मीन लग्न में शुक्र का फलादेश

मीन लग्न में शुक्र पराक्रमेश एवं अष्टमेश है। अष्टमेश होने से यह अशुभ फल ही देगा। शुक्र लग्नेश गुरु से शत्रु भाव भी रखता है।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश प्रथम स्थान में

शुक्र यहां प्रथम स्थान में मीनराशि में उच्च का होगा। मीन राशि के 27 अंशों में शुक्र परमोच्च का होता है। शुक्र की यह स्थिति ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘मालव्य योग’ बनाती है। जातक सुन्दर देहयष्टि वाला, सौन्दर्यप्रिय एवं आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। जातक संवेदनशील, भावुक, सभ्य एवं विनम्र स्वभाव का होगा। जातक की छोटे भाई-बहनों के साथ ठीक बनेगी।

दृष्टि – लग्नस्थ शुक्र की दृष्टि सप्तम भाव (कन्या राशि) पर होगी। जातक की पत्नी सुन्दर होगी।

निशानी – अष्टमेश लग्न में होने से जातक देहसुख से हीन, शरीर में कुछ न्यूनता पाने वाला एवं ब्राह्मणों का निन्दक होता है अथवा नास्तिक होता है।

दशा – शुक्र की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी। अष्टमेश होने से कुछ दशा प्रतिकूल भी होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा हो तो जातक की पत्नी अत्यन्त सुन्दर होगी। जातक स्वयं आकर्षक व्यक्तित्व वाला होगा।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य जातक की निर्णय शक्ति को कमजोर करेगा।

3. मंगल + शुक्र – शुक्र के साथ मंगल जातक को निश्चय ही मंत्री या मंत्री के समकक्ष राजकीय वैभव देगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा। जातक की पत्नी सुन्दर एवं धनाढ्य होगी।

4. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनायेगा। जातक राजा या उसके समकक्ष वैभव सम्पन्न एवं पराक्रमी व्यक्ति होगा।

5. शनि + शुक्र – शुक्र के साथ शनि जातक को व्यापार में दिक्कतें देगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु व्यक्तित्व विकास में बाधक है। जातक गलत कार्यों की ओर प्रवृत्त होगा ।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु जातक को यशस्वी बनायेगा ।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश द्वितीय स्थान में

शुक्र यहां द्वितीय स्थान में मेष राशि में होगा। ऐसे जातक की इच्छाएं बढ़ी चढ़ी होती है तथा शीघ्र धनवान होने के लिए लॉटरी, सट्टा, जुएं इत्यादि गलत कार्यों का सहारा लेने में जरा भी संकोच नहीं करते। जातक की भाषा विनम्र होगी। कुटुम्ब में सुख उत्तम होगा। जातक कलाप्रेमी होगा, स्वयं कलाकार होगा। जातक की प्रवृत्ति खर्चीली होगी। जिससे धन संग्रह की असुविधा रहेगी।

दृष्टि – द्वितीयस्थ शुक्र की दृष्टि अपने ही घर अष्टम भाव (तुला राशि) पर होगी। फलतः जातक लम्बी उम्र का स्वामी होगा।

निशानी – जातक के छोटे भाई-बहन नही होगे, यदि होंगे भी तो उनसे बनेगी नहीं।

दशा – शुक्र की दशा शुभफल देगी परन्तु शक्र में मंगल का अंतर मारक होगा। शुक्र की दशा अपेक्षित शुभफल नहीं दे पायेगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा जातक को धनवान बनायेगा। प्रथम संतति के बाद जातक का भाग्योदय होगा।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ उच्च का सूर्य आर्थिक विषमता देते हुए भी जातक को धनी बनायेगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल जातक को भाइयों-कुटुंबियों एवं मित्रों से लाभ देगी।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से जातक का ससुराल धनी व पराक्रमी होगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु होने से जातक की वाणी गम्भीर एवं हितकारी होगी।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि धन संग्रह में बाधक है।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु आर्थिक विषमताओं के अंबार लगा देगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु धन हानि करायेगा। धन को लेकर परेशानी रहेगी।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश तृतीय स्थान में

