मिथुन लग्न में राहु का फलादेश

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश प्रथम स्थान में

मिथुन लग्न में राहु लग्नेश बुध का मित्र है, अतः हर हालत में शुभफल देता है। प्रथम भावगत राहु मिथुन राशि में है जो कि राहु की स्वराशि है। कुछ विद्वान इसे राहु की उच्च राशि भी कहते हैं। ऐसा जातक तीव्र बुद्धि वाला कोई भी निर्णय सोच-समझकर करने वाला, स्वतंत्र विचारों वाला, धैर्यवान्, स्नेहशील एवं समझौतावादी दृष्टिकोण वाला होता है। ऐसा जातक वैभवशाली जीवन जीता है तथा व्यापार व नौकरी में बराबर उन्नति प्राप्त करता रहता है।

दृष्टि – राहु की दृष्टि सप्तम भाव (धनु राशि) पर होने से गृहस्थ सुख में कुछ न कुछ न्यूनता महसूस होगी।

निशानी – ऐस व्यक्ति धनवान होता है तथा खर्चा भी खूब करता है।

दशा – राहु का दशा अंतर्दशा में जातक की उन्नति होगी। दशा अच्छा

फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के संग सूर्य होने से व्यक्ति उदण्ड होता है।

2. राहु + चंद्र – जातक हठी व अस्थिर मनोवृत्ति वाला होगा।

3. राहु + मंगल – राहु के संग मंगल होने से व्यक्ति अभद्र व्यवहार करने वाला उदण्ड होता है।

4. राहु + बुध – जातक हठी, जिद्दी किंतु बुद्धिमान होता है।

5. राहु + गुरु – यहां दोंनो ग्रह प्रथम स्थान में मिथुन राशि में है। यहां बृहस्पति की अपनी मित्रराशि एवं अपनी उच्चराशि में है ‘चाण्डाल योग’ के कारण जानक हठी होगा तथा परिवार कुटुम्ब वालों के प्रति लगाव नहीं रखेगा।

6. राहु + शुक्र – जातक के कार्य में अस्थिरता रहेगी।

7. राहु + शनि – जीवन में संघर्ष की स्थिति रहेगी।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश द्वितीय स्थान में

यहां द्वितीय स्थान में राहु कर्क (शत्रु) राशि में है। ऐसा जातक धन कमाता है। पर धन की बरकत नहीं होती। पैसे की तंगी बराबर बनी रहती है। ऐसा जातक की वाणी अनियंत्रित होती है। कुटुम्ब में भी प्रेम-स्नेह-संबल की कमी रहती है।

दृष्टि – राहु की दृष्टि आठवें स्थान (मकर राशि) पर होगी। यह राहु दीर्घायु में कमी कराता है।

निशानी – जातक प्रभावशाली होता है पर अमीरी-गरीबी की छाया में पलकर बढ़ा होता है।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में धन हानि की संभावना, परिवार में विवाद एवं गलत निर्णय के दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – की युति में जातक अहंकारी होता है। वाणी में घमण्ड ज्यादा होता है तथा मित्रो के प्रति उपेक्षा भाव बना रहता है।

2. राहु + चंद्र – जातक द्वारा उपार्जित धन खर्च होता चला जाएगा।

3. राहु + मंगल – जातक कलहकारी होगा, वाणी लड़ाकू होगी।

4. राहु + बुध – धन के घड़े में छेद के कारण आर्थिक संघर्ष रहेगा।

5. राहु + गुरु – यहां द्वितीय स्थान में दोनों ग्रह कर्क राशि में है। यहां बृहस्पति अपनी उच्चराशि में है ‘चाण्डाल योग’ के कारण धन के प्रति लापरवाह होगा। जहां जरूरत नहीं होगी वहां रुपया खर्च कर देगा।

6. राहु + शुक्र – धन की अपव्यय अधिक होगा।

7. राहु + शनि – धन संग्रह में बाधा रहेगी।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश तृतीय स्थान में

तीसरे भाव में राहु की स्थिति को शास्त्रकारों ने राजयोग कारक माना है ऐसा जातक महान्, पराक्रमी, धार्मिक, हठी एवं महत्वकांक्षी होता है। ऐसे व्यक्ति के पास जायदाद अवश्य होती है। जातक शरण में आये व्यक्ति की भरपूर मदद करता है। उसके हौसले बुलंद होते हैं पर भाईयों-कुटम्बीजनों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता। भाईयों से मनमुटाव की स्थिति रहती है, पर जातक की व्यक्तिगत उन्नति शानदान होती है।

