कुंडली देख कर रत्न का चुनाव करना सीखिये

ज्योतिष का अटल एवम् मौलिक सिद्धान्त है कि संसार का कोई भी पदार्थ क्यों न हों और उस का जीवन के किसी भी विभाग से संबन्ध क्यों न हो, उस पदार्थ का प्रतिनिधित्व कोई न कोई ग्रह अवश्य करता है।

जैसे हम जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रह आंख, हड्डी, पिता राजा श्रादि पदार्थों का प्रतिनिधि अथवा कारक है, इसी प्रकार रत्नों में सूर्य, माणिक्य (Ruby) का प्रतिनिधि अथवा कारक है । इसी प्रकार चन्द्रमा, मंगल यादि समस्त ग्रह किसी न किसी रत्न के कारक होकर उस का प्रतिनिधित्व करते हैं। कौन सा ग्रह किस रत्न का प्रतिनिधि है इसका विवरण निम्न है :-

  • सूर्य: माणिक (रूबी)
  • चंद्रमा: मोती (Pearl)
  • मंगल: मूंगा (Coral)
  • बुध: पन्ना (Emerald)
  • बृहस्पति: पुखराज (Yellow Sapphire)
  • शुक्र: हीरा (Diamond)
  • शनि: नीलम (Blue Sapphire)
  • राहु: गोमेद (Lapis Lazuli)
  • केतु: लहसुनिया (Cat’s Eye)

लग्न के अनुकूल रत्न का चुनाव

ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का बहुत प्रयोग किया जाता है। लग्न का स्वामी जो ग्रह हो उस ग्रह से सम्बंधित रत्न को पहनने का आदेश किया जाता है । ज्योतिष शास्त्र में लग्न का महत्व कुण्डली के शेष 11 भावों से कहीं बढ़कर है।

जीवन की प्रायः सभी आवश्यक वस्तुओं का समावेश लग्न में है । मनुष्य अल्पायु होगा या दीर्घजीवी; मनुष्य धनी होगा अथवा निर्धन; मनुष्य यशस्वी होगा अथवा अपमानित मनुष्य स्वस्थ रहेगा अथवा रोगी; – इन सब बातों का निर्णय लग्न पर ही से किया जाता है ।

अतः लग्न का ज्योतिष में महत्व सुस्पष्ट है । यही कारण है कि ज्योतिषी लोग लग्न के स्वामी ग्रह के अनुकूल ही रत्न पहनने की अनुमति देते हैं ताकि आयु, धन यश, शक्ति आदि सभी वस्तुएँ व्यक्ति को अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकें ।

किस लग्न के लिये कौन-सा ग्रह स्वामी होता है और उस ग्रह के लिये कौन सा रत्न पहनना चाहिये यह बात नीचे दी हुई तालिका से स्पष्ट हो जायेगी :-

  • मेष लग्न: मंगल – मूंगा
  • वृष लग्न: शुक्र – हीरा
  • मिथुन लग्न: बुध – पन्ना
  • कर्क लग्न: चंद्रमा – मोती
  • सिंह लग्न: सूर्य – माणिक्य
  • कन्या लग्न: बुध – पन्ना
  • तुला लग्न: शुक्र – हीरा
  • वृश्चिक लग्न: मंगल – मूंगा
  • धनु लग्न: गुरु – पुखराज
  • मकर लग्न: शनि – नीलम
  • कुंभ लग्न: शनि – नीलम
  • मीन लग्न: गुरु – पुखराज

स्त्रियों के लिये विशेष नियम

स्त्रियों की कुण्डली में भी उपर्युक्त नियम लागू किया जा सकता है और लग्न के स्वामी ग्रह के अनुरूप रत्न आदि पहनने का आदेश दिया जा सकता है । परन्तु स्त्रियों के लिये ‘गुरु-ग्रह’ का विशेष महत्व है । स्त्री की कुण्डली में ‘गुरु’ उस के पति का सदा सर्वदा कारक होता है ।

गुरु के बलाबल पर स्त्री के पति की आयु, उसका धन तथा स्वभाव अधिकतर निर्भर रहते हैं । चूंकि, कम से कम, भारत में स्त्रियां बहुधा अपने पति पर निर्भर होती हैं; अतः उनकी कुण्डली में गुरु का बलवान् होना नितान्त श्रावश्यक है ।

