवम में, गुरु केन्द्र-त्रिकोण में, शनि एकादश में।

विशेष योगा योग

1. लग्न स्थान गुरु बुध एवं मंगल से युत हो अथवा लग्न स्थित बुध गुरु मंगल से दृष्ट हो तो जातक महाधनशाली होता है।

2. मंगल मेष, वृश्चिक या मकर राशि का हो तो ऐसा जातक अल्प प्रयास से भारी धन कमाता है। ऐसा जातक को धन के मामले को लेकर भाग्यशाली कहा जा सकता है। लक्ष्मी ऐसा जातक का पीछा नहीं छोड़ती है।

3. गुरु लग्न में हो तथा बुध एवं शनि अपनी-अपनी स्वराशि में हो तो ऐसा व्यक्ति धनवानों में अग्रगण्य होता है तथा पद-पद पर लक्ष्मी उसके साथ चलती है।

4. मंगल शनि के घर में एवं शनि मंगल के घर में परस्पर राशि- परिवर्तन करके बैठा हो तो व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है। जीवन में खूब धन कमाता है तथा लक्ष्मी उसकी दासी के समान सेवा करती है।

5. गुरु केन्द्र-त्रिकोण में कहीं भी हो तथा मंगल स्वगृही हो तो ऐसा जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है अर्थात् सामान्य परिवार में जन्म लेकर भी धीरे-धीरे अपने पराक्रम व पुरुषार्थ से लक्षाधिपति, कोट्याधिपति हो जाता है। ऐसा जातक का भाग्योदय प्राय: 28 वर्ष की आयु के बाद होता है।

6. पंचम में चंद्रमा स्वगृही हो तथा शनि मकर राशि का लाभ स्थान में हो तो जातक लक्षाधिपति होता है।

7. कर्क का बुध पांचवें तथा मकर का शनि लाभ में हो तो जातक धनी होता है।

8. चंद्रमा पांचवें, स्वगृही गुरु धनु या मीन का वही भी बैठा हो तो जातक महाधनी होता है।

9. गुरु, चंद्रमा, मंगल की युति हो तो ‘महालक्ष्मी योग’ बनता है। ऐसा जातक प्रबल पराक्रमी, अतिधनवान, ऐश्वर्यमान एवं महाप्रतापी होता है।

10. गुरु, बुध एवं मंगल से युत हो तो ‘महालक्ष्मीयोग’ बनता है। ऐसा जातक अपने बुद्धिबल से शत्रुओं की परास्त करता हुआ, महाधनी एवं अतिप्रतापी होता है।

11. गुरु मकर राशि में हो तथा शनि मीन राशि में हो तो जातक 33वें वर्ष में धनवान होता है तथा शत्रुओं का नाश करते हुए स्वार्जित धनलक्ष्मी को भोगता है। ऐसा व्यक्ति को जीवन में अचानक धन मिलता है।

12. लग्नेश गुरु, धनेश-भाग्येश मंगल तथा लाभेश शनि अपनी-अपनी उच्च व स्वराशि में हो तो जातक करोड़पति होता है।

13. सप्तम भाव में राहु, शुक्र, मंगल और शनि की युति हो तो जातक अरबपति होता है।

14. धनेश मंगल छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो ‘धनहीन योग’ की सृष्टि होती है। ऐसे व्यक्ति के पास धन नहीं ठहर पाता है। सदैव रुपयों की कमी बनी रहती है।

15. धनेश मंगल आठवें हो और सूर्य लग्न को देखता हो तो ऐसे व्यक्ति को भूमि में गढ़े हुये धन की प्राप्ति होती है या लॉटरी से धन मिल सकता है पर धन पास में टिकेगा नहीं।

16. मंगल नवम भाव में वृश्चिक राशि का हो तो रुचक योग बनता है। ऐसा जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ, अथाह भूमि, सम्पत्ति व धन का स्वामी होता है।

17. सुखेश बुध, लाभेश शनि, नवम भाव में मंगल से दृष्ट हो तो जातक को अनायास धन की प्राप्ति होती है।

