मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश प्रथम स्थान में

मिथुनलग्न में शुक्र पंचमेश व व्ययेश है। शुक्र त्रिकोण का स्वामी होने से व्ययेश के दोष से युक्त हो गया है। शुक्र यहां योगकारक होकर अत्यंत शुभ फल देने वाला है। यहां प्रथम स्थान में शुक्र मिथुन (मित्र) राशि में है। ऐसे जातक गीत-संगीत, नृत्य कला, स्त्री व रोमांच के प्रेमी होते हैं। पंचमेश लग्न में होने से जातक का सोया हुआ भाग्य खुलता है।

प्रयत्न यदि उत्तम हो तो जातक सफलता की बुलंदियों को छू लेता है। यह शुक्र ‘कुलदीपक योग’ भी बना रहा है। ऐसे जातक के जीवन का सही विकास विवाह के बाद होता है। जातक को उत्तम वाहन की प्राप्ति होगी। धन, विद्या, यश, वाणिज्य-व्यापार से लाभ होगा।

दृष्टि – लग्नस्थ शुक्र की दृष्टि सप्तम भाव (धनु राशि) पर होगी। जीवनसाथी सुंदर मिलेगा।

निशानी – ऐसा व्यक्ति जीवन में अनेक स्त्रियों का सुख भोगता है। जातक दूसरों की सलाह लेकर काम करेगा तो उन्नति ज्यादा होगी। सफलता अधिक मिलेगी।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में उन्नति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – यहां सूर्य की स्थिति से जातक तेजस्वी होगी, परंतु विचलित मनोवृत्ति वाला होगा। कभी ‘हां’ कभी ‘ना’ के बीच में निर्णय झूलता रहेगा।

2. शुक्र + चंद्र – चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री होकर जातक की चित्तवृत्ति अस्थिर करता है।

3. शुक्र + बुध – जातक मधुर वाणी एवं मीठी बातें करने वाला होगा।

4. शुक्र + गुरु – जातक महाधनी एवं विद्यावान होगा।

5. शुक्र + शनि – जातक भाग्यशाली होगा। हुनुरबंद होगा।

7. शुक्र + राहु – धन का अपव्यय अधिक होगा।

8. शुक्र + केतु – धनखर्च के प्रति चिंता रहेगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश तृतीय स्थान में

तृतीय स्थान में शुक्र सिंह (शत्रु) राशि में होगा। ऐसे जातक का पराक्रम विवादास्पद होता है। भाई-बहनों व मित्रों से मनमुटाव रह सकता है। ऐसे जातक पराई स्त्री पर डोरे डालता है और उनसे अनैतिक सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश करता है। ऐसा जातक यार दोस्तों पर, सामाजिक प्रतिष्ठा कायम रखने के चक्कर में बहुत पैसा खर्च करता है। जातक फिजूलखर्च होता है।

दृष्टि – तृतीयस्थ शुक्र की दृष्टि भाग्यभवन (कुंभ राशि) पर होगी। ऐसा जातक थोड़ी मेहनत से ही उत्तम फलों की प्राप्ति करने में सफल होता है।

निशानी – जातक की प्रगति विवाह के बाद होती है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का पराक्रम बढ़ता है।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – यहां सूर्य होने से जातक को भाई-बहन दोनों का सुख मिलता है, पर बड़े भाई की आयु के लिए सूर्य की यह स्थिति ठीक नहीं।

2. शुक्र + चंद्र – पराक्रम स्थान में धनेश पंचमेश युति सार्थक है। विद्या द्वारा जातक का पराक्रम बढ़ेगा।

3. शुक्र + मंगल – जातक को भाई-बहनों का सुख मिलेगा एवं खटपट भी रहेगी।

4. शुक्र + बुध – लग्नेश का तृतीयस्थान में पंचमेश शुक्र से युति शुभ है।

5. शुक्र + गुरु – सप्तमेश पंचमेश की युति तृतीय स्थान में विवाह के बाद जातक का पराक्रम बढ़ाएगी।

6. शुक्र + शनि – भाग्येश पंचमेश की युति तृतीय स्थान में व्यक्ति के भाग्यवृद्धि का संकेत देती है।

