मिथुन लग्न में शनि का फलादेश

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश प्रथम स्थान में

मिथुनलग्न में शनि अष्टमेश व नवमेश है। त्रिकोण का अधिपति होने से शनि योगकारक होकर भी पूर्ण योगफलप्रद नहीं है। अष्टमेश होने से शनि पापत्व के दोष से मुक्त नहीं होगा। अष्टमेश के पापत्व से शनि जिस भाव में होगा उसकी कुछ हानि नहीं पर शनि की दृष्टि जिस भाव पर होगी, उसकी हानि अधिक होगी।

यहां प्रथम स्थान में शनि मिथनु (मित्र) राशि में होगा। फलतः ऐसा जातक स्वस्थ्य शरीर वाला, उदार प्रवृत्ति विनम्र एवं गंभीर स्वभाव का होगा। ऐसा व्यक्ति स्वप्रयासों से उन्नति करता है। व्यक्ति कई बार उदासीन व एकांतप्रिय होता है।

दृष्टि – लग्नस्थ शनि की दृष्टि पराक्रम स्थान (सिंह राशि), सप्तम भाव (धनु राशि) एवं राज्यभाव (मीन राशि) पर होगी। जातक की भाईयों से कम बनेगी। पत्नी से विचार नहीं मिलेगे एवं सरकार (नौकरी) में खटपट रहेगी ।

निशानी – ऐसे व्यक्ति की किस्मत प्रायः वृद्धावस्था में चमकती है।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा शुभ फल देगी। जातक की उन्नति होगी।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां प्रथम स्थान में दोनों ग्रह मिथुन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम स्थान (सिंह राशि), सप्तम भाव (धनुराशि) एवं दसमभाव (मीन राशि ) को देखेंगे। फलतः जातक पराक्रमी होगा। जातक का ससुराल पराक्रमी होगा। जातक धनवान होगा। जातक का किस्मत पिता की मृत्यु के बाद खुलेगी *

2. शनि + चंद्र – धनेश लग्न में शत्रुक्षेत्री पापग्रह शनि के हाथ होने से आर्थिक संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी।

3. शनि + मंगल – जातक झगड़ालू, ईष्यालु व कलहकारी होगा।

4. शनि + बुध – ‘भद्रयोग’ के कारण जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा।

5. शनि + गुरु – जातक गम्भीर स्वभाव का होगा। विवाह के बाद उन्नति पथ की ओर बढ़ेगा।

6. शनि + शुक्र – जातक भाग्यशाली एवं धनी होगा।

7. शनि + राहु – जीवन में संघर्ष की स्थिति रहेगी।

8. शनि + केतु – जातक मानसिक रूप से उद्विग्न रहेगा।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश द्वितीय स्थान में

द्वितीय स्थान में शनि कर्क (शत्रु) राशि में होगा। ऐसे जातक को प्रायः धन व कुटुम्ब सुख में परेशानी आती है। वाणी में कड़वाहट का सम्मिश्रण रहता है। ऐसे व्यक्ति की क्षमता व योग्यता बाह्य दृष्टि से कम प्रतीत होती है पर गुरु की कृपा से जातक आंतरिक रुप से शक्तिशाली, बुद्धिमान और समर्थ होता है। इस कुण्डली में धन की ताकत का पता चंद्रमा की स्थिति में चलेगा।

दृष्टि – द्वितीय शनि की दृष्टि सुखस्थान (कन्या राशि), अष्टमस्थान (मकर राशि) एवं लाभस्थान (मेष राशि) पर होगी। जातक भौतिक सुख की प्राप्ति हेतु संघर्ष करेगा। व्यापार व्यवसाय में भी संघर्ष एवं रोग के प्रकोप हेतु भी जातक को सावधान रहना होगा।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में जातक को मिश्रित फल मिलेंगे। शुभ व अशुभ दोनों प्रकार का *

