सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश

सिंह लग्न में चंद्रमा व्ययेश (खर्चेश) है। यह शुभ ग्रहों के सहचर्य से शुभ फल एवं अशुभ ग्रहों के सहचर्य से अशुभ फल देगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश प्रथम स्थान में

यहां प्रथम स्थान में चंद्रमा सिंह (मित्र) राशि में होगा। ऐसा जातक स्वयं सुंदर होगा एवं उसका जीवन साथी भी सुंदर होगा। जातक श्रृंगार प्रिय बौद्धिक चातुर्य से परिपूर्ण, स्त्री और संतान सुख से युक्त होगा।

दृष्टि – लग्नस्थ चंद्रमा की दृष्टि सप्तम भाव (कुम्भ राशि) पर होगी। फलतः जातक रंगीन मिजाज का होगा तथा अन्य स्त्रियों के प्रति आसक्त रहेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – व्ययेश चन्द्र लग्नेश सूर्य के साथ होने से व्यक्ति को नेत्र पीड़ा रहेगी। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां प्रथम स्थान सिंह राशि में दोनों ग्रह स्थित होकर चतुर्थ स्थान (वृश्चिक राशि) सप्तम स्थान (कुम्भ राशि) एवं अष्टम स्थान (मीन राशि) की पूर्ण दृष्टि से देखेंगे

फलतः जातक ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। अपने घर (वृश्चिक राशि) को देखने के कारण जातक को घर का मकान, वाहन सुख इत्यादि की प्राप्ति होगी पर जातक की उन्नति विवाह के पश्चात् होगी ।

दशा – चंद्रमा की दशा-अंतर्दशा खर्चकारी होगी। जबकि मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा एवं भौतिक सुख संसाधनों की प्राप्ति होगी।

3. चंद्र + बुध – धनेश बुध लग्न में व्ययेश चंद्रमा के साथ होने से जातक जो कमायेगा खर्च होता चला जायेगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के प्रथम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। लग्न में बैठकर दोनों शुभ ग्रह पंचम, सप्तम एवं भाग्य भवन को प्रभावित करेंगे।

फलत: संतान पक्ष, पत्नी पक्ष एवं भाग्य पक्ष अपेक्षाकृत मजबूत रहेंगे। जो भी आप कमायेंगे खर्च होता चला जायेगा। फिर भी जीवन में धन की कमी से कोई काम रुका हुआ नहीं रहेगा।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र की युति व्ययेश चंद्रमा के साथ लग्न में होने से जातक पराक्रमी होगा। जातक राजनैतिक प्रभाव वाला होगा।

6.चंद्र + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि लग्न में व्ययेश चंद्रमा के साथ होने से जातक के गृहस्थ सुख में बाधा पहुंचेगी।

7. चंद्र + राहु – व्ययेश चंद्रमा के साथ राहु लग्न में हो तो जातक की बुद्धि भ्रमित रहेगी।

8. चंद्र + केतु – व्ययेश चंद्रमा के साथ केतु लग्न में हो तो जातक मानसिक तनाव में रहेगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वितीय स्थान में

द्वितीय स्थान में चंद्रमा कन्या राशि में शत्रुक्षेत्री होगा। जातक वाक्पटु होगा। जातक मीठी व विनम्र वाणी बोलेगा पर ज्यादा धन एकत्रित नहीं कर पायेगा। जातक संगीत-साहित्य, कला, श्रृंगार व सौन्दर्य प्रिय होगा।

दृष्टि – धन भावगत चंद्रमा की दृष्टि अष्टम स्थान (मीन राशि) पर होगी। ऐसा जातक गुप्त रोग से ग्रसित होगा। जातक के गुप्त शत्रु अवश्य होंगे।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक धनी होगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – यहां व्ययेश चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होकर लग्नेश सूर्य के साथ होने से जातक को धन संग्रह के मामले में काफी दिक्कतें उठानी पड़ेंगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां द्वितीय स्थान में कन्या राशि में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव (धनु राशि), अष्टम भाव (मीन राशि) एवं भाग्य भवन अपने घर मेष राशि को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलत: ‘लक्ष्मी योग’ पूर्ण रूप से फलीभूत होगा। ऐसा जातक धनवान, सौभाग्यशाली एवं दीर्घजीवी होगा। प्रथम पुत्र के जन्म के बाद जातक धनी होगा पर धन के स्थाई संग्रह हेतु संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी।

3. चंद्र + बुध – धन स्थान में उच्च के धनेश की व्ययेश के साथ युति हो तो जातक अत्यधिक खर्च के कारण ऋणग्रस्त होगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के द्वितीय भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। धन स्थान में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह षष्टम भाव अष्टम भाव एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।