7. शुक्र + राहु – परिवार में मनमुटाव रहेगा।

7. शुक्र + केतु – मित्रों में असंतोष रहेगा।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थ स्थान में शुक्र कन्या (मित्र) राशि में होते हुए नीच का होता है। कन्या राशि के 27 अंशों में परमनीच का होता है। शुक्र केंद्रवर्ती होने से ‘कुलदीपक योग’ बना रहा है। चतुर्थभाव में शुक्र बलवान होने से हानिकारक नहीं होता।

जातक को उत्तम वाहन, धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। ऐसा व्यक्ति भरपूर संपत्ति, सवारी एवं भौतिक वैभव से सम्पन्न होता है जातक की शिक्षा संघर्षपूर्ण होती है।

दृष्टि – चतुर्थभावगत शुक्र की दृष्टि दशम भाव (मीन राशि ) पर होगी। यह शुक्र की उच्च राशि है। फलत: जातक राजनीति में उच्च पद प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है।

निशानी – ऐसे जातक उन्नति विवाह के बाद होती है पर संतान आज्ञाकारी नहीं होते। विवाह के पहले प्रेमप्रसंग संभव है, बाद में सब कुछ सामान्य रहता है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक को भौतिक उपलब्धियों एवं सुखों की प्राप्ति होगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – तृतीयेश सूर्य केन्द्र में शुक्र के साथ शुभ स्थिति की सूचक है। जातक ऐश्वर्यवान् होगा।

2. शुक्र + चंद्र – धनेश का पंचमेश शुक्र के साथ केन्द्रस्थ होना बहुत शुभ है। जातक धनी होगा। एकाधिक मकानों का स्वामी होगा।

3. शुक्र + मंगल – मंगल का दिक्वली होकर शुक्र के साथ केन्द्र में बैठना शुभ है। जातक बड़ी भूमि का स्वामी होगा।

4. शुक्र + बुध – बुध के कारण ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। ऐसा जातक निश्चय ही राजा तुल्य धन-सम्पत्ति ऐश्वर्य को भोगना है।

5. शुक्र + गुरु – जातक का प्रथम भाग्योदय विवाह के बाद, द्वितीय भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा।

6. शुक्र + शनि – भाग्येश व पंचमेश की युति केंद्र में जातक को उद्योगपति बनाएगी।

7. शुक्र + राहु – यहां राहु की युति से शुक्र चतुर्थ व पंचम दोनों भाव के शुभ फल नष्ट करता है।

8. शुक्र + केतु – केतु की युति से माता बीमार रहेगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश पंचम स्थान में

पंचम स्थान में शुक्र तुलाराशि में स्वगृही होता है। ऐसा जातक विद्या बुद्धि, स्त्री-संतान सुख से युक्त होता है। जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि (Educational Degree) मिलती है। जब तक जातक की पत्नी जीवित है, उसके जीवन में कोई रुकावट (कमी) नहीं आएगी।

दृष्टि – पचंमस्थ शुक्र की दृष्टि एकादश स्थान (मेष राशि) पर होगी। जातक समाज-जाति का गौरव एवं संस्कारी व्यक्ति होगा।

निशानी – जातक के छ: कन्या होती हैं जातक प्रजावान् होगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक को खूब धन-दौलत, तरक्की मिलती है।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – यदि सूर्य यहां है तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा । जातक राजातुल्य पराक्रमी व यशस्वी होगा।

2. शुक्र + चंद्र – धनेश पंचम स्थान में स्वगृही शुक्र के साथ होने से जातक अपनी विद्या-बुद्धि में धन अर्जित करेगा। जातक की संतान भाग्यशाली होगी।

3. शुक्र + मंगल – जातक उद्योगपति होगा, ठेके व व्यापार से धन कमाएगा।

4. शुक्र + बुध – जातक का व्यक्ति आकर्षक होगा। जातक धनी व्यक्ति होगा। शुक्र गुरु जातक आध्यात्मिक एवं भक्ति मार्ग का पथिक होगा।

5. शुक्र + शनि – यदि शनि यहां हो तो ‘किम्बहुना नामक राजयोग’ बनेगा। जातक निश्चय ही राजा के समान भाग्यशाली होगा।

7. शुक्र + राहु – विद्या एवं पुत्र संतति में बाधा ।

8. शुक्र + केतु – विलम्ब संतति या संघर्ष के साथ विद्या की संभावना है।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां छठे स्थान में शुक्र वृश्चिक (सम) राशि का होगा। शुक्र की इस स्थिति के कारण ‘संततिहीन योग’ बनता है। परंतु व्ययेश का छठे जाने से ‘सरलयोग’ की सृष्टि भी होती है। शुक्र की इस स्थिति के कारण व्यक्ति में कामातिरेक की बाहुल्यता होती है। जातक परिश्रमी होता पर भोग-विलास, नशे, जुआ के शौक में अपनी बरवादी का खुद ही कारण होता है।

