मिथुन लग्न में मंगल का फलादेश

मिथुन लग्न में मंगल का फलादेश प्रथम स्थान में

मिथुनलग्न में षष्टेश व लाभेश होने के कारण मंगल अशुभ फलदायक है। मंगल की प्रकृति उग्र, उष्ण व क्रूर है। मिथुन राशि भी उग्र, उष्ण व कूर है फलत: मिथुन लग्न में मंगल सकारात्मक ऊर्जा प्रदायक है। यहां प्रथम स्थान में मिथुन राशि में होगा। मंगल की इस स्थिति से कुण्डली ‘मांगलिक’ कहलाती है। यह मंगल किस्मत जगाने वाला होता है। ऐसे जातक का 28 वर्ष की आयु के बाद भाग्योदय होता है। भाईयों के सहयोग से जातक की उन्नति होती है। ऐसा जातक किसी के भी बारे में अनायास अशुभ वचन बोल दे तो वो पूरा जरूर होता है।

दृष्टि – लग्नस्थ मंगल की दृष्टि चतुर्थ भाव (कन्या राशि), सप्तम भाव (धनु राशि) एवं अष्टम भाव ( मकर राशि) पर होगी। जातक को वाहन सुख, गृहस्थ सुख एवं दीर्घायु का लाभ जरूर मिलेगा।

निशानी – ऐसे जातक को गर्वीले व हठीले स्वभाव के कारण समाज में उचित स्थान नहीं मिलता।

दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक को वाहन सुख, मकान सुख की प्राप्ति होगी। जातक का सर्वागीण विकास होगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – जातक क्रोधी किन्तु पराक्रमी होगा। कुटुम्ब सुख श्रेष्ठ रहेगा।

2. मंगल + चंद्र – मिथुन लग्न में चंद्रमा धनेश है जबकि मंगल षष्टेश व लाभेश होने से पापी है। लग्न में चंद्र-मंगल की युति वस्तुतः धनेश चंद्रमा की षष्टेश-लाभेश के साथ युति होगी। चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री है। फिर भी ‘लक्ष्मीयोग’ बनता है यहां बैठकर दोनों ग्रह सुख स्थान (कन्या राशि) सप्तम स्थान (धनु राशि) एवं अष्टम स्थान (मकर राशि) को देखेंगे। फलत: जातक धनवान होगा। उसे भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी तथा जातक लम्बी उम्र वाला होगा।

3. मंगल + बुध – जातक ‘भद्रयोग’ के कारण राजा जैसा पराक्रमी होगा।

4. मंगल + गुरु – जातक का गृहस्थ सुख वैभवशाली होगा।

5. मंगल + शुक्र – जातक विद्यावान व सभ्य होगा।

6. मंगल + शनि – जातक भाग्यशाली, धनवान होगा।

7. मंगल + राहु – जातक पराक्रमी, हठी व लड़ाकू होगा।

8. मंगल + केतु – जातक का व्यक्तित्व संघर्षशील रहेगा।

मिथुन लग्न में मंगल का फलादेश द्वितीय स्थान में

यहां द्वितीयस्थ मंगल कर्क अपनी नीच राशि में होगा कर्क राशि के 28 अंशों में मंगल परमनीच का कहलाता है। ऐसे जातक को धन, यश, विद्या, बुद्धि, घर-परिवार के सुख की प्राप्ति होती है। जातक तामसी भोजन करेगा। अशुद्ध वाणी बोलेगा। जातक धार्मिक मनोवृत्ति वाला एवं समाजसेवी होगा।

दृष्टि – द्वितीयस्थ मंगल की दृष्टि पंचम भाव (तुला राशि), अष्टमभाव (मकर राशि) एवं भाग्यभवन (कुम्भ राशि) पर होगी। फलतः पुत्र संतान की प्राप्ति उत्तम भाग्य की प्राप्ति एवं दीर्घायु की प्राप्ति होगी।