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां द्वितीय स्थान में दोनों ग्रह कर्क राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह सुख स्थान (कन्या राशि) अष्टम भाव (मकर राशि) एवं लाभस्थान (मेष राशि) को देखेंगे। फलतः जातक धनी होगा। लम्बी उम्र का स्वामी एवं भाग्यशाली होगा। जातक की आर्थिक स्थिति पिता की मृत्यु के बाद सुधरेगी।

2. शनि + चंद्र – जातक भाग्यशाली एवं महाधनी होगा।

3. शनि + मंगल – जातक का पैसा कोर्ट-कचहरी में खर्च होगा।

4. शनि + बुध – जातक अपने पुरुषार्थ से धन अर्जित करेगा।

5. शनि + गुरु – जातक ससुराल पक्ष से भाग्यशाली होगा।

6. शनि + शुक्र – जातक विद्या हुनुर के माध्यम से धन अर्जित करेगा।

7. शनि + राहु – धन के संग्रह में बाधा रहेगी।

8. शनि + केतु – धन एकत्रित नहीं हो पाएगा।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश तृतीय स्थान में

यहां शनि तृतीय स्थान में सिंह (शत्रु) राशि में होगा। ऐसे जातक के भाई होगे पर भाईयों से कम निभेगी। जातक परिश्रमी होगा एवं कठोर परिश्रम के द्वारा अपना भाग्योदय स्वयं करेगा। जातक भाग्यशाली होगा परंतु भागीदारों, मित्रों से ज्यादा नहीं निभेगी। जातक मशीनरी कार्यों में रुचि रखेगा, परंतु भाग्योदय 32 से 34 के पहले नहीं होगा। जातक पराक्रमी होता है।

दृष्टि – तृतीयस्थ शनि की दृष्टि पंचम भाव (तुला राशि) भाग्यभवन जो उसके स्वयं का घर है (कुंभ राशि) एवं लाभ भाव (मेष राशि) पर होगी। शनि की यह स्थित संतान सुख में बाधक है। स्वतंत्र व्यापार में बाधा आएगी।

निशानी – जातक छोटे भाई-बहन के सुख में कमी अनुभव करता है। शनि की यह स्थिति छोटे भाई की आयु के लिए घातक है।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा संघर्षमय रहेगी।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां तृतीय स्थान में दोनों ग्रह सिंह राशि में होंगे। सूर्य यहां स्वगृही होगा। दोनों ग्रहों की दृष्टि पंचम भाव (तुला राशि) भाग्यभाव (कुंभ राशि) एवं व्ययभाव (वृष राशि) पर होगी। फलतः जातक की संतति प्रभावशाली होगी। जातक भाग्यशूर एवं खर्चीले स्वभाव का होगा। जातक का पराक्रम पिता की मृत्यु के बाद बढ़ेगा।

2. शनि + चंद्र – जातक के भाई-बहनों का सुख होगा।

3.शनि + मंगल – जातक कुटुम्ब परिवार के साथ रहना पसंद करेगा।

4. शनि + बुध – जातक पराक्रमी होगा। भाई-बहनों का सुख होगा।

5. शनि + गुरु – भाग्येश व सप्तमेश की युति विवाह के बाद जातक का भाग्योदय कराएगी।

6. शनि + शुक्र – पंचमेश, भाग्येश की तृतीय भाव में युति जातक का पराक्रम बढ़ाएगी।

7. शनि + राहु – भाईयों से अनबन रहेगी। कोर्ट में विवाद संभव है।

8. शनि + केतु – मित्रों में मनमुटाव रहेगा।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थ स्थान में शनि कन्या (मित्र) राशि में होगा। ऐसे जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति अवश्य होती है पर उसमें कुछ न कुछ कमी रहती है। जातक जहरीले स्वभाव का होता है पर जहरीला दिखाई नहीं देता। ऐसे जातक युवावस्था में प्रेम प्रसंगों में घिरते है पर जीवन के उत्तरार्द्ध में धार्मिक होते हैं।