दृष्टि – तृतीयस्थ राहु की दृष्टि भाग्यभवन (कुंभ राशि) पर होगी। फलतः भाग्य में कुछ न कुछ न्यूनता बनी रहेगी।

निशानी – ऐसा व्यक्ति दिलेर होता है तथा मुसीबत में घिरे व्यक्तियों की मदद करता है। जातक के सपने कई बार सच होते हैं।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में पराक्रम बढ़ेगा पर विरोधियों का भी सामना करना पड़ेगा।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – कुटुम्ब सुख में हानि, कलह, विवाद रहेगा।

2. राहु + चंद्र – यहां राहु संग चंद्रमा होने से जातक का मन-मस्तिष्क अशांत रहेगा। जातक एकांत प्रिय होगा। भाईयों से अनबन रहेगी।

3. राहु + मंगल – परिवार में विग्रह होगा।

4. राहु + बुध – मित्रों में विवाद, भाईयों में विग्रह रहेगा।

5. राहु + गुरु – यहां तृतीयस्थ दोनों ग्रह सिंहराशि में है। राहु अपनी शत्रुराशि में है। ‘चाण्डालयोग’ के कारण भाईयों से अनबन एवं भागीदारों में मनमुटाव रहेगा।

6. राहु + शुक्र – परिवार में मनमुटाव रहेगा।

7. राहु + शनि – भाईयों से अनबन रहेगी। कोई विवाद संभव है।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थ स्थान में राहु कन्या (स्व) राशि में है। ऐसे व्यक्ति को मातृसुख में न्यूनता रहती है। भौतिक ऐश्वर्य, सुख-संसाधनों की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ेगा। मानसिक अशान्ति, अस्थिरता एवं अज्ञात भय अशुभ की आशंक बनी रहेगी। ऐसे व्यक्ति को पुराने मकान में रहना पड़ता है तथा प्रायः मकान में वास्तुदोष होता है। जातक को समाज में अपयश भी मिलता है।

दृष्टि – चतुर्थस्थ राहु की दृष्टि दशमभाव (मीन राशि) पर होगी। फलत: जातक का राजा (सरकार) से सम्मान होगा।

निशानी – ऐसा व्यक्ति धार्मिक व परोपकारी होता है। भाग्यपथ से दौलत अर्जित करता है।

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दशा – राहु की दशा-अंतर्दशा में आर्थिक, सामाजिक एवं व्यवसायिक उन्नति होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – माता की मृत्यु अल्प आयु में संभव ।

2. राहु + चंद्र – माता को कष्ट अथवा छोटी उम्र में माता की मृत्यु संभव है।

3. राहु + मंगल – शिक्षा अधूरी रहेगी।

4. राहु + बुध – माता एवं बहन का सुख कमजोर रहेगा।

5. राहु + गुरु – यहां चतुर्थ स्थान में दोनों ग्रह कन्या राशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण माता के सुख में कमी रहेगी। सांसारिक सुखों में न्यूनता रहेगी।

6. राहु + शुक्र – यहां राहु की युति से शुक्र चतुर्थ व पंचम दोनों भाव के शुभ फल नष्ट करेगा।

7. राहु + शनि – वाहन दुर्घटना का योग बनता है।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में राहु, तुला (मित्र) राशि में है। यह इतना बुरा नहीं होता। यह पंचम भाव के फलों में वृद्धि करता है। परंतु शुक्र की बलवत्ता (स्थिति) पर ध्यान देना जरूरी है। जातक को पुत्र सुख विलम्ब से मिलता है। जातक को व्यर्थ के वाद-विवाद का सामना करना पड़ता है।

दृष्टि – पचमस्थ राहु की दृष्टि एकादश भाव (मेष राशि) पर होगी। फलतः व्यापार-व्यवसाय में प्रारंभिक अवरोधों का सामना करना पड़ेगा।

निशानी – यह विद्या में बाधा डालता है। गर्भ में संतान को नष्ट करता है।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में जातक को मिश्रित फल मिलेगे। मनोवांछित कार्य में रुकावट महसूस होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – यहां राहु के साथ सूर्य निराशा उत्पन्न करता है। शिक्षा का अभाव संभव है। अथवा शिक्षा का यथेष्ट लाभ जीवन में नहीं मिलेगा। संतान व कुटुम्ब सुख में बाधा रहेगी ।