दृष्टि – छठे भावगत शुक्र की दृष्टि अपने ही घर (वृषराशि) व्यय स्थान पर होगी। फलतः जातक खर्चीले स्वभाव का होगा एवं कई बार राह से भटक जाएगा।

निशानी – ऐसा जातक प्रायः अपनी योग्यता एवं रुचि से भिन्न विषयों के क्षेत्र में कार्य करता है तथा किस्मत को कोसता रहता है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – पराक्रमभंगयोग बनता है। विद्या में रुकावट। निर्णय गलत होंगे।

2. शुक्र + चंद्र – धनहीन योग के कारण आर्थिक संकट रहेगा।

3. शुक्र + मंगल – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनवान होगा पर शरीर में रोग रहेगा।

4. शुक्र + बुध – जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

5. शुक्र + गुरु – गृहस्थ सुख में बाधा रहेगा। गुप्त रोग की संभावना है।

6. शुक्र + शनि – भाग्योदय में बाधा परंतु विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा।

7. शुक्र + राहु – विद्या, पुत्र संतति सुख में बाधा ।

8. शुक्र + केतु – शल्य चिकित्सा योग। गुप्त बीमारी रहेगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश सप्तम स्थान में

सतम स्थान में शुक्र धनु (शत्रु) राशि में होता है। शुक्र की इस स्थिति में ‘कुलदीपक योग’ बनता है। जातक उत्तम विद्या, बुद्धि, स्त्री व संतान के सुख से युत होता है जातक की पत्नी खूबसूरत, स्नेह, ममता की मूर्ति, धर्मभीरू परंतु कुछ उग्र स्वभाव की होती है। जातक की किस्मत विवाह के बाद चमकती है।

दृष्टि – सप्तमस्थ शुक्र की दृष्टि लग्नस्थान (मिथुन राशि ) पर होगी। फलतः जातक अल्प प्रयत्न से बहुभाग्य का स्वामी होगा।

निशानी – ऐसा जातक परदेश में ज्यादा धन कमाता है।

दशा – शुक्र की दशा-अंतर्दशा में जातक की उन्नति होती है। उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – जातक का ससुराल, जीवनसाथी प्रभावशाली होगा।

2. शुक्र + चंद्र – जातक को ससुराल से धन मिलेगा। लाभ की प्राप्ति होती रहेगी।

3. शुक्र + मंगल – जातक के गृहस्थ जीवन में सुख-दुःख का सम्मिश्रण रहेगा।

4. शुक्र + बुध – जातक को परिश्रम का लाभ मिलेगा। गृहस्थ सुख श्रेष्ठ ।

5. शुक्र + गुरु – ‘हंसयोग’ के कारण जातक राजातुल्य ऐश्वर्य भोगेगा। जीवनसाथी सुंदर होगा।

6. शुक्र + शनि – जातक परम सौभाग्यशाली होगा।

7. शुक्र + राहु – गृहस्थ सुख में बाधा रहेगी।

8. शुक्र + केतु – गृहस्थ सुख में कलह रहेगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टम स्थान में शुक्र मकर (मित्र) राशि में होगा। शुक्र की यह

स्थिति ‘संततिहीन योग’ की सृष्टि करती है परंतु व्ययेश अष्टम में होने से ‘सरलयोग’ की भी सृष्टि करती है। ऐसे जातक के जीवन में दूरदर्शिता का अभाव होता है तथा उसकी विद्या एवं बुद्धि का सही उपयोग समय पर नहीं हो पाता। ऐसे जातक की पत्नी की जबान से निकला शब्द पत्थर की लकीर होगा।

दृष्टि – अष्टम भाव में स्थिति शुक्र की दृष्टि धनस्थान (कर्क राशि) पर होगी। फलतः जातक धन को खर्च करते वक्त तनिक भी विचार नहीं करता।

निशानी – ऐसा जातक यदि पत्नी को तंग करेगा तो उसे लगातार मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे शुक्र की शुभ करने के लिए गाय (दूध) का दान करें। जातक को धर्म स्थान के सामने सिर झुकाकर चलना चाहिए।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – पराक्रम भंगयोग के कारण मानहानि होगी। रोग का प्रकोप होगा।