फलतः जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलेगी। जातक की आयु पूर्ण होगी। ऐसा जातक रोग व शत्रु का मुकाबला करने में पूर्ण सक्षम होगा।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र नीच का धनस्थान में व्ययेश चंद्रमा के साथ हो तो धन का संग्रह नहीं हो पायेगा।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि धन स्थान में व्ययेश चंद्र के साथ हो तो जातक का धन बीमारी में खर्च होगा।

7. चंद्र + राहु – जातक धैर्यहीन व कलहकारी होगा।

8. चंद्र + केतु – जातक का अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रहेगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश तृतीय स्थान में

यहां तृतीय स्थान में चंद्रमा तुला (सम) राशि में होगा। ऐसे जातक को भाई बहनों का सुख उत्तम होगा। जातक भोग-विलास में रुचि रखने वाला ‘सेक्स प्रेमी’ होगा। जातक को स्त्री व संतान का सुख पूर्ण होगा। यात्राओं के द्वारा जातक का पराक्रम बढ़ेगा। विदेश यात्रा भी होगी। आयात-निर्यात से लाभ मिलेगा।

दृष्टि – तृतीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि भाग्य स्थान (मेष राशि) पर होने के करण जातक भाग्यशाली होगा तथा इष्ट मित्रों की सहायता से आगे बढ़ेगा।

निशानी – शुक्र की राशि में चंद्रमा होने से जातक को स्त्री मित्रों से लाभ मिलेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में उत्तम फल मिलेंगे।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – यहां व्ययेश चंद्रमा तृतीय स्थान में लग्नेश सूर्य के साथ होने से जातक को भाई-बहनों का सुख प्राप्त होगा। जातक को सरकारी नौकरी नहीं मिल पायेगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां तृतीय स्थान में तुला राशिगत दोनों ग्रहों की दृष्ठि छठे भाव (मकर राशि) भाग्य भाव जो मंगल का स्वयं का घर है (मेष राशि) एवं दशम भाव (वृष राशि) पर होगी।

फलतः जातक धनवान पराक्रमी एवं सौभाग्यशाली होगा। जातक की राजनीति में भी पहुंच होगी। जातक ऋण रोग व शत्रु का नाश करने में सक्षम होगा।

3. चंद्र + बुध – धनंश लाभेश बुध के साथ व्ययेश चंद्रमा तृतीय स्थान में हो तो मित्रों में विवाद रहेगा। जातक मित्रों में धन उड़ायेगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के तृतीय भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश, गुरु के साथ युति है। तृतीय स्थान में बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह सप्तम भाव नवम भाव एवं एकादश भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक को पिता का धन मिलेगा। पत्नी व ससुराल पक्ष से लाभ होगा। व्यापार से भी लाभ होगा।

5. चंद्र + शुक्र – जातक की रुचि जुए में होगी। जातक को कुसंगति व Drink parties से बचना चाहिए।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश-सप्तमेश शनि, व्ययेश चंद्रमा के साथ तृतीय स्थान में होने से शत्रुओं एवं कोर्ट कचहरी पर रुपया खर्च होगा।

7. चंद्र + राहु – व्ययेश चंद्रमा तृतीय स्थान में राहु के साथ हो तो भाईयों से विवाद होगा।

8. चंद्र + केतु – व्ययेश चंद्रमा तृतीय स्थान में केतु के साथ हो तो परिजनों में मनमुटाव रहेगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थ स्थान में चंद्रमा वृश्चिक (नीच) राशि में होगा। वृश्चिक राशि के तीन अंशों तक चंद्रमा परम नीच का होगा। चंद्रमा यहां अपनी राशि से पंचम स्थान पर होने के कारण उसका नीचत्व नष्ट हो गया है। चंद्रमा यहां शुभ फल देगा। ऐसे जातक को उत्तम वाहन सुख मिलेगा। जातक उत्तम भवन का स्वामी होगा। जातक की माता को सम्पत्ति या माता का सुख मिलेगा।

दृष्टि – चतुर्थ भावगत चंद्रमा की दृष्टि दशम भाव (तुला राशि) पर होगी। फलतः जातक का राजनीति में हस्तक्षेप रहेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक का भौतिक विकास होगा तथा उसे वाहन, भूमि एवं मकान का सुख मिलेगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – यहां व्ययेश चंद्रमा नीच का होकर लग्नेश सूर्य के साथ होगा। जातक की माता बीमारी रहेगी या छोटी उम्र में गुजर जायेगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां चतुर्थ स्थान में वृश्चिक राशिगत मंगल स्वगृही एवं चंद्रमा नीच का होने से ‘नीचभंग राजयोग’, ‘रुचक योग’ एवं ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि हुई है। मंगल यहां दिग्बली भी है। फलतः ‘महालक्ष्मी यांग’ मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव (कुंभ राशि), दशम भाव (वृष राशि) एवं एकादश भाव (मिथुन राशि) पर होगी।