अतः जिन बालिकाओं के विवाह होने में विलम्ब हो रहा हो उनको ‘पुखराज’ अवश्य पहिनना चाहिये । ‘पुखराज’ पहनने से ‘गुरु’ अधिक बलवान् होगा; जिस के फलस्वरूप विवाह अपेक्षाकृत शीघ्र होगा; क्योंकि देर से विवाह होने में कारण यही होता है कि स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तम भाव का स्वामी तथा उसी भाव का कारक अर्थात् वृहस्पति पापी ग्रहों की युति अथवा दृष्टि द्वारा निर्बल पाये जाते हैं। इन तीन अंगों में गुरु का विशेष महत्व है । जब तीन अंगों में मुख्य अंग ‘गुरु’, पुखराज पहनने से बलवान् होगा तो स्पष्ट है विलम्ब कम हो जायेगा ।

जिन स्त्रियों की लग्न ‘मिथुन’ अथवा कन्या हो और उन की कुण्डली में गुरु को सूर्य, शनि अथवा राहु दृष्टि प्रथवा युति द्वारा प्रभावित कर रहे हों उनके लिये तो और भी अधिक आवश्यक हो जाता है कि वे पुखराज पहिने रहें क्योंकि ऐसी दशा में ‘गुरु’ न केवल ‘पति’ का कारक ही होता है बल्कि पति भाव का स्वामी भी । अतः स्पष्ट है कि गुरु पर पड़ने वाला पाप प्रभाव अधिक अनिष्टकारी होगा। यदि ऐसी स्थिति में ‘पुखराज’ न पहना जावे, तो पति से पृथक् हो जाने तथा तलाक तक हो जाने की नौबत आ जाती है।

कुण्डली संख्या 1

उदाहरण के लिये कुण्डली संख्या 1 लें ।  यह कन्या लग्न की कुण्डली है; अतः यहां ‘गुरु’ का सप्तमाधिपति तथा सप्तम भाव कारक एक साथ हो जाना अत्यन्त महत्व रखता है । अब पतिद्योतक गरु आदि पर थोड़ा विचार कीजिये ।

  • सूर्य न केवल अपनी दृष्टि से सप्तमभाव पर अपना प्रभाव डाल रहा है अपितु अपनी युति से सप्तमेश तथा पति-कारक गुरु को भी प्रभावित कर रहा है।
  • शनि भी अपनी तृतीय दृष्टि द्वारा उसी प्रतिनिधित्व शाली गुरु: को प्रभावित कर रहा है ।
  • इसी प्रकार राहु-प्रधिष्ठित राशि का स्वामी, बुध भी अपनी युति द्वारा उसी गुरु तथा सप्तम भाव को प्रभावित कर रहा है।

अब चूँकि सूर्य, शनि तथा राहु, तीनों के तीनों, पृथक्ता-जनक (Separative) ग्रह हैं अतः इन के प्रभाव का फल यह हुआ कि इस बालिका को उस के पति ने विवाह के एक मास के अन्दर ही अन्दर त्याग दिया। यदि लड़की को विवाह से पूर्व पुखराज पहनाया जाता तो बहुत सम्भव था कि बात त्याग तक न पहुँचती ।

कुंडली संख्या 2

गुरु, धन का भी कारक है। मान लीजिये किसी व्यक्ति का जन्म कुम्भ लग्न में हुआ है और उसकी जन्म कुण्डली में “गुरु” पर शनि तथा मंगल की दृष्टी है है जैसा की कुंडली संख्या 2 में दर्शाया गया है, ऐस स्थिति में व्यक्ति की आय का स्तर बहुत कम हो जाता है क्योंकि एक तो “गुरु” स्वयं “अर्थ” का कारक है; दूसरे वह यहां लाभाधिपति है और तीसरे वह धन भाव का स्वामी भी है ।

अतः “धन” का इस प्रकार का व्यापक प्रतिनिधि बनने वाला गुरु यदि पाप प्रभाव में हो तो धन की मात्रा का कम हो जाना स्वाभाविक है । ऐसी स्थिति में गुरु को बलान्वित करना अभीष्ट होगा और गुरु “पुखराज ” पहनने से बलान्वित होगा । इस प्रकार “पुखराज” का उपयोग धन के क्षेत्र में भी बहुत अधिक है ।

“गुरु” जहां “पति” तथा “धन” का कारक है वहां यह ग्रह “पुत्र” का भी कारक है । अतः उपर्युक्त कुण्डली, जिसमें कि वह पंचम भाव तथा उस के स्वामी के साथ-साथ पाप दृष्ट है, इस व्यक्ति के पुत्रहीन होने को बतला रहा है। यदि पुखराज पहनाया जाता तो कुछ लाभ की संभावना थी ।

उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट हो गया होगा कि जब कुण्डली में किसी ग्रह के बलवान् किये जाने से लाभ पहुँचाना हो तो उस ग्रह से संबद्ध रत्न पहनना चाहिये ।

  • यदि किसी व्यक्ति का दिल कमजोर हो अथवा उस को दिल का दौरा पड़ने की संभावना हो तो उस व्यक्ति के “माणिक्य” धारण करने से उस का सूर्य बलवान् किया जा सकता है।
  • इसी प्रकार यदि किसी स्त्री श्रादि को “गशी” का रोग हो अथवा किसी व्यक्ति को “मिरगी” का रोग हो तो अन्य उपचार के अतिरिक्त उस व्यक्ति के चन्द्रमा को बलवान् किया जाना अपेक्षित रहेगा। इस प्रयोजन के लिये उस व्यक्ति को चांदी की अंगूठी में मोती पहिनना चाहिये ।
  • यदि किसी व्यक्ति को “सूखे” (Atrophy of muscles) का रोग हो तो उसके मंगल को वलवान् करना आवश्यक होगा। ऐसा करने के लिये मूँगा पहिनाया जायेगा ।
  • यदि किसी व्यक्ति को “दमा” की शिकायत है अथवा वह हरनिया आदि अन्तड़ियों के किसी रोग से पीड़ित है तो उसे उचित है कि वह “पन्ना” पहिने जिससे मिथुन तथा कन्या राशि का स्वामी बुध बलवान् हो सके।
  • यदि किसी व्यक्ति को “अनपचा” है अर्थात् खाया पिया पचता नहीं है अथवा उसे जिगर की कोई शिकायत है, तो उसे गुरु को बलवान् करना चाहिये और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये पीले रंग का पुखराज पहनना चाहिये ।
  • यदि किसी व्यक्ति को “वीर्य” संबन्धी कोई शिकायत हो तो उस को शुक्र ग्रह से संबंधित “हीरा” पहिनना चाहिये ।

अनिष्ट की उत्पत्ति कारक ग्रह का रत्न

रत्नों के प्रयोग के संदर्भ में इतना ध्यान रहे कि जो पापी ग्रह शनि, मंगल आदि अपनी स्थिति अथवा दृष्टि से अनिष्ट की उत्पत्ति कर रहा हो उसको बलवान् नहीं करना चाहिये अर्थात् उस ग्रह से संबन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिये । इस में कारण यह है और कि यदि ग्रह से संबन्धित रत्न पहना दिया गया तो वह ग्रह अधिक बलवान् होकर और अधिक अनिष्टकारी होगा।

जैसे मान लीजिये कि किसी पुरुष अथवा स्त्री को कुण्डली में कुंभ राशि का सूर्य, पुत्रभाव अर्थात् पञ्चम भाव में स्थित है तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्पष्ट है कि पृथक्ताकारक (Separative) ग्रह सूर्य, अपनी शत्रु राशि में स्थिति आदि के कारण, गर्भो को पनपने न देगा और गर्भपात होते चले जावेगें । ऐसी स्थिति में सूर्य से संबन्धित ” माणिक्य (Ruby) तथा स्वर्ण, यदि पहिना गया तो उलटा सूर्य बलवान् होकर पञ्चम भाव अर्थात् गर्भों को और अधिक हानि पहुँचायेगा ।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जीवन में एक ऐसे ग्रह की दशाभुक्ति चल रही होती है जो जन्मकुण्डली में पाप घरों – तृतीय, षष्ठ, अष्टम, द्वादश का स्वामी है; जैसे कर्क लग्न वालों के लिये बुध, जो कि तृतीय तथा द्वादश भावों का स्वामी बनता है, अथवा मीन लग्न वालों का शुक्र जो कि तृतीयेश, अष्टमेश बनता है – ऐसी स्थिति में बुध अथवा शुक्र को “पन्ना” अथवा ” हीरा” पहिनकर बलवान् नहीं बनाना चाहिये क्योंकि उनके बलवान् होने से पापी अनिष्ट भावों के स्वामी बलवान् होंगे और फलस्वरूप अनिष्ट की वृद्धि होगी। ऐसी दशा में तो इन बुध-शुक्र का निर्बल होना वांछनीय होगा क्योंकि पापी ग्रहों का निर्बल होना धन की वृद्धि करने वाला होता है ।