2. शुक्र + चंद्र – धनहीन योग के कारण आर्थिक परेशानी बनी रहेगी।

3. शुक्र + मंगल – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनवान होगा।

4. शुक्र + बुध – लग्नभंग योग के कारण परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।

5. शुक्र + गुरु – विलम्व विवाह या गृहस्थ सुख कलुषित रहेगा। सैक्स रोग होगा।

6. शुक्र + शनि – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनवान एवं भोगी होगा।

7. शुक्र + राहु – गुप्त बीमारी एवं अचानक दुर्घटना संभव है ।

8. शुक्र + केतु – शल्यचिकित्सा योग बनता है।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश नवम स्थान में

यहां नवम स्थान में शुक्र कुंभ (मित्र) राशि में होगा। यह शुक्र पंचम भाव से पंचम है, उच्चाभिलाषी है। अतः श्रेष्ठ है। इस भाव में शुक्र से जातक के पिता की दीर्घ आयु होती है। जातक को स्त्री-धन, संतान, विद्या, बुद्धि एवं सौभाग्य का पूर्ण सुख मिलता है। ऐसे जातक को स्त्री या दौलत दोनों में से एक का ही पूर्ण सुख मिलता है।

दृष्टि – नवम स्थानगत शुक्र की दृष्टि पराक्रम भाव (सिंह राशि) पर होगी फलत: जातक प्रबल पराक्रमी होगा। जनसंपर्क बहुत तेज होगा।

निशानी – ऐसा व्यक्ति यदि सम्मानित स्त्रियों का अपमान करें तो उसका भाग्य तत्काल रूठ जाएगा।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक का चतुमुखी भाग्योदय होता है।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – जातक महान् पराक्रमी होगा। कुटुम्बी एवं मित्रों का सकारात्मक सहयोग रहेगा।

2. शुक्र + चंद्र – धनेश चन्द्र भाग्य स्थान में शुक्र के साथ होने से धन द्वारा भाग्य में वृद्धि होगी।

3. शुक्र + मंगल – जातक उद्योगपति होगा, पर गुप्त शत्रु परेशान करेगें ।

4. शुक्र + बुध – जातक को परिश्रम का लाभ मिलेगा। सफलता कदम चूमेगी ।

5. शुक्र + गुरु – विवाह के बाद जातक का विशेष भाग्योदय होगा।

6. शुक्र + शनि – जातक करोड़पति होगा और भाग्यशाली होगा।

7. शुक्र + राहु – भाग्योदय में लगातार बाधा से जातक परेशान हो जाएगा।

8. शुक्र + केतु – जातक का जीवन में, संघर्ष की स्थिति रहेगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश दशम स्थान में

दशम स्थान में शुक्र राशि का उच्च का होगा। मीन राशि के 27 अंशों में शुक्र परमोच्च का होता है। शुक्र की इस स्थिति से यहां ‘कुलदीपक योग’

एवं ‘मालव्ययोग’ की सृष्टि हो रही है। ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य एवं साधनों का स्वामी होगा। उसे धन, यश, परिवार, नौकरी-व्यवसाय में उन्नति होगी। ऐसा व्यक्ति प्रेम-प्रसंगों में उलझा रहता है। सुंदर स्त्रियों के साथ संपर्क करने हेतु लालायित रहता है।

दृष्टि – दशमस्थ शुक्र की दृष्टि सुख भाव (कन्या राशि) पर होने से जातक को सुंदर भवन, सुंदर वाहन, माता का सुख, भौतिक सुख एवं ऐश्वर्य के सभी साधनों की प्राप्ति होगी।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक उन्नति करेगा। राज्य से लाभ प्राप्त करेगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – यहां सूर्य, शनि की युति से ‘प्रवज्यायोग’ बनेगा। जातक राजा होते हुए भी वैरागी होगा।

2. शुक्र + चंद्र – जातक अति धनवान होगा। राजातुल्य ऐश्वर्यवान् होगा ।

3. शुक्र + मंगल – यहां दिक्वली मंगल ‘कुलदीपक योग’ के साथ जातक का नाम रोशन करेगा।

4. शुक्र + बुध – ‘नीचभंग राजयोग के कारण जातक करोड़पति होगा।

5. शुक्र + गुरु – किम्बहुनायोग, हंसयोग, मालव्ययोग, पद्मसिंहासन योग चारों एक साथ एकत्रित होने से जातक करोड़पति होगा। जातक भाग्योदय की कोई सीमा नहीं होगी। यह शुक्र गुरु की युति का सर्वश्रेष्ठ दृष्टांत है।

