मीन लग्न में चंद्र का फलादेश
चंद्रमा मीन लग्न में पंचमेश होने से शुभफल एवं योग कारक है। चंद्रमा लग्नेश गुरु का मित्र भी है।
मीन लग्न में चंद्र की स्थिति प्रथम स्थान में
चंद्रमा यहां प्रथम स्थान में मीन (मित्र) राशि का है। ऐसे जातक का जन्म पूर्वजन्म के शुभ पुण्यफल के रूप में होता है। जातक का शरीर व चेहरा सुन्दर होगा। जातक का जीवनसाथी सुन्दर होगा। माता का सुख उत्तम होगा।
दृष्टि – लग्नस्थ चंद्रमा की दृष्टि सप्तम भाव (कन्या राशि) पर होने से गृहस्थ सुख श्रेष्ठ, विद्यावान् होगा। बातचीत में कुशल होगा ।
निशानी – कन्या संतति अधिक होगी। प्रथम कन्या होगी।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा अति उत्तम फल देगी। इसकी दशा में जातक तीर्थाटन करेगा।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश एवं पंचमेश की युति लग्न में जातक को आकर्षक व्यक्तित्व का धनी बनायेगा। जातक महान् शिक्षाविद् होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां प्रथम स्थान में दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों चतुर्थ स्थान मिथुन राशि, सप्तम भाव कन्या राशि एवं अष्टम स्थान तुला राशि को देखेंगे। फलतः जातक धनवान होगा। लम्बी उम्र का स्वामी होगा। जीवन में सभी भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति सहज से होगी। परन्तु जातक का सही आर्थिक विकास विवाह के बाद होगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को सुन्दर पत्नी एवं अनुकूल ससुराल देगा।
4. चंद्रमा + गुरु – गुरु-चंद्रमा की यह युति वस्तुत पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-दशमेश गुरु के साथ युति है। गुरु यहां स्वगृही होकर बलवान होगा। यहां से ये दोनों ग्रह पंचम भाव, सप्तम भाव एवं भाग्य स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। गजकेसरी योग की यह सर्वोत्तम स्थित है। यहां ‘हंस योग’, ‘कुलदीपक योग’ व ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि हो रही है।
जातक का भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद होगा। जातक का दूसरा भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा । ‘पद्मसिंहासन योग’ के कारण जातक की गिनती समाज के चुनिन्दा प्रतिष्ठित व भाग्यशाली व्यक्तियों में होगी। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ उच्च का शुक्र ‘मालव्य योग’ बनायेगा। जातक राजातुल्य पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली एवं कामदेव के समान कमनीय होगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक को खर्चीले स्वभाव का बनायेगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु जातक को अनेक कार्यों में उलझाये रखेगा।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु जातक को कीर्तिवन्त बनायेगा ।
मीन लग्न में चन्द्र का फलादेश द्वितीय स्थान में
चंद्रमा यहां द्वितीय स्थान में मेष (मित्र) राशि में होगा। ऐसे जातक को कुटुम्ब सुख उत्तम होगा। धन श्रेष्ठ आंख, दांत, गला का रोग नहीं होगा। जातक का वाणी मधुर माता का सुख भी उत्तम रहेग।
दृष्टि – चंद्रमा की दृष्टि अष्टम स्थान (तुला राशि) पर होने से जातक को जलभय रहेगा। कफ प्रकृति के रोग होंगे।
निशानी – ऐसे जातक के अनेक पुत्र होते है। जातक अति धनवान एवं यशस्वी होता है।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा उत्तम फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश एवं पंचमेश की युति जातक को महाधनी बनायेगी क्योंकि यहां सूर्य उच्च का योगकारक चन्द्रमा के साथ होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां द्वितीय स्थान में दोनों ग्रह मेषराशि में होंगे। मेषराशि में मंगल स्वगृही होगा। फलतः यहां ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टियां, पंचमभाव कर्क राशि, अष्टम भाव तुला राशि एवं भाग्यभवन वृश्चिक राशि पर होगी। फलत: जातक महाधनी होगा। लम्बी उम्र का स्वामी होंगा। जातक सौभाग्यशाली होगा। जातक बुद्धिमान, विद्यावान् होगा। जातक की संतति भी धनवान एवं बुद्धिशाली होगी।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक को भौतिक उपलब्धि एवं सांसारिक सुख देगा।