फलतः ऐसा जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी तथा महाधनी होगा। राज्य सरकार (राजनीति) में जातक का प्रभाव होगा तथा वह व्यापार व्यवसाय से भी धन अर्जित करेगा।

3. चंद्र + बुध – धनेश, लाभेश बुध व्ययेश चंद्रमा के साथ चतुर्थ स्थान में माता को बीमारी दिलायेगा। यहां चंद्रमा नीच का होगा फलतः जातक की माता को लम्बी बीमारी होगी।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के चतुर्थ भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश-अष्टमेश, गुरु के साथ युति है। चतुर्थ स्थान में चंद्रमा नीच का होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम स्थान, दशम भाव एवं व्यय भाव को देखेंगे।

फलतः ऐसे जातक की आयु पूर्ण होगी। राजनीति में ऊंचा पद मिलेगा। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। खर्चीला स्वभाव जातक की कमजोरी होगा।

5. चंद्र + शुक्र – जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी।

6. चंद्र + शनि – जातक की माता को कष्ट होगा। माता की या पत्नी की बीमारी में धन खर्च होगा।

7. चंद्र + राहु – व्ययेश चंद्रमा के साथ चतुर्थ स्थान में राहु होने से जातक की माता की मृत्यु अल्प आयु में होगी ।

8. चंद्र + केतु – व्ययेश चंद्रमा के साथ कंतु चतुर्थ स्थान में होने से घर के सुख में कुछ न कुछ कमी रहेगी।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश पंचम स्थान में

यहां चंद्रमा पंचम स्थान में धनु (सम) राशि का होगा। जातक को विद्या का लाभ होगा तथा उच्च शैक्षणिक उपाधि (Higher Educational Degree) मिलेगी। जातक को माता-पिता, भाई-बहन का सुख मिलेगा परन्तु पुत्र प्राप्ति हेतु तीर्थ यात्रा, व्रत-अनुष्ठान का सहारा लेना होगा।

दृष्टि – पंचमस्थ चंद्रमा की दृष्टि लाभ स्थान (मिथुन राशि पर होगी। फलतः जातक को स्वतंत्र व्यापार व्यवसाय से लाभ होगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा मिश्रित फलकारी होगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – सिंहलग्न में चंद्र-सूर्य युति पंचम स्थान में होने से

व्ययेश चंद्रमा, लग्नेश सूर्य के साथ होने से जातक को पुत्र एवं कन्या दोनों संतति की प्राप्ति होगी। जातक स्वयं शिक्षित होगा तथा उसकी संतति भी शिक्षित व सभ्य होगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां पंचम स्थान में धनु राशि में बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव (मीन राशि) लाभ स्थान (मिथुन राशि) एवं व्यय भाव (कर्क राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः इस लक्ष्मी योग के कारण जातक व्यापार-व्यवसाय में यथेष्ट धन अर्जित करेगा। जातक दीर्घजीवी होगा तथा ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।

3. चंद्र + बुध – व्ययेश चंद्रमा पंचम स्थान में बुध के साथ होने से जातक की प्रथम संतति का गर्भपात होगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के पंचम भाव में गुरु-चद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश-अष्टमेश, गुरु के साथ युति है। पंचम स्थान में गुरु स्वगृही होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह नवम स्थान एकादश भाव एवं लग्न भाव को देखेंगे।

फलतः ऐसे जातक का भाग्योदय 37 वर्ष की आयु के बाद होगा। जातक को व्यापार व्यवसाय से लाभ होगा। जातक को व्यक्तिगत सफलता मिलती रहेगी।

5. चंद्र + शुक्र – व्ययेश चंद्रमा के साथ तृतीयेश-दशमेश शुक्र पंचम स्थान में होने से जातक को पुत्र संतति की अपेक्षाकृत कन्या संतति अधिक होगी।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश व सप्तमेश शनि पंचम स्थान में व्ययेश चंद्रमा के साथ होने से संतति को लेकर आपरेशन होगा।

7. चंद्र + राहु – पंचम स्थान में व्ययेश चंद्रमा के साथ राहु होने से पुत्र संतति की हानि होगी।