निशानी – जातक को जीवन में दौलत की कमी नहीं रहेगी धन खुद-ब-खुद चलकर जातक के पास आएगा पर धनागमन बहुत कुछ चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करेगा।

दशा – मंगल की दशा में जातक धनवान होगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – जातक की वाणी प्रखर तेज होगी।

2. मंगल + चंद्र – द्वितीय स्थान में चंद्रमा स्वगृही होगा एवं मंगल नीच के होने से ‘नीचभंगराजयोग’ बना। इसके कारण यहां ‘महालक्ष्मी योग’ बना। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि पंचम भाव (तुला राशि ) भाग्यभाव (कुम्भ राशि) एवं अष्टम भाव ( मकर राशि) पर होगी। फलत: जातक भाग्यशाली होगा। महाधनी होगा परंतु इसका भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा।

3. मंगल + बुध – जातक पुरुषार्थी एवं विवेकी होगा।

4. मंगल + गुरु – जातक महाधनी होगा।

5. मंगल + शुक्र – जातक धनी एवं अभिमानी व्यक्ति होगा।

6. मंगल + शनि – कुटुम्ब में विवाद होगा, धन की तकलीफ रहेगी।

7. मंगल + राहु – धन के घड़े में छेद। रुपया खर्च होता चला जाएगा।

8. मंगल + केतु – कुटुम्ब में विवाद। धन संग्रह में कमी रहेगी।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश तृतीय स्थान में

तृतीयस्थ मंगल सिंह राशि में होगा। फलत: जातक की तेजस्विता, पराक्रम शक्ति विलक्षण होगी। जातक शत्रुहंता होगा। उसमें साहस, शक्ति, उत्साह, परिश्रम एवं विजय की भावना प्रबल होगी। जातक को भाई बहन का सुख जरूर मिलता है।

दृष्टि – तृतीयस्थ मंगल की दृष्टि छठे भाव (वृश्चिक राशि) भाग्य भवन (कुंभ राशि) एवं दशम भाव (मीन राशि) पर होगी। फलत: जातक ऋण, रोग व शत्रु का नाश करने में सक्षम होगा। जातक राजनीति में महत्वपूर्ण व्यक्ति होगा।

निशानी – जातक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कार्य करने की अद्भुत क्षमता रखेगा।

दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में पराक्रम बढ़ेगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – कुटुम्ब, सहोदर का सुख रहेगा। बड़े भाई की मृत्यु संभव है।

2. मंगल + चंद्र – तृतीय स्थान में चंद्र मंगल की युति ‘सिंह राशि में होगी। जहां बैठकर दोनों ग्रह छठे भाव (वृश्चिक राशि) भाग्यभाव (कुम्भ राशि) एवं दशमभाव (मीन राशि) को देखेंगे फलतः ऐसा जातक भाग्यशाली तथा धनवान होगा एवं अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

3. मंगल + बुध – भाई बहन का सुख रहेगा।

4. मंगल + गुरु – मित्रों से लाभ होगा, पराक्रम तेज रहेगा।

5. मंगल + शुक्र – भाई बहनों का सुख रहेगा।

6. मंगल + शनि – परिवार में कलह रहेगा।

7. मंगल + राहु परिवार में विग्रह रहेगा।

8. मंगल + केतु – कीर्ति उत्तम पर मित्रों से मनमुटाव रहेगा।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थस्थ मंगल ‘कन्या राशि’ मित्र राशि में होगा। मंगल की यह स्थिति कुण्डली को मांगलिक बनाती है। मंगल यहां दिक्बली है। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को सूखी घास की तरह जला डालता है। ऐसा जातक कुशल गणितज्ञ, सर्जन, इंजीनियर, कम्प्यूटर कार्य में दक्ष, अनुशासन कार्य में कुशल होता है। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार कुटुम्ब का सच्चा सहायक होता है।