4. चंद्रमा + गुरु – मीन लग्न के द्वितीय स्थान में गुरु चंद्रमा की यह युति वस्तुतः पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-दशमेश गुरु के साथ युति होगी। जहां बैठकर ये दोनों शुभग्रह षष्टम् स्थान, अष्टम स्थान एवं दशम भाव पर होगी। फलत: जातक को ऋण रोग व शत्रु का भय नहीं रहेगा। जातक की आकस्मिक आपदाओं व दुर्घटनाओं से बचाव होता रहेगा। जातक को राज्य सरकार से मान-सम्मान मिलेगा। अधिकारियों से सहयोग व लाभ मिलता रहेगा। जातक समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को मीठी एवं विनम्र वाणी देगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि व्यर्थ के खर्च के प्रति जातक का आकर्षण बढ़ायेगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु उपार्जित धन को नष्ट करेगा।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु धन संग्रह में बाधक है।
मीन लग्न में चंद्र का फलादेश तृतीय स्थान में
चंद्रमा यहां तृतीय स्थान में वृष राशि में उच्च का होगा । वृष राशि के तीन अंशों में चंद्रमा परमोच्च का होगा। जातक सहोदरों का प्रिय होगा व भाग्योदय छोटी उम्र में ही होगा।
जातक मिलनसार होगा। जातक को माता-पिता, स्त्री संतान, धन, यश, पद-प्रतिष्ठा का पूरा सुख मिलेगा। जातक लेखक, काव्य-प्रिय व साहित्य प्रेमी होता है। उसके प्रशंसक बहुत होते हैं।
निशानी – जातक के बहनें व कन्याएं अधिक होगी। ऐसा जातक असहिष्णु एवं चंचल स्वभाव का होगा।
दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में जातक तीर्थयात्राएं, देशाटन करेगा। संतति लाभ होगा। विद्या में कीर्ति मिलेगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश-पंचमेश की युति में यहां चंद्रमा उच्च का होगा। जातक महान् पराक्रमी होगा। कुटुम्ब का सुख मिलेगा। जतक की स्त्री मित्रों से विशेष लाभ होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां तृतीय स्थान में दोनों ग्रह वृष राशि में होंगे। वृषराशि में चंद्रमा उच्च का होने से ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह षष्टम स्थान सिंह राशि, भाग्यस्थान वृश्चिकराशि एवं दशमभाव धनुराशि को देखेंगे। फलत: जातक महाधनी होगा। जातक ऋण-रोग व शत्रु का नाश करने में सक्षम होगा। जातक सौभाग्यशाली होगा तथा कोर्ट-केस, मुकदमेबाजी में सदैव विजयश्री का वरण करेगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध कुटुम्ब सुख में वृद्धि, माता के सुख में वृद्धि का द्योतक है।
4. चंद्रमा + गुरु – यहां चंद्रमा उच्च का होकर बलवान होगा तथा दोनों ग्रह सप्तम स्थान, भाग्य स्थान एवं लाभ स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक व्यापार व्यवसाय में बड़ा सम्मान, नाम व धन कमायेगा । जातक का नाम समाज में भाग्यशाली, प्रतिष्ठित व सफल लोगों में होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र ‘किम्बहुना नामक राज योग’ बनायेगा। जातक को कुटम्बीजनों से लाभ होगा। बहनें अधिक होगी।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि मित्रों से लाभ जन सम्पर्क से लाभ देगा परन्तु छोटे भाई का सुख कमजोर करेगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु भाइयों व कुटुम्बियों में विवाद उत्पन्न करेगा।
8. चंद्रमा + केंतु – चंद्रमा के साथ केतु जातक को कीर्तिवान् बनायेगा ।
मीनलग्न में चंद्र का फलादेश चतुर्थ स्थान में
चंद्रमा यहां चतुर्थ स्थान में मिथुनराशि का शत्रुक्षेत्री होगा। चंद्रमा यहां ‘दिग्बली’ होगा। ऐसा जातक को जमीन-जायदाद, स्त्री-संतान, मित्र- रिश्तेदार, धन-यश, पद-प्रतिष्ठा एवं वाहन का सुख मिलेगा। जातक को माता-पिता का सुख मिलता है।
दृष्टि – चतुर्थभावगत चंद्रमा की दृष्टि दशम स्थान (धनु राशि) पर होगी। फलत: जातक को राजकीय सम्मान मिलेगा। जातक राजमंत्री, राजगुरु के पद को प्राप्त करेगा।