18. चंद्रमा, गुरु की युति मेष राशि मिथुन राशि, कर्क राशि या वृश्चिक राशि में हो तो इस प्रकार से गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अचानक उत्तम धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर मार्केट या अन्य व्यापारिक स्रोत के द्वारा अकल्पनीय धन की प्राप्ति होती है।

19. धनेश मंगल अष्टम में एवं अष्टमेश शुक्र धनस्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुड़रेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है।

20. तृतीयेश शुक्र, लाभ में एवं लाभेश शनि तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसे व्यक्ति को भाई मित्र एवं भागीदारों के द्वारा धन की प्राप्ति होती है।

21. बलवान मंगल के साथ चतुर्थेश बुध की युति हो तो व्यक्ति के माता के द्वारा भूमि के द्वारा धन की प्राप्ति होती है।

22. लग्नेश गुरु धन भवन में हो, मंगल का लग्नेश से संबंध हो तो जातक उच्च कोटि का व्यापारी होता है।

23. मीन लग्न हो तथा शुक्र द्वादश स्थान में हो तो वह शुभ नहीं रहता, ऐसा जातक निश्चय ही ऋणग्रस्त रहता है।

24. द्वादश स्थान में कुंभ राशिस्थ चंद्रमा हो तो जातक निश्चय ही लखपति के घर जन्म लेकर भी साधारण जीवन व्यतीत करता है।

25. यदि उच्च का मंगल एकादश स्थान में हो जातक निश्चय ही करोड़पति होता है। चाहे जातक का कोई भी सहायक न हो ऐसा मंगल आकस्मिक धन दिलाने में भी सहायक होता है।

26. कर्क राशि में पंचम भाव में मंगल हो तो जातक का धन स्त्री एवं स्त्री के भाई द्वारा नष्ट होता है।

27. यदि दूसरे भाव में चंद्रमा एवं पांचवें भाव में मंगल हो तो मंगल की दशा में श्रेष्ठ धन लाभ होता है।

28. गुरु छठे भावे में हो, शुक्र आठवें, शनि बारहवें तथा चंद्रमा-मंगल ग्यारहवें भावस्थ हो तो उच्चातिउच्च धनदायक योग बनता है।

29. चंद्रमा व मंगल का योग हो, लाभेश व धनेश चतुर्थ भावस्थ हो तथा चतुर्थेश शुभ स्थान में शुभ युत एवं दृष्ट हो तो जातक को अचानक धन की प्राप्ति होती है।

30. द्वितीयेश पंचमेश अथवा द्वितीयेश एकादशेश परस्पर स्थानान्तरित होते हों या नवमेश व पंचमेश नवम, पंचम भाव में ही हो तो उत्तम धन योग होता है।

31. द्वितीयेश, एकादशेश, पंचमेश, नवमेश से संबंध करे तो उत्तम अर्थ योग होता है।

32. मीनलग्न में द्वितीयेश, एकादशेश साथ-साथ हों तो धन का नाश होता है।

33. लग्नेश गुरु, चतुर्थेश बुध, नवमेश मंगल मिलकर अष्टम भाव में हो तो जातक दरिद्र होता है।

34. द्वादशेश व द्वितीयेश स्थान परिवर्तन किए हुए हों तो भी धन का नाश होता है।

35. व्ययेश शनि व्यय भाव में ही हो तो ऐसा व्यक्ति का धन पाप कर्मों में या फिजूल खर्चों में समाप्त हो जाता है।

37. सूर्य और चंद्रमा दोनों ही कुम्भ राशि में हो तथा तीन-चार ग्रह नीच के हो तो व्यक्ति करोड़पति के घर में जन्म लेकर भी दरिद्र होता है।

38. बलवान मंगल की पंचमेश चंद्रमा से युति हो तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति होती है। यॉ पुत्र जन्म के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है।

39. बलवान मंगल की षष्टेश सूर्य के साथ युति हो, धनभाव पर शनि की दृष्टि हो तो जातक को शत्रुओं के द्वारा उसे धन व यश की प्राप्ति होती है।

40. बलवान मंगल की सप्तमेश बुध से युति हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है तथा उसे पत्नी ससुराल पक्ष में धन की प्राप्ति होती है।

