प्रश्न कुंडली से रोगी और रोग का ज्ञान

अधिकांशतः दो प्रश्न पूछे जाते हैं :-

  1. क्या रोगी निरोग हो जाएगा ? यदि हां तो कब ?
  2. रोगी जीवित बचेगा या नहीं ?

कोई भी प्रश्नकर्ता मेरे पास ज्योतिष के माध्यम से बीमारी के निदान के लिए नहीं आया। अतः हम उपरोक्त दो प्रश्नों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

प्रश्न ज्योतिष में लग्न से डॉक्टर (वह व्यक्ति जो दवा देता है, सहायक नहीं) का बोध होता है। सामान्यतः लग्न प्रश्नकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है, परंतु बीमारी के प्रश्नार्थ लग्न को डॉक्टर का कारक माना जाता है क्योंकि डॉक्टर और प्रश्नकर्ता दोनों एक हैं और बीमारी के शत्रु हैं। षष्ठ और सप्तम भाव रोग के संकेतक हैं जबकि दशम भाव से रोगी का बोध होता है जो रोगमुक्त होने के लिए कर्मरत होता है।

चतुर्थभाव औषधियों का है। छठे से छठा अर्थात लग्न से एकादश भाव भी बीमारी का बोधक है। अष्टम भाव मृत्यु का संकेतक है। अष्टम से अष्टम अर्थात तृतीय भाव भी मृत्यु का ज्ञान कराता है।

1. यदि लग्न में शुभ राशि हो, उसमें शुभ ग्रह स्थित हों या केंद्र यॉ त्रिकोण में स्थित शुभ ग्रह की दृष्टि हो, लग्नेश लग्न को देखता हो या लग्नेश की शुभ ग्रहों से युति हो या शुभ भाव में स्थित शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो डॉक्टर रोगी को स्वस्थ करने में सफल हो जाएगा।

2. लग्न में अशुभ ग्रह की राशि हो या लग्न में अशुभ ग्रह स्थित हों या उनकी दृष्टि हो, लग्नेश त्रिक भाव (6, 8, 12) या ओपोक्लिम भाव (3, 6, 9 या 12) में हो या अशुभ ग्रहों की युति / दृष्टि हो या अस्त, नीचस्थ, शत्रु क्षेत्रीय हो या केंद्र / त्रिकोण में होकर अशुभ ग्रहों से युति / दृष्टि में हो तो डॉक्टर रोगी को निरोग बनाने में सफल नहीं होगा। डॉक्टर को तुरंत बदल देना चाहिए ।

3. लग्न में चर राशि हो, लग्नेश भी चर राशि में स्थित हो तो मरीज डॉक्टर या स्थान आदि के परिवर्तन से ठीक हो जाएगा ।

4. उपरोक्त वर्णन में अगर दशम भाव शुभ हो तो इसका अर्थ है कि रोग का निदान सही हुआ है, इलाज ठीक चल रहा है और रोगी डॉक्टर की सलाह का पालन करेगा ।

5. षष्ठ और सप्तम भाव में शुभ ग्रहों की राशि हो तथा इन भावों में शुभ ग्रह स्थित हों या उनकी दृष्टि हो, इनके स्वामी शुभ स्थिति में हों तो मरीज़ दवाई से ठीक हो जाएगा। अगर छठे, सातवें भाव में अशुभ ग्रहों की राशि हो, इन भावों में अशुभ ग्रहों की स्थिति / दृष्टि हो इनके स्वामी अशुभ भावों में स्थित हों, नीचस्थ या अस्त या शत्रुक्षेत्री हों या अशुभ ग्रहों के मध्य स्थित हों तो रोग आसानी से ठीक नहीं होगा या अधिक जटिल हो जाएगा।

6. षष्ठेश या सप्तमेश और अष्टमेश के मध्य इत्थसाल योग बन रहा हो मृत्यु की संभावना होती है।