निशानी – जातक को माता का सुख तो मिलता है पर माता से विचार नहीं मिलेगा। जातक मानसिक तनाव में रहता है।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा अत्यन्त शुभ फल देगी। चंद्रमा की दशा में रोजी-रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश व पंचमेश की युति केंद्र में, हृदय रोग की संभावना को बढ़ायेगी। जातक की माता बीमार रहेगी।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां चतुर्थ स्थान में दोनों ग्रह मिथुनराशि में होंगे। मंगल का यहा दिक्बली होगा। चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव कन्याराशि, दशम भाव धनुराशि एवं एकादश भाव मकरराशि को देखेंगे। ऐसा जातक धनी होगा। जातक की आर्थिक उन्नति विवाह के बाद होगी। जातक व्यापार-व्यवसाय में धन कमायेगा। ऐसे जातक की राजनीति में भी दबदबा-प्रभाव रहेगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘भद्र योग’ बनायेगा। जातक राजातुल्य पराक्रम व ऐश्वर्यशाली होगा। विद्या एव बुद्धि में तेजस्वी व्यक्ति होगा ।
4. चंद्रमा + गुरु – मिथुनराशि में यह युति वस्तुत: पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-दशमेश गुरु के साथ युति है। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम स्थान, दशम स्थान एवं व्यय भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। यहां क्रमश: ‘पद्मसिंहासन योग’, ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘ यामिनीनाथ’ योग’ बना। फलतः जातक दीर्घायु प्राप्त करेगा। धन खूब कमायेगा। यात्राएं बहुत करेगा। जातक का धन परोपकार के कार्यों में, शुभकार्यों में खर्च होगा। जातक का राजनैतिक वर्चस्व भी उत्तम रहेगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र माता के सुख में न्यूनता उत्पन्न करेगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि, भौतिक उपलब्धियों के भण्डार को भरेगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु माता की मृत्यु छोटी उम्र में करायेगा।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु जातक को लम्बी बीमारी देगा।
मीन लग्न में चन्द्र का फलादेश पंचम स्थान में
चंद्रमा यहां पंचम स्थान में स्वगृही होगा। जातक वाक्पटु होगा। वाणी विनम्र होगी। कल्पना शक्ति प्रखर होगी। जातक उच्च शैक्षणिक डिग्री प्राप्त करेगा। जातक हंसमुख होगा। उसका सोच सकारात्मक होगी। जातक स्वयं यशस्वी होगा एवं उसकी संतान भी यशस्वी होगी। जातक को माता का सुख उत्तम होगा।
दृष्टि – पंचमस्थ चंद्रमा की दृष्टि एकादश स्थान (मकर राशि) पर होगी। फलत: जातक व्यापार द्वारा उत्तम धनार्जन करेगा। बैंक बैलेन्स तगड़ा रहेगा।
निशानी – जातक पुत्रवान होगा पर कन्या संतति अधिक होगी। दो कन्या एक पुत्र का योग बनता है।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में उन्नति प्राप्त होगी। तीर्थयात्रा देशाटन होगा। धर्नाजन भी होगा एवं यश मिलेगा।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश व पंचमेश की युति यहां जातक को सुन्दर संतति व उत्तम शिक्षा देगी।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां पंचम स्थान में दोनों ग्रह कर्कराशि में होंगे। चंद्रमा जहां स्वगृही होगा वहीं मंगल नीचराशि में होने से नीचभंगराज योग’ बनने से ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि हुई। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव तुलाराशि, लाभ स्थान मकरराशि एवं व्ययभाव कुंभराशि को देखेंगे। फलतः जातक महाधनी होगा। लम्बी उम्र का स्वामी होगा। व्यापार-व्यवसाय में धन कमायेगा। पर ऐसे जातक के खर्चे भी बढ़े-चढ़े होंगे।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध होने से जातक को कन्या संतति की बाहुल्यता रहेगी।
4. चंद्रमा + गुरु – कर्क राशि में यह युति वस्तुतः पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश दशमेश गुरु के साथ युति है। चंद्रमा यहां स्वगृही एवं गुरु उच्च का अत्यधिक शक्तिशाली स्थिति में है। यहां बैठकर दोनों शुभग्रह भाग्य स्थान, लाभ स्थान एवं लग्न स्थान को देखेंगे।