41. बलवान मंगल नवम भाव में, लग्नेश गुरु से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति राजा राज्य सरकार से, सरकारी अधिकारियों, सरकारी अनुबंधन (ठेकों) से काफी धन कमाता है।

42. बलवान मंगल की दशमेश गुरु से युति हो तो जातक को पैतृक सम्पत्ति, पिता द्वारा रक्षित धन की प्राप्ति होती है अथवा पिता का व्यवसाय जातक के भाग्योदय में सहायक होता है।

43. दशम भाव का स्वामी गुरु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। ऐसा व्यक्ति जन्म स्थान में नहीं कमाता, उसे सदा धन की कमी बनी रहती है।

44. लग्नेश गुरु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो एवं सूर्य तुला का आठवें हो तो व्यक्ति कर्जदार होता है तथा उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।

45. धनभाव में पापग्रह हो तथा लाभेश शनि यदि छठे, आठवें, बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है।

46. केन्द्र स्थानों को छोड़कर चंद्रमा गुरु से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो शकट योग बनता है। जिसके कारण व्यक्ति को सदैव धन का अभाव रहता है।

47. धनेश मंगल अस्त हो यॉ नीच राशि (कर्क) में हो तथा धनस्थान एवं अष्टम भाव में कोई भी पापग्रह हो तो व्यक्ति सदैव ऋणग्रस्त रहता है, कर्ज उसके सिर से उतरता नहीं।

48. लाभेश शनि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तथा लाभेश अस्तगत, पापपीड़ित हो जातक महादरिद्र होता है।

49. अष्टमेश शुक्र वक्री होकर कहीं बैठा हो तथा अष्टम स्थान में कोई भी ग्रह वक्री होकर बैठा हो तो अकस्मात धन हानि का योग बनता है अर्थात् ऐसे व्यक्ति को धन के मामले में परिस्थितिवश अचानक भारी नुकसान हो सकता है, फलतः सावधान रहे।

50. अष्टमेश शुक्र शत्रुक्षेत्री, नीचराशिगत या अस्त हो तो अचानक धन की हानि होती है।

मीन लग्न के योग

मीन लग्न के राजयोग

1. यदि मीन लग्न अपने पूर्णाश पर हो, उसमें उच्च का शुक्र हो, उच्च का सूर्य धन स्थान में हो, उच्च का बुध सप्तम में हो और उच्च का मंगल लाभ स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

2. बुध को छोड़कर उपर्युक्त तीनों ग्रह उच्च के हो तो राजयोग होता है।

3. मीन का चंद्रमा लग्न में, सिंह का सूर्य शत्रु भाव में, कुम्भ का शनि द्वादश में तथा मकर का मंगल लाभ स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

4. उच्च का सूर्य स्वगृही मंगल के साथ धन स्थान में, उच्च का चंद्रमा स्वगृही शुक्र के साथ पराक्रम स्थान में स्वगृही बुध चतुर्थ में और स्वगृही वृश्चिक का मंगल भाग्य स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

5. कर्क का चंद्रमा पंचम स्थान में कन्या का बुध सप्तम स्थान में धनु का गुरु राज्य स्थान में और मकर का मंगल स्वगृही शनि के साथ एकादश भाव में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

6. शुक्र, बुध लग्न में हो; गुरु, चंद्रमा दशम में हों; उच्च का मंगल एकादश में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

7. चंद्रमा लग्न में हो, शनि चतुर्थ स्थान में हो, बुध, शुक्र, सूर्य सप्तम में हो, गुरु नवम भाव में और मंगल राज्य स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

8. मीन का शुक्र लग्न में और कर्क का गुरु पंचम में हो तो भी राजयोग होता है। जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।

9. लग्न में पूर्ण चंद्रमा, मित्र, शुभ समस्त ग्रहों से दृष्ट हो तो मनुष्य को बड़ा आदमी बनाता है।

10. गुरु लग्न में हो, स्वगृही चंद्रमा पंचम में हो तो ऐसे योग वाला व्यक्ति बड़ा धनी होता है।