दृष्टि – चतुर्थस्थ मंगल की दृष्टि सप्तम भाव (धनु राशि), दशम भाव (मीन राशि) एवं एकादश स्थान (मेष राशि) पर होगी। फलत: जातक को गृहस्थ सुख एवं व्यापार-व्यवसाय में यथेष्ट लाभ मिलता रहेगा।

दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक को भौतिक ऐश्वर्य व उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – भौतिक व पारिवारिक सुख मिलेंगे।

2. मंगल + चंद्र – यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव (धनु राशि) दशम भाव (मीन राशि) एवं एकादश भाव (मेष राशि) को देखेंगे जो कि मंगल के स्वयं की राशि है। ऐस जातक धनी होगा। बड़ा व्यापारी होगा तथा उसका भाग्योदय विवाह के बाद होगा।

3. मंगल + बुध – ‘ भद्रयोग’ के कारण जातक राजातुल्य वैभव से सम्पन्न होगा।

4. मंगल + गुरु – जातक का ससुराल अच्छा होगा। स्वयं की नौकरी अच्छी होगी।

5. मंगल + शुक्र – जातक धनी व वैभवशाली होगा।

6. मंगल + शनि – जातक भाग्यशाली है। दो मंजिल वाले मकान का स्वामी होगा।

7. मंगल + राहु – माता सुख में कमी, अल्पायु में मृत्यु संभव है ।

8. मंगल + केतु – माता बीमार रहेगी।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में मंगल तुला राशि (शत्रु) का होगा। जातक धनवान, विद्यावान, बुद्धिमान होगा। परंतु विद्या में एक बार रुकावट आती है। दो-तीन पुत्र हो सकते हैं पर एकाध गर्भपात संभव है।

दृष्टि – पंचमस्थ मंगल की दृष्टि अष्टमभाव (मकर राशि), अपने घर मेध राशि (एकादश स्थान), द्वादश स्थान (वृष राशि) पर होगी। फलतः लम्बी आयु वाला, व्यापारी एवं खर्चीले स्वभाव का होता है।

निशानी – ऐसा व्यक्ति 28 वर्ष की आयु के बाद दिन-प्रतिदिन अमीर होता चला जाएगा। प्रथम संतान की उत्पत्ति के बाद जातक का भाग्य और अधिक चमकेगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – सूर्य एक हजार राजयोग नष्ट करता है। सरकारी नौकरी में कमी रहेगी।

2. मंगल + चंद्र – पंचम स्थान में दोनों ग्रह तुला राशि में होंगे। जहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव (मकर राशि), लाभ स्थान (मेष राशि) एवं व्यय भाव (खर्च स्थान) को देखेंगे। फलत: जातक धनवान, लम्बी आयु का स्वामी होगा तथा खर्चीले स्वभाव का होगा।

3. मंगल + बुध – संतति सुख उत्तम पुत्र-पुत्री दोनों का सुख होगा ।

4. मंगल: + गुरु – पुत्र सुख निश्चित। विद्या में डिग्री मिलेगी।

5. मंगल + शुक्र – संतान एवं विद्या सुख श्रेष्ठ ।

6. मंगल + शनि – विद्या में संघर्ष, रुकावट ।

7. मंगल + राहु – संतान में बाधा, गर्भपात संभव।

8.  मंगल + केतु – गर्भक्षय एवं रुकावट के साथ विद्या का संकेत मिलता है।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां छठे स्थान में मंगल वृश्चिक राशि में स्वगृही है। षष्टेश षष्टम में स्वगृही होने से ‘हर्षयोग’ बनता है जातक युद्ध विद्या व षड्यंत्र करने में निपुण होता ” है। जातक शत्रुहता होता है। तनाव व दबाव को सहन करने में समर्थ होता है। जातक अपनी उन्नति हेतु अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकता। यहां ‘लाभभंग योग’ के कारण कई बार व्यापार में घाटा होगा।