शुक्र यहां तृतीय स्थान में स्वगृही होगा। शुक्र यहां आठवें भाव से आठवें स्थान पर है। जातक का कण्ठ अच्छा होगा। जातक स्वयं कलाकार या संगीत मर्मज्ञ होगा। जातक यात्राएं अधिक करेगा एवं जनसम्पर्क सघन रखेगा। जातंक भाग्यशाली होगा तथा स्त्री-मित्र उसे भाग्योदय में सहायक होगी।

दृष्टि – तृतीयस्थ स्वगृही शुक्र की दृष्टि भाग्य स्थान पर है। जातक धार्मिक होगा एवं पिता के साथ उसकी ठीक बनेगी।

निशानी – बहनें अधिक होगी। जातक के पास वाहन एवं अन्य सुख-सुविधाएं उपलब्ध होते हुए भी उनका उपयोग कम करेगा। इसके पीछे मुख्य कारण आलसी एवं कंजूस मनोवृत्ति होगी।

दशा – शुक्र की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा ‘किम्बहुना योग’ की सृष्टि करेगा। जातक को कुटुम्ब परिवार का पूर्ण सुख मिलेगा। बहनें अधिक होगी।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य परिजनों में विवाद उत्पन्न कराएगा। बड़े भाई का सुख कमजोर रहेगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल भाई-बहनों का भरपूर सुख देगा। मित्रों से लाभ रहेगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से जातक की पत्नी एवं माता दोनों पराक्रमी होगी।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु जातक को महान पराक्रमी बनायेगा। जनसम्पर्क तेज होगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि परिजनों में विद्वेष मनमुटाव उत्पन्न करेगा।

7. शुक्र + राहु – भाइयों में कलह चरम सीमा पर रहेगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु जातक को पराक्रमी एवं यशस्वी बनायेगा।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश चतुर्थ स्थान में

शुक्र यहां चतुर्थ स्थान में मिथुन (मित्र) राशि में होगा। शुक्र के कारण कुलदीपक योग बनेगा। मानसागरी के अनुसार शुक्र केन्द्रवर्ती होने से राजयोग देता है। यह शुक्र तीसरे भाव से दूसरे स्थान पर, तथा आठवें भाव से नवमें स्थान पर है।

यह शुक्र उत्तम भवन, उत्तम वाहन, घर-गृहस्थ, आजीविका के उन्नत सुख देगा। माता का सुख उत्तम, विद्या का योग भी उत्तम देता है।

दृष्टि – चतुर्थभावगत शुक्र की दृष्टि दशम भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः नौकरी-व्यापार श्रेष्ठ रहेग।|

निशानी – पति-पत्नी के मध्य यौन संबंध उत्तम होगा। जातक यदि स्वेच्छाचारी विचारों पर नियंत्रण रखेगा तो शुक्र अष्टमेश का अशुभ फल नहीं देगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा श्रेष्ठफल देगी। शुक्र की दशा में मंगल व बुध की अंतरदशा कष्टदायक हो सकती है।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा होने से जातक शिक्षित होगा एवं कला प्रेमी होगी।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य माता को बीमार करायेगा। जातक की माता से कम बनेगी।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल मित्रों से धन लाभ देगा। जातक भाग्यशाली होगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध ‘भद्र योग’ करायेगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा। उसके पास अनेक वाहन होंगे।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु ‘केसरी योग’ बनायेगा। जातक के पास एक से अधिक मकान होंगे।

7. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि वाहन दुर्घटना का भय कराता है।

8. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु माता को कष्ट देगा।

9. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु भौतिक सुख में बाधक है।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश पंचम स्थान में