11. गुरु स्वगृही होकर दशम स्थान में हो, चंद्रमा उच्च का पराक्रम भाव में बैठा हो और बुध चतुर्थ स्थान में हो और लग्न में उच्च का शुक्र निष्पाप बैठा हो तो मनुष्य बड़ा ही पराक्रमी, बड़ा सरकारी कर्मचारी, ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करने वाला होता है।

12. लग्न में चंद्रमा हो, सिंह का सूर्य छठे स्थान में हो, मकर का मंगल एकादश स्थान में हो और कुम्भ का शनि द्वादश स्थान में हो तो मनुष्य बड़ा पराक्रमी एवं ऐश्वर्यवान होता है।

13. लग्न में शुक्र, धन स्थान में सूर्य या मंगल, पंचम स्थान में गुरु या चंद्रमा हो तो मनुष्य बड़ा राज्य कर्मचारी होता है।

14. दशमेश लग्न में हो, लग्नेश दशम में या उस पर शुभ दृष्टि हो तो जातक ज्ञानी व उच्च पदस्थ होता है।

15. लाभेश व भाग्येश शनि मंगल एकादश स्थान में चंद्रमा के साथ हो और गुरु लग्नेश होकर कर्क में बैठ कर उन्हें पूर्ण दृष्टि से देखे तो सुन्दर राजयोग होता है।

16. लग्न में उच्च का शुक्र हो, गुरु व चंद्रमा धनुराशि में हो तथा मकर में उच्च का मंगल हो तो उत्तम राजयोग होता है।

17. लग्न में चंद्रमा हो, कुंभ में शनि तथा मकर व सिंह में क्रमशः मंगल, सूर्य हो तो उत्तम राजयोग होता है।

18. तुला, धनु, मीन व लग्न में शनि बैठा हो तो राजकुल में जन्म और राजा होता है।

19. मीन का शुक्र यदि केन्द्र (1/4/7/10) में बैठा हो तो विद्या, कला, बहुगुणों से शोभित कामधेनु के बराबर भोग से पूर्ण, सुन्दर स्त्रियों के साथ विलास करने वाला देश नगर, देखने में व्यस्त राजा होता है।

20. मीन में शुक्र, बारहवें भाव में बुध, धन भाव में राहु, लग्न में रवि, तीसरे भाव में मंगल हो तो राजयोग होता है।

21. लग्न में गुरु, शुक्र; मेष में सूर्य; मकर में मंगल हो तो दास कुल में उत्पन्न होने पर भी छत्रधारी राजा होता है।

22. गुरु, शुक्र और चंद्रमा ये तीनों मीन राशि के हों तो इस योग में जन्म लेने वाले को राज्यप्राप्ति होती है और उसकी पत्नी अनके पुत्र वाली होती है।

23. मीन का चंद्रमा, मकर का मंगल, सिंह का सूर्य, कुंभ का शनि हो तो राजयोग होता है।

24. धनु का गुरु चंद्रमा से युक्त, मकर का मंगल और लग्न में उच्च का शुक्र अथवा बुध हो तो राजयोग होता है।

मीन लग्न के आयुष्य योग

मीन लग्न वालों के लिये मंगल भाग्येश होने से मारकेश का कार्य नहीं करेगा। सूर्य परमपापी है। शनि व्ययेश होने से मुख्य मारकेश का काम करेगा। शुक्र अनिष्ट फलदायक है। बुध सप्तमेश होने से सहायक मारकेश का काम करेगा। आयुष्य प्रदाता ग्रह गुरु है।

1. लग्न में गुरु हो, शनि एकादश में, सूर्य द्वितीय भाव में, मान्दी सातवें एवं मंगल नवम भाव में हो जातक मंत्रबल से दीर्घजीवी एवं यशस्वी होता है।

2. गुरु कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो जातक हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला होता है।

3. लग्न में मीन का नवमांश हो, चंद्रमा वृष का हो, नवमांश वगैरा पांच वर्गों में चंद्रमा की स्थिति अच्छी हो, चार-पांच ग्रह, उच्च या स्वगृही हो तो जातक 120 वर्ष की परमायु को भोगता है।

4. लग्न में मीन का नवमांश हो तथा चार ग्रह केन्द्र में हो तो व्यक्ति सौ वर्ष की स्वस्थ शतायु को भोगता है।