दृष्टि – यहां षष्टमस्थ मंगल की दृष्टि भाग्य भाव (कुम्भ राशि) व्यय भाव (वृष राशि) तथा लग्न भाव (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः जातक उन्नतिशील होगा एवं खर्चीले स्वभाव का होगा।

निशानी – ऐसे व्यक्ति साम, दाम, दण्ड व भेद नीति में निपुण होते हैं।

दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – पराक्रम भंग होगा। भाईयों में नहीं बनेगी।

2. मंगल + चंद्र – छठे स्थान में चंद्रमा अपनी नीच राशि में होगा एवं मंगल स्वगृही होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। इन दोनों ग्रहों की दृष्टि भाग्य स्थान (कुम्भ राशि) धन स्थान (कर्क राशि) एवं पराक्रम स्थान (सिंह राशि) पर होगी। फलतः ‘महालक्ष्मी योग’ के कारण जातक धनवान होगा भाग्यशाली होगा एवं राजा के समान पराक्रमी होगा।

3. मंगल + बुध – परिश्रम का लाभ कम मिलेगा।

4. मंगल + गुरु – गृहस्थ सुख में विवाद, पत्नी से कम बनेगी।

5. मंगल + शुक्र – विद्या में बाधा, संतान बिलम्ब से संभव ।

6. मंगल + शनि – विपरीत राजयोग से वैभव बढ़ेगा।

7. मंगल + राहु – लम्बी बीमारी संभव।

8. मंगल + केतु – शत्रुओं का प्रकोप रहेगा।

मिथुन लग्न में मंगल का फलादेश

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां सप्तम स्थान में मंगल धनु राशि मित्र राशि का होगा। मंगल की यह स्थिति कुण्डली को ‘मंगलिक’ बनाएगी। ऐसे जातक को स्त्री का पूर्ण सुख मिलता है उसे जमीन-जायदाद से लाभ होता है। राज्यपक्ष से भी लाभ होता है।

दृष्टि – सप्तमस्थ मंगल की दृष्टि दशम भाव (मीन राशि), लग्न भाव (मिथुन राशि) एवं धन भाव (कर्क राशि) पर होगी। फलत: जातक उन्नतिशील, धनी एवं राजनीति में दक्ष होगा।

निशानी – जातक का जीवनसाथी क्रोधी, कलहकारी एवं अहंकारी होगा।

दशा – मंगल की दशा-अंर्तदशा में जातक की सर्वांगीण उन्नति होगी।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – दाम्पत्य जीवन में कष्ट-पीड़ा रहेगी।

2. मंगल + चंद्र – भोजसंहिता के अनुसार सप्तम स्थान में धनुराशि गत दोनों ग्रहों की दृष्टि दशम भाव (कुंभ राशि) लग्न स्थान (वृष राशि) एवं धन भाव (कर्क राशि) पर होगी। दोनों ग्रह केन्द्र में होने से ‘रूचकयोग’ एवं ‘यामिनीनाथ योग’ बना। फलत: जातक राजा के सामन बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी तथा सौभाग्यशाली होगा एवं उसे प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी।

3. मंगल + बुध – परिश्रम का फल अवश्य मिलेगा। पुरुषार्थ व्यर्थ नहीं जाएगा।

4. मंगल + गुरु – ‘हंसयोग’ के कारण जातक राजातुल्य पराक्रमी होगा।

5. मंगल + शुक्र – जातक भाग्यशाली, सुखी होगा।

6. मंगल + शनि – गृहस्थ सुख में रुकावट है। विलम्ब विवाह संभव है।

7. मंगल + राहु – पत्नी से विवाद, कलह, बिछोह संभव।

8. मंगल + केतु – गृहस्थ सुख में कोई-न-कोई न्यूनता बनी रहेगी।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश अष्टम स्थान में

