मिथुन लग्न के धन योग
मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिये धन प्रदाता ग्रह चन्द्रमा है। धनेश चन्द्र की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति एवं योगायोग, चन्द्रमा एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों के दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोतों तथा चल-अचल सम्पत्ति का पता चलता है।
इसके अतिरिक्त लग्नेश बुध, पंचमेश शुक्र, भाग्येश शनि एवं लग्नेश मंगल की अनुकूल स्थितियां मिथुन लग्न वालों के लिए धन, ऐश्वर्य एवं वैभव को बढ़ाने में पूर्णरूप से होती है।
वैसे मिथुन लग्न के लिए मंगल, गुरु और सूर्य अशुभ हैं। अकेला शुक्र शुभ है। चन्द्रमा मारकेश होते हुए भी मारक का काम नहीं करेगा। रवि निष्फल है। मंगल षष्टेश और लाभेश होने से अशुभ और राजयोग भंग करने वाला बन गया है। मिथुनलग्न में गुरु को केन्द्राधिपत्य दोष लगने से वह शुभ फल नहीं दे पाता। शनि अष्टमेश व नवमेश होने से पूर्ण योग फलदायक नहीं है। सूर्य व मंगल परम पापी हैं।
सफल योग 1. बुध+शुक्र
निष्फल योग – 1. गुरु+शुक्र 2. गुरु+शनि 3. बुध+शनि
अशुभ योग – 1. बुध+मंगल 2. बुध+गुरु 3. बुध+सूर्य
राजयोग कारक – बुध, शुक्र, चन्द्र
लक्ष्मी योग – मंगल नवम में, शुक्र सप्तम में, चन्द्रमा केन्द्र-त्रिकोण में।
विशेष योगा योग
1. मिथुनलग्न में चन्द्रमा कर्क या वृष राशि में हो तो जातक धनवान होता है।
2. चन्द्रमा शनि के घर कुम्भ राशि में हो एवं शनि चन्द्रमा के घर कर्क राशि में हो तो जातक अपने भाग्य के बल पर खूब धन कमाता है तथा लक्ष्मीपति होता है।
3. पंचम स्थान में शुक्र हो, लाभ स्थान में मंगल हो तो व्यक्ति बहुत सारी भू-सम्पत्ति का स्वामी होता हुआ प्रतिष्ठित धनवान होता है।
4. लग्न में बुध हो, बुध के साथ शुक्र या शनि हो अथवा शुक्र, शनि लग्न को देखते हों तो व्यक्ति शहर का प्रतिष्ठित धनवान होता है तथा अपने स्वयं के पुरुषार्थ से आगे बढ़ता है।
5. शनि कुम्भ यॉ तुला राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति धन के मामले में भाग्यशाली कहलाता है। 6. चन्द्रमा मेष राशि में तथा मंगल कर्क राशि में परस्पर परिवर्तन
योग करके बैठे हों तो ऐसा जातक महाभाग्यशाली होता है तथा जीवन में अत्यधिक धन अर्जित करता है।
7. बृहस्पति यदि केन्द्र त्रिकोण में हो तथा चन्द्रमा स्वगृही होकर धन स्थान में मंगल के साथ हो या मंगल चन्द्रमा के सामने भाग्य स्थान (कुम्भ राशि) में हो तो जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है अर्थात् सामान्य परिवार में जन्म लेकर भी व्यक्ति 28 वर्ष की आयु के बाद भारी धन-सम्पत्ति का स्वामी हो जाता है।
8. लग्नस्थ बुध, गुरु या शनि से युत यॉ दृष्ट हो तो जातक महाधनी होता है।
9. स्वराशि का शुक्र पंचम भाव में हो, शनि लाभ स्थान में हो तो जातक लक्ष्मीवान होता है।
10. बुध मेष राशि में हो तथा मंगल लग्न में हो तो जातक 53वें वर्ष
में धनवान होता है तथा शत्रुओं का नाश करते हुए स्वअर्जित धन लक्ष्मी को भोगता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अचानक धन मिलता है।
11. लग्नेश बुध, धनेश चन्द्र, भाग्येश शनि तथा लाभेश मंगल अपनी-अपनी उच्च एवं स्वराशियों में हों तो जातक करोड़पति होता है।
12. चतुर्थ भाव में राहु, शुक्र, मंगल और शनि की युति हो तो जातक अरबपति होता है।
13. धनेश चन्द्रमा यदि छठे, आठवें, बारहवें स्थान में हो तो “धनहीन योग” की सृष्टि होती है। जिस प्रकार घड़े में छिद्र होने के कारण उसमें पानी नहीं ठहर पाता, ठीक उसी प्रकार ऐसे जातक के पास धन नहीं ठहर पाता। इस दुर्योग की निवृत्ति हेतु जातक को गले में ‘चंद्र यंत्र’ धारण करना चाहिये।