5. चंद्रमा स्व. के नवमांश में लग्नगत हो, चार सौम्य ग्रह केन्द्र में हो, चंद्रमा के साथ अन्य कोई ग्रह हो तो व्यक्ति सौ वर्ष की स्वस्थ शतायु को भोगता है।

6. पंचम में चंद्रमा, त्रिकोण में गुरु एवं दशम भाव में मंगल हो तो व्यक्ति दीर्घायु होता है।

7. दशमेश गुरु पंचम भाव में उच्च का हो, अष्टमेश शुक्र लग्न या केन्द्र में हो तो जातक सौ वर्ष से ऊपर स्वस्थ दीर्घायु को भोगता है।

8. अष्टमेश शुक्र लग्न में बैठा हो तथा लग्न गुरु एवं अन्य शुभग्रहों से दृष्ट हो तो जातक सौ वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है ।

9. मीनलग्न में चंद्रमा छठे सिंह का हो, अष्टम स्थान में कोई पापग्रह न हो तथा सभी शुभग्रह केन्द्रवर्ती हो तो ऐसा जातक 86 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है।

13. मीनलग्न में मंगल पांचवें कर्क का हो, सूर्य सातवें एवं शनि मेष का हो तो जातक 70 वर्ष की निरोग आयु को भोगता है।

14. शनि लग्न में, मिथुन का चन्द्र चौथे, मंगल सातवें एवं सूर्य दशम भाव में अन्य किसी शुभ ग्रह के साथ हो तो जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ 60 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

15. मीनलग्न में अष्टमेश शुक्र सातवे एवं चंद्रमा पापग्रहों के साथ छठे या आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

16. शनि किसी भी अन्य ग्रह के साथ लग्नस्थ हो, चंद्रमा पापग्रहों के साथ आठवें या द्वादश भाव में हो तो ऐसा जातक सैद्धान्तिक, चरित्रवान एवं विद्वान होते हुए 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

17. लग्नेश गुरु पापग्रहों के साथ आठवें हो तथा अष्टमेश शुक्र पापग्रहों के साथ छठे, अन्य शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जी पाता है।

18. शनि, मंगल लग्नस्थ हो, चंद्रमा आठवें एवं गुरु छठे हो तो जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है ।

19. द्वितीय और द्वादश भाव में पापग्रह हो, लग्नेश गुरु निर्बल हो तथा लग्न, द्वितीय या द्वादश भाव शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।

20. शनि, मंगल दूसरे स्थान में एवं राहु तीसरे स्थान में बैठा हो तथा शुभग्रहों की दृष्टि न हो तो बालारिष्ट योग बनता है। ऐसा जाताक एक वर्ष के भीतर मर जाता है।

21. शनि सप्तम भाव में हो तथा गुरु, शुक्र, राहु द्वादश भाव में हो तथा अन्य कोई शुभ योग न हो तो ऐसा बालक एक वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त करता है।

22. दूसरे घर में (मेष राशि में) राहु, शुक्र, शनि, सूर्य शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो, लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक जन्म लेने पर पिता को मारता है तथा स्वयं भी कुछ समय बाद गुजर जाता है।

23. सप्तम भाव में शनि, राहु, मंगल, चंद्रमा की युति, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक जन्म लेते ही शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है।

24. दूसरे भाव में मेष का मंगल का हो तथा चतुर्थ, दशम भाव में भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है।

25. द्वादश भाव में गुरु, सूर्य, राहु,मंगल हो सातवें शुक्र हो तो जातक बहुत कष्टमय जीवन जीता है। उसे शारीरिक रुग्णता रहती है।

26. द्वितीय, एकादश या द्वादश भाव में शनि, मंगल, राहु, गुरु की युति हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है। उसे कोई न कोई शारीरिक बीमारी लगी रहती है।

27. अष्टमस्थ सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक मातृघातक होता है।

28. द्वितीयस्थ शनि के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक मातृघातक होता है।

29. लग्नेश गुरु व लग्न दोनों पापग्रहों के मध्य हो, सप्तम स्थान में भी पापग्रह हो तथा आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो ऐसा जातक जीवन में निराश होकर आत्महत्या करता है।