फलत: जातक चहुंमुखी विकास 24 वर्ष की आयु में होना शुरू हो जायेगा। जातक को व्यापार-व्यवसाय में उच्च स्थान की प्राप्ति होगी। जातक भाग्यशाली होगा। शिक्षित होगा तथा उसकी संतति भी शिक्षित होगी।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र विद्या में बाधा के साथ जातक कला व अभिनय के क्षेत्र में उभरेगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि प्रारम्भिक विद्या में रुकावट करेगा परन्तु जातक बड़ा उद्योगपति होगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु विद्या व संतान सुख में बाधक है।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु होने से जातक तेजस्वी विद्यार्थी होगा। उसकी संतति भी तेजस्वी होगी।
मीन लग्न में चंद्र का फलादेश षष्टम स्थान में
चंद्रमा यहां छठे स्थान में सिंह (मित्र) राशि में है। चंद्रमा की इस स्थिति से ‘पुत्रहीन योग’ बनता है। महर्षि पाराशर कहते हैं – पुत्र: शत्रु समो भवेत्’, अर्थात प्रथमतः जातक के पुत्र होवे नहीं। पुत्र होवे तो शत्रु के समान व्यवहार करेगा। संतान के मामले में जातक कष्ट पायेगा। जातक के दत्तक पुत्र होगा। विद्या में भी रुकावट आयेगी।
दृष्टि – षष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि द्वादश भाव (कुम्भ राशि) पर होगी। फलतः जातक के शत्रु ज्यादा होंगे। जातक परदेश जाकर बसेगा ।
निशानी – जातक के पेट के रोग, मूत्ररोग, डाईबीटिज या चर्मरोग की संभावना रहती है। जातक को उधार मांगने की आदत होगी। जातक कर्जदार रहेगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा अशुभफल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश व पंचमेश की युति यहां ‘संतानहीन योग’ के कारण हर्ष नामक ‘विपरीतराज योग’ की सृष्टि करेगी। जातक महाधनी एवं वैभवशाली होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां षष्टम स्थान में दोनों ग्रह सिंह राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि अष्टमस्थान तुलाराशि, व्ययस्थान कुंभराशि एवं लग्नस्थान मीनराशि पर होगी। चंद्रमा छठे जाने से ‘संततिहीन योग’ एवं मंगल छठे जाने से ‘धनहीन योग’ एवम ‘भाग्यभंग योग’ भी बनेगा। निसंदेह यह स्थिति शुभ नहीं है। जातक बाहर से धनवान दिखेगा पर अंदर से खोखला होगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘सुखभंग योग’, ‘विवाहभंग योग’ बनायेगा। जातक को भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा।
4. चंद्रमा + गुरु – गुरु के छठे जाने से ‘लग्नभंग योग’ एवं ‘राज्यभंग योग’ बना। चंद्रमा के छठे जाने से ‘संतानहीन योग’ बना। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम स्थान, व्यय स्थान एवं धन स्थान पर दृष्टिपात करेंगे। फलत: जातक को विद्या में बाधा आयेगी। राज्यपक्ष से सरकारी अधिकारी धोखा देंगे। धन की प्राप्ति तो होगी, पर धन निरन्तर खर्च होता चला जायेगा। रुपयों की बरकत नहीं होगी। फिर भी इस योग के कारण जातक का जीवन सार्थक व सफल होगा।
3. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि ‘लाभभंग योग’ के साथ विमल नामक ‘विपरीतराज योग’ बनायेगा । जातक धनी-मानी अभिमानी होगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु गुप्त शत्रुओं के प्रकोप को बढ़ायेगा।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु गुप्त रोगों को उत्पन्न करेगा।
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मीन लग्न में चंद्र का फलादेश सप्तम स्थान में
चंद्रमा लग्नेश गुरु का मित्र भी है चंद्रमा यहां सप्तम स्थान में कन्या में शत्रुराशि में होगा। ऐसे जातक की पत्नी सुन्दर होगी। वैवाहिक जीवन अत्यन्त सुखी होगा। माता का सुख, संतान का सुख उत्तम होगा। भागीदारी में लाभ होगा। ऐसा जातक परोपकारी एवं धार्मिक होगा। उसे सामाजिक कार्यों में यश मिलेगा। जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि मिलेगी।
दृष्टि – सप्तमस्थ चंद्रमा की दृष्टि लग्न स्थान (मीन राशि) पर होगी। जातक दीखने में सुन्दर कोमल शरीर वाला होगा।