14. धनेश चंद्रमा यदि आठवें हो परन्तु सूर्य यदि लग्न को देखता हो तो ऐसे व्यक्ति को भूमि में गडे हुए धन की प्राप्ति होती है अथवा लॉटरी से भी धन निकल सकता है पर धन पास में टिकेगा नहीं।
15. चन्द्रमा स्व का हो तो पैतृक धन की प्राप्ति होती है।
16. द्वितीयेश उच्च स्थान में बैठा हो तो पैतृक धन की प्राप्ति होती है।
17. षष्ठेश, पंचमेश की युति होने से दरिद्र योग बनता है।
18. बुध सप्तम भाव में हो तथा द्वादशेश चतुर्थ भवन में हो तो जातक को ससुराल से अर्थ प्राप्ति होती है।
19. बलवान धनेश सातवें हो तथा शुक्र द्वारा देखा जाता हो तो ससुराल से धन की प्राप्ति होती है।
20. गुरु, चंद्र की युति कर्क में हो तो गजकेसरी योग होता है। जातक विवेकी, सद्गुणी, नम्र तथा धनी होता है।
21. शनि स्व (कुंभ) का त्रिकोण में पड़ा हो तथा दशमेश गुरु पंचम भाव में बैठकर सुरपति योग बनाता है। ऐसा जातक अतुल ऐश्वर्य प्राप्त करता है।
22. मंगल लाभ स्थान में यदि मेष राशि का हो तो जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, सम्पत्ति व धन का स्वामी होता है।
23. सुखेश बुध, लाभेश मंगल नवम भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास धन की प्राप्ति होती है।
24. गुरु, चन्द्र की युति कर्क, कन्या, तुला या कुम्भ राशि में हो तो इस प्रकार के गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्रोत से अकल्पनीय धन मिलता है।
25. धनेश चन्द्रमा अष्टम में एवं अष्टमेश शुक्र धन स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुड़रेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन कमाता है।
26. तृतीयेश सूर्य लाभस्थान में एवं लाभेश मंगल तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति को भाई मित्र एवं भागीदारों के द्वारा धन की प्राप्ति होती है।
27. बलवान चन्द्र के साथ यदि चतुर्थेश बुध की युति हो तो व्यक्ति माता, वाहन व नौकरों के द्वारा धन अर्जित करता है।
28. तृतीयेश सूर्य उच्च का लाभ स्थान में हो तथा लग्नेश लाभेश का परस्पर परिवर्तन योग हो तो जातक प्रकाशन कार्य एवं बुद्धि वैचित्रय से करोड़ों रुपये कमाता है।
29. धनेश चन्द्रमा (धन भाव) अर्थात् अपने घर को देखता हो। लग्नेश बुध उच्च का केन्द्र में हो। लग्न स्थान या लग्नेश पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक कुबेर के समान करोड़ों का स्वामी होता है।
30. यदि बलवान चन्द्र पंचमेश शुक्र के साथ हो, धन भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र संतान द्वारा धन की प्राप्ति होती हैं यॉ पुत्र जन्म के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है।
31. बलवान चन्द्र यदि षष्टेश मंगल के साथ हो तथा धनेश चन्द्र शनि से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को शत्रुओं के मान-मर्दन से धन की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक कोर्ट-कचहरी में शत्रुओं को हराता है तथा शत्रुओं के कारण ही उसे धन व यश की प्राप्ति होती है।
32. बलवान चन्द्र की सप्तमेश गुरु से युति हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है तथा उसे पत्नी ससुराल पक्ष से धन की प्राप्ति होती है।
33. बलवान चन्द्र की नवमेश शनि के साथ युति हो, शुभ ग्रह उसे देखते हों तो ऐसे जातक को राजा से राज्य सरकार, सरकारी अधिकारियों एवं सरकारी अनुबंध (ठेके) से काफी धन की प्राप्ति होती है।