अष्टम स्थान में मंगल मकर राशि में उच्च का होगा। यहां 28 अंशों में मंगल परमोच्च का होता है। मंगल की इस स्थिति में कुण्डली ‘मांगलिक’ कहलाती तथा ‘लाभभंगयोग’ एवं ‘हषयोग’ भी बनता है। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं का मुकाबला करता है। इंसाफ के लिए लड़ता है और उसे सफलता भी मिलती है। जातक धनी होता है पर भाग्यशाली है या नहीं इसका निर्णय शनि की बलवान स्थिति पर निर्भर होगा।

दृष्टि – अष्टमस्थ मंगल की दृष्टि अपने घर लाभ स्थान (मेष राशि), धन स्थान (कर्क राशि) एवं पराक्रम भाव (सिंह राशि) पर होगी। ऐसा व्यक्ति पराक्रमी होता है। जातक व्यापार व्यवसाय से लाभ प्राप्त करता है और धनी भी होता है।

निशानी – व्यक्ति धनी होते हुए भी समाज में प्रतिष्ठित नहीं होगा।

विशेष – ऐसे व्यक्ति के घर में तंदूर या भट्टी हो तो उसे फौरन हटा देना चाहिए।

दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में दिक्कतें आएंगी संघर्ष की स्थिति बनेगी पर सफलता संघर्ष के बाद निश्चित है।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – कुटुम्ब सुख में बाधा विपरीत राजयोग के कारण जातक राजातुल्य पराक्रमी होगा।

2. मंगल + चंद्र – अष्टम स्थान में मकर राशिगत मंगल उच्च का होकर विपरीत राजयोग बनाएगा। यहां बैठकर दोनो ग्रहों की दृष्टि लाभ स्थान (मेष राशि) धन भाव (कर्क राशि) एवं पराक्रम भाव (सिंह राशि) पर होगी। फलत: ‘महालक्ष्मीयोग’ के कारण ऐसा जातक महाधनी होगा। जातक व्यापारी होगा। उसका पराक्रम जनसंपर्क तेज होगा।

3. मंगल + बुध – जीवन साथी या स्वयं का शरीर सुख कमजोर।

4. मंगल + गुरु – जीवन साथी रोगी होगा।

5. मंगल + शुक्र – विलम्ब संतति या विद्या में बाधा सम्भव है।

6. मंगल + शनि – यहां शनि के कारण ‘किम्बहुना’ नामक राजयोग बनेगा परन्तु जातक जीवन में प्रायः असफल ही रहेगा।

7. मंगल + राहु – अचानक दुर्घटना भय संभव है।

8. मंगल + केतु – शल्य चिकित्सा योग, दीर्घ बीमारी संभव है।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश नवम स्थान में

ऐसा व्यक्ति आयु के 28 वर्ष के बाद धनाढ्य होगा व राज्यधिकारियों की कृपा प्राप्त करेगा। समाज में राजनीति में उच्च पद को प्राप्त करेगा। जातक प्रायः नास्तिक होता है तथा उसे अपयश का सामना करना पड़ता है।

दृष्टि – नवम स्थानगत मंगल की दृष्टि व्यय भाव (मेष राशि) पराक्रम भाव (सिंह राशि) एवं चतुर्थ भाव (कन्या राशि) पर होगी। जातक को वाहन सुख भूमि सुख मिलेगा। मित्रों से लाभ होगा। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। दानी-परोपकारी होगा।

निशानी – पिता अल्प आयु वाला, अल्प प्रतिष्ठित रोगी होगा या पिता-पुत्र में कलह रहेगी, अथवा पड़ोसियों से कलह या मुकदमें होंगे।

दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – जातक के भाई व मित्र पराक्रमी होंगे।

2. मंगल + चंद्र – भोजसंहिता’ के अनुसार नवम स्थान में कुम्भ राशिगत दोनों ग्रहों की दृष्टि व्यय भाव (वृष राशि) पराक्रम भाव (सिंह राशि) एवं सुख भाव (कन्या राशि) पर होगी। ऐसा जातक धनवान, महान् पराक्रमी होगा एवं खर्चीले स्वभाव का भी होगा। इस ‘लक्ष्मीयोग’ के कारण जातक धनी एवं भाग्यशाली होगा।