6. शुक्र + शनि – जातक परम सौभाग्यशाली एवं धनी होगा।

7. शुक्र + राहु – राज्यपक्ष में बाधा, सरकारी परेशानी रहेगी।

8. शुक्र + केतु – सरकारपक्ष में गुप्त संघर्ष की स्थिति रहेगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश एकादश स्थान में

यहां एकादश स्थान में शुक्र मेष (सम) राशि का होगा। जातक बुद्धिमान, धनवान, स्त्री व संतान सुख से युक्त होता है। प्रायः माता-पिता की प्रेरणा व सहयोग से उच्च पद, प्रतिष्ठा, धन-वैभव की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति का धन जब तक पत्नी के पास रहेगा, सुरक्षित रहेगा। अन्यथा ऐसा व्यक्ति सरलता से धन का खर्च कर देगा, संचय नहीं कर पाएगा।

दृष्टि – एकादश स्थान में स्थित शुक्र की दृष्टि अपने घर तुला राशि (पंचमभाव) पर होगी फलत: जातक संघर्ष के बाद भी विद्या (Educational Degree) प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करेगा।

दशा – शुक्र की दशा-अन्तर्दशा में व्यापार व्यवसाय में लाभ होगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – उच्च का सूर्य जातक को महान् पराक्रमी एवं यशस्वी बनाएगा।

2. शुक्र + चंद्र – जातक को उद्योग व्यापार से लाभ होगा।

3. शुक्र + मंगल – जातक बड़ा उद्योगपति होगा। स्वगृही मंगल व्यापार में लाभ कराएगा।

4. शुक्र + बुध – जातक का परिश्रम सदैव सार्थक रहेगा।

5. शुक्र + गुरु – जातक को गुप्त व्यापार से लाभ होगा।

6. शुक्र + शनि – जातक भाग्यशाली होगा।

7. शुक्र + राहु – व्यापार में गुप्त नुकसान होगा।

8. शुक्र + केतु – व्यापार-व्यवसाय, लाभ में रुकावट आएगी।

मिथुन लग्न में शुक्र का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में शुक्र स्वगृही होगा। शुक्र की यह स्थिति ‘संतानहीन योग’ बनाती है परंतु व्ययेश व्यय भाव में स्वगृही होने से ‘सरलयोग’ बना। इसलिए शुक्र शुभफलदाई हो गया है। ऐसे व्यक्ति के पास धन-दौलत, ऐशो आराम की सामग्री अपने आप आएगी। बलवान शुक्र के कारण स्त्री-सुंदर व आकर्षक होगी। विवाह शीघ्र होगा। ऐसा व्यक्ति धनवान, विख्यात तेजस्वी व यशस्वी होगा।

दृष्टि – द्वादशस्थ शुक्र की दृष्टि छठे भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलतः जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

निशानी – व्यक्ति को नौकरी अथवा ट्रेवलिंग व्यापार में अच्छी सफलता मिलती है।

दशा – शुक्र की दशा अंतर्दशा में जातक सुखी होगा। सम्पन्नता को प्राप्त करेगा।

शुक्र का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शुक्र + सूर्य – पराक्रम भंग योग के कारण मान भंग होगा।

2. शुक्र – चंद्र – चंद्रमा उच्च का एवं शुक्र स्वगृही होने से ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। जातक परोपकारी एवं दानी होगा।

3. शुक्र + मंगल – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनवान होगा।

4. शुक्र + बुध – लग्नभंग योग के कारण परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

5. शुक्र + गुरु – गृहस्थ सुख में बाधा आएगी।

6. शुक्र + शनि – भाग्योदय हेतु संघर्ष की स्थिति रहेगी।

7. शुक्र + राहु – व्यर्थ की यात्रा में धन का अपव्यय होगा। राहु के साथ शुक्र होने से व्यक्ति कामी हो जाता है तथा नैतिक-अनैतिक तरीके से अनेक स्त्रियों के साथ रमण करता है।

8. शुक्र + केतु – यात्रा में कष्ट, नेत्रपीड़ा संभव। शल्य चिकित्सा होगी।

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