30. चंद्रमा पापग्रहों के साथ हो, सप्तम में शनि हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार से पीडित रहता है।

31. षष्ठेश सूर्य सप्तम या दशम भाव में हो, लग्न पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता है।

32. निर्बल चन्द्रमा अष्टम स्थान में शनि के साथ हो तो जातक प्रेतबाधा एवं शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता हुआ अकाल मृत्यु को प्राप्त करता

मीन लग्न के रोग योग

1. षष्टेश सूर्य लग्न में पापग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति जलस्राव से अंधा होता है।

2. षष्टेश सूर्य पापक्रांत हो तथा शुभग्रह छठे या व्यय स्थान में हो तो जातक को असहय हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है।

3. चौथे भाव में पापग्रह हो, चतुर्थेश बुध पापग्रहों के मध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

4. चतुर्थेश बुध कर्क राशि में, निर्बल या अस्तगत हो अथवा आठवें हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

5. चतुर्थ शनि में षष्टेश शुक्र के साथ हो एवं सूर्य पापग्रहों के साथ हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

6. चतुर्थेश बुध अष्टमेश शुक्र के साथ अष्टम में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

7. चौथे एवं पांचवें भावों में पापग्रह हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

8. चतुर्थ स्थान में शनि एवं सूर्य द्वादश में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

9. चतुर्थ स्थान में राहु अन्य पापग्रहों से दृष्ट हो, लग्नेश, गुरु निर्बल हो तो जातक को असह्य हृदय (हार्ट-अटैक) होता है।

10. वृश्चिक का सूर्य दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक को तीव्र हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है।

11. गुरु, बुध, शुक्र की युति एक साथ दुःस्थानों में हो तो जातक को वाहन दुर्घटना में मृत्यु होती है।

12. लग्न में पापग्रह हो, लग्नेश गुरु बलहीन हो तो व्यक्ति रोगी रहता है।

13. क्षीण चंद्रमा लग्नस्थ हो, लग्न को पापग्रह देखता हो तो व्यक्ति रोग्रस्त रहता है।

14. अष्टमेश शुक्र लग्न में हो, लग्नेश गुरु अष्टम में हो, लग्न को पापग्रह देखता हो तो व्यक्ति दवाई लेने पर भी ठीक नहीं होता, सदैव रोगी रहता है।

मीन लग्न के विवाह योग

1. अष्टमेश की दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो जातक स्त्री दुराचारिणी होती है।

2. स्त्री का जातक बुध उच्च का हो तो वह नारी कवि हृदय, सौभाग्यशालिनी और सुन्दर गुणों से मंडित होती है। ऐसी नारी जीवन के समस्त ऐश्वर्य भोगती है।

3. सप्तम स्थान में सूर्य या उसका नवमांश हो तो उस स्त्री का पति लेखक; विचारक अथवा अफसर होता है, परन्तु रतिचर्या में स्त्री पति से प्रसन्न नहीं रहती।

4. लग्न में सूर्य, शनि तथा सप्तम भाव में बुध हो तो जातक का गृहस्थ जीवन कलहपूर्ण रहता है।

5. मंगल छठे भावस्थ हो, सप्तम भाव में राहु, अष्टम भाव में शनि हो तो जातक की स्त्री जीवित नहीं रहती।

6. सप्तमेश पापग्रह से युति करे या दूसरे अथवा सप्तम भाव में मंगल, राहु, सूर्य, शनि में से कोई हो या शुक्र लाभ स्थान में या नीच की राशि में हो अथवा सूर्य अपने ही घर में या द्वादश स्थान में हो तो जातक दूसरा विवाह अवश्य करता है।

7. शनि द्वितीय स्थान में हो और राहु सप्तम भवन में हो तो जातक दो विवाह करता है।

8. यदि द्वितीयेश व सप्तमेश या शुक्र सातवें घर में हो और दूसरे व सातवें घरों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जितने ही शुभ ग्रहों की दृष्टि हो उतनी ही पत्नियां हों या उतनी ही स्त्रियों से सुख हो पर यदि क्रूर ग्रह से युक्त ये स्थान या शुक्र हो तो यह भोग नहीं होता।