3. मंगल + बुध – जातक उद्यमी होगा। पुरुषार्थ का लाभ मिलेगा।

4. मंगल + गुरु – जातक का ससुराल धनी होगा।

5. मंगल + शुक्र – स्त्री, संतान सुख श्रेष्ठ |

6. मंगल + शनि– जातक राजा के समान प्रभावशाली एवं पराक्रमी होगा।

7. मंगल + राहु – जातक धनवान होगा, पर भाग्य उदय में रुकावटें बहुत आएंगी।

8.  मंगल + केतु – संघर्ष रहेगा पर सफलता मिलेगी।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश दशम स्थान में

दशम स्थान में मंगल मीन राशि अपने मित्र गुरु की राशि में होगा। मंगल ‘दिक्बली’ होकर ‘कुलदीपकयोग’ बनाएगा। ऐसा व्यक्ति अपने पूरे खानदान, कुटम्बीजनों का कल्याण करता है व सुंदर व सुदृढ़ देह का स्वामी होता है जातक जमीन-जायदाद से लाभ उठाता है। परिवार कुटुम्ब का नाम दीपक के सामन रोशन करता है।

दृष्टि – दशमस्थ मंगल की दृष्टि लग्न भाव (मिथुन राशि), चतुर्थ भाव (कन्या राशि) एवं पंचम स्थान (तुला राशि) पर होगी। फलतः जातक उन्नति पथ पर आगे बढ़ता है एवं वाहन व भूमि सुख प्राप्त करता है। संतान व गृहस्थ सुख भी प्राप्त करता है।

निशानी – जातक स्वपराक्रम से धन कमाता है और खुले दिल से खर्च करता है।

दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करेगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – जातक का राज्यक्षेत्र में पराक्रम होगा। बड़े राजनेताओं से सम्पर्क रहेगा।

2. मंगल + चंद्र – दशम स्थान में मीन राशिगत दोनों ग्रहों की दृष्टि लग्न भाव (मिथुन राशि) चुतर्थ भाव (कन्या राशि) एवं पंचम भाव (तुला राशि) पर होगी। फलतः जातक को जीवन के सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। कुलदीपक योग के कारण जातक को जीवन के प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी पर जातक का सही भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा।

3. मंगल + बुध – जातक धनी एवं वैभवशाली होगा।

4. मंगल + गुरु – ‘हंसयोग’ के कारण जातक राजा के समान पराक्रमी एवं धनी होगा।

5. मंगल + शुक्र – जातक महाधनी होगा। ‘मालव्ययोग’ के कारण राजा से कम प्रभावशाली नहीं होता ।

6. मंगल + शनि – जातक सौभाग्यशाली होगा भाग्योदय के अवसर मिलते रहेंगे।

7. मंगल राहु जातक को राज्यपक्ष में हानि होगी।

8.  मंगल + केतु – जातक को राज्यपक्ष से भय रहेगा।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश एकादश स्थान में

एकादश स्थान में मंगल स्वगृही होकर मेष राशि में होगा। ऐसे जातक को धन, भवन, भू-सम्पत्ति, वाहन सुख की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक देखने में खतरनाक परंतु कोमल हृदय का आध्यात्मिक प्राणी होता है। जातक समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। संतान को लेकर कोई न कोई चिंता बनी रहेगी।

दृष्टि – एकादशस्थ स्वगृही मंगल की दृष्टि धन भाव (कर्क राशि), पंचम भाव (तुला राशि) एवं षष्टम भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। जातक धनी होगा। संतान सुख से युक्त होगा तथा ऋण रोग व शत्रु का नाश करने में पूर्णतः समर्थ होगा।