34. बलवान चन्द्र की दशमेश गुरु से युति हो तो जातक को पैतृक, सम्पत्ति, पिता द्वारा संरक्षित धन की प्राप्ति होती है अथवा पिता का व्यवसाय जातक के भाग्योदय में सहायक होता है।
35. दशम भवन का स्वामी बृहस्पति यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। जातक जन्म स्थान पर नहीं कमा पाता तथा उसे सदैव धन की कमी बनी रहती है।
36. लग्नेश बुध यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो एवं सूर्य भी यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति कर्जदार होता है तथा धन के मामले में कमजोर होता है।
37. द्वितीय भाव में पाप ग्रह हो तथा लाभेश मंगल यदि छठे, आठवें एवं बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति दरिद्री होता है।
38. केन्द्र स्थानों को छोड़कर चन्द्रमा बृहस्पति से यदि छठे, आठवें एवं बारहवें स्थान में हो तो शकट योग बनता है। जिसके कारण व्यक्ति को सदैव धन का अभाव बना रहता है।
39. धनेश चन्द्र अस्त हो, नीच राशि (वृश्चिक) में हो तथा धन स्थान एवं अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह हो तो व्यक्ति सदैव ऋणग्रस्त रहता है। कर्ज उसके सिर से उतरता ही नहीं।
40. लाभेश मंगल यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तथा लाभेश अस्तगत तथा पाप पीड़ित हो तो जातक महादरिद्री होता है।
41. अष्टमेश शनि वक्री होकर कहीं बैठा हो या अष्टम स्थान में कोई भी ग्रह वक्री होकर बैठा हो तो अकस्मात् धन हानि का योग बनता है। अर्थात् ऐसे व्यक्ति को धन के मामले में परिस्थितिवश अचानक भारी नुकसान हो सकता है। सावधान रहें।
42. अष्टमेश शनि शत्रुक्षेत्री, नीच राशिगत या अस्त हो तो अचानक धन की हानि होती है।

मिथुन लग्न में राजयोग
1. मिथुन लग्न वाले मनुष्य के लग्न में यदि राहु और सिंह का मंगल पराक्रम स्थान में बैठा हो उच्च या मेष का सूर्य एकादश स्थान में विराजमान हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
2. लग्न में बुध, कर्क का चन्द्रमा धन भाव में, पराक्रम में सिंह का सूर्य और दशम में मीन का बृहस्पति हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
3. उच्च का गुरु दूसरे भाव में, उच्च का बुध चतुर्थ भाव में और उच्च का सूर्य एकादश भाव में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
4. उच्च का शनि स्वगृही शुक्र के साथ पंचम भवन में हो, स्वगृही बृहस्पति सप्तम में हो, तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
5. स्वगृही सूर्य तृतीय स्थान में बैठा हो तथा उच्च का बृहस्पति स्वगृही चन्द्रमा के साथ धन भाव में हो, तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
6. उच्च का शनि स्वगृही शुक्र के साथ पंचम स्थान में हो और उच्च का सूर्य के साथ स्वगृही मंगल एकादश भवन में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
7. उच्च का शुक्र दशम, उच्च का सूर्य एकादश, उच्च का बुध चतुर्थ और उच्च का शनि पंचम में हो तो राजयोग करता है।
8. यदि मिथुन का शुक्र लग्न में हो, कर्क का स्वगृही पूर्ण चन्द्रमा धन (दूसरे) स्थान में हो, सिंह का बृहस्पति तीसरे स्थान में हो तो मनुष्य अपने पराक्रम से धनी होता है तथा कीर्ति पाता है।
9. सूर्य एकादश भाव में, मंगल मृत्यु भवन में हो, शनि उच्च का हो तथा बुध त्रिकोण में हो तो जातक अवश्य ही मंत्री बनता है या राज्यपाल होता है।
10. शुक्र, लग्नेश व दशमेश, दशम भाव में हो तो जातक अवश्य राज्य में उच्च स्थान प्राप्त करता है। हां, मंगल अवश्य ही 10 वें भावस्थ हो तो।
