राहु रत्न गोमेदक

गोमेदक प्रमुखतः राहु का रत्न माना गया है। इसे फारसी में मेदक तथा अंग्रेजी में झिरकान (Zircon) कहते हैं। इसका रंग पीला-पीला-सा गोमूत्र के समान होता है, साथ ही इसमें श्यामला मिश्रित मधु की झाई भी दिखाई दे जाती है। यह अधिकतर चीन, बर्मा, अरब, सिंधु नदी के किनारे पाया जाता है ।

गोमेदक के गुण – अच्छी जाति का गोमेद या गोमेदक चमकदार, सुन्दर, चिकना, अच्छे घाट का तथा उज्ज्वल होता है। यह उल्लू की आँखों के समान लगता है।

गोमेदक की परीक्षा

  • गोमूत्र में गोमेदक रखकर चौबीस घंटे पड़ा रहने दें, तो गोमूत्र का रंग बदल जाता है ।
  • लकड़ी के बुरादे से गोमेदक घिसने पर उसमें चमक बढ़ जाती है । नकली गोमेदक घिसने पर उसमें चमक नष्ट हो जाती है।

यह रत्न प्रत्येक वर्ण के लिए फलप्रद है । युद्ध में इसे पहिनकर जाने से शत्रु सामने नहीं टिक पाते। इसके पहनने से कई रोग स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं ।

गोमेदक के दोष

दोषी गोमेदक खरीदना अहितकर होता है । गोमेदक में पाए जाने वाले निम्न दोष हैं :-

1. रक्तिम – लाल मुँह वाला या लाल रंग वाला गोमेदक शरीर में नई-नई व्याधियाँ बढ़ाता है ।

2. रूक्ष – रूखा-सा गोमेदक समाज में मान-प्रतिष्ठा कम करता है।

3. सुन्न – बिना चमक वाला गोमेदक स्त्री के लिए हानिकारक एवं रोगवर्धक है ।

4. अबरी – कई रंगों का गोमेदक धन-नाश में सहायता देता है ।

5. गड्ढा – जिस गोमेदक में गड्ढा या खड्डा पाया जाय, वह लक्ष्मी की न्यूनता एवं धन-हानि करता है ।

6. धब्बा – जिस गोमेदक में किसी अन्य रंग का धब्बा दिखाई दे, वह पशुधन का

नाश करने वाला होता है ।

7. श्यामल – काले बिन्दु वाला गोमेदक सन्तान-हानि एवं बन्धु-हानि करता है।

8. छींटदार – जिस गोमेदक में लाल या काले छींटे दिखाई दें, वह तेज वाहन से अपघात करता है।

9. चीर वाला – जिस गोमेदक में चीरा या क्रॉस हो, वह समाज में विरोध उत्पन्न करता है ।

10. दुरंगा – जो गोमेदक दुरंगा हो, वह घर-बार छोड़ने के लिए विवश कर परदेश में बसाता है ।

11. सफेदा – जिस गोमेदक में सफेद बिंदु दिखाई दें, वह भाग्य हानि में सहायक होता है।

12. जाल – जिस गोमेदक में जाल पाया जाय, वह सर्व प्रकार के सुखों का हरण करने वाला होता है।

गोमेदक के उपरत्न

गोमेदक के मुख्यतः दो उपरत्न हैं । जो व्यक्ति गोमेदक नहीं खरीद सकते, उन्हें उपरत्न धारण करना चाहिए। गोमेदक की अपेक्षा ये कम प्रभावशाली होते हैं ।

1. तुरसा – यह चिकना, हल्का-हल्का पीला तथा साफ, चमकदार होता है। यह अधिकतर अरब, ईरान, इराक, नक्का आदि की ओर पाया जाता है । इसके ४ रंग हैं । लाल, हल्का पीला, हरा और श्याम ।

2. साफी – यह मटमैला-सा चिकना तथा कम चमकदार होता है। वजन में यह औसतन भारी होता है । यह हिमालय, विन्ध्य आदि पहाड़ों में पाया जाता है ।

गोमेदक कौन पहिने ?