दृष्टि – चतुर्थ भावगत शनि की दृष्टि छठे भाव (वृश्चिक राशि) राज्यभाव (मीन राशि) एवं लग्नभाव (मिथुन राशि) पर होगी। जातक पर रोग ऋण व शत्रु “हावी रहेगे। फिर भी जातक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता रहेगा।

निशानी – वृद्धावस्था में धन-दौलत भरपूर होती है। जातक स्वार्थी होगा पर भाग्यशाली होगा।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में मिश्रित फल मिलते हैं।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – ऐसे व्यक्ति का जीवन घोर संघर्षों से भरा होगा। यहां चतुर्थ स्थान में दोनों ग्रह कन्या राशि में होंगे। यहां केन्द्रवर्ती होकर दोनों ग्रह छठे स्थान (वृश्चिक राशि) दशमस्थान (मीन राशि) एवं लग्नस्थान (मिथुन राशि) को देखेंगे। फलत: जातक के अनेक शत्रु होंगे पर जातक उनको नष्ट करने में सक्षम होगा। जातक का शहर की राजनीति में वर्चस्व होंगा तथा महत्वकांक्षी जो भी योजनाएं हाथ में लेगा उसमें सफलता मिलेगी।

2. शनि + चंद्र – जातक धनी होगा। माता का सुख होगा, परंतु मां बीमार रहेगी।

3. शनि + मंगल – मंगल यहां दिक्बली होगा। भूसम्पत्ति को लेकर विवाद रहेगा।

4. शनि + बुध – ‘भद्रयोग’ के कारण जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा।

5. शनि + गुरु – विवाह के बाद जातक का भाग्य चमकेगा।

6. शनि + शुक्र जातक की संतान भाग्यशाली होगी।

7. शनि + राहु – वाहन दुर्घटना का योग है।

8. शनि + केतु – मातृसुख कमजोर रहेगा।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में शनि तुला राशि में उच्च का होगा। शनि की यह स्थिति परम सौभाग्य का सूचक है। ऐसे व्यक्ति ज्यादा प्लानिंग से कार्य नहीं करते, उतावलापन में किए गये कार्य से अवश्य नुकसान होता है।

दृष्टि – पंचमस्थ शनि की दृष्टि सप्तम भाव (धनु राशि) लाभभाव (मेष राशि) एवं धनभाव (कर्क राशि) पर होगी। फलतः जातक के विवाह में विलम्ब होगी। त्वरित धन एकत्रित करने में बाधा रहेगी।

निशानी – जातक के कन्या संतति की बाहुल्यता रहती है। यदि जातक सदाचारी होगा तो पुत्र संतान का सुख मिलेगा।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। सौभाग्य में वृद्धि होगी।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां पंचम स्थान में दोनों ग्रह तुला राशि के होंगे। यहां शनि उच्च का होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह ‘नीचभंग राजयोग’ बनाएगे तथा सप्तमभाव (धनु राशि) एकादशभाव (मेष राशि) एवं धनभाव (कर्क राशि) को देखेंगे। फलतः जातक स्वयं महाधनी होगा। पिता मृत्यु के बाद ऐसा जातक व्यापार व्यवसाय में खूब धन कमाएगा।

2. शनि + चंद्र – जातक महाधनी होगा भाग्यशाली होगा।

3. शनि + मंगल – शत्रु परेशान करेंगे।

4. शनि + बुध – जातक महान् बुद्धिशाली होगा। हुनुरबंद होगा।

5. शनि + गुरु – जातक का ससुराल धनाढ्य होगा।

6. शनि + शुक्र – शुक्र स्वगृही एवम शनि उच्च का होने से ‘किम्बहुनायोग’ बनेगा। जातक महाभाग्यशाली होगा।

7. शनि + राहु – विद्या में रुकावट, कन्या संतति ज्यादा ।

8. शनि + केतु – स्त्री संतति की बहुल्यता एकाध गर्भपात संभव ।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां छठे स्थान में शनि वृश्चिक (शत्रु) राशि में है। अष्टमेश का छठे होने से ‘विमल योग’ विपरीत राजयोग बनता है। ऐसा व्यक्ति अपना भाग्य खुद बनाता है। जातक को समाज में प्रतिष्ठ, धन-यश व संतति सुख मिलता है। भाग्येश शनि छठे जाने से ‘भाग्यभंग योग’ बना। जिससे भाग्य की हानि होती है पर यह हानि मात्र 20% है। 80% शनि अष्टमेश का फल करेगा। जिससे जातक के शत्रुओं का दमन होगा।