11. शुक्र पंचम भाव में, मंगल स्व का मेष में, गुरु द्वितीय भाव में हो तो जातक अवश्य ही शासन में उच्च पद प्राप्त करता है।
12. सभी ग्रह परमोच्च में हों तथा बुध अपने उच्च के नवांश में हो तो जातक देश का सर्वश्रेष्ठ पद संभावलता है।
13. लग्न में बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र की युति हो तथा उस पर पाप ग्रहों की छाया न हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है।
14. बुध सुख भाव में, गुरु 10वें तथा शुक्र त्रिकोण (5वें) में हो तो जातक एम. एल.ए. होता है।
15. गुरु कर्क में तथा चन्द्रमा वृष का हो तो जातक नेता बनता है।
16. गुरु या शुक्र उच्च का हो तथा वह चन्द्रमा को पूर्ण सृष्टि से देखता हो तो जातक मंत्री बनता है।
17. शनि मिथुन का, स्व का गुरु सप्तम भाव में तथा शुक्र की उस पर पूर्ण दृष्टि हो तो व्यक्ति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है।
18. बुध, शुक्र व गुरु नवम् भाव में हो तथा इन पर मित्र ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक राजनीतिज्ञ बनता है।
19. गुरु द्वितीय भाव में तथा चन्द्रमा धनु राशि का हो तो जातक को उच्च पद की प्राप्ति होती है।
20. शनि गुरु, चन्द्र के साथ 7वें स्थान में तथा बुध चतुर्थ भाव में हो तो जातक की उच्च श्रेणी की नौकरी प्राप्त होती है।
21. सुखेश, कर्मेश परस्पर स्थान परिवर्तन करते हों तो जमींदार योग बनता है।
22. लग्नेश बुध पंचम भाव में तथा शुक्र लग्न में हो तो महा राजयोग होता है।
23. बुध, गुरु, शुक्र क्रमश: 4, 7, 10वें स्थान में हों तथा अन्य ग्रह अन्यत्र तो जातक एम. पी. बनता है।
24. सभी ग्रह लग्न व त्रिकोणों में हों तो जातक सेनाध्यक्ष बनता है।
25. मिथुन लग्न हो, गुरु कर्क का, शनि तुला व सूर्य मेष राशि का होने से नृप योग होता है। जातक उच्च शासकीय पद प्राप्त करता है।
26. द्वितीय स्थान में चन्द्रमा, बुध; मेष में गुरु; दशम स्थान में राहु, शुक्र हो तो राजयोग होता है।
27. लग्न में राहु, सिंह में मंगल हो तो इस योग में जातक घोड़ा, हाथी रखने वाला राजा होता है।
मिथुन लग्न के आयुष्य योग
मिथुन लग्न के लिये चन्द्रमा मारकेश होते हुए भी मारक का कार्य नहीं करेगा। मंगल, गुरु, अशुभ है। सूर्य परमपापी है। आयुष्य प्रदाता ग्रह बुध है।
1. मिथुन लग्न में मंगल लग्न से पूर्वार्द्ध (2 से 7 तक) में हो तथा उत्तरार्द्ध दूसरे भाग (7 से 12) में बृहस्पति हो, केन्द्र स्थानों में शुक्र एवं बुध उच्च का हो तो जातक 120 वर्ष की परमायु को भोगता है।
2. मिथुन लग्न में शनि आठवें हो तो जातक दीर्घायु को भोगता है।
3. उच्च का शनि पंचम भाव में जातक को दीर्घायु देता है।
4. अष्टमेश शनि लग्न में, गुरु एवं शुक्र के द्वारा दृष्ट हो तो जातक 100 वर्ष की स्वस्थ दीर्घायु को प्राप्त करता है।
5. मिथुनलग्न में चन्द्रमा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु या कुम्भ राशि में हो तथा अन्य सभी ग्रह भी इन्हीं राशियों में हों तो जातक 90 वर्ष की उत्तम आयु को भोगता है।
6. चन्द्रमा छठे वृश्चिक का हो अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह न हो, सभी शुभ ग्रह केन्द्रवर्ती हों तो जातक 85 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है।
7. लग्नेश बुध लग्न को देखता हो, सभी शुभ ग्रह केन्द्र में हो तो जातक 75 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है।
8. शनि मेष का, मंगल तुला का पांचवें एवं सूर्य सातवें हो तो व्यक्ति 70 वर्ष की निरोग आयु को भोगता है।