निशानी – जातक प्रेम विवाह करेगा। कन्या संतति अधिक होगी, क्योंकि पंचमेश चंद्रमा भी कन्या राशि में है।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में विवाह होगा। उन्नति होगी। संतान की प्राप्ति होगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश व पंचमेश की युति यहां संतान एवं विवाह सुख में बाधक है। संतान एवं पत्नी के विकलांग होने का भय बना रहेगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां सप्तम स्थान में दोनों ग्रह कन्याराशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशमभाव धनुराशि, लग्न स्थान मीनराशि एवं धनभाव मेषराशि को देखेंगे। ऐसा जातक धनवान होगा। जातक अपने परिश्रम से निरन्तर उन्नति पथ की ओर आगे बढ़ता चला जायेगा। जातक का राज्य सरकार कोर्ट कचहरी में दबदबा-प्रभाव अक्षुण्ण बना रहेगा।
3. चंद्रमा + बुध – जातक की पत्नी अति उच्च घराने की होगी। ससुराल धनवान होगा। यहां बुध के कारण ‘भद्र योग’ बना जातक राजा तुल्य ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा।
4. चंद्रमा + गुरु – यह युति वस्तुतः पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-दशमेश गुरु के साथ युति है। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री है। दोनों शुभग्रह यहां बैठकर लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं पराक्रम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। गुरु यहां ‘कुलदीपक योग’, ‘पद्मसिंहासन योग’ बना रहा है। चंद्रमा यहां नीचराशि गत होता हुआ भी ‘यामिनीनाथ योग’ बनायेगा।
फलतः जातक की पत्नी सुन्दर व संस्कारित होगी। जातक के व्यक्तित्व का चहुमुखी विकास होगा। उसे व्यापार व्यवसाय में लाभ होगा। जातक बहुत पराक्रमी एवं यशस्वी होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र होने से जातक की पत्नी सुन्दर होगी पर उसे गुप्त बीमारी रहेगी।
7. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि होने से जातक का जीवनसाथी व्यापार प्रिय होगा।
8. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु होने से गृहस्थ सुख में बाधा, जीवन साथी की मृत्यु तक संभव है।
9. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु होने से जीवनसाथी को दीर्घकालिक बीमारी संभव है।
मीनलग्न में चन्द्र का फलादेश अष्टम स्थान में
चंद्रमा यहां अष्टम स्थान में तुला (सम) राशि में है। चंद्रमा की यह स्थिति ‘पुत्रहीन योग’ की सृष्टि करती है। पाराशर ऋषि के अनुसार जातक थोड़े पुत्र वाला होता है। जातक को संतान से वियोग व कष्ट होगा। जातक बाल्यावस्था में बीमार रहेगा। यदि अन्य अशुभ ग्रह साथ हो तो यहां ‘बालारिष्ट योग बनेगा।
दृष्टि – अष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि धनभाव (मेष राशि) पर होगी। जातक अनेक संसाधनों से धन कमायेगा। वाणी विनम्र होगी।
निशानी – जातक क्रोधी होता है तथा श्वास व दमा की बीमारी से ग्रसित होता है।
दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा अशुभफल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश व पंचमेश की युति यहां ‘संतानहीन योग’ के और हर्ष नामक ‘विपरीतराज योग’ की सृष्टि करेगी। जातक महाधनी एवं वैभवशाली होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां अष्टम स्थान में दोनों ग्रह तुला राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टियां लाभ स्थान, मकर राशि, धन भाव मेष राशि एवं पराक्रमभाव वृषराशि पर होगी। चंद्रमा आठवें जाने से ‘संतानहीन योग’ तथा मंगल आठवें जाने से ‘धनहीन योग’ तथा ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। निश्चय ही यह स्थिति शुभद नहीं है। ऐसा जातक बाहर से धनवान दिखाई देगा परन्तु भीतर से खोखला होगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘सुखहीन योग’ और विलम्ब विवाह योग बनाता है। ऐसे जातक को भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ता है।
4. चंद्रमा + गुरु – गुरु एवं चंद्रमा के अष्टम स्थान में जाने से क्रमशः ‘लग्नभंग योग’, ‘विद्याभंग योग’, ‘संतानहीन योग एवं राज्यभंग योग की सृष्टि हो रही है। अष्टम स्थान में बैठकर गुरु व्यय भाव, धन भाव एवं सुख भाव को देखेंगे