8. चंद्र + केतु – पंचम स्थान में व्ययेश चंद्रमा के साथ केतु होने से गर्भपात. गर्भस्राव का भय रहेगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां छठे स्थान में चंद्रमा मकर (सम) राशि में होगा। व्ययेश होकर चंद्रमा के छठे जाने से विमल नामक विपरीत राजयोग बनेगा। फलस्वरूप जातक धनवान व ऐश्वर्यवान होगा। जातक को कार्य में अचानक सफलता मिलेगी।

दृष्टि – षष्टमस्थ चंद्रमा की दृष्टि व्यय भाव अपने ही घर कर्क राशि पर होगी। फलत: जातक के ऊपर ऋण व शत्रुओं का बोझ रहेगा। इस कारण जातक का आत्मबल भी कमजोर रहेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक भारी उतार-चढ़ाव महसूस करता हुआ उन्नति प्राप्त करेगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – व्ययेश चंद्रमा छठे स्थान में लग्नेश के साथ होने से विमल नामक विपरीत राजयोग बनेगा। सूर्य के कारण ‘लग्नभंग योग’ बनेगा। जातक धनवान ऐश्वर्यवान होगा परन्तु उसे राजसरकार से वांछित सहयोग नहीं मिलेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां छठे स्थान में मकर राशिगत मंगल उच्च का होगा। मंगल की यह स्थिति ‘सुखभंग योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करती है पर व्ययेश चंद्रमा के छठे जाने से सरल नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि हुई है। अतः लक्ष्मी योग बना।

ऐसा जातक संघर्ष के बाद धनी होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि भाग्य स्थान (मेष राशि) व्यय भाव (कर्क राशि) एवं लग्न भाव (सिंह राशि) पर होगी। निश्चय ही जातक भाग्यशाली धनी होगा एवं व्ययशील (खर्चीली) प्रवृत्ति का स्वामी होगा।

3. चंद्र + बुध – व्ययेश चंद्रमा के छठे होने से विपरीत राजयोग तो बना परन्तु धनेश-लाभेश बुध की स्थिति यहां होने से जातक धनी होते हुए भी कष्ट में रहेगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के छठे भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश-अष्टमेश गुरु के साथ युति है। छठे स्थान में गुरु नीच का होगा एवं संतानहीन योग’ की सृष्टि करेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव, द्वादश भाव एवं धन भाव देखेंगे।

फलतः जातक को राजनीति में नौकरी व व्यापार से धोखा मिले। जातक के धन का अपव्यय होगा। पैसा उसके पास में नहीं टिकेगा।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश-दशमेश शुक्र छठे स्थान में व्ययेश चंद्र के साथ हो तो जातक का पराक्रम भंग होगा। जातक को सरकारी दण्ड मिलेगा।

6. चंद्र + शनि – पष्टेश शनि के छठे स्थान में स्वगृही होने से हर्ष नामक विपरीत राजयोग बनेगा। जातक धनी व वैभवशाली होगा पर दो पत्नी का योग बनता है। जातक का गृहस्थ सुख कमजोर रहेगा।

7. चंद्र + राहु – राहु के साथ चंद्रमा छठे स्थान में हो तो जातक के जीवन में गुप्त शत्रु उसे पीड़ा पहुचायेंगे ।

8. चंद्र + केतु – केतु के साथ चंद्रमा छठे स्थान में हो तो जातक के गुप्त शत्रु होगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां सप्तम स्थान में चंद्रमा कुम्भ (सम) राशि में होगा। जातक की पत्नी सुंदर रूपवान होगी परन्तु जातक स्वयं चिंतनशील, गंभीर एवं एकांतप्रिय स्वभाव का होगा। जातक अपने जीवन साथी पर धन खर्च करता है पर उसका पूर्ण सुख उसे नहीं मिलता।

दृष्टि – सप्तमस्थ चंद्रमा की दृष्टि लग्न स्थान (सिंह राशि पर होगी फलतः जातक खर्चीले स्वभाव का होगा।

निशानी – द्वादशेश का सप्तम भाव में होना पाराशर ऋषि के अनुसार ठीक नहीं होता। ऐसा जातक जीवनसाथी के प्रति उद्विग्न (उदासीन) रहेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा ज्यादा शुभ फल नहीं देगो ।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – चंद्रमा सप्तम स्थान में होने से सुंदर पत्नी देगा पर पत्नी खर्चीले स्वभाव की होगी। सूर्य के यहां बैठकर लग्न को देखने से परिश्रम पूर्वक किये गये प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। यहां यह युति शुभ फलदायक है।