2राहु + चंद्र – पुत्र संतान प्राप्ति में बाधा संभव है।

3. राहु + मंगल – यहां मंगल की युति से शिक्षा अधूरी रहेगी।

4. राहु + बुध – एक दो संतति की अकाल मृत्यु संभव है। विद्या में बाधा ।

5. राहु + गुरु – यहां पंचमभाव में दोनों ग्रह तुलाराशि में है। ‘चाण्डाल योग’ के कारण पुत्र संतति विलम्ब में होगी विद्यायोग में अनपेक्षित बाधा संभव।

6. राहु + शुक्र – विद्या एवं पुत्र संतति में बाधा ।

7. राहु + शनि – विद्या में रुकावट, कन्या संतति ज्यादा।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश षष्टम स्थान में

शास्त्रकारों ने छठे राहु को राजयोगकारक माना है, क्योंकि दुष्टग्रह उपचय स्थान में शुभफल देते हैं। फलतः यहां राहु जातक की व्यक्तिगत उन्नति में सहायक है। ऐसा जातक ऋण, रोग व शत्रुओं का नाश करने में पूर्णतः सक्षम होता है। ऐसे व्यक्ति को सुख-ऐश्वर्य के सभी साधन सहज में उपलब्ध होते हैं। व्यक्ति हमेशा उन्नति पथ की ओर आगे बढ़ता रहेगा।

दृष्टि – षष्ट भावगत राहु की दृष्टि व्ययभाव (वृष राशि) पर होगी। फलत: जातक खर्चीले स्वभाव का होगा।

निशानी – ऐसे व्यक्ति को कोई भी बाधा अधिक समय तक पीड़ित नहीं कर सकती।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में जहां देह कष्ट, मानसिक संताप या रोग की संभावना बनी रहेगी। वही जातक की उन्नति भी होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – निडर किंतु रूखे स्वभाव का व्यक्ति होगा।

2. राहु + चंद्र – यहां राहु मृत्यु तुल्य कष्ट देगा।

3. राहु + मंगल – यहां राहु-मंगल की युति जातक को अतिपराक्रमी बनाएगी। जातक पुलिस फौज, प्रशासन के कार्यों में विशेष रुप से सफल होगा।

4. राहु + बुध – शत्रु परास्त होने से बाधा पहुंचाने की चेष्टा करेंगे।

5. राहु + गुरु – यहां छठे स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में है। चाण्डाल योग के कारण विलम्ब विवाह अथवा गृहस्थ सुख में निश्चित रूप से बाधा पहुंचेगी।

6. राहु + शुक्र – विद्या, पुत्र संतति सुख में बाधा।

7. राहु + शनि – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश सप्तम स्थान में

सप्तम स्थान में राहु धनु (शत्रु) राशि में है। राहु की यह अवस्था सप्तम भाव के लिए शुभ नहीं कही गई। जातक के गृहस्थ सुख में कमी रहेगी। संभवतः प्रथम विवाह का सुख नहीं। सम्भवत: दूसरे विवाह से सुख मिलता है अथवा 42 वर्ष की आयु के बाद गृहस्थ सुख जमता है। यहां सप्तमेश बृहस्पति की स्थित का अवलोकन करके निर्णय लेना चाहिए।

दृष्टि – राहु की दृष्टि लग्न स्थान ( मिथुन राशि ) पर होगी। फलत: जातक उन्नति मार्ग की ओर आगे बढ़ेगा।

निशानी – शीघ्र विवाह होना, जीवन साथी के लिए हानिप्रद रहता है।

दशा – राहु की दशा-अंतर्दशा में गृहस्थ सुख में बाधक है।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – वैवाहिक सुख में बाधा, विवाद, बिछोह की संभावना ।

2. राहु + चंद्र – गृहस्थ सुख में व्यवधान द्विभार्या योग बनता है।

3. राहु + मंगल – पत्नी से विवाद, कलह, बिछोह संभव।

4. राहु + बुध – गृहस्थ सुख में बाधा द्विभार्या योग संभव।

5. राहु + गुरु – यहां दोनों ग्रह धनु राशि में है। जातक का ससुराल प्रभावशाली व संपन्न होगा। यहां ‘चाण्डाल योग’ के कारण पति-पत्नी के मध्य अहम् का टकराव होता रहेगा।

6. राहु + शुक्र – गृहस्थ सुख में बाधा रहेगी।

7. राहु + शनि – विवाद सुख में कमी, द्विभार्या योग बनता है।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टम स्थान में राहु मकर (मित्र) राशि में है। ऐसे जातक में चिंतन की शक्ति गजब की होती है। इनको दैहिक कष्ट व दुर्घटना का भय रहेगा। गुप्त शत्रु भी परेशान करेंगे।