फलतः जातक धनवान होगा। परन्तु धन की बरकत नहीं होगी। रुपया परोपकार के कार्य में यात्राओं में खर्च होता चला जायेगा। विद्या में रुकावट आयेगी। संतान संबंधी चिंता रहेगी।
राज्य सरकार कोर्ट-कचहरी से परेशानी आ सकती है। सावधानी अनिवार्य है। फिर भी इस योग के कारण जीवन कांटोभरी सेज नहीं रहेगी संघर्ष के बाद सभी ओर से सफलता निश्चित है।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र सरल नामक ‘विपरीतराज योग’ एवं ‘पराक्रम भंग योग’ बनायेगा। जातक धनी होगा, मानी होगा। जीवन में संघर्ष रहेगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि ‘लाभभंग योग’ एवं ‘विमल नामक विपरीतराज योग बनायेगा। जीवन में संघर्ष रहेगा। जातक धनी-मानी अभिमानी होगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु आयु के लिए घातक है।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु अनिष्टसूचक है।
मीनलग्न में चंद्र का फलादेश नवम स्थान में
चंद्रमा यहां नवम स्थान में वृश्चिक नीच राशि का होगा। वृश्चिक राशि के 3 अंशों में चंद्रमा परमनीच का होगा। ऐसे जातक का पुत्र राजातुल्य पराक्रमी, विख्यात ग्रंथकार एवं कुल में श्रेष्ठ होता है।
दृष्टि – नवम भाव में स्थित सूर्य की दृष्टि तृतीय भाव (वृष राशि) पर होगी। फलत: जातक को भाई बहन, इष्ट मित्रों का पूर्ण सुख मिलेगा।
निशानी – जातक के बहनें ज्यादा होगी। जातक को पिता सुख श्रेष्ठ होगा।
दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश एवं पंचमेश की युति यहां भाग्योदय में सहायक है। चंद्रमा यहां नीच का होते हुए भी जातक महान् पराक्रमी होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां नवम स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में होंगे। वृश्चिक राशि में जहां चंद्रमा नीच का होगा वहीं मंगल स्वगृही होने से ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा तथा ‘नीचभंगराज योग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव कुंभराशि, पराक्रम भाव वृष राशि एवं चतुर्थ भाव मिथुन राशि को देखेंगे।
फलत: जातक महाधनी होगा। महान पराक्रमी होगा। ऐसे जातक को जीवन में उत्तम वाहन, उत्तम भवन एवं समस्त भौतिक सुख मिलेंगे। परन्तु ऐसे जातक खर्चीले स्वभाव, उदार मनोवृत्ति वाला परोपकारी व दानी होगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध जातक के भाग्योदय में प्रबल सहायक है। जातक महान पराक्रमी होगा।
4. चंद्रमा + गुरु – यह युति वस्तुत: पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-राज्येश गुरु के साथ युति है। चंद्रमा यहां नीच का होगा। गुरु के कारण ‘पदम्सिंहासन योग’ बनेगा। जहां बैठकर ये दोनों शुभग्रह लग्न स्थान, पराक्रम स्थान एवं पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।
फलत: जातक शिक्षित होगा तथा उसकी संतानें भी उच्च शिक्षा प्राप्त करेगी। जातक अपनी संतान के कारण समाज में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा। जातक का जीवन में चहुमुखी विकास होगा। राजनीति में दबदबा रहेगा। जातक महान् पराक्रमी एवं यशस्वी होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक को प्रबल पराक्रमी बनायेगा परन्तु पीठ पीछे निन्दा होगी।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक के भाग्योदय में दिक्कतें पैदा करेगा। जातक कठोर परिश्रमी होगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ नीच का राहु भाग्योदय में बाधाएं उत्पन्न करेगा।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ उच्च का केतु जातक को तीव्र गति से आगे बढ़ायेगा।
मीन लग्न में चंद्र का फलादेश दशम स्थान में
चंद्रमा यहां दशम भाव में धनु (मित्र) राशि में होगा। चंद्रमा यहां अपने स्थान से ‘षडाष्टक योग’ बना रहा है। ऐसा जातक संतान अथवा विद्या को लेकर मानसिक तनाव में रहेगा। फिर भी जातक धनी होगा। जातक सभी प्रकार के भौतिक सुखों को प्राप्त करता हुआ कीर्तिवान होता है।