9. अष्टमेश शनि सातवें हो, चन्द्रमा पापग्रहों के साथ छठे या आठवें हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
10. शनि अन्य किसी भी ग्रह के साथ लग्नस्थ हो, चन्द्रमा अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो व्यक्ति सैद्धान्तिक एवं विद्वान् होता हुआ 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
11. बुध पाप ग्रहों के साथ आठवें हो तथा अष्टमेश शनि पाप ग्रहों के साथ छठे स्थान में शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जी पाता है।
12. लग्न में शनि मंगल हो, चन्द्रमा आठवें, बृहस्पति छठे हो तो जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।
13. द्वितीय एवं द्वादश भाव में पाप ग्रह हो, लग्नेश बुध निर्बल हो तथा लग्न, द्वितीय या द्वादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।
14. आठवें स्थान में सूर्य, राहु, बृहस्पति, मंगल हो तथा शुक्र सातवें
हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है उसके शरीर में शारीरिक रूग्णता बनी रहती है।
15. लग्नेश बुध एवं लग्न दोनों पाप ग्रहों के मध्य हों, सप्तम में पाप ग्रह हो तथा आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो जातक जीवन से निराश होकर आत्महत्या करता है।
16. षष्टेश मंगल सप्तम या दशम भाव में हो, लग्न पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो तो जातक शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।
17. चन्द्रमा पाप ग्रहों के मध्य हो, शनि सप्तम में हो तो जातक देवता के शाप अथवा शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।
18. निर्बल चन्द्रमा अष्टम में शनि के साथ हो तो जातक प्रेत बाधा और शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता है तथा अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है।
मिथुन लग्न के रोग योग
1. मिथुन लग्न में षष्टेश शुक्र लग्न में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति जल स्राव से अंधा होता है।
2. मिथुन लग्न के चौथे भाव में पाप ग्रह हो तथा चतुर्थेश बुध पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
3. चतुर्थेश बुध यदि अष्टमेश शनि के साथ अष्टम स्थान में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
4. चतुर्थेश बुध कर्क या मीन राशि में हो एवं अस्त हो तो जातक को तीव्र हृदय रोग होता है।
5. शनि चौथे कन्या का, षष्टेश मंगल एवं सूर्य पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को हृदय रोग है।
6. चतुर्थ एवं पंचम भाव में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता है।
7. कन्या का शनि चौथे एवं कुंभ का सूर्य नवमें हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता है।
8. चतुर्थ स्थान में राहु अन्य पाप ग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्नेश बुध निर्बल हो तो जातक को असह्य हृदय शूल (हार्ट-अटैक) होता है।
9. वृश्चिक का सूर्य दो पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को तीव्र हार्ट अटैक होता है।
10. बुध, शनि, मंगल की युति एक साथ दुःस्थानों में हो तो वाहन दुर्घटना से जातक की मृत्यु होती है।
11. लग्न में पाप ग्रह हो, लग्न का स्वामी बुध बलहीन हो तो व्यक्ति रोगी रहता है।
12. लग्न में क्षीण चंद्रमा बैठा हो, लग्न पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति रोगी रहता है।
13. अष्टमेश शनि लग्न में एवं लग्नेश बुध अष्टम में हो लग्न पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति दवाई लेने पर भी ठीक नहीं होता, सदैव रोगी बना रहता है।