दृष्टि – अष्टम भावगत राहु की दृष्टि धनभाव (कर्क राशि) पर होगी। फलतः धन की हानि एवं परिवारिक कष्ट होंगे।

निशानी – ऐसा व्यक्ति अच्छे परिवार में जन्म लेकर भी अपनी करतूतों के कारण बदनाम होता है।

उपाय – इस राहु को नेक करने के लिए व्यक्ति को खोटा सिक्का 43 शनिवार तक दरिया में बहाना चाहिए या राहु के जाप कराने चाहिए।

दशा – राहु की दशा-अंतर्दशा में मानसिक, दैहिक व आर्थिक कष्ट की अनुभूति होती है।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – जातक को लम्बी बीमारी या दुर्घटना संभव है।

2.राहु + चंद्र – जातक लम्बी उम्र का स्वामी होगा, मृत्युभय रहेगा।

3. राहु + मंगल – राहु मंगल की युति में जनेन्द्रिय में रोग होते हैं।

4. राहु + बुध – अचानक दुर्घटना संभव, आयु में बाधा ।

5. राहु + गुरु – यहां दोनों ग्रह मकर राशि में है ‘चाण्डाल योग’ के कारण विलम्ब विवाह योग अथवा गृहस्थ सुख में निश्चित बाधा के योग बनते हैं। यहां द्विभार्या योग भी संभव है।

6. राहु + शुक्र – गुप्त बीमारी एवं अचानक दुर्घटना संभव है।

7. राहु + शनि – आयु में रुकावट, दुर्घटना संभव।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश नवम स्थान में

यहां नवम स्थान में राहु कुंभ (मित्र) राशि में है। यह राहु व्यक्ति को राजातुल्य वैभव देता है। व्यक्ति शौर्य, पराक्रम, बल, बुद्धि, प्रतिष्ठा में किसी से कम नहीं होता । यद्यपि जातक के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते है तथापि अकड़ किसी रईस से कम नहीं होती।

दृष्टि – नवम भावगत राहु की दृष्टि पराक्रम स्थान (सिंह राशि ) पर होगी। फलत: जातक को कुटुम्ब व भाईयों का सुख-सहयोग मिलेगा।

निशानी – ऐसा व्यक्ति स्वप्रयासों से बिगड़े एवं उलझे हुए जटिल कार्यों से सुलझा देते है।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में जातक भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – भाग्य में बाधा, भौतिक सुखों की हानि ।

2. राहु + चंद्र – भाग्य में रुकावट पिता का सुख कमजोर रहेगा।

3. राहु + मंगल – जातक धनवान होगा पर भाग्योदय में रुकावटे बहुत आएगी।

4. राहु + बुध – राज्य सरकार एवं राजनीति में अप्रिय घटना हो सकती है।

5. राहु + गुरु – यहां दोनों ग्रह कुंभ राशि में है। जातक का राजनैतिक वर्चस्व तो रहेगा परंतु ‘चाण्डाल योग’ के कारण पिता से अनबन रहेगी अथवा राजनीति में पद प्राप्ति के अवसर पर धोखा मिलेगा।

6. राहु + शुक्र – भाग्य में लगातार बाधा से जातक परेशान हो जाएगा।

7. राहु + शनि – भाग्य में बिगाड़, किस्मत बनती बनती बिगड़ जाएगी।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश दशम स्थान में

यहां दशम स्थान में राहु मीन (शत्रु) राशि में होगा। ऐसा व्यक्ति सामाजिक प्राणी होता है। आध्यात्मिक एवं धार्मिक कार्यों को लेकर विभिन्न संगठनों से जुड़ा रहता है। व्यक्ति समाज के पुननिर्माण में कुरीतियों को दूर करने में रुचि रखते हैं। विरोधियों द्वारा उत्पन्न बाधाओं को दूर करने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातक कूट राजनीतिज्ञ होते हैं तथा हठी व स्वाभिमानी होते हैं।

दृष्टि – दशमस्थ राहु की दृष्टि चतुर्थभाव (कन्या राशि) पर होगी। ऐसे जातक के पास अनेक वाहन होते हैं। उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति सहज में हो जाती है।

निशानी – यह जातक को दौलतमंद बनाता है। व्यक्ति खतरों से खेलता है।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में जातक वैभव, उन्नति को प्राप्त करता है।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – संघर्ष के उपरान्त सफलता निश्चित हैं।