दृष्टि – दशम भावगत चंद्रमा की दृष्टि चतुर्थभाव (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः माता का सुख श्रेष्ठ, विद्या सुख श्रेष्ठ मिलेगा।
निशानी – जातक अपने कुटुम्ब में श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। जातक विद्वान् होता है। तथा राज सरकार द्वारा सम्मानित होता है।
दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा में जातक को अकल्पनीय शुभफलों को प्राप्ति होती है। जातक सपरिवार धार्मिक यात्राओं व देशाटन पर जाता है।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश व पंचमेश की युति यहां जातक को नौकरी में ऊंचा पद दिलायेगी। जातक राजनीति में कुशल एवं धनवान होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां दशम स्थान में दोनों ग्रह धनुराशि में होंगे। मंगल यहां दिक्बली होकर ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा। चंद्रमा की ‘यामिनीनाथ योग’ बनायेगा। दोनों ग्रहों की दृष्टियां, लाभस्थान मीन राशि, चतुर्थ स्थान मिथुन राशि एवं पंचम भाव कर्क राशि पर होगी।
फलतः जातक समाज का प्रतिष्ठित व धनी व्यक्ति होगा । निरन्तर उन्नति पथ पर आगे बढ़ता चला जायेगा। जातक उत्तम वाहन, उत्तम भवन का स्वामी होगा। जातक स्वयं तो धनी होगा ही उसकी संतति भी उसी की तरह धनवान होगी।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध माता का सुख, विवाह का सुख देगा। जातक कुल का नाम रोशन करेगा।
4. चंद्रमा + गुरु – धनु राशि में यह युति वस्तुतः पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश राज्येश गुरु के साथ युति है। ये दोनों शुभग्रह केन्द्र में बैठकर धन स्थान, सुख भाव एवं षष्टम् स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। गुरु यहां स्वगृही होने से बलवान होगा तथा क्रमशः ‘हसं योग’, ‘कुलदीपक योग’, ‘यामिनीनाथ योग’, ‘पद्मसिंहासन योग’ की सृष्टि कर रहा है।
फलतः जातक का राजनीति में, व्यापार में भारी प्रतिष्ठा होगी। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। जातक के पास उत्तम वाहन एवं भौतिक संसाधनों की उपलब्धि रहेगी। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में पूर्णत: समर्थ होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र जातक का पराक्रम राजा की भांति बढ़ायेगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि जातक को व्यापार में लाभ, पद-प्रतिष्ठा दिलायेगा |
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु रोजी-रोजगार में बाधक है।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु संघर्ष का द्योतक है।
मीन लग्न में चंद्र का फलादेश एकादश स्थान में
यहां एकादश स्थान में मकर (सम) राशि का होगा। जातक की सभी प्रकार की सुख-सुविधा, समृद्धि एवं उत्तम विद्याओं की प्राप्ति होगी। ऐसा जातक विख्यात ग्रंथकार, लोकप्रिय, धन, पुत्र एवं वैभव से युक्त उत्तम व्यक्तित्व का स्वामी होता है।
दृष्टि – चंद्रमा की दृष्टि पंचम भाव अपने ही घर कर्क राशि पर होने के कारण कन्या संतति अधिक होगी।
निशानी – ऐसे जातक उच्च महत्वाकांक्षी होता है। अपनी उन्नति के प्रति सावधान रहता है।
दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा शुभ फल देगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश एवं पंचमेश की युति यहां व्यापार में लाभ देगी। अति उत्तम संतति एवं उच्च शैक्षणिक उपाधि प्रदान करेगी।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां एकादश स्थान में दोनों ग्रह मकर राशि में होंगे। मकर राशि में मंगल उच्च का होने से ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि होगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह धनस्थान मेष राशि, पंचम स्थान कर्क राशि एवं षष्टम् स्थान सिंह राशि को देखेंगे।
फलतः ऐसा जातक महाधनी होगा। ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण सक्षम होगा। जातक निरन्तर उन्नति पथ की ओर आगे बढ़ता चला जायेगा। ऐसा जातक स्वयं तो धनी होगा पर उसकी संतति भी उसकी तरह धनवान होगी। जातक की विशेष आर्थिक उन्नति प्रथम पुत्र प्रजनन के बाद होगी।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध होने से जातक को भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति, गृहस्थ सुखों की प्राप्ति होगी।