9. नवमेश, सप्तमेश परस्पर स्थान परिवर्तन करते हों तो जातक का, भाग्योदय अपने जीवन साथी के कारण होता है।

10. लग्नस्थ शनि चन्द्रमा के साथ हो तथा सप्तम भाव में सूर्य हो तो ऐसे जातक के विवाह में भंयकर बाधा आती है। विलम्ब विवाह तो निश्चित है। अविवाह की स्थिति भी बन सकती है।

11. शनि छठे, सूर्य आठवें हो एवं सप्तमेश बुध निर्बल हो तो जातक का विवाह नहीं होता ।

12. सूर्य, शनि और शुक्र की युति कहीं भी हो, सप्तमेश बुध हीनबली हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

13. शुक्र कर्क या सिंह राशि का हो तथा सूर्य या चंद्रमा शुक्र से द्वितीय या द्वादश स्थान में हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

14. द्वितीयेश मंगल वक्री हो अथवा द्वितीय भाव में कोई भी ग्रह वक्री होकर बैठा हो जातक के विवाह में अत्यधिक अवरोध उत्पन्न होता है।

15. राहु या केतु सप्तम भाव या नवम भाव में क्रूर ग्रहों से युक्त होकर बैठे हो तो निश्चय ही जातक का विवाह विलम्ब से होता है। ऐसा जातक प्राय: अन्तर्जातीय विवाह करता है।

16. सप्तमेश बुध अस्त हो, सप्तम भाव में कोई ग्रह वक्री हो अथवा किसी वक्री ग्रह की सप्तम भाव पर दृष्टि हो तो जातक के विवाह में अवरोध आते हैं और विवाह समय पर सम्पन्न नहीं होता।

17. द्वितीयेश मंगल और शनि की परस्पर दृष्टी हो तो विवाह विलम्ब से होता है, ससुराल से खटपट रहती है।

18. सातवें सूर्य शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो स्त्री पति द्वारा त्याग दी जाती है अर्थात् उसे तलाक मिलता है।

19. सप्तमेश बुध आठवें स्थान में पापग्रहों से युत हो या पापग्रहों के मध्य हो तो ऐसा जातक अपने जीवनसाथी की हत्या करता है एवं कुल को कलंकित करता है।

20. सूर्य आठवें शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसी स्त्री नितनूतन वस्त्र-अलंकार पहनकर पर पुरुषों का संग करती है एवं कुल की मार्यादा को नष्ट कर देती है।

21. मंगल आठवें हो तो ऐसी स्त्री मृगनयनी एवं कुटिल स्वभाव की होती है। ऐसी स्त्री प्राय: प्रेमविवाह करती हुई, स्वच्छन्द यौनाचार में विश्वास रखती है।

22. चंद्रमा (2/4/6/8/10/12) राशि में हो तो ऐसी स्त्री अत्यन्त कोमल एवं मृदु स्वभाव वाली जातक होती है।

23. गुरु, बुध, शुक्र एवं मंगल बलवान हो तो ऐसी स्त्री विख्यात विदुषी, सच्चरित्र वाली एवं सभ्य महिला होती है।

24. जातक पारिजात के अनुसार मीन लग्न में उत्पन्न कन्याएं कामक्रीडा व अन्य कलाओं में निपुण होता है। यदि चंद्रमा लग्न में हो तो ऐसी स्त्री पति की प्रिया एवं प्राणवल्लभा होती है।

25. लग्नस्थ गुरु के साथ अष्टमेश शुक्र हो तो ‘द्विभार्या योग’ बनता है। ऐसा जातक दो नारियों के साथ रमण करता है।

26. बुध सप्तम भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक एवं साथ में दो स्त्रियों से प्रेम रखता है अर्थात् विवाहित पत्नी के अतिरिक्त उसके उपपत्नी भी होती है।

27. सप्तमेश बुध द्वितीय या द्वादश स्थान में हो तो पूर्ण ‘व्यभिचारी योग’ बनता है। ऐसा पुरुष जीवन में अनेक स्त्रियों के साथ सम्भोग करता है ।