2. चंद्र + मंगल – यहा सप्तम स्थान में कुम्भ राशिगत दोनों ग्रहों की दृष्टि दशम भाव (वृष राशि) लग्न भाव (सिंह राशि) एवं धन भाव (कन्या राशि) पर होगी। फलतः ‘लक्ष्मी योग’ पूर्ण रूप से मुखरित हुआ।

ऐसे जातक को हाथ में लिए गए प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। जातक धनवान एवं साधन-सम्पन्न होगा। जातक राजनीति में प्रभाव रखने वाला महत्वपूर्ण व्यक्ति होगा।

3. चंद्र + बुध – व्ययेश चंद्रमा के साथ धनेश-लाभेश बुध की युति सप्तम भाव में होने से वैवाहिक सुख में बाधक है।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के सप्तम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश-अष्टमेश गुरु के साथ युति है। सप्तम भाव में बैठकर दोनों शुभ ग्रह लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं पराक्रम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः विवाह के तत्काल बाद जातक की उन्नति होगी। उसका पराक्रम जनसम्पर्क बढ़ेगा एवं उसे लाभ होगा।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र की युति व्ययेश चंद्रमा के साथ सप्तम स्थान में जातक को पराक्रमी ससुराल देगी।

6. चंद्र + शनि – स्वगृही शनि सप्तम स्थान में शश योग’ बनायेगा। जातक महाधनी होगा परन्तु गृहस्थ सुख में कमी रहेगी।

7. चंद्र + राहु – व्ययेश चंद्र के साथ राहु होने पर जातक की पत्नी की अकाल मृत्यु होगी।

8. चंद्र + केतु – व्ययेश चंद्र के साथ केतु होने पर जातक को गृहस्थ सुख में बाधा आयेगी।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टम स्थान में चंद्रमा मीन (सम) राशि में होगा। व्ययेश चंद्रमा के अष्टम स्थान में जाने से सरल नामक विपरीत राजयोग बनेगा। जातक धनवान एवं ऐश्वर्यवान होगा।

जातक कभी आस्तिक एवं कभी नास्तिक विचारों वाला होगा। कभी आध्यात्मिक एवं कभी भौतिक सुविधाओं पर जोर रहेगा। जातक का मन विचलित मस्तिष्क अस्थिर विचारों वाला होगा।

दृष्टि – अष्टम भावगत चंद्रमा की दृष्टि धन स्थान (कन्या राशि) पर होगी। जिससे विद्या, बुद्धि, धन व कुटुम्ब सुख में वृद्धि होगी।

निशानी – चंद्रमा की निर्बलता के कारण जातक स्वयं अपने लिए परेशानियां उत्पन्न करता रहेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अचानक लाभ भी दे सकती है। पर अनिष्ट फल अवश्य देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – व्ययेश चंद्रमा के अष्टम में जाने से विमल नामक विपरीत राजयोग बनेगा। सूर्य के कारण लग्नभंग योग बनेगा। ऐसा जातक धनवान, ऐश्वर्यवान तो होगा परन्तु राज सरकार से दण्डित होगा।

2. चंद्र + मंगल – वह दोनों ग्रह अष्टम स्थान मीन राशि में होंगे। मंगल की यह स्थिति ‘सुखभग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ की सृष्टि करेगी। परन्तु व्ययेश चंद्रमा के अष्टम में जाने से ‘सरल’ नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि होने से ‘लक्ष्मी योग’ मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभ स्थान (मिथुन राशि), भन धान (कन्या राशि) एवं पराक्रम भाव (तुला राशि) को देखेंगे। फलत: जातक व्यापार व्यवसाय में धन अर्जित करेगा एवं महान पराक्रमी होगा।

3. चंद्र + बुध – अष्टम स्थान में चंद्र-बुध की युति से जातक को गुप्त बीमारी का भय रहेगा अथवा शल्य चिकित्सा का भय रहेगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के अष्टम भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश-अष्टमेश गुरु के साथ युति है। अष्टम स्थान में गुरु स्वगृही होगा। दोनों ग्रह यहां बैठने से ‘संतान हीन योग’ बनेगा। यदि ध्यान नहीं दिया गया तो विद्या प्राप्ति में बाधा आयेंगी।

खड्ढे में गिरे हुए ये दोनों ग्रह खर्च स्थान, धन स्थान एवं चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: धन का अपव्यय होगा। जातक को बढ़ते हुए खर्च के प्रति चिंता रहेगी। माता या वाहन को लेकर भी जातक का रुपया खर्च होगा।