दृष्टि – पष्ठमस्थ शनि की दृष्टि अष्टमभाव अपने स्वयं के घर (मकर राशि) पर होगी। व्ययभाव (वृष राशि) एवं पराक्रमभाव (सिंह राशि) पर होगी। फलतः जातक ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

निशानी – जातक के पीठ पीछे उसकी निंदा होती रहेगी।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में विपरीत राजयोग (विमल योग) के कारण जातक उन्नति करेगा।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – छठे स्थान में दोनों ग्रह वृश्चिक राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह, अष्टमभाव (मकर राशि) व्ययभाव (वृष राशि) एवं पराक्रमभाव (सिंह राशि) को देखेंगे फलतः ऐसा जातक दीर्घ आयु वाला, खर्चीले स्वभाव का एवं पराक्रमी होगा। परंतु भाग्योदय पिता के मृत्यु के बाद होगा।

2.शनि + चंद्र – ‘धनहीन योग’ के कारण जातक को आर्थिक विषमता का सामना करना पड़ेगा।

3. शनि + मंगल – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनवान होगा।

4. शनि + बुध – लग्नभंग योग के कारण परिश्रम व्यर्थ जाएगा।

5. शनि + गुरु – विवाह संबंधी विवाद संभव है। जातक का समय पर विवाह नहीं होगा।

6. शनि + शुक्र – संतति बाधा, गृहस्थ सुख में कमी।

7. शनि + राहु – विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा।

8. शनि + केतु – गुप्त शत्रु या रोग जातक को परेशान करेंगे।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां सप्तम भावगत शनि धनु (सम) राशि में होगा। जातक को दाम्पत्य सुख, गृहस्थ सुख, व्यापार वाणिज्य का सुख, अध्यात्म व भाग्य का सुख पूर्ण होगा। पर सभी सुखों में कुछ न कुछ न्यूनता बनी रहेगी। ऐसे जातक को अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है। ऐसा जातक ऊपर से कुछ और अंदर से कुछ ओर ही प्रकार का होता हैं। फलतः ऐसा जातक रहस्यमय होता है जो कहता है वो करता नहीं, जो करता है वह कहता नहीं।

दृष्टि – सप्तमस्थ शनि की दृष्टि अपने घर भाग्यस्थान (कुंभ राशि), लग्नस्थान ( मिथुन राशि) एवं चतुर्थभाव (कन्या राशि) पर होगी। जातक भाग्यशाली होगा पर कोई भी कार्य प्रथम प्रयास (First attempt ) में सिद्ध नहीं होगा।

निशानी – जातक का विवाह यदि विलम्ब से हो तो यह उन्नति का संकेत है।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में जातक की उन्नति होती है।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां सप्तम स्थान में दोनों ग्रह धनु राशि में होंगे।

यहां बैठकर दोनों ग्रह, भाग्यस्थान (कुंभ राशि) लग्नभाव ( मिथुन राशि) एवं सुखस्थान (कन्या राशि) को देखेंगे। फलतः ऐसा जातक परम सौभाग्यशाली प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त करने वाला सुखी जातक होता है। पर जातक को सही विकास पिता की मृत्यु के बाद होता है।

2. शनि + चंद्र – जातक का विवाह के बाद धनी होगा।

3. शनि + मंगल – जातक का व्यापार विवाह के बाद चमकेगा।

4. शनि + बुध – जातक को परिश्रम का सुंदर फल मिलेगा।

5. शनि + गुरु – ‘हंसयोग’ के कारण जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा।