मीन लग्न के संतान योग

1. पंचमेश चंद्रमा आठवें हो तो जातक को अल्प संतति होती है।

2. पंचमेश चंद्रमा क्षीण हो, पापग्रस्त या पापपीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति के पुत्र नहीं होता ।

3. गुरु कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो जातक के पहली संतान कन्या होती है।

4. पंचमेश चंद्रमा विषम राशि में हो तो तथा गुरु से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति के प्रथम संतान पुत्र ही होगा।

5. सूर्य अकेला कर्क राशि में हो जातक दूसरा विवाह करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है।

6. मंगल अकेला कर्क राशिगत पंचमस्थ हो तो जातक को दूसरे विवाह से पुत्र की प्राप्ति होती है।

7. शुक्र अकेला कर्क राशिगत पंचमस्थ हो तो व्यक्ति को दूसरे विवाह के बाद पुत्र की प्राप्ति होती है।

8. बुध अकेला कर्क राशिगत हो तो जातक के थोड़े पुत्र होते हैं।

9. शनि अकेला कर्क राशिगत हो तो जातक के बहुत पुत्र होते हैं।

10. चंद्रमा स्वराशिगत पंचमस्थ हो तो थोड़े पुत्र होते हैं।

11. कर्क राशि में अकेला गुरु पंचमस्थ हो तो जातक के बहुत कन्याएं होती है।

12. पंचमेश चंद्रमा लग्न में हो एवं लग्नेश गुरु पंचम भाव में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो जातक दूसरों की संतान गोद में लेकर अपने पुत्र की तरह पालता है।

13. मीन लग्न के पंचम भाव में कर्क राशि होने से, यदि अन्य कोई दुर्योग न हो तो विवाहोपरान्त जातक के शीघ्र संतति होती है।

14. गुरु कमजोर हो, साथ में पंचमेश चंद्रमा, सप्तमेश बुध ही बलहीन हो तो ‘अनपत्य योग बनता है। ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती।

15. राहु, सूर्य एवं मंगल पंचम भाव में हो तो ऐसे जातक को शल्यचिकित्सा द्वारा कष्ट से पुत्र संतान की प्राप्ति होती है।

16. पंचमेश चंद्रमा कमजोर हो तथा राहु एकादश भाव में हो तो जातक के वृद्धावस्था में संतान होती है।

17. पंचम स्थान में राहु, केतु या शनि इत्यादि पापग्रह हो तो गर्भपात अवश्य होता है।

18. लग्नेश गुरु द्वितीय स्थान में हो एवं पंचमेश व चंद्रमा पापग्रह या

पापपीड़ित हो तो ऐसे जातक के पुत्र संतान उत्पन्न होकर नष्ट हो जाते हैं।

19. पंचमेश वृष, कर्क, कन्या या तुला राशि में हो तो जातक को प्रथम संतति के रूप में कन्यारत्न की प्राप्ति होती है।

20. पंचमेश चंद्रमा की सप्तमेश बुध के साथ युति हो तो जातक को प्रथम संतान के रूप में कन्यारत्न की प्राप्ति होती है।

21. सप्तम भाव में अर्थात् कन्या राशिस्थ मंगल हो तो एवं उस पर शनि की दृष्टि हो अर्थात् लग्न में मीन का शनि हो तो जातक स्त्री के संतान नहीं होती।

22. लग्नेश पंचमेश की युति कहीं भी हो तो जातक का संतान पक्ष प्रबल होता है।

23. गुरु चंद्रमा अपनी उच्च राशि क्रमशः कर्क वृष में हों; पुनः क्रमशः पंचम व तृतीय भाव में हो तो जातक की संतान अत्यधिक भाग्यशाली होती है।

24. समराशि (2, 4, 6, 8, 10, 12) में गया हुआ बुध कन्या संतति की बाहुल्यता देता है। यदि चंद्रमा और शुक्र का भी पंचम भाव पर प्रभाव हो तो यह योग अधिक पुष्ट हो जाता है।

25. पंचमेश चंद्रमा निर्बल हो, लग्नेश गुरु निर्बल हो, पंचम भाव में राहु हो तो जातक को सर्वदोष के कारण पुत्र संतान नहीं होती ।


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