शुक्र यहां पंचम स्थान में कर्क राशि में है। शुक्र यहां तीसरे भाव (वृष राशि) से तीसरे एवं आठवें भाव से दशम स्थान पर है। जातक की शिक्षा उत्तम होगी। Educational Degree मिलेगी। कला क्षेत्र में जातक ज्यादा नाम कमायेगा। जातक तंत्र-मंत्र ज्योतिष एवं गूढ विद्याओं का जानकार होगा। जातक को गुप्त धन या किसी मृतक का धन मिलता है।

दृष्टि – पंचमस्थ शुक्र की दृष्टि एकादश स्थान (मकर राशि) पर होगी। ऐसे जातक को मित्रों एवं पड़ोसियों से संबंध ठीक होगा। पति-पत्नी में प्रेम अच्छा रहेगा।

निशानी – जातक के प्रथम कन्या होगी। कन्या संतति अधिक होगी। जातक को जुआ, सट्टा, लॉटरी, शेयर बाजार की लत लगी रहती है। इससे उसे धन भी मिलता है।

दशा – शुक्र की दशा-अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा स्वगृही होने से जातक वेद-विद्या एवं उच्च साहित्य, संगीत का जानकार होगा।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य प्रारम्भिक विद्या में बाधक है। पुत्र संतान में विलम्ब या कष्ट देगा |

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल जातक को धन लाभ देगा। प्रथम संतति के बाद भाग्योदय होगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध प्रथम संतति शल्य चिकित्सा से देगा। जातक को प्रथम संतति कष्ट से होगी।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ उच्च का गुरु उत्तम पुत्र लाभ देगा। जातक को राजा (सरकार) से सम्मान मिलेगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि विद्या में बाधक है। उच्च शैक्षणिक डिग्री नहीं: मिल पायेगी।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु विद्या व संतान सुख में बाधक है।

8. शुक्र – केतु – शुक्र के साथ केतु विद्या में रुकावट लायेगा।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश षष्टम स्थान में

शुक्र यहां छठे स्थान में सिंह (शत्रु) राशि में होगा। शुक्र यहां अष्टमेश होकर छठे जाने से ‘सरल नामक’ ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा । पराक्रमेश छठे जाने से ‘पराक्रमभंग योग’ भी बनेगा।

ऐसा जातक धनी मानी अभिमानी एवं साधन सम्पन्न होता है। जातक को मामा का सुख श्रेष्ठ, नौकर-चाकर का सुख श्रेष्ठ पर वैवाहिक जीवन में कटुता आयेगी। कई बार पराक्रम भंग, मानभंग होने के अवसर भी आयेगे। ऐसा जातक शत्रुओं पर विजय जरूर प्राप्त करता है।

दृष्टि – छठे भावगत शुक्र की दृष्टि द्वादश भाव (कुंभ राशि) पर होगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। देश-आराम पर रुपया खर्च करेगा। विदेश गमन से लाभ है।

निशानी – ऐसे जातक को बाल्यावस्था में सर्प और जल का भय रहता है। जातक के दो विवाह योग बनते हैं।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में धन संग्रह होगा। भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा ‘संतानहीन योग’ देता है। जातक को विद्या एवं संतान में बाधा आयेगी।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य होने से हर्ष नामक ‘विपरीत राजयोग’ बना। जातक धनवान होगा। ऐश्वर्यवान होगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल ‘धनहीन योग’ एवं ‘भाग्यहीन योग’ बनायेगा। जातक का जीवन संघर्षमय रहेगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध ‘सुखहीन योग’ एवं ‘विवाहभंग योग’ करायेगा। विवाह सुख में बाधा आयेगी।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बनाता है। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि ‘लाभभंग योग’ एवं विमलनामक विपरीत राजयोग बनाता है। जातक धनी मानी अभिमानी होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु जातक को राजयोग बनायेगा। शत्रुओं का नाश होगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु गुप्त शत्रु देगा। गुप्त बीमारी देगा।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश सप्तम स्थान में