7. चतुर्थ भाव में अशुभ राशि हो या चतुर्थेश अशुभ ग्रह हो, चतुर्थ में अशुभ ग्रह स्थित हो या उसकी दृष्टि या चतुर्थेश नीचस्थ, अस्त या शत्रुक्षेत्री हो तो मरीज सर्वोत्तम इलाज के बावजूद ठीक नहीं होगा। चतुर्थ भाव और चतुर्थेश शुभ प्रभाव में होने पर दवाई से मरीज़ ठीक हो जाएगा।

संक्षेप में कह सकते हैं कि अगर चंद्र उपचय भावों ( 3, 6, 10, 11) में स्थित हो और शुभ ग्रह केंद्र (1. 4, 7, 10), त्रिकोण (5, 9) और अष्टम भाव में स्थित हों तो मरीज़ ठीक हो जाएगा। अगर इन भावों में अशुभ ग्रह स्थित हैं, तो बीमारी ठीक नहीं होगी। लग्न और लग्नेश बली हों और शुभ स्थिति में हों, शुभ ग्रहों से दृष्ट हों या उनके मध्य स्थित हों तो मरीज़ ठीक हो जाएगा।

शरीर के विभिन्न भागों का राशियों से संबंध

मेष – सिर

वृष – आंखें विशेषकर दायीं आंख, चेहरा, मुंह, गर्दन

मिथुन – कंधे, बांहें, कान, विशेषकर दाहिना कान

कर्क – छाती

सिंह – हृदय, पेट (विशेषकर ऊपरी भाग), गर्भाशय

कन्या – आंतें, कमर, पेट का नीचे का भाग

तुला – गुर्दे, वीर्य, यौन प्रवृत्ति, गर्भाशय, योनि, पित्ताशय आदि

वृश्चिक – बाह्य जननांग, गुदा

धनु – जांघ

मकर – घुटने, रीढ़ की हड्डी

कुंभ – बायां कान, घुटनों के नीचे के पैर, पिंडलियां

मीन – पैर, बायां आंख

ग्रह – और शरीर के भाग

सूर्य – हृदय, अस्थियां, पेट, दायीं आंख

चंद्र – छाती, रक्त, हृदय

मंगल – सिर, पीठ, विशेषतया पीठ पर निशान

बुध – गर्दन, कंधे, बांहें

बृहस्पति – वसा, नितंब

शुक्र – चेहरा

शनि – पैर, जांघे

राहु – घुटनों के नीचे पैर, होंठ

केतु – चरण

निरोग होने में विलंब या बीमारी में जटिलता

1. यदि 6 और 8 भावों के स्वामियों में राशि विनिमय हो ।

2. 3, 6, 8, 9, 12 एवं लग्न में अशुभ ग्रह स्थित हों।

3. शनि या मंगल केंद्र या द्वादश भाव में स्थित हो तो निरोगता बहुत देरी से आती है।

4. लग्नेश अशुभ ग्रह होकर लग्न में स्थित हो या बली होकर द्वादश में हो ।

5. अष्टमेश केंद्र में हो, लग्नेश 6, 8 या 12 में हो और चंद्र निर्बल हो ।

6. चंद्र मूलत्रिकोण में होकर वक्री ग्रह के साथ हो ।

7. लग्नेश और षष्ठेश में राशि विनिमय हो ।

8. शनि या मंगल लग्न में स्वराशि में हो ।

9. लग्नेश और दशमेश में या चतुर्थेश और सप्तमेश में शत्रुता हो ।

10. लग्नेश और चंद्र में इशराफ़ योग हो ।

11. सप्तम में अशुभ ग्रह हों ।

12. 6 या 8 भाव में अशुभ ग्रह हों या इन पर अशुभ ग्रह की दृष्टि हो ।

13. पंचम या नवम में नीच का या अस्त या शत्रुक्षेत्री या पापकर्तरी में ग्रह हो ।

14. मंगल उच्च का या स्वक्षेत्री या मित्रराशि में दशम भाव में स्थित हो।

15. अशुभ ग्रह या अष्टमेश केंद्र में स्थित हो ।

16. अशुभ या वक्री ग्रह की चंद्र से युति हो। वक्री ग्रह चंद्र की राशि में हो।

17. वक्री ग्रह चतुर्थ या सप्तम भाव में स्थित हो ।

18. लग्न या चंद्र अगर बुध और शुक्र के मध्य स्थित हो तो निरोगता देरी से आती है परंतु मृत्यु नहीं होती ।

क्या रोगी जीवित रहेगा ?