6. शनि + शुक्र – जातक की पत्नी सुंदर व भाग्यशाली होगा।

7. शनि + राहु – विवाह सुख में कमी । द्विभार्या योग बनता है।

8. शनि + केतु – जीवनसाथी से बिछोह संभव।

मिथुनलग्न में शनि का फलादेश अष्टम स्थान में

अष्टम स्थान में शनि मकर राशि का स्वगृही होता है। यद्यपि शनि की यह स्थिति ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करती है तथापि अष्टम स्थानगत शनि दीर्घायु देता है। अष्टमेश का अष्टम में स्वगही होना ‘विमल’ नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि करता है। जातक भाग्यशाली होता है। रोजगार प्राप्ति में व्यवधान, धन प्राप्ति में व्यवधान, संतान सुख में व्यवधान होते हुए भी अंतिम रूप से सफलता निश्चित रूप से मिलती है। ऐसा व्यक्ति स्वेच्छाचारी एवं अभिमानी होता है।

दृष्टि – अष्टमस्थ शनि की दृष्टि राज्यभवन (मीन राशि ) धनभाव (कर्क राशि) एवं संतान भवन (तुला राशि) पर होगी। फलतः धनप्राप्ति रोजगार प्राप्ति, संतान प्राप्ति में विलम्ब होता है।

निशानी – कोई भी कार्य मे प्रथम प्रयास (First attempt ) में सफलता न मिलकर प्रगति धीमे-धीमे होती है।

दशा – शनि की दशा-अंतर्दशा में शत्रुओं का नाश होकर, रोग पर विजय प्राप्त होती है।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां अष्टम स्थान में दोनों ग्रह मकरराशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह राज्यभाव (मीन राशि), धनुभाव (कर्क राशि) एवं पंचमभाव (तुला राशि) को देखेंगे। शनि यहां स्वगृही होकर सरल नामक ‘विपरीत राजयोग’ बनाएगा। फलत: जातक धनी होगा राजनीति में ऊंचे पद को प्राप्त करने वाला यशस्वी होगा। परंतु पिता की मृत्यु के बाद ही राजनीति में सही विकास होगा।

2. शनि + चंद्र – धनहीन योग बनेगा। आर्थिक संघर्ष रहेगा फिर भी विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा।

3. शनि + मंगल – यहां शनि मंगल से युक्त होकर आयु की हानि करता है। यहां पर शनि स्वगृही, मंगल उच्च का ‘किम्बहुना योग’ एवं विपरीत राजयोग बनाता है। फलत: जातक महाधनी होगा। गाड़ी, बंगला मोटर का स्वामी होगा।

4. शनि + बुध – लग्नभंग योग के कारण परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

5. शनि + गुरु – गृहस्थ सुख में बाधा ‘नीचभंग राजयोग’ के कारण जातक धनी, मानी व अभिमानी पुरुष होगा।

6. शनि + शुक्र – संततिहीन योग, विद्या में बाधा संभव *

7. शनि + राहु – आयु में रुकावट, दुर्घटना संभव ।

8. शनि + केतु – शरीर कष्ट एवं शल्य चिकित्सा संभव ।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश नवम स्थान में

नवम स्थान में शनि कुम्भ राशि का होकर स्वगृही होगा। यह शनि की मूलत्रिकोण राशि है। यह शनि पितृ सौख्य का प्रतीक है। ऐसा जातक अति धनवान एवं वैभवशाली होता है। ऐसा व्यक्ति एक से अधिक मकान बनाता है। उसका परिवार सुखी व संपन्न होता है। यदि सही पुरुषार्थ करे तो भाग्य कदम-कदम पर सहायता करता है।