ऐसी स्थिति में इन बुध शुक्र आदि पापी ग्रहों के शत्रु ग्रहों से संबन्धित रत्न पहनना चाहियें विशेषतया उस स्थिति में जबकि वे शत्रु ग्रह बुध आदि को अपनी दृष्टि आदि से प्रभावित भी कर रहे हों। ऐसा करने से “विपरीत राजयोग” की सृष्टि होगी अर्थात् पापियों का पाप नाश होकर धन आदि की प्रचुर उपलब्धि होगी ।

उदाहरण के लिये यदि किसी कर्क लग्न वाली कुण्डली में बुध, पञ्चम स्थान में स्थित हो तो बुध की यह स्थिति प्रशस्त है अर्थात् द्वादश तथा तृतीय भावों के अनिष्टको नाश करने वाली है क्योंकि बुध इन दोनों ही स्थानों से अनिष्ट स्थान में अर्थात् द्वादश से षष्ठ और तृतीय से तृतीय स्थित होगा ।

ऐसी स्थिति में यदि उस बुध पर मंगल, शनि आदि पापी ग्रहों की युति अथवा दृष्टि हो और किसी नैसर्गिक शुभ ग्रह गुरु आदि की दृष्टि अथवा युति न हो तो बुध की यह अनिष्ट स्थिति अतीव लाभप्रद सिद्ध होगी और व्यक्ति को लाखों रुपयों का स्वामी बना देगी । अतः निष्कर्ष यह निकला कि पापी भावों के स्वामियों को रत्नों द्वारा बलवान् नहीं करना चाहिये। हो सके तो निर्बल करना चाहिये ।

जिन सरकारी कर्मचारियों की उन्नति (Promotion) रुकी हो उनको चाहिये कि वे अपनी जन्म कुण्डली में नवमाधिपति को बलवान् करने का प्रयत्न करें क्योंकि नवम भाव भाग्य (Career) तथा राज्य कृपा (Govt. favour) का है अतः नवमेश के उपयुक्त रत्न के धारण द्वारा बलवान् किया जाना पदोन्नति में सहायक होगा ।

रोगों के लिये रत्न

ज्योतिष शास्त्रानुसार “काल पुरुष” के अंगों के पीड़ित होने के कारण जिन रोगों की उत्पत्ति होती है उनके निवारणार्थ पीड़ित ग्रह का रत्न पहना कर उसे बलवान् करना चाहिये । उदाहरणार्थ निम्नलिखित कुण्डली सं 3 के इस व्यक्ति को हरनिया (Hernia ) का रोग है ।

कुण्डली सं 3

स्पष्टतया यहां पर 6 संख्या की राशि पर सूर्य तथा शनि का पृथक्ताजनक प्रभाव है । 6 संख्या राशि के स्वामी बुध पर सूर्य का युति द्वारा तथा राहु का दृष्टि द्वारा प्रभाव है ।

इसी प्रकार 6 नम्बर भाव तथा उसके स्वामी पर भी शनि का युति द्वारा प्रभाव है । अतः यहां बुध तथा शुक्र को बलवान् किया जाना उपयुक्त एवं हितकर होगा और एतदर्थ पन्ना तथा हीरा पहिनना आवश्यक होगा ।

निम्नलिखित कुण्डली सं 4 वाले को दिल का दौरा पड़ने की शिकायत थी । यहॉ केतु की पूर्ण पञ्चम दृष्टि पञ्चम भाव तथा उसके स्वामी मंगल दोनों, पर है । इसी केतु की नवम पूर्ण दृष्टि पाँच संख्या की राशि तथा उसके स्वामी सूर्य पर भी है । अतः यहां हृदय द्योतक मंगल तथा सूर्य का बलवान् किया जाना उपयुक्त रहेगा । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सोने की अंगूठी में माणिक्य (सूर्य) तथा मूंगा (मंगल) लगवाकर पहिनना चाहिये ।

कुण्डली सं 4

रोग जैसे पागलपन आदि

जिन व्यक्तियों को किसी मानसिक रोग की संभावना हो उनकी कुण्डली में बुध तथा चन्द्र अवश्य निर्बल स्थिति में होते हैं । अतः अन्य बातों के अतिरिक्त बुध तथा चन्द्र का बलवान् किया जाना अनिवार्य होता है। बुध बुद्धि का ग्रह है और चन्द्र भावनाओं का स्पष्ट है कि ऐसे रोग में मस्तिष्क तथा भावनाओं दोनों का बिगाड़ होता है । बुध तथा चन्द्र को बलवान् करने के लिये पन्ना तथा मोती पहनने का नियम है ही । इस प्रकार ज्योतिष में रत्नों के धारण करने से रोगों की शान्ति में भी सहायता ली जाती है ।

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