5. चंद्र + शुक्र – अष्टम स्थान में शुक्र पराक्रम भंग करायेगा। जातक राजा से दण्डित होगा।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश शनि के आठवें जाने से हर्ष नामक विपरीत राजयोग बनेगा। जातक गुप्त रोग या गुप्त शत्रु द्वारा पीड़ित होगा। जानक धनी व प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

7. चंद्र + राहु – अष्टम स्थान में राहु ‘द्विभार्या योग’ बनाता है।

8. चंद्र + केतु – अष्टम स्थान में चंद्रमा के साथ केतु शल्य चिकित्सा का योग बनाता है।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश नवम स्थान में

यहां नवम स्थान में चंद्रमा मेष (मित्र) राशि में होगा। फलत: जातक ऊर्जावान होगा। जातक को विद्या धन सम्पत्ति, स्त्री, संतान, व्यापार-व्यवसाय का पूर्ण सुख मिलेगा। जातक गणित, वेद-विद्या, कम्प्यूटर लाईन का ज्ञाता होगा। जातक अपने द्वारा अर्जित ज्ञान राशि से यथेष्ट धन कमाता है।

दृष्टि – नवम भावगत चंद्रमा की दृष्टि पराक्रम स्थान (तुला राशि) पर होगी। फलत: जातक पराक्रमी होगी। कुटुम्ब परिवार का पोषक होगा।

निशानी – जातक को पिता की सम्पत्ति वारिस में मिलेगी। जातक में भरपूर उत्साह, उमंग एवं महत्वाकांक्षा होगी।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – व्ययेश चंद्रमा भाग्य भवन में उच्च के सूर्य के साथ होगा। फलत: जातक महान पराक्रमी होगा। ‘रविकृत राजयोग के कारण जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। थोड़ा संघर्ष होते हुए भी जातक आगे बढ़ेगा।

2. चंद्र + मंगल – यहां मेष राशिगत मंगल स्वगृही एवं चंद्रमा उच्चाभिलाषी होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव (कर्क राशि) पराक्रम भाव (तुला राशि) एवं चतुर्थ भाव जो कि स्वयं मंगल का मुखरित हुआ।

ऐसा जातक अति सौभाग्यशाली एवं धनवान होगा। जातक बड़ी भू-सम्पति का स्वामी, गांव का मुखिया या प्रतिष्ठित पद को प्राप्त करेगा। ऐसा जातक व्ययशील (उदार) प्रवृत्ति वाला होगा।

3. चंद्र + बुध – व्ययेश चंद्रमा के साथ धनेश की युति जातक को माता-पिता से धन दिलवायेगी।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के नवम भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। नवम स्थान में बैठकर दोनों शुभ ग्रह लग्न स्थान, पराक्रम स्थान एवं पंचम स्थान जो कि गुरु का स्वयं का घर है, पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।

फलत: प्रथम संतति कं बाद जातक का विशेष भाग्योदय होगा। जातक के मित्र एवं शुभचिंतकों की संख्या में अद्वितीय वृद्धि होगी। राजनीति में आपकी जीत होगी एवं संतान आज्ञाकारी होगी।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश-दशमेश शुक्र यदि व्ययेश के साथ भाग्य स्थान में हो तो जातक को भाग्योदय के अवसर मित्रों की मदद से प्राप्त होते रहेंगे।

6 चंद्र + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि भाग्य स्थान में व्ययेश के साथ हो तो जातक का जीवन साथी उड़ाऊ प्रवृत्ति का होगा।

7. चंद्र + राहु – भाग्य स्थान में राहु व्ययेश चंद्र के साथ होने से भाग्य में लगातार रुकावटें आती रहेंगी।

8. चंद्र + केतु – भाग्य स्थान में केतु यदि व्ययेश चंद्र के साथ हो तो जातक विदेश में धन कमायेगा।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश दशम स्थान में

यहां दशम स्थान में चंद्रमा वृष राशि में उच्च का होगा। वृष राशि के तीन अंशों तक चंद्रमा परमोच्च का होगा। ऐसे जातक शिक्षित होते हैं। यामिनीनाथ योग के कारण जातक ऐश्वर्यवान होगा।

ऐसे जातक कुशाग्र बुद्धि के कारण डॉक्टर, वकील, राजनेता एवं ज्योतिषी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। रत्न, होटल, आयात-निर्यात, वस्त्र-व्यवसाय, उद्योग व हैण्डीक्राफ्ट के व्यापार में लाभ की संभावना ज्यादा प्रबल है।

दृष्टि – दशम भावगत चंद्रमा की दृष्टि सुख स्थान (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: जातक को घर-सम्पत्ति माता-पिता एवं वाहन का सुख मिलता है।