14. लग्नेश बुध चौथे या द्वादश भाव में शनि, मंगल के साथ हो तो जातक कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है।
15. शनि, चंद्रमा से युत होकर बृहस्पति छठे भाव में स्थित हो तो जातक कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है।
16. अष्टमेश शनि सातवें हो, चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ छठे या आठवें हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
17. शनि अन्य किसी भी ग्रह के साथ लग्नस्थ हो, चंद्रमा अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो व्यक्ति सैद्धांतिक एवं विद्वान होता हुआ 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
18. लग्नेश बुध पाप ग्रहों के साथ आठवें हो तथा अष्टमेश शनि पाप ग्रहों के साथ छठे स्थान में शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जी पाता है।
19. लग्न में शनि मंगल हो, चंद्रमा आठवें, बृहस्पति छठे हो तो जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त होता है।
20. द्वितीय एवं द्वादश भाव में पाप ग्रह हो, लग्नेश बुध निर्बल हो तथा लग्न द्वितीय या द्वादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।
मिथुन लग्न के विवाह योग
1. कर्क का चंद्रमा एवं धनु का बृहस्पति सप्तम में हो तो वह स्त्री विश्व सुन्दरी का मुकुट धारण करती है।
2. बुध सातवें स्थान में शनि युक्त हो तो पति नपुंसक होता है।
3. सप्तमेश अपने मूल त्रिकोण में हो तथा धनेश के साथ हो और लग्नेश अपनी उच्च राशि में हो तो जातक का विवाह उच्च कुल में होता है तथा जातक का 18वें वर्ष में भाग्योदय होता है।
4. सप्तम में सूर्य, मंगल, चंद्र या शनि हो तो जातक अन्य जाति की लड़की से विवाह होता है।
5. क्रूर ग्रह अष्टम में वैधव्य करता है, वह वैधव्य किस वय में होगा इसका निर्णय अष्टम स्थान का स्वामी जिस नवाश में हो उस नवाशं स्वामी ग्रह की अवस्था में वैधव्य योग होता है।
6. शनि लग्नस्थ चन्द्रमा के साथ हो तथा सप्तम भाव में सूर्य हो ऐसे जातक के विवाह में भयंकर बाधा आती है। विलम्ब विवाह तो निश्चित है। अविवाह की स्थिति भी बन सकती है।
7. शनि द्वादशस्थ या अष्टमस्थ हो, द्वितीय भाव में सूर्य हो तथा लग्नेश बुध निर्बल हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
8. शनि छठे हो, सूर्य अष्टम में हो एवं सप्तमेश गुरु बलहीन हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
9. सूर्य, शनि एवं शुक्र की युति कहीं भी हो, सप्तमेश गुरु निर्बल हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
10. शुक्र कर्क या सिंह राशि में हो तथा सूर्य या चन्द्रमा शुक्र से द्वितीय या द्वादश स्थान में हो जातक का विवाह नहीं होता।
11. लग्न में राहु हो तथा शुक्र मिथुन, सिंह, कन्या, धनु (वन्ध्या) राशिगत हो तो विवाह विलम्ब से होता है तथा जीवन साथी से तृप्ति नहीं मिलती।
12. राहु या केतु सप्तम भाव या नवम भाव में क्रूर ग्रहों से युक्त होकर बैठे हों तो निश्चय ही जातक का विवाह विलम्ब से होता है। ऐसा जातक प्रायः अन्तर्जातीय विवाह करता है।
13. द्वितीयेश चन्द्रमा अस्त हो, द्वितीय भाव में वक्री ग्रह स्थित हो तो जातक के विवाह में अत्यधिक अवरोध उत्पन्न होता है।
14. सप्तमेश बृहस्पति वक्र हो, सप्तम भाव में कोई भी ग्रह वक्री हो या किसी वक्री ग्रह की सप्तम भाव पर दृष्टि हो तो जातक के विवाह में अवरोध आते हैं। विवाह समय पर सम्पन्न नहीं होता।