शुक्र यहां सप्तम स्थान में नीच का होगा। शुक्र यहां ‘कुलदीपक योग’ बना रहा है। मानसागरी के अनुसार केन्द्रवर्ती शुक्र राजयोग भी बनाता है। ऐसा जातक सुन्दर दिखने का शौकीन व कामी होता है। जातक के अपने भाई-बहन, मित्रों में खूब बनेगी भागीदारी के व्यापार में लाभ होगा।

दृष्टि – सप्तमस्थ शुक्र की दृष्टि लग्न स्थान (मीन राशि) पर होगी। ऐसे जातक का चेहरा व व्यक्तित्व आकर्षक होगा। जातक द्वारा परिश्रमपूर्वक किये गये पुरुषार्थ का फल मिलेगा।

निशानी – जातक के दो पत्नी होती है। अशुभ ग्रहों की युति व दृष्टि से यह योग सार्थक हो सकता है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी। मंगल की अंतर्दशा मारक का काम करेगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा होने से जातक की पत्नी अत्यधिक सुन्दर होगी। जातक कामी होगा।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य वैवाहिक सुख में बाधक होगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल जातक को धनवान एवं भाग्यशाली बनायेगा ।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु होने से ‘लग्नाधिपति योग’ बनेगा। जातक को प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि होने से पत्नी से विचारधारा नहीं मिलेगी।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु गृहस्थ सुख में बाधक है। जातक के दो विवाह होंगे।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु पत्नी से मनमुटाव करायेगा।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश अष्टम स्थान में

शुक्र यहां अष्टम स्थान में स्वगृही होगा। अष्टमेश अष्टम में जाने से ‘सरल नामक’ विपरीत राजयोग एवं ‘पराक्रमभंग योग’ बनता है। तीसरे भाव के छठे स्थित होने के कारण यह शुक्र वैवाहिक जीवन के आनंद को बिगाड़ेगा। जातक के दो विवाह हो सकते हैं।

‘विपरीत राजयोग’ के कारण जातक धनी मानी व अभिमानी होगा। भौतिक सुख-संसाधनों की जीवन में कमी नहीं होगी। जातक गीत-संगीत, कला व अभिनय का शौकिन होगा। जातक लम्बी उम्र का स्वामी होगा।

दृष्टि – अष्टम भावगत शुक्र की दृष्टि धन स्थान (मेष राशि) पर होगी। जातक धनी होगा व अनेक साधनों से धन कमायेगा |

निशानी – जातक की वाणी मीठी होगी तथा दाई आंख की रोशनी तेज होगी। परन्तु जातक में परनिन्दा का दुर्गुण होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक धनवान होगा एवं भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करेगा। स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा ‘संतानहीन योग’ बनाता है। जातक के गृहस्थ सुख में बाधा रहेगी।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य ‘नीचभंग राजयोग’ बनाता है। हर्ष नामक विपरीत राजयोग’ बना। जातक धनी-मानी एवं सम्पूर्ण ऐश्वर्य संसाधनों से परिपूर्ण जीवन जीयेगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल ‘धनहीन योग’ एवं ‘ भाग्यहीन योग’ बनायेगा। फलत: जातक का जीवन संघर्षमय होगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध होने से ‘सुखहीन योग’ एवं ‘विलम्बविवाह योग’ “बनायेगा। फलत: जातक का वैवाहिक जीवन प्रश्नवाचक होगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु होने से ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ बना। ऐसे जातक को राजदण्ड मिल सकता है।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि होने से विमल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनी होगा यहां पर ‘किम्बहुना योग’ भी बनेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु गुप्त बीमारी एवं विवाह सुख में बाधा उत्पन्न करेगा।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु जातक को वैवाहिक कष्ट देगा।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश नवम स्थान में