2. राहु + चंद्र – सरकारी क्षेत्र में धोखा होगा।

3. राहु + मंगल – जातक को राज्यपक्ष से हानि होगी।

4. राहु + बुध – व्यापार में, शुद्ध मुनाफे में घाटा होगा।

5. राहु + गुरु – यहां दोनों ग्रह मीन राशि में है। जातक राजातुल्य पराक्रमी होगा। परंतु ‘चांडाल योग’ के कारण राजा (सरकार) में दण्ड प्राप्ति संभव है। पिता की सम्पत्ति में विवाद रहेगा।

6. राहु + शुक्र – राज्यपक्ष में बाधा, सरकारी परेशानी रहेगी।

7. राहु + शनि – राजनीति में धोखा मिलेगा।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश एकादश स्थान में

यहां एकादश रा.स्थान में राहु मेष (सम) राशि में है। शास्त्रकारों ने एकादश स्थान में राहु को राजयोगकारक माना है। ऐसे व्यक्ति अपने साहस, पराक्रम एवं संघर्ष करने की लगातार शक्ति के कारण उन्नति के

शिखर को स्पर्श कर लेते हैं ऐसे जातक प्राय: लडाकू प्रवृत्ति के होते हैं। दृष्टि एकादश भाव में स्थित राहु की दृष्टि पंचम भाव (तुला राशि) पर होने से यह गर्भपात कराता है तथा विद्या प्राप्ति के एकाध बार रुकावट का संकेत देता है।

निशानी – आयु में बड़े भाई-बहनों को कष्ट होता है।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में संघर्षकारी स्थितियों को उत्पन्न करेगी। राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – बड़े भाई एवं पिता को सुख में हानि। संतति सुख में हानि संभव।

2.  राहु + चंद्र – जातक हिसंक स्वभाव का होगा। पागलपन के दौरे भी आ सकते हैं।

3. राहु + मंगल – यदि मंगल साथ है तो उद्योग या फैक्ट्री में एक बार रुकावट जरूर आएगी।

4. राहु + बुध – व्यापार में हानि यात्रा में संकट |

5. राहु + गुरु – यहां दोनों ग्रह मेषराशि में है जातक पत्नी एवं पिता पक्ष में सुखी होगा परंतु ‘चाण्डाल योग’ के कारण व्यापार व्यवसाय में अपेक्षित लाभ नहीं होगा।

6. राहु + शुक्र – व्यापार में गुप्त नुकसान होगा।

7. राहु + शनि – व्यापार में नुकसान होगा।

मिथुन लग्न में राहु का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में राहु वृष (उच्च) राशि में है ऐसा जातक कठोर परिश्रमी, साहसी व कर्मठ होता है। ऐसे जातक घुमक्कड, रसिक एवं विलासी प्रवृत्ति के होते हैं। ऐसे व्यक्ति कार्य कुछ करते हैं तथा बिना सोच समझ कर ( Unplanned) कार्य करने से ये स्वयं कई बार मुसीबत में उलझ जाते हैं।

दृष्टि – द्वादश भाव गत उच्च के राहु की दृष्टि छठे भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: ऐसा जातक अपने रोग ऋण व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम समर्थ होता है।

निशानी – ऐसे जातक को दौलत ज्यादा समय तक साथ नहीं देती।

दशा – राहु की दशा अंतर्दशा में यात्राएं होगी तथा फालतू के खर्चे बढ़ जाएगे।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – ऐसा व्यक्ति जेल जाएगा या राजा से दंडित होगा। शैया सुख की हानि ।

2. राहु + चंद्र – ऐसा व्यक्ति कर्जदार (ऋणी) होगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल होने से काम-वासना अधिक होगी।

4. राहु + बुध – व्यापार में हानि, यात्रा में संकट।

5. राहु + गुरु – यहां दोनों ग्रह वृषराशि में है। यहां ‘चांडाल योग’ के कारण विलम्ब विवाह अथवा गृह सुख में बाधा होने के निश्चित योग बनते हैं। जातक जन्म स्थान छोड़कर परदेश बस जाएगा। ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक व दार्शनिक होगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र होने से व्यक्ति कामी हो जाता तथा नैतिक-अनैतिक तरीके से अनेक स्त्रियों के साथ रमण करता है। यात्रा में धन का अपव्यय होगा।

7. राहु + शनि – व्यक्ति दार्शनिक होगा। यात्रा में कष्ट । गुप्त बीमारी संभव।

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