निशानी – जातक की आमदनी में वृद्धि 28 से 32 वर्ष की आयु के मध्य होगी। जातक के बड़े भाई को कष्ट होगा।

दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करेगा।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – ‘किम्बहुना योग’ के कारण जातक महान् पराक्रमी होगा। उद्योगपति एवं धनी होगा। जातक बड़े कुटुम्ब का स्वामी होगा।

2. मंगल + चंद्र – एकादश स्थान में मेष राशिगत मंगल स्वगृही होगा। फलत: ‘महालक्ष्मीयोग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन स्थान (कर्क राशि), पंचम भाव (तुला राशि) एवं छठे स्थान (वृश्चिक राशि) को देखेंगे। फलत: जातक ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक अति धनवान, उद्योगपति होगा एवं भाग्योदय प्रथम पुत्र संतति के बाद होगा।

3. मंगल + बुध – जातक कृशकाय होगा।

4. मंगल + गुरु – जातक का राज्यक्षेत्र में, सरकारी अधिकारियों के मध्य प्रभाव होगा।

5. मंगल + शुक्र – जातक कृशकाय होगा।

6. मंगल + शनि – जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा ‘नीचभंग राजयोग’ के कारण धनी होगा।

7. मंगल + राहु – व्यापार व लाभ में कमी, कुटुम्ब कलह संभव ।

8. मंगल + केतु – परिवार में विग्रह-विवाद, शत्रुओं से सामना करना पड़ेगा।

मिथुन लग्न में मंगल मंगल का फलादेश  द्वादश स्थान में

द्वादश स्थान में मंगल वृषभ राशि में होगा। मंगल की यह स्थिति कुण्डली में क्रमश: ‘मांगलिक योग’, ‘लाभभंगयोग’ एवं ‘हषयोग’ बनाती है। लालकिताब वाले इस मंगल को ‘मनमौजी’ का दर्जा देते हैं। फलतः ऐसा व्यक्ति अपनी मर्जी (इच्छा) का स्वामी होता है। दूसरों के दबाब में आकर कोई काम नहीं करता । जातक भोग-विलास एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु लालायित रहेगा।

दृष्टि – द्वादशस्थ मंगल की दृष्टि पराक्रम भाव (सिंह राशि) छठे भाव (वृश्चिक राशि) एवं सप्तम भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः जातक पराक्रमी होगा। रोगी होगा एवं जीवन साथी के प्रति पूर्ण वफादार (समर्पित) नहीं होगा।

निशानी – गुरु व गाय का नित्य सेवा करने पर जातक तरक्की करेगा। दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा कष्ट, दिक्कतों वाली होगी पर संघर्ष के बाद सफलता देने वाली होगी।

मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. मंगल + सूर्य – परिवार में विग्रह-विवाद की स्थिति रहेगी।

2. मंगल + चंद्र – द्वादश स्थान में वृष राशिगत चंद्रमा उच्च का होगा। धनेश उच्च का होने से ‘महालक्ष्मीयोग’ बनेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम स्थान (सिंह राशि), षष्ठम स्थान (वृश्चिक राशि) एवं सप्तम स्थान (धनु राशि) में देखेंगे फलतः ऐसा जातक ऋण, रोग व शत्रु का नाश करने में समर्थ होगा। महापराक्रमी होगा। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा।

3. मंगल + बुध – परिश्रम का यथेष्ट लाभ नहीं मिलेगा।

4. मंगल + गुरु – गृहस्थ सुख में बाधा, विलम्ब विवाह का योग है।

5. मंगल + शनि – जातक के दाम्पत्य सुख में कड़वाहट रहेगी। कलह, अलगाव की स्थिति, संतति हानि की स्थिति संभव है।

6. मंगल + शनि – विलम्ब भाग्योदय का योग बनता है।

7. मंगल + राहु – भाग्य में रुकावट, यात्रा में चोरी संभव है।

8. मंगल + केतु – यात्रा में धनहानि, विवाद संभव है।

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