शुक्र यहां नवम स्थान में वृश्चिक राशि में होगा। शुक्र यहां तीसरे भाव से सातवें एवं आठवें भाव से दूसरे स्थान पर स्थित है। जातक को पिता एवं भाग्य का सुख उत्तम होता है। जातक को सहोदर का सुख मिलता है। जातक का भाग्योदय कला के क्षेत्र में होता है। धन सुरक्षा एवं अमानत के मामले में जातक का ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जातक रंगीन मिजाज का गैर जिम्मेदार व्यक्ति होगा।

दृष्टि – नवम भावगत शुक्र की दृष्टि पराक्रम स्थान अपने ही घर वृष राशि पर होगी। फलत: जातक अपने कुटुम्ब का रक्षक होगा। मित्र बहुत होंगे पर स्त्री-मित्रों से लाभ अधिक है।

निशानी – जातक के बहने अधिक होगी। पत्नी दुष्ट स्वभाव की होगी। दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ नीच का चंद्रमा जातक को उच्च श्रेणी का कलाकार, संगीतप्रेमी एवं साहित्यकार बनायेगा ।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य भाग्योदय में अवरोध उत्पन्न करेगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ बलवान धनेश की युति ‘भतृमूलधन योग’ बनायेगी। जातक को भाइयों, कुटम्बियों एवं मित्रों से धनलाभ होगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध जातक को माता-पिता से लाभ दिलायेगा । जातक बुद्धिबल से आगे बढ़ेगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु होने से जातक को स्त्री-मित्रों से विशेष लाभ होगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि, व्यापार से लाभ दिलवायेगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु भाग्योदय में बाधक है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु होने से अन्य स्त्रियों के कारण बदनामी मिलेगी।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश दशम स्थान में

शुक्र यहां दशम स्थान में धनु राशि का होगा। शुक्र कुलदीपक योग बनायेगा । शुक्र यहां अपनी वृष राशि से आठवें एवं तुला राशि से तीसरे स्थान पर स्थित है।

ऐसे जातक को मकान, भू-सम्पत्ति नौकरी-व्यवसाय एवं धन-सम्पत्ति का बराबर लाभ होगा। अष्टमेश दशम स्थान पर होने से जातक को पिता का सुख नहीं होगा। नौकरी प्राप्ति हेतु भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

दृष्टि – दशम भावगत शुक्र की दृष्टि चतुर्थ भाव (मिथुन राशि) पर होगी। माता-पिता का सुख सामान्य विद्या सुख श्रेष्ठ जातक शुक्र के धंधे से कमायेगा। वकील, डाक्टर बने तो यश प्रतिष्ठा अच्छी मिलेगी।

निशानी – जातक चुगलखोर होगा। दूसरों की बात अपने पेट में नहीं पचा पायेगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा मध्यम फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा जातक को राज (सरकार) से धन दिलायेगा। राजनीति से लाभ मिलेगा।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य राजा से कष्ट दिला सकता है। कोर्ट-कचहरी से परेशानी होगी।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल ‘दिक्बली’ एवं ‘उच्चाभिलाषी’ होगा। ऐसा व्यक्ति राजा से उच्च पद-प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा ।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध माता का सुख, वाहन का सुख एवं नौकर-चाकर का सुख मिलेगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु ‘हंस योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यशाली होगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि होने से जातक व्यापार प्रिय होगा। उद्योगपति होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु-व्यापार में बाधक है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवायेगा ।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश एकादश स्थान में

शुक्र एकादश स्थान में मकर (मित्र) राशि में है। शुक्र की यह स्थिति राजनैतिक एवं सामाजिक सुख में बाधक है। ऐसे जातक की माता-पिता के साथ नहीं बनेगी। मित्र भी ज्यादा अच्छे नहीं होंगे। मकान एवं वाहन सुख तो होगा पर हाथ हमेशा तंग रहेगा। ऐसे जातक की बाल्यावस्था कष्टपूर्ण, युवावस्था अति उत्तम परन्तु वृद्धावस्था में संतान की चिन्ता रहेगी।