निशानी – ऐसे जातक को पिता का स्वल्प सुख मिलता है।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक की व्यापारिक व्यवसायिक उन्नति होगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – व्ययेश चंद्रमा दशम स्थान में उच्च का होने से ‘यामिनीनाथ यांग’ बनायेगा । सूर्य केन्द्र में होने से व्यक्ति राजा के समान पराक्रमी होगा, परन्तु वाहन दुर्घटना में अंग-भंग होने के योग बनते हैं।

2. चंद्र + मंगल – यहां वृष राशिगत केन्द्रवर्ती चंद्रमा उच्च का होगा। अतः यहां ‘यामिनी नाथ योग’ बनेगा। मंगल यहां दिक्वली होगा तथा ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा। फलत: यहां ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि हुई है। ऐसा जातक महाधनी होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि लग्न स्थान (सिंह राशि) चतुर्थ भाव जो मंगल का स्वयं का घर हैं (वृश्चिक राशि) एवं पंचम भाव (धनु राशि) पर होगी।

ऐसे जातक को जीवन के प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का तथा उत्तम वाहन का स्वामी होगा। जातक का सही अर्थों में भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा।

3. चंद्र + बुध – धनेश यदि दशम भाव में व्ययेश के साथ हो तो जातक राजनीति में नेतागिरी में रुपया खर्च करेगा और वहीं से कमायेगा भी।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के दशम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। दशम भाव में चंद्रमा उच्च का होगा एवं ‘यामिनीनाथ योग’ बनायेगा। दशम भाव में बैठे दोनों शुभ ग्रह धन स्थान, चतुर्थ भाव एवं षष्ट भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।

फलत: जातक को 24 वर्ष की आयु के बाद धन प्राप्ति होनी शुरू होगी। जातक अपने शत्रुओं को नष्ट करने में समर्थ होगा एवं 38 वर्ष की आयु के बाद दो मंजिला मकान बनायेगा, अच्छा वाहन खरीदेगा ।

5. चंद्र + शुक्र – शुक्र के कारण ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। इससे अधिक और क्या? जातक राजा या राजा से कम नहीं होगा।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि दशम स्थान में व्ययेश के साथ हो तो पत्नी या गुप्त रोग को लेकर रुपया खर्च होगा।

7. चंद्र + राहु – यहां चंद्रमा के साथ राहु होने से जातक विलासिता में भटक जायेगा।

8. चंद्र + केतु – चंद्रमा के साथ केतु होने से जातक को राजनैतिक परेशानियां रहेंगी।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश एकादश स्थान में

यहां एकादश स्थान में चंद्रमा मिथुन (शत्रु) राशि में होगा। ऐसा जातक सौभाग्यशाली होगा। जातक को नौकरी-व्यापार का सुख प्राप्त होगा। जातक को स्त्री सम्पति का सुख भी पूर्ण मिलेगा। उद्योग व बड़े व्यापार में जातक को अल्प धन लाभ होगा। जातक का मन विचलित रहेगा। जातक के निर्णय दोहरे मापदण्ड वाले होंगे।

दृष्टि – एकादश भावगत चंद्रमा की दृष्टि पंचम भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः जातक का बौद्धिक स्तर बढ़ा चढ़ा होगा। जातक को संतान सुख उत्तम मिलेगा।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – व्ययेश चंद्रमा के शत्रुक्षेत्री होकर एकादश स्थान में लग्नेश सूर्य के साथ होने से व्यापार में लाभ होगा। जातक धनी होगा पर धन संग्रह में बाधा बनी रहेगी।

2. चंद्र + मंगल – यहां एकादश स्थान में मिथुन राशि में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन भाव (कन्या राशि) पंचम भाव (धनु राशि) एवं छठे भाव (मकर राशि) को देखेंगे।

इस ‘लक्ष्मी योग’ के कारण जातक धनवान होगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक की आर्थिक स्थिति प्रथम संतति के बाद सुदृढ़ होगी।

3. चंद्र + बुध – बलवान धनेश के साथ व्ययेश के लाभ स्थान में होने से जातक अपने सामर्थ्य से अधिक बढ़-चढ़ कर खर्च करेगा।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के एकादश भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। एकादश भाव में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह पराक्रम स्थान, पंचम स्थान एवं सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।