निम्न व्यक्तियों को गोमेदक धारण करना श्रेयस्कर माना गया है।

1. जिन व्यक्तियों की राशि या लग्न मिथुन, तुला, कुंभ या वृषभ हो उन्हें गोमेदक अवश्य धारण करना चाहिए ।

2. लग्न में, केन्द्र स्थानों (1, 4, 7, 10) में या एकादश भाव में राहु स्थित हो, तो गोमेदक पहिनना चाहिए।

3. तीसरे भाव में, नवम भाव में, एकादश भाव में या द्वितीय भाव में राहु हो तो निश्चय ही गोमेदक धारण करना चाहिए

4. यदि राहु अपनी राशि से छठे या आठवें भाव में स्थित हो तो गोमेदक पहिनना श्रेयस्कर होता है ।

5. शुभ भावों का अधिपति होकर अपने भाव से आठवें या छठे स्थान में राहु हो, तो भी गोमेदक ही शुभ प्रभाव उत्पन्न करता है ।

6. यदि राहु नीच राशि का (धनु राशि का) हो, तो गोमेदक अवश्य पहिनना चाहिए ।

7. राहु मकर राशि का स्वामी है, अतः मकर लग्न वालों के लिए गोमेदक श्रेष्ठ है।

8. यदि राहु श्रेष्ठ भाव का स्वामी होकर सूर्य से दृष्ट या सूर्य के साथ हो अथवा सिंह राशि में स्थित हो, तो गोमेदक अवश्य धारण करना चाहिए ।

9. राहु राजनीति का प्रमुख कारकेश है, अतः जो सक्रिय रूप से राजनीति में हैं या राजनीति में घुसने का प्रयत्न करते हों, उनके लिए गोमेदक सर्वश्रेष्ठ होता है ।

10. शुक्र और बुध के साथ राहु स्थित हो, तो भी गोमेदक ही धारण करना चाहिए।

11. चोरी, जुआ, स्मगल आदि पापकृत्यों का हेतु भी राहु है, अतः इसके लिए भी गोदक रत्न धारण करना ही उपयोगी है ।

12. वकालत, न्याय, राज्यपक्ष आदि की उन्नति के लिए गोमेदक धारण करना श्रेष्ठ माना गया है ।

रोगों पर गोमेदक का प्रभाव

  • गोमेदक की भस्म निरन्तर सेवन करने से बल, बुद्धि एवं वीर्यं बढ़ता है।
  • मिर्गी, धुन्ध, वायु, बवासीर आदि रोगों में भी इसकी भस्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है ।
  • मात्र गोमेदक धारण करने से तिल्ली, गर्मी, ज्वर, प्लीहा आदि रोग नष्ट हो जाते हैं ।

गोमेदक का प्रयोग

स्वाति, शतभिषा या आर्द्रा नक्षत्र के दिन प्रातः पंचधातु या लोहे की सात रत्ती की अंगूठी में लगभग 4 रत्ती या इससे बड़ा गोमेदक जड़- वावें। प्रातः साढ़े दस के उपरान्त यज्ञ करें, सर्पाकार राहु का स्थंडिल बनावें, उस पर 11 तोले के रजतपत्र पर राहु-यन्त्र उत्कीर्ण कराकर रक्खें एवं उस पर गोमेदक जड़वावें । तत्पश्चात् राहु-यन्त्र पर उपर्युक्त अंगूठी रक्खें एवं प्राण-प्रतिष्ठा करें तथा ‘ॐ क्रो क्रीं हुं हूं टं टंक धारिणे राहवे स्वाहा ।।’ मन्त्र से 1000 आहुतियां दें। दोपहर को योगिनी चक्र बनाकर दीप ज्वलन करें, दीप दान दें एवं वेदोक्त इसी दिन राहु वेदोक्त मन्त्र से 18 हजार जप करावें। राहु मन्त्र निम्नरूपेण है-

ॐ कयानश्चित्र आभुवदुती सदावृधः सखा । कथा शचिष्ठयावृताः ।

शाम को साढ़े चार बजे अँगूठी धारण कर पूर्णाहुति करें तथा राहु-यन्त्र, गेहूँ, नील-वस्त्र, कंबल, तिल, तेल, लोह, अभ्रक आदि का दान करें। इस प्रकार करने से ही राहु-जन्य दोष मिटकर सुख-शांति होती है ।

गोमेदक वजन

चार रत्ती से कम वजन का गोमेदक तथा सात रत्ती से कम वजन की अंगूठी निष्फल होती है । पहिनने के दिन से तीन वर्षों तक गोमेदक का प्रभाव रहता है। इसके पश्चात् दूसरा गोमेदक धारण करना चाहिए ।


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