प्रश्न पूछने का समय : 08:25, 9/01/1999 स्थान : दिल्ली

लग्न पृष्ठोदय और चर राशि में है जहां राहु-शनि से दृष्ट होकर केतु स्थित है। केंद्र और त्रिकोण में अशुभ ग्रह मौजूद हैं। लग्न, सूर्य और चंद्र दूषित हैं। शुभ ग्रह दूषित हैं। रोगी की मृत्यु का संकेत है। अष्टमेश द्वादश में स्थित है और अष्टम की राशि स्थिर है अतः रोगी की मृत्यु अस्पताल में हो गयी।

सर्वाधिक बली ग्रह शुक्र की लग्न से युति है। दोनों में 1° से कम अंतर है और वे चर राशि में हैं। अतः एक दिन से कम समय का संकेत है। शुक्र चर नवमांश में स्थित है। रोगी की उसी दिन रात में मृत्यु हो गयी।

क्या रोगी निरोग हो जाएगा या जीवित रहेगा ?

प्रश्न पूछने का समय : 19:20, 25/08/1998 स्थान : दिल्ली

लग्न में स्थिर और शीर्षोदय राशि है जहां अशुभ राहु और सूर्य से दृष्ट केतु स्थित है। अष्टम में कोई शुभ ग्रह नहीं है, अतः रोगी की मृत्यु का संकेत है।

1. लग्न में पृष्ठोदय राशि हो, केंद्र में अशुभ ग्रह हों और चंद्रमा अष्टम में हो तो रोगी की मृत्यु का संकेत होता है।

2. लग्न में अशुभ ग्रह हों तो बीमारी डॉक्टर के कारण जटिल हो जाएगी। डॉक्टर बदलना चाहिए।

3. दशम भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों तो बीमारी रोगी के कारण जटिल हो जाएगी। अतः दवाई और परहेज आदि का नियमपूर्वक पालन करें।

4. चतुर्थ में अशुभ ग्रह मौजूद हों तो औषधि की गलत प्रतिक्रिया होगी और बीमारी जटिल हो जाएगी, अतः औषधि की पद्धति बदलनी चाहिए।

5. सप्तम में अशुभ ग्रह मौजूद हों तो बीमारी जटिल हो जाएगी।

अतः उचित और उत्तम इलाज के लिए लग्नेश और दशमेश में मित्रता होनी चाहिए या इत्थसाल योग बनता हो, अन्यथा चतुर्थेश और सप्तमेश में मित्रता होनी चाहिए।

रोगी की जन्मकुंडली की लग्न या लग्न की राशि प्रश्नकुंडली के सप्तम या अष्टम भाव में नहीं होनी चाहिए। शुभ ग्रह अगर 3, 6, 9 या 11 भाव में गोचर करे तो रोगी ठीक हो जाता है।

प्रश्न ज्योतिष

  1. प्रश्न ज्योतिष क्या है ?
  2. राशियों का वर्गीकरण
  3. ग्रह की विशेषताएं
  4. ताजिक दृष्टियां और योग
  5. भावों के कारकत्व
  6. प्रश्न की प्रकृति
  7. लग्न और भावों के बल
  8. घटनाओं का समय निर्धारण
  9. प्रश्न कुंडली से रोगी और रोग का ज्ञान
  10. प्रश्न कुंडली से यात्रा और यात्री का विचार
  11. प्रश्न कुंडली से चोरी और गायब सामान की वापसी
  12. प्रश्न कुंडली से विवाह का विचार
  13. प्रश्न कुंडली से संतान का विचार
  14. प्रश्न कुंडली से न्यायाधीन विवाद का विचार
  15. प्रश्न कुंडली से लाभ-हानि का विचार
  16. प्रश्न कुंडली से राजनीति का विचार
  17. प्रश्न कुंडली से जेल यात्रा का विचार
  18. विविध प्रश्न

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