दृष्टि – एकादश स्थान में स्थित शुक्र की दृष्टि पंचम भाव (कर्क राशि) पर होगी। फलतः प्रथम कन्या होगी। संतान के रूप में कन्या संतति अधिक होगी। जातक को प्रारम्भिक विद्या में बाधा होगी।

निशानी – गृहस्थ सुख मध्यम । दिखलाई देने में पति-पत्नी में प्रेम होगा पर दोनों एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करेंगे।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा शुभ फल नहीं देगी। जातक की पत्नी या संतति बीमार रहे।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा जातक को उच्च शिक्षा दिलायेगा। जातक साहित्य, संगीत में रुचि रखेगा।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य उद्योग में गड़बड़ उत्पन्न करेगा।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ उच्च का मंगल जातक को करोड़पति बनायेगा।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध जातक को उत्तम जीवनसाथी देगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु जातक को प्रयत्न करने से सफलता मिलेगी।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि जातक को धनवान एवं विपुल सम्पत्ति का स्वामी बनायेगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु व्यापार सुख में बाधक है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु व्यापार में रुकावटें उत्पन्न करेगा।

मीन लग्न में शुक्र का फलादेश द्वादश स्थान में

शुक्र यहां द्वादश स्थान में कुम्भ (मित्र) राशि का होगा। अष्टमेश का द्वादश में जाने से सरल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। तृतीयेश का बारहवें जाने से पराक्रमभंग योग भी बनेगा।

यह शुक्र धन-यश, पद-प्रतिष्ठा का लाभ देगा। भौतिक सुख-सम्पत्ति बनी रहेगी। जातक का वैवाहिक जीवन सुखी, स्त्री संतान सुख श्रेष्ठ रहेगा। जातक विलासी जीवन जीयेगा। जातक ज्यादातर सरकारी या पराये पैसे पर मौज करेगा।

दृष्टि – द्वादश भावगत शुक्र की दृष्टि छठे स्थान (सिंह राशि) पर होगी। जातक के गुप्त शत्रु होंगे। गुप्त रोग की भी संभावना बनी रहेगी।

निशानी – जातक का पैसा कुकार्य, व्यसन, जुआं, मौज-शौक में खर्च होगा। जातक पर कर्जा होगा। पर जातक उसकी चिंता नहीं करेगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + चंद्रमा – शुक्र के साथ चंद्रमा ‘संतानहीन योग’ बनाता है जातक को गृहस्थ सुख में न्यूनता महसूस होती रहेगी।

2. शुक्र + सूर्य – शुक्र के साथ सूर्य हर्षनामक ‘विपरीत राजयोग’ बनाता है। जातक धनवान एवं अभिमानी होगा पर नेत्रपीड़ा रहेगी।

3. शुक्र + मंगल – शुक्र के साथ मंगल ‘धनहीन योग’ एवं ‘भाग्यहीन योग’ बनाता है। जातक के दो पत्नियां होगी।

4. शुक्र + बुध – शुक्र के साथ बुध ‘सुखहीन योग’ एवं ‘विलम्बविवाह योग’ बनाता है। जातक को भौतिक सुखों में न्यूनता का आभास होता रहेगा।

5. शुक्र + गुरु – शुक्र के साथ गुरु होने से जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा। ‘लग्नभंगयोग’ एवं ‘राजभंग योग’ के कारण समाज में उचित सम्मान नहीं मिलेगा।

6. शुक्र + शनि – शुक्र के साथ शनि ‘लाभभंग योग’ एवं विमल नामक ‘विपरीत राजयोग बनाता है। जातक धनी-मानी एवं अभिमानी होगा।

7. शुक्र + राहु – शुक्र के साथ राहु वैवाहिक सुख में बाधक है।

8. शुक्र + केतु – शुक्र के साथ केतु व्यर्थ के खर्च एवं गुप्त रोगों की संभावना बनायेगा।

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