फलतः आपका पराक्रम बढ़ा-चढ़ा रहेगा। आपकी विद्या पूर्ण होगी। आपको शैक्षणिक डिग्री मिलेगी पर नम्बरों में कुछ न्यूनता अनुभव करेंगे। ससुराल अच्छा मिलेगा। जातक को सुन्दर पत्नी मिलेगी। प्रथम संतति के बाद जातक के भाग्योदय की गति में तेजी आयेगी।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र लाभ स्थान में व्ययेश चंद्रमा के साथ होने से व्यापार में लाभ तो होगा पर उसका बड़ा हिस्सा व्यर्थ में खर्च हो जायेगा।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि के लाभ स्थान में व्ययेश के साथ होने से जातक का चलता उद्योग एक बार बंद होगा।

7. चंद्र + राहु – राहु के साथ व्ययेश चंद्रमा के लाभ स्थान में होने से व्यापार में लगातार हानि होगी।

8. चंद्र + केतु – व्ययेश चंद्र के साथ केतु व्यापार प्रतिष्ठान में चोरी का संकेत देता है।

सिंह लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में चंद्रमा स्वगृही कर्क राशि में होगा। व्यय भाव में व्ययेश के स्वगृही होने से विमल नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि होगी। ऐसे जातक कल्पनाशील एवं संवेदनशील होते हैं।

ऐसे जातक को यात्राओं से लाभ होता है। खासकर विदेश यात्रा से फायदा है। ऐसे जातक को रत्न-व्यवसाय अथवा आयात-निर्यात के कार्यों में लाभ होता है। जातक ऐश्वर्यवान एवं धनी होगा।

दृष्टि – व्यय भावगत चंद्रमा की दृष्टि छठे भाव (मकर राशि) पर होगी। फलत: जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा ।

निशानी – ऐसा जातक परद्वेषी होता है तथा वह दूसरों का सुख नहीं देख सकता ।

दशा – चंद्रमा की दशा अंतर्दशा में जातक उन्नति की ओर आगे बढ़ेगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र + सूर्य – चंद्रमा व्यय भाव में स्वगृही होने से विमल नामक विपरीत राजयोग बना। लग्नेश बारहवें होने से ‘लग्नभग योग’ बना। जातक को नेत्रपीड़ा रहेगी। जानक धनी मानी व अभिमानी होगा पर जन्म स्थान से दूर प्रदेशों में भाग्योदय होने का योग है।

2. चंद्र + मंगल – यहां द्वादश स्थान में कर्क राशि में चंद्रमा स्वगृही एवं मंगल नीच का होने से नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। यद्यपि मंगल के कारण ‘सुखभंग योग’ तथा ‘भाग्यभंग योग’ बना था। तथापि व्यय भाव में व्ययेश स्वगृही होने से सरल नामक विपरीत राजयोग के कारण मंगल के अशुभ फल नष्ट हो जायेंगे।

यहां ‘महालक्ष्मी योग’ मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम भाव (तुला राशि) षष्टम भाव (मकर राशि) एवं सप्तम भाव (कुम्भ राशि) को देखेंगे। फलत: जातक महान पराक्रमी होगा। जातक शत्रुओं का दमन करने में कामयाब होगा, परन्तु जातक सही अर्थों में धनी विवाह के बाद होगा।

3. चंद्र + बुध – चंद्रमा के साथ धनेश बुध के शत्रुक्षेत्री होने से जातक धनी तो होगा पर धनभंग योग के कारण जातक को चल सम्पत्ति खर्च होती चली जायेगी।

4. चंद्र + गुरु – सिंह लग्न के द्वादश भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। द्वादश स्थान में चंद्रमा स्वगृही होगा एवं गुरु उच्च का होकर ‘किम्बहुना योग’ बनायेगा। साथ ही गुरु बारहवें होने से ‘संतानहीन योग’ की सृष्टि भी होगी। शुभ अशुभ मिश्रित फलों से युक्त होकर दोनों ग्रह चतुर्थ भाव षष्टम भाव एवं अष्टम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।

फलतः जातक को जीवन में बहुत ही उत्तम श्रेणी का मकान सुख एवं वाहन सुख मिलेगा। जातक की आयु दीर्घ होगी। जातक रोग व शत्रु दोनों का नाश करने में सक्षम होगा।

5. चंद्र + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र व्यय भाव में चंद्रमा के साथ होने से जातक का पराक्रम भंग करायेगा।

6. चंद्र + शनि – षष्टेश व सप्तमेश शनि बारहवें चंद्रमा के साथ विवाह में भंग एवं गृहस्थ सुख में बाधा पहुंचायेगा।

7. चंद्र + राहु – राहु के साथ व्यय भाव में चंद्रमा होने से जातक को खराब सपने आयेंगे। जातक विक्षिप्त भी हो सकता है।

8. चंद्र + केतु – केतु के साथ व्यय भाव में चंद्रमा मानसिक कष्ट देता है।

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