4. चंद्रमा + गुरु – मकर राशि में यह युति वस्तुतः पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-दशमेश गुरु के साथ युति होगी। गुरु यहां नीच का होगा। जहां बैठकर ये दोनों ग्रह पराक्रम स्थान, पंचम भाव एवं सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।
फलत: जातक की संतति शिक्षित होगी। उसे व्यापार-व्यवसाय में उच्च पद प्राप्त होगा। जातक का भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद होगा । जातक महान् पराक्रमी एवं यशस्वी होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र होने से जातक पराक्रमी होगा। उद्योगपति होगा। बड़े व्यापार से लाभ होगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि होने से जातक उद्योगपति एवं बड़ा व्यापारी होगा। बैंक बैलेन्स अच्छा रहेगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु-व्यापार में अचानक घाटा देगा।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु व्यापार में रुकावट का द्योतक है।
मीन लग्न में चंद्र का फलादेश द्वादश स्थान में
चंद्रमा यहां द्वादश स्थान कुम्भ राशि में है। चंद्रमा अपनी राशि से आठवें एवं लग्न से बारहवें होने के कारण पंचम भाव के शुभफलों को तोड़ता है तथा ‘पुत्रहीन योग’ की सृष्टि करता है। ऐसा जातक दत्तक पुत्र अथवा क्रीतपुत्र द्वारा सेवित होता है। जातक मानसिक तनाव में रहेगा तथा उसे नेत्र पीड़ा खासकर बाई आंख में पीड़ा होगी।
दृष्टि – द्वादश स्थानगत चंद्रमा की दृष्टि छठे भाव (सिंह राशि) पर होगी। जातक को माता की मृत्यु छोटी उम्र में होगी। जातक को मामा का सुख उत्तम मिलेगा।
निशानी – जातक के प्रारम्भिक विद्याध्ययन में रुकावटें आयेगी एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होगा।
दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में अशुभफलों की प्राप्ति होगी।
चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चंद्रमा + सूर्य – षष्टेश एवं पंचमेश की युति यहां ‘संतानहीन योग’ के साथ-साथ हर्ष नामक ‘विपरीतराज योग’ की सृष्टि करेगी। जातक महाधनी एवं वैभवशाली होगा।
2. चंद्रमा + मंगल – यहां द्वादश स्थान में दोनों ग्रह कुंभराशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टियां पराक्रम स्थान वृष राशि, षष्टम भाव सिंह राशि एवं सप्तम भाव कन्या राशि पर होगी। चंद्रमा बारहवें जाने से ‘संतानहीन योग’ तथा मंगल बारहवें जाने से क्रमश: ‘धनहीन योग’ व ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि होगी। निश्चय ही यह स्थिति शुभद नहीं है। ऐसा जातक बाहर से धनवान दिखाई देगा पर भीतर से खोखला होगा।
3. चंद्रमा + बुध – चंद्रमा के साथ बुध ‘सुखहीन योग’ विलम्ब विवाह योग की सृष्टि करेगा। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। संघर्षमय जीवन जीयेगा।
4. चंद्रमा + गुरु – यह युति वस्तुतः पंचमेश चंद्रमा की लग्नेश-राज्येश गुरु के साथ युति है। यहां बैठकर ये दोनों शुभग्रह सुख स्थान, षष्टम भाव एवं अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।
ऐसे जातक को ऋण रोग व शत्रु का भय नहीं होगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में अकेला सक्षम होगा। जातक को प्राकृतिक अपघातों व दुर्घटनाओं से बचाव होता रहेगा। जातक को सभी प्रकार के भौतिक संसाधनों की प्राप्ति सहज में होती रहेगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा।
5. चंद्रमा + शुक्र – चंद्रमा के साथ शुक्र सरल नामक ‘विपरीतराज योग’ की सृष्टि करेगा। जातक का पराक्रम भंग होगा।
6. चंद्रमा + शनि – चंद्रमा के साथ शनि भारी खर्च करायेगा। ‘विपरीतराज योग’ के कारण जातक धनी-मानी अभिमानी होगा।
7. चंद्रमा + राहु – चंद्रमा के साथ राहु संतान सुख में बाधक है।
8. चंद्रमा + केतु – चंद्रमा के साथ केतु विलम्ब संतति करायेगा ।
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