दृष्टि – नवमस्थ शनि की दृष्टि एकादश स्थान (मेष राशि), पराक्रम स्थान (सिंह राशि) एवं छठे स्थान ( वृश्चिक राशि) पर होगी। जातक को गुप्त शत्रु परेशान करेगा, परंतु सभी शत्रु अपने-अपने कर्मों से नष्ट होगे।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां नवम स्थान में दोनों ग्रह कुंभ राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभस्थान (मेष राशि) पराक्रम स्थान (सिंह राशि) एवं छठे भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। शनि यहां अपनी मूलत्रिकोण राशि में होगा। फलत: जातक भाग्यशाली होगा। व्यापार में लाभ कमाएगा। जातक महान् पराक्रमी होगा तथा ऋण-रोग व शत्रुओं को नष्ट करने में सक्षम होगा, परंतु सही भाग्योदय पिता को मृत्यु के बाद होगा।

2. शनि + चंद्र – जातक महाधनी होगा।

3. शनि + मंगल – जातक उद्योगपति होगा पर एक बार उद्योग बंद जरूर होगा।

4. शनि + बुध – जातक भाग्यशूर होगा ।

5. शनि + गुरु – विवाह के उपरांत ही जातक का भाग्य खुलेगा।

6. शनि + शुक्र – जातक को श्रेष्ठ पत्नी एवं उत्तम संतति का सुख मिलेगा।

7. शनि + राहु – भाग्य में बिगाड़ * किस्मत बनती बनती बिगड़ जाएगी।

8. शनि + केतु – भाग्योदय हेतु संघर्ष की स्थिति रहेगी।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश दशम स्थान में

यहां दशम स्थान में शनि मीन (सम) राशि में है। नवमेश दसम भाव में स्थित होने से जातक को धन, विद्या, यश, वाहन, भवन, व्यापार वाणिज्य का सुख प्राप्त होगा। ऐसा जातक प्रतिभावान होता है। अपने विशिष्ट प्रयत्न से अपनी किस्मत खुद बनाता है। जातक ऐश्वर्यशाली एवं तेजस्वी जीवन जीता है। जातक धर्म, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र एवं रहस्यमय विद्याओं का जानकार होता है।

दृष्टि – दशमस्थ शनि की दृष्टि व्ययभाव (वृष राशि), चतुर्थभाव (कन्या राशि) एवं सप्तमभाव (धनु राशि) पर होगी, फलतः जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। यात्रा, धार्मिक कार्य में धन खर्च होता रहेगा।

निशानी – ऐसा जातक माता-पिता का भक्त होता है। जातक का स्वभाव सौम्य व शीतल होता है।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां दसवें स्थान में दोनों ग्रह मीन राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्ययभाव (वृष राशि) चतुर्थभाव (कन्या राशि) एवं सप्तमभाव (धनु राशि) को देखेंगे। फलतः ऐसा जातक पूर्ण सुखी होगा। विवाह के बाद किस्मत खुलेगी। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा परंतु सही भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा।

2. शनि + चंद्र – जातक का राजनीति में प्रभाव रहेगा।

3. शनि + मंगल – जातक उद्योगपति होगा।

4. शनि + बुध – ‘कुलदीपक योग’ के कारण जातक परिवार का नाम रोशन करेगा। जातक के पास अनेक वाहन होंगे।

5. शनि + गुरु – ‘हंस योग’, ‘पद्मसिंहासन योग’ के कारण जातक महाधनी होगा। उनके पास अनेक वाहन होंगे।

6. शनि +शुक्र – ‘मालव्य योग’ के कारण जातक के पास अनेक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा।

7. शनि + राहु – राजनीति में धोखा मिलेगा।

8. शनि + केतु – राजनीति में गुप्त शत्रु आपके लिए सक्रिय रहेंगे।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश एकादश स्थान में|

एकादश स्थान में यहां शनि मेष (शत्रु) राशि का होगा। मेष में शनि नीच का होता है तथा 20 अंशों में परमनीच का होता है। ऐसा जातक धनी व उद्योगपति होता है। ऐसा व्यक्ति अपने हुनुर एवं चतुराई से, बिना किसी बाहरी मदद के उन्नतिपथ की ओर आगे बढ़ता है। जातक को लघु उद्योग, व्यवसाय से लाभ होता है। जातक दीर्घजीवी होता है।