15. बृहस्पति यदि स्वराशिगत, उच्चराशिगत या उच्चाभिलाषी हो तो जातक एक पत्नीव्रत व भारतीय परम्परा में विश्वास रखता है। 34 वर्ष की आयु में जातक को विशिष्ट पद-प्रतिष्ठा सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ससुराल से प्रचुर धन व मान मिलता है।
मिथुन लग्न में संतान योग
1. पंचमेश शुक्र यदि आठवें हो तो जातक के अल्प सन्तति होती है।
2. पंचमेश शुक्र अस्त हो या पाप पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक के पुत्र नहीं होता।
3. पंचम भाव में शुक्र हो तो जातक के छः कन्याएं होती हैं।
4. सूर्य पंचम में हो तथा मकर या कुम्भ के नवमांश में पाप पीड़ित हो तो जातक को पितृश्राप का दोष होता है। जिसके कारण उसे पुत्र सन्तान नहीं होती।
5. राहु, सूर्य एवं मंगल पंचम भाव में हो तो ऐसे जातक को शल्य चिकित्सा द्वारा कष्ट से पुत्र सन्तान की प्राप्ति होती है। आज की भाषा में ऐसे बालक को ” सिजेरियन चाइल्ड” कहते हैं।
6. पंचमेश शुक्र कमजोर हो तथा राहु एकादश में हो तो जातक के वृद्धावस्था में संतान होती हैं।
7. पंचम स्थान में राहु, केतु या शनि इत्यादि पाप ग्रह हों तो गर्भपात अवश्य होता है।
8. गुरु धनु का हो तथा शुक्र, मंगल कहीं भी एक साथ होने पर उस स्त्री को संतान नहीं होती।
9. समराशि (2, 4, 6, 8, 10, 12) में गया हुआ बुध कन्या सन्तति की बाहुल्यता देता है। यदि चंद्रमा और शुक्र का भी पंचम भाव पर प्रभाव हो तो यह योग अधिक पुष्ट हो जाता है।
10. पंचमेश शुक्र निर्बल हो, लग्नेश बुध भी निर्बल हो तो पंचम भाव में राहु हो तो जातक को सर्पदोष के कारण पुत्र सन्तान नहीं होती।
11. पंचम भाव में राहु हो और एकादश स्थान में स्थित केतु के मध्य सारे ग्रह हों तो पद्म नामक “कालसर्प योग” के कारण जातक के पुत्र सन्तान नहीं होती। ऐसे जातक को वंश वृद्धि की चिन्ता एवं मानसिक तनाव रहता है।
12. सूर्य अष्टम हो, पंचम भाव में शनि हो, पंचमेश राहु से युत हो तो जातक को पितृ दोष होता है तथा पितृ शाप के कारण पुत्र सन्तान नहीं होती।
13. चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा चन्द्रमा जहां बैठा हो उससे आठवें स्थान में पाप ग्रह हो तो वंशविच्छेद योग बनता है। ऐसे जातक का स्वयं का वंश समाप्त हो जाता, उसके आगे पीढ़ियां नहीं चलतीं।
14. तीन केन्द्रों में पाप ग्रह हों तो “इलाख्य नामक” सर्पयोग बनता है। इस दोष के कारण जातक को पुत्र सन्तान का सुख नहीं मिलता।
15. पंचमेश पंचम, षष्ट या द्वादश भाव में हो तथा पंचम भाव शुभ
ग्रहों से दृष्ट न हो तो ” अनपत्य योग” बनता है। ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह सन्तान उत्पन्न नहीं होती पर उपाय से दोष शान्त हो जाता है।
16. जिस स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य लग्न में और शनि यदि सातवें हो अथवा सूर्य, शनि की युति सातवें हो तथा दशम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो “अनगर्भा योग” बनता है ऐसी स्त्री गर्भधारण योग्य नहीं होती।
17. जिस स्त्री की जन्म कुण्डली में शनि-मंगल छठे या चौथे स्थान में हो तो “अनगर्भा योग” बनता है ऐसी स्त्री गर्भधारण करने योग्य नहीं होती।
18. शुभ ग्रहों के साथ सूर्य, चन्द्रमा यदि पंचम स्थान में हों तो “कुलवर्द्धन योग ” बनता है। ऐसी स्त्री दीर्घजीवी, धनी एवं ऐश्वर्यशाली सन्तानों को उत्पन्न करती है।
19. पंचमेश मिथुन या कन्या राशि में बुध से युत हो, पंचमेश और पंचम भाव पर पुरुष ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक को “केवल कन्या योग” होता है। पुत्र सन्तान नहीं होती।
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