दृष्टि – एकादश स्थान में स्थित शनि को दृष्टि लग्नस्थान (मिथुन राशि ), पंचम भाव (तुला राशि) एवं अपने स्वयं के घर मकरराशि (अष्टम भाव) पर होगी। फलतः ऐसे जातक को परिश्रम अनुरूप फल नहीं मिलता। संतति के भाग्योदय में बाधा, जीवन में उन्नति आसानी से नहीं होगी।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां सूर्य के कारण ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक राजा के तुल्य। यहां एकादश स्थान में दोनों ग्रह मेषराशि राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह लग्नभाव ( मिथुन राशि ) पंचमभाव (तुला राशि) एवं अष्टमभाव (मकर राशि) को देखेंगे। फलत: ऐसा जातक विद्यावान होगा। ऋण-रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा तथा प्रत्येक कार्य में सफल होगा। परंतु सही अर्थों में भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद ही होगा।

2. शनि + चंद्र – जातक धनी होगा। व्यापार से लाभ रहेगा।

3. शनि + मंगल – यहां मंगल के कारण ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक बड़ी भूमि, फैक्ट्ररी कारखाने का स्वामी होगा।

4. शनि + बुध – परिश्रम का लाभ बराबर मिलेगा।

5. शनि + गुरु – जातक को दो प्रकार के धंधों से लाभ होगा।

6. शनि + शुक्र – जातक विद्यावान् होगा।

7. शनि + राहु – व्यापार में नुकसान होगा।

8. शनि + केतु – व्यापार के लाभांश में रुकावट महसूस होगी।

मिथुन लग्न में शनि का फलादेश द्वादश स्थान में

शनि की इस स्थिति में ‘भाग्यभंग योग’ बनता है परंतु अष्टमेश का व्यय स्थान में जाने से ‘सरल नामक विपरीत राजयोग’ भी बनता है। फलस्वरूप जातक भाग्यवान, धनी एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है, पर जीवन में इन सब वस्तुओं की प्राप्ति हेतु संघर्ष बहुत करना पड़ेगा। ऐसा व्यक्ति रुपयों का गुलाम नहीं होता। जमा पूंजी को एक मिनट में खर्च करते हुए विचार नहीं करता ।

दृष्टि – द्वादशस्थ शनि की दृष्टि धनभाव (कर्क राशि) छठे भाव (वृश्चिक राशि) एवं अपने ही घर कुंभ राशि (भाग्यस्थान) पर होगी।

निशानी – जातक को नींद कम आएगी एवं अंतिम अवस्था (मृत्यु) दुःखदाई होती है। इसके लिए शुक्र की स्थित को देखना भी जरूरी है।

दशा – शनि की दशा अंतर्दशा में खर्च बढ़ेगा। भाग्योदय भी होगा।

शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. शनि + सूर्य – यहां द्वादश स्थान में दोनों ग्रह वृष राशि में होंगे। यहां बैठकर दोनों ग्रह धनभाव (कर्क राशि), छठे स्थान (तुला राशि) एवं भाग्यस्थान (कुंभ राशि) को देखेंगे। फलत: जातक भाग्यशाली तो होगा पर पराक्रमभंग होगा। धन एवं इच्छित सफलता को प्राप्त करने हेतु संघर्ष बना रहेगा। जातक का भाग्योदय पिता के मृत्यु के बाद होगा।

2. शनि + चंद्र – बढ़े-चढ़े खर्चे से कर्ज की स्थिति बन सकती है।

3. शनि + मंगल – जातक गुप्त शत्रुओं के कारण परेशान रहेगा।

4. शनि + बुध – परिश्रम पुरुषार्थ का यथेष्ट लाभ नहीं मिलेगा।

5. शनि + गुरु – गृहस्थ सुख में बाधा । ससुराल में धोखा संभव।

6. शनि + शुक्र – जातक नित नई साथी का सेवन (संभोग) करेगा।

7. शनि + राहु – यात्रा में कष्ट, गुप्त बीमारी संभव जातक दार्शनिक होगा।

8. शनि + केतु – मानसिक चिंता व तनाव रहेगा।

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